रंगरूप से विदेशी, लेकिन खालिस हिंदुस्तानी लड़की जब अपनी पहली फिल्म ‘देव डी’ में नजर आई तो एक बार दर्शकों को लगा कि यह विदेशी चेहरा बौलीवुड के ग्लैमर की चमक में कहां टिक पाएगा. लेकिन ‘शैतान’, ‘शंघाई’ और राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुनी गई फिल्म ‘मार्गरिटा विद ए स्ट्रा’ में सेरेब्रल पल्सी नामक बीमारी से पीडि़त लड़की का सशक्त किरदार निभा कर कल्कि ने यह साबित कर दिया कि प्रतिभा ग्लैमर की मुहताज नहीं होती.

अदाकारी के साथसाथ लेखन में भी पारंगत कल्कि का जन्म पांडिचेरी में हुआ था. पिता जोएल कोचलीन और मां फैंकोइस अरमैंडी की संतान कल्कि के परदादा मौरिस कोचलीन अपने जमाने के प्रसिद्ध इंजीनियर थे, जिन्होंने ऐफिल टावर और स्टैच्यू औफ लिबर्टी के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाई थी.

हरदिल अजीज कल्कि सिर्फ संजीदा ऐक्टिंग के लिए ही नहीं अपने बेबाक बयानों के लिए भी जानी जाती हैं. वे बी टाउन की उन अभिनेत्रियों में से एक हैं, जो बिना किसी लागलपेट के अपने विचार व्यक्त करती हैं. फिर चाहे बात सैंसर बोर्ड की तानाशाही की हो या कास्टिंग काउच की. स्कूल समय से ही टौमबौय स्टाइल लाइफ जीने वाली कल्कि ने स्कूली शिक्षा ऊटी से कंप्लीट की. इस के बाद लंदन में ऐक्टिंग का कोर्स करने गईं. फिर मुंबई आ कर थिएटर करने लगीं. लेकिन दिल तो फिल्मों में बसा था. इस के लिए काफी संघर्ष किया. फिल्म ‘देव डी’ में पहला मौका मिला. इस के बाद उन्होंने कई फिल्मों में सशक्त अभिनय कर के अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया. विदेशी रंगरूप वाली कल्कि फिल्मों से ज्यादा बिंदास और बेबाक बयानों के लिए भी जानी जाती हैं. एक मुलाकात में उन्होंने अपनी निजी जिंदगी के बारे में बताया, आप भी जानिए…

पिछले दिनों जिलेट वीनस लौंच के इवैंट पर कल्कि से हुई हमारी बातचीत के पेश हैं कुछ अंश :

आप की ज्यादातर फिल्में परफौर्मैंस बेस्ड रही हैं. कमर्शियल से इतनी दूरी क्यों?

मैं तो कमर्शियल फिल्में करना चाहती हूं, लेकिन औफर ही नहीं मिल रहे तो मैं क्या करूं. जो फिल्में मिलीं उन में मैं ने अपना सौ प्रतिशत दिया है. लगता है मैं खुद की बनाई इमेज का शिकार हो गई हूं, क्योंकि जब मैं ने बौलीवुड में कदम रखा था तो ‘देव डी’, ‘शैतान’, ‘शंघाई’ जैसी फिल्मों में काम किया. इन सब में मेरा किरदार हट कर रहा है. इस के बाद मेरे पास जिस भी फिल्म का औफर आता वह परफौर्मैंस बेस्ड फिल्म का ही आता. लगता है मैं अपनी ही बनाई भूमिका में बंध गई हूं. अगर कोई औफर आता है तो मैं कमर्शियल फिल्म जरूर करूंगी.

मन कहां लगता है राइटिंग में या ऐक्टिंग में?

– राइटिंग अपने शौक के लिए करती हूं. मैं थिएटर लिखती हूं, पोइट्री लिखती हूं, लेकिन मैं हमेशा ऐक्टिंग ही करना चाहती हूं.

अपनी ऐक्टिंग और लुक से कितनी संतुष्ट हैं?

– मुझे लगता है निर्देशक दिबाकर बनर्जी की फिल्म शंघाई को छोड़ कर मैं हमेशा बेहतर दिखी हूं. फिल्म में दिबाकर मेरी भूमिका को कुछ अलग दिखाना चाहते थे जिसे मैं कर न सकी, क्योंकि जिस इंडस्ट्री से हम हैं वहां अच्छा दिखना और अच्छा पहनना बहुत जरूरी है. अगर आप अपने लुक पर ध्यान नहीं देंगे तो इंडस्ट्री कब आप को आउट कर देगी, पता ही नहीं चलेगा. इसलिए मैं अच्छा दिखने के नएनए तरीके तलाशती रहती हूं.

आप के लिए फ्रीडम के माने क्या हैं?

– आप अपनी जिंदगी अपने अनुसार जी सकें, मेरे लिए वही फ्रीडम है. जो मन को अच्छा लगे वह करो. किसी के दबाव में रह कर जीना कोई जिंदगी नहीं है. जब मुझे यह लगने लगा कि मेरे पार्टनर और मेरे बीच एक साइलैंट प्रैशर काम कर रहा है, तो मैं ने उस रिश्ते से दूरी बनाने में समय नहीं लगाया, क्योंकि घुटघुट कर आप कुछ समय तक ही जिंदा रह सकते हैं. आज का समय सोशल मीडिया का है और यह मेरे लिए काफी सकारात्मक है, क्योंकि इस के सहारे मैं कुछ भी बोल सकती हूं, अपनी बात सीधे रख सकती हूं. हालांकि आजकल फिल्मी सितारों को ट्रोल करने का चलन काफी बढ़ गया है, लेकिन मैं विवादों पर ध्यान नहीं देती. अपने काम से मतलब रखती हूं.

पहली फिल्म में डेब्यू अवार्ड मिलना और इस के बाद राष्ट्रीय अवार्ड मिलने पर कभी किसी तरह का दबाव या बड़ा स्टार होने की फीलिंग तो नहीं हुई?

किसी को भी पुरस्कार मिलता है, तो खुशी तो होती ही है, लेकिन मेरे ऊपर ऐसा कोई दबाव नहीं है कि मुझे सिर्फ उसी स्क्रिप्ट पर काम करना है, जो मुझे अवार्ड दिलवा सके. ‘मार्गरिटा’ में मेरा काम कैसा रहा यह नैशनल अवार्ड से मुझे मालूम चला. नैशनल अवार्ड से मुझे इस बात का प्रोत्साहन मिला कि मैं ने जो काम किया वह अच्छा है और आगे भी अच्छा करने की कोशिश करती रहूंगी. मैं ने भी बौलीवुड में धक्के खाए हैं. कभीकभी बहुत सारी फिल्मों के औफर एकसाथ आ जाते हैं, तो कभीकभी ऐसा भी होता है कि कुछ समय के लिए कोई फिल्म नहीं मिलती.

अभी किस तरह के किरदार निभाने की तमन्ना है?

मैं ऐतिहासिक किरदार निभाना चाहती हूं. मेरी बचपन से ही इतिहास में रुचि रही है. अगर कभी कोई ऐतिहासिक किरदार निभाने का मौका मिला तो जरूर निभाऊंगी. अगर पुरानी फिल्मों में से ‘प्यासा’ का रीमेक बनता है, तो यह फिल्म मैं अवश्य करूंगी क्योंकि यह मुझे बहुत पसंद है.

आप की आने वाली फिल्में कौन सी हैं?

– इस समय मैं 3 फिल्मों में काम कर रही हूं, जिस में से ‘अ डेथ औफ गंज’ जल्दी आने वाली है. इस फिल्म में 60 के दशक की कहानी है, जिसे कोंकणा सेन निर्देशित कर रही हैं. मैं इस में एक बोल्ड राइटर की भूमिका निभा रही हूं. इस फिल्म के अलावा ‘जीया और जीया’, ‘रिबन’, ‘आजमाइश’, ‘कैडीफ्लिप’ फिल्में भी मैं कर रही हूं.

हम आपको बता दें कि कल्कि किसी फेयरनैस क्रीम का विज्ञापन नहीं करतीं. उन का कहना है कि खूबसूरती का गोरा होने से कोई संबंध नहीं है. सैक्स संबंधों पर खुल कर अपनी बात रखने वाली कल्कि का मानना है कि वे इन दिनों बिस्तर पर पहले से ज्यादा स्वार्थी हो गई हैं. उन के अनुसार 30 साल की उम्र के पहले के सैक्स और उस के बाद के सैक्स का अनुभव अलग होता है. उन्हें 30 के बाद सैक्स करने में बहुत रोमांचकारी अनुभव रहा है.

अनुराग से अलगाव के बाद कल्कि का नाम फरहान अख्तर के साथ भी जोड़ा जाने लगा था. ‘नीरजा’ में काम कर चुके जिम सरभ के साथ भी कल्कि की नजदीकियों की खबरें आई थीं. साल 2014 में फिल्म ‘मार्गरीटा विद ए स्ट्रा’ ने टैलिन ब्लैक नाइट्स फिल्म फैस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का खिताब जीता. यह पहली बार था जब किसी बौलीवुड फिल्म की स्क्रीनिंग टैलिन ब्लैक नाइट्स फिल्म फैस्टिवल में हुई.

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