Flop Bollywood: हाल ही में रिलीज 2 बड़ी फिल्में जो 400 और 500 करोड़ की लागत से बनी हैं, रजनीकांत नागार्जुन की फिल्म कुली और रितिक रोशन द्वारा अभिनित ‘वार 2’ ने बौक्स औफिस पर कलैक्शन के मामले में निराश किया. इन फिल्मों पर दर्शकों और बौलीवुड वालों की बहुत उम्मीदें टिकी थीं जो निराशा में बदल गईं. ऐसे में सवाल यही उठता है कि बड़ी फिल्में, बड़े स्टार, बड़ी लागत और कड़ी मेहनत के बावजूद बौलीवुड की कई सारी फिल्मों को असफलता का आईना क्यों देखना पड़ता है?
आज के समय में 100 रिलीज फिल्मों में से ज्यादा से ज्यादा 5 फिल्में सफल होती हैं और बाकी 95 बौक्स औफिस पर पानी भी नहीं मांगतीं. मंझे हुए कलाकार, नामीगिरामी प्रोडक्शन हाउस और प्रोड्यूसरडाइरैक्टर की फिल्में आखिर किन कारणों से फ्लौप हो जाती हैं?
पेश है फ्लौप फिल्मों की लंबी कतार की वजह पर एक नजर…
हिंदी के बजाय अंगरेजी भाषा से प्रभावित
जब हम किसी भाषा से रिलेट करते हैं तो हम उसी भाषा में सोचते हैं, हमारे अंदर की भावनाएं भी उसी भाषा से प्रेरित होती हैं. जैसेकि अगर हम हिंदी भाषी हैं तो हमारी सोच भी हिंदी भाषा में ही होगी न कि हम तेलुगु और तमिल भाषा में सोचेंगे.
ठीक वैसे ही जब हम जिस भाषा में सोचतेबोलते और अपनी भावनाओं को उसी भाषा के जरीए व्यक्त करते हैं तो उस का प्रभाव भी अलग होता है जैसेकि एक ऐक्टर जब अपनी भाषा में कोई भावनात्मक डायलौग बोलता है तो वह अपने अभिनय के जरीए सही तरीके से व्यक्त कर पता है लेकिन अगर वही डायलौग उसे अंगरेजी भाषा में लिखा मिले तो उस संवाद के इमोशंस को व्यक्त करना उस ऐक्टर के लिए मुश्किल हो जाता है.
मगर आज के समय में जहां आज की पीढ़ी भले ही हिंदी सिनेमा देखती है लेकिन उस युवा पीढ़ी के बच्चे हिंदी ठीक से नहीं जानते, न ठीक से लिखना और न ठीक से बोलना क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति के भारत पर प्रभाव के चलते ज्यादातर स्कूलकालेज अंगरेजी भाषा के ही हैं, हिंदी भाषा के स्कूल न के बराबर है, जिस के चलते बचपन से ही अंगरेजी भाषा में पढ़ाई करने वाले बच्चे जब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ते हैं तो भाषा से प्रभावित यह पीढ़ी बौलीवुड से ज्यादा हौलीवुड की फिल्में देखना पसंद करती है, वह सोचती भी इंग्लिश में ही है और बोलती भी इंग्लिश में ही है, अपनी भावनाओं को इंग्लिश में ही लिख कर व्यक्त करती है.
इस पीढ़ी के नवयुवक अगर किसी प्रोडक्शन हाउस में बतौर असिस्टैंट डाइरैक्टर, राइटर, ऐडिटर, के रूप में जुड़ते हैं तो वे सारे संवाद हिंदी में लिख कर देने के बजाय अंगरेजी में ऐक्टर को लिख कर देते हैं. ऐसे में जब एक बौलीवुड ऐक्टर हिंदी के बजाय अंगरेजी में सारे डायलौग और सीन लिखता है, तो उसे ठीक ढंग से पेश करने में उस ऐक्टर को दिक्कत आती है, जिस के चलते सीन के मुताबिक वह न तो अच्छे से डायलौग बोल पाता है और न ही अच्छे से एक्सप्रैशन दे पाता है.
ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि बौलीवुड के कई दिग्गज ऐक्टरों का यह कहना है जैसे अमिताभ बच्चन, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, पंकज त्रिपाठी जैसे दिग्गज कलाकारों का कहना है की इंग्लिश में लिखे हुए डायलौग उन की ऐक्टिंग पर गलत प्रभाव डालते हैं, इंग्लिश में लिखे डायलौग याद करने में और उन्हें अपनी तरह से व्यक्त करने में परेशानी होती है.
कमजोर कहानी
शायद यही वजह है कि फिल्मों में खासतौर पर कहानी का स्तर दिनबदिन गिर रहा है क्योंकि जो लेखक हिंदी में अच्छी कहानी लिखना जानते हैं निर्माता उन तक पहुंच नहीं पाते या पहुंचना नहीं चाहते क्योंकि वे रिस्क नहीं लेना चाहते.
किसी नए लेखक पर विश्वास कर के उस की दी हुई कहानी पर फिल्म बनाने के बजाय आज मेकर्स साउथ या हौलीवुड फिल्मों की सफल फिल्मों के रीमेक बनाना ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि उन के हिसाब से इस में खतरा कम होता है क्योंकि साउथ या हौलीवुड में बनी वह फिल्म पहले से सुपरहिट है तो उस का हिंदी रीमेक हिट हो ही जाएगा और अंगरेजी में स्क्रिप्ट लिखने वाले लेखक हिंदी भाषा की गहराई और भावनाओं को व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं और रीमेक फिल्मों के पीछे भागने वाले मेकर्स की फिल्मों में कहानी छोड़ कर बाकी सबकुछ होता है. आज के जमाने में ओटीटी और छोटे परदे के चलते दर्शक कहानी को ले कर बहुत समझदार हैं.
इस मामले में दर्शक कोई समझौता नहीं करते. यही वजह है कि फिल्म चाहे रजनीकांत की हो, सलमान खान की हो यह रितिक रोशन की, अगर कहानी में दम नहीं है तो वे फिल्में बौक्स औफिस पर कोई कमाल नहीं दिख पातीं.
फ्लौप फिल्मों की लंबी कतार
कई सुपर स्टार ऐक्टर कमजोर कहानी और खराब ऐडिटिंग और कमजोर डाइरैक्शन के चलते बिग बजट फ्लौप फिल्म दे चुके हैं. फिर चाहे वह शाहरुख खान हों, सलमान खान हों, अजय देवगन हों, अक्षय कुमार या सनी देओल हों या फिर आमिर खान ही क्यों न हों. इन सभी ऐक्टरों ने सिर्फ अपने दम पर फिल्म हिट करने की कोशिश की, कहानी पर ध्यान नहीं दिया जिस के चलते इन्हें भारी असफलता का मुंह देखना पड़ा.
इस के विपरीत नए कलाकारों से सजी कम बजट की फिल्म जिस की कहानी और मेकिंग दोनों दमदार होने की वजह से 500 करोड़ तक का बिजनैस कर गई, जिस के बाद इस फिल्म ने पुराने दिग्गज और ऐक्टरों को सोचने पर मजबूर कर दिया.
कमजोर डाइरैक्शन
फिल्मी इतिहास गवाह है कि हीरो नया हो या पुराना फिल्में वही चलती हैं जिन की कहानी दमदार होती है और जो कहानी मास और क्लास से जुड़ी होती है, दर्शकों के दिल को छूने की ताकत रखती है, वही फिल्म हमेशा के लिए इतिहास रचती है. अच्छी कहानी के साथ अच्छा डाइरैक्शन एडिटिंग, अच्छे सिनेमा की जान होती है. लेकिन सबकुछ अच्छा होने के बावजूद अगर कहानी कमजोर होती है तो भी फिल्म असफलता का मुंह देखती है क्योंकि एक फिल्म की आत्मा कहानी होती है जो पूरी फिल्म को सही दिशा में ले जाती है.
मगर इस अहम बात को तवज्जो न देते हुए बौलीवुड ऐक्टर जो पहले एक आम कलाकार थे उन्हें लगता है कि सिर्फ उन के दम पर फिल्म हिट होगी. ऐसे ही कई सुपरस्टारों की फिल्में बौक्स औफिस पर पानी भी नहीं मांग रहीं. फिर चाहे वे सलमान खान की फिल्में ‘सिकंदर’ से पहले ‘किसी का भाई किसी की जान,’ ‘भारत,’ ‘जय हो,’ ‘ट्यूबलाइट,’ ‘रेस 3’ आदि हों या शाहरुख खान की ‘पठान’ और ‘जवान’ से पहले ‘जीरो,’ ‘फेन,’ ‘जब हैरी मेट सेजल,’ ‘अशोका,’ ‘डियर जिंदगी’ आदि फ्लौप फिल्में हों या अक्षय कुमार की ‘सम्राट पृथ्वीराज,’ ‘रक्षाबंधन,’ ‘बच्चन पांडे,’ ‘सेल्फी,’ हालिया रिलीज फिल्म ‘खेलखेल में,’ आमिर खान की ‘लाल सिंह चड्ढा,’ सनी देओल की ‘मोहल्ला अस्सी,’ ‘हीरोज,’ ‘चुप,’ अजय देवगन की फिल्में ‘मैदान,’ ‘एक्शन जैक्सन,’ ‘रनवे 34,’ ‘हिम्मतवाला,’ ‘थैंक गौड’ आदि फ्लौप फिल्में ही क्यों न हों. इन सभी हिट हीरोज की फ्लौप फिल्मों के पीछे एक ही कौमन वजह थी और वह थी फिल्म की कमजोर कहानी.
ज्यादा फिल्में बनाने का दबाव
आज के समय में पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा फिल्में बनती हैं और पहले के मुकाबले ऐक्टरों को भी इतनी ज्यादा सुविधाएं हैं कि उन्हें फिल्म की शूटिंग के दौरान ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ता. लेकिन बावजूद इस के 100 में से 1 या 2 फिल्में हिट होती हैं और बाकी फिल्मों का पता ही नहीं चलता. ऐसे में क्या वजह है कि बिग स्टार और बिग बजट फिल्में दर्शकों के गले नहीं उतरतीं? खास वजह यह है कि आज के फिल्म निर्मातानिर्देशक और ऐक्टर पहले की तरह दिल से चुनाव नहीं करते.
फिल्म में काम करना आज के समय में पैशन से ज्यादा प्रोफैशन बन गया है जिस के चलते ऐक्टर फिल्म में ऐक्टिंग से ज्यादा प्रमोशन पर ध्यान देते हैं, बड़ेबड़े ऐक्टर अपनी फिल्म को बेचने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं, फिर चाहे पब्लिकली जा कर पत्रकार की तरह रिव्यू लेना हो, वड़ापाव बेचना हो या मौल में जा कर डांस करना हो, लेकिन फिल्म को बेहतर बनाने के लिए क्या किया जाए इस पर उन का कम ध्यान होता है.
आज के समय में ज्यादातर हीरोज या तो किसी साउथ फिल्म की रीमेक फिल्म में काम कर रहे हैं या अपनी ही पुरानी किसी हिट फिल्म की फ्रैंचाइजी में काम कर रहे हैं जैसे सलमान ‘किक 2,’ ‘बजरंगी भाईजान 2’ ‘दबंग 4,’ टाइगर श्रौफ ‘बागी 4,’ रितिक रोशन ‘वार 2’ ‘कृष 4,’ अक्षय कुमार ‘हाउस फुल 5,’ ‘जौली एलएलबी 2,’ ‘वैलकम 3,’ ‘हेराफेरी 3,’ अजय देवगन ‘रेड 2,’ ‘सन औफ सरदार 2,’ ‘धमाल 3’ आदि ज्यादातर ऐक्टर नई कहानी पर आधारित फिल्मों के बजाय सीक्वल या रीमेक फिल्मों में काम करने में लगे हुए हैं. बाकी साउथ के निर्देशकों को सफलता की कुंजी मान कर उन के साथ काम कर के अपना कैरियर बचाने में लगे हैं. लेकिन फिल्म की बैक बोन फिल्म की कहानी को नजरअंदाज कर रहे हैं.
यही वजह है फिल्म करोड़ों की लेकिन बौक्स औफिस पर कलैक्शन जीरो का जो फिल्मों की लोकप्रियता को धीरेधीरे अंधकार की ओर ले जा रहा है.
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