‘‘विक्की डोनर’’, ‘‘दम लगा के हाईसा’’, ‘‘बरेली की बर्फी’’ और ‘‘शुभ मंगल सावधान’’ जैसी लीक से हटकर फिल्मों में अभिनय कर आयुष्मान खुराना ने स्वयं के लिए बौलीवुड में एक अलग जगह बना ली है. जब किसी क्विर्की व टैबू वाले विषय पर किसी फिल्म का जिक्र होता है, तुरंत आयुष्मान खुराना की याद आ जाती है. इसी तरह की एक और फिल्म ‘‘बधाई हो’’ में भी आयुष्मान खुराना नजर आने वाले हैं. मगर इसी बीच पहली बार उन्होने अपनी अब तक की ईमेज से परे जाकर श्रीराम राघवन की रोमांचक फिल्म ‘‘अंधाधुन’’ में अभिनय कर हर किसी को चौंका दिया. इस सफलतम फिल्म में उनके अभिनय को काफी सराहा गया.

अब आपका करियर किस दिशा में जा रहा है?

मेरा करियर एक सही दिशा में जा रहा है. लोग मुझे स्वीकार कर रहे हैं, पसंद कर रहे हैं. मेरे अंदर आत्म विश्वास आ गया है कि यदि फिल्म का कंटेंट अलग हो, कहानी अलग हो, तो दर्शक उसे स्वीकार करने को तैयार हैं. कुल मिलाकर मेरे हिसाब से मेरा करियर अच्छी दिशा में जा रहा है. मैं पहली फिल्म से ही अलग तरह की टैबू पर आधारित फिल्म कर रहा हूं. मेरे पास ऐसी पटकथाएं आती हैं, जो कि समाज के टैबू को तोड़ने वाली होती हैं. पर टैबू पर आधारित अलग तरह की फिल्मों के बीच कभी कभी ‘‘अंधाधुन’’ जैसी फिल्म भी हो जाती. तो जिस तरह की फिल्मों को लेकर मेरी इमेज बनी है, उससे हटकर भी मैं कुछ करने की कोशिश कर रहा हूं.

‘‘अंधाधुन’’ जैसी फिल्म कैसे हो जाती हैं?

देखिए, इस तरह की फिल्में करनी पड़ेंगी. ऐसा  नहीं है कि हम इनसे बच जाएं. यह फिल्म 5 अक्टूबर को आ चुकी है, जो कि एक रोमांचक फिल्म है. फिर 19 अक्टूबर को ‘बधाई हो’ आएगी, आपको याद होगा कि पिछले वर्ष भी इसी तरह एक साथ मेरी दो फिल्में आयी थी. पर ‘अंधाधुन’ में रहस्य भी हैं और काफी कमर्शियल फिल्म है. तो वहीं ‘बधाई हो’ ऐसी फिल्म है, जिस तरह की फिल्मों का मैं मास्टर बन चुका हूं.

‘‘अंधाधुन’’ जैसी फिल्में करने के पीछे मूल वजह खुद को व्यावसायिक /कमर्शियल फिल्मों की तरफ मोड़ना तो नहीं है?

मैं कमर्शियल सिनेमा का बहुत बड़ा फैन हूं. मैं नाच गाने वाला सिनेमा देखते हुए बड़ा हुआ हूं. ‘विक्की डोनर’ से मेंरे करियर की एक दिशा तय हो गयी थी. पर मैं भी अपनी राह को बदलना चाहता हूं. कमर्शियल फिल्में करना चाहता हूं.

‘‘बधाई हो’’ और ‘‘अंधाधुन’’ इन दो तरह की फिल्मों को करते समय एक कलाकार के तौर पर आपकी अनुभूती क्या होती है?

मुझे दोनों तरह की फिल्मों में काम करके सीखने को बहुत कुछ मिलता है. ‘अंधाधुंध’ में हम कुछ नया कर रहे हैं, जो कि चुनौतीपूर्ण है. मैं इस फिल्म में अंधा बना हूं, जो कि पियानो बजाता है. पर इस अंधे ने एक हत्या होते देखा है. अब वह उस हत्या का गवाह है. यह अपने आप में एक अनूठी बात हो जाती है. कहानी के इस प्वाइंट से काफी रोचकता आ जाती है. फिल्म में हर पांच मिनट बाद कहीं न कहीं कुछ रहस्य नजर आ जाता है. तो वहीं ‘‘बधाई हो’’ जैसी फिल्म करते समय हमारे सामने चुनौती होती है कि हम नया क्या करें. मजेदार बात यह है कि मेरे करियर की यह तीसरी फिल्म है, जिसमें मैं दिल्ली के युवक के किरदार को निभा रहा हूं. अब इसमें नयापन लाने के लिए हमें संवाद अदायगी में कुछ फर्क लाना पड़ा. कहानी कुछ अलग है. परिवार मेरठ का है, जो कि दिल्ली आकर बसा है, तो हमने संवाद अदायगी में मेरठ की भाषा का पुट देने का प्रयास किया. पर जब दोस्तो से बात करता हूं तो हरियाणवी लहजे में बात करता हूं. पर जब कारपोरेट वर्ल्ड में बात करता हूं तो अंग्रेजी में बात करता हूं. इससे किरदार को एक नया ग्राफ मिल जाता है, तो जब एक ही तरह की फिल्में करता हूं, तो वहां पर कहानी अलग होने के बावजूद चुनौती होती है कि किरदार को एकदम भिन्न कैसे बनाया जाए. मुझे इस तरह की चुनौती स्वीकार करने में आनंद मिलता है.

जब दो हफ्ते के अंदर किसी कलाकार की दो फिल्में रिलीज होती हैं. तो क्या असर होता है?

मेरी राय में दो फिल्म के बीच में कम से कम एक माह का अंतराल होना ही चाहिए. पर फिल्म की रिलीज के लिए निर्माता यह सोचता है कि टाइमिंग सही हो. अब 5 अक्टूबर के बाद 19 अक्टूबर को नवरात्री के बाद दशहरा की छुट्टियां होगी. यही सोचकर 5 अक्टूबर को ‘अंधाधुन’ प्रदर्शित हुई और अब 19 अक्टूबर को ‘बधाई हो’ आएगी.

फिल्म ’‘बधाई हो’’ को लेकर क्या कहेंगे?

यह मेरे करियर की सर्वाधिक साफ सुथरी फिल्म है, जिसे पूरा परिवार एक साथ बैठकर देख सकता है. फिल्म की कहानी एक ऐसे अधेड़ उम्र के दंपति के इर्द गिर्द घूमती है, जो उस वक्त तीसरी बार माता पिता बनने जा रहे हैं, जबकि उनका एक युवा बेटा षादी करने योग्य है और दूसरा बारहवी कक्षा का विद्यार्थी है. मैने इसमें ऐसे माता पिता के बड़े व 25 साल के बेटे नकुल कौशिक का किरदार निभाया है. यह फिल्म लोगों की ऑंखें खोलने वाली है.

अपने नकुल कौशिक के किरदार को कैसे परिभाषित करेंगे?

नकुल दिल्ली की रेलवे कालोनी में अपने माता पिता व दादी के साथ रहने वाला 25 वर्षीय युवक है. वह एक कारपोरेट कंपनी में नौकरी करता है. उसे अपनी सहकर्मी स्वीटी शर्मा से प्यार है. दोनो जल्द षादी करना चाहते हैं. मगर अचानक उसे पता चलता है कि उसकी मां तीसरी बार मां बनने जा रही हैं. इससे उसके आस पास का माहौल बदल जाता है. आफिस और पड़ोसियों से उसे कई तरह के ताने सुनने को मिलते हैं. यह घर में पूरी तरह से देशी किरदार है, मगर घर से बाहर निकलते ही वह अंग्रेजी दा हो जाता है. आफिस में वह सिर्फ अंग्रेजी में बात करता है.

आपको नहीं लगता कि आज बदले हुए दौर में दर्शक कंटेंट को प्रधानता देता है ना कि कलाकार को?

जब तक कलाकार सुपर स्टार नहीं बन जाएगा, तब तक ऐसा ही होगा. कलाकार को सबसे पहले कंटेंट पर आधारित कहानी उठानी पड़ेगी. जब कंटेंट पर आधारित फिल्म ब्लाकबस्टर होंगी, तो कलाकार खुद ब खुद स्टार बन जाएगा. पर कंटेंट प्रधान फिल्म में चेहरा भी ऐसा होना चाहिए, जो कि उस कंटेंट को संभाल सके.

कोई ऐसा सपना जो पूरा ना हुआ हो?

ख्वाब तो बढ़ते रहते हैं. एक पूरा होने से पहले ही दूसरा जन्म ले लेता है. यदि इंसान सपने देखना छोड़ देगा, तो आगे कैसे बढ़ेगा. फिलहाल तो सपना यह है कि बहुत अच्छा काम करता रहूं.

सोशल मीडिया कितना फायदेमंद है?

यह तो हर इंसान पर निर्भर करता है कि सोशल मीडिया उसके लिए फायदे मंद होगा या नुकसान दायक होगा. आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं, खुद को प्रमोट करने के लिए, तो कभी आप अपना चरित्र दिखाने लिए. पर अहम सवाल यह है कि आप सोशल मीडिया को अपना जो चरित्र दिखाते है, वह कितना वास्तविक है. मेरी राय में आप जितना स्तविक रहेंगें, सोशल मीडिया उतना आपको महत्व देगा. आप सेल्फिश हो जाएंगे, तो लोग आपको नुकसान पहुंचाएंगे.

सोशल मीडिया पर क्या पोस्ट करना पसंद करते हैं?

कुछ भी. आज रिकौर्डिंग स्टूडियो से बाहर निकला, तो एक बिल्ली की अच्छी तस्वीर खींची, उसे पोस्ट कर दिया. दोस्तों के साथ गिटार बजाता हूं, तो उसको डाल देता हूं. कभी गाना गाते हुए फोटो डाल देता हूं.

सोशल मीडिया पर फिल्म का प्रमोशन करने से बाक्स औफिस पर फायदा मिलता है?

मेरी राय में होता है, बषर्ते फिल्म का कंटेंट भी अच्छा हो. सोशल मीडिया से अवेयरनेस फैलती है. पर कंटेंट अच्छा नहीं होगा, तो फिल्म नहीं चलेगी.

आपको नहीं लगता कि सोशल मीडिया स्टार के स्टारडम को नुकसान पहुंचा रहा है?

वक्त की बात है. आज का स्टार सहजता के साथ उपलब्ध है. सोशल मीडिया पर उसके फैन्स उसके बारे में सबकुछ जान जाते हैं. जबकि पहले के स्टार को लेकर रहस्य बना रहता था. उस वक्त लोग स्टार के बारे में जानने के लिए तरसते थे. अब वैसी उत्सुकता नहीं रही. जिसका असर स्टारडम पर पड़ना स्वाभाविक है. अब कोई महानायक अमिताभ बच्चन पैदा नहीं होगा. इस दौर में यदि हम महानायक नहीं बन सकते, तो नहीं बन सकते. जहां तक पहुंच सकते हैं, वहां तक पहुंचेंगे. पर सोशल मीडिया एक आदत सी बन गयी है. पर मुझे महानायक बनना है, इसलिए सोशल मीडिया से हट जाउं, तो यह नहीं हो सकता. हर कलाकार सोशल मीडिया पर है. हम जिस दौर में पैदा हुए हैं, उस दौर के हिसाब से चलना ही पड़ेगा. अब दर्शक भी सोशल मीडिया वाला है.

चर्चा है कि आपकी 2017 की सफल फिल्म ‘‘शुभ मंगल सावधान’’ का सिक्वअल बनने जा रहा है?

मेरी जानकारी के अनुसार फिल्म के निर्देशक एस आर प्रसन्ना फिलहाल सिक्वअल फिल्म की पटकथा पर काम कर रहे हैं. पर मुझसे अब तक निर्माता व निर्देशक ने कोई बात नहीं की है. यदि पटकथा में रोचकता होगी, तो मैं इससे जुड़ने के बारे में सोचूंगा. पर पहले मुझे पटकथा सुनायी तो जाए.

आप शायरी व कविताएं लिखते रहते हैं. अपनी पत्नी ताहिरा की तरह फिल्म की पटकथा लिखने का ख्याल नहीं आता?

फिल्म की पटकथा लिखने के लिए लंबा समय और अनुशासन चाहिए. कविता और शायरी तो जब मूड़ हुआ, तब दस पंद्रह मिनट में लिख डाला. पर फिल्म की पटकथा लिखने के लिए लगातार कम से कम तीन से चार माह का समय देना चाहिए. जबकि मैं अभिनेता के साथ गायक भी हूं. तो मैं अभिनय के अलावा संगीत व गायन को भी वक्त देता हूं.

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