रेटिंगः चार स्टार

निर्देशकः तुशार हीरानंदानी

कलाकारः तापसी पन्नू,भूमि पेडणेकर, विनीत कुमार सिंह, प्रकाश झा...

अवधिः दो घंटे 28 मिनट

सपने देखने और उनको पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती.  हर इंसान को खुद ही अपने सपने पूरे करने के लिए प्रयास करना होता है, कोई अन्य किसी के भी सपने पूरा नही कर सकता. यह बात लोगों को भले ही अब तक किताबी ज्ञान लगता रहा हो.  मगर बागपत की दो शार्प शूटर दादीयों चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर के जीवन की असली कहानी को फिल्म‘‘सांड की आंख’’में पेशकर फिल्मकार तुशार हीरानंदानी ने बता दिया कि यह महज किताबी ज्ञान नही,बल्कि कटु सत्य है. यूं भी चंद्रो और प्रकाशी तोमर की बहादुरी, कुछ कर दिखाने का जज्बा पूरे देशवासियों के लिए प्रेरणा स्रोत व मिसाल से कम नही है.  इस फिल्म देखकर हर इंसान,बच्चे से बूढ़े तक प्रेरित हुए बिना नही रह सकते.

कहानीः

कहानी बागपत जिले के जोहरी गांव के एक तोमर परिवार की है,जिसके मुखिया रतन सिंह तोमर( प्रकाश झा)गांव के सरपंच भी हैं. रतन सिंह तोमर दकियानूसी विचारों के है.  बहुत सख्त हैं.  उनसे उनके छोटे भाई भी डरते हैं. रतन सिंह तोमर के दो छोटे भाई हैं.  इनकी पत्नियां क्रमशः चंद्रो तोमर ( भूमि पेंडणेकर)और प्रकाशी तोमर (तापसी पन्नू) हैं.  इन औरतों की पूरी जिंदगी घूंघट काढ़कर घर का काम करने के अलावा खेत पर काम करने, ईंट भट्टा पर काम करने, पतियों के लिए हुक्का बनाने तक ही सीमित रहती है.  गांव का ही एक लड़का यशपाल ( विनीत कुमार सिंह) जो कि रतन सिंह का भतीजा लगता है, दिल्ली जाकर डाक्टर बन जाता है.  मगर कुछ दिन बाद वह निशानेबाजी शूटिंग का कोच बनकर गांव लौटता है. गांव के सरपंच से इजाजत लेकर वह गांव में निशाने बाजी सिखाने का काम शुरू कर देता है.  यशपाल का सहायक है फारूक(नवनीत श्रीवास्तव).

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