मेरी आवाज ही पहचान है.....ये आवाज आज हर हिन्दुस्तानी के दिल में हमेशा मौजूद रहेगी. सुरीली और सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर आज हमारे बीच नहीं रहीं, उन्होंने अपनी आखिरी सांस 92 वर्ष की उम्र में ली. बीते कई दिनों से वह बीमार चल रही थी और उनका इलाज अस्पताल में जारी था. उनके सुरों की गूंज सदियों तक धरा पर गुंजायमान रहेगी. स्वर कोकिला की जीवन यात्रा के बारें में लिख पाना शायद किसी के लिए संभव नहीं, क्योंकि उन्होंने संगीत जगत में एक अविस्मरणीय योगदान दिया है.

लता मंगेशकर ने अपनी मीठी आवाज से कई दशकों तक ना सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व को अपना दीवाना बनाया. उन्होंने न जाने कितने कलाकारों को संगीत की दुनिया में आगे बढ़ने के की प्रेरित किया. उन्हें भारत में स्वर कोकिला के नाम से भी जाना जाता है, उनको लोग प्यार से लता दीदी भी कहते थे.

उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से  लेकर फ़िल्म फेयर, पद्म भूषण, पद्म विभूषण समेत कई बड़े अवार्ड मिल चुके है. साल 2001 में लाता मंगेशकर को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से भी सम्मानित किया गया.92 साल की लता जी ने 36 भाषाओं में 50 हजार गाने गाए, जो किसी के लिए एक रिकॉर्ड है. करीब 1000 से ज्यादा फिल्मों में उन्होंने अपनी आवाज दी. 1960 से 2000 तक दौर था, जब लता की आवाज के बिना फिल्में अधूरी मानी जाती थीं. 2000 के बाद से उन्होंने फिल्मों में गाना कम कर दिया था.

लता जी जितनी विनम्र और सुरीली थी, उतनी ही स्वाभिमानी भी थी. किसी भी गलत बात को वह सहती नहीं थी. उन्होंने उसके विरुद्ध हमेशा अपनी आवाज उठाई, जिसमें संगीत के क्षेत्र में रोयल्टी की बात हो या संगीतकारों का सम्मान, उन्होंने मजबूती से अपनी बात रखी, जिसके परिणामस्वरूप उनकी बात फिल्म इंडस्ट्री ने मानी, उनके इस विद्रोह का ही नतीजा है कि आज गायकों को भी सम्मान मिल रहा है. 6 दशक पहले किए गए इस कार्य के लिए देश के सभी Playback Singers उनके आभारी है. ये सच है कि अगर उन्होंने आवाज ना उठाई होती, तो शायद किसी और ने इस पर ध्यान भी नहीं दिया होता.

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