अपनी कमाई सास के हाथ पर कब रखें, कब नहीं

भले ही सासबहू के रिश्ते को 36 का आंकड़ा कहा जाता है पर सच यह भी है कि एक खुशहाल परिवार का आधार कहीं न कहीं सासबहू के बीच अच्छे सामंजस्य और एकदूसरे को समझने की कला पर निर्भर करता है.

एक लड़की जब शादी कर के किसी घर की बहू बनती है तो उसे सब से पहले अपनी सास की हुक़ूमत का सामना करना पड़ता है. सास सालों से जिस घर को चला रही होती है उसे एकदम से बहू के हवाले नहीं कर पाती. वह चाहती है कि बहू उसे मान दे, उस के अनुसार चले.

ऐसे में बहू यदि कामकाजी हो तो उस के मन में यह सवाल उठ खड़ा होता है कि वह अपनी कमाई अपने पास रखे या सास के हाथों पर रख दे. वस्तुतः बात केवल सास के मान की नहीं होती बहू का मान भी मायने रखता है. इसलिए कोई भी फैसला लेने से पहले कुछ बातों का ख्याल जरूर रखना चाहिए.

बहू अपनी कमाई सास के हाथ पर कब रखे—

1. जब सास हो मजबूर

यदि सास अकेली हैं और ससुर जीवित नहीं तो ऐसे में एक बहू यदि अपनी कमाई सास को सौंपती है तो सास उस से अपनापन महसूस करने लगती है. पति के न होने की वजह से सास को ऐसे बहुत से खर्च रोकने पड़ते हैं जो जरूरी होने पर भी पैसे की तंगी की वजह से वह नहीं कर पातीं. बेटा भले ही अपने रुपए खर्च के लिए देता हो पर कुछ खर्चे ऐसे हो सकते हैं जिन के लिए बहू की कमाई की भी जरूरत पड़े. ऐसे में सास को कमाई दे कर बहू परिवार की शांति कायम रख सकती है.

2. सास या घर में किसी और के बीमार होने की स्थिति में

यदि सास की तबीयत खराब रहती है और डॉक्टरबाजी में बहुत रुपए लगते हैं तो यह बहू का कर्तव्य है कि वह अपनी कमाई सास के हाथों पर रख कर उन्हें इलाज की सुविधाएं उपलब्ध कराने में मदद करे.

3. अपनी पहली कमाई

एक लड़की जैसे अपनी पहली कमाई को मांबाप के हाथों पर रख कर खुश होती है वैसे ही यदि आप बहू हैं तो अपनी पहली कमाई सास के हाथों पर रख कर उन का आशीर्वाद लेने का मौका न चूकें.

4. यदि आप की सफलता की वजह सास हैं

यदि सास के प्रोत्साहन से आप ने पढ़ाई की या कोई हुनर सीख कर नौकरी हासिल की है यानी आप की सफलता की वजह कहीं न कहीं आप की सास का प्रोत्साहन और प्रयास है तो फिर अपनी कमाई उन्हें दे कर कृतज्ञता जरुर प्रकट करें. सास की भीगी आंखों में छुपे प्यार का एहसास कर आप नए जोश से अपने काम में जुट सकेंगी.

5. यदि सास जबरन पैसे मांग रही हो

पहले तो यह देखें कि ऐसी क्या बात है जो सास जबरन पैसे मांग रही है. अब तक घर का खर्च कैसे चलता था?

इस मामले में अच्छा होगा कि पहले अपने पति से बात करें. इस के बाद पतिपत्नी मिल कर इस विषय पर घर के दूसरे सदस्यों से विचारविमर्श करें. सास को समझाएं. उन के आगे खुल कर कहें कि आप कितने रुपए दे सकती हैं. चाहे तो घर के कुछ खास खर्चे जैसे राशन /बिल/ किराया आदि की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लें . इस से सास को भी संतुष्टि रहेगी और आप पर भी अधिक भार नहीं पड़ेगा.

6. यदि सास सारे खर्च एक जगह कर रही हो

कई परिवारों में घर का खर्च एक जगह किया जाता है. यदि आप के घर में भी जेठ, जेठानी, देवर, ननद आदि साथ में रह रहे हैं और सम्मिलित परिवार की तरह पूरा खर्च एक ही जगह हो रहा है तो स्वभाविक है कि घर के प्रत्येक कमाऊ सदस्य को अपनी हिस्सेदारी देनी होगी.

सवाल यह उठता है कि कितना दिया जाए? क्या पूरी कमाई दे दी जाए या एक हिस्सा दिया जाए? देखा जाए तो इस तरह की परिस्थिति में पूरी कमाई देना कतई उचित नहीं होगा. आप को अपने लिए भी कुछ रुपए रकम बचा कर रखना चाहिए. वैसे भी घर के प्रत्येक सदस्य की आय अलगअलग होगी. कोई 70 हजार कमा रहा होगा तो कोई 20 हजार, किसी की नईनई नौकरी होगी तो किसी ने बिजनेस संभाला होगा. इसलिए हर सब सदस्य बराबर रकम नहीं दे सकता.

बेहतर होगा कि आप सब इनकम का एक निश्चित हिस्सा जैसे 50% सास के हाथों में रखें. इस से किसी भी सदस्य के मन में असंतुष्टि पैदा नहीं होगी और आप भी निश्चिंत रह सकेंगी.

7. यदि मकान सासससुर का है

जिस घर में आप रह रही हैं यदि वह सासससुर का है और सास बेटेबहू से पैसे मांगती है तो आप को उन्हें पैसे देने चाहिए. कुछ और नहीं तो घर और बाकी सुखसुविधाओं के किराए के रूप में ही पैसे जरूर दें

8. यदि शादी में सास ने किया है काफी खर्च

अगर आप की शादी में सासससुर ने शानदार आयोजन रखा था और बहुत पैसे खर्च किए थे. लेनदेन, मेहमाननवाजी तथा उपहार वितरण आदि में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. बहू और उस के घरवालों को काफी जेवर भी दिए थे तो ऐसे में बहू का भी फर्ज बनता है कि वह अपनी कमाई सास के हाथों में रख कर उन्हें अपनेपन का अहसास दिलाए.

9. ननद की शादी के लिए

यदि घर में जवान ननद है और उस की शादी के लिए रुपए जमा किए जा रहे हैं तो बेटेबहू का दायित्व है कि वे अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा दे कर अपने मातापिता को सहयोग करें.

10. जब पति शराबी हो*

कई बार पति शराबी या निकम्मा होता है और पत्नी के रुपयों पर अय्याशी करने का मौका ढूंढता है. वह पत्नी से रुपए छीन कर शराब में या गलत संगत में खर्च कर सकता है. ऐसी स्थिति में अपने रुपयों की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि आप ला कर उन्हें सास के हाथों पर रख दें.

कब अपनी कमाई सास के हाथों में न रखें

1. जब आपकी इच्छा न हो

अपनी इच्छा के विरुद्ध बहू अपनी कमाई सास के हाथों में रखेगी तो घर में अशांति पैदा होगी. बहू का दिमाग भी बौखलाया रहेगा और उधर सास बहू के व्यवहार को नोटिस कर दुखी रहेगी. ऐसी स्थिति में बेहतर है कि सास को रुपए न दिए जाएं.

2. जब ससुर जिंदा हो और घर में पैसों की कमी न हो

यदि ससुर जिंदा हैं और कमा रहे हैं या फिर सास और ससुर को पेंशन मिल रही है तो भी आप को अपनी कमाई अपने पास रखने का पूरा हक है. परिवार में देवर, जेठ आदि हैं और वे कमा रहे हैं तो भी आप को कमाई देने की जरूरत नहीं है.

3. जब सास टेंशन करती हो

यदि आप अपनी पूरी कमाई सास के हाथों में दे रही हैं इस के बावजूद सास आप को बुराभला कहने से नहीं चूकती और दफ्तर के साथसाथ घर के भी सारे काम कराती हैं, आप कुछ खरीदना चाहें तो रुपए देने से आनाकानी करती हैं तो ऐसी स्थिति में सास के आगे अपने हक के लिए लड़ना लाजिमी है. ऐसी सास के हाथ में रुपए रख कर अपना सम्मान खोने की कोई जरूरत नहीं है बल्कि अपनी मर्जी से खुद पर रुपए खर्च करने का आनंद लें और दिमाग को टेंशनफ्री रखें.

4. जब सास बहुत खर्चीली हो

यदि आप की सास बहुत खर्चीली हैं और आप जब भी अपनी कमाई ला कर सास के हाथों में रखती हैं तो वे उन रुपयों को दोचार दिनों के अंदर ही बेमतलब के खर्चों में उड़ा देती हैं या फिर सारे रुपए मेहमाननवाजी और अपनी बेटियों के परिवार और बहनों पर खर्च कर देती हैं तो आप को संभल जाना चाहिए. सास की खुशी के लिए अपनी मेहनत की कमाई यूं बर्बाद होने देने के बजाय उन्हें अपने पास रखिए और सही जगह निवेश कीजिए.

5. जब सास माता की चौकी कराए

जब सासससुर घर में तरहतरह के धार्मिक अनुष्ठान जैसे माता की चौकी वगैरह कराएं और पुजारियों की जेबें गर्म करते रहें या अंधविश्वास और पाखंडों के चक्कर में रूपए बर्बाद करते रहें तो एक पढ़ीलिखी बहू सास की ऐसी गतिविधियों का हिस्सा बनने या आर्थिक सहयोग करने से इंकार कर सकती है. ऐसा कर के वह सास को सही सोच रखने को प्रेरित कर सकती है.

बेहतर है कि उपहार दें

इस सन्दर्भ में सोशल वर्कर अनुजा कपूर कहती हैं कि जरूरी नहीं आप पूरी कमाई सास को दें. आप उपहार ला कर सास पर रुपए खर्च कर कर सकती हैं. इस से उन का मन भी खुश हो जाएगा और आप के पास भी कुछ रूपए बच जाएंगे. सास का बर्थडे है तो उन्हें तोहफे ला कर दें, उन्हें बाहर ले जाएं, खाना खिलाएं, शॉपिंग कराएं, वह जो भी खरीदना चाहें वे चीजें खरीद कर दें. त्यौहारों के नाम पर घर की साजसजावट और सब के कपड़ों पर रूपए खर्च कर दें.

पैसों के लेनदेन से घरों में तनाव पैदा होते हैं पर तोहफों से प्यार बढ़ता है, रिश्ते सँभलते हैं और सासबहू के बीच बॉन्डिंग मजबूत होती है. याद रखें रुपयों से सास में डोमिनेंस की भावना बढ़ सकती है जब कि बहू के मन में भी असंतुष्टि की भावना उत्पन्न होने लगती है. बहू को लगता है कि मैं कमा क्यों रही हूं जब सारे रुपए सास को ही देने हैं.

इसलिए बेहतर है कि जरूरत के समय सास पर या परिवार पर रूपए जरूर खर्च करें पर हर महीने पूरी रकम सास के हाथों में रखने की मजबूरी न अपनाएं.

क्या बहू-बेटी नहीं बन सकती

लेखक- डा. अर्जनिबी युसुफ शेख

कमरे से धड़ाम से प्लेट फेंकने की आवाज आई. बैठकरूम में टीवी देख रहे भाईबहनों के बीच से उठ कर आसिम आवाज की दिशा में कमरे में चला गया. आसिम के कमरे में जाते ही उस की बीवी रजिया ने फटाक से दरवाजा बंद कर दिया. यह आसिम की शादी का दूसरा ही दिन था.

आसिम की बीवी रजिया देखने में बड़ी खूबसूरत थी. उस की खूबसूरती और बातों पर फिदा हो कर ही आसिम ने उस से शादी के लिए हां भर दी थी. वैसे वह आसिम की भाभी की बहन की बेटी थी. बड़ी धूमधाम से दोनों की शादी हुई. घर में नई भाभी के आ जाने से आसिम के भाई और आसिम के मामू के बच्चे यानी मुमेरे भाईबहन भी बहुत खुश थे.

आसिम के घर में सगे और ममेरे भाईबहनों के बीच कोई भेद नहीं था. एक बाड़े में भाईबहन के अलगअलग घर थे परंतु साथ ऐसे रहते थे जैसे सब एक ही घर में रहते हों.

सब साथ खाना खाते, साथ खेलते, साथ मेले में जाते थे. फूप्पी भाई के बच्चों को भी अपने बच्चों की तरह संभाला करती और भाभी भी ननद के बच्चों को अपने बच्चों जैसा ही प्यार करती. वास्तव में बच्चों ने भेदभाव देखा ही नहीं था. इसलिए उन्हें यह कभी एहसास हुआ ही नहीं

कि वे सगे भाईबहन नहीं बल्कि मामूफूप्पी के बच्चे हैं.

अगले दिन शाम के समय जब फिर सब भाईबहन टीवी देखने बैठे तो आसिम कमरे में ही रहा. वह सब के बीच टीवी देखने नहीं आया. इस के अगले दिन फिर सब एकत्रित अपनी पसंद का सीरियल देखने साथ बैठे ही थे कि आसिम की बीवी दनदनाती आई और रिमोट से अपनी पसंद की मूवी लगा कर देखने बैठ गई.

आसिम की अम्मीं ने जब यह देखा तो वे बहू से कहने लगीं, ‘‘बेटा, सब जो सीरियल देख रहे हैं वही तू भी थोड़ी देर देख ले. सीरियल देखने के बाद चले जाते हैं बच्चे.’’

बातबात पर लड़ाई

दरअसल, आसिम के मामू के यहां टीवी नहीं था और न ही उन्हें अलग से टीवी लेने की जरूरत महसूस हुई कभी. एक टीवी के ही बहाने अपना पसंदीदा सीरियल या कोई खास मूवी देखने सब एक समय बैठक में नजर आते थे. अगले दिन फिर जब सब उसी वक्त टीवी देखने बैठे तो आसिम की बीवी रजिया ने आ कर टीवी बंद कर दिया. सब चुपचाप बाहर निकल गए. धीरेधीरे सब की समझ में आ गया कि रजिया भाभी को सब का बैठना अखरता है.

दोपहर के समय पार्टी मामू के यहां जमती थी. रजिया को आसिम का मामू के यहां बैठना भी अखरता. वह बुलाने चली जाती. आसिम उठ कर नहीं आता तो उस की बड़बड़ शुरू हो जाती. सुबह देर तक सोना, उठ कर सास द्वारा बना कर रखा हुआ खाना खाना और कमरे में चले जाना. न 2 देवरों की उसे कोई फिक्र थी न सासससुर से कुछ लेनेदेने की परवाह.

कुछ समय बाद छोटे भाई की शादी हुई. नई बहू ने धीरेधीरे घर को संभाल लिया. हर काम में सब की जबान पर छोटी बहू अमरीन का ही नाम रहता. अमरीन के साथ घर के सदस्यों का हंसनाबोलना रजिया को अखरने लगा. वह बातबात पर अमरीन से झगड़ने लगती.

सास को लगा समय के साथ या औलाद होने पर रजिया सुधर जाएगी. वह 3 साल में 2 बेटियों की मां बन गई, लेकिन उस के व्यवहार में कोई उचित परिवर्तन नहीं हुआ. किसी न किसी बात से रोज किसी न किसी से लड़ना, इस की बात उस से कहना और तिल का पहाड़ बना देना उस की आदत बन चुकी थी. झगड़ा भी खुद करती और अपनी मां को घंटों फोन पर जोरजोर से सुनाने बैठ जाती. पूरा घर उस की बातबात पर लड़ाई से परेशान हो चुका था.

अच्छी है समझदारी

अयाज एक पढ़ालिखा लड़का है. औनलाइन वर्क में वह थोड़ाबहुत कमा लेता है. घर में 2 भाभियां हैं. दोनों के 3-3 बच्चे हैं. छोटी बहू का छोटा बच्चा बहुत छोटा है, इसलिए वह सासससुर को चायनाश्ता जल्दी दे नहीं पाती. बड़ी बहू अपने 3 बच्चों के साथ सासससुर और देवर का भी ध्यान करती है. वालिदैन ने चाहा अब छोटे की शादी करवा देनी चाहिए ताकि बड़ी बहू के काम में कुछ आसानी हो जाए. काफी लड़कियां अयाज को दिखाई गईं. लेकिन उसे एक भी पसंद नहीं आई.

2 महीने बाद एक दोस्त ने फिर एक लड़की दिखाई. वह गांव में बेहद गरीब परिवार से थी. अयाज को वह पसंद आ गई. अयाज ने लड़की को एक मोबाइल दिला दिया. दोनों घंटों बातें करते. रिश्ता पक्का हुआ ही था कि कोरोना के चलते लौकडाउन लग गया. अयाज जल्दी शादी के लिए उत्सुक था. लौकडाउन में जरा सी ढील मिलते ही अयाज के साथ मां और दोनों भाई गए और दुलहन को निकाह पढ़ा कर ले आए. दुलहन के वालिदैन गरीब थे, इसलिए कुछ भी साथ न दे सके. रस्मों और विदाई का छोटा सा खर्च भी अयाज को ही करना पड़ा.

अयाज के वालिदैन यह सोच कर खुश थे कि अयाज की बीवी रेशमा गरीब घर से होने के कारण यहां खातेपीते घर में खुश रहेगी. वैसे भी घर में है ही कौन? 2 बड़ी बहुएं, वे भी अलगअलग. तीनों बेटियां अपनेअपने घर. इस छोटी बहू से उम्मीद थी कि उस के आने से काम में थोड़ी आसानी हो जाएगी.

अयाज का निकाह होना था कि वह जैसे सब को भूल गया. दूसरे दिन से अयाज के कमरे का दरवाजा अकसर लगा रहने लगा. अयाज आवाज देने पर बाहर आता. भाभी का बनाया हुआ खाना कमरे में ले जाता और दोनों बड़ी बैठ कर खाना खाते.

बात का बतंगड़

15 दिन बीत चुके थे. अयाज ने भाभी से कह दिया कि उन दोनों का खाना न बनाए. वह दोनों के लिए बाहर से खाना ले आता और सीधा  कमरे में चला जाता. वालिदैन बड़ी बहू के भरोसे बैठे रहते, लेकिन अयाज पूछता तक नहीं.

शायद अयाज की बीवी रेशमा को डर था  कि वह सब से छोटी बहू होने के कारण सासससुर की जिम्मेदारी उसी पर न पड़ जाए. वह कमरे के बाहर भी नहीं निकलती. एक बार सास ने जरा सा कह दिया कि ऐसे तौरतरीके नहीं होते. खानदानी बेटियां ससुराल में अपने मांबाप का नाम रोशन करती हैं. यह सुनना था कि रेशमा ने बड़बड़ शुरू कर दी. अयाज के सामने सास की मुंहजोरी करने लगी.

अयाज ने उसे चुप करने की कोशिश की, लेकिन रेशमा को यह बुरा लग रहा था कि अपनी मां को कुछ कहने की जगह अयाज उसे चुप बैठने का बोल रहा है.

सास चुप हो गई थी, लेकिन रेशमा और अयाज में ठन गई. अयाज ने गाली देते हुए रेशमा को चुप होने के लिए कहा. लेकिन रेशमा ने उसी गाली को दोहराते हुए कह दिया, ‘‘होंगे तुम्हारे मांबाप.’’

गाली को प्रत्युत्तर में सुनते ही अयाज ने रेशमा को तमाचा जड़ दिया. थप्पड़ बैठते ही रेशमा गुस्से से लालपीली हो गई. उस ने तपाक से दरवाजा बंद किया और फल काटने के लिए रखा चाकू उठा कर खुद के हाथ की नस काटने की कोशिश करने लगी. अयाज चाकू छीनने लगा.

रेशमा गुस्से में बड़बड़ा रही थी, ‘‘अब एक को भी नहीं छोड़ूंगी. सब जाएंगे जेल.’’ बाहर भाभियां, दोनों भाइयों, सासससुर को कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करें. अंदर से छीनाझपटी की आवाजें उन्हें परेशान कर रही थीं. छोटे बच्चे रोने लगे. दोनों भाइयों ने दरवाजा तोड़ दिया.

अयाज ने रेशमा के हाथ से चाकू छीन लिया, लेकिन इस छीनाझपटी में हलका सा चाकू उस के हाथ पर लग गया था जिस से खून निकल रहा था. सब ने राहत की सांस ली कि शुक्र है उस के हाथ की नस नहीं कटी. शादी के 20 ही दिन में इस हादसे से पूरा परिवार सहम और डर गया था. ऐसा झगड़ा उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा था.

मन में डर

समीर बड़ी मेहनत व मशक्कत से अपने परिवार को संभाल रहा था. दोनों बड़े भाई उसी के पास काम करते थे. वालिदैन, 3 भाई, 2 बड़ी भाभियां, उन के 4 बच्चे और 4 बहनों से परिपूर्ण परिवार में गरीबी थी पर सुकून था. अब तक 3 बहनों की शादी वे कर चुके थे. बड़ी बहन घर की जिम्मेदारी निभा रही थी, इसलिए उसे पहले अपनी छोटी बहनों की शादी करनी पड़ी. समीर हर एक काम बहन से सलाह ले कर करता. दिनबदिन तरक्की करते हुए वह अब ग्रिल वैल्डिंग ऐंड फिटिंग का बड़ा कौंट्रैक्टर बन गया.

रोज रात में सोने से पहले वह आंगन में जा कर किसी से बात करता है यह सब जानते थे. धीरेधीरे पता चला कि समीर किसी काम के सिलसिले में नहीं बल्कि किसी लड़की से बात करता है. समीर समझदार है वह किसी में यों ही नहीं फंसेगा, यह सोच कर किसी ने समीर से कुछ नहीं पूछा.

3 साल बीत गए. समीर के वालिद समीर की शादी के पीछे पड़ गए. समीर ने यह बात लड़की को बता दी. अब उस के फोन घर के नंबर पर भी आने लगे. वह दूर प्रांत से थी. घर के लोग चाहते थे समीर यहीं कि किसी अच्छी लड़की से शादी कर ले. समीर निर्णय नहीं ले पा रहा था. उसे डर था कि उस लड़की को वह करीब से जानता नहीं.

अगर उस की बात मान कर उस से शादी कर ले और बाद में वह इस से खुश न रहे तो? यह एक सवाल था जो समीर के मन को सशंकित किए हुए था और उसे उस लड़की से शादी करने से रोक रहा था. घर के लोग लड़की देख रहे थे और समीर हर किसी में कमी बताते हुए रिजैक्ट करता जा रहा था.

समीर की बड़ी बहन समीर के दिलोदिमाग को जानती थी. वह जानती थी कि किसी अन्य लड़की से शादी कर के समीर खुश नहीं रह पाएगा. 3 साल तक जिस से सुखदुख की हर बात शेयर करता रहा, उसे भुला देना आसान नहीं होगा समीर के लिए. उस ने फरहीन नामक उस लड़की से बात की और उसे साफतौर से कह दिया कि हमारे यहां और तुम्हारे यहां के माहौल में बहुत अंतर है. हमारे यहां लड़की जल्दी घर से बाहर नहीं निकलती. एक खुले माहौल में रहने के बाद बंद वातावरण में रहना तुम्हारे लिए मुश्किल होगा.

मगर फरहीन रोरो कर गिड़गिड़ाती रही, ‘‘बाजी मैं सब एडजस्ट कर लूंगी. किसी को शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’’

तब समीर की बहन ने उस से कह दिया, ‘‘मैं कोशिश करती हूं घर के लोगों को समझने की, लेकिन वादा नहीं करती.’’

2 दिन बाद समीर की बहन ने समीर को समझने की कोशिश की और कहा उसी लड़की से शादी करनी होगी तुझे, जिसे तू ने अब तक आस में रखा. घर के सभी सदस्यों को राजी कर समीर के घर से 4 बड़े लोगों ने जा कर शादी की तारीख तय की.

हां और न की मनोस्थिति में समीर ने शादी कर ली. फरहीन दुलहन बन घर आ गई. लेकिन समीर फिर भी खुश नहीं था. फरहीन ज्यादा खूबसूरत नहीं थी और वह जानता था इस से भी अच्छी लड़की उसे आसानी से मिल सकती थी. किंतु यह भी तय था कि अगर फरहीन किए वादे निभाती है तो वह अपने दिमाग से यह सोच निकाल देगा.

समीर बाहर से आ कर थोड़ी देर बहन के पास बैठता था. यह उस की हमेशा की आदत थी. फरहीन को यह अखरने लगा. घर में किसी से भी जरा सी बात कर लेने पर उस का मुंह फूल जाता. बड़ी भाभी काम करती और वह आराम फरमाती. उसे सब में कमियां दिखाई देतीं और किसी न किसी की बात को पकड़ कर बड़बड़ाती रहती. जरा सी बात का बतंगड़ बना देती और इतनी जोरजोर से बोलती कि घर की खिड़कियां और दरवाजे बंद करने पड़ते.

अपने ही घर में पराए

घर के लोग अपने ही घर में पराए हो गए. उन्हें आपस की बात भी उस से छिप कर करनी पड़ती. इन हालात से तंग आ समीर ने तय कर लिया कि उसे मायके भेज कर फिर वापस नहीं लाना. लेकिन फरहीन के मायके जाने से पहले मालूम हुआ कि वह प्रैगनैंट है. समीर इस गुड न्यूज से खुश नहीं हुआ बल्कि उसे लगा कि वह फंस चुका है. ससुराल के लोगों को समीर से दूर रखने की कोशिश में फरहीन समीर के दिल से दूर होती जा रही थी.

वह नाममात्र के लिए ससुराल में थी दिलदिमाग उस का मायके में ही रहता. वह अपने भाईभाभियों को वालिदैन की ओर ध्यान देने की हिदायत करती. उन की समस्याएं सुनती, उन्हें समझती. अकसर वहां की खुशी और दुख उस के चेहरे से साफ समझे जा सकते थे.

समय के साथ फरहीन मां बन गई. लेकिन उस की आदतें नहीं बदलीं. बच्चे की जिंदगी बरबाद न हो यह सोच कर उसे सहना समीर

की जिंदगी का हिस्सा बन गया. वह ये सब अकेले सह भी लेता, किंतु खुद की बीवी द्वारा अपने घर के लोगों का चैनसुकून बरबाद होते देखना उस की मजबूरी बन चुकी थी. फरहीन

को एक शब्द कहना मतलब बड़े तमाशे के लिए तैयार होना था.

सवाल अहम है

सवाल यह है कि बेटी को क्या यही सीख मायके से मिलती है? ससुराल में आते ही घर की एकता को तोड़ने की कोशिश से क्या वह बहू अपना दर्जा और सम्मान पा सकती है? शौहर पर सिर्फ और सिर्फ मेरा अधिकार है यह समझना यानी शादी कर के क्या वह बहू शौहर को खरीद लेती है? क्या एक बेटी अपनी ससुराल में किए गए गलत व्यवहार से अपने पूरे गांव, गांव की सभी बेटियों को बदनाम नहीं करती?

जो बेटी ससुराल में रहते हुए अपने भाईभाभियों को वालिदैन का खयाल रखने की ताकीद करती है वह खुद अपने कर्मों की ओर ध्यान क्यों नहीं देती? एक बेटी जिस तरह निस्स्वार्थ रुप से परिवार के प्रत्येक सदस्य का सुखदुख समझ लेती है, घर को एकजुट और आनंदित रखने का प्रयास करती है तो क्या बेटी बहू बन ससुराल के घर में बेटी सा वातावरण

नहीं रख सकती? ससुराल में पदार्पण करते ही बेटी स्वार्थी बन अपना कर्तव्य, अपनी सार्थकता क्यों भूल जाती है? क्या बहू बेटी नहीं बन सकती?

ताकि न टूटे बसी बसाई गृहस्थी

पतिपत्नी के बीच जब ‘वो’ आ जाए तो आपसी विश्वास खत्म हो जाता है और रिश्तों को दरकते देर नहीं लगती. अगर ‘वो’ सास हो या अपनी ही मां जो छोटीछोटी बातों का बतंगड़ बनाए तो भी बसीबसाई गृहस्थी को आग लगते देर नहीं लगती. ऐसे कई परिवार हैं जहां पतिपत्नी के बीच संबंध आपसी तकरार की वजह से नहीं टूटते बल्कि सास या मां की बेवजह की रोकटोक, जरूरत से ज्यादा हुक्म जताने और परिवार के बीच फूट डालने से टूटते हैं. सास और मां का कहर बाहरी औरत से ज्यादा ही होता है.

जरूरी नहीं हमेशा सास ही गलत हो और यह भी जरूरी नहीं कि हमेशा बहू की ही गलती हो. आखिर अधिकतर मामलों में इन के रिश्ते सुल?ो हुए क्यों नहीं होते? क्यों बहू अपनी सास को मां का दर्जा नहीं दे पाती और सास अपनी बहू को बेटी का दर्जा देने से कतराती हैं?

क्योंकि सास सास होती है

आजकल लड़कियों के मन में पहले से ही ससुराल के प्रति नकारात्मक छवि बना दी जाती है. अब मांएं समझदार हो गई हैं पर फिर भी एक मां का अपने बेटे की चिंता रहती है. मन में कई सवाल दौड़ रहे होते हैं कि पता नहीं मेरी बहू कैसी होगी, कहीं कुछ समय बाद हमें अलग न कर दे, कहीं बेटा बदल न जाए आदि. शादी के बाद वह बेटे को बातबात पर भड़काने लगती है यह उस से बहू की छोटीछोटी शिकायतें करने लगती है.

बेटी की गृहस्थी में मां बनी विलेन

सास और बहू के अलावा लड़की की मां का भी अहम किरदार होता है. हर मां चाहती है कि उस की बेटी राजकुमारी बन कर रहे. जब मां अपनी बेटी को ससुराल में थोड़ाबहुत काम करते देखती या सुनती है, तो उसे लगता है कि उस के पैसे बरबाद हो गए, शादी में जितना पैसा खर्च किया था वह बेटी के लिए ही तो किया था कि वह राजकुमारी बन कर रहे. मगर वहां तो उसे नौकरानी बना कर रखा हुआ है. ये सब देख कर वह बेटी को यह सिखाती है कि किस तरह ससुराल में अपना रुतबा बनाना है.

अब श्रेया को ही देख लीजिए. मांबाप की इकलौती बेटी श्रेया की शादी बहुत अच्छे परिवार में हुई. वह अपनी शादी से बहुत खुश थी. उस की मां अकसर उस का हालचाल पूछने के लिए फोन करती रहती थी.

एक दिन मां ने श्रेया को फोन किया. उस वक्त श्रेया कहीं जाने की तैयारी में थी. बोली, ‘‘हैलो, हां मां.’’

‘‘कैसी हो तुम? क्या चल रहा

है वहां?’’

‘‘मैं ठीक हूं मां, कपड़े प्रैस कर रही हूं.’’

‘‘कपड़े प्रैस? क्यों तुम्हारे घर में धोबी नहीं आता क्या?’’

‘‘नहीं, मां यहां सब अपने कपड़े खुद प्रैस करते हैं और टाइम भी ज्यादा नहीं लगता. फिर वैसे भी धोबी के प्रैस किए कपड़े किसी को पसंद नहीं आते. इसलिए हम प्रैस खुद ही कर लेते हैं.’’

‘‘अरे, तुम ने तो यहां कभी कपड़े प्रैस नहीं किए और वहां तुम प्रैस करने लगी हुई हो. यहां तुम रानी बन कर रहती थी?’’

अब श्रेया की मां ने अपनी बेटी के मन में ससुराल वालों के प्रति गांठ डालने का काम शुरू कर दिया.

याद आती हैं मां की बातें

उस दिन के बाद से श्रेया जब भी कपड़े प्रैस करती उसे अपनी मां की बात याद आने लगती, जिस से उसे कपड़े प्रैस करना अखरने लगा. सिर्फ कपड़े प्रैस करना ही नहीं वरन घर के दूसरे काम करने के लिए भी मुंह बनाने लगी. उस के व्यवहार में बदलाव शुरू हो गया. अब श्रेया जब भी कोई काम करती तो चिड़चिड़ी हो कर. इस से उस की सास और उस के बीच संबंध खराब होने लगे. जब उस का पति उसे समझने की कोशिश करता तो वह अपनी ससुराल और मायके के बीच तुलना करने लगती. अपनी पत्नी के बदले व्यवहार से पति भी तंग आ गया और फिर दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं.

अकसर इस तरह की छोटीछोटी बातें आपस में कटुता पैदा कर देती हैं. कपड़े प्रैस करना कोई बहुत बड़ा काम नहीं है. लेकिन श्रेया की मां ने उसे इतना बड़ा काम बता दिया जैसे श्रेया अपनी ससुराल में कोई मजदूरी का काम कर रही हो. अगर श्रेया की मां चाहती तो वह अपनी बेटी के इस काम से खुश हो सकती थी क्योंकि जिस लड़की ने अपने मायके में कोई काम नहीं किया, वह आज अपनी जिम्मेदारी समझ रही है. लेकिन यहां तो उलटा ही देखन को मिला.

दूसरों की बात में न आएं

ऊष्मा की मां ने भी उस की गृहस्थी में कुछ ऐसे ही जहर घोला. ऊष्मा और उस की सास में बहुत बनती थी. घर में 2 नौकरानियां थीं. ऊष्मा की सास खाना बहुत अच्छा बनाती है, इसलिए ज्यादातर खाना वही बनाती थी. खाना बनाते समय ऊष्मा अपनी सास की मदद कर देती थी. एक दिन ऊष्मा की मां ने वीडियोकौल की और ऊष्मा बात करतेकरते रसोई में चली गई.

‘‘चाय तुम बना रही हो? लगता है आज तुम्हारी मेड नहीं आई.’’

‘‘नहींनहीं मां, मेड आई है, लेकिन सामान लेने बाजार गई है.’’

‘‘अरे काम के समय बाजार चली गई. उसे तो इस समय रसोई में होना चाहिए था. मैं जब भी तुम्हें फोन करती हूं, तुम हमेशा बिजी मिलती हो. तुम से 2 मिनट बात करना भी मुश्किल हो गया है. क्या यही दिन देखने के लिए इतना पैसा खर्च कर के हम ने तुम्हारी शादी इतने बड़े परिवार में की थी?’’

‘‘क्या मौम कुछ भी बोलती रहती हो. यहां सब लोग मु?ो बहुत प्यार करते हैं.’’

‘‘तुम्हारी सास को तो पूरा आराम है. खूब ऐश कर रही है न?’’

‘‘अरे मां, ऐसे क्यों बोल रही हो? वे भी तो कुछ न कुछ करती रहती हैं.’’

‘‘अच्छा तुम्हें उन का पक्ष लेने की ज्यादा जरूरत नहीं है. वह महारानी की तरह ऐसी में बैठ कर आराम फरमाए और तुम नौकरानी बन कर रसोई में लगी रहो. मेरी बात ध्यान से सुनो, अगर ऐसा ही चलता रहा तो ये लोग तुम्हें अपने पैरों तले रखेंगे. तुम ने अपने घर पर आज तक एक पानी का गिलास नहीं उठाया और वहां सभी के लिए चाय बना रही हो?’’

‘‘अरे मौम…’’

‘‘मैं तुम्हारी मां हूं ऊष्मा. तुम्हारे भले के लिए बोल रही हूं.’’

ऊष्मा की हंसतीखेलती गृहस्थी में अचानक तूफान आ गया. उस की मां ने चिनगारी जो लगा थी.

सासबहू के बीच बढ़ती है दरार

एक दिन ऊष्मा ने अपने पति से बंटवारे की बात कह दी. उस का कहना था कि वह और उस का पति अलग रहेंगे. यह सुन कर सब हक्काबक्का रह गए. सास और बहू के बीच बढ़ती दरार को देख उस के पति ने अलग होने का फैसला ले लिया.

यहां ऊष्मा की ससुराल वालों की कोई गलती नहीं थी. उस की ससुराल वाले ऊष्मा को बेटी की तरह मानते थे. थोड़ाबहुत घर का काम तो हम सभी करते हैं और करना भी चाहिए. इस का मतलब यह नहीं कि आप नौकरानी हो. ऊष्मा की सास सब के लिए खाना बनाती थी. आज ऊष्मा खुद अपने और अपने पति के लिए अकेले खाना बनाती है और घर के दूसरे सब काम भी खुद करती है. ऊष्मा का पति उस के साथ रहता तो है, लेकिन दोनों के बीच अब पहले जैसा प्यार नहीं है.

जब पति घुन की तरह पिसने लगे

आजकल ससुराल में नई शादीशुदा लड़कियां छोटीछोटी बातों का इशू बना लेती हैं. यदि सास या ननद किसी भी बात पर थोड़ा भी कुछ कह दे तो वे झट से मायके फोन कर देती हैं और ससुराल की शिकायतें मां से करने लगती हैं. ऐसे मामलों में पति बेचारा चक्की के दो पाटों में पीसा जाता है.

घर पर लड़के की मां अपने लड़के को बहू के खिलाफ भड़काती है. यदि बेटा जरूरत से ज्यादा समय बीवी को देता है तो इस में भी मां को दिक्कत होने लगती है. उसे लगता है कि बेटा हाथ से निकल रहा है. दोनों ही स्थितियों में पति की स्थिति दयनीय बन जाती है. वह बीवी और घर के बीच पिस कर रह जाता है.

सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे

सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे मतलब रिश्तों के बीच कड़वाहट भी खत्म हो जाए और रिश्ते भी न टूटें. बेटे की शादी के बाद अकसर मां में बेटे को ले कर ज्यादा पजैसिवनैस आने लगती है. ऐसे में बेटे को अपनी मां को पहले की ही तरह समय देना चाहिए. जिन बातों को वह अपनी मां से शेयर करता था उन्हें शादी के बाद भी शेयर करते रहना चाहिए. यदि मां को अपने बेटे में थोड़ा भी बदलाव दिखता है तो उस का सीधा निशाना उस की बीवी बनती है और फिर सासबहू के बीच दरार आने लगती है.

बहू को भी अपनी सास को मां की तरह पूरा सम्मान देना चाहिए. पति को अपनी बीवी को घर के सभी सदस्यों की पसंदनापसंद के बारे में बताना चाहिए ताकि वह उन्हें आसानी से समझ सके और सभी के दिल में जगह बना सके.

बेटी को मां और सास दोनों को बराबर मानसम्मान देना चाहिए. पति के विश्वास के साथसाथ घरपरिवार का विश्वास जीतने की कोशिश भी करनी चाहिए. ससुराल में जितना जरूरी पति का प्यार है उतना ही जरूरी बाकी सदस्यों का भी है.

हमारे समाज में सास और बहू के रिश्ते को हमेशा नकारात्मक रूप से दिखाया जाता है. फिर चाहे वह सीरियल हों या हिंदी सिनेमा. ऐसे कई सीरियल्स और फिल्में हैं, जिन में सास को विलेन के रूप में दिखाया गया है, जिस से हमारी मानसिकता वैसी ही हो गई है. हम यही मानते हैं कि सास मां की जगह कभी नहीं ले सकती. इसलिए हम रिश्ते से तो उन्हें अपना मान लेते हैं, लेकिन दिल से मानने में बहुत वक्त लग जाता है. ऐसा सिर्फ सास और बहू के बीच ही नहीं, बल्कि मां और बेटी के बीच भी होता है, जिस से रिश्ते में कड़वाहट आने लगती है और दूरियां बढ़ने लगती हैं.

एक बेटी होने के नाते मैं ससुराल या मायके में कैसे बैलेंस बनाऊं?

सवाल-

मैं 25 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. ससुराल और मायका आसपास ही है. इस वजह से मेरी मां और अन्य रिश्तेदार अकसर ससुराल आतेजाते रहते हैं. पति को कोई आपत्ति नहीं है पर मेरी सास को यह पसंद नहीं. वे कहती हैं कि तुम अपनी मां से बात करो कि वे कभीकभी मिलने आया करें. हालांकि ससुराल में मेरे मायके के लोगों का पूरा ध्यान रखा जाता है, मानसम्मान में कमी नहीं है मगर सास का मानना है कि रिश्तेदारी में दूरी रखने से संबंध में नयापन रहता है. इस वजह से घर में क्लेश भी होता है पर मैं अपनी मां से कहूं तो क्या कहूं? एक बेटी होने के नाते मैं उन का दिल नहीं दुखाना चाहती. कृपया उचित सलाह दें?

जवाब-

आप की सास का कहना सही है. रिश्ते दिल से निभाएं पर उन में उचित दूरी जरूरी है. इस से रिश्ता लंबा चलता है और संबंधों में गरमाहट भी बनी रहती है.

अधिकांश मामलों में देखा गया है कि जब बेटी का ससुराल नजदीक होता है तब उस के मायके के रिश्तेदारों का बराबर ससुराल में आनाजाना होता है और वे अकसर पारिवारिक मामलों में दखलंदाजी करते हैं. इस से बेटी का बसाबसाया घर भी उजाड़ जाता है.

भले ही हरेक सुखदुख में एकदूसरे का साथ निभाएं पर रिश्तों में दूरियां जरूर रखें. इस से सभी के दिलों में प्रेम व रिश्तों की मिठास बनी रहती है.

आप अपनी मां से इस बारे में खुल कर बात करें. वे आप की मां हैं और यह कभी नहीं चाहेंगी कि इस वजह से घर में क्लेश हो. हां, एक बेटी होने का दायित्व भी आप को निभाना होगा और इसलिए एक निश्चित तिथि या अवकाश के दिन आप खुद भी मायके जा कर उन का हालचाल लेती रहें.

आप उन से फोन पर भी नियमित संपर्क में रहें, मायके वालों के सुखदुख में शामिल रहें. यकीनन, इस से घर में क्लेश खत्म हो जाएगा और रिश्तों में मिठास भी बनी रहेगी.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मैं अपनी सासूमां से परेशान हूं?

सवाल-

मैं 25 वर्षीय महिला हूं. हाल ही में शादी हुई है. पति घर की इकलौती संतान हैं और सरकारी बैंक में कार्यरत हैं. घर साधनसंपन्न है. पर सब से बड़ी दिक्कत सासूमां को ले कर है. उन्हें मेरा आधुनिक कपड़े पहनना, टीवी देखना, मोबाइल पर बातें करना और यहां तक कि सोने तक पर पाबंदियां लगाना मुझे बहुत अखरता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप घर की इकलौती बहू हैं तो जाहिर है आगे चल कर आप को बड़ी जिम्मेदारियां निभानी होंगी. यह बात आप की सासूमां समझती होंगी, इसलिए वे चाहती होंगी कि आप जल्दी अपनी जिम्मेदारी समझ कर घर संभाल लें. बेहतर होगा कि ससुराल में सब को विश्वास में लेने की कोशिश की जाए. सासूमां को मां समान समझेंगी, इज्जत देंगी तो जल्द ही वे भी आप से घुलमिल जाएंगी और तब वे खुद ही आप को आधुनिक कपड़े पहनने को प्रेरित कर सकती हैं.

घर का कामकाज निबटा कर टीवी देखने पर सासूमां को भी आपत्ति नहीं होगी. बेहतर यही होगा कि आप सासूमां के साथ अधिक से अधिक रहें, साथ शौपिंग करने जाएं, घर की जिम्मेदारियों को समझें, फिर देखिएगा आप दोनों एकदूसरे की पर्याय बन जाएंगी.

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सिर्फ 7 फेरे ले लेने से पतिपत्नी का रिश्ता नहीं बनता है. रिश्ता बनता है समझदारी से निबाहने के जज्बे से, पतिपत्नी का रिश्ता बनते ही सब से अहम रिश्ता बनता है सासबहू का. या तो सासबहू का रिश्ता बेहद मधुर बनता है या फिर दोनों ही जिद्दी और चिड़चिड़ी होती हैं. ऐसा बहुत कम पाया गया है कि दोनों में से एक ही जिद्दी और चिड़चिड़ी हो. जिद दोनों तरफ से होती है. एक तरफ से जिद हो और कहना मान लिया जाए तो झगड़ा किस बात का? एक तरफ से जिद होती है तो उस की प्रतिक्रियास्वरूप दूसरी ओर से भी और भी ज्यादा जिद का प्रयास होता है. यह संबंधों को बिगाड़ देता है. इस के नुकसान देर से पता चलते हैं. तब यह रोग लाइलाज हो जाता है.

कटुता से प्रभावित रिश्ते

सासबहू के संबंध में कटुता आना अन्य रिश्तों को भी बुरी तरह प्रभावित करता है. मनोवैज्ञानिक स्टीव कूपर का मत है कि संबंध में कटुता एक कुचक्र है. एक बार यह शुरू हो गया तो संबंध निरंतर बिगड़ते चले जाते हैं. बिगड़ते रिश्तों में आप जीवन के आनंद से वंचित रह जाते हैं. अन्य रिश्ते जो प्रभावित होते हैं वे हैं छोटे बच्चों के साथ संबंध, देवरदेवरानी, ननदननदोई, जेठजेठानी, पति के भाईभाभी आदि. ये वह रिश्ते हैं जो परिवार में वृद्धि के साथ जन्म लेते हैं. इन रिश्तों को निभाना रस्सी पर नट के बैलेंस बनाने के समान है. हर रिश्ते में अहं अपना काम करता है और अनियंत्रित तथा असंतुलित अहं के कारण घर का माहौल शीघ्रता से बिगड़ता है.

सास-बहू मजबूत बनाएं रिश्तों की डोर

सास और बहू का बेहद नजदीकी रिश्ता होते हुए भी सदियों से विवादित रहा है. तब भी जब महिलाएं अशिक्षित होती थीं खासकर सास की पीढ़ी अधिक शिक्षित नहीं होती थी और आज भी जबकि दोनों पीढि़यां शिक्षित हैं और कहींकहीं तो दोनों ही उच्चशिक्षित भी हैं. फिर क्या कारण बन जाते हैं इस प्यारे रिश्ते के बिगड़ते समीकरण के.

संयुक्त परिवारों में जहां सास और बहू दोनों साथ रह रही हैं वहां अगर सासबहू की अनबन रहती है तो पूरे घर में अशांति का माहौल रहता है. सासबहू के रिश्ते का तनाव बहूबेटे की जिंदगी की खुशियों को भी लील जाता है. कभीकभी तो बेटेबहू का रिश्ता इस तनाव के कारण तलाक के कगार तक पहुंच जाता है.

हालांकि भारत की महिलाओं का एक छोटा हिस्सा तेजी से बदला है और साथ ही बदली है उन की मानसिकता. उस हिस्से की सासें अब नई पीढ़ी की बहुओं के साथ एडजैस्टमैंट बैठाने की कोशिश करने लगी हैं. सास को बहू अब आराम देने वाली नहीं, बल्कि उस का हाथ बंटाने वाली लगने लगी है. यह बदलाव सुखद है. नई पीढ़ी की बहुओं के लिए सासों की बदलती सोच सुखद भविष्य का आगाज है. फिर भी हर वर्ग की पूरी सामाजिक सोच को बदलने में अभी वक्त लगेगा.

बहुत कुछ बदलने की जरूरत

भले ही आज की सास बहू से खाना पकाने व घर के दूसरे कामों की जिम्मेदारी निभाने की उम्मीद नहीं करती, बहू पर कोई बंधन नहीं लगाती और न ही उस के व्यक्तिगत मसलों में हस्तक्षेप करती है. पर फिर भी कुछ कारण ऐसे बन जाते हैं जो अधिकतर घरों में इस प्यारे रिश्ते को बहुत सहज नहीं होने देते. अभी भी बहुत कुछ बदलने की जरूरत है क्योंकि आज भी कहीं सास तो कहीं बहू भारी है.

वे कारण जो शिक्षित होते हुए भी इन  2 रिश्तों के समीकरण बिगाड़ते हैं:

– आज की बहू उच्चशिक्षित होने के साथ आत्मनिर्भर भी है, मायके से मजबूत भी है क्योंकि अधिकतर 1 या 2 ही बच्चे हैं. अधिकतर लड़कियां इकलौती हैं, जिस के कारण वे सास से क्या किसी से भी दब कर नहीं चलतीं.

– आज के समय में लड़की के मातापिता सास व ससुराल से क्या पति से भी बिना कारण समझता करने की पारंपरिक शिक्षा नहीं देते जो सही भी है.

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– बहुओं का आज के समय में खाना बनाना न आना एक स्वाभाविक सी बात है और बनाना आना आश्चर्य की.

– गेंद अब सास के पाले से निकल कर बहू के पाले में चली गई.

– बहू नई टैक्नोलौजी की अभ्यस्त है, इसलिए बेटा उसे अधिक तवज्जो देता है जो सास को थोड़ा उपेक्षित सा कर देता है.

– सास शिक्षित होते हुए भी और नए जमाने के अनुसार खुद को बदलने का दावा करने के बावजूद बहू के इस बदले हुए आधुनिक, आत्मविश्वासी व बिंदास रूप को सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रही है.

– पतिपत्नी के बंधे हुए पारंपरिक रिश्ते से उतर कर बहूबेटे के दोस्ताने रिश्ते को कई सासों को स्वीकार करना मुश्किल हो रहा है.

– बहू के बजाय बेटे को घर संभालना पड़े तो सास की पारंपरिक सोच उसे कचोटती है.

ये कुछ ऐसे कारण हैं जो आज की सासबहू दोनों शिक्षित पीढ़ी के बीच अलगाव व तनाव का कारण बन रहे हैं. फलस्वरूप विचारों व भावनाओं की टकराहट दोनों तरफ से होती है.

छोटीछोटी बातें चिनगारी भड़काने का काम करती हैं जिस की परिणति कभीकभी बेटेबहू को कोर्ट की दहलीज तक पहुंचा कर होती है.

यूनिवर्सिटी औफ कैंब्रिज की सीनियर प्रोफैसर राइटर और मनोचिकित्सक डा. टेरी आप्टर ने अपनी किताब ‘व्हाट डू यू वांट फ्रौम मी’ के लिए की गई अपनी रिसर्च में पाया कि 50% मामलों में सासबहू का रिश्ता खराब होता है. 55% बुजुर्ग महिलाओं ने स्वीकार किया कि वे खुद को बहू के साथ असहज और तनावग्रस्त पाती हैं, जबकि करीब दोतिहाई महिलाओं ने महसूस किया कि उन्हें उन की बहू ने अपने ही  घर में अलगथलग कर दिया.

दुनिया के सभी रिश्तों से कहीं ज्यादा जटिल रिश्ता है सासबहू का. भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में इसे कठिन रिश्ता माना गया है. भारत में यह समस्या ज्यादा इसलिए है क्योंकि यहां परिवार व बड़ेबुजुर्गों को अहमियत दी जाती है.

नई पीढ़ी की बहुओं की सोच:

नई पीढ़ी की लड़कियों की सोच बहुत बदल गई है. वे पारंपरिक बहू की परिधि में खुद को किसी तरह भी फिट नहीं करना चाहतीं. उन की सोच कुछकुछ पाश्चात्य हो चुकी है. उन्हें ढोंग व दिखावा पसंद नहीं है. वे विवाह बाद अपने घर को अपनी तरह से संवारना चाहती हैं. वे अपने जीवन में किसी की भी दखलांदाजी पसंद नहीं है. उन के लिए उन का परिवार उन के बच्चे व पति हैं. बेटी ही बहू बनती है.

आज बेटियों को पालनेपोषने का तरीका बहुत बदल गया है. लड़कियां आज विवाह, ससुराल, सासससुर के बारे में अधिक नहीं सोचतीं. उन के लिए उन का कैरियर, खुद के विचार व व्यक्तित्व प्राथमिकता में रहते हैं.

सास की सोच:

सास की पारंपरिक सामाजिक तसवीर बेहद नैगेटिव है. समाजशास्त्री रितु सारस्वत के अनुसार, सास की इमेज के प्रति ये ऐसे जमे हुए विचार हैं, जो इतनी आसानी से मिटाए नहीं जा सकते. आज की शिक्षित सास ने बहू के रूप में एक पारंपरिक सास को निभाया है. बहुत कुछ अच्छाबुरा ?ोला है. बड़ेबड़े परिवार निभाए हैं. नौकरी करते हुए या बिना नौकरी किए ढेर सारा काम किया है.

वहीं बहू का रूप इतना बदल गया कि खुद को बहुत बदलने के बावजूद सास के लिए बहू का यह नया रूप आत्मसात करना सरल नहीं हो रहा है जिस के कारण न चाहते हुए भी दोनों के रिश्ते तनावपूर्ण हो जाते हैं.

सास का डर:

सासबहू के तनावपूर्ण रिश्ते का सब से बड़ा कारण है सास में ‘पावर इनसिक्योरिटी’ का होना. सास बेटे की शादी होने के बाद इस चिंता में पड़ जाती है कि कहीं मेहनत से तैयार किया हुआ उन का बसाबसाया साम्राज्य छिन न जाए. जो सासें इस इनसिक्योरिटी के भाव से ग्रस्त रहती हैं, उन के अपनी बहू से रिश्ते अधिकतर खराब रहते है.

बेटेबहू का रिश्ता मजबूत बनाने में मां की अहम भूमिका: विवाह से पहले बेटा अपनी मां के ही सब से नजदीक होता है. विवाह के बाद बेटे की प्राथमिकता में बदलाव आता है. जहां सास चाहती है कि बेटा तो विवाह के बाद उस का रहे ही अपितु बहू भी उस की हो जाए. यह सुंदर भाव व अभिलाषा है. हर मां ऐसा चाहती है. लेकिन इस के लिए कुछ बातों का पहले ही दिन से बहुत ध्यान रखने की जरूरत है.

सब से पहले तो बहू को अपनी अल्हड़ सी बेटी के रूप में स्वीकार करने की जरूरत है जिस की हर उपलब्धि पर खुशियों व तारीफ के पुल बांधे जाएं व हर गलती को मुसकरा कर प्यार से टाल दिया जाए क्योंकि एक सुकुमार लाडली सी बेटी विवाह होते ही बहू की जिम्मेदारी के खोल में नहीं सिमट सकती.

बहू को बेटे की पत्नी व अपनी बहू मानने से पहले एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार करे. उस के विचारों, फ्रैंड सर्कल, उस के काम को भी उतना ही महत्त्व दे जितना बेटे को देती है. युवा लड़कों में अपनी कामकाजी पत्नी को ले कर बहुत बदलाव आया है, लेकिन अकसर देखने को मिलता है कि मां बेटे के इस भाव को पोषित नहीं कर पाती.

बहू बेटे की पीढ़ी की व उसी के समकक्ष शिक्षित है, नई टैक्नोलौजी की अभ्यस्त है. बेटा और बहू की कई आपसी बातें, सलाहें उन की अपनी पीढ़ी के अनुसार हैं जो अकसर सास को समझ नहीं आतीं और वह खुद को उपेक्षित महसूस करती है. बेटेबहू के आपसी रिश्ते को सहजता से लेने की जरूरत है, जैसे बेटीदामाद का लेते हैं. क्या वे मां को सबकुछ बता देते हैं?

निजी जिंदगी में हस्तक्षेप नहीं: बेटे बहू के बीच छोटीमोटा झगड़ा होना आम बात है. वे दोनों इसे खुद ही सुलझ लेते हैं. लेकिन उन दोनों के बीच पड़ कर यह सोचना कि बहू गलती मान कर सुलह कर ले, छोटे से झगड़े को बड़ा कर देता है.

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एकदूसरे से जलन क्यों:

सास और बहू के बीच जलन यह बात थोड़ी अजीब लगती है क्योंकि दोनों का रिश्ता अच्छा हो या बुरा होता तो मांबेटी का ही है. लेकिन इन दोनों के बीच जलन कहां किस रूप में जन्म ले ले, कहा नहीं जा सकता. लड़के ने अपनी मां को ज्यादा पूछा, उन के लिए बिना पत्नी को बताए कुछ खरीद लाए, किसी मसले पर उन से सलाह मांग कर उन्हें तवज्जो दे, मां के बनाए खाने की अधिक तारीफ कर दी, पत्नी को मां से खाना बनाना व गृहस्थी चलाने के गुर सीखने की सलाह दे डाले तो बहू के दिल में सास के प्रति जिद्द व जलन के भाव आ जाते हैं. वहीं सास भी इन्हीं सब कारणों से बहू के प्रति ईष्यालु हो सकती है.

सास के जमाने में बहू के लिए अदबकायदे व जिम्मेदारियां बहुत थी. आज की लड़की के लिए अदबकायदे व जिम्मेदारियों के माने बदल गए हैं. उस के बदले हुए तरीके को सहर्ष स्वीकार करें. बेमन से स्वीकार करने पर रिश्ता हमेशा भार बना रहेगा. सासबहू के बीच की सहजता खत्म होगी तो इस का असर बेटेबहू के रिश्ते पर पड़ेगा.

बेटा तो अपना ही है. अगर कभी पक्ष लेने की जरूरत पड़े तो बहू का ले वरना तटस्थ बनी रहे.

बच्चों के रिश्ते को बचाए रखने की जिम्मेदारी दोनों परिवारों की: यह सही है कि बहू का असली घर उस के पति का ही घर माना जाता है. इसलिए उस के ससुराल वालों पर बच्चों के विवाह को मजबूत बनाने की और अलगाव की स्थिति में बचाने की जिम्मेदारी ज्यादा आती है. जो बेटा जितना अपनी मां के करीब होगा वह मां और भी इस के लिए प्रयासरत रह सकती है क्योंकि बेटा अपनी मां की सलाह सुन लेता है.

मगर आज के समय लड़की के मातापिता भी इस के लिए कम कुसूरवार नहीं हैं. वे भी छोटीछोटी बातों में बेटी को उकसा कर तिल का ताड़ बना देते हैं. बेटी पर कोई अत्याचार हो रहा है तो जरूर साथ दें, लेकिन छोटीछोटी बातों, परिस्थितियों में बेटी को समझतावादी नजरिया रखने को कहें क्योंकि एक विवाह टूट कर दूसरा इतना सरल नहीं होता.

तलाक सिर्फ एक रास्ता है, मंजिल नहीं है खास कर जब बच्चे हों, क्योंकि तलाक पतिपत्नी का होता है, मातापिता का नहीं होता. बच्चों को दोनों की जरूरत होती है.

हर छोटी सी बात को मानसम्मान का प्रश्न बना लेना कोई समझदारी नहीं है. ससुराल वालों को भी अपना नजरिया बदलने की जरूरत है.

बहू के रूप में आई लड़की के स्वतंत्र व्यक्तित्व को स्वीकार करना सीखें. ‘तारीफ करने की आदत’ व ‘स्वीकार करने’ का स्वभाव किसी भी रिश्ते को टूटने से ही नहीं बचाता, अपितु मजबूत भी बनाता है.

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ससुराल में पहली रसोई के 7 टिप्स

कोरोना की दूसरी लहर के कारण शादियों पर लगा ब्रेक अब कुछ कमजोर पड़ गया है और भले ही मेहमानों की उपस्थिति कम हो परन्तु शादियां अब होने लगीं हैं. शादी के बाद दुल्हन जब ससुराल आती है तो अनेकों रस्मों के साथ ही एक रस्म बहू की पहली रसोई की भी होती है जिसमें बहू अपने हाथों से ससुराल के सदस्यों के लिए खाना बनाती है. अक्सर नवविवाहिताओं को समझ नहीं आ पाता कि क्या ऐसा बनाया जाए जो सभी को पसन्द भी आये और आसानी से बन भी जाये. पहले जहां वधू से कोई एक  मीठी डिश बनवाई जाती थी वहीं अब पूरी थाली का चलन है. यदि आप वधू बनने वालीं हैं तो ये टिप्स आपके बहुत काम के हो सकते हैं-

1. डिशेज का चयन मौसम के अनुकूल करें, मसलन गर्मियों में छाछ, मॉकटेल्स, आइसक्रीम, सर्दियों में सूप और बारिश में पकौड़े आदि को शामिल करें.

2. परिवार के सदस्यों की उम्र को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है, यदि बुजुर्ग हैं तो मेन्यू में कुछ सादा और बच्चे हैं तो चायनीज या इटैलियन डिशेज को शामिल करें ताकि सभी की पसन्द का एक कम्पलीट मील तैयार हो सके.

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3. एक कहावत है कि खाने का प्रजेंटेशन ऐसा होना चाहिए कि उसे देखकर ही भूख जाग्रत हो जाये, इसलिए परोसने से पूर्व डिशेज को मेवा, हरे धनिए या क्रीम आदि से गार्निश करके आराम से परोसें ताकि खाद्य पदार्थ नीचे न गिरने पाए.

4. मेन्यू को तय करते समय रंग संयोजन का विशेष ध्यान रखें ताकि आपकी थाली स्वाद के साथ साथ देखने में भी सुंदर लगे. हरी सब्जियों, कश्मीरी लाल मिर्च और क्रीम आदि का प्रयोग करना उचित रहेगा.

5. आजकल मेक्सिकन, चाइनीज और इटैलियन व्यंजनों का जमाना है इसलिए आप इन्हें मायके से सीखकर जाइये ताकि इन्हें बनाकर आप वहां अपना प्रभाव जमा सकें.

6. खाना बनाते समय संतुलित मिर्च मसालों का प्रयोग करें ताकि सभी आसानी से खा सकें, साथ ही कोई भी नया प्रयोग करने से बचें. आप जो भी खाना बनाएं उसे प्यार से परोसे और परिवार के सदस्यों को आग्रह करके खिलाएं.

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7. खाना बनाते समय एप्रिन अवश्य पहनें अन्यथा खाद्य पदार्थों के अवशेष आपके कपड़ों पर लगकर उन्हें खराब तो करेंगे ही साथ ही बेवजह आपके सलीके से काम न कर पाने की दास्तां भी बयान कर देंगे.

मेरी कमाई, मेरा हक

सोमी के ऑफिस में आज सभी के चेहरे गुलाब की तरह खिले हुए थे.हो भी क्यों ना आज सब कर्मचारियों को 10 प्रतिशत इन्क्रीमेंट मिला था.सोमी पर बुझी बुझी सी लग रही थी. जब कायरा ने पूछा तो सोमी फट पड़ीमेरी सैलरी पर मेरा नही ,बल्कि पूरे परिवार का हक हैं

इन्क्रीमेंट का मतलब हैं ज़्यादा काम ,पर मुझे क्या मिलेगा कुछ नही.हर महीने एक बच्चे की तरह मेरे पति मुझे चंद हज़ार पकड़ा देते हैं. पूछने पर बोलते हैंसब कुछ तो मिल रहा हैं क्या करोगी तुम इन पैसों का ,फिजूलखर्ची करने के अलावा

सोमी अकेली महिला नही हैं. सोमी जैसी महिलाएं हर घर मे मौजूद हैं जो आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने पर भी पराधीन हैं.वो बस अपने पति और परिवार के लिए एक कमाई की मशीन हैं.उनके पैसों को कैसे ख़र्च करना हैं और कहाँ निवेश करना हैं ये पति महोदय का मौलिक अधिकार होता हैं.

  रितिका की कहानी भी सोमी से कुछ अलग नही हैं.रितिका की सैलरी आते ही,पूरा पैसा विभाजित हो जाता हैं.बच्चों के स्कूल की फ़ीस, घर की लोन की किस्तें और घर ख़र्च सब रितिका की सैलरी पर होता हैं.परन्तु रितिका के पति प्रदीप की सैलरी कैसे ख़र्च होती हैं ये प्रदीप के अलावा कोई नही जानता हैं.

हर छुट्टियों में घूमने की प्लानिंग करना, दूर पास के रिश्तेदारों के लिए तोहफ़े खरीदना ,पत्नी बच्चो के लिए कपड़े इत्यादि खरीदना प्रदीप अपनी सैलरी से करता हैं और सबकी आंखों का तारा हैं.वहीं रितिका के बारे में प्रदीप कहता हैंअरे औरतों की लाली लिपस्टिक पर ख़र्च रोकना का ये नायाब तरीका हैं कि उनकी सैलरी पर लोन इत्यादि ले लो

रितिका जो 80 हज़ार मासिक कमा रही हैं ना अपनी पसंद के कपड़े पहन सकती हैं और ना ही अपनी पसंद के तोहफ़े किसी को दे सकती हैं.इतना कमाने के बाद भी वो पूरी तरह से अपने पति पर निर्भर हैं.

  अगर ऊपर की दोनो घटनाओं को देखे तो एक बात दोनो में समान हैं कि सोमी और रितिका अभी भी गुलामी की बेड़ियों में मानसिक रूप से कैद हैं.दोनो ही महिलाओं में एक समानता हैं कि दोनों ही मानसिक रूप से स्वतंत्र नही हैं. दोनो को ये भी नही मालूम हैं कि उन्हें अपने गाढ़े पसीने की कमाई कैसे ख़र्च करनी हैं.

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ये कहना गलत ना होगा कि सोमी और रितिका जैसी महिलाओं की दशा उन महिलाओं से भी बदतर हैं जो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नही हैं.कभी प्यार में तो कभी डर के कारण वो अपनी आर्थिक स्वतंत्रता की कुंजी अपने पति के हाथों में थमा देती हैं जो बिल्कुल भी सही नही हैं.

आज के समय मे ज़िन्दगी की गाड़ी तभी सुचारू रूप से चल सकती जब दोनों जीवनसाथी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो.जैसे गाड़ी के दोनो पहिए यदि समान नही होते तो गाड़ी नही चल सकती हैं, उसी तरह से पति और पत्नी में भी समानता होनी चाहिए ताकि ज़िन्दगी सुचारू रूप से चल सके.

अगर आप इन छोटी छोटी बातों का ध्यान रखेगी तो अपनी कमाई को अपने हिसाब से ख़र्च कर पाएगी.

1.प्यार का मतलब नही हैं ग़ुलामी-

महिलाएं स्वभाव से ही कोमल और भावुक होती हैं.प्यार की डोर में बंधी हुई वो अपने वेतन का पूरा ब्यौरा अपने पति को दे देती हैं.पति अपने वेतन के साथ साथ अपनी पत्नी के वेतन को भी अपने हिसाब से ख़र्च करने लगते हैं.शुरू शुरू में तो पत्नियों को ये सब बड़ा प्यारा लगता हैं पर शादी के एक दो वर्ष के बाद उन्हें कोफ़्त होने लगती हैं.पति के हाथों में अपने वेतन या एटीएम कार्ड को पकड़ना प्यार या वफ़ा का नही ,गुलामी का परिचायक हैं.

2.अपने ऊपर ख़र्च करना हैं आपका मौलिक अधिकार-

बहुत से मामलों में देखने को मिलता हैं कि विवाह के पश्चात लड़कियां अपने ऊपर ख़र्च करने में हिचकिचाने लगती हैं.उन्हें लगता हैं कि अब घर की ज़िम्मेदारी ही उनकी सर्वपरिता हो जाता हैं. पार्लर जाना या खुद के ऊपर ख़र्च करना, सहेलियों के साथ बाहर जाना ,सब कुछ उन्हें बेमानी लगने लगता हैं जो सही नही हैं.आपका सबसे पहला रिश्ता अपने साथ हैं तो इसलिए उसे खुश रखना आपका मौलिक अधिकार हैं.

3.अपने भविष्य को सुरक्षित करे-

ज़िन्दगी आपकी हैं तो उसकी बागड़ोर अपने हाथों में ही रखे. विवाह का मतलब ये नही होता कि सबकुछ पति के भरोसे छोड़ कर हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाए.अपने भविष्य को सुरक्षित रखना ,आपकी ज़िम्मेदारी हैं.अपनी कमाई को सही जगह पर लगाकर अपने भविष्य को सुनिश्चित कर ले.

4.लेन देन करे अपनी हैसियत के हिसाब से-

बहुत बार देखने मे  आता हैं कि पत्नी के वेतन के कारण ,पति अपनी झूठी शान दिखाते हुए बहुत महँगे महँगे तोहफे शादी और फंक्शन में दे देते हैं.अगर आपकी पति की भी ये आदत हैं तो आप उन पहले ही अवसर पर टोक दे.मायके और ससुराल दोनो ही जगह समान  रूप से और अपनी हैसियत के अनुरूप ही लेन देन करे.

5.निवेश करे सोच समझ कर-

अपने पैसों को सोच समझ कर निवेश करे क्योंकि ये आपकी मेहनत की कमाई हैं. आपको अपने पैसे शेयर मार्केट में लगाने हैं या उन पैसों से कोई बांड खरीदना हैं या फिर किसी प्रोपेर्टी में लगाना हैं आपका ही फैसला होना चाहिए.अपने पति से आप सलाह अवश्य ले सकती हैं पर उन्हें अपने पैसों का कर्ता धर्ता मत बनाइए.

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6.धन हैं बड़ा बलवान-

ये बात हालांकि कड़वी हैं पर सत्य हैं.धन में बहुत ताकत होती हैं.जब तक आपके पास अपने पैसे हैं तब तक आपकी ससुराल में इज़्ज़त बनी रहेगी.आपके पति भी कुछ उल्टा सीधा करने से पहले सौ बार सोचेंगे क्योंकि उन्हें पता होगा कि आपकी ज़िंदगी की लगाम आपके ही हाथों में हैं.वो अगर कुछ ग़लत करेंगे तो आप उनको छोड़ने में जरा भी हिचकिचायेगी नही. पति महोदय को ये भी अच्छे से मालूम होगा कि आपके द्वारा भविष्य के लिए संचित किया हुआ धन आपके साथसाथ उनके बुढ़ापे की भी लाठी हैं

शादी निभाने की जिम्मेदारी पत्नी की ही क्यों

गौतम बुद्ध की शादी 16 वर्ष की आयु में यशोधरा नाम की एक कन्या से होती है और 29 वर्ष की आयु में उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति होने के बाद यानी शादी के 13 वर्ष बाद उन्हें यह ध्यान आता है कि उन्हें संन्यास लेना है और तभी वे अचानक एक दिन आधी रात को बिना अपनी पत्नी को बताए अपनी पत्नी और नवजात शिशु को सोता छोड़ घर से चुपचाप निकल जाते हैं.

सांसारिक दुख उन्मूलन की तथा ज्ञान के खोज की ऐसी उत्कट अभिलाषा कि पत्नी और बेटे की जिम्मेदारी तक भूल गए, उन के पीछे उन के कष्टों का भी ज्ञान न रहा.

गौतम बुद्ध के विषय में यह कहा जाता है कि वे बचपन से ही बेहद करुण हृदय वाले थे किसी का भी दुख नहीं देख सकते थे और ऐसे करुण हृदय वाले बुद्ध को अपनी पत्नी का ही दुख नजर नहीं आया.

अपनी पत्नी की ऐसी उपेक्षा करने वाले करुण हृदय बुद्ध के अनुसार, दुख होने के अनेक कारण हैं और सभी कारणों का मूल है तृष्णा अर्थात पिपासा अथवा लालसा.

तो क्या ज्ञानप्राप्ति की उन की पिपासा ने उन के पीछे उन की पत्नी और उन के नवजात की जिंदगी को असंख्य दुखों की ओर नहीं धकेला था? बुद्ध के अष्टांगिक मार्गों में एक सम्यक संकल्प अथवा इच्छा तथा हिंसा से रहित संकल्प करना तथा दूसरा सम्यक स्मृति अर्थात् अपने कर्मों के प्रति विवेक तथा सावधानी का स्मरण भी है.

मानसिक कष्ट देना भी हिंसा

इच्छा तथा हिंसा से रहित संकल्प… तो क्या, जब गौतम बुद्ध ने अपनी पत्नी का त्याग किया तो उन के इस कृत्य से उन की पत्नी को जिस प्रकार की मानसिक वेदना  झेलना पड़ी थी वह क्या हिंसा नहीं थी? किसी को शारीरिक आघात पहुंचाना ही हिंसा नहीं होता, बल्कि मानसिक कष्ट देना भी एक तरह की हिंसा ही तो है. अब यदि उन के अष्ट मार्ग में से सातवें मार्ग पर भी नजर डालें तो इन के अनुसार, ‘अपने कर्मों के प्रति सावधानी तथा विवेक का स्मरण.’

अब यदि देखा जाए तो अपनी पत्नी और पुत्र का त्याग करते वक्त क्या बुद्ध ने विवेकपूर्ण दृष्टि से उन के प्रति अपने दायित्वों के विषय में विचार किया नहीं न…

उन की पत्नी ने यह दायित्व अकेले ही निभाया होगा और उन्हें भी उस समय के समाज ने पतिव्रता नारी के गुण पति धर्म आदि का पाठ पढ़ा कर उन्हें चुप करा दिया होगा…

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बुद्ध तो अपनी पत्नी का त्याग कर महान ज्ञानी बन गए परंतु उन की पत्नी का क्या? उस पत्नी के अनजानेअनचाहे कष्टों का क्या जिसे बुद्ध सांसारिक दुखों के उन्मूलन हेतु छोड़ कर अकेले निकल गए?

इस समाज ने नारी को ही पत्नी धर्म के पाठ पढ़ाए. पुरुषों को कभी उन के उत्तरदायित्व से मुंह मोड़ने पर कुसूरवार नहीं ठहराया.

आश्चर्य है इस दलील पर

मर्यादापुरुषोत्तम राम तथा भारतीय संस्कृति के भाव नायक राम ने तो सीता जैसी परम पवित्र और आदर्श नारी का त्याग सिर्फ समाज द्वारा सवाल उठाए जाने पर अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए किया था क्योंकि समाज के किसी वर्ग में यह संदेह उत्पन्न हुआ कि सीता पहले की तरह ही पवित्र और सती नहीं हैं क्योंकि उन्हें रावण हरण कर के ले गया था.

वैसे दलील तो यह दी जाती है कि सीता ने खुद वन जाने की इच्छा जताई थी क्योंकि पति को बदनामी का दुख  झेलना न पड़े और राम ने इसे होनी सम झ कर मान लिया था.

आश्चर्य है ऐसी दलील पर कि जिन्हें अपनी पत्नी के सतीत्व पर पूर्ण विश्वास है वे समाज के किसी वर्ग के कहने पर बदनामी के दुख से दुखी या आहत हो जाएं और पत्नी उन के दुख से दुखी हो कर स्वयं ही गृह का त्याग कर दे और वह भी तब जबकि वह गर्भवती थी.

मर्यादापुरुषोत्तम राम उस समाज पर क्रोधित होने की जगह अपनी पत्नी के साथ खड़े होने की जगह, दुखी हो गए और उसे होनी सम झ लिया. यह दलील कुछ अजीब नहीं है?

जब राम ने रावण के द्वारा सीता के हरण को होनी नहीं सम झा अर्थात् यही किस्मत में लिखा था. तब यह नहीं सम झा और रावण का सर्वनाश कर दिया. वे अपनी पत्नी के सतीत्व पर उठे इस सवाल पर दुखी हो कर चुप रह जाते हैं और अपनी पत्नी को जंगल में भटकने के लिए छोड़ देते हैं.

यह किस प्रकार का आदर्श है जो समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया गया. क्या यह तर्क इसलिए नहीं दिया जाता ताकि समाज में नारियों को सीता का उदाहरण दे कर अन्याय के खिलाफ खड़े होने की जगह त्याग का पाठ पढ़ाया जा सके ताकि कभी कोई स्त्री अपने हक के लिए सवाल उठाए तो उसे सीता का उदाहरण दे कर पतिव्रता बने रहने की सलाह दे कर आदर्श नारी बनने का पाठ पढ़ा कर उस का मुंह बंद किया जा सके.

मर्यादापुरुषोत्तम राम ने यह किस प्रकार का उदाहरण भारतीय पुरुषों के समक्ष पेश किया कि यदि पत्नी के सतीत्व पर सवाल उठे तो पति को बदनामी का दुख हो तो पत्नी के साथ खड़े होने की जगह अपनी प्रतिष्ठा की वे चिंता करें और उसे भाग्य का लिखा सम झ लें और अपनी पत्नी की प्रतिष्ठा की रक्षा करने की जगह उसे घर त्याग कर चुपचाप जाने दें जबकि उस का कोई कसूर ही न था. क्या यह अन्याय नहीं था?

त्याग स्त्री ही क्यों करे

राजा दुष्यंत जो कि पूरू वंशी राजा थे, एक बार मृग का शिकार करते हुए महर्षि कण्व के आश्रम में पहुंचे और शकुंतला पर आसक्त हो कर गंधर्व विवाह कर लिया और कुछ समय उस के साथ व्यतीत कर अपने नगर लौट गए. आश्रम में शकुंतला उन के पुत्र को जन्म देती है परंतु बाद में शकुंतला जब राजा दुष्यंत के पास जाती है तो राजा उन्हें पहचानने से इनकार कर देते हैं.

दलील यह दी जाता है कि राजा किसी श्राप के कारण शकुंतला को भूल गए थे. खैर, शकुंतला वापस अकेले ही अपने पुत्र का पालनपोषण करती है और एक दिन राजा दुष्यंत वापस कण्व ऋ षि के घर पहुंचते हैं और उन का अपने पुत्र के प्रति प्यार भी अचानक उमड़ पड़ता है साथ ही खोई हुई अंगूठी भी मिल जाती है जिस से उन की खोई हुई याददाश्त वापस आ जाती है.

लेकिन इतने समय तक शकुंतला वन में अकेले ही दुख उठाती हुई अपने पुत्र का भरणपोषण करती है.

यहां भी बड़ी आसानी से समाज के ठेकेदारों ने पत्नी के लिए त्याग का उदाहरण पेश कर दिया कि एक पुरुष अपनी पत्नी का त्याग कर सकता है और वह भी बड़ी आसानी से तथा पत्नी उस की याददाश्त के वापस आने तक उस का इंतजार करती है. यहां भी त्याग की कहानी सिर्फ एक स्त्री के लिए. पुरुष चाहे तो कैसे भी अपनी पत्नी का त्याग कर दे परंतु पत्नी को पतिव्रता बने रहना है. यहां भी पति के कृत्य पर कोई सवाल नहीं. पत्नी और बेटे का त्याग कर पुरुष फिर भी महान बना रह जाता है.

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यह कैसा क्रोध

राजा उत्तम ने तो क्रोध में ही अपनी पत्नी का त्याग कर दिया. उसे राजमहल से निकाल दिया उन्हें अपनी पत्नी का त्याग करने के लिए किसी ठोस कारण की जरूरत भी नहीं पड़ी बस पत्नी पर क्रोध आना ही काफी था. लेकिन बाद में निंदा और तिरस्कार के डर से अपनी पत्नी को वापस अपना लेते हैं परंतु सिर्फ क्रोध आया और पत्नी को घर से निकाल दिया यह उदाहरण भी समाज के लिए निंदनीय ही है.

ऋ षि गौतम ‘अक्षपाद गौतम’ के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हैं और न्याय दर्शन के प्रथम प्रवक्ता भी माने जाते हैं. महर्षि गौतम को परम तपस्वी और बेहद संयमी भी बताया जाता है. महाराज वृद्धाश्रव की पुत्री अहिल्या उन की पत्नी थी जोकि बहुत ही सुंदर और आकर्षक थी. एक दिन ऋ षि स्नान के लिए आश्रम से बाहर गए तभी इंद्र ने गौतम ऋ षि का रूप ले कर उन के साथ छल किया और बिना किसी अपराध के ही अहिल्या को दंड भोगना पड़ा. ऋ षि गौतम ने आश्रम से इंद्र को निकलते देख लिया था और पत्नी के चरित्र पर ही शक कर बैठे और अपनी पत्नी को श्राप दे दिया और वह हजारों वर्षों तक पत्थर बनी रही.??

छल इंद्र का दंड पत्नी को

यहां सम झने वाली बात यह है कि न्याय दर्शन के प्रवक्ता परम तपस्वी बेहद संयमित ऋ षि अपनी पत्नी के साथ ही घोर अन्याय कर जाते हैं. वे इंद्र के छल के लिए दंड अपनी पत्नी को दे देते हैं जो उस ने किया ही नहीं था. उस कृत्य का दंड पा कर वह हजारों वर्षों तक पत्थर बनी रहती है. यहां एक ऋ षि का संयम जवाब दे देता है. इतने क्रोधित हो उठते हैं कि अपनी पत्नी को ही पत्थर बनाने का श्राम दे देते हैं.

यह कहानी पुरुषों की उस मानसिकता का उदाहरण है जहां एक पत्नी को मात्र उपभोग की वस्तु सम झा जाता रहा है और कभी भी अर्थहीन पा कर उस का त्याग करने में उसे दंडित करने में थोड़ा भी विलंब नहीं होता.

उन्होंने भी एक ऐसा दृष्टिकोण पत्नी को देखने का, सम झने का ऐसा ही नजरिया समाज के समक्ष प्र्रस्तुत किया था और फिर भी उन्हें महानता के शिखर पर बैठा कर यह समाज उन्हें पूजता रहा है. क्या अहिल्या के प्रति उन का अपराध क्षमा करने योग्य था?

पत्नी की अवहेलना

सम्राट अशोक ने भी अपनी पहली पत्नी जिस का नाम देवी था जोकि एक बौद्ध व्यापारी की पुत्री थी जिस से अशोक को पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा प्राप्त हुई थी को छोड़ कर एक मछुआरे की पुत्री करुणावकि से विवाह कर लेते हैं और उन के शिलालेखों में कहीं भी उन की पहली पत्नी का नाम तक नहीं होता है. सम्राट अशोक भले ही एक महान शासक के रूप में प्रसिद्धि पाए हों परंतु अपनी पत्नी की अवहेलना उन्होंने भी की.

और फिर संत कवि तुलसीदास जिन का विवाह रत्नावली नाम की अति सुंदर कन्या से हुआ था. ये पहले तो पत्नी प्रेम में इतना डूब जाते हैं कि लोकमर्यादा का होश तक नहीं रहता और फिर एक दिन अचानक पत्नी का त्याग कर देते हैं और संत कवि बन जाते हैं.

अटपटी दलील

ठीक इन्हीं की तरह कालिदास ने भी पारिवारिक जीवन का त्याग कर दिया और दुनिया के महान कवि बन गए. इन दोनों कवियों में एक बात की समानता है जिस में इन के त्याग के पीछे पत्नी की फटकार को ही कारण बताया गया. यहां यह दलील थोड़ी अटपटी सी लगती है कि दोनों कवियों ने अपनीअपनी पत्नी को त्यागने के पीछे का कारण अपनी पत्नी की फटकार या उस के उपदेश को ही बताया और अपनी महानता को भी बनाए रखने की चेष्टा करते हैं.

कोईर् भी पत्नी यह बिलकुल नहीं चाहेगी कि उस का पति उस का त्याग कर दे परंतु यहां पत्नियों के कारण का एक अलग ही उदाहरण पेश कर दिया गया और अकसर उदाहरण के तौर पर पेश भी किया जाता है.

समाज के ठेकेदारों ने इन्हें अपनीअपनी पत्नी को त्यागने में भी इन की महानता को ही ढूंढ़ निकाला. अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने के बावजूद इन की महानता पर कोई आंच नहीं आने दी और पत्नियों को त्याग का पाठ पढ़ाने के लिए एक नया फौर्मूला भी तैयार कर लिया, जिस का सहारा आज भी किसी न किसी रूप में लिया जाता है.

औरत क्या सजावटी वस्तु

अकसर ऐसा कहते हुए सुना जाता है कि स्त्रियां घरों की शोभा होती हैं. शोभा यानी सजावट. सजावट शब्द ने एक औरत को वस्तु शब्द का पर्याय बना दिया और फिर सजावट जैसे शब्द को गढ़ने वाले अपनी सोच की परिधि में एक औरत रूपी चेतना को घुटघुट कर दम तोड़ने पर मजबूर कर देते हैं. इस मानसिकता की शुरुआत संभवत: उन कथित दरबारी कवियों ने ही की थी जो शृंगार रस में डूब कर नखशिख वर्णन यानी किसी औरत के नाखूनों से ले कर उस के सिर तक की सुंदरता का वर्णन राज दरबारों में राजाओं के मनोरंजन के लिए किया करते थे. तब से ले कर लगभग आज तक औरतों को देखने का एक ही दृष्टिकोण लगभग तय सा हो गया. यह समाज औरत को बस एक खूबसूरत वस्तु के पैमाने में ही मापता आ रहा है.

आज भी औरतों को अपनी इसी सोच के दायरे में रख कर देखने वाले पुरुषों की कमी नहीं है विवाह के बाद पत्नियों को त्याग कर किसी खूबसूरत युवती से शादी कर लेना भी एक चलन बन गया है गांव में ऐसी पत्नी आज भी हैं, जिन्हें जिन के पतियों ने शादी के काफी साल बाद त्याग कर अकेले ही जिंदगी जीने के लिए छोड़ दिया और वे पतिव्रता नारी धर्म का पालन किए जी रही हैं. वे किन कष्टों का सामना कर रही हैं. उन की जिंदगी कैसीकैसी कठिनाइयों से भरी हुई है इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता.

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औरतों की आजादी पर अंकुश

सदियों पहले मनु ने एक फतवा जारी किया. मनु के अनुसार स्त्री का बचपन में पिता के अधीन, युवा अवस्था में पति के आधिपत्य में तथा पति की मृत्यु के उपरांत पुत्र के संरक्षण में रहना चाहिए. मनु का ऐसा कहना एक स्त्री के लिए फतवा नहीं है? स्त्रियों की आजादी को क्या ऐसा कह कर छीन नहीं लिया गया? क्या उन की आजादी पर अंकुश नहीं लगा दिया गया? क्या इस फतवे ने नारी के प्रति पुरुषों के अत्याचार के सिलसिले को और भी बढ़ावा नहीं दे दिया?

तमाम तरह की बंदिशें इस समाज में एक नारी के ऊपर ही लगानी शुरू कर दीं जैसे परदे में रहना, पुरुषों की आज्ञा का पालन करना, पुरुषों को पलट कर उत्तर न देना, चुपचाप उन के अत्याचारों को सहन करना इस सोच ने नारी को एक तरह से पुरुषों के अधीन बना दिया जैसे वे कोई संपत्ति हों जिन पर पहले पिता का, फिर पति का और फिर बाद में पुत्र का अधिकार हो गया और फिर स्त्री को सारे सुखों और अधिकारों से वंचित कर दिया गया.

इन सभी वजहों से वह एक वस्तु पर्याय बना दी गई, पुरुषों के अधीन हो गई. पुरुष जब चाहे उस का त्याग कर दे और वह मुंह तक न खोले, पलट कर जवाब तक न दे जैसे वह कोई वस्तु है जिस का त्याग पुरुष अपनी मरजी के हिसाब से कर सकता है.

पुरुषों के लिए कोई बंदिश नहीं

मनु और याज्ञवल्क्य जैसे स्मृतिकारों ने एक पत्नी के क्या कर्तव्य होते हैं जैसे निर्देश देते हुए पत्नी धर्म का पालन करना, पति को परमेश्वर मानना आदि फतवे जारी कर उन्हें पूर्णतया पति के उपभोग की वस्तु बना दिया, एक मानदंड तैयार कर दिया गया जिस के आधार पर उन्हें या तो देवी या तो फिर कुलक्षिणी करार दिया जाने लगा परंतु उसी समाज ने पुरुषों के लिए कभी कोई बंदिश क्यों नहीं लगाई?

पुरुष चाहे तो अपनी मरजी से पत्नी का साथ निभाए या फिर उस का अपनी मरजी से त्याग कर दे परंतु स्त्री के लिए सतीत्व का पालन करना, उस का देवी बने रहना क्यों अनिवार्य कर दिया गया? हमारा समाज आज भी नहीं बदला है. आज भी ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां पति अपनी पत्नी का त्याग कर महान बने बैठे हुए हैं. शादी की और उसे अकेला छोड़ दिया. खुद अपनी जिंदगी मजे में जी रहे हैं परंतु पत्नी को कोई पूछता नहीं. उस की हालत पर कहीं कोई चर्चा नहीं होती. बस पत्नियों को त्याग का पाठ पढ़ा दिया जाता है और वे देवी बने रहने के दायरे से कभी भी बाहर नहीं निकल पातीं.

दयनीय स्थिति

आज भी हमारे समाज में एक औरत पर ही हजारों पाबंदियां ज्यों की त्यों बनी हुई हैं. पुरुष चाहे तो कितने भी प्रेम करे. वह चाहे तो अपनी पहली पत्नी के होते हुए भी दूसरी शादी रचा ले. उसे समाज बहिष्कृत नहीं करता. उस के चरित्र पर सवाल उठाने की जगह उसे महान बना दिया जाता है. उसे कोई कुलटा नहीं कहता क्योंकि वह पुरुष है. त्याग का पाठ बस पत्नियों को ही पढ़ाई जाने की चीज है.

आज भी इस समाज में कईर् ऐसी पत्नियां हैं जिन के पति स्वयं तो समाज के कई प्रतिष्ठित स्थानों पर विराजमान हैं. उन में कोईर् अभिनेता है, फिल्म अभिनेता है, महान गायक है या फिर कोई राजनेता है और ये सब बिना किसी ठोस कारण अपनीअपनी पत्नी का त्याग कर महान बन बैठे हैं और फिर भी यह समाज उन्हें पूरी इज्जत व प्रतिष्ठा दे रहा है या देता आ रहा है. परंतु उन पत्नियों का जीवन कैसा है, वे किस प्रकार जी रही हैं, किसी को कोई चिंता नहीं है.

गांवों में तो ऐसी स्थिति और भी दयनीय है. जिस का पति बिना तलाक दिए मजे में अपनी जिंदगी बिता रहा है क्या वह पत्नी न्याय की हकदार नहीं है? क्यों उस के कष्टों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता? तीन तलाक बेशक निंदनीय अपराध है परंतु उन हिंदू औरतों, उन पत्नियों का क्या अपराध जिन के पतियों ने बिना तलाक दिए उन्हें अकेले जिंदगी जीने को लाचार कर रखा है.

आज ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो शादी कर अपनी पत्नी को छोड़ के विदेशों में भाग गए हैं. हाल के ही एक ताजा समाचार के अनुसार ऐसी 15 हजार महिलाओं की शिकायतें मिली हैं जिन के पति उन्हें छोड़ कर विदेश भाग गए हैं. हम हिंदू औरतों पर हो रहे खुले अत्याचार को भाग्य की देन कैसे मान सकते हैं. यदि साथ नहीं रख सकते तो तलाक दे कर उन्हें सम्मान के साथ जीने का हक तो दें.

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जब दुलहन हो पैसे वाली

राहुल एक मध्यवर्गीय परिवार का होनहार युवक था. वह अपने जैसी मेहनती और पढ़ीलिखी लड़की से शादी करना चाहता था. मेरठ के अमीर परिवार से उस के लिए रिश्ता आ गया. शैली दिखने में खूबसूरत पर अल्हड़ थी. राहुल ने अपनी मम्मी और भैया को समझना भी चाहा परंतु किसी ने उस की ओर ध्यान नहीं दिया था. बहुत धूमधाम से विवाह हुआ और फिर शैली को ले कर राहुल बैंगलौर चला गया.

जल्द ही शैली के तौरतरीकों से राहुल परेशान हो उठा. जब भी राहुल शैली के परिवार से बात करता तो उन्हें उस की परेशानी समझ ही नहीं आती. जिसे राहुल फुजूलखर्ची मानता था वह शैली के घर वालों के हिसाब से सामान्य  खर्च था.

सुशील की जब अनुराधा से शादी हुई तो शुरू में सुशील ससुराल की चमकदमक देख कर बहुत खुश था पर जल्द ही वह ससुराल वालों के अनावश्यक हस्तक्षेप से तंग आ गया. उन के हनीमून प्लैन से ले कर उन के बच्चे की डिलिवरी तक सबकुछ वही लोग तय करते थे. अनुराधा खुद अपने ससुराल वालों को दोयम दर्जे का मानती है.

सुशील अपने घर वालों और ससुराल वालों के बीच पिस रहा है और बहुत सारी बीमारियों ने उस के शरीर में घर बना लिया है.

मृणाल का नयना से पे्रम विवाह हुआ था. शुरू के 2 वर्ष तक तो प्रेम के सहारे नयना की जिंदगी चलती रही पर फिर जल्द ही वह प्रेम से ऊब गई. हकीकत से सामना होते ही नयना और मृणाल को समझ आ गया कि उन की सोच में जमीनआसमान का फर्क है. अब नयना के घर वालों ने ही मृणाल को अपने व्यापार में लगा लिया है. विवाह के 10 वर्ष के बाद भी मृणाल की हैसियत अपनी ससुराल में दामाद की कम, एक कर्मचारी की ज्यादा है.

इन सभी उदाहरणों से एक बात तो साफ है कि विवाह के बाद लड़कियों को ही नहीं लड़कों को भी अपनी ससुराल में तालमेल बैठाने में बहुत दिक्कतें आती हैं और वे तब और अधिक हो जाती हैं जब लड़के की ससुराल बहुत अमीर हो.

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तालमेल बैठाने में आती है दिक्कत: विवाह की गाड़ी आपसी तालमेल से ही सरपट दौड़ती है मगर अगर पत्नी बहुत अमीर परिवार से है तो तालमेल बैठाने में बहुत ज्यादा समय लगता है. जो अमीर परिवार की लड़की को जरूरत लगती है वह हो सकता है एक मध्यवर्गीय परिवार के लड़के को फुजूलखर्ची लगती हो. अगर आप की पत्नी बहुत अमीर परिवार से है तो यह जान लें कि उस की आदतें एक दिन में नहीं बदल जाएंगी. कुछ आप को समझना होगा और कुछ उसे.

अनावश्यक हस्तक्षेप से बचें:

जब दोनों परिवारों में आर्थिक भिन्नता होती है तो यह देखने में आता है कि दोनों ही परिवार अपनेअपने ढंग से अपना वर्चस्व बनाने के लिए अनावश्यक हस्तक्षेप करते हैं. यह जिंदगी आप दोनों को गुजारनी है. आप के परिवारों को नहीं, इसलिए किस की बात सुननी है किस की नहीं यह आप स्वयं तय कर सकते हैं. हर किसी की बात पर अमल करने की कोशिश करेंगे तो आप लोगों के बीच में मनमुटाव ही रहेगा.

निर्धारित करें सीमारेखा:

हर मातापिता अपनी बेटी को बहुत खुश देखना चाहते हैं. इस कारण कभीकभी वे अपनी बेटी को ऐसे तोहफे दे देते हैं, जो उन के दामाद के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा सकते हैं. अगर आप अपनी ससुराल से ऐसे तोहफे स्वीकार नहीं करना चाहते हैं तो साफ मगर विनम्र शब्दों में मना कर दीजिए. हो सकता है पहली बार आप की पत्नी और उस के परिवार को बुरा लगे परंतु रिश्तों को निभाने के लिए एक सीमारेखा निर्धारित करना आवश्यक है.

हीनभावना को रखें दूर:

अगर आप की पत्नी बहुत अमीर परिवार से है और फिर भी उस के परिवार ने उसे आप के लिए चुना है, तो इस बात का साफ मतलब है कि आप के अंदर कुछ ऐसे गुण और हुनर होंगे जो उन्हें दूसरे लड़कों में नजर नहीं आए होंगे. आप की जितनी आमदनी है, उसी के अनुरूप अपनी जिंदगी के सफर की शुरुआत कीजिए. बहुत बार देखने में आता है कि हीनभावना से ग्रस्त हो कर लड़के अधिक खर्चा कर देते हैं, जो बाद में उन्हीं की जेब पर भारी पड़ता है.

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तोहफों से न आंकें रिश्तों की कीमत:

ससुराल अमीर हो तो बहुत बार लड़के अनावश्यक दबाव के चलते महंगेमहंगे तोहफे देते हैं, जो उन की जेब पर भारी पड़ता है. रिश्तों को मधुर बनाने के लिए तोहफों की नहीं, अच्छे तालमेल की आवश्यकता होती है.

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