नीला आकाश -भाग 2 : क्या नीला दूसरी शादी के लिए तैयार हो पाई?

नीला एकदम से विफर पड़ी क्योंकि एक तो वैसे ही वह थकीमांदी घर आई थी उस पर अपनी मां का परायापन व्यवहार देख कर उस का मन रोने को हो आया. ‘अरे, तो क्या हो गया जो जरा इन्हें यहां आना पड़ गया? आखिर रुद्र भी तो इन का कुछ लगता है कि नहीं? एक बार यह भी नहीं पूछा कि तूने खाना खाया या नहीं? बस लगीं सुनाने. अपने पोतेपोतियों के पीछे पूरा दिन भागती फिरती हैं. कौरेकौर खाना खिलाती हैं उन्हें, तब थकान नहीं होती इन्हें.

लेकिन जरा सा रुद्र को क्या देखना पड़ गया, ताकत ही खत्म हो गई इन की. अरे, यह क्यों नहीं कहतीं कि रुद्र इन के आंखों को खटकता है. देखना ही नहीं चाहतीं ये मेरे बच्चे को,’ मन में सोच नीला कड़वाहट से भर उठी. ‘‘अच्छा ठीक है भई, जो तुम्हें ठीक लगे करो, मुझे क्या है,’’ नीला के मनोभाव को पढ़ते हुए मालती सफाई देते हुए बोलीं, ‘‘मैं तो तुम्हारे भले के लिए ही बोल रही हूं न. वैसे महेश का फोन आया था क्या?’’ मालती की बात पर नीला सिर्फ ‘हूं’ में जवाब दे कर लाइट औफ करने ही लगी कि मालती फिर बोल पड़ीं, ‘‘महेश की मां कह रही थी कि तुम दोनों की शादी जितनी जल्दी हो जाए अच्छा है और मैं भी तो यही चाहती हूं कि मेरे जीतेजी फिर से तुम्हारा घर बस जाए.

अरे, मेरा क्या भरोसा कब अपनी आंखें मूंद लूं,’’ भावनाओं का जाल बिछाते हुए मालती रोने का नाटक करने लगीं ताकि नीला ?ाट से उस महेश से शादी के लिए हां बोल दे. मगर नीला अपनी मां की सारी नौटंकी सम?ाती थी. आखिर, बचपन से जो देखती आई थी. ‘‘अच्छा ठीक है मां, अब मु?ो सोने दो सुबह बात करेंगे,’’ बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से पर नियंत्रण रख नीला ने अपनी आंखें बंद कर लीं और सोचने लगी कि उस का कहां मन होता है अपने मासूम बच्चे को यों किसी और के भरोसे छोड़ कर जाने का? लेकिन जाना पड़ता है क्योंकि अगर पैसे नहीं कमाएगी तो रुद्र को कैसे पालेगी.

लेकिन मालती तो ‘शादी कर लो शादी कर लो’ बोलबोल कर उस की जान खाए रहती हैं. मगर यह नहीं सम?ातीं कि वह महेश सिर्फ नीला के पैसों की खातिर उस से विवाह करना चाहता है. तभी तो शादी करने के लिए इतना पगला रहा है वह और मालती तो इसलिए नीला की शादी के लिए परेशान हैं ताकि उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्ति मिल जाए. लेकिन वह कौन सा मालती की छाती पर मूंग दल रही है? अरे, अपना कमा खा रही है. इस में भी लोगों को परेशानी है? अपने माथे पर हाथ मारते हुए आंखों से 2 बूंद आंसू टपका कर मालती फिर शुरू हो गईं, ‘‘जो आज मु?ो यह सब देखना पड़ रहा है इस से तो अच्छा होता मैं तुम्हारे बाबूजी के साथ ही ऊपर चली जाती. उधर मेरे बेटेबहू मुझे ?छिडकते रहते हैं और इधर तुम हो कि मेरी कोई बात नहीं समझाती. अरी, महेश जैसा नेक दिल इंसान तुम से शादी करने को राजी हो गया वरना एक विधवा और 1 बच्चे की मां से भला कौन शादी करना चाहेगा?’’ मालती की बात से नीला का मन कसैला हो गया.

मन तो किया बोल दे कि तो कौन मरा जा रहा है उस महेश से शादी करने के लिए और कहने को तो वह भी रंडवा है. लेकिन मर्दों के लिए कौन ऐसी बातें करता है? एक औरत मर जाए, तो मर्द बेचारा कहलाता है. लेकिन वहीं एक पति के मरने पर यही समाज औरत पर क्याक्या जुल्म नहीं ढाता है. उस के खाने, पहनने, हंसने, बोलने से ले कर हर चीज पर पहरा बैठा दिया जाता है क्योंकि वह एक विधवा है. आखिर स्त्रीपुरुष में इतना भेद क्यों है? किस ने बनाए हैं ये नियम जो सदियों से चले आ रहे हैं? लेकिन नीला के इन प्रश्नों के उत्तर देने वाला कोई नहीं था. नीला को तो वैसे भी इस महेश से विवाह करने की कोई इच्छा नहीं थी. वह तो केवल अपनी मांभाई के दबाव में आ कर उस से विवाह करने को राजी हुई थी. लेकिन जब उस महेश ने यह शर्त रखी कि वह रुद्र को नहीं अपनाएगा. तभी नीला ने सोच लिया कि वह महेश से विवाह कभी नहीं करेगी.

लेकिन मालती उस के पीछे पड़ी हैं कि वह रुद्र को उस की दादी के पास छोड़ कर महेश से विवाह कर ले क्योंकि फिर इतना अच्छा लड़का नहीं मिलेगा उसे. मगर एक मां के लिए अपने बच्चे को खुद से दूर करना कितनी बड़ी सजा है यह लोग नहीं समझते. अपने बेटे को सीने से लगा कर नीला देर तक सुबकती रही और फिर पता नहीं कब उसे नींद आ गई. सुबह फिर मालती वही राग अलापने लगीं, तो नीला मन ही मन चिढ़ उठी और एक नफरत भरी नजर अपनी मां पर डालते हुए रुद्र को वहां से ले कर दूसरे कमरे में चली आई. जब देखा मालती ने कि उस की बातों का नीला पर कोई असर नहीं हुआ तो वे अपनी साड़ी का पल्लू समेटे वहां से बड़बड़ाती हुई अपने घर चली गईं.

अपनी मां के व्यवहार से दुखी नीला की आंखें रो पड़ीं. सोचने लगी कि कैसे एकाएक उस की हंसतीखेलती जिंदगी वीरान बन गई. कभी नहीं सोचा था उस ने कि एक दिन आकाश उसे छोड़ कर चला जाएगा. अपने बहते आंसू पोंछ वह 5 साल पीछे चली गई… नीला कालेज से अभी थोड़ी दूर निकली ही थी कि अचानक… नहीं अचानक से कहां बल्कि सुबह से ही मेघराजा बरसने को व्याकुल हो रहे थे और जैसे ही मौका मिला बरस पड़े.

मिसाल बन रहीं अविवाहित मांएं

हिना परवीन फ्रीलांस रिपोर्टर हैं. उच्च शिक्षा प्राप्त हैं और कमाई भी अच्छी है. इंगलिश अखबारों में लिखती हैं. हिना अपने मातापिता की इकलौती संतान हैं. जब उन के अब्बू का इंतकाल हुआ तो अम्मी अकेली न रहे, इस सोच में हिना ने शादी नहीं की. उन की अम्मी अत्यधिक मोटापे और शुगर की मरीज थीं. स्वयं कुछ कर नहीं पाती थीं. हिना ही उन के सारे काम करती थीं. उन की दवा का ख्याल रखती और वक्तवक्त पर डाक्टरी चैकअप करवाती थीं.

ऐसा नहीं था कि हिना निकाह नहीं करना चाहती थीं. बल्कि मसूद अहमद से उन के प्रेम संबंध कालेज के समय से थे. पर मसूद चाहते थे कि हिना निकाह के बाद उन के घर पर उन के परिवार के साथ रहें. लेकिन हिना अपनी असहाय और बीमार अम्मी को अकेला कैसे छोड़ देती? लिहाजा कुछ साल बाद मसूद ने अपने परिजनों की इच्छा को देखते हुए दूसरी लड़की से निकाह कर लिया.

वक्त गुजरता गया. आज हिना अपनी उम्र के 52वें पायदान पर हैं. अम्मी का इंतकाल हो चुका है. एक बड़ा घर, अच्छा बैंक बैलेंस होने के साथसाथ अम्मी के दिए हुए जेवर हिना के पास हैं. किसी चीज की कमी नहीं है मगर एक चीज जो उन्हें सालती थी वह किसी बच्चे का प्यार. हिना को बच्चों से हमेशा प्यार रहा. उम्र बढ़ने के साथ जब बच्चे की ललक बढ़ने लगी तो उन्होंने ‘कारा’ में बच्चा अडौप्ट करने के लिए फौर्म भर दिया. 4 साल के इंतजार के बाद अंतत: हिना को 8 वर्षीय प्रिया को गोद लेने का मौका मिला.

गजब का बदलाव

प्रिया को गोद लेने के बाद हिना की जिंदगी में गजब का बदलाव आ गया. अब उन के सामने एक लक्ष्य है अपनी बेटी को अच्छी परवरिश देने का, उसे अच्छी शिक्षा दिलाने और उस के लाइफ में सैटल करने का. प्रिया के रूप में अब हिना को अपने घरजायदाद का वारिस भी मिल गया है.

अम्मी के मरने के बाद हिना बहुत अकेली हो गई थीं. कई बार अवसादग्रस्त हो जाती थीं. मैडिटेशन सैंटर्स के चक्कर लगाती थीं. मगर प्रिया को पाने के बाद वे खुद में बहुत ताजगी और स्फूर्ति पाती हैं.

प्रिया के साथ वे बहुत खुश हैं. सुबह जल्दी उठती हैं. बेटी को स्कूल के लिए रैडी करती हैं. अपने और उस के लिए ब्रेकफास्ट बनाती हैं. उस का लंच पैक कर के बैग में रखती हैं. फिर कार से उसे स्कूल छोड़ने जाती हैं. पहले हिना के लिए अकेले घर में जो समय काटे नहीं कटता था अब प्रिया के इर्दगिर्द जल्दी बीत जाता है. हर संडे मांबेटी शौपिंग करने जाती हैं, रेस्तरां में लंच करती हैं और जीवन को पूरी मस्ती में जी रही हैं, बिना यह सोचे कि दुनिया उन के बारे में क्या राय रखती है.

शिक्षा, आर्थिक मजबूती, टूटते पारिवारिक बंधन, घर से दूर नौकरी और नई तकनीकों ने आज औरत को यह आजादी दी है कि वह चाहे तो बिना शादी किए किसी मनचाहे पुरुष के साथ सैक्स कर के अथवा बिना किसी पुरुष के संसर्ग के आईवीएफ तकनीक से या किसी अनाथाश्रम से बच्चा गोद ले कर मां बन सकती है. इस पर कानून ने भी अपनी पूर्ण सहमति दे दी है कि बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र पर अब पिता का नाम होना आवश्यक नहीं है. न ही स्कूल में एडमिशन के वक्त महिला से पूछा जाएगा कि बच्चे का बाप कौन है?

मिसाल हैं नीना गुप्ता

अनब्याही मां की बात उठी है तो फिल्म अभिनेत्री नीना गुप्ता का किस्सा याद होगा. नीना का वेस्टइंडीज के मशहूर क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स से अफेयर था. दोनों के बीच शारीरिक संबंध थे, जिस के चलते नीना प्रैगनैंट हुई थीं. हालांकि वे जानती थीं कि विवियन रिचर्ड्स उन से शादी नहीं करेंगे क्योंकि वे पहले से शादीशुदा और बच्चों वाले थे, फिर भी नीना ने गर्भ नहीं गिराया और वे विवियन की बच्ची की अनब्याही मां बनीं.

उन्होंने अपनी बच्ची को अपने ही दम पर पाला और उन की बेटी मसाबा आज एक मशहूर फैशन डिजाइनर है. हालांकि बहुत बाद में नीना गुप्ता ने एक इंटरव्यू में कहा था कि किसी स्त्री को अकेले मां बनने का चुनाव नहीं करना चाहिए. यह बहुत कठिन है.

ऐसा नीना ने इसलिए कहा क्योंकि उस समय माहौल अलग था. समाज की सोच दकियानूसी, परंपरावादी और औरत की पवित्रता को उस के कुंआरेपन से आंकने वाली थी. हालांकि फिल्मी दुनिया में औरतों को ले कर काफी खुलापन था मगर उस वक्त शादीशुदा पुरुष कलाकार भी अपनी शादी की बात छिपा कर फिल्मों में काम करते थे क्योंकि शादीशुदा होने की बात सामने आने पर फिल्में नहीं मिलती थीं. ऐसे में फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्रियों को बच्चे तो छोडि़ए, अपने संबंधों तक को छिपाना पड़ता था.

वे अपने बौयफ्रैंड के बारे में किसी को नहीं बताती थीं. यही नहीं, वे फिल्मी पत्रिकाओं में अकसर अपने कुंआरे होने की घोषणाएं भी करती रहती थीं. उन्हें बताया जाता था कि इस से उन की फिल्में चलेंगी.

लेकिन अब ऐसा नहीं है. समाज की सोच और व्यवहार में काफी बदलाव आ चुका है. आज बौलीवुड की अधिकांश अभिनेत्रियां विवाहित हैं. कई तो बच्चों वाली हैं और उन की फिल्में सफल भी होती हैं.

समाज का डर

नैटफ्लिक्स पर आने वाली ‘मेड’ सीरीज सिंगल मदर की कठिनाइयों को बताती है. इस की कहानी अविवाहित युवा मां पर केंद्रित है जो एक अपमानजनक रिश्ते से बच जाती है और घरों की साफसफाई का काम कर के अपनी बेटी का भरणपोषण करने के लिए संघर्ष करती है. इस सीरीज में किसी स्त्री ने अपने बच्चों को त्यागा नहीं, न ही समाज के डर से उन्हें छिपाया.

उन्होंने खुद के लिए और अपने बच्चों के लिए सम्मानजनक स्थान पाने के लिए संघर्ष किया और अंतत: समाज ने उन्हें स्वीकार कर लिया. हमारे धार्मिक ग्रंथों में अनब्याही मां के रूप में कुंती का उदाहरण मिलता है, मगर कुंती ने कर्ण को त्याग दिया था, जिस के लिए कर्ण ने कभी कुंती को माफ नहीं किया.

आज महिलाओं के सामने स्थितियां भिन्न हैं. आज काफी पढ़ीलिखी महिलाएं धर्म, समाज और परिवार द्वारा पैदा की जाने वाली परेशानियों, तनावों और मनोस्थिति से बाहर निकल आई हैं. कुछ साल पहले राजस्थान की एक आईएएस अधिकारी आईवीएफ तकनीक की मदद से मां बनीं.

उन्होंने अपने मातापिता की देखभाल के लिए विवाह नहीं किया. शादी की उम्र निकल गई. लेकिन मां बनने की इच्छा उन्होंने इस तरह से पूरी की.

इसी तरह हाल ही में मध्य प्रदेश की एक मशहूर रेडियो कलाकार भी अविवाहित मां बनी हैं. अभिनेत्री सुष्मिता सेन, एकता कपूर, रवीना टंडन आदि फिल्मी हस्तियों ने अविवाहित रहते हुए भी बच्चों को गोद लिया, उन्हें पाला और उन को अपना नाम दिया है.

अधिकार में कोई फर्क नहीं

वक्त बदलता है तो नैतिकता के चले आ रहे मानदंडों को भी उसी हिसाब से बदलना पड़ता है. हमारे यहां कानून ने अब स्त्री को मां बनने के चुनाव की आजादी दे दी है. वह अविवाहित है, विवाहित है, अकेली है, इस से एक औरत के मां बनने के अधिकार में कोई फर्क नहीं पड़ता. यहां तक कि अब स्कूलों में भी बच्चे के पिता का नाम बताना जरूरी नहीं है.

6 जुलाई, 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे पर मां के नैसर्गिक हक पर मुहर लगाते हुए अविवाहित मां को कानूनी पहचान प्रदान कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि अविवाहित मां को बच्चे का संरक्षक बनने के लिए पिता से मंजूरी लेना जरूरी नहीं. इतना ही नहीं कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर कोई अविवाहित या अकेली रह रही मां बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करती है तो सिर्फ एक हलफनामा देने पर उसे उस के बच्चे का जन्म प्रमाणपत्र जारी किया जाएगा.

एक केस की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे बच्चों के जन्म प्रमाणपत्र हासिल करने में आने वाली दिक्कतों पर विचार करते हुए यह फैसला दिया था. कोर्ट ने कहा कि अभी तक  याचिकाकर्ता मां को अपने 5 साल के बच्चे का जन्म प्रमाणपत्र नहीं मिल सका है जोकि आगे चल कर बच्चे के लिए समस्या बनेगा. कोर्ट सरकार को निर्देशित करती है कि वह तुरंत उस मां को उस के बच्चे का जन्म प्रमाणपत्र मुहैया कराए. कोर्ट ने कहा कि स्कूल में बच्चे के एडमिशन और पासपोर्ट हासिल करने के लिए आवेदन करते समय पिता का नाम देना जरूरी नहीं है, लेकिन इन दोनों ही मामलों में जन्म प्रमाणपत्र लगाना पड़ता है.

मां की पहचान के बारे में कभी संदेह नहीं रहा. कानून गतिशील होता है और उसे समय के साथ चलना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि जब कभी भी एकल संरक्षक या अविवाहित मां अपने गर्भ से जन्मे बच्चे का जन्म प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए आवेदन करेगी तो जिम्मेदार अधिकारी सिर्फ एक हलफनामा ले कर उसे जन्म प्रमाणपत्र जारी करेंगे.

यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है

कि कोई भी नागरिक इस कारण परेशानी न भुगते कि उस के मातापिता ने उस के जन्म को रजिस्टर नहीं कराया.

अधिकार और आजादी

हालांकि इस अधिकार और आजादी के बाद भी आम कम पढ़ीलिखी और आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भर औरतें बिनब्याही मां बनने का रिस्क नहीं उठाती हैं. औरतें प्रेम में गर्भधारण करने के बाद प्रेमी पर जल्द से जल्द विवाह करने का दबाव बनाती हैं. कभीकभी प्रेमी उस लड़की से शादी नहीं करना चाहता है और छोड़ कर भाग जाता है. ऐसे में लड़की या तो किसी प्राइवेट डाक्टर के क्लीनिक में गर्भपात करवा लेती है

या महीने ज्यादा हो जाने के कारण यदि गर्भपात

न हो सके तो बच्चा पैदा कर के यहांवहां फेंक देती है.

देशभर में ऐसे सैकड़ों नवजात पुलिस को प्रतिदिन ?ाडि़यों में, नालों में या सुनसान जगहों पर रोते मिलते हैं, जिन्हें उन की मांओं ने पैदा कर के मरने के लिए फेंक दिया. कई नवजात बच्चों को तो कुत्ते नोंच डालते हैं.

दिल्ली सहित देशभर के अनाथाश्रमों में ऐसे दुधमुंहे बच्चों की तादाद बढ़ती जा रही है जो अपनी मांओं द्वारा पैदा कर के फेंक दिए गए. अनेक अनाथाश्रमों ने अपने दरवाजों पर पालने लगा रखे हैं. इन पालनों में आएदिन कोई न कोई नवजात बच्चा पड़ा मिलता है.

साउथ दिल्ली के अनेक छोटेछोटे प्राइवेट अस्पतालों में एक और धंधा डाक्टर, नर्सों, दाइयों और बच्चा बेचने वाले गिरोहों की सांठगांठ में बड़े धड़ल्ले से चल रहा है. इन अस्पतालों में अनब्याही मांओं की डिलिवरी करवाई जाती है और पैदा हुए नवजात को तुरंत बच्चा बेचने वाले गिरोह के सदस्य के हवाले कर दिया जाता है. यह गिरोह शहर के उन अनाथाश्रमों पर नजर रखता है जहां बेऔलाद मांबाप बच्चा गोद लेने के लिए चक्कर काटते हैं.

आसान नहीं प्रक्रिया

‘कारा’ की गाइडलाइन बहुत सख्त होने के चलते बच्चा गोद लेना चूंकि आसान प्रक्रिया नहीं है और इस के लिए कपल को कई साल इंतजार करना पड़ता है, कई कठिन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है और बच्चा भी उन्हें बड़ी उम्र का मिलता है. ऐसे में बच्चा बेचने वाले गिरोह के सदस्य ऐसे मातापिता से नवजात बच्चों का सौदा तय कर लेते हैं. यह सौदा डेढ़ लाख रुपए से 5 लाख रुपए तक में तय होता है, जिस में से कभीकभी तो बच्चा पैदा करने वाली मां को धनराशि का कुछ हिस्सा दिया जाता है, पर ज्यादातर में नहीं देते हैं.

उस को तो यही बात बड़ी संतोषजनक लगती है कि अनचाहे बच्चे से उसे मुक्ति मिल गई. अस्पताल वाले बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र पर उस महिला का नाम चढ़ा देते हैं जो बच्चा खरीदती है.

कानून द्वारा औरत को शादी से पहले या शादी के बाद मां बनने और अपने बच्चे का पूर्ण अभिभावक होने का अधिकार दिए जाने के बावजूद चूंकि भारतीय समाज और परिवार में अभी भी अनब्याही मां को धिक्कार की नजर से देखा जाता है, उस पर छींटाकशी की जाती है, खासतौर पर छोटे शहरों और कसबों में इसलिए अधिकांश औरतें न चाहते हुए भी अपने बच्चे को अपने से अलग करने की पीड़ा ?ोल रही हैं.

उन औरतों की तादाद बहुत कम है जो

धर्म, समाज और परिवार की जकड़न से खुद को मुक्त कर के अपने पैदा किए शिशु के साथ खुशीखुशी जी रही हैं. इस तसवीर को और बेहतर बनाने की कोशिश होनी चाहिए ताकि कोई औरत मां बनने से वंचित न रहे और कोई बच्चा नाजायज न कहलाए.

तीन सखियां: पड़ोसन को दामिनी के दोस्तों से क्या दिक्कत थी

अपनी नई नई गृहस्थी सजासंवार कर गंगा, दामिनी और कृष्णा सोफे पर ही पसर गईं. गंगा ने कहा, ‘‘चलो, भई, अब शुरू करते हैं नया जीवन, बैस्ट औफ लक.’’

‘‘हां, सेम टू यू,’’ दामिनी ने कहा तो कृष्णा कहने लगी, ‘‘शुरुआत कुछ शानदार होनी चाहिए, डिनर करने बाहर चलें? 2 दिन से अब फुरसत मिली है.’’

गंगा ने कहा, ‘‘हां, ठीक है, 7 बज रहे हैं. दामिनी, कल तुम्हें औफिस भी जाना है. चलो फिर, जल्दी डिनर कर के आते हैं. टाइम से आ कर आराम कर लेना. श्यामा भी कल से ही काम पर आएगी. बोलो, कहां चलना है?’’

दामिनी ने कहा, ‘‘शिवसागर चलते हैं.’’

कृष्णा ने कहा, ‘‘नहीं, फ्यूजन ढाबा चलते हैं.’’

गंगा ने कहा, ‘‘नजदीक ही बार्बेक्यू नेशन चलते हैं.’’

दामिनी ने फटकारा, ‘‘दिमाग खराब हो गया है, गंगा? रात में इतना हैवी डिनर करोगी वहां?’’

गंगा ने भी तेज आवाज में कहा, ‘‘तुम्हारा दिमाग होगा खराब, एक रात हैवी खाने से क्या हो जाएगा? अरे, नए जीवन की पार्टी तो बनती है न.’’

कृष्णा ने टोका, ‘‘बस, फ्यूजन ढाबा चलेंगे, तुम दोनों तो किसी भी बात पर शुरू हो जाती हो.’’

तीनों की आवाजें धीरेधीरे तेज होने लगीं, अभी 2 दिन पहले ही इस ‘तुलसीधाम सोसायटी’ में तीनों ने फोर बैडरूम का फ्लैट किराए पर लिया था और अभी घर का सामान संभाल कर फ्री हुई थीं.

तीनों की आवाजें तेज होते ही फ्लैट की डोरबैल बजी. तीनों चुप हो गईं. एकदूसरे को देखा. कृष्णा ने कहा, ‘‘यह कोई सीरियल नहीं है, डोरबैल बजते ही एकदूसरे की तरफ देखने के बजाय दरवाजा खोलो. अच्छा, मैं ही देखती हूं.’’

कृष्णा ने दरवाजा खोला. एक महिला खड़ी थी. गंभीर स्वर में बोली, ‘‘मैं आप के बराबर वाले फ्लैट में रहती हूं. कुछ शोर सा हो रहा था. आप लोग नई आई हैं, कुछ प्रौब्लम है क्या? मैं कुछ हैल्प करूं?’’

इतने में दामिनी और गंगा भी दरवाजे के पास आ कर खड़ी हो गईं. गंगा ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘बहुतबहुत धन्यवाद. हमारे यहां तो अकसर यह शोर होता रहेगा. आप चिंता न करें. हम लोग मजे में हैं.’’

महिला चुपचाप चली गई. दरवाजा बंद कर तीनों खिलखिला कर हंस पड़ीं, दामिनी ने कहा, ‘‘यह बेचारी पड़ोसिन तो हमारे चक्कर में पड़ कर पागल हो जाएगी.’’ इस बात पर तीनों खूब हंसीं.

दामिनी ने कहा, ‘‘चलो, फटाफट तैयार हो जाओ. अब निकलना चाहिए.’’ तीनों अपनेअपने बैडरूम में तैयार होने लगीं. दामिनी ने तैयार हो कर फिर पूछा, ‘‘कहां कर रहे हैं डिनर?’’

कृष्णा ने अपनी शरारती मुसकराहट बिखेरते हुए कहा, ‘‘किसी नई जगह.’’

तीनों तैयार हो कर बाहर निकलीं तो पड़ोसिन महिला से फिर सामना हो गया. वह तीनों को स्टाइलिश कपड़ों में, बढि़या परफ्यूम की खुशबू बिखेरते, हंसीमजाक करते हुए जाते देख हैरान होती रही. क्या औरतें हैं, अभी तो लड़ रही थीं. तीनों ने एक शानदार होटल में डिनर किया. हमेशा की तरह आइसक्रीम खाई और कुछ जरूरी सामान खरीद कर अपने नए संसार में लौट आईं. घर आ कर कपड़े बदले, अपनेअपने बैडरूम में लगा टीवी औन किया. थोड़ी देर अपनी पसंद के प्रोग्राम देखते हुए सुस्ताईं, फिर ड्राइंगरूम में बैठ कर घरगृहस्थी के कामों व सामान पर चर्चा कर के सोने चली गईं. तीनों बहुत थकी हुई थीं. नए घर में आज तीनों की पहली रात थी. कल तक तो दिनभर सामान लगा कर सोने के लिए रात को अपनेअपने पुराने घर में चली जाती थीं, अब तो यही घर उन का सबकुछ था.

पिछले हफ्ते ही तीनों ने इस मिडिलक्लास सोसायटी में तीसरे फ्लोर पर यह 4 बैडरूम  फ्लैट किराए पर लिया था. उन का हर परिचित, रिश्तेदार उन के इस फैसले पर हैरान रह गया था. तीनों अपनेअपने बैड पर सोने लगीं तो तीनों की आंखों के आगे अपना पिछला समय चलचित्र की भांति चलने लगा.

पिछले हफ्ते तक जीवन एक पौश सोसायटी में बिताया था, पर बिल्डिंग अलगअलग थीं. तीनों सोसायटी की ही एक किटी पार्टी की सदस्य भी थीं जिस में 25 साल से ले कर उन की उम्र तक की 15 सदस्य थीं. किटी में ही तीनों का ध्यान एकदूसरे की तरफ गया था. तीनों के विचार, तौरतरीके, स्वभाव, व्यवहार एकदूसरे से खूब मेल खाते थे. तीनों हाउजी खूब उत्साह से खेलती थीं. हर गेम जीतने की कोशिश करती थीं. तीनों बहुत हंसमुख थीं. किटी की अन्य सदस्य जीवन के प्रति उन के सकारात्मक दृष्टिकोण की खुले दिल से तारीफ करती थीं. सब के दिल में उन के लिए प्यार और सम्मान था.

तीनों ही जीवन के 5वें दशक में थीं. फिर भी तीनों सैर पर भी एकसाथ जाने लगी थीं. तीनों का आपसी संबंध दिनपरदिन मजबूत होता गया था. अब तीनों अपनी व्यक्तिगत बातें, अपने सुखदुख एकदूसरे के साथ बांटना चाहती थीं. एक रविवार कृष्णा ने दोनों को फोन कर अपने घर लंच पर बुलाया था. गंगा और दामिनी 12 बजे कृष्णा के घर पहुंच गई थीं. कृष्णा ने बहुत दिल से दोनों की आवभगत की. गंगा और दामिनी ने कृष्णा के बनाए खाने की भरपूर प्रशंसा की. तीनों ने भरपेट खाया. उस के बाद कृष्णा कौफी बना कर ले आई. तीनों आराम से सोफे पर ही पसर गई थीं. कृष्णा ने कहना शुरू किया, ‘जब से हम तीनों मिले हैं, जी उठी हूं मैं, वरना यही सूना घर, वही बोरिंग रुटीन था. पर बाहर तुम लोगों से मिल कर जब घर वापस आती हूं तो घर काटने को दौड़ता है. अकेलापन सहा नहीं जाता.  घर में घड़ी की सूइयां भी ठहरी हुई सी लगती हैं.’

दामिनी ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘कितने साल हो गए आप के पति का स्वर्गवास हुए?’ 15 साल हो गए, 1 ही बेटी है जो आस्ट्रेलिया में पति और बच्चों के साथ रहती है. साल दो साल में कभी वह आ जाती है. कभी मैं चक्कर लगा आती हूं, बस.’

गंगा ने भी अपने बारे में बताया, ‘मेरा भी जीवन ऐसा ही है. आलोक से तलाक के बाद अकेली ही हूं.’

दामिनी ने पूछा, ‘तलाक क्यों हो गया था? कितने साल हो गए?’

‘आलोक से विवाह के 2 साल बाद ही तलाक हो गया था. उस का अपनी किसी सहकर्मी से अफेयर था. मैं ने आपत्ति की तो वह मुझे छोड़ने के लिए तैयार हो गया जिस के बदले में उस ने मुझे इतनी भारी रकम दी कि आज तक मुझे किसी चीज की कमी नहीं है. वह बड़ा बिजनैसमैन था. मेरे नाम मोटा बैंकबैलेंस, गहने, यह फ्लैट, सबकुछ है. एक बेवफा पति से चिपके रहने के बजाय मुझे यह जीवन ही ठीक लगा. मैं भी अब पूरी आजादी से जी रही हूं पर मेरा धीरेधीरे सभी रिश्तेदारों से भी मन खराब होता गया. न मैं उन के ताने सुनना चाहती थी न हमदर्दीभरी बातें इसलिए मैं ने सब को अपने से दूर कर दिया. अकेलापन अब बहुत खलता है पर क्या कर सकते हैं. तुम बताओ दामिनी, तुम ने शादी क्यों नहीं की?’

दामिनी ने एक ठंडी सांस ले कर बताना शुरू किया, ‘पिता नहीं रहे तो चाहेअनचाहे घर की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर आती गई. मैं बड़ी थी. मैं ने खुद पढ़नेलिखने में बहुत मेहनत की, दोनों छोटे भाइयों को पढ़ायालिखाया, मां की देखभाल की. मां और भाइयों को संभालने में काफी उम्र निकल गई. वे भी मेरे विवाह के टौपिक से बचते रहे. एक बार उम्र निकल गई तो विवाह का खयाल मैं ने भी छोड़ दिया. अब मां तो रहीं नहीं, दोनों भाई अपनेअपने परिवार के साथ विदेश में बस गए हैं. मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में ऊंचे पद पर हूं. रुपएपैसे की कमी तो नहीं है पर अकेलापन खलने लगा है. इसी साल मैं 50 की हो रही हूं पर जीवन को मैं रोतेरोते नहीं जीना चाहती. जीवनभर मेहनत की है. जीवन के हर पल का आनंद उठाना चाहती हूं.’

कृष्णा ने कहा, ‘और क्या, हम तीनों ही खुशमिजाज, आर्थिक रूप से मजबूत और नए विचारों वाली महिलाएं हैं. हम क्यों अपना जीवन रोपीट कर बिताएं. जो मिलना था, मिल गया, जो नहीं मिला, बस नहीं मिला. पढ़ा है या सुना है तुम लोगों ने, एक लेखक ने भी कहा है, ‘मन का हो तो अच्छा, न हो तो ज्यादा अच्छा’.’

दामिनी ने खुश हो कर पूछा, ‘अरे, तुम भी यह सब पढ़ती हो क्या?’

‘और क्या, किताबें तो मेरी अब तक सब से अच्छी साथी रही हैं. आओ, तुम्हें अपनी छोटी सी लाइब्रेरी दिखाऊं,’ कह कर कृष्णा उन्हें अपने बैडरूम में ले गई थी.

गंगा भी चहक उठी, ‘अरे वाह, मुझे भी शौक है. मैं भी पढ़ूंगी ये सब.’

उस के बाद तीनों थोड़ी देर बातें करती रही थीं, फिर अपनेअपने घर लौट आईं. तीनों का मन साथ समय बिता कर काफी हलका था. दामिनी की शनिवार, रविवार छुट्टी होती थी. वह अब ये तीनों दिन कृष्णा और गंगा के साथ ही बिताती थी. तीनों के घर काम करने वाली मेड भी एक ही थी अब, श्यामा. कालेज जाने वाली छात्राओं की तरह तीनों सखियां अब किसी एक के घर इकट्ठी होतीं, हंसीमजाक करतीं, कभी मूवी देखने जातीं, कभी शौपिंग जातीं. तीनों को अब किसी अन्य की जरूरत महसूस नहीं होती. ऐसे ही एकदूसरे के सुखदुख को बांटते तीनों की दोस्ती को 2 साल बीत रहे थे.

एक दिन दामिनी ने कृष्णा और गंगा को अपने घर बुलाया हुआ था. तीनों खापी कर उस के बैडरूम में ही लेट गईं. दामिनी को कुछ सोचते हुए देख कर कृष्णा ने पूछा, ‘क्या सोच रही हो, दामिनी?’

‘बहुत कुछ, कुछ नई सी बात.’

‘क्या, बताओ?’

‘समझ नहीं पा रही हूं कि क्या ठीक सोच रही हूं मैं.’

गंगा ने कहा, ‘जल्दी बताओ अब.’

‘अभी दिमाग में आया, हम तीनों ही अकेली हैं, तीनों एकदूसरे के साथ खुश हैं, हम तीनों हमेशा भी तो साथ रह सकती हैं और वैसे भी हमें अपना जीवन जीने के लिए किसी पुरुष के साथ की जरूरत तो है नहीं. हम चाहें तो हमेशा साथ रह कर जीवन की सांध्यवेला में एकदूसरे का सहारा बन सकती हैं. हम तीनों का वन बैडरूम फ्लैट है. ऐसा कर सकते हैं कि आसपास किसी सोसायटी में बड़ा फ्लैट किराए पर ले कर साथ रह कर भी अपनी मरजी से जिएं. सब की प्राइवेसी भी रहे और साथ भी मिलता रहे. अपने फ्लैट किराए पर दे देंगे. सब खर्चे शेयर कर लेंगे. कम से कम घर लौटने पर किसी अपने का चेहरा तो दिखेगा. घर की खाली दीवारें अकेले होने का एहसास तो नहीं कराएंगी.’

गंगा और कृष्णा के मुंह से उत्साहपूर्वक निकला, ‘वाह, दामिनी, क्या बढि़या बात सोची है. यह बहुत अच्छा रहेगा.’

गंगा ने कहा, ‘बहुत मजा आएगा. भविष्य की बेतुकी चिंता में वर्तमान की कुछ बेहतरीन चीजें, कुछ बेहतरीन पल तो हमें इस जीवन में दोबारा नहीं मिलेंगे. फिर इन को खो कर क्यों जिएं. जीवन की राह में बस यों चलते जाना कि सांस जब तक चले, जीना ही पड़ेगा, यह सोच कर क्यों जिएं.’

दामिनी ने कहा, ‘और आजकल तो मैं कई बार सोचती हूं कि मेरे लिए अंदर से दरवाजा खोलने वाला कोई है ही नहीं. हो सकता है कभी मेरे फ्लैट का ताला तोड़ मेरा गला हुआ शव बाहर निकाला जाए. और तब मेरे परिचित मेरी संपत्ति पर हक जताने चले आएंगे.’

कृष्णा कहने लगी, ‘तुम लोग सीरियस मत हो. हमारा अब दोस्ती का सच्चा रिश्ता है जो किसी मांग पर आधारित नहीं है, द्वेष और ईर्ष्या से रहित है, स्वार्थ से परे है.’

तीनों की आंखें भर आई थीं. तीनों एकदूसरे के गले लग गई थीं. तीनों का दिल फूल सा हलका हो गया तो तीनों फिर मस्ती के मूड में आ गईं. अपने अंदर एक नया उत्साह, नई ऊर्जा महसूस की उस दिन तीनों ने. उस के बाद तो भविष्य की योजनाएं बनने लगी थीं. और फिर कई दिन कई घरों को देखने के बाद यह घर फाइनल किया था तीनों ने.  जिस ने भी सुना, हैरान रह गया था. मुंबई की इस सोसायटी में रहने वालों के लिए यह एकदम नया, अद्भुत विचार था. प्रबुद्धजन कह रहे थे, ‘किसी वृद्धाश्रम में जा कर रहने से अच्छा ही है यह आइडिया. समाज के लिए नया उदाहरण पेश कर रही हैं तीनों सखियां.’ उन की किटी पार्टी की सदस्याएं इस नए, उत्साहपूर्ण कदम में उन के साथ थीं. सब ने उन की पूरी सहायता की थी. समाज के लिए एक नई मिसाल कायम कर के तीनों ही अतीतवर्तमान में गोते लगाती हुई बेफिक्री की नींद में डूब चुकी थीं.

झटका: जब शादी के बाद प्रेमी से मिली शादीशुदा पल्लवी

बाहर की आवाज सुन कर ड्राइंगरूम में बैठे पल्लवी और रोहित के चेहरों पर घबराहट के भाव उभरे.

फ्लैट की मालकिन शिखा रसोई से निकल कर दरवाजा खोलने बढ़ गई. मन में चोर होने के कारण पल्लवी और रोहित के दिलों की धड़कनें पलपल बढ़ने लगीं.

शिखा फौरन बदहवास सी वापस लौटी और धीमी, उत्तेजित आवाज में उन्हें बताया कि विकास आया है.

‘‘ओह अब क्या करें?’’ अपने पति के आगमन की बात सुन कर पल्लवी का चेहरा पीला पड़ गया.

‘‘इतना मत डरो. हम उसे बताएंगे कि मैं शिखा का परिचित हूं, तुम्हारा नहीं,’’ खुद को संयत रखने का प्रयास करते हुए रोहित ने पल्लवी को बचाव का रास्ता सु?ाया.

‘‘तब मैं अंदर वाले कमरे में जा कर बैठती हूं,’’ कह पल्लवी ?ाटके से उठी और लगभग भागती हुई शिखा के शयनकक्ष में घुस गई.

अपनी घबराहट पर काबू पाने के लिए पल्लवी पलंग पर बैठ गहरीगहरी सांसें लेने लगी. ड्राइंगरूम से आ रही इन तीनों की आवाजें उसे साफ सुनाई दे रही थीं.

विकास से पल्लवी की शादी को अभी 3 महीने हुए थे. वह 2 दिनों के लिए मायके में रहने आईर् थी. विकास तो उसे शाम को साथ लिवा ले जाने के लिए आने वाला था. वह

जल्दी क्यों आ गया है, इस का कोई कारण पल्लवी की सम?ा में नहीं आया. वह यहां अपनी सब से पक्की सहेली शिखा के घर आई हुई है, यह जानकारी विकास को उस की मां ने ही दी थी.

रोहित पल्लवी का विवाहपूर्व का प्रेमी था. उस ने ही यहां शिखा के फ्लैट में उस से मिलने का कार्यक्रम बनाया था. विकास ने अचानक यहां पहुंच कर उस के पैरों तले से जमीन खिसका दी थी.

बाहर शिखा ने रोहित को अपना पुराना सहपाठी बताते हुए उस का विकास से परिचय कराया. वैसे यह सच ही था. दोनों कालेज में साथ पढ़े थे. पल्लवी से रोहित का प्रथम परिचय शिखा ने ही करीब 2 साल पहले कराया था.

‘‘तुम दोनों प्यारमुहब्बत की बातें करो, मैं इतने में चाय लाती हूं,’’ विकास को पल्लवी के पास छोड़ कर शिखा होंठों पर मुसकान और आंखों में चिंता के भाव लिए रसोई की तरफ चली गई.

‘‘कैसी हो जानेमन. याद आई मेरी?’’ विकास ने हाथ फैला कर उसे छाती से आ लगने का निमंत्रण दिया.

‘‘आप को आई?’’ आगे बढ़ कर पल्लवी अपने पति की बांहों के घेरे में समा गई.

‘‘बेहद. एक बात तो बताओ?’’

‘‘क्या?’’

‘‘यह रोहित मु?ा से घबराया हुआ सा क्यों मिला?’’

‘‘वह भला आप से क्यों घबराएगा?’’

‘‘इसी बात से मैं हैरान हुआ. अच्छा, तुम यहां क्यों बैठी हो? क्या उन दोनों ने भगा दिया.’’

‘‘ये कैसी बातें कर रहे हो आप? मेरे सिर में दर्द हो रहा था, इसलिए कुछ देर लेटने को यहां चली आई थी. वे दोनों मु?ो क्यों भगाएंगे?’’

‘‘मु?ो ऐसा क्यों महसूस हो रहा है कि तुम्हारी सहेली और रोहित के बीच गलत तरह का संबंध है?’’

‘‘आप को गलतफहमी हो रही है. शिखा ऐसी लड़की…’’

‘‘तुम तो अपनी सहेली का बचाव करोगी ही, पर रोहित की घबराहट. तुम्हारा यहां अकेला बैठना. शिखा का मु?ा से नजरें चुराना. तुम कुछ भी कहो, पर मेरा दिल कहता है कि शिखा अपने पति नीरज के साथ विश्वासघात कर रही है,’’ विकास अचानक गुस्से से भर उठा.

‘‘ऐसा कुछ भी नहीं है. इन दोनों के बीच दोस्ती के अलावा किसी और तरह का संबंध नहीं है,’’ पल्लवी ने विकास के शक को दूर करने की कोशिश करी.

विकास ने पल्लवी की बात को अनसुना करते हुए कठोर लहजे में कहा, ‘‘शादी के बाद भी जो स्त्रियां प्रेमी पालने का अपना शौक कायम रखती हैं उन्हें गोली मार देनी चाहिए. मैं पता करता हूं सच्चाई क्या है.’’

‘‘क्या करोगे आप?’’ पल्लवी घबरा उठी.

‘‘रोहित से बातें कर के सच्चाई भांप लूंगा. दाल में कुछ काला निकला तो नीरज भाई को उस की पत्नी की चरित्रहीनता की खबर भी मैं ही दूंगा.’’

‘‘आप का शक बिलकुल बेबुनियाद है.’’

‘‘इस का फैसला कुछ ही देर में हो जाएगा, डियर. तुम मु?ो 1 गिलास पानी पिला दो, प्लीज.’’

कुछ मिनट बाद पल्लवी पानी का गिलास ले कर लौटी, तो उस ने विकास को अपना मोबाइल फोन जेब में रखते देखा.

‘‘किसे फोन किया है आप ने?’’ पल्लवी घबरा सी उठी.

‘‘नीरज को,’’ संक्षिप्त सा जवाब दे कर बेहद गंभीर नजर आता विकास पानी पीने लगा.

‘‘क्या कहा है आप ने उस से?’’

‘‘फिलहाल कुछ खास नहीं. मैं रोहित के साथ हूं,’’ विकास ने पल्लवी का माथा चूमा और फिर ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ा.

मन ही मन डर, घबराहट और बेचैनी का शिकार बनी पल्लवी उस के पीछेपीछे ड्राइंगरूम में चली आई. तभी शिखा ने भी चायनाश्ते की ट्रे हाथों में पकड़े वहां कदम रखा.

चाय पीते हुए विकास ने तो रोहित से खूब बातें करने की काफी कोशिश करी, पर वह कम ही बोला. उस के गोलमोल से जवाब पल्लवी को अजीब से लग रहे थे. इस बात से उस के मन ने कुछ राहत जरूर महसूस करी कि विकास को रत्तीभर ऐसा शक नहीं हुआ कि कहीं रोहित और उस के बीच तो गलत चक्कर नहीं चल रहा है.

चाय समाप्त करते ही रोहित जाने के लिए अचानक उठ खड़ा हुआ. विकास ने उसे रोकने के लिए काफी कोशिश करी, पर वह नहीं रुका.

रोहित को विदा करने शिखा के साथसाथ विकास भी बाहर तक आया. उस की मोटरसाइकिल आंखों से ओ?ाल हुई ही थी कि नीरज अपने स्कूटर पर घर आ पहुंचा.

‘‘आप औफिस से इस वक्त कैसे आ गए?’’ शिखा ने चौंकते हुए अपने पति से सवाल किया.

‘‘विकास ने फोन कर के बुलाया है,’’

नीरज ने उल?ानभरे अंदाज में विकास की तरफ देखा.

‘‘तुम ने बताया नहीं कि  ये आ रहे हैं?

क्या हम सब को पार्टी दे रहे हो?’’ विकास की तरफ मुसकरा कर देखते हुए शिखा ने सवाल किया.

घर के भीतर की तरफ बढ़ते हुए विकास ने बेचैन लहजे में जवाब दिया, ‘‘जिस से मिलाने को तुम्हें बुलाया था वह तो अभीअभी चला गया.’’

‘‘कौन आया था?’’ नीरज ने शिखा से सवाल किया.

‘‘रोहित. मेरे साथ कालेज में पढ़ता था. मैं पानी ले कर आती हूं,’’ अपने पति के कुछ बोलने से पहले ही शिखा रसोई की तरफ चली गई.

पल्लवी उस के पीछेपीछे रसोई में पहुंची. घबराई आवाज में उस ने विकास के मन में उपजे शक की जानकारी शिखाको दे दी.

‘‘अब अपने शक की चर्चा वह नीरज से जरूर कर रहा होगा. तू ने यह कैसी मुसीबत में फंसा दिया मु?ो, पल्लवी,’’ शिखा ने दोनों हाथों से सिर थाम लिया.

‘‘देख, अब तु?ो ही मेरी जान बचानी है. विकास और नीरज दोनों को ही सच्चाई पता नहीं चलनी चाहिए,’’ पल्लवी के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं.

‘‘अगर नीरज के मन में गलत तरह का शक पैदा करने में तेरा पति सफल हो गया, तो अपने को निर्दोष साबित करने के लिए मु?ो उन्हें यह बताना ही पड़ेगा कि रोहित तु?ा से मिलने आया था.’’

‘‘प्लीज, ऐसी भूल बिलकुल मत करना,’’ पल्लवी विनती कर उठी.

‘‘नीरज मेरे चरित्र पर शक करें, यह मेरे लिए डूब मरने वाली बात होगी पल्लवी.’’

‘‘वे विकास की तरह गरम दिमाग वाले इंसान नहीं हैं. तू उन्हें देरसवेर सम?ा लेगी, संभाल लेगी.’’

‘‘ये सब तू ही विकास के साथ कर लेना न.’’

‘‘तू सम?ाने की कोशिश कर, प्लीज,’’ पल्लवी का गला भर आया, ‘‘हमारे बीच संबंध तनावपूर्ण चल रहे हैं. ससुराल में मेरी कोई कद्र नहीं है. मेरी अलग होने की इच्छा का विकास जबरदस्त विरोध करते हैं. यह इंसान अगर मेरी भावनाओं को सम?ाता होता, तो अपने पुराने

प्रेमी से अपना सुखदुख बांटने को मैं रोहित को क्यों बुलाती.’’

‘‘मैं ने तो तु?ो पहले ही ऐसा गलत और खतरनाक कदम उठाने को मना किया था, लेकिन तू ने अपने एहसान की याद दिला कर

मु?ो चुप करा दिया. मु?ो तेरी बात सुननी ही नहीं चाहिए थी,’’ शिखा बेचैनी भरे अंदाज में हाथ मलने लगी.

‘‘तुम्हें अपने पापा के दिल के औपरेशन के लिए जब रुपयों की जरूरत थी तब मैं तुम्हारे काम आई थी. अब तुम मेरी सब से अच्छी सहेली होने का फर्ज निभाओ, शिखा.’’

‘‘तेरे दिए 50 हजार रुपए तो मैं किश्तों में लौटा रही हूं, पर मेरी शादी टूट गई, तो तू कैसे मेरा नुकसान पूरा करेगी?’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा शिखा.’’

शिखा कुछ कहती उस से पहले ही नीरज ने गुस्से से भरे अंदाज में उसे आवाज दे कर ड्राइंगरूम में बुला लिया.

पल्लवी ने दयनीय अंदाज में शिखा के सामने हाथ जोड़ दिए, ‘‘प्लीज, विकास को कुछ पता नहीं चलना चाहिए.’’

शिखा ने कुछ ?ि?ाकने के बाद अपनी सहेली का कंधा प्यार से दबा कर उसे आश्वस्त किया और फिर तेजी से ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ी. डरीघबराई सी पल्लवी बो?िल अंदाज में उस के पीछेपीछे

ड्राइंगरूम में पहुंच गई. विकास और नीरज दोनों ने ही उस की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया. उन दोनों की नजरों का केंद्र शिखा बनी हुई थी.

‘‘यह रोहित यहां क्यों आया था?’’ गुस्से के मारे नीरज की आवाज अपनी पत्नी से यह सवाल पूछते हुए कांप रही थी.

‘‘मु?ा से मिलने,’’ शिखा ने संजीदा लहजे में जवाब दिया.

‘‘पहले कितनी बार आ चुका है?’’

‘‘मु?ो आप के सवाल पूछने का ढंग अपमानित करने वाला लग रहा है. विकास को गलतफहमी…’’

‘‘शटअप. मेरे सवाल का सीधा जवाब दो,’’ नीरज ने उसे डांट कर आगे बोलने से रोक दिया.

‘‘उस ने आज पहली बार यहां कदम रखा था.’’

‘‘सच बोल रही हो?’’

जवाब में शिखा खामोश रही और उस का मुंह फूल गया.

‘‘रोहित से तुम्हें ऐसी क्या बातें करनी थीं जो तुम ने पल्लवी को अलग कमरे में भेज दिया?’’

‘‘रोहित के आने भर से यानी इस एक सी घटना के कारण क्या आप मेरे चरित्र पर

शक कर रहे हो?’’ शिखा की आंखों में आंसू ?ालकने लगे.

‘‘इस छोटी सी घटना ने मेरे विश्वास को डगमगा दिया है. इस मामले की मैं पूरी तहकीकात करूंगा, इसलिए ?ाठ मत बोलना,’’ नीरज ने धमकी दी.

‘‘आप पहले तहकीकात ही कर लो. अब मैं आप के किसी सवाल का जवाब नहीं दूंगी.’’

‘‘मेरे सवालों के जवाब नहीं दोगी, तो इस घर में भी नहीं रह सकोगी.’’

‘‘इस छोटी सी बात के लिए आप मु?ो घर से निकाल दोगे?’’

‘‘यह छोटी सी बात नहीं है,’’ नीरज यों चिल्लाया जैसे गुस्से से पागल हो गया हो.

शिखा सहमी सी उठ कर शयनकक्ष की तरफ जाने लगी तो नीरज ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ लिया और क्रोधित लहजे में पूछा, ‘‘मेरे सवाल का जवाब दिए बिना तुम कहां जा रही हो?’’

‘‘वहीं जहां घर से पति द्वारा अपमानित कर के निकाल दी गई शादीशुदा स्त्री जाती है,’’ शिखा रोंआसी हो उठी.

‘‘अपने घर जा रही हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘मेरे सवालों के जवाब नहीं दोगी?’’

‘‘अपनी तहकीकात से मिल जाएंगे आप को जवाब.’’

‘‘जाओ मरो. इस घर में तुम्हारे लिए अब कोईर् जगह नहीं है,’’ नीरज ने उसे जोर से धक्का दे दिया.

शिखा के पीछेपीछे पल्लवी भी उस के शयनकक्ष में पहुंच गई. अपनी सहेली को सूटकेस में कपड़े लगाना शुरू करते देख वह बहुत परेशान हो उठी.

‘‘मु?ो इन से ऐसे गलत व्यवहार की उम्मीद नहीं थी,’’ शिखा की मुखमुद्रा अब कठोर हो गई, ‘‘कितनी आसानी से शक कर के मु?ो नीचे गिरा दिया इन्होंने. इतना कमजोर विश्वास. जब तक ये माफी नहीं मांगेंगे, मैं नहीं लौटूंगी.

‘‘आईएम सौरी, शिखा. ये सब मेरी नादानी की वजह से हो रहा है,’’ पल्लवी ने दुखी स्वर में अफसोस प्रकट किया.

‘‘विकास तु?ा पर शक करे तो बात सम?ा में आती है क्योंकि तेरे मन में खोट है, पर मैं तो नीरज के प्रति…’’

‘‘मेरे मन में कोई खोट नहीं है. मैं तो रोहित से कुछ देर बातें कर के अपना मन हलका करना चाहती थी, बस,’’ पल्लवी ने फौरन सफाई दी.

‘‘विवाहपूर्ण के प्रेमी से मुलाकात का सिलसिला एक बार शुरू करने के बाद किस मुकाम तक पहुंचेगा, यह कोई भी नहीं जान सकता. तू एक दिन जरूर पछताएगी, पर तेरे कारण मैं तो आज ही कितनी बड़ी मुसीबत में फंस गई हूं.’’

‘‘तू यों मायके मत जा,’’ परेशान पल्लवी ने उसे सलाह दी.

‘‘मैं उन्हें सच्ची बात तेरी वजह से नहीं बता सकती. यहां रही तो वे मु?ो रातदिन अपमानित करेंगे. हजारों सवाल पूछेंगे. मेरा कुछ दिनों के लिए मायके चले जाना ही ठीक है. जो होगा मैं भुगतूंगी, पर तेरा विवाह इस बार तो टूटने से बच ही जाएगा,’’ शिखा ने भावुक हो कर पल्लवी को अचानक गले से लगा लिया.

‘‘आज की भूल मैं जिंदगी में कभी नहीं दोहराऊंगी. ऐसी भूल किसी भी शादीशुदा स्त्री के घरकी सुखशांति और सुरक्षा हमेशा के लिए नष्ट कर सकती है, यह बात मैं ने हमेशा के लिए सम?ा ली है,’’ पल्लवी रो पड़ी.

‘‘क्या तू सच कह रही है?’’ शिखा ने उस की आंखों में प्यार से ?ांका.

‘‘बिलकुल.’’

‘‘अगर फिर कभी तेरे पांव भटके तो तू मेरा मरा मुंह…’’

‘‘ऐसा कभी नहीं होगा. कभी नहीं,’’ पल्लवी ने शिखा के मुंह पर हाथ रखा और फिर से रोने लगी.

‘‘तू ने मु?ो खुश कर दिया. अब मेरा भी मायके जाने का कार्यक्रम रद्द,’’ शिखा ने मुसकराते हुए सूटकेस बंद कर दिया.

‘‘अब क्या कहेगी नीरज से,’’ पल्लवी के मन की चिंता फिर उभर आई.

‘‘तेरी छवि नहीं खराब होने दूंगी. तू फिक्र न कर और विकास के साथ हंसीखुशी जीवन गुजारने का प्रयास दिल से कर. पति के होते हुए किसी रोहित के साथ सुखदुख बांटने की क्या जरूरत है सहेली?’’

‘‘कोई जरूरत नहीं रहेगी अब.’’

‘‘विकास को ले कर तू निकल जा. तुम दोनों के जाते ही मैं नीरज का विश्वास जीतने का काम फौरन शुरू कराना चाहती हूं.’’

‘‘ओके,’’ कह शिखा से गले मिल कर पल्लवी ने विदा मांगी और फिर मुड़ कर ड्राइंगरूम की तरफ चली गई.

करीब 5 मिनट बाद विकास और पल्लवी को विदा कर के नीरज शयनकक्ष में आया. उसे देखते ही शिखा मुसकराती हुई उस की छाती से लग गई.

‘‘किला फतह रहा?’’ नीरज ने उस का माथा चूमने के बाद सवाल पूछा.

‘‘फतह रहा. पल्लवी को ऐसा ?ाटका लगा है कि फिर कभी गलत राह पर चलने की सोच कर भी उस का मन कांप उठेगा,’’ शिखा ने जवाब दे कर नीरज का हाथ चूम लिया.

‘‘उसे सही राह पर लाने का असली श्रेय तो रोहित को जाता है.’’

‘‘ठीक कह रहे हैं आप. पल्लवी उस से शादी के बाद फिर से प्रेम संबंध बनाना चाहती है, इस बात से परेशान व चिंतित हो कर उस ने हम दोनों से जो संपर्क किया वह उस के

सम?ादार व नेकदिल इंसान होने का सुबूत ही तो है.’’

‘‘क्या मैं उसे फोन कर के सारा नाटक ठीकठीक समाप्त हो जाने की जानकारी दे दूं?’’

‘‘अभी नहीं,’’ शिखा ने उस का गाल चूम कर शरमाते हुए कहा, ‘‘पहले प्यार के मीठे स्वाद से नाटक में मुंह से निकाले गए कड़वे संवादों का स्वाद तो बदल लें.’’

‘‘बिलकुल ठीक फरमाया आप ने, जानेमन,’’ नीरज ने उसे गोद में उठाया और मस्त अंदाज में पलंग की तरफ बढ़ चला.

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