Women’s Day 2024: तो महिलाएं हैं पुरुषों से बेहतर ड्राइवर

औफिस में बैठे 4 पुरुष दोस्त महिलाओं के गाड़ी चलाने को ले कर बातें कर रहे हैं. एक पुरुष कहता है, ‘‘महिलाएं कई बार बिना इंडिकेटर के खटाक से लेन बदल देती हैं.’’

उस पर हंसते हुए दूसरा पुरुष दोस्त कहता है, ‘‘हां, सही कह रहे हो भाई, लेकिन ये महिलाएं मानती ही कहां हैं कि इन्हें ठीक से गाड़ी चलाना नहीं आता. पार्किंग की तो जरा भी सैंस नहीं है इन में. गाड़ी कहीं भी पार्क कर देती हैं.’’

उस पर तीसरा पुरुष दोस्त उन की हां में हां मिलाते हुए कहता है, ‘‘मैं ने जब भी ड्राइव करते हुए अचानक ब्रेक लगाए, तो ज्यादातर मेरे आगे गाड़ी चलाने वाली महिला की ही गलती होती है.’’

उस पर चौथा दोस्त ठहाके लगाते हुए बोलता है, ‘‘तभी तो औरतों को गाड़ी चलाते देख मैं और ज्यादा सतर्क हो जाता हूं क्योंकि उन का क्या भरोसा, कहीं ठोक दिया तो वेबजह मारा जाऊंगा.’’

शबनम कहती हैं, जब सिर पर हैलमेट और हाथों में ग्लव्स पहने अपनी बुलेट पर वे निकलती हैं, तो लोगों को यह बात कुछ हजम नहीं होती. रोजरोज सड़कों पर इन का सामना चौंकाई हुई नजरों से होता है. एक बार जब वे और उन की महिला मित्र बाइक पर सवार थीं और जब रास्ते में ट्रैफिक सिगनल पर वे रुकीं तो पास खड़े मारुति वैन में बैठे कुछ पुरुष चिल्लाते हुए बोलें कि अरे, देखो.

बाइक चलाने वाली महिला और पिछली सीट पर भी महिला. उस के बाद आसपास मौजूद लोग उन्हें अजीब नजरों से देखने लगे. उन्हें बाइक पर देख कुछ पुरुषों ने आश्चर्य के बजाय घृणा व्यक्तकी. बाइक चलाते वक्त एक युवक ने तो उन्हें धक्का तक देने की कोशिश की.

बदली नहीं सोच

पितृसत्तात्मक समाज यह बात पचा नहीं पाता है कि गाड़ी में पीछे बैठने वाली महिलाएं आगे आ कर इतनी अच्छी ड्राइविंग कैसे कर सकती हैं. देश में पहले महिलाएं किचन और बच्चे संभालती थीं और पुरुष के हाथों में स्टेयरिंग होता था. लेकिन अब जमाना बदल गया है. महिला को ड्राइवरी करते देख पुरुषों को उन की आजादी पची नहीं और आज जब वे किसी महिला को गाड़ी चलाते देखते हैं तो उन्हें सहन नहीं होता और अपनी खुन्नस निकालने के लिए तरहतरह के कमैंट्स करने लगते हैं कि पता नहीं इन्हें गाड़ी चलाने क्यों दे देते हैं.

अगर कोई महिला धीरे गाड़ी चला रही है, तो कहेंगे कि अरे, अभी नईनई गाड़ी चलाना सीख रही है न और अगर पूरे विश्वास के साथ गाड़ी चला रही होती है, तो ऐसे आंखें फाड़ कर आश्चर्य से देखते हैं जैसे दुनिया का कोई अजूबा दिख गया हो उन्हें. अगर महिला ड्राइवर गाड़ी पार्किंग में लगा रही होती हैं तो पुरुष उस की मदद के लिए आ जाते हैं. उन्हें लगता है कि औरत है, इसलिए यह काम उस से नहीं हो पाएगा. अगर महिला ट्रैफिक जाम में फंस जाती है तो सुनने को मिल जाएगा कि आप से नहीं होगा, मैं कर देता हूं. लोग यह क्यों नहीं सम झते कि औरतें भी पुरुषों की ही तरह हैं. उन के भी 2 पैर, 2 हाथ, 2 आंखें और 1 दिमाग है. फिर अगर वे भी सड़कों पर गाड़ी दौड़ा रही हैं तो इस में इतना आश्चर्यचकित होने वाली क्या बात है.

औटो, कैब चलाते पुरुष दिख जाएं तो ठीक, पर अगर महिला दिख जाए, तो लोग हैरानी से आंखें फाड़ कर देखने लगते हैं. क्या कभी आप ने किसी डिलीवरी गर्ल के लिए दरवाजा खोला है? भारत सहित दक्षिण एशियाई क्षेत्र, दुनिया भर में परिवहन क्षेत्र में महिला श्रमिकों के सब से कम शेयरों में से एक है और मध्य पूर्व की तुलना में केवल मामूली रूप से अधिक है, जहां कानूनी मानदंडों ने कुछ महिलाओं को ड्राइविंग से रोक दिया था.

मिथक तोड़ती महिलाएं

महिलाओं की ड्राइविंग को ले कर जब भी चर्चा होती है, हमेशा यही बात कही जाती है कि वे बहुत बुरी ड्राइविंग कहती हैं. बातबात पर महिलाओं, लड़कियों की ड्राइविंग का मजाक उड़ाने वाले बाहर तो कम, घर में ही ज्यादा मिल जाएंगे. और तो और वे भी उन का मजाक बनाने से बाज नहीं आते, जिन्हें खुद ठीक से गाड़ी चलाना नहीं आता है. लेकिन एक सर्वे में यह खुलासा हो चुका है कि महिलाएं पुरुषों से बेहतर ड्राइविंग करती हैं.

ब्रिटेन की ब्रैडफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है कि महिलाओं में ऐस्ट्रोजन हारमोन होता है. वह नए नियम सीखने में उन की क्षमता को पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ा देता है. ऐस्ट्रोजन हारमोन महिलाओं में पाया जाने वाला सैक्स हारमोन है जो उन के रिप्रोडक्टिव सिस्टम के विकास में भी मदद करता है. महिलाओं की बौडी में हारमोन का बहुत बड़ा रोल होता है, जो दिल से ले कर दिमाग तक को कंट्रोल करता है. ऐस्ट्रोजन हारमोन महिलाओं के लिए काफी लाभदायक माना गया है.

होनहार होती हैं महिलाएं

स्टडी में 18 से 35 साल के बीच के 43 पुरुषों और महिलाओं से उन की ड्राइविंग स्किल को ले कर सवाल पूछे गए. इन में रूल्स सीखने, ध्यान केंद्रित करने, योजना बनाने और कार कंट्रोलिंग स्किल से संबंधित सवाल शामिल किए गए थे. एक से दूसरी स्थिति पर ध्यान बदलने की कला में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले ज्यादा जीनियस पाया गया और इसी स्किल की वजह से उन्हें ड्राइविंग और दूसरे कामों में होनहार पाया गया.

मनोवैज्ञानिक योगिता कादियान का कहना है कि महिलाएं अपनी हर जिम्मेदारी की तरह ड्राइविंग रूल्स, ट्रैफिक रूल्स को भी अच्छी तरह फौलो करती हैं. वहीं पुरुष ड्राइविंग के दौरान किसी और काम को भी करना शुरू कर देते हैं जैसे मोबाइल पर बात करना, स्टीरियो सिस्टम से छेड़छाड़ लेकिन महिलाएं अपना पूरा ध्यान ड्राइविंग पर रखती हैं.

चौंकाने वाले तथ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2016 के आंकड़ों के मुताबिक, 5 करोड़ लोग हर साल सड़क हादसों के शिकार होते हैं. इन में 10 लाख लोगों की मौत हो जाती है. दुनिया में सब से कम सड़क हादसे नौर्वे में होते हैं. नौर्वे की संस्था ‘ट्रांसपोर्ट इकोनौमिक’ ने यह एक शोध 1100 ड्राइवरों पर किया था. शोध में पाया गया था कि गाड़ी चलाते समय महिलाओं के मुकाबले पुरुष ड्राइवरों का ध्यान ज्यादा भटकता है.

एक दूसरा शोध हाइड पार्क इलाके में हुआ था. हाइड पार्क चौराहा वहां का सब से व्यस्त चौराहा माना जाता है. वहां हुए एक सर्वे के मुताबिक, महिलाएं ड्राइविंग में पुरुषों से कई मामलों में बेहतर हैं. जिन मामलों में उन्हें कैलकुलेट किया है था वे इस प्रकार है:

गाड़ी की स्पीड, इंडिकेटर का इस्तेमाल, स्टेयरिंग कंट्रोल, गाड़ी चलाते समय फोन पर बात करने आदि.

इस सर्वे में महिलाओं को 30 में से 23.6 अंक मिले थे जबकि पुरुषों को महज 19.8 अंक.

पुरुष करते हैं खतरनाक ड्राइविंग

शोधकर्ता के मुताबिक, अगर अधिक महिलाओं को ट्रक चलाने का रोजगार मिल जाए, तो सड़कें काफी सुरक्षित होंगी. लंदन का वेस्टमिंस्टर यूनिवर्सिटी में रेशल एल्ड्रेड ने कहा कि ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादातर ड्राइवर की नौकरी करने वाले पुरुषों में खतरनाक तरीके से वाहन चलाने की संभावना ज्यादा होती है. इस से सड़क पर चलने वाले अन्य लोगों की जान को खतरा होता है.

एल्ड्रेड और उन की टीम ने ब्रिटिश डाटा से लिए गए 4 कारकों पर ध्यान केंद्रित किया. इन में 2005 से 2015 के बीच चोट और यातायात के आंकड़े, यात्रा सर्वेक्षण के आंकड़े और जनसंख्या और लिंग के आंकड़े शामिल थे.

शोधकर्ता ने पाया कि 6 तरह के वाहनों में से 5 वाहनों को चलाने पर पुरुषों ने सड़क के मुसाफिरों को खतरे में डाला. उन्होंने कहा कि शोध के निष्कर्षों से पता चला कि कार और वैन चलाने वाले पुरुषों को महिलाओं की तुलना में दोगुना खतरा था. जबकि पुरुष ट्रक ड्राइवरों के लिए जोखिम 4 गुना अधिक था.

एल्ड्रेड ने कहा कि कुल मिला कर दोतिहाई मौतें कारों और टैक्सियों से संबंधित थीं. लेकिन शोध से पता चलता है कि अन्य वाहन और खतरनाक हो सकते हैं.

एल्ड्रेड ने कहा कि हम सु झाव देते हैं कि नीतिनिर्धारकों को ड्राइविंग के पेशे में लैंगिक संतुलन को बढ़ाने के लिए नीतियों पर विचार करना चाहिए. इस से वाहन से लगने वाली चोटों और मौतों में कमी आएगी.

ड्राइविंग लाइसैंस के लिए महिलाओं को पहनने होंगे सलीकेदार कपड़े. टाइम्स औफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, चेन्नई के, के.के नगर आरटीओ में ड्राइविंग टैस्ट देने से महिलाओं को इसलिए रोक दिया गया था क्योंकि उन्होंने जींस और कैपरी पहन रखी थी. लेकिन जानकारी के मुताबिक, ड्राइविंग टैस्ट के लिए भारत में कपड़ों को ले कर कोई खास ड्रैस कोड का नियम नहीं बनाया गया है. मोटर व्हीकल ऐक्ट में भी महिलाओं द्वारा ड्राइविंग करते समय किसी तरह के ड्रैस कोड का जिक्र नहीं किया गया है. महिलाओं द्वारा जींस और कैपरी पहन कर ड्राइविंग करने में आखिर नुकसान क्या है, यह बात सम झ नहीं आई.

ड्राइविंग लाइसैंस के लिए गाइनेकोलौजिस्ट से चैकअप जरूरी

ड्राइविंग लाइसैंस पाने के लिए हमें कई तरह के टैस्ट से गुजरना होता है. हर देश में ड्राइविंग लाइसैंस के लिए अलगअलग कानून होते हैं जैसे रिटन टैस्ट, ओरल टैस्ट, ड्राइविंग एबिलिटी, लेकिन एक देश ऐसा भी है जहां महिलाओं को ड्राइविंग लाइसैंस पाने के लिए गाइनेकोलौजिस्ट से चैकअप जरूरी होता था. जी हां, यह बात एकदम सच है. यूरोपीय देश लुथियाना में महिलाओं को ड्राइविंग लाइसैंस पाने के लिए पहले गाइनेकोलौजिस्ट के पास जाना होता था. वहां वे अपना चैकअप कराती थीं, तभी वे ड्राइविंग लाइसैंस के लिए अप्लाई कर पाती थीं.

क्यों बना था यह कानून

2002 तक यह विवादित कानून लुथियाना में लागू रहा. यह कानून बनाने के पीछे मकसद यह था कि लाइसैंस पाने वाली महिलाएं किसी बीमारी की शिकार न हों. ऐसा मानना था कि बीमार औरतें ठीक से गाड़ी नहीं चला सकतीं. वहीं पुरुषों पर यह कानून लागू नहीं हुआ था.

मुद्दा सुरक्षा का

बाहर जाने वाली लड़कियों, महिलाओं के लिए सुरक्षा एक बुनियादी आवश्यकता है. जनगणना के आंकड़ों (2011) की लिंग तुलना से पता चलता है कि बैंगलुरु में औसतन 43% महिलाएं पुरुषों की तुलना में काम पर जाती हैं, जबकि चेन्नई में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या 34% है.

दुनिया भर के अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में सार्वजनिक परिवहन पर अधिक निर्भर करती हैं खासकर जब वे निम्न आय वर्ग का हिस्सा होती हैं. एक सुरक्षित और विश्वसनीय अंतिम मील परिवहन के अभाव में या तो वे रोजाना संघर्ष करती हैं या अपने घरों के आसपास के क्षेत्र में अपने रोजगार के अवसरों को सीमित कर के व्यापार बंद कर देती हैं.

महिलाओं और पुरुषों के बीच का अंतर तो सदियों से चला आ रहा है. पुरुष शारीरिक रूप से मजबूत रहे हैं इसलिए ताकत से जुड़े कार्यों को ज्यादा बेहतरी से करते आए हैं. लेकिन आज के दौर में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. इस नजरिए से महिलाएं भी अब वे सारे काम कर सकती हैं जो पुरुष करते हैं.

हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि संकट के समय महिलाएं जल्दी घबरा कर हिम्मत छोड़ देती हैं या सही फैसले नहीं ले पातीं. लेकिन एक अध्ययन के मुताबिक, पुरुषों की तुलना में महिलाएं अच्छी ड्राइवर साबित होती हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, पुरुष बहुत ही आक्रामक तरीके से गाड़ी चलाते हैं और दूसरों की जान जोखिम में डालते हैं. यह ‘अध्ययन जनरल इंजरी प्रिवैंशन’ में प्रकाशित हुआ था.

परिवर्तनशील समय

रोजगार और जीवन में बेहतर अवसर दिलाने के लिए महिलाओं को ड्राइविंग सिखाने की मुहिम शुरू कर दी गई है यानी अब ड्राइविंग महिलाओं के लिए कमाई का एक बड़ा जरीया बन सकता है. देशभर में कई सामाजिक उद्यमों ने यात्रियों के साथसाथ वाणिज्यिक वाहनों के मालिक चालकों दोनों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है. वे कम आय वाली पृष्ठभूमि वाली महिलाओं के साथ काम करते हैं ताकि उन्हें ड्राइविंग सीखने के लिए प्रोसाहित किया जा सके.

दिल्ली में स्थित एक महिला केवल अंतिम मील ई कौमर्स लौजीस्टिक्स कंपनी है जो महिलाओं को गाड़ी चलाना सिखा कर डिलीवरी एजेंट बनने के लिए प्रशिक्षण दे रही है और इस ने 500 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया है और पूरे देश में 250 से अधिक महिलाओं को डिलीवरी ऐसोसिएट्स के रूप में रखा है.

एक अन्य पहल, ‘मुविंग वूमन सोशल ऐनिशिएटिव फाउंडेशन’ (रूशङ्खश) हैदराबाद में 1500 से अधिक महिलाओं को दोपहिया वाहन चलाने का प्रशिक्षण दे रही है.

मुहिम का मकसद

इस मुहिम का मकसद यह भी है कि महिलाएं इस बात के प्रति जागरूक हों कि ड्राइविंग और अकेले सुरक्षित यात्रा करना कितना जरूरी है. इस से वे अपने जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी अपनी संभावनाओं का विस्तार कर सकती हैं. मुहिम का जोर न सिर्फ इस बात पर है कि महिलाएं न सिर्फ ड्राइविंग सीखें, बल्कि इलैक्ट्रिक वाहन भी खरीदें, इस से उन की कमाई का ग्राफ बढ़ेगा.

दुनियाभर में महिलाओं को अपने

आवागमन को ले कर कई अड़चनों का सामना करना पड़ता है. वे अच्छी पढ़ाई या ऐसे कामों के लिए घर से ज्यादा दूर नहीं जा पातीं. अगर उन्हें ज्यादा या असुरक्षित यात्रा करनी पड़े तो वे बाहर जाने के प्रति उत्साहित नहीं होतीं. ऐसे में उन के पास रोजगार के काफी सीमित मौके ही रह जाते हैं.

‘शेल फाउंडेशन’ की शिप्रा नायर का कहना है कि हमारा मकसद महिलाओं की मोबिलिटी बढ़ा कर उन्हें समान अवसर पाने में मदद करना है. बड़ी संख्या में ऐसी महिला ड्राइवर्स को तैयार करना है जो इलैक्ट्रिक वाहन की मालिक हों. देश में पहला महिला ड्राइविंग संस्थान तेलंगाना में शुरू हुआ. बता दें कि पूरे देश में केवल 10% ही लाइसैंस महिलाओं के नाम से है.

नारी कमजोर नहीं, शक्ति का स्वरूप है

किसी भी क्षेत्र में महिला और पुरुष बराबरी से काम कर सकते हैं. लेकिन जब तक सोच नहीं बदलेगी, तब तक महिलाओं को उन का पूर्ण अधिकार नहीं मिल पाएगा. पुरुषप्रधान समाज में आज भी महिलाओं को घर से निकलने से पहले घर के पुरुषों से पूछना पड़ता है. यह सब से बड़ा अंतर है महिला और पुरुषों के बीच. जिस दिन सभी पुरुष इस अंतर को दूर करने का प्रयास करेंगे उस दिन सच में महिलाओं को उन का अधिकार मिल जाएगा.

ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं को टैक्नोलौजी से जोड़ना जरूरी

दूर अंचलों में महिलाओं, लड़कियों को यह भी नहीं पता कि उन्हें क्या करना चाहिए. शहरी क्षेत्रों में तो महिलाएं, लड़कियां टैक्नोलौजी का इस्तेमाल कर के आगे बढ़ रही हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह नहीं हो पा रहा है.सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रयास करना चाहिए कि महिलाएं भी आधुनिक टैक्नोलौजी से जुड़ें और विकास करें.

देश की आधी आबादी औरतें हैं, ऐसे में अगर उन्हें बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और नौकरियों तक पहुंचने में सुरक्षित महसूस करने के लिए सामूहिक रूप से सक्षम करने के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास नहीं किए जाएंगे, तब तक इन की शक्ति का पूरी तरह से उपयोग नहीं हो पाएगा क्योंकि जब तक महिलाएं आगे नहीं बढ़ेंगी, देश आगे नहीं बढ़ पाएगा.

बड़े काम की डिस्टैंट कजिंस से दोस्ती

‘‘अरे यार सायमी,आज फ्राइडे है. शाम को मूवी देखने चलें? आज प्रिंसिपल मैडम की  झाड़ खा कर मेरा मूड बेहद खराब हो रहा है. थोड़ा चिल करना चाहती हूं. टिकट बुक करवा लूं क्या?’’ कियारा ने अपनी फ्रैंड सायमी से कहा.

‘‘नहीं यार. आज शाम को तो मूवी बिलकुल नहीं जा पाऊंगी. शाम को अपने कजिंस के साथ मूवी देखने उन्हीं के पास जा रही हूं.’’

‘‘क्या तेरी कजिंस तु झ से इतने क्लोज हैं कि तू एक पूरी शाम उन के साथ बिताएगी? तू भी न वास्तव में विचित्र है. मौजमस्ती के लिए आउटिंग्स पर फ्रैंड्स के साथ जाया जाता है या परिवार के साथ.’’

‘‘अरे भई, मेरे ये डिस्टैंट कजिंस मेरे फ्रैंड्स ही हैं. मेरा कजिन मेरी जिंदगी का सब से फ्रैंडली और स्ट्रौंग सपोर्ट सिस्टम है. उन्हीं की वजह से मैं इस अनजान शहर में अकेले रहते हुए लाइफ के हर उतारचढ़ाव को बड़ी आसानी से फेस कर रही हूं. तू इमैजिन नहीं कर सकती, जिंदगी के हर मोड़ पर वे मेरा कितना साथ देते हैं. तू तो अभी इस स्कूल में नईनई आई है. कोई भी तो ऐसा नहीं है जिस से मन की बातें शेयर कर के जी हलका कर सकूं. हम 3 डिस्टैंट कजिंस हैं. बचपन से साथ पलेबढ़े हैं. तीनों इसी शहर में हैं. इन फैक्ट मु झे नए शहर में अकेले आने की परमिशन मिली तो वह भी मेरे इन कजिंस की वजह से ही.’’

निर्भरता खटकने लगी

‘‘मेरा परिवार बेहद रूढि़वादी और परंपरावादी है. हम जयपुर के पास खैरथल नाम के एक कसबे में संयुक्त परिवार में रहते हैं. हमारे घर के कर्ताधर्ता मेरे ताऊजी हैं. पापा का बिजनैस कोई खास नहीं चलता. उस से तो बस हम 5 सदस्यों के परिवार की दालरोटी ही बेहद मुश्किल से चल पाती है. बड़े खर्चों के लिए हमें ताऊजी का मुंह देखना पड़ता है.

‘‘जब से हम भाईबहन बड़े हुए, हर बात पर ताऊजी पर निर्भरता हमें खटकने लगी. मेरे कुछ डिस्टैंट कजिंस अपने कसबे से निकल कर यहीं जयपुर में जौब कर रहे हैं. यहां नए शहर में आने की परमीशन भी उन्हीं की वजह से मु झे मिली. पोस्ट ग्रैजुएशन के बाद मेरे लिए नितांत नए और अजनबी शहर जयपुर में नौकरी करने की इच्छा इन्हीं तीनों की वजह से पूरी हुई.’’

‘‘अच्छा. तो यह बात है.’’

‘‘बिलकुल. चल मैं आज तु झे डिस्टैंट कजिंस के साथ दोस्ती के फायदे बताती हूं.’’

तो चलिए पाठको, सायमी ने अपनी सहेली कियारा को डिस्टैंट कजिंस के साथ दोस्ती के जोजो फायदे गिनाए उन्हें आप के साथ शेयर कर रही हूं.

तनाव में कमी

गाहेबगाहे हर किसी की जिंदगी में तनाव आता ही है. कभी बड़े मसलों पर, तो कभी दैनिक जीवन के मामूली मुद्दों पर लेकिन यह कब गंभीर रूप धारण कर ले, कुछ कहा नहीं जा सकता.

तनाव के चलते आप ऐंग्जाइटी, डिप्रैशन अथवा चिड़चिड़ाहट अनुभव कर सकती हैं. लंबी अवधि तक तनाव  झेलने की वजह से आप को बहुत सारी हैल्थ प्रौब्लम्स हो सकती हैं. आप की इम्यूनिटी कम हो सकती है, आप को अनिद्रा, पाचन संबंधित शिकायतें, हृदय की समस्या, डायबिटीज या हाई ब्लड प्रैशर जैसी गंभीर प्रौब्लम हो सकती है, लेकिन यदि आप के पास फ्रैंड्स के रूप में अपने कजिंस का सशक्त सपोर्ट सिस्टम है जो आप की केयर करते हैं और आप की मदद करना चाहते हैं, तो उस स्थिति में तनाव आप का कुछ नहीं बिगाड़ पाता.

समुचित सलाह

आप अपने डिस्टैंट कजिंस के सामने दोस्तों के रूप में बाहरी लोगों से अपेक्षाकृत अधिक सहजता से खुल सकते हैं. इस का कारण है कि  आप बचपन से उन से मिलते आ रहे हैं, उन के साथ इंटरैक्शन करते आ रहे हैं जिस से आप उन के साथ बिना किसी हिचक के अपनी हर तरह की परेशानियों का खुलासा कर सकते हैं और उसी सहजता से उन्हें हल करने के उन के सु झाव ग्रहण कर सकते हैं.

भावनात्मक सपोर्ट

किसी भी तरह का अपनापन भरा संबंध हमें भावनात्मक संबल देता है. परेशानी की हालत में जब कोई हमारी समस्याओं को सुनता है, हमारी फीलिंग्स को वैलिडेट करता है, हमारे साथ अच्छा व्यवहार करता है या हमारी मदद करता है तो हमें अच्छा महसूस होता है क्योंकि यह मदद हमारा ध्यान अपनी उदासी, दुख या खराब मूड से बंटा देती है.

व्यक्तिगत विकास

यदि आप के डिस्टैंट कजिंस की शख्सियत पौजिटिव है तो वे आप को अपने अनुरूप ढलने में अपरोक्ष रूप से सहायक सिद्ध हो सकते हैं. आप के सम्मुख अपने पौजिटिव व्यवहार का उदाहरण रखते हुए आप को अच्छी आदतें जैसे नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करना, जिम जाना, स्मोकिंग या ड्रिंकिंग छोड़ना, अच्छा लाइफस्टाइल अथवा कोई हौबी अपनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं.

अच्छे फ्रैंड्स के तौर पर वे आप को अपनेआप में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए निरंतर प्रेरित कर सकते हैं. उन का प्रेरक व्यवहार आप के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी करते हुए आप को अपने लक्ष्य प्राप्त करने में सफलता के चांस बढ़ाएगा और भरोसेमंद मित्रों के तौर पर वे आप को पौजिटिविटी अपनाने का संकल्प मैंटेन करने में आप की मदद कर सकते हैं.

अपनत्व भाव

किसी के भी साथ नजदीकी दोस्ती आप के अपनत्व भाव को पोषित करने में मददगार होती है. इस की आवश्यकता मानव की भोजन आवास और सुरक्षा की मूलभूत आवश्यकताओं के बाद के पायदान पर आती है. डिस्टैंट कजिंस के रूप में एक सपोर्ट नैटवर्क आप को अपने जीवन में सुरक्षा का एहसास दिलाता है.

चुनौतियों का सामना करने में मददगार

जिंदगी में कदमकदम पर कठिन चुनौतियां आती हैं. वयस्क जीवन में ब्रेकअप अथवा डिवोर्स, किसी प्रियजन की मृत्यु, कोई बीमारी, बेरोजगारी, पारिवारिक समस्याएं आदि ऐसी चुनौतियां हैं, जिन का सामना हर इंसान को कभी न कभी करना ही पड़ता है. इन स्थितियों में डिस्टैंट कजिंस आप को न केवल इन का सफलतापूर्वक सामना करने में सहायक सिद्ध होते हैं वरन इन के प्रभाव से सफलतापूर्वक उबरने में भी मदद कर सकते हैं.

बढ़िया कंपनी

आप अपने डिस्टैंट कजिंस से गाहेबगाहे सामाजिक, पारिवारिक उत्सवों, आयोजनों और त्योहारों पर प्रारंभिक बचपन से मिलते आ रहे हैं जिस की वजह से बाहरी मित्रों, परिचितों की अपेक्षा आप उन से अपने इंटरैक्शन में बेहद सरलता से सहज अनुभव करते हैं और हर मौके पर उन की कंपनी ऐंजौय कर सकते हैं.

डिस्टैंट कजिंस से नजदीकी दोस्ताने के चलते आप को शौपिंग, मूवी, पिकनिक जैसी आउटिंग्स के लिए क्लोज दोस्त मिलते हैं, जिस के चलते आप जिंदगी को बेहतरीन ढंग से ऐंजौय कर सकते हैं और अथाह खुशियां पा सकते हैं.

अकेलापन दूर करने में सहायक

आज की आधुनिक जीवनशैली और आभासी मित्रों के प्रभाव में लोगों के अकेलेपन एवं सामाजिक आइसोलेशन में बढ़ोतरी होती जा रही है. डिस्टैंट कजिंस से इन से बचाव संभव होता है.

यहां यह बात ध्यान रखने योग्य है कि यदि आप के और आप के कजिंस के परिवारों के मध्य किसी भी तरह का विवाद, मतभेद या वैमनस्य है तो उस स्थिति में उन की ओर दोस्ती का हाथ न बढ़ाना ही उचित है.

डिस्टैंट कजिंस आप के विश्वसनीय मित्र के रूप में जिंदगी की चुनौती भरी कठिन दौड़ में आप का ताउम्र साथ निभाते हुए आप के फ्रैंड, फिलौसफर एवं गाइड की भूमिका भलीभांति निभा सकते हैं. यहां यह उल्लेखनीय है कि वैज्ञानिकों ने डीएनए टैस्ट्स द्वारा पता लगाया है कि जब हम नए मित्रों को चुनते हैं, हम शायद अनजाने में डिस्टैंट रिश्तेदारों की कंपनी का चुनाव कर रहे होते हैं.

‘सैनडिएगो यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया’ के मैडिकल जेनेटिक्स के प्रोफैसर जेम्सफाओलर कहते हैं कि एक अनऐक्सप्लेन्ड मेकैनिज्म अपने दोस्तों का चुनाव करते वक्त उन के और हमारे डीएनए में समानता के आधार पर उन्हें चुनने में हमारी मदद करता है.

इस से यह निष्कर्ष निकलता है कि औसत तौर पर हमारे और हमारे मित्रों के डीएनए में बहुत हद तक साम्यता होती है.

इस निष्कर्ष के आधार पर कहा जा सकता है कि डिस्टैंट कजिंस के साथ दोस्ती का रिश्ता बखूबी बनाया भी जा सकता है और निभाया भी तथा उन के साथ दोस्ती यकीनन बड़े काम की साबित हो सकती है.

आत्मनिर्भर बनने के 5 सही कदम

नीलम ने बचपन से ही अपना काम खुद किया है, जब वह केवल 5 साल की थी, तब वह बाहर से सामान लाने अपने छोटे भाई को लेकर जाती थी, इससे भाई को भी काम के बारें में धीरे-धीरे सबकुछ समझ में आने लगा था. यही वजह है कि किसी नए शहर में जाकर आज नीलम को जॉब करना, घर खोजना, वहां की परिस्थितियों से एडजस्ट करने में किसी प्रकार की समस्या नहीं हुई.

खुद की निर्णय वह खुद ले सकती है. इसके लिए वह अपने पेरेंट्स को धन्यवाद् देती है, क्योंकि उनके विश्वास और मजबूत सोच की वजह से वह इतना कुछ कर पाई, जिसका फायदा उसे अब मिल सहा है. उसे याद आता है, जब उसने बाज़ार जाते हुए पैसे गिरा दिए, पर उसके पिता डांटने के वजाय वापस फिर से पैसे दिए और सावधान रहने की सलाह दिया. इसके बाद नीलम ने हमेशा पिता की बात को ध्यान में रखा और कभी भी उससे ऐसी गलती नहीं की.

रोमा भी एक ऐसी इकलौती लड़की है, जिसने जॉब को अच्छी तरह से करने के लिए अपने पेरेंट्स से अलग फ्लैट लेकर रहने का निश्चय लिया, क्योंकि घर से जॉब पर जाने-आने में 2 घंटे लगते थे. आज वह खुश है, क्योंकि उसका फैसला सही रहा, हालाँकि उसके पेरेंट्स चाहते नहीं थे, लेकिन वह अपने निर्णय पर अटल रही और उन्हें समझाया कि उसका उनसे अलग रहना एक जरुरी है, जिससे वह जॉब अच्छी तरह से कर सकें और इसे वे साधारण तरीके से लें.

असल में आत्मनिर्भर बनने के लिए सबसे ज़रूरी है, बजट से लेकर इंवेस्टमेंट तक खुद मैनेज करना, ऐसे में अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग खुद करना पड़ता है. कॉन्फिडेंट होना इंडिपेंडेंट होने की तरफ पहला कदम होता है. इसके अलावा इसमें सेल्फ लव यानि आप जैसे हैं वैसे खुद को स्वीकार करना जैसे अपने व्यक्तित्व, शरीर, विचार, दिलचस्पी और अपने हालात को समझना. साथ ही परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं, ये शब्द खुद से या दूसरो से कभी भी ना कहना. इसके साथ-साथ निश्चयात्मक बनना, अपने स्किल को बढ़ाना, किसी से कुछ पूछने में संकोच न करना और एक्स्प्लोर करने से पीछे न हटना आदि.

  1. सेल्फ लव

सेल्फ लव की अगर बात करें, तो आज की व्यस्त जीवन शैली में व्यक्ति खुद के बारें में सोचने में असमर्थ होता है, जिसमे उसकी प्रतियोगिता हमेशा सामने वाले से बनी रहती है और खुद को कमतर समझते रहते है. असल में सेल्फ लव एक एक्साइटिंग कांसेप्ट है, जिसमे खुद की अच्छाइयों और कमियों दोनों को साथ-साथ पूरी तरह से एक्सेप्ट करना पड़ता है. ये एक फील गुड फैक्टर नहीं होता, जिसमे शारीरिक, मानसिक आदि की कमी को सराहते हुए, गले लगाने जैसा होता है, इससे खुद को प्रचुर मात्रा में ख़ुशी मिलती है, ग्रोथ में कमी नहीं होती और व्यक्ति खुद को सेहतमंद समझने लगता है.

2. नई स्किल्स सीखे

कई बार बचपन में व्यक्ति कई चीजे सीखता है और उसमे से कुछ चीजे बहुत रुचिपूर्ण हो सकती है, जो अब व्यक्ति को आगे बढ़ने में सहयक होती है. नई-नई स्किल्स की जानकारी से व्यक्ति के जीवन के कई नए रास्ते खुल जाते है. स्किल्स व्यक्ति का खुद के लिए किया गया एक इन्वेस्टमेंट है, क्योंकि नई स्किल्स से व्यक्ति किसी पर निर्भर नहीं होता और उसकी निपुणता उसके अंदर होती है, जो उसे नई जानकारी के साथ-साथ ग्रो करने में सहायक होती है.

3. फैसले खुद लेना सीखे  

हर दिन कुछ न कुछ नई घटनाएं घटती रहती है, ऐसे में खुद ही निर्णय लेना पड़ता है, हो सकता है कि व्यक्ति का फैसला गलत हो, लेकिन उसके लिए भी खुद को ही तैयार रहना पड़ता है. फैसला गलत होने पर भी खुद को आगे कुछ निर्णय लेने से रोके नहीं. मसलन अगर आपकी जॉब उसी शहर में किसी दूर  एरिया में है, तो आप अलग फ्लैट लेकर रहने का निश्चय वाकई एक अच्छा कदम है, क्योंकि इससे आप खुद की सोशल, इमोशनल, इकोनोमिकल स्थिति को अच्छी तरह से बैलेंस कर सकते है.

हो सकता है कि आप के पेरेंट्स आपकी इस निर्णय से असहज हो, लेकिन आपके खुलकर बातचीत से उन्हें आपके मकसद को समझने में आसानी होगी. इसके अलावा व्यक्ति को खुद के काम खुद करने, खुद की देखभाल करने आदि की शुरुआत पहले से ही कर देनी चाहिए. आत्मनिर्भर होने के लिए खुद के साथ-साथ दूसरों की बातों को भी उसके दृष्टिकोण से सोचें और उसकी गहराई में जाए, तब किसी बात के दोनों पहलुओं को अलग तरीके से और ऑब्जेक्टिवली जान सकते है.

4. पूछने से न कतराएं

आत्मनिर्भर का ये मतलब नहीं कि व्यक्ति हर बात को जानता हो, अगर किसी भी चीज की जानकारी न हो, समाधान न मिले, कही खो जाय, कंफ्यूज हो, तो पूछने से कभी न कतराएं. इससे व्यक्ति को एक सही निर्देश मिल सकता है. जैसे अगर आप खाना बनाना नहीं जानते है, तो किसी से पूछ सकते है या किताबों या मैगजीन की रेसिपी, या विडियो का सहारा ले सकते है. इससे खुद को कमजोर या बेकार न समझे, बल्कि इतने सक्षम आप खुद है कि अपनी समस्याओं का हल खुद पा सकते है और ये एक मोरल बूस्ट होता है.

5. करें एक्स्प्लोर

जितना एक्स्प्लोर व्यक्ति करता है, उतना ही उसे किसी बातकी जानकारी मिलती है. इसके लिए किसी नए स्थान में ट्रेवल करने के साथ-साथ किताबें और मैगजीन आदि पढना जरुरी होता है. उसमे ऐसी कई नई जानकारियाँ होती है. इससे किसी भी परिस्थिति को हैंडल करने के बारें में व्यक्ति समझ सकता है. अपने आसपास होने वाले किसी भी इवेंट्स में जाएँ और नई जानकारी प्राप्त करें. इसके अलावा अन्वेषण के कई प्रकार है, जिसमे अकेले ट्रेवल करना, किसी प्रोजेक्ट का टीम लीडर बनना, रोज के किसी छोटे-छोटे फैसले को खुद लेना आदि कई है.

इस बारें में मुंबई की क्लिनिकल एंड काउंसलिंग साइकोलॉजीस्ट कुमुद सिंह कहती है कि असल में बच्चे हर चीज अपने पेरेंट्स से ही सीखते है, पेरेंट्स अगर मोबाइल अधिक चलाते है, तो वे भी मोबाइल पर अधिक रहना पसंद करते है. बच्चे वही करते है, जो पेरेंट्स करते है. पेरेंट्स जो चाहते है, बच्चों को वैसा करना पसंद नहीं होता. इसलिए बचपन से ही पेरेंट्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे उनके रोल मॉडल बने और ऐसी चीज न करें, जो बच्चों के विकास में बाधक बने. इसके अलावा छोटे बच्चों को कंट्रोल कभी न करें, उन्हें सिर्फ रेगुलेट करें. उन्हें अनुसाशन में रहने की वैल्यू पता होने पर वे खुद ही इसे बचपन से अपना लेते है.

इस प्रकार आत्मनिर्भर व्यक्ति में आत्मविश्वास, साहस और  नेत्तृत्व के गुण में वृद्धि होती है, जो एक सफल जीवन जीने के लिए काफी होता है.

क्लाउड किचन: कम लागत अधिक मुनाफा

बिजनैस छोटा हो या बड़ा हमें औफलाइन ग्राहकों के साथसाथ औनलाइन ग्राहकों को भी ध्यान में रख कर अपनी व्यवसायिक रणनीति तय करनी होती है, तभी ज्यादा से ज्यादा फायदा हो सकता है क्योंकि आज हर किसी के मोबाइल में असीमित डाटा है. अब ज्यादातर काम औनलाइन ही हो रहे हैं. तभी तो क्लाउड किचन बिजनैस भारत और दुनियाभर में सब से ट्रैंडिंग बिजनैस में से एक है.

क्लाउड किचन जिसे अकसर ‘घोस्ट किचन’ या ‘वर्चुअल किचन’ के रूप में भी जाना जाता है, एक प्रकार का ऐसा रैस्टोरैंट है जहां सिर्फ टेक अवे और्डर ही दिए जा सकते हैं. औनलाइन फूड और्डरिंग सिस्टम के माध्यम से ग्राहकों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए एक व्यवसाय स्थापित किया जाना ही क्लाउड किचन है. जोमैटो और स्विग्गी जैसे फूड डिलीवरी ऐप्लिकेशंस का इन से टाईअप होता है.

2019 में भारत में लगभग 5,000 क्लाउड किचन थे. औनलाइन फूड और्डरिंग ऐप्स और वैबसाइटों के सहयोग से क्लाउड किचन को बड़ा समर्थन मिला है. आज भारत में 30,000 से अधिक क्लाउड किचन हैं.

सही प्लानिंग करें

आप महज क्व5 से 6 लाख में इस काम की शुरुआत अच्छे स्तर पर कर सकते हैं. महिलाएं भी इस बिजनैस में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं. हम ने बात की ऐसे ही एक क्लाउड किचन ‘द छौंक’ की कोफाउंडर मंजरी सिंह और हिरण्यमि शिवानी से. कोविड-19 के समय जब लोग अपने घरों में बंद थे तब हिरण्यमि शिवानी भी फंस गई थीं और अपने घर नहीं जा पाई थीं. उसी दौरान उन्हें क्लाउड किचन शुरू करने का खयाल आया. वह बिहार से ताल्लुक रखती हैं. इसलिए उन्होंने लोगों को घर के खाने का स्वाद देने खासकर स्वादिष्ठ बिहारी भोजन उपलब्ध कराने के मकसद से बिहारी कुजीन के साथ जुलाई, 2021 में ‘द छौंक’ की शुरुआत गुरुग्राम से की. इस काम में उन की बहू मंजरी सिंह ने भी साथ दिया और दोनों ने मिल कर इस बिजनैस में कदम रखा.

बढ़ चुका है काम

मंजरी सिंह बताती हैं कि शुरू में उन्होंने अपना बिजनैस घर से ही शुरू किया था और घर में ही खाना तैयार कर के औनलाइन फूड डिलीवरी ऐप्प के द्वारा लोगों को खाना डिलीवर करते थे. आज दिल्ली/एनसीआर में उन के 5 आउटलेट्स हैं. अधिकांश सिस्टम औटोमेटिक और औनलाइन है. स्विगी, जोमैटो के साथ भोजन की डिलीवरी के लिए जुड़े हुए हैं.

अभी सालाना टर्नओवर लगभग 2 करोड़ प्रोजेक्टेड है और इस साल 15-16% प्रौफिट ऐक्सपेक्ट कर रहे हैं. अभी उन के पास कुल

28 स्टाफ है जिन में से 6 स्टाफ बैक औफिस में है और बाकी किचन में है.

जाहिर है आज काम काफी बढ़ चुका है. महिला होने की वजह से सिर्फ एक मुश्किल यह होती है कि वे सोर्सिंग में बहुत ज्यादा इन्वौल्व नहीं हो पाती हैं. रा मैटेरियल जैसे सब्जी, मसाले, अनाज आदि सोर्स करने होते हैं. मार्केट में कुछ नई चीज आई हो तो वह भी देखने जाना होता है. मगर ज्यादातर मंडियां बहुत क्राउडेड और इंटीरियर एरिया में होती हैं जहां महिलाएं बारबार नहीं जा पातीं.

वैसे भी दोनों होम मेकर हैं और साथ ही बच्चों का भी ध्यान रखना होता है. इस समस्या से निबटने के लिए उन्होंने सोर्सिंग मैनेजर और कई कर्मचारी रखे हैं जो इन चीजों में उन की काफी मदद करते हैं.

इस के अलावा कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा है.

जीएसटी और फाइनैंशियल इश्यूज

रैस्टोरैंट और क्लाउड किचन बिजनैस में 5% जीएसटी लगाया जाता है. अगर और्डर जोमैटो और स्विग्गी के जरीए आ रहा है तो एग्रीगेटर्स जीएसटी रिटर्न फाइल करेंगे. अगर वैबसाइट के माध्यम से और्डर आ रहा है तो क्लाउड किचन को 5% जीएसटी सरकार को जमा करना होगा. इस के अलावा कोई अप्रत्यक्ष कर शामिल नहीं हैं. यही कारण है कि हम देखते हैं कि क्लाउड किचन उद्योग में कोई कर विनियमन जटिलताएं नहीं हैं.

किस तरह की परेशानियां आ सकती हैं

– ऐग्रीगेटर के हाई कमीशन (करीब 30%) के कारण यह बहुत कम मार्जिन वाला व्यवसाय है. इसलिए रिटर्न की तुलना में तकनीकी खर्च बहुत अधिक है. ग्राहक से डायरैक्ट संपर्क का अभाव होता है. प्रतिक्रिया और समीक्षा के लिए ग्राहकों के साथ कोई सीधा संवाद नहीं. ऐग्रीगेटर्स कस्टमर का डायरैक्ट कौंटैक्ट नहीं देते.

– यही नहीं इस फील्ड में बहुत सारे ब्रैंड और कैटेगरीज आ गई हैं इसलिए बहुत प्रतियोगिता है. एक क्लाउड किचन का लिमिटेशन 6 से 7 किलोमीटर का होता है. इतनी दूरी में ही करीब 2-3 हजार रैस्टोरैंट्स हैं. लिमिटेड लोकेशन में

1000+ब्रैंड्स हैं. इस वजह से कस्टमर को बहुत से औप्शन मिलते हैं. ऐसे में आप को मार्केटिंग पर काफी खर्च करना होता है ताकि आप का रैस्टोरैंट ऊपर दिखे. बहुत से औफर देने पड़ते हैं. इस से प्रौफिट का काफी हिस्सा ऐसे ही चला जाता है.

– अधिकांश ब्रैंड संगठित नहीं हैं और भोजन और काम करने का तरीका और्गनाइज्ड नहीं है. रसोइया/स्टाफ कम सैलरी में अपनी नौकरी बदलते रहते हैं जिस से स्वाद को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है. न्यू स्टाफ को बारबार ट्रेंड करना पड़ता है. ट्रेंड होने के बाद वे कहीं और चले जाते हैं इस से हमारा लौस होता है. उपभोक्ता सेम नहीं होते हैं और बड़ी संख्या में ब्रैंडों के कारण वे भी बदलते रहते हैं. इसलिए विज्ञापन पर खर्च बहुत अधिक होता है.

-क्लाउड किचन के लिए कोई अलग सरकारी नीति नहीं है और उन्हें अभी भी डाइन इन रेस्तरां के रूप में माना जा रहा है जबकि दोनों बहुत अलग हैं. उन का कमीशन कम जाता है. प्रौफिट मार्जिन ज्यादा है जिस से पौलिसी उन के फेवर में चली जाती है.

ये परेशानियां सामान्य किस्म की हैं जो हर बिजनैस में किसी न किसी रूप में आती ही हैं. हर बिजनैस के अपने फायदे और नुकसान होते हैं. जहां तक क्लाउड किचन की बात है तो इस के कई फायदे भी हैं:

इस में कम इन्वैस्टमैंट में ज्यादा प्रौफिट

की अपेक्षा की जा सकती है. काम करना भी आसान होता है और आप घर संभालते हुए यह काम कर सकते हैं. अन्य पारंपरिक रेस्तरां और डाइनिंग की तुलना में क्लाउड किचन में मैटेरियल मैनेजमैंट कौस्ट, ओवरहेड कौस्ट, लेबर कौस्ट बहुत कम है. यहां केवल खाना बनता है और पैक हो कर डिलीवर हो जाता है, जिस से ज्यादा कर्मचारी नहीं रखने होते और साफसफाई में भी कम मेहनत लगती है.

शौक को बनाएं बिजनैस

क्लाउड किचन के लिए कम जगह की आवश्यकता होती है और इसे शहर के किसी भी हिस्से में स्थापित किया जा सकता है. महिलाएं घर से भी शुरुआत कर लेती हैं. आप को सिर्फ इस बात का खयाल रखना है कि आप का घर शहर के व्यवसायिक क्षेत्र में होना चाहिए. बाद में व्यवसाय बढ़ने पर अलग जगह ले सकते हैं.

लौंग टर्म प्रौफिट

आप यदि चाहें तो औफलाइन बाजार भी खोल सकते हैं जैसे कि किसी रैस्टोरैंट को रैगुलर सप्लाई करना, हौस्टल और कौरपोरेट औफिस तक रोज लगने वाले टिफिन की जरूरत को पूरा करना, पार्टियों के कैटरिंग और्डर लेना आदि. वहीं त्योहारों के समय कुछ खास तरह के पकवानों के और्डर ले सकते हैं.

भारत में क्लाउड किचन शुरू करने की प्रक्रिया

स्थान: आप के पास एक ऐसा स्थान ऐसा होना चाहिए जहां आप अपने द्वारा पेश किए जाने वाले फूड की बड़ी डिमांड की अपेक्षा कर सकें. साथ ही आप को उस स्थान पर व्यवसाय चलाने की सारी सुविधाएं भी मिलें.

लाइसेंस: बिना लाइसेंस के कोई भी व्यवसाय स्थापित करना असंभव है. क्लाउड किचन शुरू करने के पहले कुछ लाइसेंस की आवश्यकता होती है. इस में शामिल हैं:

– एफएसएसएआई लाइसेंस

– जीएसटी रजिस्ट्रेशन

– लेबर लाइसेंस

– फायर क्लीयरैंस

रसोई के उपकरण: हमें काम शुरू करने के लिए स्टोव, ओवन, माइक्रोवेव, डीप फ्रीजर, रैफ्रिजरेटर, चाकू जैसे रसोई के उपकरण जरूरत पड़ते हैं.

पैकेजिंग: खाना कितना भी स्वादिष्ठ या अच्छी तरह से पका हुआ क्यों न हो जब तक इसे अच्छी तरह से पैक नहीं किया जाता है यह बाजार में ज्यादा नहीं बिकता है. इसलिए आकर्षक पैकेजिंग भी जरूरी है.

औनलाइन कनैक्टिविटी: इंटरनैट और मोबाइल फोन की आवश्यकता होगी क्योंकि डिजिटल रूप से सक्रिय रहना होगा.

मार्केटिंग: आप को जोमैटो और स्विग्गी जैसी फूड वैबसाइटों के साथ रजिस्ट्रेशन करना आवश्यक होगा क्योंकि उन के पास लाखों ग्राहक हैं, जो अपना और्डर देते हैं.

कर्मचारी: रसोई के लिए स्टाफ सदस्य का चयन क्लाउड किचन की स्थापना में सब से महत्त्वपूर्ण पहलुओं में से एक है. आप को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे अच्छी तरह से प्रशिक्षित, कुशल स्टाफ हों जो आप के क्लाउड किचन के कामकाज को अच्छी तरह संभालने के लिए आवश्यक कौशल रखते हैं.

इस के बाद रा मैटेरियल, वेंडर्स और मैनपावर फाइनल किए जाते है. सारे लाइसेंस आते ही काम शुरू किया जा सकता है.

जब मरीज को देखने अस्पताल जाएं

हाल ही में उत्तराखंड के रुड़की के नारसन बौर्डर पर क्रिकेटर ऋषभ पंत भीषण कार हादसे का शिकार हुए और उन्हें देहरादून के मैक्स अस्पताल में भरती कराया गया. वहां कुछ दिनों तक उन का इलाज चला. इस दौरान ऋषभ पंत और उन के घर वाले इस वजह से परेशान रहे क्योंकि उन्हें मिलने के लिए लगातार लोग आते रहे. मिलने आने वालों की बढ़ती संख्या के कारण ऋषभ पंत आराम नहीं कर पा रहे थे.

दरअसल, ऋषभ पंत के घायल होने की सूचना से उन के फैंस चिंतित हो गए. प्रसिद्ध व्यक्ति होने के कारण कुछ खास लोगों के अलावा फैंस भी उन के स्वास्थ्य की जानकारी लेने के लिए अस्पताल पहुंचने लगे. खास लोगों में विधायक, मंत्रियों, अधिकारियों के साथसाथ कुछ फिल्म अभिनेता तक ने मैक्स अस्पताल पहुंच कर ऋषभ पंत का हालचाल जाना. आगंतुकों की इस भीड़ की वजह से घायल ऋषभ और उन के परिजन थोड़े असहज हो उठे.

ऋषभ पंत के परिजनों का कहना था कि लोग निर्धारित घंटों के बाद भी उन से मुलाकात करने आ रहे थे. पंत के स्वास्थ्य की देखभाल कर रही मैडिकल टीम के एक सदस्य का कहना था कि ऋषभ को आराम करने के लिए पर्याप्त समय मिलना आवश्यक है. शारीरिक के साथ मानसिक रूप से भी उन्हें आराम की जरूरत है. दुर्घटना में लगी चोटों के कारण वे दर्द में थे.

मिलने आने वाले लोगों से बात करने से उन की ऊर्जा खत्म हो जाती थी. इस ऊर्जा को उन्हें तेजी से ठीक होने के लिए उपयोग में लाना चाहिए. अंतत: डाक्टर को कहना पड़ा कि जो लोग उन से मिलने की योजना बना रहे हैं उन्हें अभी इस से बचना चाहिए. ऋषभ पंत को उन्हें आराम करने देना चाहिए.

एक अहम उद्देश्य अस्पताल में आने का समय सुबह 11 बजे से दोपहर 1 बजे तक और शाम 4 बजे से शाम 5 बजे तक था. इस समय सीमा में केवल एक विजिटर मरीज से मिल सकता है. ऋषभ पंत का मामला एक हाई प्रोफाइल मामला होने की वजह से काफी अधिक लोग मिलने आ रहे थे. इसलिए यह एक बड़ी समस्या बन गई.

सिर्फ प्रसिद्ध व्यक्ति ही नहीं अपना कोई परिचित या रिश्तेदार भी बीमार हो जाता है तो शिष्टाचारवश हम उस से मिलने, उस का हौसला बढ़ाने या उस की मदद करने अस्पताल पहुंच जाते हैं. कोविड-19 में जब लोगों का घरों से निकलना बंद था तो हम वीडियो कौलिंग पर एकदूसरे का हालचाल पूछ रहे थे. बीमार व्यक्ति से मिलने जाने का एक अहम उद्देश्य यह भी होता है कि बीमार को ऐसा नहीं लगे कि वह दुखदर्द में अकेला है. हम मुख्य रूप से उस की हिम्मत बढ़ाने और यह जताने के लिए जाते हैं कि वह अकेला नहीं और हम इस परेशानी के समय में उस के साथ हैं.

मगर मरीज के प्रति हमारी यह चिंता कभीकभी मरीज के लिए ही कठिन पड़ जाती है. इसलिए अस्पताल में किसी बीमार व्यक्ति से मिलने जाना हो तो हमें इन सामान्य ऐटिकेट्स का खयाल रखना चाहिए:

सही समय पर जाएं

जाने से पहले अस्पताल में मुलाकात का समय ज्ञात कर लें. प्रत्येक हौस्पिटल में मिलने का समय निर्धारित होता है. हमें उस नियम का हमेशा पालन करना चाहिए. सब से पहले हमें वार्ड बौय से मरीज से मिलने की अनुमति लेनी चाहिए. जो समय हमें दिया जाता है उसी समय में मरीज से मिलने जाना चाहिए. हमें डाक्टर के हौस्पिटल राउंड, मरीज के खाने के समय, हौस्पिटल सैनिटेशन या मरीज की साफसफाई के समय उस के पास जाने से बचना चाहिए.

पूरी कोशिश करें कि आप सही समय पर अस्पताल पहुंचें और उचित समय पर वहां से लौट सकें. गलत समय पर जाने से से न तो आप मरीज की मदद कर पाएंगे और न ही कोई बात हो पाएगी.

भीड़ न लगाएं

जहां तक संभव हो बीमार व्यक्ति के पास भीड़ न लगाएं. डाक्टर के विजिट का समय हो तो चुपचाप बाहर निकल आएं. परिजनों और डाक्टर को ही बीमार के पास रहने दें.

दूसरों का भी खयाल रखें

बीमार को ज्यादा बोलने के लिए न उकसाएं. हंसीमजाक कर के माहौल को हलका करने की गलतफहमी न रखें. अस्पताल में और भी मरीज होते हैं जो हो सकता है गंभीर स्थिति से जू?ा रहे हों. उन का भी खयाल रखें.

जब बीमार कोई महिला हो

यदि आप बीमार महिला से मिलने जा रहे हों तो विशेष ध्यान रखें. बिना पूछे हरगिज कमरे में प्रवेश न करें. बीमार के पास बहुत ज्यादा देर न बैठें. इलाज के दौरान कई तरह के मैडिकल उपकरण महिला की मदद को लगे होंगे जिन के कारण उन की स्थिति अस्तव्यस्त हो सकती है. ऐसे में हो सकता है कि वह महिला या उस के परिजन आप की उपस्थिति में कुछ असहज महसूस करें. इसलिए मदद के लिए भी जाना हो तो बस कुछ पल बैठें और बाहर आ जाएं. बाहर परिजनों से बात कर सकते हैं.

हौस्पिटल स्टाफ से सही व्यवहार करें

अस्पताल पहुंचने पर वहां के कर्मचारियों जैसेकि वार्ड बौय, नर्स, डाक्टर, वार्ड सिस्टर, रिसैप्शनिस्ट वगैरह सभी से अच्छा व्यवहार करना चाहिए क्योंकि अस्पताल में वे सब मरीज का खयाल रखते हैं. उन के काम में बाधा पहुंचाने की कोशिश कभी न करें. इलाज के बाद मरीज को लगाए गए उपकरणों के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ न करें. डाक्टर से फुजूल बात न करें. जानपहचान निकालने की कोशिश में उन का समय बरबाद न करें.

पेशैंट रूम को पिकनिकरूम न बनाएं

अकसर हम कई लोग मिल कर अस्पताल जाते हैं और अपने साथ मरीज के लिए फलाहार के साथसाथ और कई तरह की खानेपीने की चीजें भी ले जाते हैं. इस तरह एक तरह से हम पेशैंटरूम को पिकनिकरूम की तरह बनाने का इंतजाम कर लेते हैं. मगर हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि बीमारी सामान्य हो या गंभीर, ज्यादातर मामलों में मरीज को सब से अधिक नुकसान दूसरे लोगों से होने वाला इन्फैक्शन ही पहुंचाता है.

एक समय में एक से ज्यादा व्यक्ति मरीज से मिलने न जाएं. यदि खानेपीने के लिए मरीज को कुछ देना चाहते हैं तो पहले डाक्टर या डाइटीशियन से पूछ जरूर लें. बेहतर होगा कि आप मरीज के लिए नहीं बल्कि उस की तीमारदारी कर रहे परिजनों के लिए घर से कुछ बना कर चायनाश्ता आदि ले जाएं. उन्हें इस वक्त इन की जरूरत होगी.

साफसफाई का रखें ध्यान

मरीज से मिलने जाने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह साबुन या हैंडवाश से धो लें. सब से अधिक इन्फैक्शन बैक्टीरिया युक्त नाखूनों और हाथों से ही फैलते हैं. खुद को सैनिटाइज करने के बाद ही मिलने जाएं. बेहतर होगा कि मास्क भी पहन कर जाएं. इजाजत मिलने पर ही मरीज के करीब जाएं वरना परिजनों से बातचीत कर के ही हालचाल जान लेना बेहतर होगा.

नकारात्मक बातें न करें

अकसर कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के मरीजों से मिलने जाने पर लोग नकारात्मक बातें करने लग जाते हैं. मरीज के सामने बीमारी के खर्चे, जीनेमरने आदि की बातें करना गलत है. हम चिंता जताते हुए अचानक किसी ऐसे केस के बारे में बात कर जाते हैं जिस में कैंसर पीडि़त की मौत हो गई हो. जरा सोचिए उस समय कैंसर ग्रस्त मरीज पर क्या बीतती होगी.

किसी भी बीमारी से ग्रस्त मरीज के सामने हमेशा सकारात्मक और हौसला बढ़ाने वाली बातें ही करें. मरीज को आप के प्यार और प्रोत्साहन की जरूरत है, आप की सलाह और दिशानिर्देशों की नहीं. हमें यह जरूर खयाल रखना चाहिए कि वह व्यक्ति पहले से ही अपनी बीमारी से परेशान है. उसे और ज्यादा परेशान करने की जरूरत नहीं है.

अपने ज्ञान पर रखें कंट्रोल

मरीज की बीमारी के लिए किस तरह का इलाज किया जा रहा है इस बारे में बात करते हुए आप इलाज के और संभावित विकल्पों की बात कर सकते हैं, मगर कभी जरूरत से अधिक ज्ञान न बघारें. उसे किसी तरह की टैंशन न दें. अकसर हम इंटरनैट पर रोग के बारे में अधकचरा ज्ञान प्राप्त कर रोगी और डाक्टर के सामने अपना ज्ञान बघारते हैं. हमें इस से बचना चाहिए.

यह याद रखना चाहिए कि जिस बीमारी और इलाज के बारे में डाक्टर ने कई सालों तक पढ़ाई की है उन के सामने अपना ज्ञान बघारना गलत है. अपनी तरफ से किसी नुसखे या दवा की सलाह न दें. वैसे भी मरीज से अधिक बातें न करें इस से वह थकान अनुभव करती है.

जब लेना हो होम लोन

ह र किसी की तमन्ना होती है कि उस के पास भी अपना एक खूबसूरत घर हो मगर इस महंगाई के जमाने में अपने घर की चाहत पूरी करना आसान नहीं क्योंकि इंसान जितना कमाता है उतने खर्चे भी सिर उठाए चले आते हैं. ऐसे में होम लोन का औप्शन इस सपने को पूरा करने का एक अच्छा जरीया हो सकता है. तमाम बैंकों और वित्तीय संस्थाओं की ओर से होम लोन औफर किया जाता है. होम लोन के जरीए आप को मकान खरीदने के लिए एकमुश्त पैसा मिल जाता है जिसे आप को बाद में ईएमआई के रूप में चुकाना पड़ता है.

चाहे आप एक नया घर/जमीन खरीदना चाहते हों या एक नया घर बनाने वाले हों अथवा मौजूदा घर को रैनोवेट करने की योजना बना रहे हों तो आप होम लोन के औप्शन के बारे में सोच सकते हैं. बैंकों द्वारा पेश किए जाने वाले कुछ सब से लोकप्रिय होम लोन विकल्प हैं- प्लाट के लिए होम लोन, मौजूदा घर के नवीनीकरण और विस्तार के लिए होम लोन, निर्माणाधीन संपत्ति के लिए होम लोन, रैडी टू मूव इन प्रौपर्टी के लिए होम लोन, एनआरआई के लिए होम लोन आदि.

मगर याद रखें घर खरीदना आप के द्वारा किया जाने वाला जीवनभर का निवेश है और होम लोन लेते समय बहुत सावधानी की जरूरत होती है. एक छोटी सी गलती भी न केवल आप के सिबिल स्कोर बल्कि आप की बचत को भी प्रभावित कर सकती है.

होम लोन की पात्रता कैसे तय करते हैं

होम लोन की ऐलिजिबिलिटी क्रैडिट स्कोर, वेतन, आयु, लोकेशन, संपत्तियां, देनदारियां और इनकम की स्थिरता इत्यादि पर निर्भर होती है. आप को कितना लोन मिल सकता है उस की गणना करने के लिए हर बैंक की अपनी नीतियां होती हैं. मुख्य रूप से आवेदक की शुद्ध मासिक आय के आधार पर इस की गणना की जाती है.

अधिकतर बैंक प्रति माह आप की मौजूदा शुद्ध आय के 60 गुना तक की होम लोन राशि प्रदान करते हैं. माना कि आप की आयु 30 वर्ष है और मासिक वेतन क्व60 हजार है लेकिन आप को सारी कटौतियों के बाद क्व55 हजार मिलते हैं. इस स्थिति में क्व55 हजार आप की नैट मंथली इनकम होगी और इसी राशि के आधार पर आप का लोन मंजूर किया जाएगा.

अगर आप का शुद्ध मासिक वेतन क्व40 हजार है, तो आप मोटे तौर पर क्व24 लाख तक का होम लोन पा सकते हैं. इसी प्रकार अगर आप को हर महीने क्व35 हजार मिलते हैं तो आप लगभग क्व21 लाख तक पा सकते हैं.

बैंक आप के सिबिल (क्रैडिट) स्कोर और अन्य ईएमआई (यदि कोई हो) को भी ध्यान में रखते हैं.

क्रैडिट स्कोर मतलब जो आप कर्ज लेते हैं उसे कितनी फरर्ती के साथ लौटाते हैं. बिना किसी देरी किए और डिफाल्ट किए लोन लौटाने पर ही क्रैडिट स्कोर सुधरता है. यदि आप कम ब्याज दर पर अपनी पसंद की होम लोन राशि का लाभ उठाना चाहते हैं तो 750 या उस से अधिक का क्रैडिट स्कोर अच्छा माना जाता है. यदि आप का क्रैडिट स्कोर खराब है यानी यह 700 से नीचे चला जाता है तो बैंक या तो आप के होम लोन आवेदन को स्वीकार नहीं करेगा या फिर आप को ऊंची ब्याज दर पर होम लोन मिल सकता है. इसलिए आप अपने ऋणदाता से अपने क्रैडिट स्कोर के अनुसार होम लोन पर मिलने वाली न्यूनतम ब्याज दर के बारे में जरूर पूछ लें.

उदाहरण के लिए आप एक वेतनभोगी व्यक्ति हैं और क्व1 लाख प्रति माह कमाते हैं. आप क्व45 लाख रुपए के होम लोन के लिए आवेदन करना चाहते हैं. आप का क्रैडिट स्कोर 680 है. ऐसे में संभव है बैंक आप को होम लोन नहीं दे या फिर आप से 12 से 13% तक की ऊंची ब्याज दर वसूल सकता है.

दूसरी ओर आप का दोस्त जो क्व70 हजार प्रति माह कमाता है और 750 का क्रैडिट स्कोर है. वह क्व50 लाख के होम लोन के लिए आवेदन करना चाहता है. बैंक खुशीखुशी उसे 6 से 7% प्रति वर्ष की न्यूनतम ब्याज दर पर होम लोन देगा. आप के दोस्त को यह फायदा उस के बेहतर क्रैडिट स्कोर के कारण मिला है.

होम लोन की अवधि

आमतौर पर अधिकांश होम लोन ऋणदाता 1 से 30 वर्ष की अवधि के लिए लोन प्रदान करते हैं. हालांकि आप की आय, उम्र और वित्तीय स्थिति के अनुसार होम लोन की इस अवधि में बदलाव किया जा सकता है.

वैसे इस मामले में एक बड़ा फैसला आप का होता है. आप के होम लोन की ईएमआई पूरी तरह से आप के द्वारा चुनी गई अवधि पर निर्भर करती है. यदि आप लंबी अवधि चुनते हैं तो आप की ईएमआई की राशि कम होगी और यदि आप छोटी अवधि का चयन करते हैं तो आप को अधिक ईएमआई राशि का भुगतान करना होगा. इस में ईएमआई का बो?ा अधिक होगा, लेकिन इस का फायदा यह है कि आप का लोन तेजी से खत्म हो जाता है.

होम लोन के लिए आवेदन करने हेतु कुछ खास दस्तावेजों की आवश्यकता होती है.

बैंक आप से आप के खरीदे जाने वाले घर के सभी लीगल पेपर्स मांगता है. कुछ सामान्य दस्तावेज हैं जैसे सेल डीड, एनओसी आदि. इस के अलावा केवाईसी दस्तावेज जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी कार्ड आदि जो होम लोन के लिए आवेदन करने वाले किसी भी व्यक्ति को प्रदान करने होंगे. प्रौपर्टी के कागजात भी साथ रखें. इन के अलावा नौकरी और बिजनैस करने वाले व्यक्तियों को उन के काम के आधार पर कुछ खास दस्तावेजों को देने की आवश्यकता होती है.

उदाहरण के लिए यदि आप कहीं नौकरी करते हैं और आप को निश्चित वेतन मिलता है तो आप को अपने कुछ कागजात सबमिट करने होंगे जैसे पिछले 3 महीनों की सैलरी स्लिप,

पिछले 6 महीनों का बैंक खाता विवरण फौर्म 16 आईटीआर आदि.

यदि आप का अपना बिजनैस है तो आप को निम्न चीजें दिखानी होंगी:

पू्रफ औफ बिजनैस ऐक्सिस्टैंस (पार्टनरशिप डीड, जीएसटी रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट आदि) प्रौफिट ऐंड लौस अकाउंट स्टेटमैंट बैलेंस शीट पिछले 6 महीनों का बैंक खाता विवरण.

आप को अपने फोटो के साथ भरा हुआ एक ऐप्लिकेशन फौर्म सबमिट करना होता है. लोन एप्लीकेशन फौर्म के साथ जरूरी डौक्यूमैंट्स की चैकलिस्ट भी लगी होती है. याद रखें कि अधूरे या गलत दस्तावेज जमा करने से आप का होम लोन आवेदन खारिज हो सकता है. अपने होम लोन लैंडर को कागजात सबमिट करने से पहले उन्हें 2 बार क्रौस चैक करना चाहिए.

लोन के लिए अप्लाई करते समय कुछ बातों का रखें खयाल:

डिस्काउंट और औफर

फैस्टिव सीजन में कई बैंक लोन पर तमाम डिस्काउंट और औफर्स ले कर आते हैं. लेकिन सिर्फ आकर्षक औफर्स देख कर ही प्रभावित न हों. पहले उस औफर के बारे में सबकुछ अच्छी तरह से पता कर लें. जल्दबाजी में कोई भी फैसला लेना आप को मुश्किल में डाल सकता है.

अनुभवी लोगों की मदद लें

जब भी आप लोन लेने जाएं तो किसी अनुभवी व्यक्ति को साथ जरूर ले कर जाएं. ऐसा व्यक्ति जो आप से पहले होम लोन ले चुका हो. उस व्यक्ति को लोन से जुड़ी सही और गलत चीजों के बारे में अंदाजा हो जाता है. लोन कितना होगा, कितने समय के लिए होगा, लोन लेते समय कोई हिडन चार्ज तो नहीं है, इन सभी बातों के बारे में आप को उस से जानकारी मिल सकती है.

ब्याज की तुलना करें

जब भी आप लोन लेने के लिए जाएं तो एक बार तमाम बैंकों के ब्याज का पता कर लें और आपस में ब्याज की तुलना करें. इस से आप को यह पता चल जाएगा कि लोन का ब्याज किस बैंक में कम है. यह जानकारी आप को बैंक में जा कर, कौल के जरीए या बैंक की वैबसाइट से हो जाएगी. लोन लेते वक्त ही ब्याज दर को हर ऐंगल से सम?ा लें तभी लोन का पैसा लें.

ईएमआई के बारे में सम?ों

लोन लेते समय यह सुनिश्चित करें कि आप की ईएमआई कितनी होगी. ध्यान रहे कि ईएमआई कम करने के चक्कर में ज्यादा ब्याज न दें और इतनी ज्यादा ईएमआई भी न बनवा लें कि आप आगे चल कर भर ही न पाएं.

फोर्स क्लोजिंग चार्ज

अगर आप होम लोन 20 सालों के लिए लेते हैं और अचानक आप के पास कहीं से बीच में ही पैसों का जुगाड़ हो जाता है और आप उस पैसे को भर कर लोन को समय से पहले ही बंद करवाना चाहते हैं तो आप को प्रिंसिपल अमाउंट यानी बचे हुए अमाउंट पर कितना फोर्स क्लोजिंग चार्ज देना होगा इस के बारे में पहले से पता कर लें.

बीमा कवर

अगर आप होम लोन ले रहे हैं तो आप को बीमा कवर जरूर लेना चाहिए. यह वास्तव में किसी आपात स्थिति में आप के परिजनों को बेघर होने से बचा सकता है. इस के साथ ही आप के साथ किसी दुर्घटना की स्थिति में आप के होम लोन की मासिक किस्त भी माफ हो जाती है.

हिडन कौस्ट भी देख लें

लोन में कई तरह की हिडन कौस्ट होती है जो पहले नहीं बताई जातीं. बाद में जब पता चलता है तब तक देर हो चुकी होती है. इस में आप को लीगल फीस, टैक्निकल वैल्यूएशन चार्जेज, फ्रेंकिंग फीस, डौक्यूमैंटेशन फीस, नोटरी फीस, लोन प्रीपेमैंट फीस आदि शामिल हो सकती हैं. ये फीस आप को भारी पड़ सकती हैं.

टर्म और कंडीशन को जरूर पढ़ें

लोन लोन लेने से पहले ‘शर्तें लागू’ वाले कौलम को ठीक से पढ़ लें. कहीं ऐसा न हो कि बैंक की टर्म एंड कंडीशन आप के मुताबिक न हों और आप लोन ले कर फंस जाएं. लोन लेने के बाद कोई भूल सुधार का मौका नहीं मिलता. इस से अच्छा यही होगा कि सभी नियम और शर्तें पहले ही जान लें.

व्हाइट गोल्ड और डायमंड के ये है फायदे

गहनों की अगर बात की जाए, तो हमारा ध्यान सोने, चांदी, हीरे, मोती और अन्य आर्टिफिशियल गहनों की ओर जाता है. उस में भी कुछ शौकीन लोगों का रुझान सोने और हीरों के गहने की ओर ज्यादा होता है. लेकिन सिर्फ सोने की अगर बात करें, तो चमचमाता सुनहरा पीला रंग आंखों के आगे आता है. जबकि मजेदार बात यह है कि सिर्फ सोने के गहनों की ही चाहत रखने वालों को मार्केट में सफेद सोना भी मिलता है.

जी हां, चमचमाते पीले सोने जैसे ही सफेद सोने के गहने भी आप को मार्केट में आसानी से मिल जाएंगे. सफेद सोना चांदी, निकल, पैलेडियम, प्लैटिनम, मैगनीज और रेडियम धातुओं के मिश्रण से बनाया जाता है और इन धातुओं के मिश्रण से पीले सोने का रंग सफेद नजर आने लगता है.

आइए जानते हैं कि सफेद सोने की कौनकौन सी चीजें बाजार में उपलब्ध हैं और हम कैसे उन का इस्तेमाल कर सकते हैं.

– आप सफेद कपड़ों पर सफेद सोने की डिजाइनर, प्लेन या हीरेजडि़त चूडि़यां और अंगूठी, चेन व डिजाइनर पेंडैंट पहन सकती हैं.

– सफेद सोने का नैकलैस, मंगलसूत्र, बिछुए, बाजूबंद और ब्रेसलेट भी आप बनवा सकती हैं.

– सोने के पीले और सफेद रंग के कौंबिनेशन वाले गहने भी मिल जाएंगे.

– आजकल तो व्हाइट गोल्ड प्लेटेड कार भी मार्केट में है.

– कुछ साइकिल निर्माताओं ने तो व्हाइट गोल्ड प्लेटेड और पीले व सफेद गोल्ड के कौंबिनेशन वाली गोल्ड प्लेटेड साइकिल भी बनाई है.

– कुछ शौकीनों ने तो जूते और चप्पलों पर भी व्हाइट गोल्ड का इस्तेमाल किया है.

– आप अगर व्हाइट गोल्ड की शौकीन हैं, तो आप व्हाइट गोल्ड की घड़ी भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

– आजकल तो व्हाइट गोल्ड कवर और बौर्डर वाले मोबाइल फोन भी उपलब्ध हैं.

– सफेद सोने के साथ चमचमाते सफेद हीरे भी आप फैशन के रूप में इस्तेमाल कर सकती हैं. यानी गहनों का सोना तो सफेद होगा ही, उस में जड़ा हीरा भी सफेद होगा.

– हीरे के गहनों में अंगूठी, कान के टौप्स, नैकलैस व चूडि़यों आदि की बहुत ज्यादा मांग होती है.

– घडि़यां भी हीरों से डिजाइन की जाती हैं.

– कुछ शौकीन लोग कपड़ों पर भी सफेद सोने के बारीक तार और हीरों की ऐंब्रौयडरी कराते हैं.

– व्हाइट गोल्ड की चेन, नैकलैस और मंगलसूत्र में भी आप हीरेजडि़त पेंडैंट इस्तेमाल कर सकती हैं.

– सफेद सोने की हीरेजडि़त पायल भी आप पहन सकती हैं.

ब्यूटी प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल

ये तो हुई बाहरी सुंदरता बढ़ाने वाले गहनों की बात, लेकिन पीले सोने की तरह ही सफेद सोने और हीरे का भी ब्यूटी प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल किया जाता है. आइए जानते हैं उन प्रोडक्ट्स में खूबियां कैसी होती हैं:

– सफेद सोना या हीरामिश्रित ब्यूटी प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल से त्वचा का रक्तसंचार बढ़ता है, जिस से त्वचा तरोताजा और चमकदार नजर आने लगती है.

– सफेद सोना और हीरामिश्रित क्रीम और मौइश्चराइजर लगाने से त्वचा की गुणवत्ता में सुधार आता है और त्वचा की इम्यूनिटी बढ़ती है.

सफेद सोने का फेशियल यानी व्हाइट गोल्ड

फेशियल और हीरे का फेशियल करने से त्वचा की रोगप्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है और त्वचा का बेजान व निस्तेज होना व कालापन दूर होता है. साथ ही रूखी, रफ और खराब त्वचा स्वस्थ होती है.

व्हाइट गोल्ड पैक और डायमंड पैक से मुंहासों और त्वचा के दाग दूर होते हैं, त्वचा में कसाव आता है और त्वचा पर आ गई महीन रेखाएं दूर होती हैं. त्वचा लोचदार और नम नजर आती है. ऐसा त्वचा का रूखापन दूर होने से होता है.

व्हाइट गोल्ड और डायमंड पैक से त्वचा पर स्थित ब्लैकहैड्स और व्हाइटहैड्स दूर होते हैं और त्वचा निखरीनिखरी, चमकदार और तरोताजा नजर आती है.

व्हाइट गोल्ड और डायमंड के ब्यूटी प्रोडक्ट्स ये हैं:

– डायमंड ऐंड व्हाइट गोल्ड पील औफ मास्क.

– बी बी क्रीम.

– नेलपौलिश.

– शैंपू.

– क्रीम, मौइश्चराइजर.

– स्किन स्क्रबर.

– डायमंड ग्लोइंग फेसपैक.

आप इन में से किसी भी ब्यूटी प्रोडक्ट का इस्तेमाल कर अपनी त्वचा की सुंदरता में निखार ला सकती हैं.

डिजाइनिंग का तरीका

– हीराजडि़त पेन में पेन के ऊपरी हिस्से पर हीरे का डिजाइनर टौप होता है.

– मोबाइल फोन के चारों ओर व्हाइट गोल्ड प्लेटेड बौर्डर होता है और उस पर हीरे जड़े होते हैं.

– व्हाइट गोल्ड और हीरे की घडि़यों में घड़ी व्हाइट गोल्ड की बनी होती है, जिस में 1 से 12 तक के अंकों की जगह हीरे जड़े होते हैं.

डायमंड फेशियल

इस के लिए सब से पहले डायमंड रिहाइड्रेटिंग क्लींजर लगा कर कौटन से त्वचा पोंछ लें. इस से त्वचा पर स्थित मृत त्वचा निकल जाती है. फिर उचित मात्रा में डायमंड मसाज जैल ले कर 20 मिनट तक चेहरे की मसाज करें. फिर डायमंड ग्लोइंग मास्क की मोटी परत चेहरे पर लगाएं और 10-15 मिनट सूखने दें. फिर साफ पानी से चेहरा धो दें. उस के बाद उचित मात्रा में बौडी केयर 24 कैरेट डायमंड स्किन सीरम त्वचा पर लगाएं और कुछ मिनट बाद चेहरा पोंछ दें.

आप यह उपाय घर में कर सकती हैं, लेकिन इस में लगने वाले प्रोडक्ट्स को देखते हुए इस के लिए सौंदर्य विशेषज्ञ के पास जाना ही ज्यादा फायदेमंद साबित होगा.

मच्छर भगाइए बिना ‘ऑल आउट’ के

मौसम एक ओर जहां अपने साथ नई ताजगी लेकर आता है वहीं दूसरी ओर ढ़ेर सारी बीमारियां भी. ये मौसम मच्छरों के प्रजनन का होता है.

आप लाख दरवाजे और खिड़कियां बंद कर लीजिए लेकिन डेंगू, मलेरिया और जीका जैसी जानलेवा बीमारियों को फैलाने वाले ये मच्छर कहीं न कहीं से घर में घुस ही जाते हैं. इन मच्छरों को भगाने के लिए हम हर महीने सैकड़ों रुपए के कॉयल और लिक्व‍िड वेपराइजर खरीदते हैं. लेकिन फायदा कुछ नहीं होता. न तो मच्छर भागते हैं और न ही मरते हैं. वे कमरे में ही किसी कोने में छिप जाते हैं.

जैसे ही कॉयल खत्म होता है, वे कोने से बाहर निकल आते हैं और अपने नुकीले एंटीना चुभाना शुरू कर देते हैं. एक ओर जहां ये केमिकल बेस्ड प्रोडक्ट काफी महंगे होते हैं वहीं ये बहुत प्रभावी भी नहीं होते. साथ ही इनसे निकलने वाले धुंए का बुरा असर हमारी सेहत पर भी पड़ता है. लेकिन आप चाहें तो घरेलू और नेचुरल तरीके से भी मच्छरों से राहत पा सकते हैं.

जॉन्सन बेबी क्रीम

अगर आपको ये पढ़कर हंसी आ रही है तो आपको बता दें कि ये कोई मजाक नहीं है. जॉन्सन बेबी क्रीम लगाकर आप मच्छरों से राहत पा सकते हैं.

नीम और लैवेंडर का तेल

नीम का तेल तो मच्छरों से छुटकारा पाने का सबसे अच्छा उपाय है. विशेषज्ञों की मानें तो नीम का तेल किसी भी कॉयल और वेपराइजर की तुलना में दस गुना ज्यादा इफेक्ट‍िव होता है. नीम के तेल में एंटी-फंगल, एंटी-वायरल और एंटी-बैक्टीरियल गुण पाया जाता है. आप चाहें तो नीम के तेल को लैवेंडर ऑयल के साथ मिलाकर भी लगा सकते हैं.

नींबू और लौंग

एक नींबू को बीच से काट लें और उसमें कुछ लौंग धंसा दें. इस नींबू को उस जगह पर रख दें जहां मच्छरों के होने की आशंका सबसे अधिक हो. इस उपाय को करने से मक्खियां भी दूर रहती हैं.

तुलसी

अपने घर में तुलसी का एक पौधा लगा लें. तुलसी कई बीमारियों में फायदेमंद है. इसके साथ ही ये मच्छरों को दूर रखने में भी मददगार है. इसकी गंध से मच्छर घर से दूर ही रहते हैं.

लहसुन

लहसुन की 5 से 6 कलियों को कूट लें. इसे एक कप पानी में मिलाकर कुछ देर के लिए उबाल लें. इस पानी को एक स्प्रे बॉटल में भरकर घर के अलग-अलग कोनों में छिड़क दें. इसकी गंध से भी मच्छर दूर ही रहेंगे.

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