• रेटिंगः पांच में से चार स्टार
  • निर्माताः वेणु कुन्नापिली,सी के पद्मकुमार और एंटो जोसेफ
  • लेखक: जूड एंथनी जोसेफ व अखिल पी धर्मजन
  • निर्देशकः जूड एंथनी जोसेफ
  • कलाकारः टोविनो थॉमस, इंद्रन्स, कुंचाको बोबन, अपर्णा बालमुरली, विनीत श्रीनिवासन, आसिफ अली, लाल, नारायण, तन्वी राम, शशिवाड़ा, कलैयारसन, अजु वर्गीज
  • अवधिः दो घंटे 35 मिनट
  • प्रदर्शन की तारीख: 5 मई 2023,सिनेमाघरों
  • भाषा: मलयालम, अंग्रेजी सब टाइटल्स के साथ

2018 में केरला राज्य भीशण बाढ़ के चलते तबाही का षिकार हुआ था.  ऐसी बाढ़ केरला वासियों ने कभी नही देखी थी. लेकिन केरल के हर नागरिक,धर्म जाति भुलाकर इस बाढ़ मंे एक दूसरे से हाथ मिलाकर मानवता की जो मिसाल पेश की थी,उसी मिसाल ,सच व केरल वासियों की सच्ची भावना को फिल्मकार जूड एंथनी जोसेफ फिल्म ‘‘2018ः एवरी वन इज हीरो’’ लेकर आए हैं,जो कि 5 मई को ही फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ के साथ ही प्रदर्षित हुई है.

फिल्म ‘‘2018ः एवरीवन इज हीरो’ मूलतः मलयालम भाषा में है,पर अंग्रेजी में सब टाइटल्स हैं. इस छोटे बजट की फिल्म ने चार दिन में ही सिर्फ केरला में तेरह करोड़ रूपए कमा कर एक इतिहास रच दिया है. इस फिल्म को देखने के बाद हर दर्षक इस फिल्म को ‘‘केरला की असली कहानी’’ बताते हुए इस हिंदी सहित दूसरी भाषाओं में डब कर प्रदर्षित करने की मांग करता नजर आ रहा है.  वैसे हकीकत यह है कि 2018 की भयानक त्रासदी में केरला राजय में हजारों मकान ध्वस्त हो गए थे,483 लोग मौत के मुंॅह में समा गए थे,पर यह त्रासदी केवल छोटी सी खबर मात्र बनकर रह गयी थी.  इस फिल्म को देखते हुए हमें मुंबई की 26 जुलाई 2005 की उस मूसलाधार की याद दिला देती है,जिसने दो दिनों के लिए शहर को पंगु बना दिया था. इन दो दिनों में हर मुंबईकर ने प्रकृति की क्रूर शक्ति का सामना किया था. तब सभी की भावनात्मक जुड़ाव उजागर हुई थी. लेखक-निर्देशक जूड एंथनी जोसेफ की ‘2018ः एवरी वन इज हीरो’ हमें केरल राज्य में अचानक आई बाढ़ के प्रति संवेदनशील बनाती है.

कहानीः

यह कहानी है केरला राज्य में 2018 में मूसलाधार बारिश के तौर पर आयी प्राकृतिक आपदा के साथ ही भारतीय सेना के असफल कैडेट अनूप (टोविनो थॉमस) के निस्वार्थ कृत्यों व वीरता की. फिल्म की कहानी किरदारो के परिचय से षुरू होती है,जिन्हे अहसास ही नही है कि उन पर कोई बहुत बड़ी आपत्ति आने वाली है. हम देखते है कि अनूप ‘भगवान के अपने देश’ से बाहर निकलने और संयुक्त अरब अमीरात में जाकर बसने की लालसा रखता है. सेना में असफल होने के बावजूद अनूप अपने गांव में बच्चों के बीच सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है. जबकि गांव के बुजुर्ग उसे पसंद कम करते हैं. कुछ दबंग मलयाली लड़के हिंदी फिल्म ‘बार्डर’ के गीत ‘‘संदेशे आते हैं. . ’उसे देखकर गाते हैं. लेकिन बाढ़ की विपदा के वक्त वही अनूप लोगों की जिंदगी बचाने के लिए अपनी जिंदगी की बाजी लगा देता है.  केरला पर बाढ़ की आपदा आने पर राज्य के गृह सचिव शाजी पुन्नूस ( कांचाको बोबन) क्षति को सीमित करने और बचाव के प्रयासों को सुविधाजनक बनाने के लिए अथक प्रयास करते हैं. जबकि उनकी गर्भवती पत्नी (शिवदा)और बेटी स्नेहा( देवानंद )अनूप की मदद से भारतीय वायु सेना सही वक्त पर अस्पताल पहुॅचाने में कामयाब होती है.  मछुआरे के बेटे निक्सन (आसिफ अली ) इस बात से आहत हैं कि कैसे उनकी गर्ल फ्रेंड के पिता ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया, जिससे उन्हें और उनके मछुआरे परिवार को शर्मिंदगी उठानी पड़ी.  अपने पिता के साथ झगड़ा होने पर वह उस क्षेत्र को छोड़ देता है,लेकिन वह संकट की घड़ी में वहां आकर ख्ुाद मछुआरा बन हर इंसान को सुरक्षित जगह पहुॅचाने,उनकी जिंदगी बचाने में लग जाता है.  फिल्म में तमिलनाड़ु के ट्क चलाने वाले सेतुपति(कलैया सरन ) को केरला से लगाव नही है. उसके इरादे खराब हैं. वह अपने ट्क में बारूद का सामान लेकर जा रहा होता है. बारिश में सारे साधन बंद हो जाने पर वह अनिच्छा से रमेशन (विनीत श्रीनिवासन )को अपने ट्क में यात्रा करने देता है. रमेशन व उसके मित्र किसी तरह अपनी शादी बचाने की उम्मीद में दुबई से वापस आया है.  संकट की घड़ी और दो अच्छे लोगों की कंपनी सेतुपति का दिल बदल देती है और वह सारा बारूद समुद्र में फेंक देता है.  राहत केंद्रों-अस्पतालों, स्कूलों, पूजा स्थलों में फंसी महिलाओं ,बच्चों व बूढ़ों की मदद करने में महिलाएं भी पीछे नही है.  केरला राज्य मे ंनई भर्ती हुई स्कूल षिक्षक मंजू (तन्वी राम ) भी अनूप की तरह दयालु है. स्कूल में पहले दिन ही वह बच्चों का विश्वास जीतने के लिए उनके लिए टॉफी लेकर आती है.

लेखन व निर्देशनः

एक कसी हुई पटकथा, सत्यपरक चरित्र चित्रण,कलाकारों का तार्किक अभिनय, बेहतरीन तकनीकीटीम के चलते फिल्म मनोरंजक होने के साथ ही देखने योग्य व सोचने पर मजबूर करती है. इस तरह के विशय पर पूरी संवेदनषीलता व मानवीय धरातल पर यथार्थ के साथ फिल्म को दर्षकों तक पहुॅचाना जूड एंथनी जोसेफ जैसे बिरले निर्देशक ही कर सकते हैं.  फिल्मकार जोसेफ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उन्हेाने विपदा के वक्त लोगों के संघर्षों को चित्रित करने के साथ ही जीवित बचे लोगों के प्रति सहानुभूति भी पैदा करते हैं. फिल्मकार ने समाज में मौजूद हर किरदार को बारीकी से पकड़कर अपनी फिल्म में पेश किया है. फिर चाहे वह नेकदिल अनूप हो या क्षुद्र और अहंकारी इंसान हो अथवा अपने परिवार के सदस्यों सहित कुछ लोगों के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया रखने वाले इंसान हो.  फिल्मकार जोसेफ इमानदारी के साथ यथार्थ के धरातल पर प्राकृतिक आपदा की इस कहानी को पेश करते हुए प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ने में मानवीय भूमिका का जिक्र करने से परहेज नही करते हैं.  अपनी ‘ओहम षंाथी ओषान’’, ‘‘ओटी मुथासी गढा’ और ‘‘सारास’ जैसी सफल रोमांटिक हास्य फिल्मों की वजह से जूड एंथेनी जोसेफ की जो पहचान है,उसे देखते हुए उनसे किसी ने भी इस तरह की संवेदनषील,भावनात्मक,रोंगटे खड़े कर देने वाले दृष्यों वाली फिल्म की उम्मीद नही की थीं. पूरी फिल्म के दौरान वह लगभग पांच साल पहले हुई त्रासदी पर दोबारा गौर करने पर किसी को भी असहज या व्यथित महसूस नही कराते.  इतना ही नहीं वह पूरी फिल्म में राजनीतिक टिप्पणी करने से भी बचे हैं. जबकि हमने पढ़ा था कि बाढ़ की विनाशलीला के वक्त जिन मछुआरों ने मलियालियों की मदद की थी,बाद में जब उन्हे मदद की जरुरत पड़ी,तो उनके साथ दुब्र्यवहार किया गया.  जी हाॅ! केरला में मछुआरों की अपनी जिंदगी व महत्व है. फिल्म मछुआरों को महत्व देने से नही बचती,जिन्होने बाढ़ की विपदा के वक्त केरल की अपनी सेना की तरह काम किया था. वह परोपकारी बचाव कार्यों का नेतृत्व करते हुए कई मलयाली लोगों को बचा रहे थे. यहां तक कि जब सरकार के प्रयास विफल हो गए,तब मछुआरे आगे बढ़कर निःस्वार्थ भाव से लोगों की जिंदगी बचाते हैं.  फिल्म में एक दृष्य है जब दबंग लड़के अनूप को देखकर हिंदी फिल्म ‘बार्डर’ के गीत ‘‘संदेशे आते हैं. . ’उसे देखकर गाते हैं. यह दृष्य मणिरत्नम,ए आर रहमान सहित उन लोगों के मंुॅह पर तमाचा है,जो हिंदी भाषा के विरोध का राग अलापते रहते हैं.  अनूप के किरदार के माध्यम से फिल्मकार ने इस बात को रेखंाकित किया हैै कि भारतीय सशस्त्र बलों का सम्मान देश भर का हर नागरिक करता है और आर्मी का प्रषिक्षण कभी जाया नही जाता.  फिल्मकार ने इस बात को भी बड़ी खूबसूरती से चित्रित किया है कि आम समय में हम सभी किस तरह एक ध्रुवीकृत दुनिया में रहते हैं, लेकिन आपदा के समय में सभी सच्ची मानवीय भावना का परिचय देते हैं. विपदा के वक्त लोगों का जीवन बचाने के लिए हर इंसान व्यक्तिगत व सामाजिक पहचान से परे हो जाता है. लोग किस तरह से अपने हर आपसी मतभेद को भुलाकर एक दूसरे की मदद करने लगते हैं.  फिल्मकार जूड एंथनी जोसेफ राजनीति से परे एक दृष्टिकोण पेश करते हुए 2018 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और केंद्र सरकार द्वारा की गयी मदद व राहत कार्यों का उल्लेख करने से पीछे नही रहते. फिल्मकार ने विशेश समुदाय पर आत्म- आत्मनिरीक्षण करने का दायित्व डाला है. फिल्मकार ने जहां दक्षिणपंथियों को सूक्ष्म संदेश दिया है,वहीं वामपंथी और धर्मनिरपेक्ष दलों की चापलूसी नहीं की है. फिल्म कुछ नौकरशाही पर सवाल भी उठाती है. फिल्म के पात्र राज्य के भीतर विभिन्न संस्कृतियों, वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं. फिल्म में एक दृष्य है जहां पादरी चर्च के दरवाजे पीड़ितों के लिए नहीं खोलना चाहता,पर अंततः वह ऐसा करता है. इस दृष्य के माध्यम से फिल्मकार ने यह संदेश दिया हे कि विनम्रता के साथ किसी का भी हृदय परिवर्तन किया जा सकता है.  फिल्म हर इंसान को हीरो बताते हुए त्रासदियाँ,नुकसान,आपदा की भयावहता और अंततः यथार्थवाद का एहसास कराने में सफल रहती हैं. बाढ़ की विपदा का चित्रण करते हुए फिल्मकार अनूप व मंजू के रिश्ते को ठीक से चित्रित नही कर पाए.  फिल्मकार की कमजोर कड़ी यह है कि केरल में मूसलाधार बारिश व बिजली गिरने के दौरान मच रही तबाही के बावजूद मोबाइल नेटवर्क पूरी तरह सक्रिय हैं. षायद फिल्मकार ने लोगों की जिंदगी बचाने के एक साधन के तौर मोबाइल नेटवर्क को बाधित नही किया. इसी तरह फिल्मकार की कमजोर यह है कि उन्होने अपनी फिल्म में महिलाओं को कम महत्व दिया है. जबकि हमने पढ़ा है कि उस वक्त वहां कि हजारों महिलाओं ने भी वीरता व दयालुता के उदाहरा पेश किए थे. स्कूल षिक्षक मंजू के किरदार को ठीक से विकसित नहीं किया गया.  तूफानी मौसम में फंसे दो पोलिश पर्यटकों की उपस्थिति और स्थानीय लोगों द्वारा गर्मजोशी से दनका स्वागत किए जाने के दृष्यों से फिल्मकार ने केरल पर्यटन को बढ़ावा देने का काम किया है.  कैमरामैन अखिल जॉर्ज की तारीफ करनी पड़ेगी,जिन्होने बारिश,पीड़ितो व जमीन के नीचे दब गएउ माकन वगेरह के दृष्यों को अपनी कलात्मक खूबी से परदे पर उतारने के साथ ही इंसानी भावनाओं को भी कैमरे में कैद किया है.  एडीटर चमन चाको ने भी सही काम किया है. नोबिन पॉल का संगीत और विष्णु गोविंद की ऑडियोग्राफी भी शानदार माहौल बनाने में योगदान करती है.

अभिनयः

यूं तो फिल्म के सभी कलाकारों ने असाधारण अभिनय कौशल का प्रदर्शन किया हे. लेकिन सेना में असफल और अपने देश को छोड़कर संयुक्त अरब अमीरात में बसने की लालसा रखने वाला युवक बाढ़ की विपदा के वक्त हर समुदाय के लोगों की जिंदगी बचाते हुए हीरो बन जाने वाले अनूप के किरदार में टोविनो थामस का अभिनय षानदार है. वैसे भी 2012 में अभिनय कैरियर की षुरूआत करने वाले टोविनो थामस अब तक ‘ए बीसीडी’,‘चार्ली’,‘मिनाल मुरली’सहित तकरीबन 45 फिल्मों में अभिनय कर अपनी एक अलग पहचान बना चुके हैं.  टीवी रिपोर्टर एन मारिया के किरदार में अपर्णा बालमुरली भी लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं. छोटे किरदार में तन्वी राम अपनी उपस्थिति दर्ज कराने मे सफल रहती हैं. निकसन के किरदार में आसिफ अली भी अपने अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं.

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