बॉलीवुड की सबसे बड़ी बीमारी ‘अहम ब्रम्हास्मि’ की है. जिस फिल्म निर्देशक या निर्माता की पहली फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल होती है, वह उसी दिन से सोचने लगता है कि वह जो काम करता है, वही सही है. उसके बाद वह किसी की परवाह किए बगैर ‘‘अहम ब्रम्हास्मि’’ के अहम में चूर होकर अति घटिया फिल्में बनाता है.

हमें फिल्म ‘‘फिल्लौरी’’ देखकर बॉलीवुड की ‘अहम ब्रम्हास्मि’ की ही बीमारी याद आ गयी. इसी बीमारी का शिकार इस फिल्म की निर्माता अनुष्का शर्मा और उनके भाई कर्णेश शर्मा हैं. पहली फिल्म ‘‘एन एच 10’’ को मिली सफलता के बाद वह ‘‘फिल्लौरी’’ जैसी स्तरहीन व बोर करने वाली फिल्म बनाएंगी, इसकी कल्पना किसी ने नहीं की होगी. फिल्म के प्रदर्शन से कुछ दिन पहले हमसे बातचीत करते हुए अनुष्का शर्मा ने जितने बड़े दावे किए थे, वह सारे दावे फिल्म देखने के बाद खोखले साबित नजर आए. दो अलग अलग युगों की प्रेम कहानियों के  बीच सामंजस्य बैठाने में लेखक व निर्देशक असफल हैं. इसी के चलते दर्शक भी कहानी को ठीक से समझने से वंचित रह जाता है.

एक भूतनी की प्रेम कहानी को देश की आजादी से पहले 1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार के साथ जिस तरह से जोड़ा गया है, वह अविश्वसनीय के साथ साथ अति हास्यास्पद लगता है. काश हमारे फिल्मकार देश के स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े इतिहास के साथ इस तरह के मजाक करने से बचे, तो कितना अच्छा हो.

फिल्म की कहानी शुरू होती है अपनी बचपन की दोस्त अनु (मेहरीन पीरजादा) के साथ शादी करने के लिए कनाडा से भारत वापस आने वाले कनन से. कनन भारत आ गया है, पर शादी व प्यार को लेकर वह अभी भी दुविधा में है. इसी बीच शादी के लिए कुंडली मिलान के दौरान पंडित बताते हैं कि कनन तो मंगली है. इसलिए उसे पहले पेड़ से शादी करनी पड़ेगी. अनमने मन से कनन को यह बात माननी पड़ती है. कनन की पेड़ से शादी हो जाती है. कनन पूरे परिवार के साथ घर वापस आता है.

उधर कनन के पिता ने पेड़ को काट देने का आदेश दे दिया है. घर पहुंचने पर एक भूतनी कनन के पीछे पड़ जाती है. पता चलता है कि यह भूतनी शशि (अनुष्का शर्मा) उसी पेड़ पर रहती थी, पर पेड़ कट गया, तो वह कहां जाए. वह कनन के पास क्यों आयी, यह भी वह नहीं जानती. मगर प्यार व शादी को लेकर कनन के मन में जो दुविधा है, उसे शशि अपनी कहानी बताते हुए दूर करने का प्रयास करती है. इसी के साथ अब कनन व अनु तथा शशि व रूप फिल्लौरी की प्रेम कहानी समानांतर चलती है. कनन व अनु की शादी वैषाखी के दिन ही होनी है.

शशि की प्रेम कहानी 98 साल पहले की है. पंजाब के फिल्लौरी गांव की रहने वाली शशि को उसके भाई ने बेटी की तरह पाला है जो कि आयुर्वेदिक दवाएं देते हैं. शशि को गांव के नकारा युवक रूप फिल्लौरी (दलजीत दोशांज) से प्यार हो गया है. रूप गीत लिखता व गाता है. धीरे धीरे शशि भी फिल्लौरी के नाम से गीत लिखकर अखबार में छपवाने लगती है. एक दिन इनकी प्रेम कहानी का पता शशि के भाई को चल जाता है. जब शशि, रूप के घर में होती है, तो शशि का भाई वहां जाकर दोनों की पिटाई करता है और शशि को लाकर घर में बंद कर समझाता है कि रूप उसके योग्य नहीं है. दो दिन बाद रूप, शशि के भाई से कहता है कि अब वह शशि के लायक बनने के लिए अमृतसर जा रहा है.

कुछ दिन बाद रूप वहां से शशि के नाम तीन सौ रूपए भेजता है. पत्र में लिखता है कि अमृतसर की संगीत कंपनी ने उसके गीतों का एलबम निकाला है. शशि के लिखे गीतों को रूप ने गाया है. एलबम पर दोनों का नाम है. इससे शशि का भाई खुश होकर उनकी शादी के लिए हामी भर देता है. रूप ने बैसाखी के पर्व पर वापस आने की बात लिखी है. बैसाखी के दिन शशि के घर शादी की तैयारियां हो चुकी है. शशि दुल्हन के वेष में है. तभी पता चलता है कि शशि तो रूप के बच्चे की मां बनने वाली है. पर शादी नहीं होती है. क्योंकि रूप वापस नहीं लौटता है. शशि का भाई सलाह देता है कि वह लाहौर जाकर गर्भपात करवा ले. किसी को कुछ पता नहीं चलेगा. परेशान शशि घर से भागती है और एक पेड़ के नीचे दम तोड़ देती है.

शशि की प्रेम कहानी सुनते सुनते अंत में भूतनी शशि के संवाद दोहराते हुए कनन, अनु से कहता है कि अब तक वह ख्यालों में था पर अनु ही उसकी सच्चाई है. और वह उससे शादी करने को तैयार है.

उसके बाद कनन व अनु, भूतनी शशि से पूछते है कि रूप के साथ शादी न होने की घटना कब की है. तो वह कहती है कि 98 साल पहले यानी कि 1919 की है. कनन को याद आता है कि उसी दिन जलियांवाला बाग कांड हुआ था. जब अंग्रेजों ने निहत्थे लोंगों पर गोलियां बरसाई थी. कनन अपने साथ गाड़ी में अनु व भूतनी शशि को बैठाकर जलियांवाला बाग, अमृतसर पहुंचता है. जहां शशि व रूप की आत्मा का मिलन हो जाता है.

फिल्म ‘‘फिल्लौरी’’ की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी तो इसकी लेखक अन्विता दत्ता हैं, जिन्होंने अति घटिया कहानी व पटकथा लिखी है. शायद उन्हें पंजाबी शादियों के बारे में कुछ भी पता नहीं है. पूरी फिल्म में पंजाबी शादी का कोई माहौल नजर नहीं आता. लेखक के साथ ही अनुष्का शर्मा भी कमजोर कड़ी कही जाएंगी, क्योंकि कहानी व पटकथा का चयन तो अनुष्का शर्मा ने ही किया है. इंटरवल से पहले फिल्म ‘‘फिल्लारी’’ अंग्रेजी फिल्म ‘‘कॉर्प्स ब्राइड’’ की याद दिला जाती है. यानी कि मूल कथानक वहीं से प्रेरित है. इंटरवल के बाद इस फिल्म को देखना सबसे बड़ा सिर दर्द है.

फिल्म में अनुष्का शर्मा को ग्लैमरस नहीं दिखना था, इसलिए उन्होंने खूबसूरत अदाकारा मेहरीन कौर पीरजादा को भी ग्लैमरस नहीं दिखने दिया. पूरी फिल्म में वह रोती हुई नजर आती हैं. फिल्म में कहानी नहीं थी, इसलिए उन्होंने दृश्यों को इस तरह धीमी गति से खींचा कि फिल्म किसी तरह घिसट घिसट कर मंजिल पाती है. पूरी फिल्म सिर्फ बोर करती है.

दर्शक मन ही मन कहने लगता है-‘‘कहां फंसायो नाथ.’’ फिल्म को एडिट कर छोटा किए जाने की जरुरत है. आत्मा व इंसानों के बीच बातचीत की कल्पना करना अपने आप में अविष्वनीय होता है, पर लेखक व निर्देशक ने फिल्म के क्लायमेक्स के समय इसकी पराकाष्ठा भी पार कर डाली.

जहां तक फिल्म के गीत संगीत का सवाल है, तो यह पहले भी लोकप्रिय नहीं हुए हैं. फिल्म देखते समय भी गीत संगीत प्रभावहीन नजर आते हैं. फिल्म के वीएफएक्स की थोड़ी सी तारीफ की जा सकती है.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो दलजीत सिंह दोशांज ने बहुत निराश किया. इस फिल्म में अनुष्का शर्मा भी एक अदाकारा के रूप में नहीं उभरती हैं. दलजीत दोशांज हों या अनुष्का शर्मा, दोनों के चेहरे पर पर पूरी फिल्म में एक जैसे भाव ही नजर आता है. सूरज शर्मा ने दुविधा में फंसे युवक की मनः स्थिति को कुछ अर्थों में सही रूप में पेश किया है, मगर उनके किरदार को भी पटकथा की मदद नहीं मिली. मेहरीन कौर पीरजादा के लिए करने को कुछ था ही नहीं.

‘‘चक दे’’, ‘‘प्यार के साइड इफेक्ट्स’’, ‘‘हिम्मतवाला’’, ‘‘हाउसफुल’’ और ‘‘दोस्ताना’’ जैसी फिल्मों में बतौर सहायक रहे निर्देशक अंशाई लाल की स्वतंत्र निर्देशक के रूप में यह पहली फिल्म है. वह भी इस फिल्म की एक कमजोर कड़ी हैं. वैसे ज्यादातर असफल फिल्मों में सहायक रहे अंशाई से ज्यादा उम्मीद करनी भी नहीं चाहिए.

दो घंटे 17 मिनट की अवधि की ‘फॉक्स स्टार इंडिया’ के साथ मिलकर अनुष्का शर्मा की कंपनी ‘‘स्लेट फिल्मस’’ द्वारा निर्मित फिल्म ‘‘फिल्लौरी’’ के निर्देशक अंशाई लाल, लेखक व गीतकार अंविता दत्ता, संगीतकार जसलीन रोयल व शाश्वत सचदेव, पार्श्व संगीत समीर उद्दीन, तथा कलाकार हैं-अनुष्का शर्मा, दलजीत दोशांज, सूरज शर्मा, मेहरीन पीरजादा आदि.

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