वाकई दोस्ती करना एक कला है और यह भी तय है कि यह कला सब को नहीं आती. लेकिन इसकी जरूरत सभी को पड़ती है. दोस्ती करने का गुण जिसमें होता है उसे जिंदगी में बहुत सारी परेशानियों से स्वतः मुक्ति मिल जाती है. हालांकि कई बार इसके चलते कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है; लेकिन कुल मिलाकर दोस्ती करने का गुण जिंदगी के लिए एक फायदेमंद सौदा ही है.  अतः अगर आपको यह कला नहीं आती तो आइये हम बताते हैं ये कला कैसे सीख सकते हैं?
जब भी किसी नये व्यक्ति से मिलें और उससे दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहें तो कुछ सामान्य शिष्टता का पालन जरूर करें. मसलन किसी अपिरिचित को भूलकर भी ‘तुम’ या ‘तू’ जैसे शब्दों से संबोधित न करें. भले वह कितना ही अनौपचारिक लग रहा हो. क्योंकि जब तक हम किसी के बहुत करीब नहीं होते, तब तक हमारा दिल और दिमाग दोनो ही किसी से इस कदर बिंदास जुबान की उम्मीद नहीं करते. ऐसे में जब हम किसी को उसकी बिना उम्मीद के इतने अधिकार से संबोधित करते हैं तो यह बात उसे बुरी लगती है. इस तरह पहली मुलाकात में ही आपके प्रति किसी का इम्प्रेशन बहुत खराब हो जाता है. क्योंकि हम इस बात को मानें या न मानंे फस्र्ट इम्प्रेशन आपके बारे में किसी को भी राय बनाने की छूट देता है.
हमारी किसी से तब भी दोस्ती नहीं हो पाती, जब हम किसी से पहली बार मिल रहे हों और इस पहली बार में ही उस पर अपनी रहीसियत का रौब डाल दें. वैसे तो अपनी रहीसियत का रौब किसी पर कभी भी नहीं जमाना चाहिए. लेकिन अगर आप किसी पहली बार मिल रहे हों, जो आपको अब के पहले बिल्कुल न जानता हो, उस पर इस तरह की कोशिश कभी न करें वरना वह कभी आपका दोस्त तो क्या अच्छी राय रखने वाला परिचित भी नहीं बन सकेगा. किसी अपरिचित व्यक्ति के साथ बातचीत करते हुए जब हम बार बार उबासियां लेते हैं तो भले यह हमारी किसी समस्या की वजह से हो लेकिन यह बात सामने वाले व्यक्ति को अपने अपमान जैसा महसूस होती है. अगर वाकई आपको बहुत उबासियां आ रही हों, तो सामने वाले व्यक्ति से माफी मांगें और किसी और दिन बैठने व बातचीत की बात कहें, उस दिन और उस समय तो इस बातचीत को विराम देना ही शिष्टाचार है. क्योंकि अगर आप उबासियों के बावजूद बातचीत करते रहते हैं तो सामने वाला व्यक्ति समझ जाता है कि आप उसे टेकेन फाॅर ग्रांटेड ले रहे हैं.
किसी भी नये व्यक्ति के साथ बातचीत करते हुए न तो आप उसे लगातार सुनाते रहें और न ही लगातार सिर्फ उसे सुनते रहें. एक प्रभावशाली मुलाकात का तरीका यही है कि आपके सुनने और सुनाने पर बराबर की भागीदारी हो, बराबर नहीं तो 60 और 40 का अनुपात तो हो ही. अगर आप किसी नए नए परिचित हुए व्यक्ति को बोलने का मौका ही नहीं देंगे तो वह आप से किस तरह जुड़ पायेगा. लेकिन यदि आप चुप्पे बने रहे और वही एकालाप के स्वर में बोलता रहा तो यह भी बोरियत भरा बर्ताव होगा. एक बात का और ध्यान रखें नए-नए परिचित व्यक्ति की वैयक्तिक जिंदगी के बारे में जानने की उत्सुकता न दिखायें. साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि किसी नए परिचित हुए व्यक्ति की तारीफ में कंजूसी न करें. लेकिन इस पर भी सजग रहें कि किसी को इतना भी महिमामंडित न करें कि आपकी तारीफ चापलूसी लगने लगे.
अगर हम वाकई किसी के साथ दोस्ती के इच्छुक हैं तो हमेशा पहल की अपेक्षा ही न करें. दोस्ती करना चाहते हैं तो पहल भी करना सीखें. दोस्ती की गाइडलाइन में एक बड़ी सलाह ये भी है कि पहली बार परिचित हुए किसी व्यक्ति पर अपने ज्ञान का रौब कभी न गांठें. साथ इस पुरानी सीख पर भी हमेशा अमल करें कि किसी पुरुष की तनख्वाह और किसी औरत की उम्र नहीं पूछनी चाहिए. अगर मामला पहली मुलाकात का हो, तब तो ऐसी हरकत बिल्कुल ही नहीं करनी चाहिए. अगर आपमें यह आदत होगी तो आपकी कभी किसी से दोस्ती की गुंजाइश नहीं बनेगी. अगर किसी पार्टी में किसी से पहली बार मिल रहे हों, तो मेजबान के द्वारा परिचय कराये जाने पर हमेशा संतुलित और व्यवहारिक बात करें. बातचीत का संदर्भ वही रखंे जिसमें इस नए व्यक्ति की भी रूचि हो. उसके कपड़ों की क्वालिटी और उनकी कीमत के बारे में कतई न पूछें. इसी क्रम में इस बात को भी जान लें कि अगर आपकी किसी औरत से पहली मुलाकात हो रही है तो कृपा करके कभी भी पहली मुलाकात में किसी महिला से उसका मोबाइल नंबर न मांगें और अगर यह मुलाकात किसी पुरुष से है तो पहली ही मुलाकात में उसके साथ किसी बिजनेस का प्लान न बनाएं वरना वह घर जाकर आपको शेखचिल्ली की पदवी से नवाजेगा, दोस्ती तो भला आपसे क्या करेगा.

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