बात उन दिनों की है जब राज कुमार बड़े स्टार तो नहीं रह गए थे लेकिन उनका बिंदासपन और एटीट्यूड ज्यों का त्यों था. 1993 में उनकी ‘इंसानियत का देवता’ और ‘पुलिस और मुजरिम’ जैसी फिल्में टिकट खिड़की पर औसत व्यवसाय कर पाई थीं.

एक दिन उनके दोस्त और निर्देशक रामानन्द उनसे मिलने आए. रामानन्द सागर और राज कुमार में अच्छी दोस्ती थी और राज कुमार रामानन्द सागर की जिंदगी और पैगाम जैसी फिल्मों में काम भी कर चुके थें.

सागर ने राज कुमार से कहा कि वो चाहते हैं कि राजकुमार ‘आखें’ का लीड रोल करें. सागर इस रोल के लिए राज को दस लाख रुपए देने के लिए तैयार थे.

सागर का प्रस्ताव सुनकर राज कुमार कुछ पल के लिए शांत रहे और कुछ सोचते रहे. सागर आश्वस्त थे कि राज कुमार उनके दोस्त हैं और उन्हें इनकार नहीं करेंगे. कुछ पल शांत रहने के बाद राज कुमार ने ड्राइंगरूम के पास घूम रहे अपने कुत्ते को आवाज लगाई. कुत्ता राज कुमार के पैरों में आकर बैठ गया.

उन्होंने सिगार पीते हुए कुत्ते से कहा ‘जानी, तुम्हें क्या लगता है कि सागर साहब का ऑफर स्वीकार करना चाहिए या नहीं’ कुत्ता कुछ पल राज कुमार का मुंह ताकता रहा और फिर गर्दन हिलाहिला कर भौंकने लगा. सागर अचंभे में थे कि राज कुमार साहब कर क्या रहे हैं. कुत्ते के भौंकने के बाद राज कुमार सागर जी की तरफ मुखातिब हुए और कहा, ‘देखिए सागर जी, मेरा कुत्ते को भी आपका ऑफर मंजूर नहीं है, ऐसे में मेरे हां करने का सवाल ही पैदा नहीं होता’.

सागर जी को बहुत अपमानित महसूस हुआ लेकिन वो करते भी क्या, राज कुमार अपनी बेबाकी और एटीट्यूड के चलते पूरे बॉलीवुड में मशहूर थें. वो बिना कुछ कहे अपना सा मुंह लेकर लौट आए. लौटने के तुरंत बाद उन्होंने पहला काम किया कि धर्मेंद्र को फिल्म के लिए साइन किया और फिल्म की शूटिंग शुरू कर दी.

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