एक सिंहक रिश्ते की शिकार औरत का पूरा व्यक्तित्त्व ही बदल जाता है. वह अपने
में सिमट कर रह जाती है. ईमान अब अकसर घबराई रहती, संकोच करती रहती. सचिन पूछा करता, ‘‘तुम्हारे आत्मविश्वास को क्या हो गया है? कैसी दब्बू सी हो गई हो तुम…’’
ऐसी बातों का कोई जवाब न था ईमान के पास पर बारबार ऐसे शब्द उस के आत्मविश्वास को और भी गिरा देते थे. किसी शिक्षित, आज की लड़की के लिए यह बेहद मुश्किल घड़ी थी. वह यह जानती थी कि वह यह एक गलत रिश्ते में है पर फिर भी स्वीकार नहीं पा रही थी कि वह इतनी बेबस हो चुकी है. ये रिश्ता उस के लिए एक कारागार की तरह हो गया था जहां उस की आवाज कैद थी, उस का शरीर बंद था और मन भी. कैसे किसी को कहे कि 21वीं सदी की इतनी पढ़ीलिखी, एक आत्मनिर्भर औरत होते हुए भी उस की आज यह हालत थी. दरअसल, परिवार के विरुद्ध जा कर उस ने जो कदम उठाया था उसी को गलत स्वीकारना बेहद कठिन हो रहा था. अपनी इच्छा से चुने रिश्ते में कमी निकालने की हिम्मत करे तो कैसे? लोग क्या कहेंगे?
‘‘मेरा ममेरा भाई मथुरा में रहता है. वह कुछ दिन हमारे पास रहने आएगा. 10वीं कक्षा में है, उसे कुछ कोचिंग का पता करना है यहां,’’ एक शाम सचिन ने बताया.
‘‘हां, बड़े शहर में अच्छे कोचिंग सैंटर मिल जाते हैं,’’ ईमान ने उस की हां में हां मिलाई. ‘‘बता देना कब आ रहा है और उसे क्या पसंद है खाने में.’’
सचिन के मामा और उन के बेटे इप्सित की ईमान से अच्छी आवभगत की. अगले दिन इप्सित को वहीं छोड़ कर मामा लौट गए. इप्सित नई पीढ़ी का एक होशियार लड़का था. कुछ ही दिनों में वह समझ गया कि ईमान सचिन से डरती है. उस की हर बात को हुकुम की तरह मानती है. हालांकि कमरे के अंदर क्या होता है इस की भनक इप्सित को मिलना मुमकिन नहीं था, किंतु सब के सामने ईमान का सचिन की हर बात मानना, उस के आवाज लगाने पर दौड़ते हुए आना, उस के द्वारा आंखें तरेरने पर घबरा जाना यह काफी था इप्सित को यह समझने के लिए कि उस के भैया शेर हैं और ईमान बकरी.
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एक शाम जब ईमान औफिस से लौट कर खाना पका रही थी तो इप्सित ने दबे पांव पीछे से आ कर अपनी आवाज को सचिन की तरह गंभीर मुद्रा में नियंत्रित कर सख्ती से पुकारा, ईमान. ईमान को लगा उस से फिर कोई गलती हो गई जिस के लिए सचिन उस से नाराज हो उठा है. वह भयभीत हो उठी. उचक कर पलटी तो सामने इप्सित को खड़ा देख भौचक्की रह गई.
उस की विस्फारित आंखों को देख इप्सित तालियां बजाने लगा, ‘‘मैं ने भी आप को डरा दिया. देखा, मैं भी भैया से कम नहीं हूं.’’
इप्सित की इस बात से ईमान विचलित हो उठी. क्या नई पीढ़ी भी घर के अंदर हिंसा देख कर वही सीखेगी? ईमान का सिर घूमने लगा. इप्सित को घर में रहते बामुश्किल 1 महीना गुजरा था और उस ने देहरी के अंदर घटिया मानदंड सीखने शुरू कर दिए थे. इसी सोच में डूबी ईमान ने आज बड़े बेमन से खाना पकाया. सचिन आ चुका था. उस ने सब को डाइनिंगटेबल पर आवाज दी. सचिन और इप्सित बैठ गए और ईमान उन की प्लेटों में खाना परोसने लगी. पहला कौर खाते ही सचिन जोर से चीखा, ‘‘दाल में नमक तेरी मां डालेगी?’’ और उस ने प्लेट उठा कर ईमान की ओर फेंकी. स्टील की प्लेट का पैना किनारा ईमान के माथे पर लगा. दाहिने कोने से खून की धारा फूट पड़ी. उस के कपड़ों पर खाना बिखर चुका था और ऊपर से खून बह रहा था. ईमान घबरा कर बाथरूम की ओर भागी. अंदर जा कर जब उस ने खुद को आईने में देख तो चोट से भी ज्यादा उसे अपनी हालत पर रोना आया. उसे खुद पर तरस आया और ग्लानि भी. यह क्या कर रही है वह अपने साथ? एक छोटी सी बेध्यानी के कारण हुए इस वाकेआ ने ईमान को उस की जड़ों तक हिला दिया. क्यों कर रही है वह अपनी जिंदगी बरबाद? क्या हमेशा ऐसे ही चलेगा? अब तक जो हिंसा घर के अंदर, केवल इन दोनों के बीच हुआ करती थी, आज उस में एक मेहमान की उपस्थिति भी हो चुकी है. तो क्या जो भी इन के घर आएगा, उस के सामने सचिन ऐसे ही बरताव करेगा उस के साथ? क्या ईमान की कोई इज्जत, कोई सम्मान नहीं?
शादी का यह मंजर बहुत खौफजदा हो चला. बेहद घुटनभरा. ऐसा नहीं हो सकता कि
हम सांस भी न लें और जिंदा भी रहें. ईमान प्यार में नहीं, डर में अंधी हो रही थी. प्यार तो न जाने कब का पीछे छूट चुका. अब हैं तो बस जिम्मेदारियां और डर जिस के कारण ईमान सहमी रहती. लेकिन आज उस की सीमा पार हो गई. अब तक वह खुद को गलत और सचिव को परेशान समझ कर माफ करती आई. लेकिन अब बात दोनों के बीच से गुजर कर बाहर चली गई. किसी तीसरे की मौजूदगी में भी अगर सचिन को कोई लिहाज नहीं तो फिर आगे आने वाली जिंदगी तो बद से बदतर होती जाएगी. उस के घर के अंदर का क्या वातावरण होगा, उस के बच्चे क्या सीखेंगे, उस की क्या हैसियत होगी घर और समाज में? इतनी अच्छी शिक्षादीक्षा, इतनी अच्छी नौकरी करने के बाद भी अगर ईमान के आंचल में केवल पिटाई और आंसू हैं तो फिर लानत है. क्या उस के मातापिता ने इसलिए उसे अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया? न जाने कितने ही सवाल ईमान के दिमाग चक्कर काटने लगे. उस ने फौरन पट्टी करवाने के लिए अस्पताल जाने का मन बनाया. उसी हालत में वह बाहर आई तो देखा सचिन खाना खा चुका था. नीचे बिखरा खाना ज्यों का त्यों था.
उस की गंभीर हालत देख सचिन उस की ओर लपका, ‘‘ओह तुम्हें काफी चोट लग गई, ईमान, चलों मैं तुम्हें डाक्टर के पास ले चलूं…’’
मगर ईमान ने हाथ के इशारे से उसे वहीं रोक दिया. वह अकेली ही घर से बाहर निकली, सामने से जाता हुआ औटो रोका और उसे अस्पताल चलने को कहा. अस्पताल पहुंच कर उस ने फौर्म भरा, डाक्टर के पूछने पर कारण बताया घरेलू हिंसा. अब बहुत हो चुका है. बहुत सह चुकी है वह. इस रिश्ते में वह एक उम्मीद के साथ आगे बढ़ी थी ताकि पलकों की गलियों में पल रहे उस के सुनहरे सपने सच हो सकें, न कि आंसुओं के बवंडर से वे सपने धुल जाएं. इस जंजाल से बाहर निकलने का समय आ गया है. अब शायद पुलिस को बुलाया जाएगा. उस की हालत की जानकारी उस के परिवार को मिल जाएगी. हो सकता है वह कहें हम ने तो पहले ही मना किया था, हमारी बात मानी होती तो आज यह दिन न देखना पड़ता, और न जाने क्याक्या हो सकता है. वह विधर्मी विवाह और उस के प्यार पर उंगली उठाएं. लेकिन एक गलत रिश्ते का अर्थ ये कदापि नहीं कि प्यार पर से विश्वास उठ जाना चाहिए. हो सकता है उसे करारी छींटाकशी का शिकार होना पड़े, पर कोई बात नहीं वह झेल लेगी. वह अपने पैरों पर खड़ी है. अब उसे किसी पर न तो बोझ बनने की जरूरत है और न ही अपनी इज्जत को यों तारतार होते देखने की. जरूरत है तो बस इस कदम को उठाने की. आखिर उसे भी हक है खुश रहने का.
कराहती हुई ईमान बिस्तर के एक कोने से चिपक कर धीरे से लेट गई. आंसू अब भी कानों को गीला कर रहे थे. इस हादसे से ईमान बेहद डर गई. उस ने कभी अपने बुरे सपने में भी नहीं सोचा था कि उस का रेप हो सकता है और वह भी अपने ही घर में. हर रात जब ईमान सचिन की बलिष्ठ बांहों में सिमटती थी तो उसे कितना सुरक्षित लगता था पर आज जो हुआ वह किसी भी कोण से प्यार न था, वह थी हिंसा, वह था बदला, उसे उस की औकात दिखाई गई थी. आज ईमान की इतनी हिम्मत भी नहीं हो रही थी कि वह जोर से सांस ले सके. अपना दम थामे उस ने रात निकाल दी.
इस प्रकरण ने ईमान के भीतर एक कायरता को जन्म दिया. सुबह सचिन के उठने से पहले ही उठ कर उस ने नाश्ता तैयार कर दिया. न जाने कैसे सामना करेगी वह सचिन का. उस के उठने का इंतजार करने से बेहतर है कि वह किचन में काम निबटा ले.
तभी सचिन के उठने की आवाज से ईमान पुन: चौंक गई. हौले से पीछे मुड़ कर देखा तो सचिन चेहरे पर शर्मिंदगी के अनेकानेक भाव समेटे खड़ा था. आंखें जमीन में गढ़ी थीं.
मुख पर मलिन रंग ओढ़ सचिन बुदबुदाया, ‘‘मुझे माफ कर दो ईमान. मैं जानता हूं जो मैं ने किया वह माफी के लायक तो नहीं पर पता नहीं कल रात मुझे क्या हो गया था… तुम मेरे बौस को तो जानती ही हो. कल उस ने सारा दिन मेरा खून पीया, टीम मीटिंग में मुझे बेइज्जत किया… शायद इसी कारण कल रात मेरा दिमाग खराब हो गया था. प्लीज, प्लीज, मुझे माफ कर दो. आइंदा ऐसा कभी नहीं होगा,’’ सचिन तब तक माफी मांगता रहा जब तक ईमान पसीज न गई. सचिन ने क्षमायाचना में कोई कसर नहीं छोड़ी, ‘‘मेरा विश्वास करो, ईमान, आइंदा ऐसा कभी नहीं होगा.’’
सचिन के बारंबार क्षमायाचना करने से ईमान को भी विश्वास हो चला कि ये पहली और आखिरी गलती थी. इस बार उस ने सचिन को माफ कर दिया.
ईमान अब बदल चुका था. उस के इस बदलाव को सब से पहले पारुल ने गौर किया. उस ने भी यही पूछा कि उस के आत्मविश्वास को क्या होता जा रहा है. हर तरफ से उठते एक से प्रश्नों ने फायदा नहीं, अपितु और नुकसान किया.
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उन्हीं दिनों औफिस में एक नए लड़के मेहुल ने जौइन किया. मेहुल एक समझदार, आकर्षक और ठहरा हुए व्यक्तित्व का स्वामी था. पारुल को वह पहली नजर में भा गया.
‘‘कितना हैंडसम है न मेहुल. मेरा जी करता है उसी की टीम में चली जाऊं,’’ पारुल ने हंस कर कहा तो ईमान भी बोल पड़ी, ‘‘हां, स्मार्ट तो है. काश, इस की गर्लफ्रैंड न हो.’’
‘‘और न ही बौयफ्रैंड,’’ कहते हुए दोनों सहेलियां हंस पड़ीं.
शाम को जब ईमान घर लौटी तो दरवाजे पर घंटी बजाने पर सचिन ने दरवाजा नहीं खोला. ईमान ने अपनी चाबी निकाली और दरवाजा खोल कर अंदर चली गई.
अंदर प्रवेश करते ही उसे सचिन सामने सोफे पर बैठा दिखा तो ईमान ने हैरत से सवाल किया, ‘‘तुम घर पर ही हो तो दरवाजा क्यों नहीं खोल रहे थे? मुझे लगा तुम अभी तक औफिस से लौटे नहीं…’’
ईमान आगे कुछ कह पाती उस से पहले सचिन ने उस के बाल पकड़ कर उसे जमीन पर धकेल दिया. ईमान फड़फड़ा उठी. सचिन पर आज फिर भूत सवार था. ईमान की चीखपुकार का उस पर तनिक भी असर नहीं हो रहा था. सचिन ने आव देखा न ताव, ईमान को बांह से घसीटता हुआ कमरे में ले गया और अपनी जींस की बैल्ट खोल कर उस पर तड़ातड़ बरसाने लगा.
ईमान तड़प उठी. कभी खुद को बचाने का विफल प्रयास करती तो कभी बैल्ट को हाथों से रोकने का. करीब 5-6 बार पूरी ताकत से ईमान पर कोड़ों की तरह बेल्ट मारने के बाद सचिन ने उसे बिस्तर पर दे पटका. उस ने बेहद फुरती से ईमान के कपड़े उतारने शुरू कर दिए और अपनी दोनों बांहों से उसे बिस्तर पर जड़ कर दिया. फिर वह उस पर टूट पड़ा. ईमान का रुदन, उस की चीखें, उस की पीड़ा कमरे की बेजान दीवारों से टकरा कर उसी बिस्तर पर ढेर होती रहीं.
अपना जोर आजमा कर सचिन करवट फेर चुका था. सोया वह भी नहीं था. उस की सांस की फुफकार ईमान के कानों में पड़ रही थी. डर के मारे ईमान बुत बनी अपनी सांस रोके पड़ी रही. आज के वाकेआ ने उसे बेइंतहा डरा दिया. अब वह सचिन के सामने मुंह खोलने की हिम्मत भी खो चुकी थी. खुद को कितना बेबस, कितना लाचार और कितना अपमानित महसूस कर रही थी.
जैसेतैसे रात बीती. सुबह ईमान औफिस जाने की हालत में नहीं थी. चेहरे और शरीर पर बैल्ट की चोट के निशान अपनी दस्तक छोड़ चुके थे. उस के शरीर में बेहद दर्द हो रहा था. उस के हाथपांव भी साथ नहीं दे रहे थे.
रोजाना सुबह का अलार्म बजा तो उस से पहले सचिन उठा खड़ा हुआ. रात का दंभ उतर चुका था. वह लपक कर ईमान के पास आया तो वह और भी घबरा गई. उस का चेहरा सफेद पड़ गया और आंखें डबडबा गईं, पर सचिन पर से ताकत का जनून उतर चुका था.
‘‘मुझे माफ कर दो… ईमान मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था. मुझे तुम पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था…पर मैं करता भी क्या, इस में गलती तुम्हारी ही है. तुम उस कल के आए छोकरे मेहुल को मुझ से ज्यादा महत्त्व दे सकती हो, ऐसा मैं ने कभी सोचा भी न था. मैं तो सोचता था कि तुम मुझ से प्यार करती हो पर तुम तो…’’ वह ईमान पर दोषारोपण करते हुए बोला.
‘‘यह क्या कह रहे हो सचिन… औफकोर्स मैं तुम से प्यार करती हूं,’’ कहते हुए ईमान सिसकने लगी, ‘‘वह तो मैं पारुल के साथ हार्मलैस जोक कर रही थी… मुझे क्या पता था कि तुम मुझे इतना गलत समझोगे,’’ और ईमान की रुलाई फूट गई.
‘‘यह भी कोई जोक होता है भला, मुझे ऐसी बातें बिलकुल पसंद नहीं. मैं कितना दुखी हो गया था तुम दोनों की बातें सुन कर,’’ सचिन भी मुंह लटकाए कहता जा रहा था. उस की आंखों में अब भी रोष भरा हुआ था.
उस की आंखों के भाव पढ़ कर, उस का माफीनामा सुन कर ईमान ने सचिन को
दूसरा मौका देने का निश्चय कर लिया. प्यार में तीसरा, 5वां, 8वां, 10वां मौका देना आसान है, पर रिश्ता तोड़ देना कठिन है. पैतृक समाज में पलीबढ़ी लड़कियों को अकसर पुरुषों की अपेक्षा अपनी ही गलतियां नजर आती हैं. बेचारे पुरुषों को न तो रिश्ते निभाने की समझ होती है और न ही औरतों जितनी संवेदनशीलता, ऊपर से उन का खून गरम होता है और ताकत औरतों से अधिक, करें भी तो क्या करें. इस सोच की मारी औरतें अपने अंदर ही कमी ढूंढ़ लेती हैं. बचपन से घुट्टी पिलाई गई मर्दों को अपने से सर्वोच्च मान कर माफ कर देने की शिक्षा, हमारे अंदर गहरी पैठ किए रहती है जो उच्च शिक्षा और पद से भी नहीं मिटती.
आज पिटाई और रेप के बाद ईमान ने सचिन की आंखों में जो पछतावा देखा, आंसू देखे, उन्होंने उस की अपनी पीड़ा भुला दी. औरतें तो रो ही लिया करती हैं पर मर्द रोते हुए कब अच्छे लगते हैं भला. उस ने फौरन उसे माफ कर दिया. गलती उसी की थी जो उस ने एक रिश्ते में बंधे होते हुए भी परपुरुष के लिए ऐसा मजाक किया.
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मगर उस दिन ईमान औफिस न जा सकी. हालत ठीक नहीं थी. एक दिन आराम किया, दवा खाई और अगली सुबह मेकअप से अपने चोटिल शरीर को छिपा कर ईमान औफिस पहुंची. ऊपर से वह नौर्मल थी. मन की तहों में उस ने अपनी गलती स्वीकार कर सचिन को माफ कर दिया था. फिर भी उस के मन में अब सचिन के प्रति एक डर बैठ गया. वह उस की किसी भी बात का विरोध नहीं करती और न ही कोई बहस करती. उस की हां में हां मिलाते हुए आराम से अगले कुछ दिन ऐसे ही बीते. किंतु सचिन का हाथ खुल चुका था. यदि कुछ उस की पसंद का न होता, समय पर न मिलता तो वह ईमान पर हाथ उठा देता, कभी चीखता तो कभी लात मारता. कभीकभी बेस्वाद खाने की थाली फेंकता तो कभी ‘क्यों मुझे गुस्सा दिलाती हो,’ कह अपना आपा खो बैठता.
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‘‘यहहुई न बात… क्या खबर सुनाई है… मेरी जान, सुन कर मजा आ गया,’’ पारुल ने चहकते हुए कहा.
‘‘धीरे बोल, दीवारों के भी कान होते हैं. कहीं यह खबर औफिस में न फैल जाए,’’ ईमान ने पारुल का हाथ दबाते हुए कहा.
‘‘कितना हैंडसम है सचिन, उस की जिम में तराशी हुई बौडी, पर ये सब हुआ कब?’’ पारुल को और भी उत्सुकता थी. आखिर खबर ही ऐसी थी और वह भी औफिस में उस की एकलौती सहेली के बारे में.
जब ईमान ने पहली बार सचिन को कंपनी की टीम मीटिंग में देखा था तभी उस की नजर अटक गई थी. लंबी कदकाठी, तीखी जौ लाइन, शर्ट की बाजुओं में से झांकता सुडौल शरीर बता रहा था कि यह गठीला बदन जिम ट्रेनिंग का नतीजा है, उस पर आजकल की लेटैस्ट फैशन वाली ट्रिम की हुई दाढ़ी. ईमान को फैशनेबल लोग बेहद पसंद आते थे. वह स्वयं भी समय की चाल से कदम मिला कर चलने वाली लड़की थी.
सचिन की निगाहें भी उस पर जड़ गई थीं. ईमान का छरहरा बदन, आकर्षक रंगरूप, मोतियों की लड़ी जैसे दांत, आत्मविश्वास से लबरेज मनमोहक मुसकराहट और नितंबचुंबी बाल सबकुछ सामने वाले के होश उड़ाने के लिए पर्याप्त थे. उस की बड़ीबड़ी कजरारी आंखों पर सज रहा सुनहरे फ्रेम का चश्मा उन्हें और भी पैना बना रहा था.
सचिन और ईमान को साथ काम करते करीब 6 माह बीत चुके थे. जितना औफिस में हो सकता था उतना रोमांस दोनों के बीच पनप चुका था. शुरुआत आंखों के इशारों से हुई थी और फिर दोनों ने एकसाथ लंच करना आरंभ कर दिया. कभीकभार दिल्ली की भीड़भरी शामों में घूमने निकल जाते. फिर ईवनिंग डेट पर कभी मूवी तो कभी डिनर, क्योंकि औफिस में ऐंटीरिलेशनशिप क्लौज था. इसलिए दोनों बाहर ही मिला करते. लेकिन ऐसा बहुत कम हो पाता. ईमान व सचिन के घर वाले धर्मभीरु सोच के शिकार थे. हमारे समाज में 21वीं सदी में भी धर्म का शिकंजा काफी कसा हुआ है. अपने बच्चों को उचित शिक्षा प्रदान करने, आत्मनिर्भर बना देने के बावजूद लोग उन्हें अपने जीवन का सब से महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार नहीं देते हैं. हिंदूमुसलमान होने के कारण इस रिश्ते को घर वालों की अनुमति मिलने की आशा बहुत कम थी. दोनों के बीच जो धर्म की पुख्ता दीवार खड़ी थी, उसे लांघना काफी कठिन लगता.
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रोमांस की राह में थोड़ा आगे बढ़ने के बाद दोनों ने अपने रिश्ते को अगले पड़ाव पर ले जाने का निश्चय किया. किंतु शादी की बात घर में कौन चलाए, यह सोच दोनों अकसर उलझन में रहने लगे. जैसे ईमान के घर वालों का इस रिश्ते के लिए तैयार होना लगभग नामुमकिन था, वैसे ही सचिन के परिवार वाले भी इस शादी के लिए कभी तैयार नहीं होंगे. इस स्थिति से मुक्ति पाने का एक ही तरीका दोनों को सूझा रजिस्टर्ड मैरिज का. दोनों ने कोर्ट में अर्जी दे दी और 1 महीने पश्चात चुपचाप कोर्ट में शादी कर ली. अब परिवार वाले केवल कोस सकते थे, उन का कुछ बिगाड़ नहीं सकते थे.
वही हुआ जिस का अनुमान था. दोनों परिवारों को जब इस विवाह के बारे में ज्ञात हुआ तो दोनों ही ओर से नवदंपती की झोली में केवल बद्दुआएं, मांओं के अश्रु और नाउम्मीदी हाथ लगी. पर वह प्यार ही क्या जो पथरीली राह से डर जाए. सचिन और ईमान अपने प्यार के साथ आगे बढ़ चले. इसी शहर में दोनों ने 1 वनरूम सैट ले लिया. दोनों के लिए पर्याप्त था. महानगरों में रहने का एक लाभ यह भी है कि इतने बड़े शहर, इतने लोगों की भीड़ में आप आसानी से खो सकते हैं.
एक ही शहर में रहते हुए भी दोनों अपनेअपने परिवार से दूर थे. ईमान और सचिन अपना थोड़ाबहुत सामान ले कर शिफ्ट हो गए. पूरा वीकैंड दोनों ने अपना नया आशियाना सैट करने में लगाया. सैकंड हैंड सोफा सैट के साथ लकड़ी की गोल मेज पर रखे गुलदान में ईमान ने ड्राई फ्लौवर अरेंजमैंट सजाया. रात तक घर सजाते हुए दोनों थक कर चूर हो चुके थे.
‘‘खाना कौन बनाएगा?’’ पूछते हुए ईमान हंसी.
‘‘आज बाहर से मंगवा लेते हैं. रूटीन सैट होने पर दोनों जिम्मेदारियां लेंगे,’’ सचिन का उत्तर ईमान का दिल जीत गया. वह सचिन से अपने परिवार के विरुद्ध जा कर शादी करने के अपने निर्णय से संतुष्ट भी हुई और हुलसित भी.
आज दोनों की सुहागरात थी, किंतु कोई फूलों की सेज नहीं, न ही मखमली बिस्तर और सुगंधित कक्ष, मगर प्रेमसिक्त खुमारी उन्हें मदहोश किए थी. जब प्यार के सुवास ने रिश्ते को स्पर्श कर दिया तो फिर बाहरी खुशबू का क्या काम. एकदूसरे की बांहों में झूलते, खिलखिलाते हुए मधुसिक्त एहसास से परिपूर्ण वे विवाहित जीवन में कदम रख चुके थे.
सोमवार से दोनों साथ में औफिस जानेआने लगे. धीरेधीरे घर के कामकाज भी शुरू हो गए. सचिन बिल इत्यादि भरने का काम और बाहर से सामान लाने का काम संभाल चुका था और ईमान खाना पकाने और घर की देखभाल की जिम्मेदारी उठा रही थी. पर हां तड़का लगाने का काम सचिन का ही था. उस की स्मोकी दाल की क्या बात थी. सहर्षता से दोनों अपने रिश्ते में आगे बढ़ चुके थे. अब उन के बीच कोई दीवार न थी. हनीमून पीरियड चल रहा था. दोनों औफिस से घर लौटते, तत्पश्चात ईमान खाना पकाती, सचिन कपड़ों का रखरखाव करता, फिर डिनर कर दोनों एकदूसरे की बांहों में समा कर सो जाते. ईमान हर समय खिलीखिली रहती.
शादी को लगभग 3 माह बीत चुके थे. जिम्मेदारियों को निभाते हुए अब तक दोनों एक तय दिनचर्या का हिस्सा बन चुके थे.
‘‘आओ न ईमान, कितनी देर लगा रही हो…’’ रात को सचिन ने बिस्तर से आवाज लगाई.
ईमान किचन में बरतन साफ करते हुए कुछ अनमनी सी बोली, ‘‘आज बहुत थकान हो रही है, शायद पीरियड्स आने वाले हैं, इसलिए शरीर गिरागिरा सा हो रहा है.’’
‘‘यार यह हर महीने की मुसीबत है,’’ सचिन का यह कहना ईमान को रास न आया, ‘‘तुम से क्या मांगती हूं? काम तो फिर भी कर ही रही हूं न?’’ उस ने भी प्रतिउत्तर में सड़ा सा जवाब दे डाला. दफ्तरी परिश्रम उसे भी उतना ही चूर करता था जितना सचिन को.
‘‘यह धौंस किसी और को दिखाना समझी?’’ सचिन उस के यों जवाब देने से चिढ़ कर बोला.
‘‘ऐसे कैसे बात कर रहे हो, सचिन? अपनी हद में रहो, मैं तुम्हारी बीवी हूं,’’ ईमान को भी गुस्सा आ गया. मगर सचिन आज दूसरे ही मूड में था. वह झटके से बिस्तर से उठा और फिर ईमान को उस की जींस की बैल्ट से पकड़ कर खींचते हुए बिस्तर पर ला पटका.
जब ईमान चिल्लाई कि ये क्या कर रहे हो तो सचिन ने एक थप्पड़ रसीद कर दिया.
आज सचिन ने उस की एक न सुनी और ईमान की इच्छा के विरुद्ध उस की अस्मत को छलनी कर डाला. इस पूरे समय सचिन लगातार आक्रोशपूर्ण अपशब्द उगलता रहा, ‘‘जब खुद का मूड होता है तब सब ठीक लगता है और जब मेरा मूड होता है तब? तेरे होते हुए किसी दूसरी को पकड़ कर लाऊं क्या?’’
न जाने क्याक्या सुना था ईमान ने उस रात. पिघला सीसा कानों से उतर कर दिल और दिमाग को सुन्न कर गया था. अपनी भूख शांत कर सचिन मुंह फेर कर सो गया.
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कुछ देर यों ही पड़े रहने के बाद ईमान ने अपने छटपटाते शरीर को संभाला और बाथरूम में चली गई. शावर के नीचे वह टूट कर गिर पड़ी. न जाने कितनी देर तक वहां पड़ी रोती रही, तड़पती रही. सचिन की जिस जिमटोन बौडी की वह कभी फैन थी, आज उसी शरीर ने उसे रौंद डाला था.
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