सास बहू का रिश्ता हमेशा से ही थोड़ा उलझा माना गया है मगर ऐसा है नहीं. बाकी सभी रिश्तों की तरह यहां भी समझदारी की ही जरूरत होती है. जितना एक लड़की के लिए ससुराल नया होता है उतना ही ससुराल वालों के लिए बहू को समझना.. सभी के लिए एक नयी शुरुआत होती है और समझने के लिए वक़्त चाहिए होता है.

हर व्यक्ति की सोच और व्यवहार अलग होता है और ये सब कुछ परिवार पर निर्भर करता है. जब भी हम बहू लाते हैं या बेटी देते हैं तो ये भी ध्यान में रखना चाहिए कि नए परिवार की सोच समझ कुछ न कुछ जरूर मिलती हो तो सामंजस्य करने में आसानी होती है और आने वाले नए मेहमान को पूरा समय देना चाहिए कि वो बेहतर समझ बना सकें.

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बहू जब ससुराल आती है तो उसकी बहुत सारी उम्मीदें और इच्छाएं होती है और साथ ही अंजाना डर भी.. ठीक उसी तरह सास और परिवार के अन्य लोग भी उम्मीदे लगाए होते हैं कि बहू उनके सोच और समझ के अनुसार ही रहे, खाए पिये.. यही उम्मीदें कभी कभी अनबन का कारण भी बन जाती है.. एक लड़की जिसने अपने 25-26 साल अपने हिसाब से परिवार में लाड़ दुलार में जिए है वो रातों इतनी समझदार नहीं हो सकती कि एक नए परिवार और उनकी तौर तरीके को सीख कर उनके अनुसार जिम्मेदारी ले ले. किसी भी नयी चीजें को समझने और उसे आत्मसात करने में वक़्त लगता है ठीक उसी तरह नए रिश्तों को समझने और महसूस करने में भी समय लगता है.

वैसे तो टेक्नोलॉजी और बदलते समय के साथ शादी से पहले न केवल लड़का लड़की बल्कि परिवार वाले भी मिलते जुलते रहते हैं तो थोड़ा समझ एक दूसरे के लिए विकसित हो जाती है मगर फिर भी घर में सभी को शुरू में सरल और सहज बर्ताव करना चाहिए. ये बात समझने की है कि जितना अटपटा बहू की बातों और आदतों से ससुराल पक्ष को लगता है उतना ही लड़की को भी सभी कुछ नया और अलग देखकर लगता है. दोनों ही पक्ष को समझने और एक दूसरे को वक़्त देने की जरूरत होती है.. घर का माहौल सरल रखें ताकि किसी को भी असुविधा होने पर स्वस्थ्य बात की जा सकें. सभी की अपनी कुछ आदतें होती है जिसे हम हमेशा फालो करना चाहते हैं.. बहू अगर कुछ ऐसा करती है तो जबरन दबाव डालकर न रोके अगर उसकी कोई खास इच्छा या शौक हो तो उसे पूरा करने दे तभी वो सबको अपना समझ पाएगी.. . ठीक उसी तरह हर परिवार के अपने कुछ मान्यताएं, रिवाज होते हैं जिसे सभी करते हैं और बहू से भी सीखने की उम्मीद की जाती है.. बहू को इसे सीखने, समझने की कोशिश करनी चाहिए ताकि वो खुद परिवार का हिस्सा बनकर पारिवारिक परंपराओं को आगे बढ़ा सकें.

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रिश्तों में स्पेस देना भी बहुत जरूरी है, एक बेटा जो अभी तक मां के अनुसार ही चल रहा होता है शादी के बाद एक लड़की के आ जाने से काफी वक़्त साथ ही गुज़ारतेहैं.. इससे कभी कभी मां के मन में असुरक्षा की भावना आने लगती है और ये चिढ़ कई  बार बात बात पर टोक कर या तानें के रूप में बाहर आती है.. यहाँ मां के साथ साथ बहू को भी समझना होगा.. माँ को अब लाड़ प्यार बहू बेटे को साथ करना चाहिए वहीं बहू को ध्यान रखना चाहिए कि माँ बेटे के बीच वो दरार की वजह न बनें और माँ बेटे की आपसी बातचीत को न बुरा माने और न ही हस्तक्षेप करें.. अगर कुछ मन मुटाव होता भी है तो इस पर खुल कर बातचीत कर लेनी चाहिए. नए घर में रहने और परिवार के रख रखाव और जिम्मेदारियों को जितना बेहतर सास बता, समझा सकती है उतना कोई भी नहीं.. नए परिवार में सास बहू का रिश्ता माँ बेटी से बढ़कर ही होना चाहिए जिसमें प्यार दुलार, नोक झोक और एक दूसरे को सुविधा देने की भावना होनी चाहिए.

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