पिछले कुछ वर्षों में, स्त्री रोग (गायनेकोलॉजी) से जुड़े मामलों में लेप्रोस्कोपिक सर्जरी काफी प्रभावशाली साबित हुई है. इन मिनिमली इनवेसिव प्रक्रियाओं में स्त्री रोग से जुड़े मामलों में बीमारी का पता लगाने और इलाज करने के लिए छोटे कट लगाए जाते हैं और स्पेशलाइज्ड उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है. लैप्रोस्कोपी सर्जरी ने गायनेकोलॉजी के क्षेत्र में क्रांति ला दी है जिससे मरीज की रिकवरी कम वक्त में हो जाती है, निशान कम आते हैं और बेहतर परिणाम आते हैं. गुरुग्राम के सीके बिरला हॉस्पिटल में ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी विभाग की डायरेक्टर डॉक्टर अंजलि कुमार ने इस विषय पर विस्तार से जानकारी दी.

  1. लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी

परंपरागत रूप से, हिस्टेरेक्टॉमी (सर्जरी के जरिए यूट्रस निकालना) पेट में चीरे के माध्यम से की जाती थी, जिसमें मरीज की रिकवरी में लंबा समय लग जाता था. हालांकि, लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी एक मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया है जिसके चलते मरीज की रिकवरी तुरंत होती है, ऑपरेशन के बाद दर्द कम होता है और निशान भी बहुत कम होते हैं. रोबोटिक-असिस्टेड लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी जैसी एडवांस तकनीक से इलाज को और मजबूती मिली है. इसमें, जटिल शारीरिक संरचनाओं को भी डॉक्टर ज्यादा आसानी से नेविगेट कर लेते हैं और ऑपरेशन में इससे काफी मदद मिलती है. जिन महिलाओं को यूटेरिन फाइब्रॉएड, एंडोमेट्रियोसिस या पीरियड्स के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग होती है उनके लिए ये प्रक्रिया काफी कारगर है.

2. एंडोमेट्रियोसिस

एंडोमेट्रियोसिस में यूट्रस के बाहर एंडोमेट्रियल टिशू बढ़ जाते हैं. ये गंभीर पेल्विक पेन और बांझपन का कारण बन सकता है. एंडोमेट्रियोसिस घावों के लिए लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया एक बहुत ही स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट मेथड बन गया है. इसमें डॉक्टर एंडोमेट्रियोसिस इम्प्लांट्स को विजुलाइज करने, उनका मैप बनाने, और ठीक से हटाने के लिए लेप्रोस्कोपिक उपकरणों का उपयोग करते हैं, जिससे मरीजों को लंबे समय तक राहत मिलती है. इन मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया से न केवल लक्षण कम होते हैं, बल्कि प्रजनन क्षमता भी इससे प्रिजर्व होती है. महिलाओं को इसका काफी लाभ मिलता है.

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