Printed SilK Saree:  रेशम यानि सिल्क की साड़ियों को पारंपरिक और शानदार साड़ियों के रूप में माना जाता है, जो महिलाओं के लिए पारंपरिक शैली का एहसास कराती हैं. भारत में रेशम की साड़ियों के अलगअलग प्रकार हैं, जहां प्रत्येक अपने स्वयं के क्षेत्रीय और सांस्कृतिक महत्त्व को दिखते हुए बनाई जाती हैं. कुछ शहतूत रेशम जैसे बहुत महीन रेशम से बने होते हैं जबकि कुछ रेशम कपास से बने होते हैं, जिस से सूती रेशम साड़ियां बनती हैं. इस में बनारसी सिल्क साड़ियों से ले कर दक्षिण भारतीय सिल्क साड़ियों तक, प्रत्येक सिल्क साड़ी की अपनी विशिष्टता, सांस्कृतिक विरासत और शिल्प कौशल अपनेआप में अनूठी होती है.

सिल्क बनता कैसे है

यह एक खास तरह का कीड़ा होता है, जिस का वैज्ञानिक नाम बौंबेक्स मोरी है. यह कीड़ा सिर्फ 3-4 दिन ही जिंदा रहता है और सिर्फ 2-3 दिनों में ही कई अंडे दे देता है. इस के बाद ये कीड़ा अपने लार्वे से अपने चारों तरफ एक शेप बना लेता है यानि धागे का एक जाल सा बुन लेता है। ऐसा ही जाल मकड़ी भी बुनती है, लेकिन रेशम का कीड़ा अपने शरीर के चारों तरफ बुनता है.

इस के बाद यह लार्वा हवा के संपर्क में आ कर रेशम का धागा बन जाता है. फिर सिल्क अपने चारों तरफ जो धागा लिपटा है, उस से बाहर आने की कोशिश करता है. वैसे उस वक्त धागे के इस आवरण को ककून कहा जाता है. लेकिन अगर धागे के कोए से कीड़ा बाहर आ जाए, तो पूरा रेशम बिखर जाता है, इसलिए इस के निकलने से पहले ही इसे गरम पानी में डाल कर मार दिया जाता है. इस के साथ ही धागे को अलग कर दिया जाता है और धागे का पूरा रोल बना लिया जाता है. इस तरह सिल्क बनता है. फिर इसे जरूरत के अनुसार रंग दिया जाता है.

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