स्त्रीपुरुष के बीच शारीरिक संबंधों में पुरुष के आनंद को ले कर स्थिति बिलकुल साफ रही है. स्त्री अंगों से मिलने वाले सुख के अलावा जननांग में घर्षण और अंत में स्खलन पुरुष के आनंद की प्रमुख वजहें हैं. लेकिन स्त्री के मामले में ऐसा नहीं है. लंबे समय से यह रहस्य रहा है और अभी भी है कि जननांग के किस हिस्से में घर्षण से स्त्री को ज्यादा सुख या परमसुख की अनुभूति होती है? वैज्ञानिक भी लंबे समय से इस पर अध्ययन करते रहे हैं और उसी का नतीजा ‘जी स्पौट’ की खोज के रूप में सामने आया है. जी स्पौट का पूरा नाम ‘ग्रैफेनबर्ग स्पौट’ है. 1944 में जरमनी के गाइनोकोलौजिस्ट ग्रैफेनबर्ग ने इस की खोज की थी. उन्होंने अपनी खोज को मूत्रनली (युरेथरा) से जोड़ा था, जो बाहर आते समय स्त्री जननांग की सामने की दीवार से सट कर गुजरती है. ग्रैफेनबर्ग ने कहा था कि जब इस हिस्से पर पुरुष जननांग का दबाव पड़ता है तो युरेथरा पर भी दबाव पड़ता है और इस हिस्से के टिशूज फूल कर महिला को चरमआनंद की अनुभूति कराते हैं.

30-40 साल तक ग्रैफेनबर्ग की इस खोज पर दुनिया में किसी ने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया. 80 के दशक में यह मसला फिर से चर्चा में आया और डाक्टर एडिगो ने इसे ग्रैफेनबर्ग के नाम पर जी स्पौट का नाम दिया. इसी दशक में हुए अन्य अध्ययनों से दुनिया भर में जी स्पौट की चर्चा शुरू हो गई और यह माना जाने लगा कि यह वास्तव में वह स्थान है, जिस के जरीए कोई महिला चरमआनंद हासिल करती है. इतना होने के बावजूद वैज्ञानिक बिरादरी में जी स्पौट को ले कर संशय बना रहा, क्योंकि अभी तक यह स्पौट स्कैन नहीं हो पाया था. 2008 में इटली के वैज्ञानिकों ने यह दावा किया कि उन्होंने अल्ट्रासाउंड के जरीए कुछ महिलाओं में वैजाइना और युरेथरा के बीच में एक उभरा क्षेत्र पाया है, लेकिन 2 साल बाद ही लंदन के वैज्ञानिकों ने 1 हजार महिलाओं से बातचीत के आधार पर घोषणा की कि जी स्पौट जैसी कोई चीज होती ही नहीं है. फिर उसी साल यानी 2010 में फ्रांस के वैज्ञानिकों ने लंदन के वैज्ञानिकों की बात को नकारते हुए कहा कि आधी से ज्यादा महिलाओं में यह स्पौट होता है.

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