फिल्म ‘मिर्ज़ापुर’ से चर्चा में आने वाले निर्माता, निर्देशक, लेखक करन अंशुमन को हमेशा क्रिएटिव काम करना पसंद था. मुंबई में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने फिल्म मेकिंग की शिक्षा ली और इस क्षेत्र में उतरे. उन्होंने निर्देशक के रूप में पहली फिल्म ‘बैंगिस्तान’ बनाई जिसे लोगों ने कमोवेश पसंद किया. इसके बाद उन्होंने वेब सीरीज ‘इनसाइड एज’ बनायीं जिसे आलोचकों ने काफी सराहा. उन्हें नयी चुनौतीपूर्ण कहानी लिखना और बनाना पसंद है. अमेज़न प्राइम पर उनकी वेब सीरीज ‘इनसाइड एज 2’ का निर्देशन उन्होंने की है, जिसे लेकर वे काफी उत्साहित है. पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल- इस सीरीज में खास क्या है?

इसमें क्रिकेट से जुड़े मुद्दों को अधिक दिखाने की कोशिश की गयी है, जिसमें ये भी बताने की कोशिश की गयी है कि डोप का प्रयोग, जो खिलाड़ियों की परफोर्मेंस को अच्छा बनाने के लिए की जाती है, उसका असर क्या होता है, उस पर लेखक ने अधिक जोर दिया है.

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सवाल- पिछले दिनों एक प्रसिद्ध साउंड एडिटर निमिष पिलांकर की मृत्यु मुंबई में केवल 29 साल की उम्र में हुई, ऐसे में फिल्म या वेब सीरीज बनाने की इस लम्बी प्रक्रिया में आप अपने स्वास्थ्य पर कैसे ध्यान दे पाते है?

मैं स्पोर्ट्स में स्क्वाश खेलता हूं, योगा करता हूं. सप्ताह में एक दिन छुट्टी अवश्य लेता हूं  और बेटी के साथ समय बिताता हूं, क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य का भी सही रहना काम के साथ-साथ जरुरी है. तनाव जो फिल्म मेकिंग और लेखन की वजह से होती है  उससे लगातार हटाना पड़ता है. शारीरिक से अधिक मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान अधिक रखने की जरुरत होती है. हर फिल्म मेकर को ये समझने की जरुरत है कि हम कोई जंग नहीं ,बल्कि एक फिल्म बनाने जा रहे है. कुछ सही नहीं हो रहा है, तो अधिक चिंता करने की जरुरत नहीं है. मैं अपने परिवार के साथ काफी समय बिताता हूं. मेरी बेटी 4 साल की है उसके साथ समय बिताना मेरे लिए बहुत जरुरी है और इससे मुझे बहुत सुकून मिलता है. इस इंडस्ट्री में शारीरिक से अधिक मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरुरी है.

सवाल- इस वेब सीरीज में चुनौती क्या रही?

इनसाइड एज 2 में अलग कहानी है और किसी भी निर्देशक को अलग कहानी कहने में ही मज़ा आता है. मेरे लिए नया हमेशा अच्छा रहता है. कलाकार के साथ-साथ निर्देशक भी टाइपकास्ट होना नहीं चाहते. इसमें हिंसा से अधिक जो होनी चाहिए, उस पर अधिक फोकस करने की कोशिश की गयी है, जो मेरे लिए चुनौती रही.

सवाल- वेब सीरीज और एक फिल्म बनाने में अन्तर क्या होता है?

वेब सीरीज 400 मिनट की होती है जबकि फिल्म उससे छोटी होती है, लेकिन एप्रोच दोनों का उतना ही होता है. वेब में वीकेंड प्रेशर नहीं होता. इसके अलावा एक बार बनाया तो दर्शक कभी भी कही भी देख सकते है. आज लोगों की सोच और विचार बदल चुके है और वे अलग चीजो को देखना पसंद कर रहे है और मुझे भी अच्छा लग रहा है, क्योंकि मुझे नयी-नयी चीजों को एक्स्प्लोर करने का मौका वेब के ज़रिये मिल रहा है. वेब में कहानी एक्सटेंडेड फॉर्म में होती है, जिसमें कलाकारों में अधिक परिवर्तन नहीं किया जाता. इसे लिखने और बनाने में भी काफी समय लगता है.

सवाल-वेब सीरीज का व्यवसाय काफी बढ़ चुका है और इसे बढ़ाने के लिए कई बार जरुरत से अधिक  सेक्स, वायलेंस और गाली-गलौज का प्रयोग होता है, कई बार लोग ऐसी वेब सीरीज को देखने से डर भी जाते है, यहाँ सर्टिफिकेशन नहीं है, निर्देशक और लेखक के तौर पर आप इन बातों का कितना ध्यान रखते है?

ये दर्शक पर निर्भर करता है कि आपको ऐसी वेब सीरीज देखनी है या नहीं. अगर हिंसा पसंद नहीं तो उसे न देखें. आपके पास वो आप्शन है. मैं कहानी चरित्र के हिसाब से लिखता हूं. जरुरत नहीं है, तो बिना वजह सेक्स, हिंसा आदि नहीं डालता. इसके अलावा दर्शक को हमेशा ये आजादी होनी चाहिए कि वे क्या देखें और क्या न देखें. इसके लिए रेटिंग की व्यवस्था होना सही होता है. सेंसरशिप से आप किसी को रोक नहीं सकते, आज के बच्चे अपने हिसाब से जो देखना चाहे देख सकते है. इन्टरनेट पर आज सब उपलब्ध है.

सवाल- आगे क्या योजनायें है?

मैं अभी वेब सीरीज पर अधिक फोकस्ड हूं और उस पर ध्यान केन्द्रित करने की कोशिश कर रहा हूं. फ्रेश और न्यू स्टोरीज कहने की कोशिश कर रहा हूं.

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