तब्बरः परिवार के अस्तित्व को बचाने के लिए आप किस हद तक जा सकते हैं…

रेटिंगः चार स्टार

निर्माताः जार पिक्चर्स

निर्देशकः अजीत पाल सिंह

कलाकारः पवन मल्होत्रा, सुप्रिया पाठक, गगन अरोड़ा, रणवीर शोरी,  साहिल मेहता, परमवीर सिंह चीमा,  अली मुगल, बाबला कोचर , कंवलजीत सिंह, नुपुर नागपाल,  आकाशदीप साहिर,  तरन बजाज,  निशांत सिंह, लवली सिंह,  मेहताब विर्क, रोहित खुराना, रचित बहल व अन्य

अवधिः पांच घंटे 15 मिनटः 30 से 47 मिनट के आठ एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः सोनी लिव

हर इंसान के लिए सबसे पहले अपना परिवार होता है. इंसान अपने परिवार के अस्तित्व को बरकरार रखने के लिए किस हद तक जा सकता है, इसी को चित्रित करते हुए कई अंतरराष्ट्ीय पुरस्कार हासिल कर चुके फिल्मकार अजीत पाल सिंह क्राइम थ्रिलर वेब सीरीज ‘‘ टब्बर’’ लेकर आए हैं, जो कि 15 अक्टूबर से ओटीटी प्लेटफार्म सोनी लिव पर स्ट्रीम हो रही है. पंजाबी में परिवर को टब्बर कहते हैं. इसी के साथ अजीत पाल सिंह ने इस सीरीज में एक ऐसे द्वंद का चित्रण किया है, जो अक्सर घर व हर इंसान के अंदर चलता रहता है. इस सीरीज में पत्नी सरगुन भगवान यानी कि रब पर पूरा भरोसा करती है. मगर पति ओंकार भगवान यानी कि ईश्वर यानी कि रब से नाराज है. ओंकार तय करता है कि परिवार पर आयी आफत को वह ख्ुाद ही ठीक करेगा. वह तय करता है कि मैं खुद ही अपने परिवार को बचाउंगा. मैं खुद ही तय करुॅंगा कि मेरे व मेरे परिवार के साथ क्या हो. रब कुछ नही करने वाला है.

कहानीः

कहानी का केंद्र बिंदु जालंधर,  पंजाब में रह रहा ओंकार(पवन मल्होत्रा) और उसका परिवार है. ओंकार के परिवार में उसकी पत्नी सरगुन(सुप्रिया पाठक), बड़ा बेटा हरप्रीत सिंह उर्फ हैप्पी(गगन अरोड़ा) व छोटा बेटा तेगी(साहिल मेहता) है. 12 वर्ष तक पुलिस की नौकरी करने के बाद एक हादसे के चलते पुलिस की नौकरी छोड़कर ओंकार ने अपनी किराने की दुकान खोल ली थी. अपने दोनों बेटों को बेहतर इंसान बनाने व उच्च शिक्षा देने में वह अपना सब कुछ न्योछावर करते रहते हैं. मगर तकदीर अपना खेल ख्ेालती रहती है. ओंकार ने अपने बड़े बेटे हैपी को आई पीएस अफसर बनाने के लिए उसे कोचिंग में पढ़ने के लिए दिल्ली भेजता है. जहां घर का बड़ा बेटा होने की जिम्मेदारी का अहसास कर हैप्प्ी दो माह बादकोचिंग छेाड़कर एक इंसान से कुछ कर्ज लेकर अपना व्यापार श्ुारू करता है. पर घाटा होता है और कर्ज तले दब जाता है , तब वह जालंधर वापस आता है. रास्ते में कर्ज के बोझ से छुटकारा पाने के लिए वह महीप सोढ़ी(रचित बहल ) के बैग से अपना बैग बदल लेता है. क्योंकि उसे पता चल जाता है कि महीप के बैग में पीला ड्ग्स है. मगर हैप्पी के पीछे पीछे महीप अपना बैग लेेने हैप्पी के घर आ जाता है. हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि हैप्पी के हाथों महीप का कत्ल हो जाता है. महीप का भाई अजीत सोढ़ी (रणवीर शोरी ) बहुत बड़ा उद्योगपति है, जो कि चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है. अब अपने बेटे हैप्पी व परिवार को सुरक्षित रखने का निर्णय लेते हुए ओंकार ऐसा निर्णय लेते हैं कि कहानी कई मोड़ों से होकर गुजरती है.

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लेखन व निर्देशनः

‘कर बहियां बल आपनी, छांड़ बिरानी आस. . . ’’ का संदेश देने वाली वेब सीरीज है- ‘‘टब्बर’’. जिसमें ‘‘रम्मत गम्मत’’ और ‘‘फायर  इन द माउंटेंस’’ के लिए कई अंतरराष्ट्ीय पुरस्कार हासिल कर चुके  निर्देशक अजीत पाल सिंह ने अपनी संवेदन शीलता को एक बार फिर उजागर किया है. फिल्मकारों के लिए अब तक पंजाब यानी कि ‘सरसों के खेत’’ही रहा है, मगर अजीत पाल सिंह ने इस वेब सीरीज में न सिर्फ   पंजाब के परिवार बल्कि पंजाब के सामाजिक व राजनीतिक परिदृश्य को भी यथार्थ परक तरीके से उकेरा है. इतना ही नही फिल्मकार ने बड़ी खूबसूरती से यह संदेश भी दे दिया है कि इंसान ‘रब’ की बजाय ख्ुाद पर भरोसा कर हर मुसीबत का मुकाबला ज्यादा बेहतर ढंग से कर सकता है. निर्देशक ने सारे दृश्य इस तरह से गढ़े है कि वह कहानी व लेखक के लिखे शब्दों को बल देता है. अजीत पाल सिंह का उत्कृष्ट संवेदनशील निर्देशन इस सीरियल को उत्कृष्टता की उंचाई प्रदान करता है. यॅॅंू तो यह क्राइम थ्रिलर है, मगर फिल्मकार व लेखक ने इसमें पंजाब की जमीनी सच्चाई को पूरी इमानदारी के साथ पेश किया है. इसमें पारिवारिक रिश्ते, प्यार,  दोस्ती, तनाव,  ड्ग्स,  ड्ग्स के चलते बर्बाद होती होनहार युवा पीढ़ी, गलत समझे जाने वाला पॉप कल्चर, पूरे संसार को जीतने की ललक के साथ ही राजनीति की बिसातों का भी चित्रण है. वेब सीरीज का अंत यानी कि आठवंे एपीसोड का अंतिम अति मार्मिक दृश्य दर्शकांे की आॅंखांे से आंसू छलका देता है. इसके बावजूद लेखक व निर्देशक ने किसी भी किरदार को सही या गलत नही ठहराया है, बल्कि दिखाया है कि आप चाहे जितना मासूम हो, पर गलती हुई है, तो उसकी सजा मिलनी ही है.

लेखक हरमन वडाला ने इसमें परिवार के अंदर भावनात्मक संघर्ष, आथर््िाक हालात के साथ प्यार को साधने के संघर्ष,  का भी बाखूबी चित्रण किया है. सीमावर्ती प्रदेश पंजाब की भौगोलिक स्थिति को कहानी के एक किरदार के रूप में उकेरा है, तो वहीं कौवा और कौवे की आवाज का भी संुदर उपयोग किया गया है, जिससे कहानी समृद्ध हो जाती है.

लेकिन शुरूआत के दो एपीसोड काफी ढीले ढाले हैं. इसके अलावा कुछ दृश्य तार्किक नही लगते. इतना ही नही पलक व हैप्पी की प्रेम कहानी को अंत में लेखक व निर्देशक भूल गए.

अभिनयः

एक पिता, परिवार का मुखिया और अपने दो मासूम बेटो को हर तूफान से सुरक्षित रखने के लिए बिना ‘रब’@‘भगवान’ पर भरोसा किए अकेले ही सबसे लड़ने व नई पई योजना बनाने वाले ओंकार के अति जटिल किरदार को जीवंतता प्रदान कर अभिनेता पवन मल्होत्रा ने अपने कुशल व उत्कृष्ट अभिनय का एक बार फिर लोहा मनवाया है. पूरी वेब सीरीज को पवन मल्होत्रा अकेले अपने कंधे पर लेकर चलते हैं. पति का साथ देने व भावनात्मक स्वाद बढ़ाते हुए सरगुन के किरदार में एक बार फिर सुप्रिया पाठक ने खुद को एक बार फिर मंजी हुई अदाकारा  के रूप में पेश किया है. बड़े बटेे हैप्पी के संजीदा किरदार में अभिनेता गगन अरोड़ा अपने अभिनय के चलते न सिर्फ लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते हैं, बल्कि साबित करते है कि उनके अंदर लंबी रेस का घोड़ा बनने की क्षमता है.

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खुद को साबित करने के जुनून में जल रहे पुलिस वाले मासूम लक्की के किरदार में अभिनेता परमवीर सिंह चीमा भी प्रशंसा बटोर लेते हैं. कंवलजीत की प्रतिभा को जाया किया गया है. कंवलजीत ने इसमें क्यों अभिनय किया, यह समझ से परे है. तेगी के किरदार में नवोदित अभिनेता साहिल मेहता ने काफी उम्मीदें जगाई हैं.

अजीत सोढ़ी के किरदार में   रणवीर शोरी ने भी अच्छा अभिनय किया है, वैसे उनके किरदार को उतनी अहमियत नही मिल पायी, जितनी मिलनी चाहिए थी. हैप्पी की प्रेमिका पलक के किरदार में नुपुर नागपाल ने भी ठीक ठाक अभिनय किया है.

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रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः विपुल डी शाह, अश्विन वर्दे व राजेश बहल

निर्देशकः अशीश आर शुक्ला

कलाकारः रिचा चड्ढा, रोनित रॉय, मनु रिषि चड्ढा, गोपाल दत्त तिवारी, नकुल रोशन सहदेव, रिद्धि कुमार, अंजू अलवा नायक, विजयंत कोहली, अब्बास अली गजनवी,  आदित्य राजेंद्र नंदा, बोधिसत्व शर्मा, मिहिर आहुजा, प्रसन्ना बिस्ट,  आएशा प्रदीप कदुसकर,  राजकुमार शर्मा,  मिखाइल कंटू,  आदित्य सियाल व अन्य

अवधिः तीन घंटे दस मिनट,  35 से 44 मिनट के आठ एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः वूट सेलेक्ट

कई डाक्यूमेंट्री व एड फिल्में का निर्देशन करने के बाद फिल्म ‘‘बहुत हुआ सम्मान’’ और चर्चित वेब सीरीज ‘‘अनदेखी’’के निर्देशक अशीश आर शुक्ला इस बार ड्रग्स,  हत्या,  रहस्य,  आशा,  भय,  राजनीति से भरपूर रहस्यप्रधान रोमांचक वेब सीरीज ‘‘कैंडी’’ का पहला सीजन लेकर आए हैं, जो कि आठ सितंबर से ‘‘वूट सेलेक्ट’’पर स्ट्रीम होगी.

कहानीः

वेब सीरीज ‘‘कैंडी’’की कहानी है हिमालय की ठंड सर्दियों जैसे एक काल्पनिक शहर रूद्रकुंड की. कहानी के केंद्र में रूद्रकुंड शहर स्थित रूद्र वैली हाई स्कूल के एक छात्र मेहुल अवस्थी(मिहिर आहुजा  )की भयानक हत्या से जुड़ा रहस्य है. रूद्र कंुड की डीएसपी रत्ना संखवार (रिचा चड्ढा), हवलदार आत्मानाथ (राजकुमार शर्मा )व दूसरे पुलिस कर्मियों के साथ मेहुल की हत्या की खबर मिलने पर जंगल  में पहुॅचती है, जहां घने जंगल के बीच एक पेड़ से लटकी हुई मेहुल अवस्थी की लाश मिलती है. पुलिस अपनी जांच की कार्यवाही शुरू करती है, तभी उसी जगह दूसरे पुलिसकर्मी के साथ स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने वाले शिक्षक जयंत पारिख (रोनित रॉय बसु )पहुॅच जाते हैं. जयंत पारिख की बेटी बिन्नी ड्ग्स की लत के चलते आग लगाकर मर चुकी है,  जिसके सदमें से उनकी पत्नी सोनालिखा पारिख(अंजु अल्वा नाइक)आज तक उबर नही पायी है. जयंत पारिख भी अपनी बेटी को बहुत चाहते थे. इसलिए मोहित की हत्या को लेकर जयंत पारिख कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी लेने लगते हैं. इधर डीएसपी अपनी जांच करते हुए स्कूल पहुंचकर चर्च के फादर मारकस (विजयंत कोहली), स्कूल के प्रिंसिपल थॉमस (गोपाल दत्त तिवारी)के अलावा लड़कांे व लड़कियों से बात करती है. मेहुल अवस्थी को परेशान करने वाले तीन लड़कों इमरान अहमद(बोधिसत्व शर्मा ) , संजय सोनोवाल (आदित्य राजेंद्र नंदा)व जॉन(अब्बास अली)से पूछ ताछ करती है. मेहुल के स्कूल के लॉकर से कैंडी का पैकेट लेकर जाती है और यह पैकेट वह वायु राणावत(नकुल रोशन सहदेव )को दे देती है. अंततः चर्चा शुरू हो जाती है कि मसान ने हत्या की है. पुलिस अफसर रत्ना संखावर और वायु के बीच गहरे संबंध हैं. पता चलता है कि ड्ग्स युक्त कैंडी बनाने व बेचने का काम वायु राणावत कर रहा है, जो कि स्थानीय विधायक मणि राणावत (मनु रिषि चड्ढा )का बेटा है. विधायक होने के साथ साथ मणि शहर के सबसे शक्तिशाली व्यवसायी हंै. वह चाहते हैं कि रूद्रकंुड उनकी उंगलियों के इशारे पर चले. अपनी सत्ता को काबिज रखने के लिए उन्होने बहुत पाप भी किए हैं.

तो वहीं मेहुल अवस्थी की खास दोस्त कलकी रावत(रिद्धि कुमार )भी गायब है. कलकी रात के अंधेरे में रोते हुए बदहवाश सी जयंत पारिख के पास पहॅुंचती है. कलकी को जयंत अपने घर मे छिपाकर रखता है. पता चलता है कि वायु द्वारा जंगल में आयोजित एक पार्टी में छिपकर मेहुल व कलकी, वायु के खिलाफ ड्ग्स से जुड़े होने के सबूत जमा कर रहे थे, जब वहां से बाहर निकलने लगते हैं, तो एक लड़की जबरन कलकी को कैंडी चटा देती है. मेहुल व कलकी जंगल में लेट कर बातें करते हैं और उनके बीच शारीरिक संबंध बनते हैं. उसके बाद किसी ने मेहुल की हत्या कर दी. सच जानने के लिए प्रयासरत जयंत की वायु व उसके गुंडे पिटायी कर देते हैं. जयंत को वायु के खिलाफ सबूत मिल जाता है. पर रत्ना को जयंत के सबूतों में रूचि नही है. इधर मेहुल की हत्या के लिए कलकी के पिता नरेश रावत (पवन कुमार सिंह) के खिलाफ सबूत मिलते हैं, वायु ही नरेश को पकड़कर रत्ना के हवाले करता है. जयंत की जंाच के अनुसार नरेश निर्दोष है. इसलिए जयंत सारे सबूत गुस्से मंे पुलिस स्टेशन आकर रत्ना शंखवार को दे देता है. रत्नी शंखवार वह सबूत आत्मानाथ को रखने के लिए देती है. मणि राणावत पुलिस स्टेशन में बंद नरेश रावत से मिलने आते हैं. रात में रूद्र कंुड के लोग ‘खून का बदला खून’के नारे के साथ पुलिस स्टेशन पर हमलाकर सबूत के साथ ही नरेश को ले जाकर पुल के उपर बांधकर जिंदा जला देते हैं. यह सब जयंत व कलकी देखकर भी कुछ नही कर पाते. इसके बाद मणि राणावत अपनी राजनीतिक चाल चलता है.  रत्ना को सस्पंेड कर उनके खिलाफ जांच बैठायी जाती है. तब रत्ना को अहसास होता है कि वह गलत लोगांेे के हाथ बिकी हुई थी और अब उसका जमीर जागता है. अब जयंत व रत्ना मिलकर सच की तलाश शुरू करते हैं. तो वहीं नए नए रहस्य सामने आते हैं. हत्याओं का सिलसिला बढ़ जाता है.  जयंत की चर्च के फादर मार्केस से भी बहस होती है. प्रिंसिपल से भी होती है. इधर जिन जिन लोगों पर दर्शक को शक होता है, वह मारे जाने लगते हैं. कहानी में कई मोड़ आते हैं. कई चेहरो ंपर से मुखौटा उतरता है. रहस्य,  डर,  उम्मीद, राजनीति,  इंसानी महत्वाकांक्षा, ड्ग्स का कारोबार,  किशोर वय लड़कियो संग सेक्स करने के अपराध सहित बहुत कुछ सामने आता जाता है.

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लेखन व निर्देशनः

पटकथा लेखकद्वय अग्रिम जोशी और देबोजीत दास पुरकायस्थ साधुवाद के पात्र है. लेखकों ने लोककथा और आधुनिक अपराध कथ का बेहतरीन संमिश्रण किया है. इस वेब सीरीज में काल्पनिक शहर रूद्रकंुड के माध्यम से लेखक ने राजनीतिक गंध,  हत्या, राजनीति का अपराधीकरण, उम्मीद, डर, अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए इंसान किस हद तक जा सकता है, रिश्तों की हत्या से लेकर धर्म की आड़ मेंं होने वाले गंभीर आपराध जैसे सारे मुद्दों को बाखूबी पेश करते हुए रहस्य व रोमांच को बरकरार रखा है. इसमें इस बात का भी बाखूबी चित्रण है कि ड्ग्स माफिया किस तरह स्कूली बच्चों को ड्ग्स की लत का शिकार बनाकर बर्बाद कर रहा है. वेब सीरीज ‘कैंडी’ की कहानी के केंद्र में आवासीय विद्यालय,  किशोरवय बच्चे व ड्रग्स है. लेकिन निर्देशक आशीश आर शुक्ला ने कहीं भी ड्ग्स के दुष्प्रभावों के बारे में शिक्षित करने के लिए उपदेशात्मक भाषणबाजी का सहारा नही लिया है.

कहानी की शुरूआत धीमी गति से होती है, मगर दर्शक बोरनही होता. उसका दिमाग सच जानने की  उत्सुकतावश वेब सीरीज ‘कैंडी’ के साथ जुड़ा रहता है. आठवें एपीसोड तक दर्शक असली हत्यारे तक नही पहुंच पाता और जब आठवें एपीसोड के अंत में सच सामने आता है, तो दर्शक हैरान रह जाता है. यह कुशल लेखन व अशीश आर शुक्ला के उत्कृष्ट निर्देशन के ही चलते संभव हो पाया है. लेखक व निर्देशक ने हर चरित्र को कई परतों में लपेट कर रहस्य को गहराने का काम किया है. निर्देशक ने कथानक के उपयुक्त तथा रहस्य को गहराने के लिए लोकेशन का भी बेहतरीन उपयोग किया है. घने और अंधेरे जंगल,  घुमावदार सड़कें,  सुरम्य पहाड़ियाँ और नैनीताल की भव्य जमी हुई झील का निर्देशक ने अपनी कथा को बयंा करने के लिए बेहतर तरीके से उपयोग किया है.  इमोशंस भी कमाल का पिरोया गया है. काल्पनिक कहानी होते हुए भी वास्तविकता का आभास कराती है. जयंत पारिख व उनकी पत्नी सोनालिखा के बीच के पारिवारिक रिश्तों को ठीक से नही गढ़ा गया है. जबकि लेखक व निर्देशक ने इसमें स्वाभाविक तरीके से अपरंपरागत संबंधों को उकेरा है. इस वेब सीरीज को देखकर दर्शक यह कहे बिना नही रह सकता कि रूद्रकुंड  शहर में जो दिखता है, वह होता नहीं. .

नैनीताल में फिल्मायी गयी इस वेब सीरीज के कैमरामैन बधाई के पात्र हैं, उन्होने यहां की प्राकृतिक सुंदरता को इस तरह से कैमरे के माध्यम से पकड़ा है कि दर्शक इस जगह जाने के लिए लालायित हो उठता है.

 

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अभिनयः

कुटिल व सशक्त पुलिस अफसर तथा सिंगल मदर रत्ना शंखावर के किरदार को अपने शानदार अभिनय से रिचा चड्ढा ने जीवंतता प्रदान की है. कई दृश्यों में रिचा अपने चेहरे के भावों से बहुत कुछ कह जाती हैं. रिचा ने पुलिस अफसर के कर्तव्य को निभाने वक्त अपने रोमांस की कमजोरी के चलते अपराधी को नजरंदाज करने के दृश्यों को काफी वास्तविकता प्रदान की है. सच को सामने लाने और स्कूली बच्चों को ड्ग्स के चंगुल से छुड़ाने के लिए तड़पते शिक्षक जयंत के किरदार में रोनित रॉय ने एक बार फिर अपनी अपनी उत्कृष्ट अभिनय क्षमता का परिचय दिया है. कलकी के किरदार में रिद्धि कुमार अपने अभिनय से आश्चर्य चकित करती हैं. कई दृश्यों में वह बिना कुछ कहें बहुत कुछ कह जाती हैं. ड्ग्स व सिगरेट में डूबे रहने वाले वायु राणावत के किरदार के साथ नकुल रोशन सहदेव ने पूरा न्याय किया है. नकुल ने अपने दांतों, बॉडी लैंगवेज ,  बार-बार आँख झपकना और किसी की परवाह न करना आदि के माध्यम से अपने किरदार वायु को एक  अपराधी के रूप में पेश करने में सफल रहे हैं. कई दृश्यों में वह अपने अभिनय से रहस्य को गहराई प्रदान करते हैं. मनु ऋषि चड्ढा अपने अभिनय की छाप छोड़ने में सफल रहे हैं. अन्य सह कलाकार भी अपनी अपनी जगह सही हैं.

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रेटिंगः  तीन स्टार

निर्माताः ए टिपिंग प्वाइंट

निर्देशकः श्रीजित मुखर्जी, अभिषेक चैबे, वासन बाला

कलाकारः केके मेनन, मनोज बाजपेयी,  संजय शर्मा, गजराज राव, हर्षवर्धन कपूर, अली फजल

अवधिः चार एपीसोड, लगभग चार घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः नेटफ्लिक्स

इस बार ‘नेटफ्लिक्स’’ भारत के सेक्सपिअर कहे जाने वाले फिल्मकार व लेखक स्व. सत्यजीत रे लिखित चार लघु कहानियों पर अलग अलग चार एपीसोड की एंथोलॉजी सीरीज ‘‘रे’’ लेकर आया है, जिसे अलग अलग निर्देशकों ने निर्देशित किया है. इन कहानियों में सामाजिक व्यंग, डार्क कॉमेडी, मनोविज्ञान,  अर्थव्यवस्था व बेहरीन चत्रि चित्रण है.

कहानियां

पहली कहानी ‘बहुरूपिया’ इंद्राशीष साहा (के के मेनन) के इर्द गिर्द घूमती है, जो एक अकेला उपेक्षित मेकअप कलाकार है जो जीवनयापन करने के लिए संघर्ष कर रहा है. पर बचपन से ही अपनी दादी के करीब रहे हैं. दादी की मौत होने तक वह उनकी सेवा करते रहते हैं. सभी इंद्राशीष की दादी को पागल कहते थे, जबकि वह एक सफल व्यवसायी थी. एक अमरीकन प्रोडक्शन हाउस के लिए मेकअप का सामान निर्माण कर भेजती थी. उधर कंपनी का मैनेजर सुरेश(संजय शर्मा) भी उसे नौकरी से निकालने पर आमादा है. पर वह अपनी दादी की सेवा में कटौती नही करता. उसकी दादी की कैंसर से मौत हो जाती है. उसके बाद वकील बताता है कि उनकी दादी अपनी सारी जयदाद और लाखों रूपए उनके नाम छोड़ गयी हैं. फिर वह अपने सपनों को आगे बढ़ाने और अपने जुनून का पालन करने का फैसला करता है. स्वभाव से नास्तिक,  मेकअप कलाकार के रूप में अपनी प्रतिभा के कारण किसी व्यक्ति की शारीरिक पहचान को बदलने की इंद्राशीष  की उल्लेखनीय क्षमता उसे श्रेष्ठ महसूस कराती है और एक दिन वह अपने वर्चस्व को साबित करने के लिए एक फकीर ध् बाबा(दिव्येंद्र भट्टाचार्य)  के साथ बेवजह खिलवाड़ करता है, जिसकी परिणित काफी दुखद होती है.

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दूसरी कहानी ‘हंगामा है क्यों बरपा’’है. यह सत्यजीत रे की लघु कहानी बरिन भौमिक-एर ब्यारम पर आधारित है. इसकी कहानी चोरी की बीमारी और गायक मुसाफिर अली(मनोज बाजपेयी)  के इर्दगिर्द घूमती है. मुसाफिर अली का असली नाम राजू है. बचपन में वह अपने दोस्तो के खिलौने चुराया करते थे. बड़े होने पर नौकरी की तलाश में हैं. एक बार ट्ेन में यात्रा करते समय उनकी मुलाकात असलम बेग(गजराज राव)उर्फ मशहूर कुश्तीबाज जेगना से होती है. और राजू, असलम बेग की खुशवक्त नामक घड़ी चुरा लेते हैं. उसके बाद वह अपना नाम बदलकर मुसाफिर अली कर लेते हंै और मशहूर गायक बन जाते हैं. दस साल बाद फिर ट्ेन यात्रा में मुसाफिर अली की मुलाकात असलम बेग से होती है. . इस बार दोनो की बीमारी सामने आती हैं.

तीसरी कहानी ‘‘स्पॉट लाइट’’है. यह कहानी एक मशहूर अभिनेता विक्रम अरोड़ा(हर्षवर्धन कपूर  ) के इर्द गिर्द घूमती है, जिसे घमंड है कि पूरी दुनिया उनके चेहरे की गुलाम है. वह कपूर की फिल्म की शूटिंग के लिए दूसरे शहर जाते हैं. वहंा जिस होटल के मेडोना कमरे में वह रूकते हैं, उस पर ईश्वर की तरह पूजी जा रही दीदी कब्जा करती हैं, सभी दीदी की पूजा कर रहे हैं, पर विक्रम तो दीदी को अपने सामने कुछ समझते ही नही हैं. जिसके चलते विक्रम को फिल्म से निकाल दिया जाता है, मच्छरदानी की एड हाथ से निकल जाती है. हालत खराब हो जाती है. विक्रम को अहसास होता है कि अब उसका चेहरा बदल गया, जिसे लोग देखना नही चाहते. तब विक्रम,  दीदी से मिलने की सोचते हैं. पर तब तक दीदी के यहां पुलिस छापा मार चुकी होती है और अब उसकी असलियत लोगों के सामने आने वाली है. पर विक्रम किसी तरह अकेेले में दीदी से मिलते हैं. दीदी उसे अपनी आप बीती सुनाती है. व्रिकम की मदद से दीदी अमरीका भागने में सफल हो जाती है, विक्रम फंस जाते हैं. लेकिन मंत्री की बेटी की शादी मंे तीन दिन मुफ््त में नृत्य करने के वायदे के साथ जेल जाने से बच जाते हैं. दीदी के आशिवार्द से उनकी तकदीर फिर से चमक जाती है.

चैथी कहानी ‘‘फारगेट नॉट मी’’है. यह सत्यजीत रे की कहानी ‘‘बिपिन चैधरी का स्मृतिभ्रम’पर आधारित है. यह कहानी एक सफल उद्योगपति इपसित रामा नायर(अली फजल)  के इर्द गिर्द घूमती है, जिसकी याददाश्त का लोहा सभी मानते हैं. उन्हे कई पुरस्कार मिल चुके है. लेकिन सफलता के मद में चूर इपसित अपने स्कूल व कालेज के दोस्तों के साथ जो हरकते करते हैं, उससे सभी दोस्त नाराज होकर एक ऐसा खेल रचते हैं, जिसमें इप्सित फंसकर पागल सा हो जाता है. एक रात एक अजनबी (अनिंदिता बोस)दोस्ताना मुस्कान के साथ इप्सित के पास पहुंचती है. वह इप्सिट को अच्छी तरह से जानने का दावा करते हुए उसके साथ अजंटा की गुफाओं में बिताए हुए बेहतरीन पलों की याद दिलाती है. यहां से चीजें खराब होने लगती हैं. इप्सिट चीजों को भूलना शुरू कर देता है,  एक दिन वह एक दुर्घटना के साथ मिलता है और अस्पताल में पहुंच जाता है. इप्सिट की सेक्रेटरी मैगी (श्वेता बसु प्रसाद) मिलने आती है और इप्सिट के लिए मुसीबत बढ़ जाती है.

निर्देशनः

इन चार कहानियों में से दो कहानियों ‘‘बहुरूपिया’’और ‘‘फॉरगेट नॉट मी’’का निर्देशन श्रीजित मुखर्जी ने किया है, जबकि ‘‘हंगामा है क्यों बरपा’का निर्देशन अभिषेक चैबे और ‘‘स्पॉटलाइट’का निर्देशन वासन बाला ने किया है. श्रीजीत मुखर्जी का निर्देशन ‘‘बहुरूपिया’में भी कमाल का है. काश उन्होने इस कहानी कीपृष्ठभूमि बंगाल कलकत्ता रखा होता, तो यह अति श्रेष्ठतम कृति बन जाती. ‘हंगामा है क्यों बरपा’में निर्देशक अभिषेक चैबे महान  कलाकारों की मौजूदगी के बावजूद अपने निर्देशन का जलवा नही विखेर पाते.  वैसे उन्होने उर्दू की गजल का शानदार उपयोग किया है. श्रीजित मुखर्जी निर्देशित एक घ्ंाटे से अधिक अवधि की लघु फिल्म‘‘फारगेट नॉट मी’’काफी कसी हुई फिल्म है. श्रीजीत मुखर्जी ने ‘‘फॉरगेट नॉट मी’’को डार्क मनोवैज्ञानिक रोमांचक के रूप में बेहतर बनाया है. उनका निर्देशन तारीफ लायक है.

इस पूरी सीरीज की सबसे कमजोर कड़ी निर्देशक वासन बाला और अभिनेता हर्षवर्धन कपूर हैं. वासन बाला ने सत्यजीत रे ‘स्पॉटलाइट’ कहानी को गड़बड़ करने में कोई कसर बाकी नही छोड़ी. वासन बाला निर्देशित एक घंटे से अधिक लंबी लघु फिल्म ‘‘स्पॉटलाइट’’ विखरी हुई फिल्म है. इस कहानी में सामाजिक व्यंग जबरदस्त है, पर वासन बाला उसे उभारने में असफल रहे हैं. ‘स्पॉटलाइट’ने वासन बाला के अतीत के शानदार कार्यों पर भी पानी फेर दिया. वासन बाला ने तो पूरी एंथोलॉजी को लगभग मारने वाला काम ही किया है.

‘बहुरूपिया’कहानी का संवाद-‘‘धूल चेहरे पर थी और मैं आइना साफ करता रहा’’इंसान की सोच व कार्यशैली पर करारा तमाचा है. तो वही ‘स्पॉट लाइट’कहानी का संवाद ‘‘कुत्तों के बीच रहना है, तो भेड़ नही भेड़िया बनना होगा. ’बहुत कुछ कह जाता है.

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अभिनयः

‘बहुरूपिया’कहानी में इंद्राशीष के किरदार में के के मेनन ने  शानदार अभिनय कर लोगों को आकर्षित करने में सफल रहे हैं. तो वहीं पवित्र इंसान फकीर बाबा के किरदार में दिब्येंदु भट्टाचार्य तथा अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्षरत अभिनेत्री के किरदार में बिदिता बैग भी छाप छोड़ती हैं. ‘हंगामा है क्यों बरपा’कहानी में मनोज बाजपेयी की उत्कृष्ट अभिनय प्रतिभा और गजराज राव का लाजवाब अभिनय ‘सत्यजीत रे’की श्रद्धांजलि में चार चांद लगाते हैं. रघुबीर यादव और मनोज पाहवा के छोटे किरदार भी छाप छोड़ जाते हैं. फारगेट नॉट मी’कहानी में अनिंदिता बोस, श्वेता बसु प्रसाद के साथ ही अली फजल ने शानदार अभिनय किया है. ‘स्पॉटलाइट’कहानी में सुपर स्टार विक्रम अरोड़ा के किरदार में हर्षवर्धन कपूर निराश करते हैं. वह कई जगह महज कैरीकेचर ही हैं. विक्रम अरोड़ा के किरदार के लिए हर्षवर्धन कपूर का चयन निदे्रशक की सबसे बड़ी भूल है. ‘हंगामा है क्यों बरपा’कहानी में मनोज बाजपेयी की उत्कृष्ट अभिनय प्रतिभा और गजराज राव का लाजवाब अभिनय ‘सत्यजीत रे’की श्रद्धांजलि में चार चांद लगाते हैं. रघुबीर यादव और मनोज पावा के छोटे किरदार भी छाप छोड़ जाते र्हैं. र्वानका चयन ही गलत है. राधिका मदान भी मात खा गयी हैं. चंदन रॉय सान्याल ने अवश्य बेहरीन अभिनय किया है.

REVIEW: गुदगुदाती है वेब सीरीज मेट्रो पार्क 2

रेटिंगः ढाई स्टार

 निर्देशकः अबी वर्गीज और अजयन वेणुगोपालन

लेखनः अजय वेणुगोपालन

कलाकारः रणवीर शोरी, पूर्बी जोशी, पितोबाश, ओमी वैद्य, वेगा तमोटिया,  सरिता जोशी, मिलिंद सोमन और गोपाल दत्त

अवधिः 12 एपीसोड, हर एपसोड बीस से बाइस मिनट की अवधि का, कुल समय लगभग चार घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः ईरोज नाउ पर 29 जनवरी से

अमरीका के न्यू जर्सी में बसे एक गुजराती भारतीय परिवार से जुड़े हास्यप्रद घटनाक्रमों और हास्यमय परिस्थितियों से लोगों को हॅंसा चुकी वेब सीरीज‘‘मेट्रो पार्क’’का दूसरा सीजन ‘‘मेट्रो पार्क 2 ’’लेकर आ रहे हैं अबी वर्गीज और अजयन वेणुगोपालन.

कहानीः

यह कहानी अमेरिका के न्यू जर्सी में बसे एक देसी भारतीय गुजराती परिवार की विलक्षणताओं और विचित्रताओं के इर्द गिर्द घूमती है. जो अमरीका जैसे देश में आधुनिक परिवेश में रहते हुए भारतीयता से जुडे हुए हैं. इस परिवार के मुखिया कल्पेश(रणवीर शोरी) हैं, उनके परिवार में उनकी पत्नी पायल(पूर्वी जोशी ), बेटा पंकज(आरव जोशी) व बेटी मुन्नी है. कल्पेश की स्थानीय नगर पालिका व पुलिस विभाग में अच्छी पहचान है. पायल की बहन किंजल(वेगा तमोटिया)भी न्यू जर्सी में ही रहती है. किंजल के दक्षिण भारतीय पति कानन(ओमी वैद्य) हैं, जो एक कारपोरेट कंपनी में कार्यरत हैं. कल्पेश का एक ‘पे एंड रन’नामक रिटेल दुकान है,  जिसमें बिट्टू (पितोबाश)काम करता है. पायल का अपना ब्यूटी पार्लर है, जहां पर शीला(माया जोशी) भी काम करती हैं. पहले एपीसोड की शुरूआत होती है किंजल की नवजात बेटी के नामकरण समारोह से. पायल व किंजल को तकलीफ है कि ऐसे मौके पर उनकी मॉं (सरिता जोशी) वहां मौजूद नहीं है, वैसे कल्पेश ने पायल की मां को भारत से अमरीका बुलाने के लिए वीजा के लिए आवेदन दिया है. मगर रात में जब कल्पेश और पायल अपने घर पहुंचते हैं, तो पता चलता है कि वीजा का आवेदन खारिज हो गया है. पता चलता है कि फार्म भरने में कल्पेश ने कुछ गलती कर दी थी. इसके चलते कल्पेश व पायल में मीठी नोंकझोक होती है.

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तीसरे एपीसोड में रिटेल शॉप में बढ़ती चोरी के चलते कल्पेश, लाल भाई(गोपाल दत्त) को सिक्यूरिटी के रूप में दरवाजे पर तैनात कर देते हैं. पायल व किंजल की मां (सरिता जोशी)अमरीका नही आ पाती,  मगर किंजल के पति घर में रोबोट लेकर आ जाते हैं. परिणामतः पायल और किंजल की माँ (सरिता जोशी) हर जगह एक रोबोट के रूप में मौजूद हैं, जहाँ कोई भी स्क्रीन पर या उसके माध्यम से उसे देख और सुन सकता है. फिर पायल का खुद को यूट्यूब सनसनी दिखाने का जुनून सवार होता है, जिसके चलते कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं. इसी तरह हर एपीसोड में कुछ परिस्थिति जन्य घटनाक्रम के साथ पारिवारिक नोकझोक भी चलती रहती है. दो एपीसोड में पायल के पूर्व सहपाठी और दॉतों के डाक्टर अर्पित(मिलिंद सोमण) की वजह से कुछ नए घटनाक्रम समने आते हैं. और कल्पेश के अंदर एक भारतीय पुरूष जागृत होता है.

लेखन व निर्देशनः

‘मेट्रो पार्क’सीजन वन की आपेक्षा सीजन दो ज्यादा बेहतर बना है. यह दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बसे भारतीय समाजों का प्रतिबिंब है. पारिवारिक ड्रामा के साथ हास्य के ऐसे क्षण पिरोए गए हैं, जो कि दर्शकों का मनोरंजन करते हैं. सीजन एक के मुकाबले सीजन दो में निर्देशन बेहतर है. फिर भी ‘मेट्रो पार्क सीजन 2’एक साधारण वेब सीरीज ही है. भारतीय राजनीति व बौलीवुड को लेकर गढ़े गए जोक्स बहुत ही सतही हैं. शुरूआत में रोबोट(सरिता जोशी) के चलते पैदा हुए हास्य क्षण गुदगुदाते हैं, मगर फिर वह दोहराव नजर आने लगते हैं. यह लेखक व निदेशक दोनों की कमजोरी है.

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अभिनयः

पटेल परिवार के रूप में रणवीर शोरी और पूर्वी जोशी के बीच की केमिस्ट्री कमाल की है. तो वहीं रणवीर शोरी और पितोबाश के बीच की ट्यूनिंग भी इस वेब सीरीज को दर्शनीय बनाती है. ‘थ्री इडिएट्स’के बाद इसमें ओमी वैद्य ने कमाल का अभिनय किया है. उनकी कॉमिक टाइमिंग कमाल की है. वेगा तमोटिया ने ठीक ठाक अभिनय किया है. मगर ओमी वैद्य के साथ वेगा तमोटिया की जोड़ी जमती नही है. वेगा तमोटिया इस वेब सीरीज की कमजोर कड़ी हैं. पितोबाश का अभिनय फनी है और वह लोगों को हंसाते हैं. सरिता जोशी व मिलिंद सोमण की छोटी मौजूदगी हास्य के क्षण पैदा करने में कामयाब रही है.

REVIEW: चेहरे पर मुस्कान लाने के साथ गुदगुदाती है “गुल्लक सीजन 2”

रेटिंग: 4 स्टार

निर्माता: अरुणाभ कुमार, टीवीएफ क्रिएशंस

निर्देशक: पलाश वासवानी

कलाकार: जमील खान, गीतांजलि कुलकर्णी, हर्ष मयार, वैभव राज गुप्ता,साद बिलग्रामी, दीपक कुमार मिश्रा, अभिषेक झा, कीर्ति सिंहा, शिवांगी भदोरिया, शिवांगी जय पवार, संघ रत्ना , सुनीता राजभर व अन्य

अवधि: 30 से 42 मिनट के 5 एपिसोड

ओटीटी प्लेटफॉर्म: सोनी लिव

मध्यम वर्गीय परिवारों की रोजमर्रा की जिंदगी में तमाम छोटे-मोटे वाकिया ऐसे होते हैं , जिन्हें देखकर लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. तो वहीं यह कहीं ना कहीं मध्यम वर्गीय परिवारों की पीड़ा को भी चित्रित करते हैं. ऐसी ही एक वेब सीरीज निर्देशक पलाश वासवानी लेकर आए हैं जिसका नाम है “गुल्लक सीजन 2.”

यह सीरीज मिश्रा परिवार के अपूर्ण रिश्तों और आकांक्षाओं की पड़ताल करती है. फिल्मकार ने कथाकथन के लिए अपरंपरागत शैली में उनके जीवन के किस्सों का उपयोग किया है.

कहानी:

कहानी है बिजली विभाग में कार्यरत संतोष मिश्रा( जमील खान)के परिवार की. संतोष मिश्रा के परिवार में उनकी पत्नी (गीतांजलि कुलकर्णी) के अलावा बड़ा बेटा अनु मिश्रा(वैभव राजपुरोहित) और छोटा बेटा अमन मिश्रा(हर्ष मयार) है .अनु मिश्रा पढ़ाई में फिसड्डी हैं और शादी की उम्र हो जाने पर भी बेरोजगार हैं .जबकि अमन मिश्रा हाई स्कूल की परीक्षा देने की तैयारी कर रहे हैं. हर एपिसोड में अलग-अलग घटनाक्रम हैं. मसलन, पहले एपिसोड में परिवार की जरूरतों को देखते हुए अनु मिश्रा की सलाह पर उनके पिता संतोष मिश्रा सुविधा शुल्क यानी की घूस लेने का निर्णय लेते हैं, मगर फिर विचार बदल जाता है. दूसरे एपिसोड में किटी पार्टी का मसला है, कैसे किटी पार्टी के समय परिवार के सभी पुरुष शांति मिश्रा की मदद करते हैं. एपिसोड 3 में शादी के निमंत्रण पत्र के इर्द गिर्द कहानी घूमती है. चौथे एपिसोड में अमन की परीक्षा है और तो दूसरी तरफ क्रिकेट मैच. अमन क्रिकेट के शौकीन है. पांचवा एपिसोड बहुत ही ज्यादा इमोशनल है. इसमें अनु मिश्रा को उम्मीद होती है कि वह गैस एजेंसी पा जाएगा, पर ऐसा नहीं हो पाता है और उम्मीद के विपरीत अमन मिश्रा अच्छे नंबरों से हाई स्कूल की परीक्षा में पास होता है.स्कूल की तरफ से उसकी तस्वीरें खींच कर पोस्टर बनाए जाते हैं. और तब जिस तरह से अनु और अमन के बीच एकजुट होने की बात नजर आती है और कैसे पूरा परिवार एकजुट होता है कमाल की कहानी है.

लेखन व निर्देशन:

यह मध्यम वर्गीय परिवार अपने जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करते हुए एकजुट रहता है है .इसमें गुदगुदी भी हैं. चीखना चिल्लाना भी है. पर दिन की समाप्ति तक एक दूसरे के साथ हो जाते हैं. मां का प्यार भी व्यंग में डूबा हुआ है, लोग समझते हैं कि मां की झुनझुनाहट में भी बेपनाह मोहब्बत मिलती है . सीरीज में जीवन मूल्य भी हैं. तो वहीं नए मोबाइल फोन और डियो परफ्यूम की चाहत भी है. प्यार ,भावनाएं पुरानी यादें सब कुछ बहुत ही अच्छी तरीके से निर्देशक ने पिरोया है .कहीं कोई बनावट नहीं है. वेब सीरीज देखते हुए लगता है कि जैसे कि यह हमारे अपने घर की कहानी है.

निर्देशक पलाश वासवानी बधाई के पात्र हैं .उन्होंने भावनाओं को खुलकर उभरने का मौका दिया है, तो वहीं इस बात का भी ध्यान रखा है कि नाटकीयता जरूरत से ज्यादा ना हो ने पाए. हर एपिसोड के कुछ पल दर्शकों के साथ रह जाते हैं.

अभिनय

परिवार के सभी कलाकारों के बीच अभिनय की जुगलबंदी कमाल की है .पत्नी वह मां के रूप में गीतांजलि कुलकर्णी अद्भुत धूरी बनाती है. वह पति व बच्चों को समान ऊर्जा प्रदान करती हैं, ताकि अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकें .उन्हें पर्दे पर देखकर दर्शकों को भी लगता है कि एक पत्नी और एक मां ऐसी ही होनी चाहिए. पापा के किरदार में जमील खान ने भी कमाल का अभिनय किया है. वहीं वैभव राज गुप्ता भावनाओं की रेंज को उकेरने में सक्षम रहे हैं. उनकी कॉमिक टाइमिंग भी कमाल की है. हर्ष मयार का सपाट चेहरा अमन के किरदार को उकेरने में हथियार के रूप में काम करता है. सभी कलाकारों ने अपने अपने किरदारों को बाखूबी जिया है. वहीं गुदगुदी लाने के लिए सुनीता राजभर ने कमाल का अभिनय किया है.

REVIEW: बेहतरीन डॉर्क कॉमेडी और पल्प एक्शन ड्रामा है ‘ए सिंपल मर्डर’

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः जार पिक्चर्स

निर्देशकः सचिन पाठक

कलाकारः मोहम्मद जीशान अयूब, प्रिया आनंद, अमित सियाल,  सुशांत सिंह,  यशपाल शर्मा , अय्याज खान.

अवधिः 30 से 36 एपीसोड के सात एपिसोड, कुल अवधि तीन घंटे पैंतालिस मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः सोनी लिव

वेब सीरीज‘‘रंगबाज फिर से’’से चर्चा में आए निर्देशक सचिन पाठक इस बार क्राइम थ्रिलर के साथ डार्क कॉमेडी वाली वेब सीरीज‘‘ए सिंपल मर्डर’’लेकर आए हैं. जिसमें कई मर्डरों के पीछे लालच ही मूल वजह है. तो वहीं औनर किंलिंग के अलावा ‘लव जिहाद’भी है.

कहानीः

मनीष (मोहम्मद जीशान अयूब)एक स्टार्ट अप उद्यमी है, जो आकंठ कर्ज में डूबा हुआ है, उसे लगता है कि उसकी किस्मत सोयी हुई है. मनीष ने ऋचा (प्रिया आनंद) से शादी की है, जो अब इस शादी से उब चुकी है और अपने विवाहित बॉस राहुल (अयाज खान)के साथ गुप्त संबंध रखती है, पर उसे इस बात का अहसास ही नही है कि राहुल उसे भी धोखा देते हुए मधु संग रंगरेलियां मना रहा है.

मनीष अपने व्यवसाय को गति प्रदान करने के लिए निवेशक की तलाश में है. एक दिन उसे एक निवेशक मिलने के लिए बुलाता है, मगर कुछ गलतफहमी के चलते मनीष पंडित (यशपाल शर्मा) के पास पहुंच जाते हैं, जो कि उन्हें कॉन्ट्रैक्ट किलर मानकर एक युवा लड़की को मारने की सुपारी देते हुए उसे पांच लाख रूपए भी देता है. यह लड़की मंत्री  प्राण की बेटी प्रिया (तेजस्वी सिंह)है, जो कि एक मुस्लिम लड़के उस्मान(अंकुर पांडे)  से प्रेम विवाह करने जा रही है. यह बात मंत्री जी को पसंद नही है, इसलिए पंडित के माध्यम से मंत्री अपनी बेटी से हमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहते हैं. पांच लाख रूपए देखकर मनीष, प्रिया की हत्या करने का मन बना लेते हैं. और इन पांच लाख रूपयों से बैंक की ईएमआई चुका देते हैं. शाम को पृथ्वी बार में शराब की टेबल पर हिटमैन हिम्मत सिंह (सुशांत सिंह)से मनीष की मुलाकात होती है. हिम्मत सिंह उसे सलाह देता है कि जिसकी हत्या करनी हो, उसकी आंखों में मत देखना.

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उधर मधु भी अपने एक अन्य प्रेमी व हिटमैन संतोष (अमित सियाल) को मूर्ख बना रही है. वह संतोष से मिले पांच करोड़ रूपयों के संग राहुल के साथ विदेश भागने की तैयारी में है. प्रिया व उस्मान को पंडित ने मधु के बगल वाले मकान में ठहराया है. मगर मनीष गलती से मधु की हत्या कर पांच करोड़ रूपए लेकर अपने घर जाता है. इन रूपयों को देखकर ऋचा पांच करोड़ रूपए लेकर भाग जाती है. इधर हिम्मत सिंह को पता चलता है कि पंडित जी ने मनीष को उसका आदमी समझकर उसे पांच लाख रूपए दे दिए हैं. तो वह मनीष के घर पहुंच जाता है. अब मनीष व हिम्मत सिंह, ऋचा की तलाश में निकलते हैं.

उधर संतोष को पता चलता है कि किसी ने उसकी प्रेमिका मधु की हत्या कर उसके पांच करोड़ लेकर चला गया. वह अपने तरीके से जांच करता है, तो उसे राहुल पर शक होता है. अब हर कोई पांच करोड़ रूपए की तलाश में हैं. हिम्मत सिंह व संतोष दोनो पंडित के लिए काम करते हैं, पर अब एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं. पुलिस और पंडित जी प्रिया व उस्मान को खत्म करना चाहते हैं. अचानक मनीष व हिम्मत सिंह तय करते हैं कि प्रिया व उस्मान को जीवित रखना है. फिर कहानी कई मोड़ों से होकर गुजरती है.

लेखनः

लेखकद्वय अखिलेश जायसवाल और प्रतीक पयोधि समय समय पर धूर्त हास्य व आश्चर्य जनक मोड़ जरुर लेकर आते हैं. मगर कई घटनाक्रमों का दोहराव है. पीठ में छूरा घोपना, विश्वासघात,  हत्याएं वगैरह सब कुछ है. छठे एपीसोड में कथा थोड़ी गंभीर हो जाती है. पर क्लायमेक्स बहुत गड़बड़ है. परिणामतः वह ‘चूहे ’ व ‘बिल्ली’ के खेल में दर्शकों को उतना प्रभावित नही कर पाते, जितना कर सकते थे.

यॅूं तो लेखकों ने जीवन के कुट अनुभवों को ही कहानी का आधार बनाया है. इस वेब सीरीज में हत्याओं के पीछे मूल वजह लालच हैं. यह लालच भी कटु सत्य ही है. इसमें अपने सांसारिक जीवन से तंग हो चुके, कुछ अधिक हासिल करने की कोशिश कर रहे, कुछ अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए व कुछ सिर्फ अपने लालच के कारण इस झमेले में फंसे हैं. ‘‘लव जिहाद’’के एंगल को उठाने से बचा जा सकता था. पर इस पर कुछ ज्यादा ही जोर दिया गया है. एक जगह पंडित जी मुस्लिम युवक उस्मान पर बंदूक तानते हुए कहते हैं-‘‘हिंदू लड़की को प्यार करेगा. ’’

निर्देशनः

इस बार निर्देशक सचिन पाठक ने पहले कुछ चूक गए हैं. जिसके चलते  कई दृश्यों में दोहराव नजर आता है. इसे एडीटिंग टेबल पर कसे जाने की भी जरुरत थी.

यह प्यार के सपनों,  आकाक्षाओं,  जरुरतों, लालच, भूख,  विश्वास,  तकदीर, पाप व पुण्य पर व्यंगात्मक मुस्कान वाली फिल्म है. इसमें इस बात का सटीक चित्रण है कि समय समय पर एक इंसान की मानवता व नैतिकता किस तरह बदलती रहती है.

अभिनयः

सुशांत सिंह व अमित सियाल का अभिनय शानदार है. सुशांत सिंह को नजरअंदाज करना आसान नहीं है, वह मानवीय हिटमैन के रूप में शानदार हैं. संतोष के किरदार में अभिनेता अमित सियाल कम प्रतिभावान नही है. शायरियां सुनाते हुए जिस शंात मन के साथ वह हत्याएं करते हैं, उनकी इस अदा पर दर्शक फिदा हो जाता है. यह उनके अभिनय का कमाल है कि जब तक आवश्यक न हो, उनका भयानक रूप सामने नहीं आता है.

मोहम्मद जीशान अय्यूब एक अच्छे अभिनेता हैं, इसमें कोई दो राय नही है. वह अपने मनीष के किरदार के साथ पूर्ण न्याय करते हैं. जब मनीष के किरदार में मो. जीशान अयूब आंसू से भरे चेहरे के साथ अपने  दर्द को चूहे के संग साझा करते हैं, तो यह मोनोलॉग वाला दृश्य कमाल का है. यहां मो. जीशान अयूब का शानदार अभिनय सामने आता है. 2017 में फिल्म‘समीर’में वह नायक हीरो थे, उसके बाद अब उन्हे यह दूसरा मौका मिला है, जिसमें उन्होने साबित कर दिखाया कि वह एक बेहतरीन अभिनेता है.

पंडित जी के किरदार को जिस अंदाज में अभिनेता यशपाल शर्मा ने जीवंत किया है, वह कमाल का है. वैसे लेखक व निर्देशक ने उनके किरदार को ज्यादा विस्तार नहीं दिया है. पर उनके हिस्से कुछ अच्छे संवाद जरुर हैं.

पुलिस इंस्पेक्टर के किरदार में विक्रम कोचर कमजोर पड़ गए हैं. जबकि गोपाल दत्त हंसाने में कामयाब रहे हैं. भी प्रभावित करते हैं. पृथ्वी बार के वेटर शंकर के किरदार में दुर्गेश कुमार का अभिनय अच्छा ही है, वह जिस दृश्य में आते हैं, वह दृश्य अपने नाम कर ले जाते हैं.

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ऋचा के किरदार में प्रिया आनंद निराश करती हैं. कुछ दृश्यो में वह मासूम जरुर नजर आती हैं. उनके अंदर कलाकार के तौर पर आत्मविश्वास का घोर अभाव नजर आता है. उन्हे काफी कुछ सीखने व मेहनत करने की जरुरत है. इसके अलावा तेजस्वी सिंह, अंकुर पांडे, विनय वर्मा, वेदिका दत्त ने ठीक ठाक अभिनय किया है.

REVIEW: जानें कैसी है वेबसीरीज ‘मिर्जापुर सीजन 2’

 रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः एक्सेल मीडिया एंड एंटरटेनमेंट  और पुनीत कृष्णा

निर्देशकः गुरमीत सिंह और मिहिर देसाइ

कलाकारः पंकज त्रिपाठीअली फजलदिव्यांन्दुश्वेता त्रिपाठी शर्मारसिका दुगलहर्षिता शेखर गौड़.

अवधिःदस एपीसोड, लगभग नौ घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः अमैजान प्राइम

रितेश सि़वानी और फरहान अख्तर अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘एक्सेल मीडिया एंड इंटरटेनमंेट’के तहत सबसे ‘अमैजान प्राइम’के लिए जुलाई 2017 में वेब सीरीज ‘इनसाइड एज’का निर्माण किया, जिसे सफलता मिली. मगर ‘इनसाइड एज’का दूसरा सीजन दिसंबर 2019 में आया, जो दर्शकों को पसंद नही आया. क्योंकि इसमें बेवजह के किरदार जोड़कर कहानी को बेवजह अलग ढर्रे पर ले जाने का प्रयास किया गया था. यही गलती अब एक बार फिर दोहरायी गयी है. जी हॉ!उत्तर भारत के पूर्वांचल की पृष्ठभूमि  पर अपरध,  खून खराबा , गोलीबारी वाली वेब सीरीज ‘‘मिर्जापुर’’ का पहला सीजन नवंबर 2018 में आया, तो इसे अच्छी सफलता मिली. मगर  अब 23 अक्टूबर को ‘मिर्जापुर’का सीजन दो आया है, जो बुरी तरह से निराश करता है. मजेदार बात यह है कि ‘मिर्जापुर सीजन दो ’को लाने से पहले प्रचार किया गया था कि बहुत बड़ा हंगामा करने वाले हैं. मगर यह तो फुसफुसा पटाखा ही साबित ुहुआ. इस बार फिर वही गलती दोहराते हुए कहानी को मिर्जापुर के साथ साथ लखनउ, बलिया, सीवान, बिहार तक फैलाने के चक्कर में बंदूक, कट्टा आदि के साथ साथ अफीम की खेती व अफीम के व्यापार तक को कहानी का हिस्सा बनाया गया. इतना ही नहीं लखनउ में रॉबिन(  प्रियांशु पेन्युअली)और सीवान, बिहार में दद्दा त्यागी(लिलिपुट), उनकी पत्नी, साले और जुड़वा बेटों(विजय वर्मा )  को जोड़ा गया है. यह सभी किरदार मलमल में ताट का पैबंद नजर आते हैं. इनका कहानी में कोई योगदान नही है. यदि यह न हो तो भी कहानी पर असर नहीं पड़ना है. इसी तरह से कहानी में बेवजह शरद शुक्ला का किरदार जोड़ा गया है. इतना ही नही ‘मिर्जापुर’ पर कब्जे को लेकर जिस तरह का अंतर्विरोध और लड़ाई, शतरंजी चालें त्रिपाठी परिवार के अंदर चल रही हैं, उनमें से कुछ तो अविश्वसनीय लगती हैं.

वैसे यदि बतौर निर्माता रितेश सिद्धवानी और फरहान अख्तर पर नजर दौड़ाई जाए, तो यह असफल ही नजर आते हैं. इन्होने अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘एक्सेल इंटरटेनमेंट’के तहत 2001 से फिल्मों का निर्माण करते आ रहे है. लेकिन अब तक इन्होने असफल फिल्मों का ही निर्माण ज्यादा किया है. पहली फिल्म ‘दिल चाहता है’सिर्फ मुंबई में ही चली थी. इसके बाद ‘लक्ष्य’, ‘रॉक आॅन’, ‘कार्तिक कालिंग कार्तिक’,  ‘तलाश’,  ‘गोल्ड’, रॉक औन 2’, ‘फुकरे 2’, ‘बार बार दिल दे के देखो’, ‘दिल धड़कता है’ व ‘हनीमून ट्रेवल्स प्रा. लिमिटेड’जैसी असफल फिल्में बनायी है. मगर ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’,  ‘डॉन’, ‘डॉन 2’के बाद‘गली ब्वॉय’ जरुर सफल रही. इस तरह देखे तो इनकी पचहत्तर प्रतिशत फिल्में असफल रही है.

कहानीः

पहले एपीसोड की शुरूआत में दर्शकों को याद दिलाने के लिए सात मिनट के अंदर पहले सीजन की कहानी का सारांश बताया गया है. अपराध जगत के बादशाह अखंडानंद त्रिपाठी उर्फ कालीन भैया (त्रिपाठी)मिर्जापुर के लोगों के लिए नियमों को परिभाषित करते हुए कहते है-‘‘जो आया है, वह जाएगा भी, बस मर्जी होगी. . . गद्दी पर हम चाहें मुन्ना, नियम वही रहेंगें. ’’मगर कालीन भईया के बेटे मुन्ना त्रिपाठी(दिव्येंदु) इसमें और अधिक जोड़ते हुए कहते हैं-‘‘मिर्जापुर पर बैठने वाला कभी भी नियम बदल सकता है. ’’वास्तव में मुन्ना त्रिपाठी की नजरें मिर्जापुर की गद्दी पर है.

खैर, गुड्डू पंडित(अली फजल ) अपने भाई (विक्रांत मैसी) और उसकी पत्नी स्वीटी (श्रिया पिलगांवकर) की मौत का बदला लेने के लिए वापस आ गया है. शरीरिक रूप से अक्षम हो चुके गुड्डू अपनी बहन डिम्पी (हर्षिता गौर)को लखनउ के विश्वविद्यालय में पढ़ाई के लिए भेजकर खुद पुलिस इंस्पेक्टर गुप्ता की बेटी गजगामिनी उर्फ गोलू(श्वेता त्रिपाठी शर्मा)के साथ अफीम उत्पादक व हथियार विक्रेता लाला की कोठी में शरण लेकर अपने व्यवसाय को बढाने और त्रिपाठी परिवार का खात्मा कर ‘मिर्जापुर’की गद्दी हथियाने की जुगाड़ में लगता है. पहले सीजन में गोलू सभी तरह की हिंसा के खिलाफ थी, पर अब दूसरे सीजन में स्वीटी और बबलू की मौत का बदला लेने के लिए हथियार उठाकर गुड्डू की मदद करती है. दोनों का मकसद बदला लेने के अलावा मिर्जापुर पर भी शासन करने के लिए दृढ़ हैं. तो वहीं कालीन भैया के घर में उनकी अतुल्य कामुक पत्नी बीना त्रिपाठी (रसिका दुगल), अपने ससुर(कुलभूषण खरबंदा) के अलावा नौकर राजा के साथ यौन संबंध संबंध बनाकर दोनों को बहला- फुसलाकर उनके खेल को उकसाती है. अपनी चाल चलते हुए वह मां बन जाती है और अब वह मुन्ना की बजाय अपने बेटे को ‘मिर्जापुर’की गद्दी सौंपने के मुन्ना त्रिपाठी व कालीन भईया के सफाए के लिए गुड्डू के संग साजिश रचती रहती है.

गुड्डू और गोलू ने सीवान के दद्दा त्यागी के छोटे बेटे शत्रुघ्न के साथ अफीम का धंधा शुरू कर दिया है.

उधर कालीन भइया प्रदेश के मुख्यमंत्री सूर्यप्रताप(पारितोष सैंड) के संग हाथ मिलाकर राजनीति का हिस्सा बनते है. इसी के साथ मुख्यमंत्री की विधवा बेटी माधुरी यादव(ईशा तलवार)के संग अपने बेटे मुन्ना त्रिपाठी का विवाह करवा देते हैं. वह मंत्री बनने वाले हैं. मगर शपथ ग्रहण से पहले ही सूर्यप्रताप के भाई जे पी यादव(प्रमोद पाठक), शरद शुक्ला की मदद लेकर सुर्यप्रताप की हत्या करवाकर खुद ही मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं. मगर कालीन भईया व माधुरी मिलकर साजिश रचते हैं. परिणामतः जे पी यादव को पार्टी छोड़नी पड़ती है और माधुरी यादव त्रिपाठी मुख्यमंत्री बन जाती हैं.

इस बीच कई लोगों की हत्याएं होती रहती हैं. बीना खुद ही अपने ससुर की हत्या कर देती हैं और आरोप मकबूल पर लगता है. उधर गुड्डू व गोलू मिलकर मुन्ना त्रिपाठी की हत्या कर देते हैं. दोनो कालीन भईया को भी बुरी तरह से घायल कर देते हैं. मगर शरद शुक्ला घायल कालीन भईया को अपनी गाड़ी में उठाकर ले जाता है. अर्थात अब ‘मिर्जापुर सीजन तीन भी आ सकता है.

निर्देशनः

यह ‘‘मिर्जापुर सीजन दो’’ है, जिसके दस एपीसोड हैं. मगर चैथे एपीसोड के अंत में मिर्जापुर खत्म होकर राजनीति, राजनीति का अपराधीकरण, अफीम के व्यापार सहित कई दूसरे ट्रैक शुरू हो जाते हैं, जो कि कहानी को भटकाने के साथ ही पूरी सीरीज का सत्यानाश कर देते हैं. चैथे एपीसोड तक गंदी गंदी गालियां, गोलियों का चलना आदि ‘मिर्जापुर’ का अहसास कराते हैं, पर उसके बाद नही. चैथे एपीसोड के बाद मिर्जापुर के नाम पर राजनीति व अपराध का जिस तरहेका गंठजोड़ चित्रित किया गया है, वह पहले भी कई फिल्मों में आ चुका है. पॉंचवे एपीसोड के बाद हर एपीसोड का एक्शन बहुत कमजोर है. कई दृश्य तो एकदम फिल्मी हैं. बदला लेने की तीव्रता के साथ जिस तरह से औरतों के चरित्र गढ़े गए हैं, वह बहुत सही नही लगता. गोलू का किरदार काफी कमजोर है. गोलू न तो अपनी बहन तथा प्रेमी की हत्या के बदले की आग में जलती दिखती हैं, वह पूरे समय गुड्डू पंडित के आगे दबी-सहमी रहती हैं.  हाथों में गन से उनके व्यक्तित्व का वजन नहीं बढ़ता.  इस बार इस सीरीज में अपराध व सही का जो संतुलन होना चाहिए,  उसका घोर अभाव है. कुल मिलाकर थका देने वाली बदला गाथा है. दूसरे सीजन में पहले सीजन वाली पुरानी रफ्तार,  रोमांच और संवाद सब कुछ सिरे से गायब है.

परिवार की आंतरिक कलह और अंतद्र्वंद को भी सही ढंग से उकेरा नहीं गया. इतना ही नही इसका क्लायमेक्स तो फिल्म‘‘बाहुबली 2’’के क्लायमेक्स की नकल हैं.

अभिनयः

कालीन भईया के किरदार में पंकज त्रिपाठी ने एक बार फिर से उत्कृष्ट अभिनय किया है. अली फजल  खुद को दोहराते हुए नजर आते हैं. दिव्येंदु शर्मा को बहुत अच्छा मौका मिला था, मगर उसका सही ढंग से उपयोग कर वह अपनी प्रतिभा को उजागर करने में सफल नही रहे.  दिब्येंदु भट्टाचार्य,  अंजुम शर्मा,  राजेश तैलंग और अनुभवी कुलभूषण खरबंदा ने अच्छा काम किया है. प्रियांशु पेन्युअली निराश करते हैं. विजय वर्मा और लिलिपुट जरुर अपने अभिनय से आश्चर्यचकित करते हैं. रसिका दुगल शीबा चड्ढा,  हर्षिता गौड़ और श्वेता त्रिपाठी शर्मा ने ठीक ठाक काम किया है. मगर श्वेता त्रिपाठी शर्मा को एक्शन दृश्यों में मेहनत करने की जरुरत थी. एक्शन दृश्यों में वह सबसे बड़ी कमजोर कड़ी हैं.  माधुरी यादव के किरदार में ईशा तलवार अपनी छाप व अभिनय प्रतिभा का असर छोड़ जाती हैं.

परीक्षा: प्रकाश झा की बेहतरीन मकसद वाली फिल्म

निर्माता: प्रकाश झा प्रोडक्शन

लेखक व निर्देशक: प्रकाश झा

कलाकार: आदिल हुसैन, प्रियंका बोस, शुभम झा, संजय सुरी, सीमा सिंह व अन्य.

ओटीटी प्लेटफॉर्म: जी 5

अवधि: एक घंटा 42 मिनट

रेटिंग: साढ़े तीन स्टार

इस फिल्म में प्रकाश झा ने शिक्षा पद्धति पर कुठाराघात करने और  प्रतिदिन महंगी होती शिक्षा के साथ-साथ समाज के तथाकथित समाज सुधारकों पर भी कटाक्ष किया है.

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कहानी:

सत्य घटनाक्रम पर आधारित यह कहानी बिहार के एक रिक्शा चालक बच्चू पासवान (आदिल हुसैन) की है, जो कि रांची की अंबेडकर नगर बस्ती में रहता है. और रांची के अंग्रेजी भाषा स्कूल “सफायर इंटरनेशनल” के बच्चों को अपने रिक्शे में बैठाकर स्कूल छोड़ने  और शाम को उनके घर पहुंचाने का काम करता है. उसका अपना बेटा बुलबुल( शुभम झा )सरकारी स्कूल में हिंदी माध्यम में पड़ता है. जबकि उसकी पत्नी राधिका( प्रियंका बोस) एक स्टील बरतन की फैक्ट्री में बफिंग का काम करती है .सरकारी स्कूल में पढ़ाई नहीं होती. अक्सर शिक्षक गायब रहते हैं .अपने बेटे बुलबुल को एक अच्छा इंसान बनाने के लिए बच्चू पासवान “सफायर इंटरनेशनल स्कूल” की प्रिंसिपल( सीमा सिंह) से बात करके प्रवेश दिलाता है .बुलबुल की प्रवेश परीक्षा में बुलबुल की मेधावी प्रतिभा से स्कूल के शिक्षक प्रभावित होते हैं. स्कूल की लंबी चौड़ी फीस, ट्यूशन फीस और स्कूल की पोशाक आदि के खर्च को महज रिक्शा चलाकर पूरा करना बच्चू के लिए मुश्किल हो जाता है . इसलिए वह छोटी-मोटी चोरियां करने लगता है.

एक दिन चोरी करते हुए बच्चू पासवान पकड़ा जाता है. पर वह अपने बेटे बुलबुल की जिंदगी को संवारने के लिए पुलिस के सामने जुबान नहीं खोलता है. अपना नाम तक नहीं बताता है .मामला रांची के एसएसपी कैलाश आनंद (संजय सुरी) तक पहुंचता है. एसएसपी को बच्चू की जेब से बुलबुल के बारे में पता चलता है. वह बुलबुल के स्कूल में जाकर बुलबुल के बारे में जानकारी लेकर  परेशान हो जाते हैं. क्योंकि स्कूल की प्रिंसिपल बताती हैं कि बुलबुल स्कूल का मेधावी छात्र है और उसके पिता बच्चू एक रिक्शा चालक हैं. अब एसएसपी, बुलबुल की मदद करने का सोचते हैं .वह अंबेडकर नगर बस्ती में जाकर बुलबुल व उसके साथियों को पढ़ाना शुरू करते हैं. यह बात स्थानीय विधायक को पसंद नहीं आती है. इस बीच बुलबुल के पिता बच्चू को 3 साल की सजा हो जाती है. 10वीं की बोर्ड परीक्षा से पहले प्रीलियम में बुलबुल टाप करता है. एक चोर का बेटा पढ़ने में इतना तेज हो यह बात स्कूल के दूसरे बच्चों के माता-पिता को पसंद नहीं आता है. यह प्रभावशाली लोग मंत्री जी से बात कर  एसएसपी का तबादला करवा देते हैं. उसके बाद सभी माता-पिता स्कूल के मैनेजमेंट पर दबाव बनाते हैं कि वह बुलबुल को बोर्ड की परीक्षा न देने दे . पर बुलबुल ब परीक्षा देता है और स्कूल का नाम रोशन करता है.

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लेखन व निर्देशन:

फिल्म में एक संवाद है-” औकात से ज्यादा सपने दिखा दिया..”यह संवाद बहुत कुछ कह जाता है.जी हां! हिंदी भाषी सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा जब नौवी कक्षा में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पहुंचता है ,तो उसे अपने सह पाठियो के व्यवहार के अलावा क्या-क्या झेलना पड़ता है, इसका इस फिल्म में  फिल्मकार ने एकदम सटीक चित्रण किया है.

इस फिल्म में फिल्मकार ने देश के एक विशाल तबके को अपनी क्षमता का एहसास करने से रोकने के लिए समाज के प्रभावशाली तबके द्वारा  तमाम तरह के सामाजिक व्यवस्था आर्थिक अड़चन पैदा करता है, इसका एक यथार्थ चित्रण किया है.तेज गति से भागती हुई साधारण कहानी ना सिर्फ दर्शकों को बांध कर रखती हैं, बल्कि निर्देशक जिस बात को कहना चाहते हैं, वह बात लोगों के दिलों तक पहुंच जाती है .समाज में अमीर व गरीब के बीच की खाई का असर किस तरह से लोगों के जीवन, स्वास्थ्य व शिक्षा पर पड़ता है ,इस पर भी कुठाराघात किया गया है.समान शिक्षा का सपना किस तरह टूट रहा है, इस पर कटाक्ष करती है. यह फिल्म इस पर भी बात करती है कि आर्थिक व सामाजिक अड़चनों के चलते किस तरह निकले तबके के गरीब बच्चे प्रतिभाशाली होने के बावजूद सही शिक्षा पाने से वंचित रह जाते हैं.

फिल्म के निर्देशक प्रकाश झा बिहार से भली भांति परिचित हैं. इसी वजह से उन्होंने रांची शहर और अंबेडकर नगर  बस्ती की बारीकियों और वहां की वेशभूषा व भाषा का भी इस फिल्म में सफल चित्रण किया है.

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अभिनय:

आदिल हुसैन की अभिनय क्षमता पर कभी कोई शक नहीं किया जा सकता. उन्होंने एक दलित रिक्शा चालक बच्चू पासवान के किरदार को न सिर्फ अपने अभिनय से संवारा ,बल्कि उन्होंने इस किरदार को पूरी संजीदगी के साथ जिया है. एक पिता किस तरह अपने बेटे को बेहतर इंसान बनाने के लिए संघर्ष करता है, उस संघर्ष को आदिल हुसैन ने अपने अभिनय से जीवंतता  प्रदान की है .आदिल हुसैन का पूरा साथ दिया है उनकी पत्नी के किरदार में प्रियंका बोस ने. प्रियंका ने भी  शानदार अभिनय किया है. जबकि बाल कलाकार शुभम झा ने  कमाल का अभिनय किया है. यह उसकी पहली फिल्म है, पर वह एक मझा हुआ कलाकार के रूप में उभरता है. संजय सूरी, सीमा सिंह व अन्य कलाकारों ने भी ठीक-ठाक अभिनय किया है.

Mafia Web Series Review: अपराध कथा में ड्रग्स, शराब और सेक्स का तड़का

रेटिंग: ढाई स्टार 

निर्माताः इस्काइ मूवीज
सृजनकर्ताः रोहण घोष और अरित्र सेन
निर्देशक: बिरसा दास गुप्ता
कलाकारः नमित दास, तन्मय धनानिया, ईशा एम साहा, आनंदिता बोस, मधुरिमा रॉय व अन्य
अवधि: 8 एपिसोड 4 घंटे 13 मिनट
ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5मोबाइल गेम खेलने वालों की कमजोर नस को पकड़कर फिल्मकार ने ‘‘माफिया’’नामक एक गेम के माध्यम से इस बात पर रोशनी डालने का प्रयास किया है कि चेहरे से भोला भाला दिखने वाला  इंसान कितना बेरहम हो होता है. रहस्य,अपराध व रोमांच प्रधान कहानी में दोस्ती,प्यार, सेक्स, हिंसा, ड्रग्स ,शराब,नीची जाति,ऊंची जाति, आदिवासी सहित हर मसाला चरम पर परोसा गया है.इसे हिंदी के अलावा बांग्ला तमिल और तेलुगू भाषाओं में भी रिलीज किया गया है.हत्या,डर ,नफरत,लालच,विश्वासघात की भावनाओं के साथ खुद को बचाने की जद्दोजेहद भी कहानी का हिस्सा है.

कहानीः

यूं तो उपरी सतह पर कहानी में नयापन नही है,मगर घटनाकम्र नए जरुर हैं. इसके अलावा यह किसी गैंगस्टर की नहीं,बल्कि यह कहानी है कॉलेज के छह दोस्तों ( 3 लड़के व तीन लड़कियों) की.यह छह  दोस्त हैं- नेहा ( आनंदिता बोस),  अनन्या ( इशा एम साहा ) , तान्या (मधुरिमा राय), रिषी ( तन्मय धनानिया ) रितिक और सैम,जो कि कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने पर अपने-अपने घर जाने की बजाय झारखंड में मधुपुर थाना के अंतर्गत मधुवन के जंगल के बीच बने एक बंगले पर पहुंचते हैं.यह रिषि के पिता रौय का बंगला है और मंगल केअरटेकर है.बंगले पर पहुंचने से पहले सड़क पर इनकी मुलाकात एक विधवा आदिवासी औरत बिधुआ से होती है. रिषी उसे बंगले पर काम करने के लिए बुला लाता है. विधुआ अपनी छोटी बेटी कुमली के साथ बंगले पर आ जाती है. रिषी, मंगल को एक सप्ताह की छुट्टी पर उनके गांव भेज देता है. एक सप्ताह के अंदर बंगले के अंदर बहुत कुछ घटित होता है,जिसका असर इन सभी छह लोगों पर पड़ता है.

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छह वर्ष का समय गुजरने के साथ ही इन छह दोस्तो के बीच के रिष्ते बदल चुके हैं,पहले जो प्रेमी व प्रेमिका थे,वह अब किसी अन्य के प्रेमी व प्रेमिका बन चुके हैं.रितिक ने प्रियंका से शादी कर ली है.अब छह वर्ष बाद कभी रितिक की प्रेमिका रही तान्या अमरीका से मास्टर की पढ़ाई करके वापस लौटने के बाद कुणाल से सगाई करने जा रही है. इसीलिए पत्रकार बन चुकी नेहा ने इस अवसर पर सभी छह दोस्तों का पुनः रीयूनियन करने का फैसला कर सभी को इकट्ठा कर उसी मधुवन में रौय के बंगले पर सभी पहुंचते हैं. रितिक की पत्नी प्रियंका भी साथ मे आयी है.अनन्या अब सैम को चाहने लगी है.सैम अब फोटोग्राफर बन चुका है.यह सभी छह दोस्त शराब,ड्रग्स व सेक्स में ही डूबे रहना पसंद करते हैं.अमीर बाप का बेटा रिषी अभी भी बददिमाग और एरोगेंट है.अनन्या का इलाज साइकैट्रिक से चल रहा है. रिशि व रितिक बचपन के दोस्त हैं, मगर अब रिषि के पैसों पर पलने वाला सैम ही रिषि का करीबी दोस्त है.बंगले पर इन सभी के पहुंचते ही ड्रग्स और शराब की बोटलें खुल जाती हैं.सेक्स का नंगा खेल शुरू हो जाता है. रिषि,मंगल काका से विधुआ के बारे में पूछता है. मंगल काका कह देते हैं कि अब छह साल से वह नहीं आयी. छह साल पहले की ही तरह इस बार भी इन दोस्तों के बीच ‘माफिया‘ गेम खेला जाता है. माफिया गेम के चलते अतीत के कई राज धीरे-धीरे सामने आते जाते हैं.

तीसरे एपीसोड में नीची जाति के मगर इमानदार मधुपुर थाना के पुलिस सब इंस्पेक्टर नितिन कुमार (नमित दास)व्यापारी बनकर रात में इस बंगले पर पहुंचते हैं.वह छह साल पहले हुई एक आदिवासी औरत की हत्या की जांच कर रहे हैं,बाद में पता चलता है कि वह औरत विधुआ थी.चैथे एपीसोड में तान्या के प्रेमी कुणाल भी आ जाते हैं. कहानी ज्यों-ज्यों आगे बढ़ती जाती है,त्यों त्यों तान्या सहित सभी छह लोगों का सेक्स व ड्ग्स से रंगा हुआ  अतीत  कुणाल,प्रियंका व पुलिस सब इंस्पेक्टर नितिन कुमार के सामने आता जाता है.कहानी बार-बार वर्तमान से अतीत में जाती रहती है. जिससे यह सभी एक दूसरे के प्रति नफरत ,डर ,विश्वासघात की भावनाओं से ओतप्रोत होते रहते हैं.पांचवे एपीसोड में रिषि गायब हो जाता है.नितिन कुमार पर लगता है.नितिन अलग-अलग हालात में एक-एक को अपनी असली पहचान बताते रहते हैं.तमाम रोमांचक घटनाक्रमों के बाद जो कुछ सामने आता है,वह कम चैकाने वाला नहीं है.
लेखनः

युवा पीढ़ी को ध्यान में रखकर लिखी गयी पटकथा में नयापन कुछ नही है.इसके चार लेखक हैं औश्र सभी लेखको का पूरा दिमाग इर्सिफ इस बार पर रहा कि किस तरह कितना सेक्स,ड्ग्स,हिंसा व षराब को भर दिया जाए.इसके लिए लेखकों ने गाॅंव वाले,पुलिस और माफिया के बीच के इस ‘माफिया’गेम के साथ रहस्य व रोमांच की परतें बुनी हैं, मगर दर्शक की नजरो के सामने सिर्फ सेक्स व ड्ग्स ही रह जता है.वैसे लेखक ने बहुत ही सतही स्तर पर कुछ सामाजिक व राष्ट्रीय मुद्दे भी उठाए हैं. मसलन आदिवासी व नीची जाति की लड़कियों के साथ ऊंची जाति के लोगों का व्यवहार? आदिवासी लड़कियों के गायब होने या उनकी हत्या के मामले को दबाने में पुलिस विभाग व सरकार का रवैया. छोटे व बड़े शहर के लोगों की सोच वह दोस्ती के मायने के अंतर पर भी बात की गयी है.पर यह सब बहुत ही सतही और उथला उथला है. यदि पटकथा लिखते समय इन पर और हर इसके लेखकों की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि कहानी व किरदारों के चरित्र चित्रण पर काम करने की बजाय सारा ध्यान शराब, ड्ग्स व सेक्स को हर दृष्य मंे कैसे रखा जाए,इसी पर लगाया.इसके सभी किरदार उच्च शिक्षित और परिपक्व हैं.मगर लेखक ने जिस तरह से इन चरित्रों को गढ़ा है,उससे इनके अंदर परिपक्वता नजर नहीं आती.आज की युवा पीढ़ी इस वेब सीरीज के किरदारों जैसी अपरिपक्व, ड्रग्स शराब व सेक्स में डूबा हुई युवा पीढ़ी नहीं है, इसलिए वह इससे रिलेट नही कर पाएगी.
एक बेहतरीन कथा में ड्रग्स शराब और सेक्स को इतना भर दिया गया है,जिसमें 14 से 18 साल की बीच की उम्र के बच्चे भले खो जाएं,मगर इस वेब सीरीज को 18 व र्ष से कम उम्र के बच्चों के द्वारा देखा ही नहीं जाना चाहिए.लेखक व निर्देशक ने अश्लीलता की सारी हदें पार कर दी हैं.इसमें अप्राकृतिक मैथुन व संभोग दृश्यों को परोसते हुए कामसूत्र के कई आसन खुलेआम परोसने में झिझक नहीं दिखाई है.गंदी गालियों का भी अंबार है.अच्छा है कि यह वेब सीरीज है,अन्यथा यह सिनेमाघरों में रिलीज ना हो पाती.किरदार के चरित्र चित्रण पर मेहनत की गयी होती,तथा सेक्स व ड्ग्स की भरमार कम की गयी  होती,तो षायद यह एक बेहतरीन क्लासिकक वेब सीरीज बन सकती थी.
इसमें कुछ संवाद बेहतर बन पड़े हैं.मसलन-‘इंसान कभी नहीं बदलते..’ दूसरा ‘पूरा सिस्टम ऊंची जाति के लंगोट में कैद है.’यह संवाद अपने आप में देश की सामाजिक व्यवस्था के साथ कानून व्यवस्था पर कुठाराघात करते हैं.
 छह वर्ष बीत जाने के बावजूद किसी भी किरदार की शारीरिक बनावट या लुक में कोई फर्क नजर नहीं आता,यह लेखक व निर्देशक दोनों की कमजोरी को इंगित करता है.
निर्देशनः
बतौर निर्देशक बिरसा दास गुप्ता पहली बार निर्देशन के क्षेत्र में उतरे हैं.उन्हे अपने निर्देशकीय कौशल को उभारने के लिए काफी कुछ सीखने व मेहनत करने की जरुरत है. इसके कई दृश्य आधे अधूरे हैं.कई जगह दो दृश्यों के बीच कोई तालमेल नजर नही आता.यह एडीटिंग की भी कमी है. वर्तमान कहानी के बीच बार बार अतीत को इस तरह जोड़ा गया है कि दर्शक कन्फ्यूज्ड होता रहता है.इसका क्लायमेक्स भी आकर्षित ही करता. एडीटर के साथ साथ कैमरामैने की भी गलतियां है.कई जगह कैमरा एंगल गलत नजर आता है.
अभिनयः
इसमें नमित दास को छोड़कर सभी नवोदित कलाकार हैं. सभी ने बेहतरीन अभिनय का परिचय दिया है.पुलिस सब इंस्पेक्टर नितिन कुमार के किरदार को निभाते हुए अभिनेता नमित दास के पास खेलने और अपनी अभिनय प्रतिभा को दिखाने के काफी अवसर थे,मगर वह कुछ दृश्यों में मात खा गए.जबकि कुछ दृश्यों में कमाल का अभिनय भी किया है.अमीर व एरोगेंट रिषि के किरदार में तन्मय धनानिया लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचते हैं. डिप्रेशन का शिकार भोली भाली अनन्या के किरदार में ईशा एम साहा  ने भी अच्छा अभिनय किया है.बाकी कलाकार ठीक ठाक ही रहे.

 

Bulbbul Twitter Review: जानें कैसी है अनुष्का शर्मा की नई Netflix रिलीज

लॉकडाउन के कारण इन दिनों बौलीवुड की ज्यादातर फिल्मों को ओटीटी प्लैटफार्म पर रिलीज किया जा रहा है. वहीं एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा (Anushka Sharma) की फिल्म बुलबुल को भी नेटफ्लिक्स पर रिलीज किया गया है. हौरर फिल्म ‘बुलबुल’ (Bulbul) को भले ही क्रिटिक्स ने खास अच्छा रिस्पॉन्स नहीं दिया है. लेकिन दर्शकों को अनुष्का की ये हौरर फिल्म बेहद पसंद आ रही है. अनुष्का शर्मा (Anushka Sharma) के प्रोडक्शन में बनी फिल्म बुलबुल को ट्विटर फैंस का बेताहाशा प्यार देखने को मिल रहा है. आइए आपको बताते हैं क्या कहते फिल्म की तारीफ में फैंस…

बंगाली परिवार की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म

हॉरर जौनर पर बनी फिल्म बुलबुल(Bulbul), एक चुड़ैल की कहानी है और एक कपल की जिंदगी के ईर्द-गिर्द बनी हुई है. इस फिल्म को अन्विता दत्त ने डायरेक्ट किया है. अन्विता दत्त के निर्देशन में बनी ये कहानी बंगाली परिवार की पृष्ठभूमि और बाल विवाह के कॉन्सेप्ट पर केंद्रित है जिसमें अहम भूमिका निभाती है पास के जंगल में रहने वाली चुड़ैल.

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औडियंस ने बताया शानदार

जहां एक तरफ क्रिटिक्स ने फिल्म को बेकार बताया है तो वहीं फिल्म के बारे में लिखते हुए दर्शकों ने इसे शानदार होने की बात कही है.  कुछ दर्शक तो फिल्म की एक्ट्रेस तृप्ति डिमरी की जमकर तारीफ कर रहे हैं. जबकि कुछ दर्शकों ने इसे नेटफ्लिक्स की अब तक की बेस्ट प्रोडक्शन फिल्म तक बता दिया है.

बता दें कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अनुष्का शर्मा (Anushka Sharma)की ये दूसरी फिल्म है. इससे पहले अनुष्का शर्मा (Anushka Sharma) की अमेजॉन प्राइम वीडियो पर वेब सीरीज पाताल लोक रिलीज हुई थी, जिसे भी फैंस का शानदार रिस्पॉन्स मिला था. वहीं अनुष्का शर्मा (Anushka Sharma) साल 2018 में अपने प्रोडक्शन क्लीन स्लेट फिल्मस के तहत हौरर फिल्म ‘परी’ लेकर आई आई थीं.

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