राइटर- प्रियंका यादव
शादी के बाद महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे जौब छोड़ दें क्योंकि घर में रहने वाली महिला को यह समाज संस्कारी महिला की संज्ञा देता है जो बिलकुल भी सही नहीं है. असल में यह समाज महिलाओं को चारदीवारी में कैद रखना चाहता है. ऐसे में महिलाओं को यह चाहिए कि वे शादी के बाद भी अपनी जौब जारी रखें ताकि घर में रहने वाली संस्कारी महिला की छवि को तोड़ा जा सके.
यह समाज शादी के बाद महिलाओं पर घरेलू बनने का दबाव डालता है क्योंकि वह चाहता है कि महिलाएं घर तक ही सीमित रहें. समाज को लगता है कि घर से बाहर निकलने पर महिलाएं अपने हक के बारे में जान जाएंगी और बरसों से चली आ रही रूढि़वादी परंपराओं को मानने से इनकार कर देंगी. यह एक तरह से बगावत होगी समाज के उन ठेकेदारों के खिलाफ जो सदियों से महिलाओं का किसी न किसी रूप में शोषण करते आए हैं. महिलाओं को चाहिए कि वे अपनेआप को ऐसे शोषण करने वाले लोगों से बचाएं.
इस क्षेत्र में सब से पहला कदम महिलाओं का शादी के बाद भी जौब करना है. शादीशुदा महिलाओं को अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए. उन्हें यह सम?ाना चाहिए कि जौब उन के लिए कितनी जरूरी है. यह न सिर्फ उन के घर से बाहर निकलने का जरीया है बल्कि यह उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाती ह.ै उन्हें अपनी योग्यता का इस्तेमाल करना चाहिए. उन्हें यह सोचना चाहिए कि उन की पढ़ाई का क्या फायदा है अगर वे उस का उपयोग ही न कर सकें.
आखिर वजह क्या है
यह समाज हमेशा से यह चाहता आया है कि महिलाएं घर तक ही सीमित रहें. इस के लिए समाज किचन का निर्माण भी ऐसे ही किया कि उस में एक बार में एक व्यक्ति ही काम कर सके. महिलाओं को समाज की इस सोच को तोड़ना है कि रसोईघर सिर्फ महिलाओं का क्षेत्र है. इस के लिए सब से पहले खुली किचन का निर्माण करना होगा या किचन की सैंटिंग ऐसी करनी होगी कि वहां एकसाथ कम से कम 2 लोग काम कर सकें.
जब लड़की अपने पिता के घर होती है तो वह आसानी से जौब कर लेती है. लेकिन शादी के बाद महिलाएं जौब क्यों नहीं करतीं? तो इस का एक कारण है कि उन के होने वाले पति या ससुराल वाले इस की इजाजत नहीं देते. महिलाओं का शादी के बाद जौब न करने का दूसरा कारण महिलाओं द्वारा जल्दी बच्चे कर लेना है. ऐसे में बच्चे के जन्म लेने में 9 महीने का समय लग जाता है और इस के बाद अगले 3 साल तक उस की देखभाल करने की जरूरत होती है.
ऐसे में महिलाएं उसी में बंध कर रह जाती हैं. इसलिए जरूरी है कि लड़कियां शादी से पहले फैमिली प्लानिंग के बारे में होने वाले पति से बात कर लें. शादी से पहले अपने होने वाले पार्टनर से अपने मन की बात करें. उन्हें यह बताएं कि शादी के बाद भी आप जौब करना चाहती हैं.
घर वालों से खुल कर बात करें
बहुत सी महिलाएं शादी के बाद अपने अरमानों का गला घोट देती हैं. वे अपने बेहतर कैरियर तक को छोड़ देती हैं. अत: शादी का फैसला सोचसम?ा कर करें और ऐसा जीवनसाथी चुनें जो आप को कैरियर में आगे बढ़ने की प्रेरणा दे.
जो लड़कियां कैरियर औरिएंटल होती हैं और शादी के बाद जौब छोड़ना नहीं चाहतीं, उन्हें इस बारे में अपने पार्टनर और उस के घर वालों से खुल कर बात करनी चाहिए. इस से उन लोगों के जवाब से महिलाओं को निर्णय लेने में आसानी हो जाएगी.
महिलाएं अपने होने वाले पति से पूछ सकती हैं कि शादी के बाद उन के कैरियर को बढ़ावा देने के लिए वे किस प्रकार से सपोर्ट कर सकते हैं? क्या वे घरेलू जिम्मेदारियों में आप का हाथ बंटाएंगे या फिर परिवार के बढ़ने के बाद भी क्या वे उन के कैरियर की गंभीरता को सम?ोंगे? अगर परिवार के लोगों ने नौकरी छोड़ने को कहा तो क्या वह उन्हें सम?ाने की कोशिश करेंगे? ऐसे ही कुछ सवाल पूछ कर महिलाएं अपने लिए सही जीवनसाथी चुन सकती हैं.
शादीशुदा महिलाएं समय का रखें ध्यान
शादीशुदा महिलाओं को अपने समय का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इस के लिए वे अगले दिन के लंच की तैयारी रात में ही कर लें जैसे सब्जियां काट कर फ्रिज में रख दें, रात में ही कपड़े प्रैस कर लें, अपना बैग तैयार कर लें, इस तरह से महिलाएं अपने काम के समय को बचा सकती हैं.
दिल्ली की रहने वाली 28 वर्षीय अनु बताती हैं कि उन की शादी को 2 साल हो गए हैं. शुरू में शादी के बाद जौब करने में उन्हें काफी परेशानियां आईं, फिर उन्होंने अपनी सैलरी का एक हिस्सा दे कर नौकरानी रख ली. अब वे घर और औफिस दोनों का काम बड़ी सरलता से कर लेती हैं. उन्होंने यह भी बताया कि वे अपनी सैलरी का 40% हिस्सा नौकरानी शांता को देती हैं, लेकिन उन्हें इस का कोई मलाल नहीं है क्योंकि वे सम?ाती हैं कि जौब हर महिला को करनी चाहिए और इसे शादी के बाद भी जारी रखना चाहिए.
कामकाजी महिलाओं को घर और औफिस दोनों का काम करना होता है. ऐसे में वे अपने कामों को छोटेछोटे हिस्सों में बांट दें. परिवार के हर सदस्य को उस की जरूरत का खुद खयाल रखने दें, जेबें चैक करने के बाद गंदे कपड़ों को टोकरी में डालने को कहें, खाने के बाद उन्हें अपनी थाली खुद उठाने को कहें, अपने पार्टनर से टेबल और बैड लगाने को कहें, उन्हें पानी का जार भरने जैसे छोटेछोटे काम करने को दें.
पुरुषों को भी यह सम?ाना होगा कि यह केवल महिलाओं का ही काम नहीं है क्योंकि एक कामकाजी महिला के रूप में कार्यालय और घर दोनों अच्छी तरह संभाल रही हैं, इसलिए दोनों को घर के कामों में हाथ बंटाना चाहिए, अगर आप के पार्टनर को खाना बनाना आता है तो उन से कहें कि वे भी खाना बनाया करें. यदि परिवार में अन्य सदस्य हैं. तो सभी को विनम्रता से यह स्पष्ट करें कि आप एक कामकाजी महिला हैं और आप भी जौब करती हैं इसलिए सभी को मिल कर काम करना होगा.
धर्म क्या चाहता है
हर धर्म चाहता है कि औरतें कमजोर रहें और इसलिए धर्म के धोखेबाज तरहतरह के तरीके अपनाते हैं. वे कहते हैं कि पूजापाठ से घर में बरकत होती है, बच्चे होते हैं, लड़की को अच्छा वर मिलता है, बीमार ठीक होता है, इन सब के लिए आदमी अपना समय कम लगाते हैं, औरतें ज्यादा समय लगाती हैं. वर्किंग औरतों को इस साजिश को सम?ा लेना चाहिए और धर्म में समय नहीं लगाना चाहिए.
तीर्थस्थान की जगह मनोरंजक स्थान पर जाएं, जहां फुरसत हो और कार्यक्रम आप के अनुसार तय हो, मंदिर के कपाट खुलने या पंडितों के दिए समय के अनुसार नहीं. मंदिरों में लाइनों में समय बरबाद न करें, किसी समुद्री तट या जंगल का मजा लें.
घर में पूजापाठ के नाम पर घंटों आंखें मूंद कर बैठने की जगह व्यवसाय करें, पौधे लगाएं, घर की देखभाल करें ताकि कोई यह न कह सके कि घर है या कबाड़खाना.
एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि एक शिशु को मां की सब से अधिक जरूरत केवल 3 वर्ष तक ही होती है, इस के बाद जैसेजैसे उस का विकास होता जाता है उस का ध्यान कम रखना पड़ता है. इस बीच महिलाएं अपने बच्चे के लिए बेबी सिटर या कहें बेबी केयर अपौइंट कर सकती हैं और इस के बाद महिलाएं अपनी जौब को जारी रख सकती हैं.
महिलाओं को इस बात से पीछे नहीं हटना चाहिए कि उन की सैलरी बेबी केयर और नौकरानी में निकल जाएगी. उन्हें उस वक्त बस यह ध्यान रखना है कि वे अपनी जौब को जारी रखें क्योंकि यही एक जरीया है जो उन्हें बाहरी दुनिया से जोड़े रखेगा और मर्दों के कंधे से कंधा मिला कर चलने का अवसर प्रदान करेगा.
मेघा पेशे से डाक्टर हैं. उन के 2 बच्चे हैं. ऐसे में बच्चों को अकेला छोड़ कर क्लीनिक जाना उन के लिए एक मुश्किल फैसला था. इस वजह से वे अपनी नौकरी छोड़ने की सोच रही थीं. तभी उन की एक दोस्त ने सु?ाव दिया कि वे एक फुलटाइम बेबी सिटर रख लें. मेघा ने ऐसा ही किया. इस के बाद मेघा टैंशन फ्री हो कर क्लीनिंग जाने लगीं.
जमाना बदल गया है
ऐसी ही एक कहानी दिल्ली के पटेल नगर में रहने वाली नीति बताती हैं. वे कहती हैं कि वे एक न्यूज चैनल में कार्यरत हैं. अपने अनुभव बताते हुए वे कहती हैं कि उन्हें हमेशा से यह डर लगता था कि बच्चे होने के बाद क्या वे अपनी जौब जारी रख पाएंगी? लेकिन नौकरानी और बेबी सिटर की सहायता से वे अपने घर और जौब दोनों को अच्छे से संभाल लेती हैं. वे कहती हैं कि महिलाओं को हमेशा अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करनी चाहिए. इस के लिए जरूरी है कि वे शादी के बाद भी जौब करें.
महिलाओं के लिए नौकरी करना और उस के साथसाथ घर और बच्चे की जिम्मेदारी संभालना आसान काम नहीं है, लेकिन नए जमाने की महिलाओं ने इसे बखूबी निभाया है. महिलाओं को अपने पार्टनर को यह बताना चाहिए कि घर और बच्चे दोनों के हैं इसलिए जिम्मेदारी भी दोनों की है, किसी एक की नहीं.
वे लोग जो सम?ाते हैं कि कामकाजी महिलाएं घर का अच्छे से खयाल नहीं रखती हैं उन्हें शुगर कौस्मैटिक की कोफाउंडर विनीता अग्रवाल और ममा अर्थ की ओनर कजल अलघ का नाम नहीं भूलना चाहिए. वहीं अगर मीडिया इंडस्ट्री की बात की जाए तो उच्च पदों पर कार्यरत महिलाएं जैसे अंजना ओम कश्यप भी शादीशुदा हैं, फिर भी वे घर और जौब दोनों को अच्छे से संभाल रही हैं.
भारत के कई राज्यों और शहरों में ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने फूड स्टाल लगा कर खुद को आत्मनिर्भर बनाया है. वे न केवल अपना खर्चा उठाती हैं बल्कि अपने परिवार की जरूरतों का भी पूरा खयाल रखती हैं.
ऐसा ही एक स्टौल दिल्ली के लाजपत नगर में एक महिला चलाती हैं जो मोमोस के लिए फेमस हैं. इन्हें ‘डोलमा आंटी’ के नाम से जाना जाता है. हमें अपने आसपास राह चलते हुए ऐसी कई महिलाएं दिख जाती हैं जो नीबू पानी, जूस, लस्सी और चाय आदि का स्टाल लगाती हैं. यह वे महिलाएं हैं जिन से हमें प्रेरणा मिलती हैं. ये महिलाएं उन सभी महिलाओं के लिए उदाहरण पेश करती हैं जो शादी के बाद जौब छोड़ कर खुद को घरगृहस्थी में व्यस्त कर लेती हैं और अपना कैरियर दांव पर लगा देती हैं.
ऐसे बहुत से काम हैं जिन्हें शादीशुदा महिलाएं पार्टटाइम के तौर पर कर सकती हैं. ये काम घर बैठे भी किए जा सकते हैं. आमतौर पर ये काम कुछ घंटे के होते हैं जैसे राइटिंग, प्रूफ रीडिंग, एडिटिंग, टाइपिंग आदि. पार्टटाइम काम करने के लिए जरूरी है कि आप के पास उन कामों से संबंधित विषय वस्तु हो जैसे प्रूफ रीडिंग और राइटिंग के लिए टेबल और कुरसी की जरूरत होती है.
कामकाजी महिलाओं के फायदे
कामकाजी महिला होने के बहुत फायदे हैं जैसे कामकाजी महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम होती हैं. वे अधिक कौन्फिडैंट होती हैं क्योंकि वे बनठन कर रहती है इसलिए उन की पर्सनैलिटी होती है. कामकाजी महिलाएं बहुत खुशमिजाज होती हैं और साथ ही साथ जिंदगी को एक नए तरीके से देखने में भी विश्वास रखती हैं.
इस के अलावा और भी कई फायदे हैं:
आर्थिक रूप से सक्षम: आर्थिक रूप से सक्षम कामकाजी महिलाओं का समाज में एक अलग रुतबा होता है. आर्थिक रूप से सक्षम होने के कारण वे अपने आर्थिक फैसले खुद ले सकती हैं. वे जो भी चाहें वह खरीद सकती हैं. इस के लिए उन्हें पति पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है. यदि महिलाएं शादी के बाद जौब नहीं करतीं तो उन्हें छोटीछोटी जरूरतों के लिए अपने पति का मुंह ताकना पड़ता है. यह उन महिलाओं को असहज महसूस करा सकता है जिन्होंने शादी से पहले जौब की हो.
अपनेआप को इस असहजता से निकालने के लिए उन्हें शादी के बाद भी जौब करनी चाहिए. आर्थिक रूप से सक्षम होने के कारण वे अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देती हैं. इस के अलावा आय का एक सोर्स और बढ़ने से घर में सेविंग होने लगती है जोकि उन के भविष्य के लिए बहुत जरूरी है.
अधिक अट्रैक्टिव : शादीशुदा कामकाजी महिलाएं अधिक अट्रैक्टिव होती हैं क्योंकि वे दुनिया से जुड़ी हुई होती हैं. उन्हें पता होता कि फैशन में क्या चल रहा है इसलिए वे पति का अधिक प्यार भी पाती हैं. यह भी देखा गया है कि कामकाजी महिलाओं के पति अधिक रोमांटिक होते हैं. इस वजह से उन के बीच रोमांस अधिक होता है. वहीं अगर घरेलू महिला की बात की जाए तो वे कम अट्रैक्टिव होती हैं क्योंकि वे फैशन से लगभग कट चुकी होती हैं. उन का दायरा अब केवल घर तक ही सीमित रह जाता है. इसी वजह से उन के बीच रोमांस कम होता है.
अधिक कौन्फिडैंट : कामकाजी महिलाओं के कौन्फिडैंट की डोर खुले आसमान में गोते खाती हुई नजर आती है. यह कौन्फिडैंट उन्हें चारदीवारी से बाहर निकल कर आता है. वहीं अगर घरेलू महिलाओं की बात करें तो उन का सारा समय चौका बरतन में ही निकल जाता है. ऐसे में बाहरी दुनिया से उन का नाता लगभग टूट जाता है.
32 वर्षीय सुप्रिया एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करती हैं. उस का कौन्फिडैंस उन की बातों से साफ ?ालकता है. वहीं अगर घरेलू महिलाओं की बात की जाए तो वे लोगों से बात करने में ?ि?ाकती हैं.
निजी रिश्तों में आता है निखार : यह बात कई अध्ययनों के माध्यम से सामने आई है कि कामकाजी महिलाएं अपने क्षेत्र में अधिक सफल होती हैं. उन का निजी जीवन ज्यादा खुशनुमा होता है.
अधिक खुशमिजाज : लोगों का मानना है कि बाहर काम करना बहुत कठिन है, लेकिन सच तो यह है कि यदि घर पर कोई विशेष काम न हो तो महिलाओं को बाहर निकल कर जौब करनी ही चाहिए. इस से न केवल वे आत्मनिर्भर बनेंगी बल्कि तनावमुक्त भी रहेंगी. हाल ही में हुई एक स्टडी के मुताबिक, कामकाजी महिलाओं में गृहिणियों के मुकाबले कम अवसाद और तनाव देखने को मिला है. लोगों का मानना है कि कामकाजी महिलाएं घरेलू महिलाओं के मुकाबले अधिक खुशमिजाज होती हैं.
आदर्श महिलाएं : कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों के सामने एक आदर्श के रूप में निखरती हैं. यह भी देखा गया है कि यदि किसी घरपरिवार में आर्थिक तंगी को ले कर तनाव देखने को मिलता है तो ऐसी स्थिति में ये महिलाएं बाहर निकल कर नौकरी कर के अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत करती हैं. इन सब बातों का प्रभाव बच्चों की मानसिक स्थिति पर पड़ता है और आगे चल कर वे इस से अपने इरादों में मजबूती पाते हैं.
बदलता है नजरिया : घर से बाहर निकल कर काम करने वाली महिलाओं की सोच का नजरिया घरेलू महिलाओं की सोच में अधिक हो जाता है क्योंकि वे बाहर निकल कर पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही होती हैं. ऐसी स्थिति में कामकाजी महिलाएं पुरुषों के कार्य को भलीभांति सम?ा सकती हैं. यह देखने में आया है कि कामकाजी महिलाएं अपने परिवार के हित में जो भी फैसला लेती हैं. वह खुले दिल और दिमाग से होता है.
हमें बौलीवुड की फिल्म ‘की एंड का’ से प्रेरणा लेनी चाहिए. फिल्म में दिखाया गया है कि करीना कपूर एक कैरियर ऐंबीशंस लड़की है जो मानती है कि जरूरी नहीं है कि महिलाएं किचन में ही काम करें. वे कौरपोरेट औफिस में भी अच्छी तरह काम कर सकती हैं. वहीं अर्जुन कपूर की अपने पिता के बिजनैस में कोई रुचि नहीं है. वह मानता है कि एक लड़का भी अच्छे से किचन संभाल सकता है.
हमें इस फिल्म से यह सीखना चाहिए कि घरपरिवार की जिम्मेदारी महिलापुरुष कुछ दोनों की है. महिलाओं को यह सम?ाने की जरूरत है कि यह समाज उन्हें बस घर में कैद करना चाहता है. इस के लिए वह अलगअलग हथकंडे अपनाता है जैसे घर संभालना, बच्चों की देखभाल करना, आदर्श बहू बनना और न जाने क्याक्या. महिलाओं को इन सभी बातों को दरकिनार कर के अपने कैरियर के बारे में सोचना चाहिए. उन्हें इस बात को इग्नोर नहीं करना चाहिए कि उन का आत्मनिर्भर होना कितना जरूरी है.