आज यशी बहुत अपसेट थी. उसे मयंक का चिल्लाना नागवार गुजरा था. सुबहसुबह उसे डांट कर मयंक तो चला गया मगर यशी का पूरा दिन बर्बाद हो गया. न तो उसे किसी काम में मन लगा और न ही उस ने किसी के साथ बात की. वह चुपचाप अपने कमरे में बैठी आंसू बहाती रही.

शाम को जब मयंक ऑफिस से लौटा तो यशी की सूजी हुई आंखें उस के दिल का सारा दर्द बयां कर रही थी. यशी की यह हालत देख कर मयंक का दिल भी तड़प उठा. उस ने यशी से बात करनी चाही और उस का हाथ पकड़ कर पास में बिठाया तो वह हाथ झटक कर वहां से चली गई. रात में मयंक ने बुझे मन से खाना खाया. उधर मयंक के मांबाप भी अपने कमरे में कैद रहे.

रात में जब यशी कमरे में आई तो मयंक ने कहा,” यशी बस एक बार मेरी बात तो सुन लो.”

यशी ने एक नजर उस की तरफ देखा और फिर चुपचाप नजरें फेर कर वहीं पास में बैठ गई.

मयंक ने समझाने के अंदाज में कहा,” देखो यशी मैं मानता हूं कि मुझ से गलती हुई है. सुबह जब तुम ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने की अपनी इच्छा जाहिर की तो मैं ने साफ मना कर दिया. तुम ने अपना पक्ष रखना चाहा और मैं तुम्हें डांट कर चला गया. यह गलत हुआ. मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था. अब मैं चाहता हूं कि हम इस विषय पर फिर से चर्चा करें. यशी पहले तुम अपनी बात कहो प्लीज.”

” मुझे जो कहना था कह चुकी और उस का जवाब भी मिल गया,” नाराजगी के साथ यशी ने कहा.

“देखो यशी ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हें आगे बढ़ते देखना नहीं चाहता या फिर मुझे यह पता नहीं है कि तुम्हें फैशन डिजाइनिंग का कितना शौक है. ”

“फिर तुम ने साफसाफ मना क्यों कर दिया मुझे ?” यशी ने सवाल किया.

” देखो यशी मेरे न कहने की वजह केवल यही है कि अभी कोर्स करने का यह सही समय नहीं है.”

” लेकिन मयंक सही समय कब आएगा ? बाद में तो मैं घरगृहस्थी में और भी फंस जाऊंगी न.” यशी ने पूछा.

” लेकिन यशी तुम यह मत भूलो कि अभी बड़ी भाभी प्रेग्नेंट है और भाभी की अपनी मां भी जिंदा नहीं है. ऐसे में मेरी मां को ही उन्हें संभालने जाना होगा. नए बच्चे के आने पर बहुत सी जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं. भाभी अकेली वह सब संभाल नहीं पाएंगी. इसलिए मम्मी को कुछ महीने उन के यहां रहना पड़ सकता है.”

” हां यह तो मैं ने सोचा नहीं.”

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मयंक ने आगे समझाया,” देखो यशी हम दोनों को भी अब बेबी प्लान करना है. हमारी उम्र इतनी है कि अभी बेबी के आने का सब से अच्छा समय है”

” हाँ वह तो है.” शरमाते हुए यशी ने हामी भरी.

” फिर सोचो यशी अभी तुम्हारे पास कोई नया कोर्स ज्वाइन करने का वक्त कहां है ? भाभी की डिलीवरी के बाद जब मां यहां नहीं रहेंगी तो तुम अकेली सब कुछ कैसे संभालोगी ? तुम अपनी पढ़ाई को उतना समय नहीं दे पाओगी जितना जरूरी है. फिर जब तुम खुद प्रेग्नेंट रहोगी तब भी पढ़ाई के साथ सब कुछ संभालना बहुत मुश्किल होगा.”

” तो क्या मैं यह सपना कभी पूरा नहीं कर पाऊंगी?”

“ऐसा नहीं है यशी. फैशन डिजाइनिंग कोर्स तो कभी भी किया जा सकता है. ऐसा तो है नहीं कि तुम्हारी उम्र निकल जाएगी. चारपांच साल घरगृहस्थी को देने के बाद फिर आराम से कोर्स करना और डिज़ाइनर बन जाना. तब तक बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाएगा तो मां उसे आराम से संभाल लेंगी. तब निश्चिंत हो कर तुम यह पढ़ाई कर सकोगी. तब तक घर में रह कर ही अपने हुनर को निखारने का प्रयास करो. नएनए एक्सपेरिमेंट्स करो और डिजाइनर कपड़े तैयार करो. तुम्हारा एक आधार भी बन जाएगा और मन का काम भी कर सकोगी.”

यह सब सुनने के बाद अचानक यशी मयंक के गले लगती हुई बोली,” सॉरी मयंक मैं तुम्हें समझ नहीं पाई. तुम्हारा कहना सही है. मैं ऐसा ही करूंगी.”

अब जरा इस घटना पर गौर करें. मयंक यदि अपनी पत्नी यशी को इस तरह समय रहते समझाता नहीं और तर्क के साथ अपनी बात न रखता तो पतिपत्नी के बीच का तनाव लंबे समय तक यूं ही कायम रहता. धीरेधीरे इस तरह के छोटेछोटे तनाव ही रिश्तों में बड़ी दरारें पैदा करती हैं.

जरूरी है कि पति अपनी पत्नी को डांटने के बजाय तर्क से समझाने का प्रयास करें. इस से पत्नी बात अच्छी तरह समझ भी जाएगी और उसे बुरा भी नहीं लगेगा. घर भी लड़ाई का अखाड़ा बनने से बच जाएगा.

पतियों को ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी विषय पर जब पत्नी के साथ आप सहमत नहीं है तो उन्हें दूसरों के आगे डांटने चुप कराने या खुद मुंह फुला लेने से बेहतर है कि ऐसी नौबत ही न आने दें. यदि पत्नी किसी बात पर नाराज हो भी गई है तो झगड़े को लंबा खींचने के बजाय पतिपत्नी आपस में बात करें और तर्क के साथ अपना पक्ष रखें. पत्नी को भी बोलने का मौका दें कुछ इस तरह——-

1. सब से पहले अपनी व्यस्त दिनचर्या में से थोड़ा फ्री समय निकालें. इस वक्त न तो आप का मोबाइल पास में हो और न ही लैपटॉप. केवल आप हों और आप की पत्नी.

2. अब अपनी पत्नी के पास बैठें. डांट कर नहीं बल्कि शांति और प्यार से बातचीत की पहल करें.
जब भी पत्नी को मनाने की शुरुआत करें तो सब से पहले पत्नी को बोलने का मौका दें. शांत दिमाग से उस की पूरी बात सुनें. फिर अपनी बात सामने रखें. बात करते समय पुराने अनुभवों और मजबूत तर्कों का सहारा ले.

3. पत्नी कुछ विरोध करे तो तुरंत उस की बात काट कर अपनी बात थोपें नहीं बल्कि उस की बात गौर से सुने और फिर पुराने अनुभवों की याद दिला कर अपनी बात समझाने का प्रयास करें.

4. हर बात के 2 पक्ष होते हैं. पत्नी के सामने दोनों पक्ष रखें और फिर तर्क से साबित करें कि क्या उचित है.

5. अपना तर्क पुख्ता करने के लिए किसी तीसरे की जरूरत हो तभी तीसरे को बुलाएं. वरना आपस में ही समझदारी से अपने झगड़े सुलझाने का प्रयास करें.

6. इस सारी बातचीत के दौरान अपनी टोन पर खास ध्यान रखें. किसी भी बात पर जोर से न बोले. हमेशा आराम से और प्यार से बात करें.

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7. यदि कभी आप को लगे कि वाकई पत्नी सही है, उस के तर्क भारी पड़ रहे हैं तो पत्नी की बात मानने से हिचकिचाएं नहीं. जरूरी नहीं कि हमेशा आप ही सही हों. कई बार पत्नी भी सही हो सकती है.

याद रखें

आप अपनी पत्नी को जीवनसाथी बना कर लाए हैं. वह आप की अर्धांगिनी है. उस की इज्जत का ख्याल रखना आप का दायित्व है.

आप जिस माहौल में पलेबढ़े हैं उसी अनुरूप किसी चीज को देखने का आप का नजरिया विकसित होगा. मगर आप को अपनी बीवी की सोच और तर्कों को भी तरजीह देनी चाहिए. महिलाएं भी तर्कसंगत बातें कर सकती हैं. उन्हें अपने तर्क रखने का मौका दें.

आप को पत्नी के साथ पूरा जीवन गुजारना है. उसे डिप्रेशन का मरीज न बनाएं. डांटने पर उसे लगेगा कि आप प्यार नहीं करते. इस से तनाव बढ़ेगा. यदि आप उस की भी कुछ बातें मान लेंगे तो आप की सेल्फ रिस्पैक्ट में कोई कमी नहीं आ जाएगी.

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