मुंबई में 26 साल पहले यानी 5 मई 1992 को जब चर्चगेट और बोरीवली स्टेशनों के बीच विश्व की पहली ‘महिला विशेष’ ट्रेन सेवा शुरू हुई थी तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि आने वाले समय में लेडीज स्पेशल की यह मिसाल महिलाओं को बैक सीट से फ्रंट सीट तक ले जायेगी. तब से अब तक महिलाएं रोज इस भीड़भाड़ भरी ट्रेनों के लेडीज स्पेशल में मर्दों की दुनिया में अपनी पहचान दर्ज कर रही हैं.

महिलाएं सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक, इन तीन मोर्चों पर ही पाबंदियों की शिकार होती हैं. या यों कहें कि इन्हीं तीन मोर्चों पर वे रोजमर्रा की जिन्दगी में जद्दोजहद करती हैं. ऐसे में सोनी टीवी का नया शो लेडीज स्पेशल भी ऐसी ही तीन महिलाओं की कहानी बयां करता है. लेडीज, स्पेशल ट्रेन में साथ साथ सफर करती हैं और अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए संघर्ष भी. उम्मीद, दोस्ती, आकांक्षाओं और नारीत्व के अलग-अलग पहलुओं को रोचक अंदाज में पेश करता यह धारावाहिक आज के सासबहू नुमा सीरियल्स की परिपाटी को तोड़ रहा है. सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयों को आधार बनाकर धारावाहिक कम ही बनते हैं, जो बनते भी हैं वे शुरुआती एपिसोड्स के बाद फिर उसी ड्रामे के ढ़र्रे पर आ जाते हैं लेकिन लेडीज स्पेशल के साथ ऐसा नहीं लगता.

लेडीज स्पेशल विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठ भूमि से संबंधित तीन अलग-अलग व्यक्तित्वों की यात्रा को सामने लाती है, जो एक-दूसरे से लेडीज स्पेशल लोकल ट्रेन पर मिलती हैं. दिलचस्प बात यह है कि इसकी कहानियां और पात्र शहरी भारत के मध्यम वर्ग के जीवन की वास्तविकता दर्शाते हैं. इस धारावाहिक को निर्माता विपुल डी शाह के आप्टिस्टिक्स एंटरटेनमेंट के बैनर तले बनाया गया है. इस में गुजराती, मराठी और उत्तर भारतीय संस्कृति के किरदारों को अहमियत दी गयी हो.

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