हर चीज की शुरुआत के साथ अंत भी होता है: ‘मुन्नाभाई’ फिल्म सीरीज पर अरशद वारसी

मुन्नाभाई एमबीबीएस एक ऐसी फिल्म है जिसने लोगों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ी है. फिल्म की तीसरी कड़ी को लेकर बौलीवुड एक्टर अरशद वारसी ने कहा है कि फिल्म के डायरेक्टर राजू हिरानी, प्रड्यूसर विधु विनोद चोपड़ा और संजू भाई और वो खुद भी अगली कड़ी में काम करना चाहते हैं लेकिन अभी तक कोई फिल्म नहीं बनी है. राजू हिरानी के पास तीन स्क्रिप्ट भी हैं लेकिन अरशद ने उन्हें बताया कि जो चीज शुरू होती है उसका अंत होना भी जरूरी है.

 

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मुन्नाभाई की सीरीज में राजकुमार हिरानी ने बेस्ट फिल्में दी हैं. यह उनके करियर की बहुत अच्छी फिल्म है और ट्रैक रिकॉर्ड पर भी यह बहुत अच्छी रही हैं. इस फिल्म को दर्शकों ने भी बहुत पसंद किया है. फिल्म बौक्स ऑफिस पर भी सुपरहिट रही थी. स्टोरी के साथ-साथ औडियंस के दिलों पर मुन्ना और सर्किट की जोड़ी को भी दर्शकों ने बहुत पसंद किया. यह एवरग्रीन फिल्म थी और समय के साथ और स्पेशल होती गई.

इसके साथ ही वर्क फ्रंट की बात करें तो अरशद इन दिनों जौली एलएलबी की तीसरी कड़ी में काम कर रहे हैं. फिल्म को सुभाष कपूर ने लिखा है और डायरेक्ट भी किया है. फिल्म की पहली कड़ी मार्च 2013 में आई थी. इसके बाद फरवरी 2017 में इसकी दूसरी कड़ी आई थी. यह फिल्म सच्ची घटना पर आधारित है. फिल्म संजीव नंदा हिट एंड रन केस पर केंद्रित थी.

 

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फिल्म में एक्टर अरशद वारसी गरीब मजदूरों की ओर से लड़ाई लड़ते हैं लेकिन उनके खिलाफ कुशल वकील राजपाल नियुक्त किए जाते हैं. राजपाल वकील का रोल फिल्म अभिनेता बोमन ईरानी ने किया था. दूसरी कड़ी में एक वकील फर्म शुरू करने के लिए एक महिला को धोखा देता है। जब उसे पता चलता है कि उस महिला ने आत्महत्या कर ली है और उसके साथ अन्याय हुआ था, तो वह खुद को दोषी समझता है और गलती सुधारने की कोशिश करता है.

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रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः आदित्य चोपड़ा

निर्देशकः करण मल्होत्रा

लेखकः एकता पाठक मलहोत्रा,नीलेश मिश्रा,खिला बिस्ट,पियूष मिश्रा

कलाकारः रणबीर कपूर,संजय दत्त, वाणी कपूर, रोनित रौय,सौरभ शुक्ला,क्रेग मेक्गिनले व अन्य

 अवधिः दो घंटे 40 मिनट

सिनेमा एक कला का फार्म है. सिनेमा समाज का प्रतिबिंब होता है. सिनेमा आम दर्शक के लिए  मनोरंजन का साधन है. मगर इन सारी बातों को वर्तमान समय का फिल्म सर्जक भूल चुका है. वर्तमान समय का फिल्मकार तो महज किसी न किसी अजेंडे के तहत ही फिल्म बना रहा है. कुछ फिल्मकार तो वर्तमान सरकार को ख्ुाश करने या सरकार की ‘गुड बुक’ में खुद को लाने के ेलिए अजेंडे के ही चलते फिल्म बनाते हुए पूरी फिल्म का कबाड़ा करने के साथ ही दर्शकों को भी संदेश दे रहे हंै कि दर्शक उनकी फिल्म से दूरी बनाकर रहे. कुछ समय पहले फिल्म ‘‘सम्राट पृथ्वीराज ’’ में इतिहास का बंटाधार करने के बाद अब फिल्म निर्माता आदित्य चोपड़ा ने जाति गत व धर्म के अजेंडे के तहत पीरियड फिल्म ‘‘शमशेरा’’ लेकर आए हैं,जिसमें न कहानी है, न अच्छा निर्देशन न कला है. जी हॉ! फिल्म ‘शमशेरा’ 1871 से 1896 तक नीची जाति व उंची जाति के संघर्ष की अजीबोगरीब कहानी है,जो पूरी तरह से बिखरी और भटकी हुई हैं. इतना ही नही फिल्म ‘शमशेरा’’ में नीची जाति यानीकि खमेरन जाति के लोगों को नेस्तानाबूद करने का बीड़ा उठाने वाल खलनायक का नाम है-शुद्धि सिंह. इससे भी फिल्मकार की मंशा का अंदाजा लगाया जा सकता है. अब यह बात पूरी तरह से साफ हो गयी है कि इस तरह अजेंडे के ेतहत फिल्म बनाने वाले कभी भी बेहतरीन कहानी युक्त मनोरंजक फिल्म नही बना सकते. वैसे इसी तरह आजादी से पहले चोर कही जाने वाली अति पिछड़ी जनजाति ‘क्षारा’  गुजरात के कुछ हिस्से मंे पायी जाती थी. इस जनजाति के लोगो ने अपने मान सम्मान के लिए काफी लड़ाई लड़ी. इनका संघर्ष आज भी जारी है.

आदित्य चोपड़ा की पिछले कुछ वर्षों से लगातार फिल्में बाक्स आफिस पर डब रही हैं. सिर्फ तीन माह के अंदर ही ‘जयेशभाई भाई जोरदार’ व ‘सम्राट पृथ्वीराज’ के बाद बाक्स आफिस पर दम तोड़ने वाली ‘शमशेरा’ तीसरी फिल्म साबित हो रही है. मजेदार बात यह है कि आदित्य चोपड़ा निर्मित यह तीनों फिल्में धर्म का भ्रम फैलाने के अलावा कुछ नही करती. इसकी मूल वजह यह भी समझ में आ रही है कि अब फिल्म निर्माण नहीं बल्कि फैक्टरी का काम हो रहा है. मुझे उस वक्त बड़ा आश्चर्य हुआ जब एक बड़ी फिल्म प्रचारक ने कहा-‘‘अब क्वालिटी नही क्वांटीटी का काम हो रहा है,जिसकी सराहना की जानी चाहिए. ’ ’ वैसे फिल्म प्रचारक ने एकदम सच ही कहा. पर क्वांटीटी के नाम पर उलजलूल फिल्मों का सराहना तो नही की जा सकती. ऐसी पीआर टीम किसी फिल्म या निर्माता निर्देशक या कलाकारों को किस मुकाम पर ले जाएगी, इसका अहसास हर किसी को कर लेना चाहिए.

कहानी:

कहानी 1871 में शुरू होती है. उत्तर भारत के किसी कोने में एक खमेरन नामक बंजारी कौम थी,जिसने मुगलों के खिलाफ राजपूतों का साथ दिया.  लेकिन मुगल जीत गए और राजपूतों ने खमेरनों को नीची जाति बता कर हाशिये पर डाल दिया. इससे शमशेरा(रणबीर कपूर) के नेतृत्व में खमेरन बागी हो गए और वह हथियार उठाकर डाकू बन गए.  शमशेरा और उसके साथियों ने अमीरों की नाक में दम कर दिया. तब अमीरों ने अंग्रेज अफसरों से मदद की गुहार लगायी.  अंग्रेज पुलिस बल में नौकरी कर रहा दरोगा शुद्ध सिंह (संजय दत्त) अपने हुक्मनारों से कहता है कि वह शमशेरा को ठीक कर देगा. शुद्ध सिंह,शमशेरा को समझाता है कि सभी खमेरन के साथ वह सरकार के सामने आत्म समर्पण कर दें,जिसके बदले में अंग्रेज उन्हे अमीरो से दूर एक नए इलाके में बसाएंगे.  पैसा भी देंगे.  इससे वह और उसकी पूरी कौम सम्मान और इज्जत का जीवन फिर शुरू कर सकते हैं. शमशेरा समझौते को मंजूर कर लेता है. लेकिन आत्मसमर्पण करते ही शमशेरा को अहसास होता है कि उसके और खमेरन कौम को धोखा मिला है.  शुद्ध सिंह ने इन सभी को काजा नाम की जगह पर बनी विशाल किलेनुमा जेल में कैद कर देता है और फिर इनके साथ गुलामों से भी बदतर व्यवहार किया जाता है. इस किले के तीन तरफ से अति गहरी आजाद नदी बहती है. शमशेरा को शुद्ध सिंह समझाता है कि अंग्रेज लालची हैं. अमीरों ने पांच हजार करोड़ सोने के सिक्के दिए हैं,वह दस हजार करोड़ सोने के सिक्के दे,तो उसे व उसकी पूरी खमेरन कौम को आजादी मिल जाएगी. स्टैंप पेपर पर लिखा पढ़ी हो जाती है. सोना जमा करने के लिए किले से बाहर निकलना जरुरी है. इसी चक्कर में शुद्ध सिंह की चाल में फंसकर शमशेरा न सिर्फ मारा जाता है,बल्कि खमेरन कौम उसे भगोड़ा भी कहती है.

शमशेरा की मौत के वक्त उसकी पत्नी गर्भवती होती है,जो कि बेटे बल्ली (रणबीर कपूर) को जन्म देती है. बल्ली 25 वर्ष का हो गया है. मस्ती करना और जेल के अंदर डांस करने आने वाली सोना(वाणी कपूर ) के प्यार में पागल है. अब तक उसे किसी ने नहीं बताया कि उसे भगोड़े का बेटा क्यों कहा जाता है. बल्ली भी अंग्रेजों की पुलिस में अफसर बनना चाहता है. शुद्धसिंह उसे अफसर बनाने के लिए परीक्षा लेने के नाम पर बल्ली की जमकर पिटायी कर देता है. तब उसकी मां उसे सारा सच बाती है कि उसका पिता भगोड़ा नही था,बल्कि सभी खमेरन को आजाद करने की कोशिश में उन्हे मौत मिली थी. तब बल्ली भी अपने पिता की ही राह पकड़कर उस जेल से भागने का प्रयास करता है,जिसमें उसे कामयाबी मिलती है. वह काजा से निकलकर नगीना नामक जगह पहुॅचता है,जहां उसके पिता के खमेरन जाति के कई साथी रूप बदलकर शमशेरा के आने का इंतजार कर रहे हैं. उसके बाद बल्ली उन सभी के साथ मिलकर सभी खमेरन को आजाद कराने के लिए संघर्ष शुरू करता है. सोना भी उसके साथ है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः शुद्धसिंह मारा जाता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसके चार लेखक व निर्देशक करण मल्होत्रा खुद हैं. फिल्म में एक नहीं चार लेखक है और चारों ने मिलकर फिल्म का सत्यानाश करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है. इनचारों ने 2013 की असफल हौलीवुड फिल्म ‘‘द लोन रेंजर’’ की नकल करने के साथ ही डाकू सुल्ताना,फिल्म ‘नगीना’ व असफल फिल्म ‘ठग्स आफ हिंदुस्तान’ का कचूमर बनाकर ‘शमशेरा’ पेश कर दिया. लेखकों व निर्देशक के दिमागी दिवालियापन की हद यह है कि इस जेल के अंदर सभी खमेरन मोटी मोटी लोहे की चैन से बंधे हुए हैं. इन्हे नहाने के लिए पानी नहीं मिलता. दरोगा शुद्ध सिंह इनसे क्या काम करवाता है,यह भी पता नही. सभी के पास ठीक से पहनने के लिए कपड़े नही है. इन सब के बावजूद बल्ली अच्छे कपड़े पहनता है. बल्ली ने अंग्रेजी भाषा की पढ़ाई कहां व कैसे की. वह अंग्रेजों और शमशेरा के बीच हुआ अंग्रेजी में लिखा समझौता पढ़-समझ लेता है. वह नक्शा पढ़ लेता है. आसमान में देखकर दिशा समझ जाता है. सोना जैसी डंासर से इश्क भी कर लेता है.

हौलीवुड फिल्म ‘‘ द लोन रेंजर’’ में ट्ेन,सफेद घोड़ा व लाखों कौए,बाज पक्षी के साथ ही पिता की मृत्यू के बदले की कहानी भी है. यह सब आपको फिल्म ‘‘शमशेरा’’ में नजर आ जाएगा.  शमशेरा और बल्ली पर जब भी मुसीबत आती है,उनकी मदद करने लाखों कौवे अचानक पहुॅच जाते हैं,ऐसा क्यांे होता है,इस पर फिल्म कुछ नही कहती. लेकिन जब बल्ली किले से भाग कर एक नदी किनारे बेहोश पड़ा होता है, तो उसे होश में लाने के लिए कौवे की जगह अचानक एक बाज कैसे आ जाता है? मतलब पूरी फिल्म बेसिर पैर के घटनाक्रमों का जखीरा है. एक भी दृश्य ऐसा नही है जिससे दर्शकों का मनोरंजन हो. इंटरवल से पहले तो फिल्म कुछ ठीक चलती है,मगर इंटरवल के बाद केवल दृश्यों का दोहराव व पूरी फिल्म का विखराव ही है.

2012 में फिल्म ‘अग्निपथ’ का निर्देशन कर करण मल्होत्रा ने उम्मीद जतायी थी कि वह एक बेहतरीन निर्देशक बन सकते हैं. मगर 2015 में फिल्म ‘‘ब्रदर्स’’ का निर्देशन कर करण मल्होत्रा ने जता दिया था कि उन्हे निर्देशन करना नही आता. अब पूरे सात वर्ष बाद ‘शमशेरा’ से जता दिया कि वह पिछले सात वर्ष निर्देशन की बारीकियां सीखने की बजाय निर्देशन के बारे में उन्हे जो कुछ आता था ,उसे भी भूलने का ही प्रयास करते रहे. तभी तो बतौर निर्देशक ‘शमशेरा’ में वह बुरी तरह से असफल रहे हैं. फिल्म के कई दृश्य अति बचकाने हैं. निर्देशक को यह भी नही पता कि 25 वर्ष में हर इंसान की उम्र बढ़ती है,उसकी शारीरिक बनावट पर असर होता है. मगर यहां शुद्ध सिंह तो ‘शमशेरा’ और ‘बल्ली’ दोनो के वक्त एक जैसा ही नजर आता है.

फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी पीयूष मिश्रा लिखित संवाद हैं. कहानी 1871 से 1896 के बीच की है. उस वक्त तक देश में खड़ी बोली का प्रचार प्रसार होना शुरू ही हुआ था.  अवधी और ब्रज बोलने वाला फिल्म में एक भी किरदार नहीं है जो उत्तर भारत की उन दिनों की अहम बोलियां थी.

फिल्म की मार्केटिंग और पीआर टीम ने इस फिल्म को आजादी मिलने से पहले अंग्रेजों से देश की आजादी की कहानी के रूप में प्रचार किया. जबकि यह पूरी फिल्म देश की आजादी नही बल्कि एक कबीले या यॅंू कहें कि एक आदिवासी जाति की आजादी की कहानी मात्र है.  जी हॉ!यह स्वतंत्रता की लड़ाई नही है. इस फिल्म में अंग्रेज शासक विलेन नही है. फिल्म में अंग्रेजांे यानी श्वेत व्यक्ति की बुराई नही दिखायी गयी है. बल्कि कहानी पूरी तरह से देसी जातिगत संघर्ष पर टिकी है,जिसका विलेन भारतीय शुद्ध सिंह ही है.

फिल्म का वीएफएक्स भी काफी घटिया है. फिल्म का गीत व संगीत भी असरदार नही है. फिल्म के संगीतकार मिथुन ने पूरी तरह से निराश किया है. फिल्म का बैकग्राउंड संगीत कान के पर्दे फोड़ने पर आमादा है. यह संगीतकार की सबसे बड़ी असफलता ही है.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो यह फिल्म और यह किरदार उनके लिए नही था. उन्हें फिलहाल रोमांस और डांस ही करना चाहिए. जितना काम यहां उन्होंने किया, उतना कोई भी कर सकता था. वैसे भी यह रणबीर कपूर वही है जो आज भी अपने कैरियर की पहली फिल्म का नाम नही बताते. उनकी इच्छा के अनुसार सभी को पता है कि रणबीर कपूर की पहली फिल्म ‘‘सांवरिया’’ थी,जिसके लिए उन्होने अपनी पहली फिल्म को कभी प्रदर्शित नही होने दिया. पर ‘सांवरिया’ असफल रही थी. वैसे रणबीर कपूर ने अपनी 2018 में प्रदर्शित अपनी पिछली फिल्म ‘‘संजू’’ में बेहतरीन अभिनय किया था. मगर चार वर्ष बाद ‘शमशेरा’ से अभिनय में वापसी करते हुए वह निराश करते हैं.

वाणी कपूर ने 2013 में प्रदर्शित अपनी पहली ही फिल्म ‘‘शुद्ध देसी रोमांस’’ से जता दिया था कि उन्हे अभिनय नही आता. उनके पास दिखाने के लिए सिर्फ खूबसूरत जिस्म है. उसके बाद ‘बेफिक्रे’,‘वार’,‘बेलबॉटम’ और ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’ में भी उनका अभिनय घटिया रहा. फिल्म ‘शमशेरा’ में भी वही हाल है.  उनके कपड़े डिजाइन और मेक-अप करने वाले भूल गए कि कहानी साल 1900 से भी पुरानी है. इस फिल्म में भी कई जगह उन्होने बेवजह अपने जिस्म की नुमाइश की है. देखना है इस तरह वह कब तक फिल्म इंडस्ट्ी मंे टिकी रहती हैं. इरावती हर्षे का अभिनय ठीक ठाक है.

कुछ मेकअप की कमियों को नजरंदाज कर दें तो संजय दत्त ने कमाल का अभिनय किया है. वैसे उनका किरदार काफी लाउड है.  संजय दत्त का किरदार फिल्म का खलनायक है,पर वह क्रूर कम और कॉमिक ज्यादा नजर आते हैं.  फिर भी उनका अभिनय शानदार है. पूरी फिल्म में सिर्फ संजय दत्त ही अपनी छाप छोड़ जाते हैं. सौरभ शुक्ला जैसे शिक्षित कलाकार ने यह फिल्म क्यों की,यह बात समझ से परे है. शायद रोनित राय ने भी महज पेसे के लिए फिल्म की है.

क्या होना चाहिएः

यश राज चोपड़ा की कंपनी ‘यशराज फिल्मस’’ की अपनी एक गरिमा रही है. यह प्रोडक्शन हाउस उत्कृष्ट सिनेमा की पहचान रहा है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ‘यशराज फिल्मस’ की छवि काफी धूमिल हुई है. इस छवि को पुनः चमकाने और  अपने पिता यशराज चोपड़ा के यश को बरकरा रखने के लिए आवश्यक हो गया है कि अब आदित्य चोपड़ा गंभीरता से विचार करें. बौलीवुड का एक तबका मानता है कि अब वक्त आ गया है,जब आदित्य चोपड़ा को अपने प्रोडक्शन हाउस की रचनात्मक टीम के साथ ही मार्केटिंग व पीआर टीम में अमूलचूल बदलाव कर सिनेमा को किसी अजेंडे की बजाय सिनेमा की तरह बनाएं.  माना कि ‘यशराज फिल्मस’ के पास बहुत बड़ा सेटअप है. पर आदित्य चोपड़ा को चाहिए कि वह अपनी वर्तमान टीम में से कईयों को बाहर का रास्ता दिखाकर सिनेमा की समझ रखने वाले नए लोगों को जगह दे, वह भी ऐसे नए लोग, जो उनके स्टूडियो में कार से स्ट्रगल करने न आएं.  जिनका दिमाग विदेशी सिनेमा के बोझ तले न दबा हो.  कम से कम इतनी असफल फिल्मों के बाद आदित्य को समझ लेना चाहिए कि एक अच्छी फिल्म सिर्फ पैसे से नहीं बनती.

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रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः आदित्य चोपड़ा

लेखक व निर्देशकः डॉं.  चंद्रप्रकाश द्विवेदी

कलाकारः अक्षय कुमार, मानुषी छिल्लर, मानव विज, संजय दत्त, सोनू सूद, ललित तिवारी व अन्य

अवधिः दो घंटे 15 मिनट

भारतीय इतिहास में सम्राट पृथ्वीराज चैहान को वीर योद्धा माना जाता है. मगर उन्ही पर बनायी गयी फिल्म ‘‘सम्राट पृथ्वीराज’’ में  पृथ्वीराज की वीरता पर ठीक से रेखांकित नही किया गया है. इसके अलावा पिछले एक सप्ताह से अक्षय कुमार और डां. चंद्रप्रकाश द्विवेदी जिस तरह के विचार व्यक्त कर रहे थे,  उससे फिल्म कोसों दूर है. डां.  चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने यह फिल्म एक खास नरेटिब को पेश करते हुए बनायी है, मगर इसमें भी बुरी तरह से असफल रहे है.

कहानीः

फिल्म शुरू होती है गजनी,  अफगानिस्तान में मो. गोरी(मानव विज )के दरबार से, जहां बंदी बनाए गए सम्राट पृथ्वीराज चैहान (अक्षय कुमार ) को लाया जाता है, उनकी आंखें जा चुकी हैं. दर्शक दीर्घा में चंद बरदाई (सोनू सूद )भी हैं. वह वहां भी सम्राट की महानता का बखान करने वाला गीत गा रहे हैं. पृथ्वीराज का मुकाबला तीन शेरों से होता है, जिन्हे वह शब्द भेदी बाण से मार गिराते हैं. फिर वह मो.  घोरी से कहते हैं कि जानवरांे को छोड़िए आप या आपका बहादुर सैनिक मुझसे लड़ें. यदि मेरी जीत हो तो मेरे साथ सभी हिंदुस्तानियों को रिहा किया जाए. इसके बाद वह जमीन पर गिर पड़ते हैं और फिर कहानी अतीत में चली जाती है. और कहानी शुरू होती है कनौज के राजा जयचंद(आशुतोष राणा) की बेटी संयोगिता(मानुषी छिल्लर) और अजमेर के राजा पृथ्वीराज की प्रेम कहानी से. फिर तराइन का पहला युद्ध होता है, जहां मो. गोरी को हार का सामना करना पड़ता है. तो वहीं अजमेर के राजा पृथ्वीराज (अक्षय कुमार) को दिल्ली का राजा बनाया जाना उनके संबंधी और कन्नौज के राजा जयचंद (आशुतोष राणा) को रास नहीं आता. यही नहीं सम्राट पृथ्वीराज खुद से प्रेम करने वाली जयचंद की बेटी संयोगिता (मानुषी छिल्लर) को भी स्वयंवर के मंडप से उठा लाते हैं. इससे अपमानित जयचंद तराइन के पहले युद्ध में पृथ्वीराज के हाथों शिकस्त हासिल कर चुके गजनी के सुलतान मोहम्मद गोरी (मानव विज) को पृथ्वीराज को धोखे से बंदी बनाकर उसे सौंप देने की चाल चलता है.  जिसमें वह कायमाब होता है और सम्राट पृथ्वीराज,  मो. गोरी के बंदी बन जाते हैं.  कहानी फिर से वर्तमान में आती है पृथ्वीराज के आव्हान को स्वीकार कर मो.  गोरी ख्ुाद पृथ्वीराज  से युद्ध करने के लिए मैदान में उतरता है. फिर क्या होता है, इसके लिए फिल्म देखना ही ठीक होगा.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म में संजय दत्त के अभिनय को छोड़कर ऐसा कुछ भी नही है, जिसकी तारीफ की जाए. फिल्म के लेखक व निर्देशक डां.  चंद्र प्रकाश द्विवेदी के बारे में कहा जाता है कि उन्हे इतिहास की बहुत अच्छी समझ है, मगर अफसोस फिल्म देखकर इस बात का अहसास नही होता. हमने अब तक जो कुछ किताबांे में पढ़ा है, या जो लोक गाथाएं सुनी हैं,  उनसे विपरीत फिल्म का क्लायमेक्स  गढ़कर डां.  चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने देश की जनता के सामने एक नए इतिहास को पेश किया है. यह इतिहास उन्हे कहां से पता चला यह तो वही जाने. पटकथा में विखराव बहुत है. बतौर निर्देशक वह बुरी तरह से मात खा गए हैं. फिल्म को बनाते समय डॉं.  चंद्र्रप्रकाश द्विवेदी यह भी भूल गए कि यह फिल्म ग्यारहवीं सदी की है न कि वर्तमान समय की. फिल्म के गीत और भाषा वर्तमान समय की है. फिल्म में पृथ्वीराज चैहान व संयोगिता के संवादो में उर्दू शब्द ठॅूंेसे गए हैं. ‘हद कर  दी. . ’गाना कहीं से भी ग्यारहवी सदी का गाना होनेे का अहसास नही कराता. ‘ये शाम है बावरी सी. . ’गाना भी एैतिहासिक फिल्म के अनुरूप नही है.  इतना ही नही शाकंभरी मंदिर में पृथ्वीराज अपनी पत्नी व अन्य के साथ डांडिया व गरबा डंास करते हैं. . क्या कहना. . यह है इतिहास के जानकार. . .  इंटरवल से पहले तराइन के पहले युद्ध के छोटे से दृश्य को नजरंदाज कर दें, तो फिल्म में एक भी युद्ध दृश्य नहीं है, जबकि कहानी वीर योद्धा पृथ्वीराज चैहान की है. फिल्म के सभी एक्शन दृश्य हाशिए पर ढकेलने लायक हैं. प्रेम कहानी व जयचंद की कहानी को ज्यादा महत्व दिया गया है. इसके साथ ही नारी सम्मान व नारी उत्थान पर भी कुछ अच्छे संवाद है. ‘चाणक्य’ सीरियल व ‘पिंजर’ जैसी फिल्म के लेखक व निर्देशक डॉं. चंद्र प्रकाश द्विवेदी के अब तक के कैरियर का यह सबसे घटिया काम है.  इतना ही नहीं वह जो बयान बाजी कर रहे हैं और फिल्म से जो बात निकलकर आती है, उसमे विरोधाभास है. फिल्म देखकर अहसास होता है कि मो. गोरी को हिंदुस्तान भारत पर आक्रमण करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह तो पृथ्वीराज चैहाण को भी नही मारना चाहता था. वह इतना चाहता था कि पृथ्वीराज उसके सामने सिर झुका लें. आखिर लेखक एवं निर्देशक स्पष्ट रूप से कहना क्या चाहते हैं?वह बार बार अंतिम ंिहंदू राजा की बात जरुर करते हैं.

फिल्म में वह पृथ्वीराज और उनके बचपन के दोस्त व राज दरबारी कवि चंद बरदाई की दोस्ती व उसके इमोशंस को भी ठीक से चित्रित नही कर पाए. मगर इसमें उनका कोई दोष नही है. कहा जाता है कि इंसान के निजी जीवन की फितरत व स्वभाव जाने अनजाने उसके लेखन व उसकी बातों सामने आ ही जाता है.

फिल्म का वीएफएक्स बहुत कमजोर है. फिल्म के शुरूआत में शेर से लड़ने वाले दृश्य का वीएफएक्स ही नही एडीटिंग भी कमजोर है.

अभिनयः

अफसोस पृथ्वीराज के किरदार में अक्षय कुमार कहीं से भी फिट नहीं बैठते. वह हर दृश्य में कमजोर साबित हुए है. संयोगिता के किरदार में विश्व सुंदरी मानुषी छिल्लर भी निराश करती है. वह विश्व सुंदरी का ताज पहने हुए जितनी खूबसूरत लगी थी, इस फिल्म में वह उतनी खूबसूरत नही लगी. जहां तक अभिनय का सवाल है, तो हर दृश्य में उनका सपाट चेहरा ही नजर आता है. यदि मानुषी को अभिनय जगत में  कामयाब होना है, तो उन्हे बहुत मेहनत करने की जरुरत है.  काका कान्हा के किरदार में संजय दत्त अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं. चंद बरादाई के किरदार में सोनू सूद प्रभावित करने में विफल रहे हैं. वास्तव में उनके किरदार को सही ढंग से लिख ही नही गया. मो. गोरी के किरदार में मानव विज का चयन ही गलत है. इसके अलावा विलेन को इतना कमजोर दिखाया गया है कि कल्पना नहीं की जा सकती. वैसे मो.  गोरी का किरदार छोटा ही है.

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रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः विजय किरगंडूर

निर्देशकः प्रशांत नील

कलाकारः यश,  श्रीनिधि शेट्टी , संजय दत्त,  प्रकाश राज, रवीना टंडन, अनंत नाग, रामचंद्र राजू,  मालविका अविनाश, अच्युत राजू,

अवधिः दो घंटे 48 मिनट

दक्षिण भारत में तमिल,  मलयालम, तेलगू और कन्नड़ यह चार भाषायी फिल्म इंडस्ट्री हैं, जिनमें से कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री सबसे कमतर यानीकि चैथे पायदान पर मानी जाती रही है. मगर 2018 में प्रदर्शित कन्नड़ स्टार यश की फिल्म ‘‘केजीएफ’’ ने  इस तथ्य को झुठला दिया था और हिंदी सहित अन्य भाषाओं में डब होकर प्रदर्शित इस फिल्म ने कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री को एक नया मुकाम दिलाया था. मगर अब अभिनेता यश और निर्देशक प्रशांत नील उसी फिल्म  का सिक्वअल ‘‘ के जी एफ चैप्टर 2’’ लेकर आए हैं, जिसने दर्शकों को घोर निराश करने के साथ ही 2018 में कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री की जो ईमेज चमकी थी, उसे भी धूमिल कर दी. फिल्म महज एक गेंगस्टर @ अपराधी को ग्लोरीफाई करती हैं,  जिसके लिए जो तर्क दिए गए हैं, वह सब पूर्णरूपेण गलत है.

कहानीः

फिल्म की शुरुआत लेखक आनंद इंगलागी के बेटे विजयेंद्र इंगलागी(प्रकाश राज )से होती है,  जो कि एक टीवी चैनल की संपादक दीपा हेगड़े(मालविका अविनाश) के जोर देने पर विजयेंद्र अपने पिता की लायब्रेरी में जाकर ‘केजीएफ’के दूसरे हिस्से की कहानी तलाशकर दीपा हेगड़े को सुनाते हैं.  कहानी के अनुसार गरुड़ को मारने के बाद रॉकी(यश) केजीएफ का कार्यभार संभाल लेता है. इससे गुरु पांडियन(अच्युत कुमार),  एंड्रयूज(बी एस अविनाश) और दया(तारक ),  राजेंद्र देसाई( लक्की लक्ष्मण ) और कमल(तवाहिद राइक जमन) की झुंझलाहट बढ़ जाती है. क्योकि यह सभी केजीएफ पर शासन करने और इसकी अपार संपत्ति पर कब्जा करने की उम्मीद लगाए हुए थे. पर रॉकी तो गरीबों का मसीहा बना हुआ है. रॉकी, गरुड़ के भाई विराट और केजीएफ सिंहासन के उत्तराधिकारी को भी मार देता है. और राजेंद्र देसाई की बेटी रीना देसाई (श्रीनिधि शेट्टी) को जबरन अपने साथ रखता है. रॉकी हालांकि केजीएफ में सेना के कमांडर वानाराम को बख्श देता है. वानाराम,  पहले गुस्से में,  रॉकी से जुड़ जाता है और छोटे बच्चों को प्रशिक्षित करता है, जो क्षेत्र के नए गार्ड बन जाते हैं. रॉकी को पता चलता है कि इस क्षेत्र में कई बिना खुदाई वाली खदानें हैं और वह पुरुषों को इन जगहों से सोना निकालने का आदेश देता है. विचार यह है कि कम से कम समय में अधिक से अधिक सोने की खोज की जाए. इस बीच केजीएफ के संस्थापक सूर्यवर्धन के भाई अधीरा(संजय दत्त ) को मृत मान लिया गया. पता चलता है कि वह जीवित है और बदला लेने और स्वामित्व का दावा करने के लिए केजीएफ पहुंचता है. वह चालाकी से रॉकी को केजीएफ से बाहर निकालता है और उसे गोली मार देता है. वह रॉकी को जीवित रहने देता है ताकि केजीएफ में यह बात फैले कि भयानक अधीरा पहुंच चुका है. रॉकी स्वस्थ हो जाता है.  लेकिन रॉकी को पता चलता है कि कोई भी केजीएफ से बाहर नहीं निकल सकता, क्योंकि अधीरा के आदमियों ने खदानों को घेर लिया है.  इस बीच बॉम्बे में रॉकी के पूर्व बॉस शेट्टी ने पश्चिम और दक्षिण भारत के साथी गैंगस्टरों के साथ करार किया है,  और रॉकी के खिलाफ कार्रवाई करने की योजना बना रहा है. वह दुबई के एक खूंखार गैंगस्टर इनायत खलील के साथ भी काम कर रहे हैं. इतना ही नही रॉकी का सामना प्रधान मंत्री रमिका सेन(रवीना टंडन ) से भी होता है, जो उसे खत्म करना चाहती है. अब रॉकी इन सभी तत्वों से कैसे लड़ता है, इसके लिए फिल्म देखनी पड़ेगी.

लेखन व निर्देशनः

2018 में प्रदर्शित फिल्म ‘केजीएफ’ ने कन्नड़ भाषी सिनेमा को लेकर जो उम्मीदें जगायी थीं, उसी की सिक्वअल फिल्म ‘‘के जी एफ चैप्टर 2’’ ने काला दाग लगा दिया. और इसके लिए अभिनेता यश, निर्देशक  प्रशांत नील, साउंड इंजीनियर और एडीटर सभी दोषी हैं. सीधी सपाट कहानी पेश करने की बजाय जिस तरह से कहानी में कई दूसरे ट्रैक जिस तरह से जोड़े गए हैं, वह सब  भ्रम ही पैदा करते हैं. फिल्म में प्रेम कहानी का अस्तित्व न के बराबर है. फिल्म में एक जगह रॉकी औरतों व बच्चों का सम्मान करने की बात करता है, मगर वह खुद उनका शोषण कर रहा है. रॉकी, रानी की मर्जी के विपरीत जबरन उसे अपने साथ रखता है और अंततः एक दिन रानी को उसके साथ विवाह के लिए हां करना ही पड़ता है. तो वही फिल्मकार ने एक अपराधी को ग्लोरीफाई करते हुए उसके अपराध को सही ठहराने के लिए एक कहानी गढ़ी है कि रॉकी तो महज अपनी मां का वचन पूरा करने के लिए काम कर रहा है, इसीलिए वह स्वार्र्थी भी है. इसीलिए वह अपराध कर्म करता है. क्या यह तर्क जायज है. कम से कम एक भारतीय मां हमेशा अपने बच्चों को सही राह पर चलने, जिस पर अपना हक न हो, वैसी दूसरों की फूटी कौड़ी भी न लेने की ही सलाह देती है. तो वही रॉकी बात बात में अमीर व अमीरी को कोसता है, मगर खुद गरीबों का शोषण करता है. वह गरीबों पर भावनात्मक शोषण करते हुए उनसे सोने की खान खोदकर जल्द से जल्द ज्यादा से ज्यादा सोना निकालने का आदेश देता रहता है. अमीरों को कोसने वाला रॉकी अक्सर सूटेड बूटेड एक मॉडल की ही तरह नजर आता है. हेलीकोप्टर व हवाई जहाज से यात्रा करता है.

फिल्म के कुछ एक्शन दृश्य काफी अच्छे बन पड़े हैं.

फिल्म का पाश्र्वसंगीत बहुत ही ज्यादा कान फोड़ू है. . एडीटिंग में भी त्रुटियां हैं. कई जगहों पर फिल्म के युद्ध व एक्शन दृश्य वीडियो गेम जैसे लगते है.

लेखक व निर्देशक के दिमागी दिवालिए पन की सबसे बड़ी मिसाल भारतीय संसद का वह दृश्य है, जहां रॉकी अपने हाथ में मशीन गन थामें बेधड़क मुख्य द्वार से निडरता के साथ जाता है. उसे देखकर सारे सांसद भाग जाते हैं. प्रधानमंत्री व एक सांसद पांडियन ही रूकते हैं और रॉकी पूरी मशीनगन सांसद पांडियन पर खाली कर आराम से अपने केजीए्फ के अड्डे पर पहुॅच जाता है. माना कि यह फिल्म है और इसकी कहानी व घटनाक्रम पूरी तरह से काल्पनिक हैं. मगर कल्पना के नाम पर इस तरह के दृश्यों को कैसे जायज ठहराया जा सकता है. यह अफसोस की बात है कि यह फिल्म एक खलनायक को नायक की तरह पेया करती है, जिसका डेमोके्रसी में यकीन नही है. वह तो डेमोक्रेसी के खिलाफ बात करता है. आखिर इस तरह की फैंटसी व एक्शन प्रधान फिल्म हमें कहां ले जाना चाहती हैं?यह बहुत ही ज्यादा चिंता का विषय है.

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अभिनयः

रॉकी के किरदार में यश अभिनेता कम मॉडल ही ज्यादा नजर आते हैं. उन पर सुपर स्टार का हौव्वा हावी है. प्रधानमंत्री रमिका सेन के किरदार में रवीना टंडन अपनी छाप छोड़ गयी हैं. अधीरा के किरदार में संजय दत्त कई जगह थके हुए नजर आते हैं. उनका गेटअप जरुर लाजवाब है. रीना देसाई के किरदार में श्रीनिधि के हिस्से करने को कुछ आया ही नही.

Anupamaa की तरह ये Celebs भी कर चुके हैं बड़ी उम्र में से शादी

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) में फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां अनुपमा ने अनुज से शादी करने का फैसला कर लिया है तो वहीं उसके इस फैसले से बा का पारा चढ़ गया है. दरअसल, बा का कहना है कि दादी की उम्र में शादी का फैसला सही नही हैं. लेकिन टीवी सीरियल से हटकर रियल लाइफ में कई ऐसे सितारे हैं, जिन्होंने बड़ी उम्र में शादी की है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

बौलीवुड की सिंगल मदर ने भी की शादी

 

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बौलीवुड एक्ट्रेस नीना गुप्ता अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. एक्ट्रेस नीना गुप्ता की लाइफ से हर कोई वाकिफ है कि उनकी एक बेटी मसाबा गुप्ता है. हालांकि उन्होंने कभी शादी नहीं की थी. लेकिन साल 2002 में 6 साल रिलेशनशि में रहने के बाद एक्ट्रेस नीना ने 49 साल की उम्र में दिल्ली के एक चार्टेड अकाउंटेंट विवेक मिश्रा से शादी की थी.

 

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सुर्खियों में रही संजय दत्त की शादी

 

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बौलीवुड एक्टर संजय दत्त ने 48 साल की उम्र में 11 फरवरी 2008 को दिलनवाज शेख उर्फ मान्यता से शादी की थी. हालांकि संजय दत्त के शादी के फैसले के खिलाफ उनकी बहने थीं. लेकिन संजय दत्त ने अपनी बहन के मना करने के बावजूद एक्ट्रेस से तीसरी शादी की थी, जो कि उनसे 21 साल छोटी हैं.

 

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60 की उम्र में दुल्हन बनीं सुहासिनी

 

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टीवी की फेमस एक्ट्रेसेस में से एक सुहासिनी मुले ने भी 60 साल की उम्र में शादी करने का फैसला किया था. एक्ट्रेस ने 16 जनवरी  2011 में अतुल गुर्तु से शादी की थी. हालांकि यह एक्ट्रेस के पति की दूसरी शादी थी. क्योंकि उनके पहले पति का कैंसर से निधन हो गया था. वहीं इस शादी के बाद सुहासिनी मुले काफी ट्रोलिंग का शिकार हुई थीं. लेकिन दोनों ने कभी इस फैसले को नहीं बदला.

 

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अजय देवगन की फिल्म ‘भुजः द प्राइड आफ इंडिया’ का दूसरा ट्रेलर रिलीज, देखें यहां

अभिषेक दुधैया निर्देशित तथा अजय देवगन,संजय दत्त,सोनाक्षी सिन्हा और नोरा फतेही की  ऐतिहासिक सत्य घटनाक्रम पर आधारित फिल्म ‘भुजः द प्राइड ऑफ इंडिया‘ का दूसरा ट्रेलर मंगलवार को जारी होते ही वायरल हो गया.  यह फिल्म 13 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के सप्ताह में हॉट स्टार डिजनी पर स्ट्रीम होगी. फिल्म का दूसरा ट्रेलर देखकर लोगों के मन में देशभक्ति की भावना जागेगी.

फिल्म के निर्देशक अभिषेक दुधैया ने इस फिल्म को भव्य स्तर पर फिल्माया है. जिसकी झलक ट्रेलर  में भी नजर आती है. ट्रेलर में दिखाया गया है कि कैसे भारत ने पाकिस्तान के हमले के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की. वीडियो की शुरुआत पाकिस्तानी वायु सेना द्वारा भुज पर हमला करने के साथ होती है, जिसमें वॉयसओवर हमलावरों को निर्देश देते हुए कहता है-‘‘कच्छ से घुसो. भुज एअरबेस पर हमला करो. जितना ज्यादा से ज्यादा इलाका अपने कब्जे मे ले सकते हो,ले लो. उसके बाद हम दिल्ली में श्रीमती गांधी के साथ एक कप चाय साझा करेंगे।‘‘कुछ दृश्योें के बीच सुनाई देता है-‘‘हम उठे. हमने बलिदान किया. हमने जवाबी कार्रवाई की. ‘‘

फिर   इस ट्रेलर  में अजय देवगन का संवाद है-‘‘हम उस महा छत्रपति शिवाजी की औलाद हैं, जिन्होंने मुगलों को घुटनों र ला दिया था और अपने खून से हिदुस्तान का इतिहास लिखा था. ‘‘

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सोशल मीडिया पर इस वीडियो को साझा करते हुए अजय देवगन ने लिखा, ‘‘असहनीय बाधाओं का सामना करते हुए, हमारे नायकों ने हमें जीत की ओर अग्रसर किया.‘‘

इस ट्रेलर  में युद्ध के मैदान और जमीन पर हमारे सैनिकों द्वारा प्रदर्शित बहादुरी का नजारा भी दिखायी देता है. ट्रेलर में अजय देवगन (आईएएफ अधिकारी विजय कुमार कार्णिक), संजय दत्त (रणछोड़दास पागी), सोनाक्षी सिन्हा (सुंदरबेन जेठा), अम्मी विर्क ( विक्रम सिंह बाज जेठाज) और शरद केलकर (आरके नायर)भी नजर आते हैं.

ट्रेलर  में अजय देवगन का ट्क चलाते हुए एक्शन दृश्य का हिस्सा नजर आता है. इस एक्शन दृश्य को खतरनाक बताते हुए सह लेखक व निर्देशक अभिषेक दुधैया कह चुके हैं-‘‘फिल्म में एक खतरनाक एक्शन दृश्य है,जिसमें अजय देवगन ट्क चला रहे हैं,सामने से दूसरा ट्क आ जाता है,तो उससे बचने के लिए 360 डिग्री घूमकर फिर से उसी रोड पर उसी दिशा में सड़क पर जाना था. इसे अजय देवगन ने बड़ी बहादुरी से अंजाम दिया. जब अजय सर ने इस स्टंट को अंजाम दिया,तो सीट के साथ जो बेल्ट होती है,वह टूट गयी. फिर भी अजय देवगन रूके नहीं,ट्क को घुमाकर सही दिशा में लेकर आ गए. उस वक्त सभी ने फिंगर क्रास कर लिया था कि यह दृश्य सही सलामत सही ढंग से हो जाए. ’’

वैसे लगभग पंद्रह दिन पहले जब फिल्म‘‘भुज द प्राइड आफ इंडिया’’का पहला ट्रेलर जारी हुआ था,तब उसमें भी अजय देवगन की दमदार आवाज में कुछ धमाकेदार संवाद सुनने को मिले हैं.  फैंस इन संवादों के ही चलते इस फिल्म को लेकर काफी उत्साहित हैं. .

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सत्य घटना पर आधारित है फिल्म

फिल्म की कहानी 1971 के भारत पाक युद्ध के समय गुजरात के भुज एअरबेस पर घटी सत्य ऐतिहासिक घटनाक्रम पर है,जिसे निर्देशक व सह लेखक अभिषेक दुधैया की नानी मां लक्ष्मी परमार ने उन्हे सुनायी थी. जीहॉ! 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के वक्त गुजरात के भुज हवाई अड्डे के एअरबेस को पाकिस्तानी वायुसेना ने बमबारी से ध्वस्त कर दिया था. तब भुज हवाई अड्डे के तत्कालीन प्रभारी आईएएफ स्क्वाड्रन लीडर विजय कर्णिक और उनकी टीम ने मधापर व उसके आसपास के गांव की 300 महिलाओं की मदद से वायुसेना के एयरबेस का पुनः निर्माण किया था. उसी सत्य ऐतिहासिक घटनाक्रम पर औरतोे के शौर्य के साथ स्क्वाड्न लीडर विजय कार्णिक के शौर्य पर लेखक व निर्देशक अभिषेक दुधैया ने एक बड़े बजट की एक्शन फिल्म ‘‘भुजः द प्राइड आफ इंडिया’’बनायी है. एअरबेस का निर्माण करने वाली इन तीन सौ औरतों में अभिषेक दुधैया की नानी मॉं लक्ष्मी परमार भी थी.

कैंसर होने के बावजूद ‘शमशेरा’ की शूटिंग कर रहे हैं संजय दत्त, पढ़ें खबर

अगस्त माह के दूसरे सप्ताह में जब सांस लेने की तकलीफ की वजह से अभिनेता संजय दत्त मुंबई के लीलावती अस्पताल में इलाज कराने पहुंचे थे, तो वहां पर जांच के दौरान पता चला था कि वह फेफड़े के कैंसर यानी कि लंग कैंसर की बीमारी से पीड़ित हैं. उस वक्त खुद संजय दत्त ने ट्विटर पर जाकर ऐलान किया था कि वह अपनी बीमारी की वजह से कुछ दिनों के लिए अभिनय से दूरी बना रहे हैं. तब कयास लगाए जा रहे थे कि संजय दत्त तुरंत अपना इलाज कराने के लिए अमेरिका जाएंगे.

संजय दत्त के फेफड़े के कैंसर से पीड़ित होने की खबर आने के साथ ही बॉलीवुड में अजीब सा डर और चिंता की लहर पैदा हो गयो थी. यहां तक की कुछ निर्माता बहुत परेशान हो गए थे. क्योंकि उनकी फिल्में 90 प्रतिशत पूरी थी . ऐसे में संजय दत्त ने भी एक जिम्मेदार इंसान और अभिनेता के रूप में निर्णय लिया कि वह अपना अधूरा काम पूरा करने के बाद ही अमेरिका जाएंगे. फिर संजय दत्त ने अपनी पत्नी मान्यता से सलाह लेने के बाद मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल मैं अपना इलाज कराना शुरू कर दिया. थोड़ी सी राहत मिलने के बाद कल, सोमवार से संजय दत्त मुंबई में अंधेरी स्थित यशराज स्टूडियो में करण मल्होत्रा की फिल्म”शमशेरा “की शूटिंग कर रहे हैं, जिसके निर्माता यश राज स्टूडियो के ही मालिक आदित्य चोपड़ा है. हमें पता है कि “शमशेरा” की सारी शूटिंग रणबीर कपूर पूरी कर चुके हैं. संजय दत्त का 3 दिन की शूटिंग बाकी थी. जो कि कल तक पूरी हो जाएगी.

 

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#SanjayDutt snapped post his shoot today at Yashraj Studios. Glad he is feeling good👍

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संजय दत्त से जुड़े सूत्रों का दावा है कि संजय दत्त ने तय कर लिया है कि वह अजय देवगन की फिल्म “भुज द प्राइड ऑफ इंडिया”की अपनी बकाया डबिंग का काम भी पूरा करेंगे. उसके बाद वह फिल्म” केजीएफ 2″की जमीन का काम पूरा करेंगे. इस बीच वह अपना इलाज मुंबई में ही अंधेरी स्थित कोकिलाबेन अस्पताल में कराते रहेंगे.संजय दत्त और मान्यता दत्त ने निर्णय लिया है कि दिसंबर से पहले वह अपना बचा हुआ सारा काम पूरा करेंगे, जिससे किसी भी फिल्म निर्माता को नुकसान ना होने पाए.

सूत्रों का दावा है कि संजय दत्त दिसंबर माह में अमेरिका जाकर “मेमोरियल स्लोआन केटरिंग कैंसर सेंटर” में जाकर इलाज कराएंगे .तब तक संजय दत्त के बच्चों शहरान और इकरा की सर्दी की छुट्टियां भी शुरू हो चुकी होंगी. ऐसे में उनके बच्चे भी उनके साथ अमेरिका में रहेंगे. संजय दत्त चाहते हैं कि जब वह अमेरिका अपना इलाज कराने जाएं, तब उनके बच्चे और उनकी पत्नी मान्यता भी उनके साथ रहें.

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Film Review: जानें कैसी है आलिया भट्ट और संजय दत्त की फिल्म ‘सड़क 2’

रेटिंगः एक स्टार

निर्माता: विशेष फिल्म्स
निर्देशन: महेश भट्ट
कलाकार: संजय दत्त, आलिया भट्ट, प्रियंका बोस, मकरंद देशपांडे, आदित्य राय कपूर, जिशु सेनगुप्ता, मोहन कपूर, अक्षय आनंद व अन्य.
अवधि: 2 घंटे 14 मिनट
ओटीटी प्लेटफार्म: हॉटस्टार डिजनी

1991 महेश भट्ट निर्देशित फिल्म ‘सड़क’को लोगों ने काफी पसंद किया था. इस फिल्म में संजय दत्त और पूजा भट्ट की प्रेम कहानी में नयापन नहीं था. लेकिन जिस ढंग से पेश किया गया था, वह लोगों को भा गया था. आज महेश भट्ट लगभग 30 साल बाद एक बार फिर उसी सफलतम फिल्म ‘‘ सड़क ‘‘ का सिक्वल ‘‘ सड़क दो ‘‘ लेकर आए हैं. मगर इस बार वह बुरी तरह से मात खा गए.

30 वर्ष पुरानी फिल्म ‘‘ सड़क‘‘ की सिक्वल फिल्म ‘‘सड़क दो‘‘ बदले की कहानी के साथ-साथ अंधविश्वास व ढोंगी बाबाओं के खिलाफ की कहानी है.

कहानीः

यह कहानी आर्या देसाई( आलिया भट्ट )की है, जिसे लगता है कि उसकी मौसी नंदिनी ने उसकी मां शकंुतला की हत्या करवाकर उसकी मां की सारी संपत्ति पर कब्जा करने के लिए उसके पिता योगेश देसाई(जिशु सेन गुप्ता) से शादी की है. अब नंदिनी (प्रियंका बोस ) धर्म गुरू ज्ञान प्रकाश (मकरंद देषपांडे) के साथ मिलकर उसकी हत्या करवाना चाहती है. क्याेंकि सात दिन बाद 21 वर्ष की उम्र होने पर सारी संपत्ति की मालकिन आर्या हो जाएगी. इसीलिए उसे पागलखाने भिजवा दिया जाता है. आर्या पागलखाने से भागती हैं. अब आर्या को नंदिनी व ज्ञान प्रकाश से अपनी मां की मौत का बदला लेना है. वह रवि वर्मा(संजय दत्त) के पास पहुंचती हैं. रवि वर्मा अपनी स्वर्गवासी पत्नी पूजा(पूजा भट्ट) की याद में आत्महत्या करने का असफल प्रयास कर चुके हैं. वास्तव में आर्या ने अपने प्रेमी विशाल (आदित्य रॉय कपूर ) के साथ कैलाश पर जाने के लिए पूजा की कंपनी ‘पूजा टूर एंड ट्रवेल्स’ में कार बुक रवायी थी. विशाल रानीखेत की जेल में है, और उसी दिन उसे रिहा किया जाना है.

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रवि खुद टैक्सी ड्रायवर बनकर आर्या के साथ उसे कैलाश तक पहुंचाने के लिए निकलता है. रास्ते में रानीखेत से विशाल को लिया जाता है. उधर योगेश, नंदिनी व ज्ञान प्रकाश के गंुडे आर्या को मौत के घाट उतारने के लिए प्रयासरत हैं. पता चलता है कि विशाल का असली नाम मुन्ना चैहाण है, पर वह तो ज्ञान प्रकाश के कहने पर विशाल नाम से आर्या से मिला था और उसकी हत्या करना चाहता था. पर प्यार कर बैठा और आर्या के साथ अंधविश्वास के खिलाफ मुहीम का हिस्सा बन गया. कहानी आगे बढ़ती है. आर्या पर हमला होता है, पर रवि बचा लेते हैं. कहानी में कई मोड़ आते हैं. एक दिन योगेश, नंदिनी को मार डालता है और फिर वह विशाल व आर्या दोनों को मारने के लिए दिलीप हथकटा (गुलशन ग्रोवर) को भेजते है. तब आर्या को सच पता चलता है कि नंदिनी ने नहीं उसके पिता योगेश ने ही धन, शोहरत व ताकत के लिए ज्ञान प्रकाश के साथ मिलकर उसकी हत्या करनी चाही. अंततः रवि मारे जाते हैं, पर मरने से पहले वह योगेश, ज्ञान प्रकाश सहित सभी बुरे इंसानों का खात्मा कर देते हैं.

लेखन व निर्देशनः

बेहद कमजोर कहानी व पटकथा वाली फिल्म ‘‘सड़क 2’’ यातना व सिर दर्द के अलावा कुछ नही देती. अति धीमी गति से बिना प्रभाव डाले खत्म होती है. कहानी में कुछ भी नयापन नही है. ‘‘सड़क 2‘‘ देखने के बाद दिल बार-बार सवाल करता है कि क्या इस फिल्म का निर्देशन वास्तव में सड़क, जख्म, नाम, डैडी, सारांश व अर्थ जैसी सशक्त फिल्मों के सर्जक महेश भट्ट ने किया है. ‘‘ जख्म ‘‘ का निर्देशन करने के बाद महेश भट्ट ने निर्देशन से संयास ले लिया था. और अब पूरे 20 साल बाद जब उन्होंने पुनः ‘‘ सड़क 2 ‘‘ से निर्देशन में वापसी की है, तो लगता है कि उनके अंदर निर्देशन की सारी धार खत्म हो चुकी है. वह लेखक और निर्देशक दोनों स्तर पर भटक गए हैं. एक गंभीर कथानक को जिस तरह से उन्होने हास्य का जामा पहनाया, उससे फिल्म एकदम बेकार हो गयी. यह फिल्म धर्मगुरूओं या अंधविष्वास के खिलाफ नहीं, बल्कि महज घरेलू झगड़े व बदले की अति पुरानी कहानी है. फिल्म का हर दृश्य अविश्वसनीय लगता है.

अभिनयः

इस फिल्म का सषक्त पहलू सिर्फ संजय दत्त्त का अच्छा अभिनय है, जिन्हे महेश भट्ट के घटिया निर्देशन व कमजोर पटकथा के चलते दोहरी मेहनत करनी पड़ी. महेश भट्ट ने अपने निर्देशन में एक बेहतरीन अदाकारा आलिया भट्ट के अभिनय का स्तर गिरा दिया. आलिया भट्ट कहीं से भी प्रभावित नही करती. मुन्ना चैहाण उर्फ विशाल के किरदार में आदित्य राॅय कपूर बुरी तरह से मात खा गए हैं. वैसे भी अभी तक आदित्य राॅय कपूर ने किसी भी फिल्म में खुद के सशक्त अभिनेता होने का परिचय नही दिया है. गुलशन ग्रोवर जैसे बेहतरीन कलाकार की प्रतिभा को जाया किया गया है. गुलशन ग्रोवर ने ‘सड़क 2’में क्या सोचकर अभिनय किया, यह समझ से परे है. बाबा ज्ञान प्रकाश के किरदार में मकरंद देशपांडे भी नहीं जमे, वह महज कैरीकेचर बनकर रह गए है. जिशु सेन गुप्ता ने भी निराश किया है. प्रियंका बोस के हिस्से करने को कुछ खास रहा नही. अन्य सह कलाकार जर्जर हालत में ही हैं.

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शूटिंग के दौरान बेटी की तरह ख्याल रखते थे संजय दत्त- लिजा मालिक

साल 2002 में मिस दिल्ली और वुगी वुगी डांस रियलिटी शो को केवल 9 साल की उम्र मेंविजेता बनने वाली अभिनेत्री, मॉडल,सिंगर लिजा मालिक ने हर तरह की भूमिका निभाकर अपनी एक अलग पहचान बनाई. हालांकि उन्हें इस दौरान कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा, पर वह हर परिवेश में शांत और खुश रही. जब वह केवल 18 साल की थी उसके माता-पिता अलग हो गए, लेकिन उस परिस्थिति को भी उसने कभी अपने उपर हावी नहीं होने दिया और हिम्मत के साथ परिवार को सम्हाली. लिजा एक एक्ट्रेस ही नहीं, सिंगर और परफ़ॉर्मर हैं. इसके अलावा वह फिटनेस फ्रीक भी जानी जाती है. अभी लिजा मालिक की फिल्म तोरबाज़ रिलीज पर है, जिसमें उन्होंने एक अफगानी लड़की की भूमिका निभाई है. पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल-इस फिल्म में आपने संजय दत्त के साथ काम किया है, कैसा अनुभव रहा ?

उन्होंने इतने सालों से इंडस्ट्री में काम किया है, उनका अनुभव बहुत अधिक है. कैमरा एंगल से लेकर सेट पर कैसे सबसे बातचीत करनी है, कैसे किसी भी परिस्थिति को सम्हालनी है आदि सभी चीजो को नजदीक से सीखने का मौका मिला है. बड़े दिग्गज कलाकार के साथ काम करने पर ऐसी सभी बारीकियों को सीखने का अवसर मिलता है. मैंने ये भी सीखा है कि कितने भी बड़े कलाकार होने पर भी आपको ग्राउंडेड रहने की जरुरत है. वह अपने कला के प्रति बहुत पैशनेट है. मैंने एक महीने शूट के दौरान संजय दत्त के साथ समय बिताई है. इसके अलावा मैंने सीखा है कि कुछ भी हो जाय ,पर  पहले कला की रेस्पेक्ट के साथ तैयार कर, स्क्रीन के सामने आने की जरुरत होती है.  आजकल के बच्चों को लगता है कि कोई भी कलाकार बन जायेगा, पर ऐसा नहीं होता. हर काम के लिए तैयारी पहले से करना जरुरी है. उन्होंने मुझे अपनी बेटी की तरह ट्रीट किया, क्योंकि शूटिंग विदेश में थी और मैं सबके साथ सहजता से रहूं और काम करूँ. मैं अकेली लड़की सभी क्रू मेम्बर के साथ थी.कई बार शूटिंग में रात होने पर वे गाड़ी में मुझे मेरे निवास स्थान तक पहुंचाते थे.

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सवाल-तोरबाज़ किस तरह की फिल्म है?

ये पूरी फिल्म अफगानिस्तान पर आधारित है. वहां के बच्चों को क्रिकेट खेलना पसंद है. मेरे साथ सभी बच्चे रिफ्यूजी कैंप में रहते है. संजय दत्त एक्स मिलिट्री ऑफिसर है और वे कैसे बच्चों को क्रिकेट के लिए प्रोत्साहित करते है, ताकि वे टेरोरिस्ट न बने. ये पूरी लडाई सच और टेरोरिज्म की है. उसी पर आधारित है.

 

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सवाल-रियल लाइफ में भी बच्चे की सही दिशा निर्देश न होने की वजह से भटक कर गलत रास्ता पकड़ लेते है,इसमें किसकी जिम्मेदारी मानती है?

जिम्मेदारी असल में घर से ही शुरू होती है. उसके सही या गलत से परिचय बचपन में ही करवा देना चाहिए. इसके अलावा माता-पिता बनकर नहीं एक दोस्त बनकर बच्चे को पाले, तो उसे सब आसानी से समझ में आ जाता है. मेरा भाई बचपन से मेरे साथ पला-बड़ा है. आज वह सब कुछ में आगे है. सही मार्गदर्शन के लिए बच्चे को समझना बहुत जरुरी है.

सवाल-अभिनय में आने की बारें में कैसे सोचा?

बचपन से ही अभिनय की तरफ रूचि थी. नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में गई. मैं परिवार की इकलौती हूं जो एक्टर, सिंगर और परफ़ॉर्मर बनी. बचपन से मैंने श्रीदेवी के गाने देखकर बड़ी हुई हूं. मैं दिल्ली की हूं और वहां के थिएटर का माहौल में बड़ी हुयी. प्रोफेशनली इस क्षेत्र में आउंगी सोचा नहीं था, पर एक्टिंग करना तो था.

सवाल-आउटसाइडर होने की वजह से कोई समस्या आई?

नए शहर में जाने से उस शहर को पहचानने में समय लगता है. इंडस्ट्री को भी जानने में समय लगता है. ये सही है कि फिल्म इंडस्ट्री से होने से चीजे आसान हो जाती है. ब्रेक आसानी से मिलता है, लेकिन टेलेन्ट न होने पर काम नहीं मिलता. बहुत सारे ऐसे फ़िल्मी परिवार के लोग है, जिन्हें मौका तो मिला , पर टैलेंट न होने की वजह से आज वे घर बैठे है. उन्हें पहला पड़ाव आसानी से मिलता है, बस यही अंतर होता है.

 

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सवाल-पहली बार अभिनय की इच्छा के बारें में कहने पर परिवार की प्रतिक्रियां क्या थी?

बहुत डांट पड़ी. जब मैं 10 वीं में थी तो मुझे एक बड़ी फिल्म का ऑफर मिला था. पिता ने ऑफर लैटर फाड़ दिया था. घर में बहुत क्लेश हुआ था. उसके बाद तो माता-पिता ही अलग हो गए और मेरे लिए चीजे आसान हो गयी.

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सवाल-कोरोना कहर में इंडस्ट्री सबसे अधिक प्रभावित हुयी है, कैसे इसे पटरी पर लाये जाने की जरुरत है?

ये सही हैकि इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री बहुत अधिक प्रभवित कोरोना की वजह से हुयी है. अभी भी सबको डर लगा हुआ है. शूटिंग शुरू हुई है ,पर उसमें भी कई पाबंदियां है. मैंने भी शूट शुरू कर दिया है. सावधानियां बहुत लेनी पड़ रही है. आज या तो हम कोरोना से मरे या भूखमरी से. काम तो करना ही पड़ेगा. कुबेर का धन भी कुछ समय बाद ख़त्म हो जाता है. इस समय इम्युनिटी, फिटनेस और पौष्टिक आहार पर अब मैं पूरा धयान दे रही हूं, ताकि अंदर से मैं स्ट्रोंग रहूं.

सवाल-आप खुद को बहुत अधिक प्रमोट नहीं करती, इसकी वजह क्या है?

जरुरत पड़ने पर ही मैं सामने आती हूं. क्राफ्ट और कला की वजह से ही काम मिलता है. मैं पिछले 14 साल से मुंबई में हूं और इतना समझ चुकी हूं.

सवाल-लाइफ का टर्निंग पॉइंट क्या था?

मेरे लाइफ का टर्निंग पॉइंट 7 साल पहले एक म्यूजिक वीडियो ‘टिप-टिप बरसा पानी … था . इसके बाद काम मिलता गया और पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा.

सवाल-क्या आपने अपने लिए कुछ दायरा बनाया है?

मैंने कोई दायरा नहीं बनाया. ये करुँगी या वो नहीं करुँगी ये सब कभी नहीं सोचा, क्योंकि जिंदगी ऐसे नहीं चल पाती. केवल एक चीज, न तो किसी के बारें में गलत सोचो और न ही अपने साथ कुछ गलत होने दो, ये मैंने नानी और माँ से सीखा है.

सवाल-फिटनेस महिलाओं के लिए कितना जरुरी है?

नार्मल महिलाओं को भी कुछ न कुछ वर्कआउट करने की जरुरत है. मैंने कई लाइव सेशन भी लॉक डाउन में रखा था. दिन में एक घंटा हर महिला को अपने लिए निकालना चाहिए. जो भी उन्हें पसंद हो अपने हिसाब से उसे करते जाना चाहिए.

सवाल-आगे क्या-क्या कर रही है?

3 वेब सीरीज का काम है. दो गाने शूट कर रही हूं. एक फिल्म भी करने वाली हूं.

सवाल-इंडस्ट्री में आकर काम करने वालों को क्या मेसेज देना चाहती है?

इंडस्ट्री को कभी सीरियसली नहीं लेनी चाहिए, ताकि सफल न होने पर आप गलत कदम न उठा लें. काम मेहनत से करें, पर ये अपने लिए करें. अगर सफल न भी हो तो उसे साधारण तरीके से लें और कुछ दूसरा काम करने के बारें में सोचे. इसके अलावा सफलता को सिर पर चढ़ने न दें. हमें जीवन को एक सामंजस्य के साथ बिताने की जरुरत है, ताकि किसी भी प्रकार का तनाव हमारे जिंदगी में न आयें और खुश रह सकें. मैं तनाव आने पर कॉमेडी फिल्म देखती हूं और खूब हंसती हूं.

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बॉलीवुड के लिए एक और बुरी खबर, 61 की उम्र में संजय दत्त को हुआ लंग कैंसर

अभी 8 अगस्त को अचानक सांस लेने की तकलीफ के चलते संजय दत्त को मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती किया गया था. जहां उनका कोरोनावायरस का टेस्ट भी किया गया और उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई. पर जब डॉक्टरों ने उनके स्वास्थ्य की गंभीर जांच की, तो पता चला कि उन्हें फेफड़े का कैंसर है .इस बात को मशहूर फिल्म समीक्षक कोमल नाहटा ने ट्वीट करके बताया है. जबकि लीलावती अस्पताल से संजय दत्त को कल यानी कि 11 अगस्त सुबह घर जाने की छुट्टी मिल गई थी.

लेकिन शाम होते-होते खुद संजय दत्त ने ट्वीट करके कहा कि वह अपना इलाज कराने के लिए कुछ दिनों के लिए भारत से बाहर जा रहे हैं. इस वजह से वह कुछ समय के लिए अभिनय से दूरी भी बना रहे हैं. अपने ट्वीट में संजय दत्त ने अपने प्रशंसकों से कहा कि वह निराश  और परेशान ना हो. क्योंकि वह जल्द ही स्वस्थ होकर फिर से अभिनय के मैदान में सक्रिय हो जाएंगे.

लेकिन अपने दूध में में संजय दत्त ने अपनी बीमारी को लेकर कुछ भी नहीं लिखा .उसके बाद  कोमल नाहटा ने क्यूट करके करके पूरे संसार को बताया कि संजय दत्त फेफड़े के कैंसर से पीड़ित हैं और यह भी बहुत ही एडवांस स्टेज पर है, जिसका इलाज आसानी से संभव है.

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वैसे संजय दत्त पिछले 5 महीने से अपने परिवार से दूर हैं .उनकी पत्नी मान्यता दत्त और दोनों बच्चे लॉकडाउन शुरू होने के पहले से ही दुबई में है. अब जब संजय दत्त अमेरिका जाएंगे ,तो मान्यता दत्त दुबई से सीधे अमेरिका जाएंगी या मुंबई के पास आएगी इस संबंध में अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ है.

अभी कल ही खबर आई थी कि यशराज फिल्म्स  ने इस सप्ताह से शुरू होने वाली फिल्म” शमशेरा ” की  7 दिन की बकाया शूटिंग स्थगित  कर दी गई है और यह निर्णय इस आधार पर लिया गया है कि डॉक्टरों ने संजय दत्त को कुछ दिनों तक आराम करने की सलाह दी है.अब” शमशेरा” की शूटिंग कब शुरू होगी ?इसको लेकर संशय बन गया है. ज्ञातव्य है कि रणबीर कपूर की यह महत्वाकांक्षी फिल्म है, जिसमें वह दोहरी भूमिका निभा रहे हैं. और इस फिल्म की सिर्फ 7 दिन की शूटिंग बाकी है, जिसमें से तीन की शूटिंग संजय दत्त को करनी है.

बॉलीवुड मैं इससे पहले भी मनीषा कोइराला, सोनाली बेंद्रे सहित कई कलाकार कई कलाकार और “बर्फी” जैसी फिल्म के निर्देशक अनुराग बसु कैंसर पीड़ित होने पर अपना इलाज कर स्वस्थ हो चुके हैं. अनुराग बसु को दिमाग से कैंसर की गंभीर बीमारी थी, जिसका इलाज पूरे 3 साल तक चला था. और वह पिछले 10 वर्षों से एकदम स्वस्थ है, काम भी कर रहे हैं. कैंसर का इलाज कराने के बाद ही उन्होंने फिल्म “बर्फी” का निर्देशन किया था. और उन्हें तो अब कैंसर सर्वाइवर के लिए कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. मगर इसी वर्ष ऋषि कपूर और इरफान खान की कैंसर की बीमारी की ही वजह से मौत भी हो चुकी है. लेकिन लोगों का मानना है कि अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में कैंसर का सफल इलाज संभव है सोनाली बेंद्रे ने अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में ही कैंसर का इलाज करवाया था. इसी वजह से संजय दत्त भी अमेरिका जा रहे हैं. पर संजय दत्त ने अभी तक खुलासा नहीं किया है कि वह भारत के बाहर कहां अपना इलाज कराने जा रहे हैं.

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