क्या आप जानते है कि सांस लेने की फ्रीक्वेंसी भी कोरोना को बढ़ाने में मदद करती है? इस बारें में मद्रास आईआईटी के रिसर्चर्स ने पाया कि जो लोग जल्दी-जल्दी सांस लेते है उनके वायरस युक्त ड्रापलेट्स तेजी से इस संक्रमण को फैलाने में समर्थ होते है, जबकि धीरे-धीरे सांस लेने वाले व्यक्ति इसे जल्दी नहीं फैला पाते. इस शोध को नवम्बर 2020 में प्रसिद्ध इंटरनेशनल जर्नल peer- reviewed Physics of Fluids में भी पब्लिश किया गया है.

इस बारें में एप्लाइड मेकानिक्स के प्रोफेसर महेश पंचाग्नुला का कहना है कि सांस लेने की फ्रीक्वेंसी में अंतर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में होता है, ऐसे में कोविड 19 के ड्रापलेट्ससांस के द्वारा अंदर जाने पर फेफड़े की मेकेनिक्स पर असर डालती है. स्लो ब्रीदिंग और फ़ास्ट ब्रीदिंग में अंतर होता है. धीरे-धीरे सांस लेने को सबसे अधिक अच्छा माना जाता है. रिसर्च में ये बात सामने आई है कि मास्क पहनने से ट्रांसमिशन रिस्क बहुत कम होता है. जल्दी-जल्दी सांस वे लेते है, जो घबराहट में होते है या उनकी शारीरिक बनावट ऐसी होती है कि वे तेजी से हमेशा ही सांस लेते है. इसके अलावा रिसर्च में ये भी पता चला है कि हर इंसान के फेफड़ोंकी आकृति में भी फर्क होता है. व्यक्ति के फेफड़े कीसूक्ष्म सांस नलिकाएं छोटी है या बड़ी, उस आधार पर कोरोना संक्रमण के आने और न आने की संभावना बढ़ती और घटती है. इसमें जिनके ब्रोंकियल थोड़ी फैली हुई होती है,उन्हें संक्रमण अधिक होने की संभावना होती है. लेकिन यहाँ ये मुश्किल है कि आप ब्रोंकियल का टेस्ट नहीं करा सकते, ताकि आप इसके आकार को जान पाए,क्योंकि इसकी सुविधा मेडिकल में नहीं है. अगर ब्रोंकियल थोडा फैला हुआ या बड़े डायमीटर का है, तो सांस लेने पर ड्रापलेट्स अंदर तक जाने के साथ-साथ ब्लड तक भी पहुँचने की सम्भावना अधिक रहती है.

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