सुजॉय घोष निर्देशित फिल्म ‘कहानी 2: दुर्गारानी सिंह’ से यह बात साफ हो जाती है कि बेहतरीन पटकथा, बेहतरीन निर्देशन और कलाकार की बेहतरीन परफॉर्मेंस के बल पर सामाजिक मुद्दों पर बेहतरीन फिल्म बन सकती है.

फिल्म की कहानी शुरू होती है, कोलकाता के पास चंदन नगर में रह रही विद्या सिन्हा के घर से जो अपनी 14 वर्षीय अपाहिज बेटी मिनी के साथ रह रही है. मिनी का ईलाज भी चल रहा है. डॉक्टर की सलाह पर विद्या अपनी बेटी मिनी को इलाज के लिए अमरीका ले जाने की तैयारी में है. पासपोर्ट बन चुके हैं. विद्या सिन्हा सुबह नर्स का इंतजार करते करते ऑफिस चली जाती है. ऑफिस में ही विद्या सिन्हा को पता चलता है कि अमरीका के डॉक्टर से मिलने का दिन व तारीख तय हो चुकी है.

जब वह ऑफिस से घर लौटती है, तो मिनी घर पर नहीं मिलती है. विद्या सिन्हा के मोबाइल पर एक महिला का फोन आता है कि कोलकाता में आकर अपनी बेटी को ले जाओ. विद्या अपनी बेटी मिनी को लेने के लिए घर से निकलती है, मगर रास्ते में एक कार उसे टक्कर मार देती है. विद्या सिन्हा अस्पताल पहुंच जाती है, जहां वह कोमा में जा चुकी है. डॉक्टर का मानना है कि छह सात दिन में वह कोमा से बाहर आ जाएगी. इस दुर्घटना के केस की जांच करने के लिए पुलिस सब इंस्पेक्टर इंद्रजीत सिंह (अर्जुन रामपाल) पहुंचता है, जिसके मुंह से विद्या सिन्हा को देखते ही दुर्गा रानी सिंह (विद्या बालन) का नाम निकलता है. पर डॉक्टर कहता है कि यह विद्या सिन्हा है.

इंद्रजीत सिंह जांच शुरू करता है. वह विद्या सिन्हा के घर पहुंचता है, जहां उसे विद्या सिन्हा उर्फ दुर्गारानी सिंह की डायरी मिलती है. इस डायरी से ही पता चलता है कि कभी दुर्गारानी सिंह और इंद्रजीत सिंह पति पत्नी थे. दो वर्ष के बाद दोनों अलग हो गए थे. दुर्गारानी सिंह के अनुसार इंद्रजीत सिंह उससे नफरत करता है. जबकि अब इंद्रजीत सिंह अपनी पत्नी रश्मि (मानिनी चड्ढा) व बेटी सिमरन के साथ खुश है.

विद्या सिन्हा उर्फ दुगारानी सिंह की डायरी के अनुसार कोलकाता में रहने वाली दुर्गारानी सिंह (विद्या बालन) एक स्कूल में रिसेप्शनिस्ट हैं. जहां मशहूर व अति संपन्न दीवान परिवार की बेटी छह वर्षीय मिनी पढ़ती है. मिनी (नायशा खन्ना) को उसकी कक्षा की शिक्षक हर दिन मिनी की शिकायत के साथ प्रिंसिपल के ऑफिस ले जाती है. और डरी व सहमी मिनी को हमेशा दुर्गारानी सिंह ऑफिस के सामने ही बैठना पड़ता है. मिनी पर आरोप है कि मिनी पढ़ने में रूचि नहीं रखती और कक्षा में सोती रहती है. होमवर्क करके नहीं लाती.

दुर्गारानी सिंह के मन में उत्सुकता जागती है और वह एक दिन मिनी के नजदीक पहुंचकर उससे सच जानने का प्रयास करती है. मिनी कह देती है कि रात में उसे सोने को नहीं मिलता. पर तभी ड्राइवर उसे लेने आ जाता है. उसके बाद मिनी से सच जानने के लिए दुर्गारानी सिंह योजना बनाती है. वह झूठ बोलकर उसकी स्कूल शिक्षक बनकर मिनी को उसके घर पर ट्यूशन पढ़ाने जाने लगती है.

दुर्गारानी सिंह की जिंदगी में अरूण नामक युवक है. दुर्गारानी सिंह चाहती है कि इंदर तो कभी उसका हो नहीं सका, अब वह अरूण के साथ नई जिंदगी की शुरूआत कर सकती है. मिनी को ट्यूशन पढ़ाते पढ़ाते अंततः दुर्गारानी सिंह को पता चलता है कि मिनी के मोहित (जुगल हंसराज) चाचा उसका शारीरिक व यौन उत्पीड़न कर रहे हैं. दुर्गारानी सिंह, पुलिस में मोहित व मिनी की दादी (अम्बा सन्याल) के खिलाफ शिकायत दर्ज कराती है. पुलिस जांच करने आती है और मोहित से बात करने के बाद उन्हें छोड़ देती है. जबकि मोहित व मोहित की मां, दुर्गारानी सिंह पर चोरी का इल्जाम लगा देते हैं. दुर्गारानी सिंह की स्कूल की नौकरी चली जाती है. मोहित व मिनी की दादी, दुर्गारानी सिंह को मरवाने की सुपारी दे देते हैं.

उधर अरूण, दुर्गारानी सिंह का स्पष्ट जवाब न मिलने पर लंदन चला जाता है. मिनी की दादी और मोहित, मिनी को इतना प्रताड़ित करते हैं कि वह छत से कूद जाती है. और उसका पैर फ्रैक्चर हो जाता है. उपर से उसकी दादी अस्पताल में मिनी को एक इंजेक्शन लगाकर मौत की नींद सुलाना चाहती है, पर ऐन वक्त पर दुर्गारानी सिंह अस्पताल पहुंचकर दादी को मारकर मिनी के साथ कोलकाता से भागकर चंदन नगर पहुंच जाती है.

अस्पताल में कोमा से बाहर आते ही विद्या उर्फ दुर्गारानी सिंह बेटी मिनी को बचाने के लिए निकल पड़ती है. उधर पुलिस भी दुर्गारानी सिंह के पीछे पड़ी है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. पता चलता है कि मिनी का अपहरण मिनी के मोहित चाचा ने ही करवाया है जो कि अंततः मारे जाते हैं. दुर्गारानी सिंह, मिनी को लेकर अमरीका के अस्पताल पहुंचती है.

यूं तो यह फिल्म एक रोमांचक फिल्म है. मगर यह फिल्म वर्तमान समय के अति ज्वलंत मुद्दे बाल यौन उत्पीड़न पर आधारित है. छह सात वर्ष की बालिकाओं के साथ उनके घर या रिश्तेदार या अतिकरीबी इंसान जब उनका शारीरिक व यौन शोषण करता है, उस वक्त वह बात बालिका की समझ में कुछ नहीं आता है. मगर जब वह बड़ी होती है, तो शादी के बाद भी उसकी जिंदगी तबाह होती है. इस बात को रेखांकित करने वाली इस फिल्म में एक बहुत प्यारा दृश्य है. जहां पर दुर्गारानी सिंह, मिनी को एक बालिका के प्रति प्यार व बाल यौन उत्पीड़न में अंतर समझाती है. फिल्म के कुछ संवाद काफी अच्छे बन पड़े हैं.

निर्देशक सुजॉय घोष इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि जिन विषयों या मुद्दों को लोग अपने घर की दरी के नीचे दबा देना ही उचित समझते हैं, उस पर निर्देशक ने खुलकर बात की है. विद्या बालन की तारीफ करनी पड़ेगी कि उन्होंने ऐसे विषय वाली फिल्म में अभिनय करने के लिए हामी भरी. फिल्म में कुछ अनुत्तरित सवाल भी हैं, कुछ कमियां भी हैं, जिन्हें सिनेमाई स्वतंत्रता के नाम पर नजरंदाज किया जा सकता है. सुजॉय घोष बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने बाल यौन उत्पीड़न के मुद्दे को काफी परिपक्वता के साथ फिल्म में उठाया है. ऐसा इम्तियाज अली अपनी फिल्म ‘हाईवे’ में नहीं कर पाए थे.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो विद्या बालन ने काफी बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है. बेटी की सुरक्षा का डर, गुस्सा, बेटी के प्रति सुरक्षा कवच बनने के अहसास को अपने चेहरे के भावों से व्यक्त कर विद्या बालन ने अद्भुत अभिनय क्षमता का परिचय दिया है.

क्लायमेक्स से पहले के कुछ दृश्यों मे तो विद्या बालन अभिनय के बल पर दर्शकों को अपना बना लेती हैं. काफी लंबे समय बाद किसी फिल्म में अर्जुन रामपाल ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है. वह वास्तविक पुलिस सब इंस्पेक्टर के किरदार को परदे पर साकार करने में इतना सफल रहे हैं कि फिल्म खत्म होने के बाद भी वह दर्शकों के दिमाग में रह जाते हैं. विद्या बालन के साथ ही नायषा खन्ना ने भी कमाल का अभिनय किया है. जुगल हंसराज का अभिनय ठीक ठाक ही रहा. इंद्रजीत सिंह के बॉस के किरदार में खराज मुखर्जी ने भी अच्छा परफॉर्म किया है.

फिल्म में पश्चिम बंगाल के मध्यम वर्गीय परिवेश को उकेरने में निर्देशक सुजॉय घोष पूरी तरह से सफल रहे हैं. कैमरामैन भी बधाई के पात्र हैं. फिल्म का संगीत प्रभावित नहीं करता.

इंटरवल से पहले दर्दनाक अतीत के साथ जिंदगी जी रही औरत, एक छह वर्ष की लड़की के व्यवहार की वजह से एक जुड़ाव महसूस करती है. और फिर कहानी इस तरह आगे बढ़ती है कि दर्शक फिल्म का एक भी दृश्य आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहता. काफी लंबे समय बाद कोई फिल्म आयी है, जिसका पहला भाग लोगों को अपनी तरफ खींचता है. इंटरवल के पहले जो रोमांच पैदा होता है, उसे इंटरवल के बाद बरकरार रखने में निर्देशक असफल हो जाते हैं. इंटरवल के बाद फिल्म पर से कुछ समय के लिए निर्देशक की पकड़ कमजोर हो जाती है. कुछ घटनाक्रम का अंदाजा पहले से लगाया जा सकता है, पर इससे फिल्म की गति या फिल्म की रोचकता ज्यादा बाधित नहीं होती है.

तर्कशीलता और दया के साथ एक संवेदनशील विषय से निपटने वाली दुर्लभ फिल्मों में से एक गिनी जाएगी. यह एक ऐसी फिल्म है, हर माता पिता को चाहिए कि वह अपने बच्चेा को अपने साथ ले जाकर दिखाए. यह फिल्म कहीं न कहीं बच्चों में बाल यौन उत्पीड़न के प्रति जागरूकता लाएगी.

दो घंटे दस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘कहानी 2’ का निर्माण ‘बाउंड स्क्रिप्ट मोशन पिक्चर्स’ के बैनर तले किया गया है. इसके निर्माता सुजॉय घोष और जयंतीलाल गड़ा हैं. निर्देशक सुजॉय घोष, पटकथा लेखक सुजॉय घोष, संवाद लेखक रितेश शाह, कहानीकार सुजॉय घोष व सुरेश नायर, संगीतकार क्लिंटन

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