‘इरादा’ एक इको फ्रेंडली थ्रिलर फिल्म है, जिसे निर्देशक अपर्ना सिंह ने लिखा और निर्देशन किया है, फिल्म में निर्देशक ने एक गंभीर मुद्दा जो खासकर बड़ी-बड़ी फैक्टरियों के द्वारा छोड़े गए दूषित कैमिकल को बिना ट्रीट किये जलधाराओं और जमीन में सीधा छोड़ देते है. जिससे आज शहर और गांव का हर परिवार प्रभावित है. हर परिवार में कोई न कोई सदस्य कैंसर का पेशेंट है. ये विषाक्त पानी हर घर में, फल सब्जियों में किसी न किसी रूप मे आ रहा है, लेकिन हमारी सरकार और कुछ मौका परस्त लोग इसे अपने एशो-आराम के लिए नज़र अंदाज कर रहे है और विरोध करने वाले हर इंसान को अपने पैसे और ताकत के बल पर चुप करा रहे हैं.
फिल्म को मनोरंजक रूप में पेश करने की कोशिश की गयी है, लेकिन निर्देशक ऐसा करने में पूरी तरह सफल नहीं रहे, फिल्म का पहला भाग काफी धीमा था. इंटरवल के बाद फिल्म की पकड़ कुछ ठीक रही. फिल्म में अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने पिता की भूमिका में उम्दा अभिनय किया है. अरशद वारसी ने भी अपनी जगह सही अभिनय किया. लेकिन अभिनेत्री सागरिका घाटगे कुछ खास असर नहीं छोड़ पायी. मुख्यमंत्री की भूमिका में दिव्या दत्ता और विलेन की भूमिका में शरद केलकर ने अच्छा अभिनय किया है. कहानी इस प्रकार है.
रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर परबजीत वालिया (नसीरुद्दीन शाह) अपनी एकमात्र बेटी रिया (रूमान मोल्ला) को पायलट बनाने के सपने लिए उसे हर दिन फिटनेस ट्रेनिंग देते हैं, उसमें वह स्विमिंग भी करती है, लेकिन एक दिन वह पानी में तैरती हुई बेहोश हो जाती है. डॉक्टरी चेक करने के बाद पता चलता है कि उसे लंग कैंसर है. उसकी मृत्यु नजदीक है. परबजीत बेटी की इस बीमारी की वजह जानने के लिए उसके बालों का लैब टेस्ट करवाते हैं और पता चलता है दूषित पानी की वजह से उसकी बेटी को कैंसर हुआ है. गुस्से से वह एक ब्लास्ट फैक्ट्री में करवाता है.
एक जर्नालिस्ट सिमी (सागरिका घाटगे) भी अपने बॉयफ्रेंड को न्याय दिलाने के लिए आगे आती है, उसका बॉयफ्रेंड ऐसे लोगों को सजा दिलाने की कोशिश करता है, जिन्होंने पानी को प्रदूषित किया है. लेकिन वह कंपनीके मालिक विलेन पैडी शर्मा (शरद केलकर) और उसकी पार्टनर और मुख्यमंत्री रमनदीप (दिव्या दत्ता) के गुंडों के हाथों मारा जाता है. समस्या को गंभीर होता देख रमनदीप, एनआईए ऑफिसर अर्जुन मिश्रा (अरशद वारसी ) को शहर में बुलाती है और सबकुछ चुपचाप स्पैम में डाल देने को कहती है, लेकिन कई ट्विस्ट के बाद अर्जुन को इसकी हकीकत का पता चलता है और वह सच्चाई का साथ देता है. इस तरह कहानी अंजाम तक पहुंचती है.
फिल्म में गाने खास नहीं हैं. नसीरुद्दीन शाह की शेरो शायरी कहने का अंदाज अच्छा था. बहरहाल फिल्म एक बार देखने लायक है .इसे टू एंड हाफ स्टार दिया जा सकता है.