‘‘मां,अगर मुझे पता होता कि मैं न घर की रहूंगी न घाट की तो कभी यहां नहीं आती. आप को तो मैं ने हमेशा यही कहते सुना कि लड़कियों को शादी के बाद यदि ससुराल में अपना महत्त्व रखना है तो पति को ममाज बौय बनने से हर हाल में बचाना चाहिए. यहां तक कि अपने घर में भी मैं ने कभी आप को पापा के यहां के लोगों की इज्जत करते नहीं देखा. इसीलिए आप की दी हुई शिक्षा पर अमल कर के शादी के दूसरे दिन से ही मैं ने भी यही चाहा कि रवि हर काम मुझ से पूछ कर ही करे, जबकि रवि सदा अपने मांपापा को ही आगे रखता था. जब भी मैं आप को यहां की समस्याएं बताती आप यही कहती थीं कि तू भी कमाती है दबने की कोई जरूरत नहीं है. यदि वे तेरी कोई वैल्यू नहीं समझते तो मायके के दरवाजे हमेशा तेरे लिए खुले हैं आ जाना. आप का अनुसरण करते हुए मैं ने भी घर में छोटीछोटी बातों पर झगड़ा करना शुरू कर दिया. रवि भी कब तक मेरी मनमानी सुनता सो बात बिगड़ती ही चली गई. मायके के इसी झूठे दंभ में आ कर मैं ने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली,’’ एक कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर सुवर्णा रोती हुई मां से बोले जा रही थी.

‘‘तू ही तो कहती थी कि रवि तेरी नहीं अपनी मां की सुनता है. जिस घर में तेरी बात को तवज्जो नहीं दी जाती उस घर में रहने का भी क्या लाभ. अभी तो शुरूआत थी आगे चल कर तो स्थिति और खराब होती न. कितनी नाजों से पाला है हम ने तुझे, तो क्या तेरी ऐसी उपेक्षा देख कर हमें बुरा नहीं लगेगा,’’ सुवर्णा की मां ने अपनी ओर से सफाई देते हुए कहा.

‘‘तो यहां कौन सी मैं महत्त्वपूर्ण हूं. आप सब भी तो बातबात पर सुनाते हो. वहां रवि को मेरी सैलरी से कोई मतलब नहीं रहता था यहां तो सब जैसे हर समय मेरे पैसे पर ही नजरें गड़ाए रहते हो. मां मैं तो अनाड़ी थी पर आप को तो समझाना था कि कुछ दिनों की बात है धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’

सुवर्णा और उस की मां में इस प्रकार की बहस होना आम बात थी. अपनी मां, बहनों की सलाहों पर अमल कर के सुवर्णा अपने प्रोफैसर पति और सासससुर को विवाह के 1 साल के भीतर ही छोड़ कर आ गई थी. अब 4 साल बाद उसे लगता है कि मां की सलाह मान कर उस ने गलती कर दी. अब वह वापस अपनी ससुराल जाने का मन बना रही है.

ऐसा ही कुछ 40 वर्षीया सविता के साथ हुआ. वह बताती है, ‘‘मैं अपने घर की इकलौती संतान हूं. मेरी मां ने मुझ से कभी घर का कोई विशेष काम नहीं करवाया. मैं ससुराल में बड़ी बहू थी. एकदम कंधों पर आई जिम्मेदारी को देख कर मैं घबरा गई. दिन में जब भी मां को अपनी परेशानी बताती तो वे बस यही कहतीं, ‘‘कोई जरूरत नहीं ज्यादा काम करने की. एक बार कर दिया तो हमेशा करना पड़ेगा. तू क्या उस घर की नौकरानी है?’’

मेरी मां ने मेरे मन में मेरे ससुराल वालों के खिलाफ इतना जहर भर दिया था कि मैं उन्हें कभी अपना मान ही नहीं पाई. बस यहीं से मेरे पति के साथ मतभेद शुरू हो गए. किसी तरह 3 साल ससुराल में काटने के बाद मैं मातापिता की सलाह पर मायके आ गई.

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शुरूआत में जब भी पति ने लेने आना चाहा मातापिता और भाई ने उन्हें बुराभला कहा और उन के सामने बहुत सारी शर्तें रखीं. मैं भी जवान थी भाभी पूरा घर मेरे ऊपर छोड़ कर औफिस चली जाती थी. मैं स्वयं को उस घर की महारानी समझती थी. अब मेरा शरीर भी ढलान पर है. मातापिता के जीवित रहते फिर भी ठीक था पर अब मैं भाईभाभियों और भतीजेभतीजियों की गुलाम मात्र हूं, जिसे हरकोई अपने अनुसार चलाना चाहता है. भावावेश और नासमझी में लिए गए अपने निर्णय पर बेहद पछतावा होता है पर अब ये सब सहना मेरी मजबूरी है.

इस प्रकार की घटनाएं अकसर देखने को मिलती हैं जहां लड़की के मायके वालों के अनावश्यक हस्तक्षेप के कारण बेटी की हंसतीखेलती गृहस्थी तबाह हो जाती है. आश्चर्यजनक बात यह है कि ऐसे मामले अकसर अपनी बेटी का सर्वाधिक हित चाहने वाले मातापिता के हस्तक्षेप के कारण होते हैं. विवाहोपरांत जब बेटी अपनी ससुराल जाती है तो मातापिता अपनी बेटी को ले कर बहुत अधिक पजैसिव होते हैं. आखिर उन की नाजों से पाली गई बेटी पहली बार उन से दूर जो हो रही होती है, इसलिए उन की चिंता और अधिक बढ़ जाती है अपनी इकलौती बेटी के प्रति. इसी अत्यधिक चिंता के कारण अकसर वे अपनी बेटी को अनुचित सलाहें देना शुरू कर देते हैं और अपने मातपिता पर स्वयं से भी अधिक भरोसा करने वाली बेटी बिना कुछ सोचेविचारे उस सलाह पर अमल करना शुरू कर देती है, जबकि ससुराल का वातावरण और परिस्थितियां उस के मायके से एकदम अलग होती है.

क्या करे लड़की

न पालें कोई पूर्वाग्रह: विवाह से पूर्व अपनी सहेलियों या सुनीसुनाई बातों पर भरोसा कर के ससुरालवालों के प्रति किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह न पालें. आस्था का ही उदाहरण ले लीजिए- उस का रोमिल से प्रेम विवाह हुआ था. विवाहपूर्व उस के मायके वालों और सहेलियों ने समझाया, ‘‘कायस्थ लड़की ब्राह्मण परिवार में जा रही है. ये ब्राह्मण धार्मिक रूप से बहुत कट्टर, दकियानूसी, छुआछूत और पूजापाठ में विश्वास करने वाले होते हैं कैसे निभेगी तेरी?

‘‘सब की बातें सुनसुन कर रोमिल के परिवार वालों को ले कर आस्था बहुत डरी हुई थी परंतु वहां पहुंच कर उस ने पाया कि उस के सारे पूर्वाग्रह निराधार हैं. ससुराल का प्रत्येक सदस्य बहुत ही सुलझा, समझदार, उदार और प्यारा है.

अच्छाइयां ही करें साझा:

विवाह बाद के प्रारंभिक दिनों में नवविवाहिताएं ससुराल की प्रत्येक छोटीबड़ी और अच्छीबुरी बात को मायके में साझा करती हैं. ऐसा करना गलत है, क्योंकि आप के मायके वाले आप के कथनानुसार ही आप के ससुराल के प्रति धारणा बनाएंगे.

ससुराल और मायके के प्रत्येक सदस्य का भरपूर प्यार प्राप्त करने वाली मेरी एक सहेली कहती है, ‘‘विवाह के प्रथम दिन से ही मैं ने सदैव मायके में ससुराल की केवल अच्छी बातें ही साझा कीं, उस का परिणाम यह हुआ कि आज विवाह के 5 साल बाद मेरे मायके और ससुराल वाले भी एकदूसरे के अच्छे दोस्त बन गए हैं और मैं स्वयं एक सुखद गृहस्थ जीवन जी रही हूं. मेरा मानना है कि कमियां या गलतियां कहां नहीं होती पर मैं ने कभी उन्हें तूल न दे कर केवल अच्छाइयों पर ही ध्यान दिया.’’

सीमित करें फोन का उपयोग: तकनीक के युग में बसेबसाए परिवारों को तोड़ने में मोबाइल फोन की भूमिका भी कुछ कम नहीं है. आजकल दिन में 10 बार मांबेटी की बातचीत होती है, जिस से अपनी बेटी के घर में होने वाली हर छोटीबड़ी गतिविधि से मातापिता अवगत रहते हैं, जिस के परिणामस्वरूप प्रत्येक बात में टोकाटोकी करना और राय देना वे अपना अधिकार समझने लगते हैं.

एक दिन रवि और नमिता में छोटी सी बात पर झड़प हो गई. उसी समय नमिता की मां का फोन आ गया. नमिता ने रोतेरोते पूरी कहानी कह सुनाई, जिस से नमिता की मां को लगा कि उन की बेटी पर दामाद बहुत अत्याचार कर रहा है. अत: उन्होंने भी बिना सोचेसमझे रवि को फोन पर खूब खरीखोटी सुनाई, जिस से नमिता और रवि के संबंध तलाक तक जा पहुंचे. नमिता ने बड़ी मुश्किल से अपने टूटते रिश्ते को बचाया. अत: क्रोध और आवेश के अवसर पर मायके वालों से बात करने से बचें ताकि घर की बात घर में ही रहे और आप उसे अपने तरीके से सुलझा सकें, क्योंकि एक बार तरकस से बाहर गया तीर फिर वापस नहीं आता.

समझदारी से काम लें:

मातापिता की किसी बात या राय का विरोध कर के उन का अपमान करने की जगह उन की बात सुन लें, परंतु उसे अमल में लाने से पहले 10 बार सोचें कि इस से आप के वैवाहिक जीवन और आप के पति के परिवार पर क्या असर पड़ेगा. ऐसी किसी भी राय को अमल में लाने का प्रयास न करें जिस से आप के पति के परिवार के सम्मान को ठेस लगे.

अनीता कहती है, ‘‘कुछ समय पूर्व मैं अपनी बीमार ननद का इलाज कराने अपने साथ ले आई. छोटेछोटे बच्चों के साथ उन की देखभाल में परेशानी तो आती थी. इसी दौरान मेरी मां ने मुझे फोन कर सलाह दी कि तुम्हारा घर ननद के लिए नई जगह है. उन्हें वहीं जेठ के पास छोड़ दो. हर माह कुछ रुपया भेज दिया करो इलाज के लिए. तुम नौकरी करो और अपना परिवार देखो.’’

अनीता को अपनी मां की यह सलाह जरा भी पसंद नहीं आई और उस ने अपनी मां से कहा, ‘‘मां, जरा एक बार सोचिए कि यदि आज ननद के स्थान पर मेरी अपनी बहन होती तो भी क्या आप यही सलाह देंती?

अनीता की बात सुन कर उस की मां को कोई जवाब नहीं सूझा और उसी दिन से उन्होंने उस की ससुराल के मामलों में हस्तक्षेप करना बंद कर दिया.

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पारदर्शिता रखें:

पति से छिपा कर मायके के लिए कभी कोई काम न करें. प्रतिमा का मायका आर्थिक रूप से कमतर है. वह जबतब अपने पति से छिपा कर अपने भाई और मां को आर्थिक मदद करती. एक दिन जब इस के बारे में उस के पति को पता चला तो दोनों में जम कर कहासुनी हुई नतीजतन उस के अपने मायके और पति दोनों से ही संबंध खराब हो गए. इसलिए अपने मायके के लिए आर्थिक मदद करने से पूर्व पति को अवश्य विश्वास में लें. ध्यान रखें कि पतिपत्नी के संबंधों में पारदर्शिता होना बेहद जरूरी है. परस्पर दुरावछिपाव संबंधों में खटास पैदा करता है.

सीमा निर्धारित करें:

सब से महत्त्वपूर्ण बात है कि आप अपने घरपरिवार के मामलों में किसी को भी दखल देने का एक निश्चित सीमा तक ही अधिकार दें और जब भी इस का अतिक्रमण होता दिखे तो तुरंत ब्रेक लगाएं, क्योंकि अपने परिवार के मामलों को आप और आप के पति ही सहजता से सुलझा सकते हैं. अपने मायके और ससुराल के सदस्यों के साथ कभी दोहरा व्यवहार न करें.

क्या करें मातापिता:

यह सही है कि आजकल अधिकांश मातापिता बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं करते. मायके में नाजों से पलीबढ़ी अपनी बेटी के जीवन में दुख का साया भी उन्हें बेचैन कर देता है, परंतु आप को यह याद रखना होगा कि आप की बेटी अब किसी की बहू और पत्नी भी है और उस के पति के परिवार वालों ने भी अपने बेटे को भी उतने ही नाजों से पाला है, इसलिए आवश्यक है कि ससुराल के मुद्दे उसे स्वयं अपनी समझदारी से ही सुलझाने दें. हां, यदि किसी मोड़ पर सलाह देना आवश्यक हो तो तटस्थ रुख अपनाएं.

बेटी को यह एहसास अवश्य कराएं कि जीवन के किसी भी मोड़ पर मुसीबत होने पर आप सदैव उस के साथ हैं. मायके के दरवाजे सदैव उस के लिए खुले हैं, परंतु बातबात पर पति का घर छोड़ कर मायके आ जाने की सलाह कभी न दें. ससुराल के छोटेमोटे मुद्दे उसे अपनी समझ से स्वयं ही सुलझाने को कहें.

बेटी की ससुराल की गतिविधियों में अनावश्यक हस्तक्षेप करने से बचें. बेटी को किसी भी मुद्दे पर अपनी राय देते समय सोचें कि यदि यही राय आप की बहू के मायके वालों ने दी होती तो आप पर क्या असर होता.

वीडियो कौलिंग, मोबाइल फोन जैसी आधुनिक तकनीक का प्रयोग बेटी की कुशलता जानने के लिए करें न कि उस की ससुराल वालों पर कटाक्ष करने, हंसी उड़ाने और ससुराल के प्रत्येक सदस्य का हालचाल जानने के लिए.

आप की आर्थिक स्थिति भले ही समधियों से बेहतर हो, परंतु उन्हें कभी अपने से कमतर न समझें और न ही कभी नीचा दिखाएं. ध्यान रखिए कि जब आप उन्हें इज्जत देंगी तभी आप की बेटी भी उन का सम्मान कर पाएगी.

अपनी बेटी को केवल पति का ही नहीं उस के पूरे परिवार का सम्मान और प्यार करना तथा परिवार के साथ तालमेल बैठाना सिखाएं न कि परिवार तोड़ कर अलग रहने की शिक्षा दें.

अनुजा ने विवाह से दो दिन पूर्व अपनी बेटी को उस के गहने दिखाते हुए कहा कि देख, अपने गहने अपनी सास को भूल कर भी मत देना. एक बार दे दिए तो वापस नहीं मिलेंगे.

इस प्रकार की अव्यावहारिक सलाह की जगह अपनी बेटी को ससुराल के प्रति प्यार और अपनत्व की सलाह दें ताकि उस का विवाहित जीवन सुखद रहे.

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विवाह के बाद विदा हो कर गई बेटी को स्पेस दें. हर पल उस के हालचाल पूछ कर उसे बारबार परेशान करने की अपेक्षा उसे पति के परिवार वालों के साथ घुलनेमिलने का अवसर दें ताकि वह वहां के वातावरण में सहजता से एडजस्ट हो सके.

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