Hindi Stories Online : मैं वंदे भारत ट्रेन के एसी चेयर कार कंपार्टमैंट में अपनी सीट पर पहुंची और सामान जमा कर बैठी तो देखा सामने से एक 10-12 साल की लड़की बैगपैक टांगे तेज कदमों से मेरी ही बगल वाली सीट की तरफ आ रही थी जहां एक मोटा व्यक्ति पहले से बैठा था.
बच्ची ने उस आदमी को संबोधित करते हुए तेज आवाज में कहा, ‘‘अंकल, आप मेरी सीट पर बैठे हो. प्लीज आप अपनी सीट पर चले जाओ.’’
वह आदमी उठा नहीं बल्कि लड़की से कहने लगा, ‘‘अरे बेटा मैं यहां बैठ गया हूं अब उठना मुश्किल होगा. मुझे विंडो सीट अच्छी लगती है. यह आंटी की बगल वाली मेरी सीट है. तू उस पर बैठ जा.’’
दरअसल, 3 सीटों की उस रौ में मेरी सीट बीच की थी. मेरी दाईं तरफ विंडो सीट थी जिस पर वह आदमी बैठा था और बच्ची को मेरे लैफ्ट साइड वाली सीट पर बैठने को कह रहा था.
मगर बच्ची अपनी बात पर डटी रही, ‘‘अंकल मैं अपनी सीट पर ही बैठूंगी. आप उठ जाओ प्लीज.’’
मुंह बनाता हुआ वह आदमी उठ गया. लड़की ने जल्दी से अपना सामान जमाया और मेरी तरफ देख कर मुसकराई. फिर पूछने लगी, ‘‘दीदी, आप भी मसूरी जा रही हो?’’
मैं ने भी प्यार से उसे जवाब देते हुए कहा, ‘‘मैं देहरादून तक जाऊंगी. तुम्हें मसूरी जाना है क्या?’’
‘‘हां जी,’’ उस ने जवाब दिया.
‘‘अकेली जा रही हो?’’ मैं ने फिर पूछा.
‘‘हां जी,’’ उस ने आत्मविश्वास के साथ कहा.
‘‘किसलिए?’’
‘‘मैं वहां पढ़ती हूं.’’
‘‘मगर तुम्हारे साथ कोई नहीं? तुम्हारे मम्मीडैडी?’’
‘‘मम्मीडैडी इस दुनिया में नहीं रहे,’’ उस ने बु?ो स्वर में जवाब दिया.
‘‘उफ, मगर कैसे? अब किस के साथ रहती हो?’’ मैं उस के बारे में सबकुछ जानना चाहती थी.
‘‘एक ट्रेन ऐक्सीडैंट में मेरे मम्मीडैडी और भाभी तीनों चले गए. तब से मैं भैया के साथ रह रही हूं. भैया की शिफ्ट वाली जौब है और कई बार 3-4 दिनों के लिए शहर से बाहर भी जाते रहते हैं, इसलिए भैया ने मसूरी के एक बढि़या स्कूल में मेरा एडमिशन करा दिया ताकि मु?ो घर में अकेला न रहना पड़े और मैं आराम से होस्टल में रह सकूं,’’ उस ने बताया.
‘‘मगर अभी तो स्कूलों में गरमी की छुट्टियां चल रही हैं. वहां तो कोई नहीं होगा,’’ मैं ने सवाल किया.
‘‘वहां बच्चे नहीं होंगे दीदी पर वार्डन तो होंगी न. दरअसल, भैया को 1 सप्ताह के लिए कहीं जाना था. ऐसे में मैं बिलकुल अकेली रह जाती सो भैया ने कहा कि तुम होस्टल ही चली जाओ.’’
‘‘मगर एकदम अकेले यात्रा करने में डर नहीं लगता तुम्हें?’’
‘‘डर कैसा दीदी मैं तो अकसर आतीजाती रहती हूं. शुरुआत में
1-2 बार थोड़ी टैंशन रही थी मगर अब तो आदत हो गई है,’’ उस ने बहुत सहजता से जवाब दिया.
हम बातों में लगे थे और ट्रेन चल चुकी थी. थोड़ी देर में खाने का समय भी हो गया. मैं किसी भी ट्रेन में रहूं अपना खाना हमेशा ले कर चलती हूं.
मैं ने उस लड़की यानी पूजा से पूछा, ‘‘तुम खाना ले कर निकली हो या ट्रेन वाला खाना खाओगी?’’
‘‘मैं तो ट्रेन का खाना ही खा लेती हूं,’’ उस ने जवाब दिया.
थोड़ी देर में उस का भी खाना आ गया तो हम ने बातें करते हुए खाना खत्म
किया. थोड़ी ही देर बाद पूजा को तबीयत खराब लगने लगी. हलकी उलटी हुई और लूज मोशन भी होने लगे. मैं सम?ा गई कि उस खाने में कुछ गड़बड़ थी तभी पूजा की तबीयत बिगड़ रही है. मैं ने जल्दी से अपनी दवा वाला डब्बा निकाला. उसे ऐवोमिन और टीजेड दी. उसे आराम आ गया. मैं ने उसे ग्लूकोस पानी भी पिलाया. मेरे बैग में ऐसी चीजें हमेशा होती हैं.
वह मु?ो थैंक्स कहने लगी. मैं ने उस का माथा सहलाते हुए कहा, ‘‘डौंट वरी मैं तुम्हारे साथ हूं,’’ मु?ो उस बच्ची पर सहानुभूति के साथसाथ प्यार भी आ रहा था.
तभी ट्रेन एक ?ाटके से रुक गई. पता किया तो जानकारी मिली कि आगे लाइन में कुछ समस्या है इसलिए ट्रेन कुछ देर बाद चलेगी. समय गुजरता गया और ट्रेन करीब 6 घंटे उसी जगह खड़ी रही. इस तरह ट्रेन देहरादून में जहां दोपहर 1. 45 बजे तक पहुंचनी थी वह 6 बजे के बाद पहुंची. अभी भी ट्रेन की स्पीड स्लो थी.
मैं ने पूजा की तरफ देखा. उस की तबीयत खराब थी और अब रात भी होने लगी थी.
मैं ने पूछा, ‘‘अब क्या करोगी? रात में अकेली होस्टल तक कैसे जाओगी?’’
‘‘कोई नहीं आंटी ट्रेन 8-9 बजे तक पहुंच ही जाएगी. फिर मैं कैब या औटो कर लूंगी,’’ पूजा ने निडरता से कहा मगर मु?ो यह सही नहीं लगा.
मैं ने उस का माथा सहलाते हुए कहा, ‘‘पूजा क्या पता ट्रेन और भी लेट हो जाए और तुम देर रात तक होस्टल पहुंचो. खतरा मोल लेना उचित नहीं. तुम्हारी तबीयत भी ठीक नहीं है. तुम ऐसा करो मेरे साथ मेरे घर चलो. मेरा घर यहीं पास में है. रात में मेरे यहां रुक जाओ फिर कल सोचेंगे आगे क्या करना है.’’
पूजा ने प्यार से मेरी तरफ देख कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘मगर आंटी आप को बेवजह मेरे कारण परेशानी होगी.’’
मैं हंस पड़ी, ‘‘ज्यादा दादी अम्मां मत बनो और सीधा उतर चलो मेरे साथ.’’
उस ने फिर कुछ नहीं कहा और सामान उठा कर मेरे पीछेपीछे ट्रेन से उतर गई. मैं ने कैब बुक कर ली. हम दोनों घर पहुंचे. मैं ने हाथमुंह धो कर जल्दी से डिनर बनाया और पूजा के साथ खुद भी खाया.
‘‘आप घर में अकेली रहती हैं?’’ उस ने इधरउधर नजर दौड़ाते हुए पूछा.
‘‘हां मैं फिलहाल अकेली ही रहती हूं,’’ मैं ने जवाब दिया.
‘‘और आप के हस्बैंड?’’ उस ने फिर से सवाल किया.
‘‘मेरा तलाक हो चुका है,’’ मैं ने साफसाफ शब्दों में कहा तो वह एकदम शांत हो गई. मगर उस के दिमाग में अभी भी बहुत से सवाल कुलबुला रहे थे.
‘‘दीदी, आप के घर में और कोई तो होगा मतलब पापामम्मी या भाईबहन? आप उन के साथ नहीं रहतीं?’’
‘‘देखो बेटा मेरे भी पापा नहीं रहे. एक बहन है जो दूसरे शहर में रहती हैं. मेरी मां गांव में रहती हैं. वे थोड़े अलग तरीके से जीने की आदी हैं. मसलन, मिट्टी के चूल्हे पर रोटियां बनाना, खेतखलिहान के बीच रहना, साडि़यां पहनना, अपने घर के सारे काम खुद करना, गाय का दूध, घी आदि उपयोग करना आदि. उन की परवरिश बचपन से ऐसे ही माहौल में हुई है सो उन्हें वैसे ही रहना पसंद है. यहां आ कर उन का दम घुटता है. वहां वे बड़े से खुले घर में रहती हैं पर यहां तीसरे फ्लोर पर मेरा घर है. यहां औरतें साडि़यां नहीं पहनतीं पर वे सिर्फ साड़ी ही पहनती हैं और वह भी अपने अलग स्टाइल में. उन्हें घर में मेड लगाना अच्छा नहीं लगता जबकि मेड के बिना मेरा काम ही नहीं चलता. वहां उन की बहुत सी सहेलियां हैं जिन के साथ वे दिनभर बातें करती हैं मगर यहां सारे घर बंद पड़े होते हैं. यही सब कारण हैं कि उन्हें वहां गांव में ही अच्छा लगता है. कभीकभी वह आ जाती हैं मगर ज्यादा दिन नहीं रुकतीं.’’
‘‘ओके दीदी मैं सम?ा गई. आंटी थोड़े पुराने खयालात की हैं. फिर तो आप भी बचपन में उसी तरह रहते होंगे?’’
‘‘बिलकुल मैं वैसे ही रहती थी. गांव में ही मेरी पढ़ाईलिखाई हुई. फर्क यही है कि मैं ने पढ़ाई ज्यादा कर ली. वैसे हमारी कास्ट में औरतों को ज्यादा पढ़ाया नहीं जाता. मैं पिछड़ी कास्ट की हूं न. हमारी कास्ट में लड़कियों की जल्दी शादी कर दी जाती है. मगर मैं ने तय किया था कि मैं अच्छे से पढ़लिख कर कोई अच्छा काम करूंगी और सैल्फ डिपैंडैंट बनूंगी.’’
‘‘बहुत अच्छी सोच है आप की दीदी और आप की स्किन भी कितनी अच्छी है. भले ही थोड़ी डस्की स्किन है मगर कितनी चमक है.’’
‘‘थैंक यू बेटा.’’
‘‘अच्छा मैं आप को अपनी भाभी का फोटो दिखाती हूं. वे भी बहुत सुंदर थीं,’’ और उस ने अपने पर्स में रखी भाभी की तसवीर दिखाई जो काफी खूबसूरत थी. एकदम गोरा रंग, तेज नैननक्श और प्यारी सी मुसकान. फिर उस ने अपने मम्मीपापा की फोटो दिखाया. फोटो दिखाते समय उस की आंखों में आंसू आ गए तो मैं ने उसे सीने से लगा लिया.
‘‘अब चलो तुम्हें सोने का कमरा दिखा दूं,’’ यह कहते हुए मैं उसे बैडरूम में ले गई.
उस समय हम दोनों ही थके थे सो जल्दी सो गए. सुबह सो कर उठने के बाद पूजा बाहर बालकनी में जा कर मेरे पेड़पौधों और फूलों को देखने लगी जिन्हें मैं ने बहुत प्यार और मेहनत से लगाया था. मेरी बालकनी में कनेर की कई प्रजातियां थीं जिन में 2 बड़े पौधों में ढेर सारे गुलाबी रंग के कनेर के फूल खिले हुए थे. उन के अलावा करीपत्ता, गिलोय, तुलसी, गुलाब, गेंदे और ऐलोवेरा के पौधे भी थे.
वह उन्हें देखती हुई उत्साह से बोली, ‘‘अरे वाह दीदी, आप के यहां तो बहार छाई हुई है.’’
उस के इस कमैंट पर मैं मुसकराए बिना नहीं रह सकी.
‘‘दीदी आप का घर तो बहुत सुंदर है,’’ वह पूरे घर में घूमती हुई बोली.
‘‘सच में?’’
‘‘हां,’’ उस की आंखों में चमक थी.
मैं ने प्यार से उस के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘अगर यह घर इतना ही सुंदर लग रहा है तो यहीं ठहर जाओ न.’’
‘‘अरे नहीं दीदी. ऐसा कैसे हो सकता है?’’
‘‘क्यों नहीं हो सकता?’’
‘‘क्योंकि मैं यहां रहूंगी तो आप को परेशान करूंगी. वैसे भी आप तो मु?ो जानते भी नहीं.’’
‘‘मैं तो तुम्हें बहुत अच्छी तरह जानती हूं. मु?ो तो तुम बहुत प्यारी लगती हो और यहां रहोगी तो परेशान भी नहीं करोगी बल्कि मेरा मन लगेगा. तुम भी तो होस्टल में अकेली हो और मैं यहां अकेली हूं. हम दोनों एकसाथ रह लेंगे. दोनों एकदूसरे का साथ देंगे, खूब बातें करेंगे, मस्ती करेंगे और अच्छाअच्छा पका कर खाएंगे. क्या तुम्हें यह सब अच्छा नहीं लगेगा? मैं तुम्हें पढ़ा भी दूंगी,’’ मैं ने उसे प्रलोभन दिए.
‘‘दीदी लेकिन भैया क्या कहेंगे?’’ उस की आवाज में चिंता थी.
‘‘भैया से पूछ लो वे क्या कहते हैं. तुम उन्हें बता दो कि होस्टल में अकेली रहने से अच्छा दीदी के साथ रहना है.’’
‘‘अच्छा ठीक है. फिर मैं उन्हें सबकुछ बता देती हूं,’’ कह कर उस ने फोन उठाया और अपने भैया से थोड़ी देर बात कर के मेरे पास आई.
‘‘भैया तो तैयार हो गए दीदी. ठीक है मैं यहां रह जाती हूं. मगर वे कह रहे थे एक बार आप की उन से व्हाट्सएप कौल पर बात करा दूं,’’ उस ने बताया.
‘‘जरूर यह लो,’’ मैं तुरंत तैयार हो गई.
मैं ने व्हाट्सऐप कौल पर उस के भैया से बात की. उस के भैया अधिक उम्र के नहीं थे. घुंघराले बाल, गोरा रंग और अच्छी पर्सनैलिटी. चेहरे से भी शांतसौम्य थे. मैं ने उन्हें सम?ा दिया कि चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. पूजा यहां बिलकुल सुरक्षित और अच्छे से रहेगी.
करीब 15-20 दिन पूजा मेरे साथ रही. फिर उस का स्कूल खुल गया तो मैं ने उसे मसूरी पहुंचा दिया. उस के जाने के बाद बहुत दिनों तक मेरा मन नहीं लगा. एक तरह से उस की आदत सी हो गई थी. उधर उस का भी वही हाल था. वह रोज रात में मु?ो फोन करने लगी थी और मु?ो पूरे दिनभर की बातें बताती.
एक दिन कहने लगी, ‘‘जानती हो दीदी आप से मैं वे सब बातें भी कह देती हूं जो भैया को नहीं बता पाती. पता नहीं क्यों आप को हर बात बताने का मन करता है.’’
मैं मुसकराती हुई बोली, ‘‘यही सही है पूजा. तुम अपने मन में कोई भी बात मत रखा करो. जो भी दिल कहे मु?ो बताओ. कोई समस्या हो, कोई अच्छी बात हो या परेशान करने वाली वह सब मु?ो बताओ. मैं तुम्हारी मम्मी जैसी हूं न तो फिर मु?ा से क्या छिपाना?’’
समय गुजरता गया. हम दोनों बहुत क्लोज हो चुके थे. एक दिन पूजा ने मु?ो कौल किया और बोली, ‘‘दीदी भैया आने वाले हैं. हमारी टीचर पेरैंट्स मीटिंग है न. मैं ने उन्हें बुलाया है.’’
‘‘अच्छा यह तो बहुत सही किया,’’ मैं ने कहा.
‘‘भैया कह रहे थे रास्ते में आप से मिलते हुए जाएंगे. पर उन्हें अकेले जाने में थोड़ी ?ि?ाक हो रही थी तो मैं ने कहा कि ठीक है आप यहां आओ. उस के बाद हम दोनों चलेंगे.’’
‘‘हां यह सही रहेगा. तुम दोनों सैटरडेसंडे मेरे यहां रहो. आराम से हम बातें करेंगे, अच्छेअच्छे पकवान बनाएंगे और खाएंगे. कहीं घूमने भी जाएंगे.’’
‘‘वाह दीदी फिर तो मजा आ जाएगा,’’ वह चहक उठी.
अगले सैटरडे पूजा और उस के भैया मयंक मेरे घर आ गए. मयंक ज्यादा बातें नहीं कर रहे थे मगर पूजा का बोलना ही नहीं रुक रहा था. वह भैया को मु?ा से जुड़ी हर बात विस्तार से बता रही थी और मयंक मंदमंद मुसकरा रहे थे.
बाद में जब पूजा थोड़ी देर के लिए बालकनी में गई तो मयंक मु?ा से मेरी पिछली जिंदगी के बारे में पूछने लगे. मैं ने बताया कि कैसे राघव के साथ मेरा तलाक हुआ और कैसे मैं यहां आ कर अकेली रहते हुए जौब करने लगी.
अगले 2 दिन हम तीनों ने साथ में बहुत अच्छा समय बिताया. प्लान के मुताबिक हम देहरादून के सहस्त्रधारा में घूमने भी गए. वहां के खूबसूरत माहौल को देख कर पूजा खिल उठी. मयंक ने बताया कि वे इतने सालों बाद पहली बार पूजा को इतना खुश देख रहे हैं. वे अब पूजा की तरफ से निश्चिंत हो गए थे क्योंकि उस की परवाह के लिए अब मैं भी थी.
एक दिन पूजा छुट्टियों में जब मेरे घर आई तो बहुत गुमसुम सी लगी. मैं ने उस से पूछना चाहा मगर उस ने बात टाल दी. इस तरह करीब 3 दिन बीत गए. मैं ने उस के चेहरे पर मुसकान नहीं देखी जबकि वह ऐसी लड़की थी जो दिन में कई दफा हंसती थी.
एक दिन दोपहर में खाना खा कर जब वह रैस्ट करने कमरे में गई तो मैं उस के पास जा कर बैठ गई. मैं ने उस का हाथ थाम लिया और उस की तरफ ध्यान से देखती हुई बोली, ‘‘बताओ पूजा क्या बात है?’’
‘‘कुछ नहीं दीदी,’’ उस ने फिर से बात टालनी चाही मगर मैं ने उस का माथा सहलाते हुए उसे करीब खींच लिया और सीने से लगाते हुए फिर वही सवाल किया, ‘‘बताओ पूजा मु?ा से कुछ मत छिपाओ. मैं तुम्हारी मां जैसी हूं न. कोई भी प्रोब्लम है तो मु?ो बताओ.’’
अब पूजा अपने जज्बातों को संभाल नहीं सकी और बेतहाशा रोते हुए मु?ा से चिपक गई. फिर थोड़ी देर रोने के बाद सुबकती हुई बोली, ‘‘मेरा अब होस्टल जाने का बिलकुल मन नहीं करता. वहां 3-4 दीदियां हैं जो मु?ो टौर्चर करती हैं. बहुत सताती हैं मुझे. ’’
‘‘वे क्या करती हैं मुझे बताओ पूजा.’’
‘‘कैसे बताऊं दीदी. वे मेरे साथ क्याक्या करती हैं यह मैं किसी से कह ही नहीं पाती. आप को पता है वे मुझे कहती हैं अपने कपड़े खोलो. सारे कपड़े खोल कर हमारे सामने आओ. दीदी पहले दिन जब उन्होंने ऐसा कहा तो मैं बहुत डर गई और कमरा अंदर से बंद कर लिया. मगर वे खिड़की के रास्ते अंदर आ गईं और बैल्ट से मुझे पीटा. उस के बाद कई दिन वह मुझे कपड़े उतारने को कहती रही. एक दिन मेरे पूरे शरीर पर मेहंदी लगा दी तो एक दिन मुझे ब्रा पहना कर घुमाया,’’ कहते हुए पूजा फिर से जोरजोर से रोने लगी.
पूजा की बात सुन कर मैं हैरान रह गई.
‘‘मगर वे तुम्हारे साथ यह सब क्यों करती हैं?’’ मैं ने सवाल किया.
‘‘दीदी मु?ो खुद सम?ा नहीं आता कि वे मेरे साथ यह सब क्यों करती हैं. शायद उन्हें लगता है कि मैं उन के जैसी हाईफाई फैमिली से नहीं हूं. मेरे घर में केवल भैया हैं और वे भी साधारण नौकरी करते हैं. मैं उन के जैसे रोज नए स्टाइलिश कपड़े नहीं पहनती और चुपचाप अपनी पढ़ाई में रहती हूं. इसी वजह से वे मु?ा से चिढ़ती हैं और कमजोर सम?ाती हैं और हां एक बार जब वे देर रात होस्टल लौटीं तो मैं ने यह बात वार्डन से कह दी. शायद वे इसी बात का गुस्सा निकालती हैं और मु?ो इस तरह परेशान करती हैं.’’
‘‘तो तुम ने इस बारे में वार्डन से शिकायत क्यों नहीं की?’’
‘‘दीदी मैं ने की थी शिकायत. मैं ने वार्डन से सिर्फ इतना कहा था कि तीनों मु?ो टौर्चर करती हैं तो वार्डन मु?ो ही डांटने लगीं. दीदी, उन तीनों के पिता बहुत अमीर हैं. वे स्कूल को इकौनोमिक हैल्प भी करते हैं. इसलिए कोई उन से कुछ कहना नहीं चाहता.’’
‘‘तुम चिंता मत करो. इन लड़कियों को तो मैं सबक सिखाऊंगी,’’ मैं ने पूजा को गले से लगाते हुए वादा किया.
थोड़ी देर सोचने के बाद मैं ने अपनी सहेली अमिता को कौल की. वह आईपीएस फिसर थी. अच्छी बात यह थी कि उस की पोस्टिंग मसूरी में ही थी. मैं ने उसे पूजा की सारी बात बताई.
2 दिन बाद ही अमिता पूजा के स्कूल पहुंची. उस ने उन तीनों लड़कियों को बुला कर डांटाडपटा और कानून की भाषा में सब समझा दिया. उन पर कौन सी धाराएं लग सकती हैं और नतीजा कितना बुरा हो सकता है यह भी भलीभांति बताया. एहसास दिला दिया कि पूजा अकेली या कमजोर नहीं और आइंदा उन्होंने पूजा के साथ कुछ भी गलत किया तो अंजाम बहुत भयंकर हो सकता है. अमिता ने वार्डन से बात की और सारा मामला बताया. वार्डन ने भी अपनी गलती सम?ा और वादा किया कि ऐसा फिर कभी नहीं होने दिया जाएगा.
अमिता के रुतबे और सम?ाने के अंदाज का गहरा असर हुआ और इस के बाद पूजा को कभी किसी ने तंग नहीं किया. पूजा अब बहुत खुश रहती थी और उसे लगने लगा था कि मैं उस की हर समस्या का समाधान हूं.
समय गुजरता गया. पूजा मयंक को किसी न किसी बहाने अपने पास मसूरी बुलाती और फिर दोनों मेरे घर आ जाते. फिर तीनों मिल कर कुछ अच्छा वक्त साथ बिताते. पूजा अपनी छुट्टियों में भी मेरे पास आ जाती. इस तरह एकदूसरे से मिलतेमिलाते 2 साल बीत चुके थे. मु?ो मयंक अच्छे लगते थे और मयंक की आंखों में भी मैं ने अपने लिए हमेशा प्यार देखा था. मगर संकोचवश हम दोनों ने आज तक केवल पूजा के इर्दगिर्द रह कर ही उस से जुड़ी बातें ही की थीं. एकदूसरे से किसी और विषय पर या अपनी फीलिंग्स को ले कर कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं हुई.
उस दिन जब पूजा और मयंक मेरे घर में थे तो पूजा ने हम दोनों की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘भैया आप लखनऊ में रहते हो, दीदी आप देहरादून में रहते हो और मैं खुद मसूरी में रहती हूं. क्या यह नहीं हो सकता कि हम तीनों एक ही जगह रहें? दीदी क्या मैं आप को मम्मी बुला सकती हूं?’’
पूजा की बात सुनते ही हम सकते में आ गए. मैं ने मयंक की तरफ देखा. वे मंदमंद मुसकरा रहे थे. मु?ो भी हंसी आ गई. पूजा ने हमारी समस्या हल कर दी थी. यह बात तो हम दोनों के मन में भी चल रही थी. बस उसे शब्दों में कहने की हिम्मत नहीं थी. मगर पूजा ने यह काम कर दिया.
मैं ने मयंक की आंखों में स्वीकृति देखी तो पूजा की बात का जवाब देते हुए कहा, ‘‘ठीक है मैं लखनऊ में रहने को तैयार हूं. लखनऊ में हमारा मेन औफिस है. यहां तो मैं ब्रांच औफिस में काम करती हूं और हां तुम मुझे मम्मी जरूर बुला सकती हो.’’
मैं ने और मयंक ने साथ रहने और शादी करने का फैसला कर लिया. मगर मयंक अपनी मां की वजह से असमंजस में थे. मां गांव में रहती थीं और जातपांत का भेदभाव बहुत ज्यादा मानती थीं. मयंक के चेहरे पर कुछ उलझन के भाव मैं ने पढ़ लिए. मैं ने मयंक से कहा कि वे मां की अनुमति ले लें उस के बाद ही हम कोई कदम उठाएंगे. मयंक ने भरोसा दिलाया कि वे इस महीने के अंत तक गांव जाएंगे और मां को तसल्ली से सारी बात समझाएगा.
अगले महीने जब पूजा मेरे घर आई तो फिर से थोड़ी उदास लगी. मैं ने कारण पूछा तो कहने लगी कि उस के भैया ने दादी से बात की थी मगर वे इस शादी के लिए तैयार नहीं हैं.
मैं ने पूजा से पूछा, ‘‘क्या तुम ने अपनी तरफ से दादी से बात की?’’
‘‘नहीं. भैया ही गांव गए थे. मैं तो होस्टल में थी.’’
‘‘ठीक है फिर ऐसा करो कि दादी से अभी बात कर लो.’’
‘‘मगर मैं कहूंगी क्या दीदी?’’ पूजा उल?ान में थी.
‘‘वही कहो जो तुम्हारे दिल में है. बच्चों की बातों में सचाई होती है जिसे अनसुना नहीं किया जा सकता. तुम दादी से अपने मन की बात कहो.’’
पूजा ने मेरी बात मान ली और तुरंत दादी से बात करने के लिए मोबाइल उठा लिया.
‘‘दादी मैं ने अपने लिए मां जैसी भाभी ढूंढ़ ली है प्लीज आप भी उन्हें पसंद कर लो.’’
‘‘मगर बेटा मैं ने बताया न वह हमारे जात की नहीं है. नीची जाति की है. तेरे भैया की उस से शादी नहीं हो सकती,’’ दादी ने फैसला सुना दिया.
‘‘दादी मुझे जाति से कोई मतलब नहीं मुझे तो बस यह पता है कि नेहा दीदी हमेशा मेरे साथ रहती हैं. मेरी हर परेशानी पल में दूर कर देती हैं. मेरे ऊपर कोई मुश्किल आए उस से पहले मुझे बचाने के उपाय कर देती हैं. मेरी सुरक्षा के लिए हमेशा सोचती हैं. मुझे उन के सीने से लग कर लगता है जैसे मैं बहुत सुरक्षित हाथों में हूं. उन के हाथों से खाना खा कर लगता है जैसे अपनी मां खिला रही हैं,’’ पूजा ने अपने दिल की बात कहनी शुरू की.
‘‘बेटा मैं तेरी भावनाएं सम?ा रही हूं मगर…’’ दादी ने बात बीच में ही छोड़ दी.
पूजा की आंखों में आंसू आ गए थे. मैं ने उस के आंसू पोंछ दिए और प्यार से माथा सहलाने लगी.
पूजा की आवाज में दर्द उभर आया था, ‘‘मगर क्या दादी? दादी आप को पता है
2 साल पहले मेरी फ्रैंड निशा ने सुसाइड कर लिया था. जानते हो क्यों क्योंकि उस की सौतेली मां उसे बहुत सताती थी, बहुत मारतीपीटती थी. दादी उस की जातिधर्म की थी मगर उसे केवल आंसू देती थी, जबकि नेहा दीदी ने हमेशा मेरी आंखों में आंसू आने से पहले ही उन्हें पोंछ दिया है. नेहा दीदी ने हमेशा मु?ो हंसाया है. मां जैसा प्यार दिया है. प्लीज दादी मु?ा से इस मां को मत छीनो. आप जाति देख रही हैं जबकि मुझे सिर्फ प्यार दिखाई देता है. क्या जाति प्यार से बढ़ कर होती है दादी?’’
दादी थोड़ी देर मौन रहीं फिर मुसकराती आवाज में बोलीं, ‘‘बेटा आज मु?ो तेरे शब्दों में छिपे प्यार का एहसास हो गया है. इतनी प्यारी मां से तु?ो दूर कैसे रख सकती हूं. तेरी बातों ने मेरे मन को पिघला दिया है. तू हमेशा अपनी मां जैसी भाभी के साथ खुश रह बस यही चाहती हूं. तू चिंता मत कर मैं आ कर उन दोनों की शादी कराती हूं.’’
पूजा ने दादी के बदले हुए फैसले को सुना तो खुशी से चीख पड़ी. वह मेरे गले लग कर देर तक रोती रही. फिर अपने भैया को कौल कर के बोली, ‘‘भैया दादी मान गई हैं. अब हम तीनों मिल कर बनाएंगे एक हैप्पी फैमिली,’’ बात करते हुए वह मेरी तरफ देख कर मुसकरा रही थी.
मैं सोचने लगी कि सच है बच्चों का मन बिलकुल सच्चा होता है. उन की बात दिल तक पहुंचती है क्योंकि वे दिल से बात रखते हैं. तभी तो हमारी हैप्पी फैमिली का सपना पूरा होने वाला है. मेरी आंखें भी भर आई थीं और दिल में खुशी की लहर दौड़ गई थी.