2016 में वॉल स्ट्रीट जर्नल ने बताया कि  जो भारतीय मिलेनियल है वह हफ्ते में औसतन 52 घंटे काम करते हैं. यह आंकड़ा अन्य 25 देशों की तुलना में काफी ज्यादा है. ऑफिस पोलिटिक्स, फटालिटी की प्राथमिकता, परफार्मेंस प्रेशर से एम्प्ल्योई के मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है. जिसकी वजह से देश में 10 में से 4 वर्किंग प्रोफेशनल्स डिप्रेशन या एंग्जाइटी से पीड़ित हो रहे हैं.

मानसिक स्वास्थ्य की बीमारी का वर्कप्लेस प्रोडक्टिविटी पर गंभीर प्रभाव पड़ता है. वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य की बीमारी के कारण प्रोडक्टिविटी की कमी होने से ग्लोबल इकॉनमी को लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हर साल होता है. वर्कप्लेस पर स्ट्रेस और मानसिक समस्याओं से सम्बंधित बढ़ती चिंता को तुरंत समझने की जरुरत है और एम्प्लोयी असिस्टेंस प्रोग्राम (EAP) में एम्प्लोयी की मद iiद करने के लिए प्रभावी तरीकों को लागू करने की जरुरत है.

तत्काल एम्प्लोयी के मेंटल हेल्थ की केयर जरूरी है.

पिछले 2 से 3 दशकों से भारत के प्राइवेट सेक्टर में ग्रोथ देखी गयी है, कई सारी एम्एनसी कंपनी अपने सेटअप को भारत में स्थापित कर रही हैं. हालांकि रोजगार के मौके में  बढ़ोत्तरी के साथ वर्कप्लेस पर स्ट्रेस से सम्बंधित समस्याएं भी बढ़ी हैं. SHRM की एक स्टडी में पता चलता है कि 500 एम्प्लोयी वाली फायनांस और बैंकिंग कंपनियों को स्ट्रेस से सम्बंधित समस्यायों की वजह से प्रोडक्टिविटी  कम होने के कारण 100 करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ता है. स्टडी में यह भी पता चला कि 10,000 एम्प्लोयी वाली ITES/IT कंपनियों को स्ट्रेस से प्रोडक्टिविटी  कम होने से 50 करोड़ रूपये का नुकसान झेलना पड़ता है.

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