विश्व की ‘100 सैक्सी विमन’ में शामिल हो चुकीं छोटे परदे की दिलकश अदाकारा दृष्टि धामी आजकल हसीन और खुशमिजाज ऐक्ट्रैस के नाम से पहचानी जाती हैं. इस वक्त वे जी टीवी पर आ रहे शो ‘एक था राजा एक थी रानी’ के लिए बहुत उत्साहित हैं, जिस में वे लीड रोल में हैं. इसी शो की लौंचिंग के अवसर पर उन से बातचीत हुई जिस में उन के शो के किरदार और उन के जीवन से जुड़ी बातों पर चर्चा हुई. उसी गुफ्तगू के कुछ अंश यहां पेश हैं:

नीरज से शादी के बाद जीवन में कुछ बदलाव आए हैं?

नहीं बिलकुल नहीं. शादी के बाद ज्यादा कुछ नहीं बदला है. मैं अपनी मैरिड लाइफ को ऐंजौय कर रही हूं और यह सोचती हूं कि शादी के बाद यह शो मेरी वापसी के लिए एकदम परफैक्ट होगा. मैं काम पर वापस लौट कर बहुत खुश हूं.

1940 के समय की कहानी पर बने इस शो में उस समय की लड़की की मानसिकता वाला किरदार निभाने में कोई परेशानी तो नहीं आई?

देखिए, इस शो में मेरा किरदार उस लड़की का है जो एक सेठ की बेटी है. पर उस का परिवार वही पुरानी सोच वाला है. लड़कियों का पढ़ना, घर से निकलना वहां भी अच्छा नहीं माना जाता. शुरुआत में तो इस भूमिका को निभाने में कुछ दिक्कत हुई पर अब सब सामान्य हो गया है. इस शो में सब से ज्यादा मजा इस शो के कपड़े दे रहे हैं क्योंकि अन्य किरदारों की तुलना में सूती साड़ी वाले और कम मेकअप वाले इस किरदार का लुक मुझे बहुत अच्छा लग रहा है.

आप की नजर में महिलाओं की दशा में पुराने समय की तुलना में आज क्या सुधार हुए हैं?

यकीनन आज समय के साथ बहुत कुछ बदला है. महिलाओं ने हर क्षेत्र में उन्नति की है. पर आज भी कई ऐसे प्रदेश हैं जहां लड़कियों और लड़कों में अंतर किया जाता है. लड़कियों को पढ़ाई से वंचित रखा जाता है.महिलाओं पर अत्याचार की खबरें सुन कर तो यही लगता है कि पहले का समय ज्यादा अच्छा था. लड़कियों को आज जितनी आजादी नहीं थी परंतु वे सुरक्षित थी.

सपने देखती हैं आप?

बिलकुल देखती हूं. मेरा तो सपना है कि में शौपिंग करने जाऊं तो 3-4 लोग सामान उठा कर मेरे पीछे चलें. सिर्फ इतना ही नहीं, स्विट्जरलैंड में पहाड़ी पर मेरा एक कैसल हो. लेकिन मैं उन्हीं सपनों में यकीन रखती हूं जिन्हें मैं अपने दम पर सच कर सकूं. मैं सपने सोते हुए नहीं जागते हुए देखती हूं.

बौलीवुड में ऐंट्री करने का कोई इरादा?

हां इरादा तो है वह भी पक्का. लेकिन कब करूंगी यह कह नहीं सकती. फिलहाल तो छोटे परदे पर और पहचान बनानी है अपनी. लेकिन किसी अच्छी फिल्म के लिए अगर कोई ऐप्रोच करता है तो मना नहीं करूंगी. लेकिन वही फिल्म करूंगी जिस की कहानी मुझे पसंद आ जाए. अगर मौका मिले तो मैं ‘कंगना’ जैसी महिला प्रधान भूमिकाओं वाली फिल्में करना पसंद करूंगी.

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