37 साल की विद्या स्कूल में प्रिंसिपल है. उस की बेटी 8वीं क्लास में है और पति प्राइवेट फर्म में मैनेजर हैं. कहने को उस की लाइफ काफी सैटल है. उसे कोई परेशानी भी नहीं जिस के पीछे वह अपना दिमाग लगाए. मगर हकीकत में वह मन से काफी परेशान रहती है. कभी स्कूल परफौर्मैंस तो कभी रिश्तों से जुड़ी अपेक्षाएं, कभी बेटी की चिंता, तो कभी पति पर शक यानी हमेशा किसी न किसी उलझन में डूबी रहती है.

उस के दिमाग में विचारों के झंझावात चलते ही रहते हैं, जिस का नतीजा यह है कि वह तनाव में रहती है. चिड़चिड़ापन उस के स्वभाव का हिस्सा बन गया है. इस की वजह से उसे कई बार काफी परेशानियों का भी सामना करना पड़ा है. उस के चेहरे से स्वाभाविक मुसकान गायब रहती है. रिश्तों में भी तलखियां बढ़ने लगी हैं. नतीजा, खुशहाल जिंदगी होने के बावजूद वह खुश नहीं, स्वस्थ दिखने के बावजूद स्वस्थ नहीं.

आज हम ने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ रखे हैं. स्वास्थ्य और विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति के साथ हम ने विकास की पराकाष्ठा को भी हासिल कर लिया है. हम हर माने में आधुनिक हो चुके हैं. सुविधा की हर चीज है हमारे पास. जिस से जब चाहें संपर्क कर सकते हैं, जहां चाहें जा सकते हैं. अपने दिल के काम कर सकते हैं. फिर भी कहीं न कहीं हम परेशान हैं. कोई न कोई बात हमारे दिमाग में चलती ही रहती है और हम टैंशन में आ जाते हैं.

दुनिया का 10 में से हर चौथा इंसान अपनी सोचने की क्षमता से ज्यादा सोचता है और उन चीजों को ले कर उलझ जाता है जो बिलकुल भी उस के बस में नहीं होती हैं. इसे ही अधिक सोचने की बीमारी कहते हैं.

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