उसके हिस्से के दुख: क्यों मदद नही करना चाहते थे अंजलि के सास-ससुर

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उसके हिस्से के दुख: भाग 2- क्यों मदद नही करना चाहते थे अंजलि के सास-ससुर

उमा बीच में एकाध बार कोमल और शीतल को अंजलि और विनय से मिलवा लाई थी. उमा अंजलि के कपड़ों का बैग भी ले गई थी. अब अंजलि भी लगातार हौस्पिटल में ही थी. विनय सामान्य दिखने की कोशिश तो करते, पर मन ही मन बहुत चिंतित थे.

बारबार अंजलि से कह रहे थे, ‘‘यार, हमेशा हैल्थ का इतना ध्यान रखा और अब कितने दिनों से हौस्पिटल में पड़े हैं.’’

अंदर से खुद भयभीत अंजलि हौसला बढ़ाती, ‘‘कोई बात नहीं, रिपोर्ट ठीक ही होगी. बस, फिर चलेंगे घर,’’ अंजलि विनय को क्या, जैसे खुद को तसल्ली दे रही थी.

रिपोर्ट क्या आई, विनय और अंजलि के जीवन में दुखों का जैसे एक सैलाब  सा आ गया. क्या करें, क्या होगा. किसी को कुछ समझ नहीं आया. विनय को ब्रेन कैंसर था जो इतना फैल चुका था कि औपरेशन असंभव था और लास्ट स्टेज थी. सब के पैरों तले की जमीन खिसक गई. अंजलि को तो लगा कि एक पल में ही उस की दुनिया बदल गईर् है. डाक्टर के सामने ही फूटफूट कर रो दी वह. विनय अवाक थे. राकेश अंजलि को चुप करवाता हुआ खुद भी रो रहा था.

डाक्टर ने अंजलि से कहा, ‘‘आप आइए, आप से कुछ बातें करनी है.’’

विनय को रूम में छोड़ अंजलि और राकेश डाक्टर के कैबिन में गए.

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डाक्टर ने गंभीरतापूर्वक कहा, ‘‘आप को अब खुद मानसिक रूप से बहुत मजबूत होना है. सब से दुख की बात है कि विनय के पास सिर्फ 2-3 महीने ही हैं.’’

‘‘क्या?’’ अंजलि रो पड़ी.

राकेश ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘‘कोई इलाज तो होगा? आज साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है… क्या हम उन्हें विदेश ले जाने की कोशिश करें, डाक्टर साहब?’’

‘‘उन्हें अब कहीं भी ले जाने से फायदा नहीं है. लास्ट स्टेज है. कीमो और रैडिएशन ट्राई करते हैं, अगर बौडी को सूट कर गया तो थोड़े दिन और बढ़ जाएंगे और आप को बहुत सारी बातें समझनी होंगी. उन्हें बातबात पर चिड़चिड़ाहट हो सकती है, मूड स्विंग्स होंगे, मैमोरी लौस भी हो सकता है. उन के साथ अचानक ये सब हुआ है, वे मानसिक रूप से बहुत अस्थिर होंगे. आप को बहुत धैर्य रखना होगा.’’

टूटेहारे तीनों 10 दिन बाद घर वापस आ गए. घर के पास ही एक बहुत अच्छा हौस्पिटल था. कीमोथैरेपी और रैडिएशन के लिए रोज जाना था. वहीं जाने में सुविधा थी तो वहां डाक्टर को दिखा कर आगे के लिए इलाज शुरू हो गया. सुबह सब का नाश्ता बना कर बेटियों को स्कूल भेज अंजलि 10 बजे विनय के साथ हौस्पिटल जाती. आने में 1-2 बज जाते. आ कर लंच बनाना, विनय को खिलाना, फिर उन्हें आराम करवाना, पर विनय आराम करना कहां जानते थे. हाईपरएक्टिव इंसान थे.

हमेशा कुछ न कुछ करते ही रहते थे अब तक. अब धीरेधीरे स्टैमिना कम हो रहा था. रैडिएशन के साइड इफैक्ट भी बहुत साफ नजर आते थे. काफी कमजोरी रहने लगी थी. जल्दी थकते थे, घर में भी चलनेफिरने में थकते दिखाई दे रहे थे. कार चलाना तो अब बंद ही हो गया था. हौस्पिटल आनेजाने के लिए एक ड्राइवर को बुलाया जाता था. विनय की गिरती सेहत, भविष्य में आने वाली परेशानियों का डर, घर में अनिष्ट की आशंका हर तरफ दिखाई देने लगी थी.

बहुत कम लोगों को ही विनय की बीमारी का पता था. विनय अब अपने सारे बीमे के पेपर्स, सारे फंड्स खोल कर बैठे रहते, 1-1 चीज अंजलि को समझते कि कैसे क्या करना है. वे यह महसूस कर चुके थे कि किसी भी दिन कुछ हो जाएगा.

अब तक विनय को हर बात, हर काम खुद करने की आदत थी. स्वभाव  से वे काफी पजैसिव और डौमिनेटिंग टाइप के इंसान थे. अब हर बात में अंजलि और बच्चों पर निर्भर होना पड़ रहा था तो उन्हें बातबात पर गुस्सा आने लगा था. कभी भी चिढ़ जाते, बहुत गुस्सा करते. अंजलि को दोहरी तकलीफ होती. एक तरफ असाध्य बीमारी, उस पर विनय का गुस्सा और चिड़चिड़ाहट. कभीकभी उसे सजा सी लगने लगती कि उसे क्यों इतना शारीरिक और मानसिक कष्ट झेलना पड़ रहा है.

एक महीने में ही उस का चार किलोग्राम वजन कम हो गया था. विनय की जगह वह बीमार लगने लगी थी. रातभर उठ कर विनय को देखती रहती कि ठीक तो हैं. वे जब से बेहोश हुए थे, एक रात भी अंजलि चैन से नहीं सो पाई थी.

एक दिन अंजलि जैसे ही दोपहर में थक कर थोड़ा लेटी, विनय ने कहा, ‘‘अरे, याद आया, एक पेपर का फोटोस्टेट करवाना है.’’

‘‘ठीक है, अभी शाम को करवा लाऊंगी या कोमलशीतल स्कूल से आएंगी तो करवा लाऊंगी, आप को अकेले छोड़ कर नहीं निकलूंगी.’’

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‘‘नहीं, अभी चाहिए, मैं थोड़े पेपर्स ठीक कर रहा हूं.’’

‘‘आप भी आराम कर लो, शाम को ले आऊंगी.’’

विनय बुरी तरह चिढ़ गए, ‘‘अब छोटेछोटे कामों के लिए तुम्हें कितनी बार कहना पड़ता है. मेरी मजबूरी है. तुम्हें पता है न, मेरा हर काम समय पर परफैक्ट रहता है. टालना मेरी आदत नहीं है. अब कितनी बार एक ही काम को कहना पड़ता है.’’

थक कर लेटी अंजलि विजय की चिड़चिड़ पर उठ कर बैठ गई, ‘‘अभी जाना जरूरी है? बारिश भी तेज है.’’

‘‘हां, अभी जरूरी है.’’

अंजलि को गुस्से के मारे रोना आ गया. जब से विनय बेहोश हुए थे, एक मिनट भी अंजलि ने विनय को घर में अकेला नहीं छोड़ा था. इतने में बच्चे आ गए तो वह उन्हें खान दे कर तैयार हो कर तेज बारिश में ही घर से निकल गई. जा कर फोटोस्टेट करवाया, फिर रास्ते में खुद को ही समझने लगी कि विनय छोटेछोटे काम हमें कहते हुए मानसिक तनाव झेलते होंगे, इतनी बड़ी बीमारी के आखिरी दिन हैं… उन्हें कैसा लगता होगा. जब यह महसूस होता होगा कि किसी भी दिन वे नहीं रहेंगे, किस मानसिक यंत्रणा में रहते होंगे. फिर विनय के पक्ष में ही सोचती हुई अपना गुस्सा, झंझलाहट भूलने की कोशिश करने लगी.

अचानक अंजलि की परेशानियां तब और बढ़ गईं जब मुंबई में ही इस समय उस के देवर के पास रहने वाले उस के सासससुर महेश और मालती विनय की बीमारी का पता चलने पर उस के पास रहने आ गए. महेश और मालती कुछ महीने विनय के छोटे भाई विजय के पास रहते थे, कुछ महीने यहां. 86 साल के महेश और 80 साल की मालती दोनों शारीरिक रूप से बेहद खराब स्थिति में थे. दोनों बिना सहारे के उठबैठ भी नहीं पाते थे. बस, अंजलि को बातबात पर टोकने, सारा दिन उस की गलतियां बताने की शक्ति उन में आज भी थी. कभीकभी कुछ बुजुर्ग भी तो अपनी शारीरिकमानसिक अवस्था भूल कर किसी भी उम्र में दुर्व्यवहार करना नहीं छोड़ते.

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उसके हिस्से के दुख: भाग 3- क्यों मदद नही करना चाहते थे अंजलि के सास-ससुर

अब सासससुर की सेवा, बीमार पति की देखभाल, दोनों बेटियों की स्कूल की पढ़ाई, घर के काम, अंजलि टूटटूट कर अंदर ही अंदर बिखर रही थी. वह अपना सारा दुख अपनी अभिन्न सहेली रूपा से ही शेयर कर पाती थी जो उसी सोसायटी में रहती थी. रूपा को अपनी इस सहेली का दुख कम करने का कोई रास्ता नहीं सूक्षता आता था. अंजलि के सासससुर जब से आए थे.

अंजलि ने रूपा से कहा था, ‘‘मैं तुम से अब फोन पर ही बात करूंगी, मांपिताजी को मेरी किसी से भी दोस्ती कभी पसंद नहीं आई है और किसी भी तरह का इन्फैक्शन होने के डर से डाक्टर ने भी अब विनय को किसी से मिलनेजुलने के लिए मना कर दिया है.’’

अंजलि घर का कोई सामान लेने बाहर निकलती तो कभीकभी 10-15 मिनट के लिए रूपा के पास चली जाती थी. उस का घर रास्ते में ही पड़ता था. उस समय वह सिर्फ रूपा के गले लग कर रोती ही रहती. कुछ बात भी नहीं कर पाती. अपनी सहेली के दर्द को समझ रूपा कभी उसे बांहों में भर खूब स्नेहपूर्वक दिलासा देती तो कभीकभी साथ में रो ही देती.

रूपा के पति अनिल व्यस्त इंसान थे. अकसर टूर पर रहते थे. उस का देवर सुनील जो अभी पढ़ ही रहा था, उन के साथ ही रहता था. ऐसे ही एक दिन रूपा ने कहा, ‘‘अंजलि, सारे काम खुद पर मत रखना, तेरी तबीयत भी ठीक नहीं लग रही है, कोई भी काम हो, सुनील को बता दिया कर. कालेज से आ कर वह फ्री ही रहता है.’’

‘‘हां, ठीक है,’’ कह कर अंजलि चली गई.

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रूपा फोन पर अंजलि से दिन में एक बार बात जरूर करती थी. अंजलि की  बिल्डिंग में अभी किसी को विजय की बीमारी के बारे में पता नहीं था. स्वभावत: विनय बहुत कम लोगों को पसंद करते थे. उन्होंने हमेशा आसपास रहने वालों से एक दूरी ही बना कर रखी थी. राकेश, उमा से जितना हो सकता था, कर रहे थे. 1 महीने बाद कीमोथेरैपी बंद हो चुकी थी. रैडिएशन थोड़ा बाकी था. कुछ फायदा होता नहीं दिख रहा था. विजय की हालत चिंताजनक थी. उन्हें अब काफी तेज बुखार रहने लगा तो रैडिएशन भी रोकना पड़ा. कमजोरी बढ़ती जा रही थीं.

एक दिन रिपोर्ट्स लानी थी और दवाइयां भी खत्म थीं. जुलाई का महीना था. बारिश बहुत तेज थी. रात के 9 बज रहे थे. अंजलि ने हमेश की तरह होम डिलिवरी के लिए मैडिकल स्टोर फोन किया तो फोन की घंटी बजती रही, किसी ने उठाया नहीं या तो फोन खराब था या मैडिकल स्टोर बंद था. राकेश, उमा भी बाहर थे. कुछ समझ नहीं आया तो अंजलि ने रूपा को फोन कर के यह समस्या बताई.

रूपा ने फौरन कहा, ‘‘दवाई का नाम व्हाट्सऐप पर भेज दे, सुनील दवाई और रिपोर्ट्स सब पहुंचा देगा.’’

अंजलि को बहुत सहारा सा लगा. पहले भी कई बार रूपा के किसी काम से सुनील आताजाता रहा था. वह शरीफ, सभ्य लड़का था पर इस बार आया. विनय की तबीयत पूछी तो विनय ने उसे बहुत रूखे स्वर में जवाब दिया. अंजलि को बहुत बुरा लगा पर कुछ कह नहीं सकती थी. महेश और मालती ने भी सुनील के जाने के बाद बहुत ही मूड खराब कर सुनील के आने के बारे में कमैंट किए तो अंजलि रोंआसी हो गई. क्या करे इन लोगों का, सुनील से तो कोई लेनादेना ही नहीं है. कोई इस समय काम आ गया तो बजाय कृतज्ञ होने के उस के चरित्र पर ही उंगलियां उठने लगीं. क्यों? विनय बीमार है तो वह अब किसी से बात न करें. छोटे भाई जैसे लड़के से भी नहीं? कोई घर आएजाए भी नहीं. पहले भी सुनील घर आया है, विनय ने उसे अच्छी तरह अटैंड भी किया है. अब?

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यह अपमान क्यों? यह रूपा का भी तो अपमान है कि मैं उसे घर आने से  मना करती हूं. उसे. जो हर दुख में मुझे संभाल रही है. यह मेरा भी तो अपमान है. क्या विनय के बीमार होने से अब मेरे चरित्र पर उंगलियां उठाई जाएंगी और वे भी मेरे ही परिवार के द्वारा? क्या अब कोई सद्भाव से मेरी मदद भी करना चाहेगा तो उस का अपमान होगा? रातदिन मैं किस बात की सजा भुगत रही हूं? मैं ने क्या किया है? दिनबदिन तनमन से टूट रही हूं मैं, मेरे पति और मेरे सासससुर के लिए मेरा दर्द समझना इतना मुश्किल है? मैं विजय की स्थिति महसूस कर रातदिन उन की मनोदशा का अंदाजा लगा सकती हूं, बीमार, कर्कश, सासससुर के इशारों पर इस स्थिति में भी नाच सकती हूं, मैं शारीरिक और मानसिक संबल के लिए किसी से कोई आशा क्यों नहीं रख सकती?

बारिश की परेशानी देख कर इस के बाद भी रूपा ने दवाई या कोई काम पूछने सुनील को भेजा तो विनय और सासससुर के चेहरे तन गए, सुनील तो पूछ कर चला गया. पूरा दिन घर में अजीब सा तनाव रहा.

अंजलि हैरान थी कि यह क्या है? क्यों है? मैं कैसे रूपा को सुनील को भेजने के लिए मना करूं? यह कितनी शर्म की बात होगी. मुझे तो कभी भी किसी की भी मदद लेनी पड़ सकती है अब. क्या सब से कट कर अपने में ही हमेशा जी सकता है इंसान?

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सासससुर मुझे हर बात पर ऐसे देखते हैं जैसे मैं ने कोई गुनाह कर दिया हो. विजय का गुस्सा, चिड़चिड़ाहट बढ़ती जा रही है. देवरदेवरानी ने तो मांपिताजी को यहां भेज कर राहत की सांस ली है. 8-10 दिन में एक बार फोन कर पूछ लेते हैं कि कोई काम तो नहीं है? राकेश, उमा को भी विनय ज्यादा पसंद नहीं करते. मैं किसी को अपना दुख बता ही नहीं सकती, बिडंबना से विनय का साथ छूट रहा है. हर पल उन्हें मुझ से दूर करता जा रहा है, रोज सुब यह आंशका रहती है कि आज का दिन ठीक रहेगा या शाम तक कहीं… मेरी हालत तो फांसी का इंतजार कर रहे उस व्यक्ति की सी है जो जानता है गुनाह उस ने किया ही नहीं पर अदालत ने मौत की सजा दे दी. मुझे तो शायद पैरोल पर तभी छोड़ा जाएगा जब विनय… उफ नहीं… नहीं, पर गुनहगार तो तब भी मैं ही मानी जाती रहूंगी, शायद.’’

उसके हिस्से के दुख: भाग 1- क्यों मदद नही करना चाहते थे अंजलि के सास-ससुर

शामके 7 बज रहे थे. विनय ने औफिस से आ कर फ्रैश हो कर पत्नी अंजलि और दोनों बेटियों  कोमल और शीतल के साथ बैठ कर चायनाश्ता किया. आज बीचबीच में विनय कुछ असहज से लग रहे थे.

अंजलि ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘हां, कुछ अनकंफर्टेबल सा हूं, थोड़ी सैर कर के आता हूं.’’

‘‘हां, आप की सारी तबीयत सैर कर के ठीक हो जाती है.’’

‘‘तुम भी चलो न साथ.’’

‘‘नहीं, मुझे डिनर की तैयारी करनी है.’’

‘‘तुम हमेशा बहाने करती रहती हो… तुम्हें डायबिटीज है, डाक्टर ने रोज तुम्हें सैर करने के लिए कहा है और जाता मैं हूं, चलो, साथ में.’’

‘‘अच्छा, कल चलूंगी.’’

‘‘कल भी तुम ने यही कहा था.’’

‘‘कल जरूर चलूंगी,’’ फिटनैस के शौकीन 30 वर्षीय विनय ने स्पोर्ट्स शूज पहने और निकल गए.

बेटियों को होमवर्क करने के लिए कह कर अंजलि किचन में व्यस्त हो गई. काम करते हुए विनय के बारे में ही सोचती रही कि कितना शौक है विनय को फिट रहने का, दोनों समय सैर, टाइम से खानापीना, सोना.

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अंजलि ने कई बार विनय को छेड़ा भी था, ‘‘कितना ध्यान रखते हो अपना, कितना शौक है तुम्हें हैल्दी रहने का… जरा सा जुकाम भी हो जाता है तो भागते हो डाक्टर के पास.’’

‘‘वह इसलिए डियर कि मैं कभी बीमार पड़ना नहीं चाहता, मुझे तुम तीनों की देखभाल भी तो करनी है.’’

वह अपने पर गर्व करने लगती.

विनय सैर से लौटे तो कुछ सुस्त थे. स्वभाव के विपरीत चुपचाप बैठ गए तो अंजलि ने टोका, ‘‘क्या हुआ, आज सैर से फ्रैश नहीं हुए?’’

‘‘नहीं, थोड़ा अनईजी हूं.’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘पता नहीं, कुछ तो हो रहा है.’’

डिनर करते हुए भी विनय को चुपचाप, गंभीर देख अंजलि ने फिर पूछा, ‘‘विनय, क्या हुआ?’’

अपनी ठोड़ी पर हाथ रखते हुए विनय ने गंभीरतापूर्वक कहा, ‘‘यहां से ले कर सिर तक बीचबीच में एक ठंडी सी लहर उठ रही है.’’

‘‘अरे, चलो डाक्टर को दिखा लेते हैं,’’ अंजलि ने चिंतित स्वर में कहा. अंजलि विनय के साथ डाक्टर नमन के क्लीनिक के लिए निकल गई. ठाणे की इस ‘हाइलैंड’ सोसायटी के अधिकांश निवासी सोसायटी में स्थित ‘नमन क्लीनिक’ ही जाते थे.

अपना इतना ध्यान रखने के बाद भी विनय को अकसर कुछ न कुछ होता रहता था. विनय दवाइयों की कंपनी में ही काम करते थे तो डाक्टर शर्मा से उन की अच्छी दोस्ती भी थी.

डाक्टर नमन ने कहा, ‘‘ऐसे ही एसिडिटी रहती है न तुम्हें, वही कुछ हो रहा होगा.’’

डाक्टर नमन से अधिकतर लोगों को यह शिकायत रहती थी कि वे मरीज की परेशानी को अकसर हलके में ही लेते थे. कुछ इस बात से खुश रहते थे तो कुछ शिकायत करते थे. एसिडिटी की दवाई ले कर विनय और अंजलि घर आ गए. फिर रोज की तरह 11 बजे सोने चले गए.

रात को 3 बजे के आसपास अंजलि विनय के बाथरूम जाने की आहट पर जागी. विनय  बाथरूम से आए और वापस बैड पर बैठतेबैठते एक तेज आह के साथ लेटते हुए बेहोश हो गए.

अंजलि हैरान सी उन्हें हिलाती हुई आवाज देने लगी, ‘‘विनय, उठो, क्या हुआ है?’’

विनय की बेहोशी बहुत गहरी थी. वे हिले भी नहीं. अंजलि के हाथपैर फूल गए. उन का फ्लैट तीसरे फ्लोर पर था. उसी बिल्डिंग में ही 10वें फ्लोर पर अंजलि का छोटा भाई राकेश, उस की पत्नी उमा और उन के 2 बच्चे रहते थे. अंजलि के मातापिता थे नहीं, दोनों भाईबहन ने एकदूसरे के आसपास रहने के लिए ही एक बिल्डिंग में घर लिए थे.

अंजलि ने इंटरकौम पर राकेश को तुरंत आने के लिए कहा. राकेश, उमा भागे आए, बहुत कोशिश के बाद भी विनय को होश नहीं आ रहा था. उन्हें बेहोश हुए 30 मिनट हो गए थे. राकेश ने अब फोन कर तुरंत ऐंबुलैंस बुलवाई. उमा को बेटियों की जिम्मेदारी सौंप अंजलि राकेश के साथ विनय को ले कर हौस्पिटल पहुंच गई. उन्हें फौरन एडमिट किया गया. गहरी बेहोशी में विनय को देख अंजलि के हौसले पस्त हो रहे थे, राकेश उसे तसल्ली दे रहा था.

विनय को फौरन आईसीयू में एडमिट कर लिया गया. उन्हें काफी देर बाद होश आया तो वे बिलकुल नौर्मल थे. बात कर रहे थे. पूछ रहे थे कि क्या हुआ. उन्हें अपना बेहोश होना बिलकुल याद नहीं था.

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अगले कई दिन टैस्ट्स का सिलसिला चलता रहा. दवाइयों की ही फीलड में काम करने के कारण विनय की कई डाक्टर्स से अच्छी जानपहचान थी. टैस्ट्स होते रहे, रिपोर्ट्स आती रहीं, सब ठीक लग ही रहा था कि ब्रेन की एमआरआई की रिपोर्ट आई तो बात चिंता की थी. ब्रेन में एक धब्बा सा नजर आ रहा था. विनय के ही कहने पर एमआरआई फिर किया गया. रिपोर्ट वही थी.

अब डाक्टर ने कहा, ‘‘बायोप्सी करनी पड़ेगी.’’

घबराहट के कारण अंजलि के आंसू बह चले, ‘‘बायोप्सी?’’

‘‘हां, जरूरी है,’’ एकदम हलचल सी मच गई.

विनय ने कहा, ‘‘राकेश, में ‘हिंदुजा’ में एक बार दिखा लेता हूं, वहां मेरी अच्छी जानपहचान है और हर तरह से वहीं ठीक रहेगा.’’

राकेश, अंजलि ने भी सहमति में सिर हिलाया.

इस हौस्पिटल में भी विनय को एडमिट हुए 10 दिन हो गए थे. राकेश ने औफिस से छुट्टी ली हुई थी. अंजलि मुश्किल से ही घर चक्कर काट पा रही थी. उमा ही शीतल, कोमल को स्कूल भेजती थी. उन्हें अपने पास ऊपर ही रखती थी. इन दस दिनों ने अंजलि को भी बहुत शारीरिक और मानसिक तनाव दिया था. डायबिटीज के कारण उस की हैल्थ भी काफी प्रभावित हो रही थी. इस समय विनय की चिंता ने उस की हालत खराब कर रखी थी.

‘हिंदुजा’ में डाक्टर्स को दिखा कर विनय एडमिट हो गए. बायोप्सी हुई, ब्रेन जैसे शरीर के महत्त्वपूर्ण भाग के साथ छेड़छाड़ होती सोच कर अंजलि मन ही मन बहुत घबराए चली जा रही थी. आंसू रुकने का नाम नहीं लेते थे. रिपोर्ट आने में 10 दिन लगने वाले थे. विनय को बुखार भी था. बाकी टैस्ट्स भी चल रहे थे.

डाक्टर अमन ने कहा, ‘‘आप लोग सोच लें, डिस्चार्ज हो कर घर जाना है या यहीं रहना है. यहां से आप का घर काफी दूर है. 3 दिन बाद सिर की ड्रैसिंग भी करनी है, बारबार आनेजाने में आप को परेशानी होगी.’’

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विनय के सिर के थोड़े से बाल बायोप्सी के लिए शेव किए गए थे. अभी 3 दिन बाद फिर ड्रैसिंग होनी थी. यही ठीक समझ गया कि फिर आनेजाने से अच्छा है कि एडमिट ही रहा जाए. विनय काफी सुस्त भी थे. उन्हें आनेजाने में स्ट्रैस भी हो सकता था, इसलिए डिस्चार्ज नहीं लिया गया.

आगे पढ़ें- बारबार अंजलि से कह रहे थे…

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