नेहा की नई-नई शादी हुई है. वह विवाह के बाद जब कुछ दिन अपने मायके रहने के लिए आई तो उसे अपने पति से एक ही शिकायत थी कि वह उस का पति कम और ‘मदर्स बौय’ ज्यादा है. यह पूछने पर कि उसे ऐसा क्यों लगता है? उस का जवाब था कि वह अपनी हर छोटीबड़ी जरूरत के लिए मां पर निर्भर है. वह उस का कोई काम करने की कोशिश करती तो वह यह कह कर टाल देता कि तुम से नहीं होगा, मां को ही करने दो.

नेहा पति के ये सब काम खुद करना चाहती है, लेकिन उस की सास उसे कोई मौका नहीं देतीं. नेहा की मां माला ने बेटी को समझाया कि चिढ़ने और किलसने से कोई लाभ नहीं है. बेकार में अपना खून जलाओगी. मांबेटे की इस दोस्ती का खुलेदिल से स्वागत करो और फिर बड़ी होशियारी से उन के बीच अपनी जगह बनाओ. नेहा की बातें सुन कर माला को अपने पुराने दिन याद आ गए. जब वे इस घर में ब्याह कर आई थीं, इस समस्या को उन्होंने भी लंबे समय तक झेला था.

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नेहा की दादी भी अजय के सभी निजी काम खुद ही करती थीं. उन का कहना था कि उन्होंने बेटे को बहुत नाजों से पाला है, उसे अपने काम खुद करने की आदत नहीं है. उन्होंने बचपन से उस की हर छोटीबड़ी जरूरत का ध्यान रखा है. सुबह उठ कर चाय के पहले कप से ले कर नहाने का गरम पानी, अंडरगारमैंट्स, तौलिया, प्रैस किए हुए कपड़े, नाश्ता, लंच, जूतेजुर्राबें देना सब काम वे ही करती थीं.

सहज व स्वाभाविक

पति के जीवन में मां की इतनी ज्यादा भूमिका देख कर माला को भी बुरा लगता था. वे सोचती थीं कि अब उन का विवाह हो गया है तो ये जिम्मेदारियां उन्हें निभानी चाहिए. वैसे भी विवाह के शुरुआती दिनों में एकदूसरे के छोटेछोटे काम करना असीम सुख देता है, लेकिन माला को यह सुख कभी नहीं मिला. उन्होंने सास के हाथ से पति के काम की कमान लेने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे जितनी कोशिश करतीं, सास की पकड़ और मजबूत होती चली जाती. यह समस्या कोई नई नहीं है. हां, समय के साथ इस का स्वरूप थोड़ा बदला जरूर है. विवाह से पहले अधिकतर लड़कों का पूरापूरा झुकाव मां की तरफ होता है. बचपन से ही वे मां के सान्निध्य में पलेबढ़े होते हैं और युवावस्था में भी मां ही उन की सर्वेसर्वा होती है, जिस के साथ वे अपने मन की हर बात शेयर कर लेते हैं. इसलिए मां के साथ उन का प्रेम सहज व स्वाभाविक है. सब से पहली बात कि इसे अन्यथा न लें, चिढ़ें नहीं. अगर वे दोनों नहीं समझते हैं तो आप खुश रहें और खुद को उसी माहौल में ढालने का प्रयास करें.

क्या करें पत्नी 

बहुत कम पुरुषों को अपना काम खुद करने की आदत होती है. वे अपने हर छोटेबड़े काम के लिए मां पर निर्भर होते हैं. पुरुष के जीवन में विवाह बहुत बड़ा बदलाव लाता है और इस नए जीवन में उसे कदमकदम पर अपनी चिरपरिचित सहायिका की तलाश होती है. 25-30 साल तक वह अपनी हर छोटीबड़ी जरूरत के लिए जिस औरत पर निर्भर था, उस से एकदम से अपने को कैसे अलग कर ले? फिर पत्नी के साथ खुलने में उसे थोड़ा समय लगता है, इसलिए वह उतने अधिकार से हर काम पत्नी से नहीं कह सकता जितने अधिकार से वह अपनी मां से कह लेता है. इसलिए उसे कुछ काम पत्नी से करवाने में थोड़ी हिचकिचाहट होती है. अत: उसे थोड़ा समय दें.

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कुछ मांएं तो बेटे के विवाह के बाद उस के  निजी कार्यों से खुद को स्वयं ही अलग कर लेती हैं और यह जिम्मेदारी बहू को सौंप देती हैं. अगर आप की सास यह जिम्मेदारी एकदम से छोड़ने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं  उन्हें थोड़ा समय दें. इस से उन्हें बुरा नहीं लगेगा.अधिकतर मांएं अपने बेटे पर ज्यादा हक जमाती हैं. वे किसी न किसी बहाने बेटे को अपने साथ जोड़े रखना चाहती हैं. उन के मन में डर होता है कि विवाह होते ही बेटा पत्नी का हो जाएगा और उन्हें नहीं पूछेगा. बहू को सास के मन के इस डर को खत्म करना जरूरी है. उन्हें इस बात का एहसास कराना चाहिए कि वे सब परिवार में एकदूसरे के सुखदुख के पूरक हैं.

ज्यादातर घरों में झंझट बेटे की तनख्वाह को ले कर होता है. विवाह से पहले तक बेटा अपनी सारी तनख्वाह मां के हाथ पर रखता है, लेकिन विवाह के बाद पत्नी को लगता है कि पति की कमाई पर तो सिर्फ उस का अधिकार है. यह सोच गलत है, पति की कमाई पर सिर्फ उसी का नहीं, उस की मां का भी अधिकार है. अगर सारा घर खर्च एक ही जगह से होता है तो पत्नी को इस बात पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए. घर से बाहर जाने के लिए उन की इजाजत लेना या फिर उन्हें सूचित करना निहायत जरूरी है. अगर पति हर बार बाहर जाने से पहले अपनी मां को बता कर जाता है, तो इसे अन्यथा न लें.

मांबेटे के प्रेम को ले कर ज्यादा छींटाकशी या रोकटोक न करें. पति को प्यार से धीरेधीरे समझाएं. तीखे कटाक्षों और बिना वजह रोकटोक से पति कभीकभी बुरी तरह तिलमिला जाते हैं. फिर वे जानबूझ कर पत्नी को चिढ़ाने के लिए वही काम करते हैं, जो उसे बुरा लगता है.

अगर पति ज्यादा मांमां करता है तो आप भी मां की चहेती बनने का प्रयास करें. अगर वह हर बात में मां को महत्त्व देता है, तो आप भी हर काम में सास की सलाह ले सकती हैं.

विवाह के बाद भी अगर कुछ दिनों तक मां बेटे के निजी काम करना चाहती हैं तो करने दें, क्योंकि यह सब पहले उन की दिनचर्या का हिस्सा था, इस दिनचर्या को बदलने के लिए उन्हें समय दें. रोकटोक न करें.

पति की भूमिका

पति सास और बहू के बीच की कड़ी होता है, इसलिए उस की भूमिका सब से अधिक महत्त्वपूर्ण होती है. समझदार युवक वही होता है, जो हर रिश्ते के महत्त्व को समझता है और हर रिश्ते को बिना किसी को शिकायत का मौका दिए सही ढंग से निभाता है.

पति को विवाह के बाद धीरेधीरे अपने जीवन की बागडोर मां के हाथों से ले कर पत्नी के हाथों में सौंप देनी चाहिए, लेकिन यह काम प्यार और होशियारी से करना होगा. उसे खुद आगे बढ़ कर मां से कहना चाहिए कि मां तुम ने बहुत कर लिया, अब तुम्हारी आराम करने की बारी है.

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मां की भूमिका

अंदर से हर मां जानती है कि विवाह के बाद बेटे पर उस से अधिक अधिकार उस की पत्नी का होता है, इसलिए विवाह के बाद हर मां को चाहिए कि वह बेटे से जुड़ी हर निजी जिम्मेदारी बहू को सौंप दे. वह खुद उसे समझाए   उसे कब क्या करना चाहिए, उस का निजी सामान कहां रखा है. उसे खाने में क्या पसंद है, आदि. अगर विवाह के बाद बेटा मां को तनख्वाह ला कर देता है तो मां को कम से कम एक बार अवश्य कहना चाहिए कि इस पर अब उस की पत्नी का अधिकार है.

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