दिल्ली की अन्नपूर्णा ने अपने घरेलू बजट में कटौती कर के अपनी बच्ची के स्कूल प्रोजेक्ट का महंगा सामान खरीदा, पटना की अंजू को अपने 2 जुड़वां बच्चों को स्कूल भेजने पर आने वाले भारी खर्च की चिंता सता रही है और चंडीगढ़ के पुष्पेंद्र 10वीं और 12वीं में पढ़ने वाले अपने 2 बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के लिए अपनी कमाई बढ़ाने की जुगत में है. तुर्रा यह कि देश के तमाम अभिभावक अपने बच्चों की पढ़ाई पर आने वाले भारी खर्च से परेशान हैं. कमरतोड़ महंगाई के इस जमाने में इन अभिभावकों की चिंता अपनी जगह ठीक भी है.
दरअसल, उद्योग परिसंघ एसोचैम ने हाल ही में अपने अध्ययन में वर्ष 2000 से 2008 तक के 8 वर्षों की अवधि के दौरान बच्चों के स्कूली खर्च में 160% वृद्धि की बात कही है. एसोचैम के महसचिव डी.एस. रावत ने बताया कि वर्ष 2000 से 2008 के दौरान बच्चों के विभिन्न मदों में स्कूली खर्च में 160% की वृद्धि दर्ज की गई है. उन्होंने बताया कि महंगाई बढ़ने से स्कूली खर्च में आई इस जबरदस्त वृद्धि से अधिकांश परिवारों का बजट प्रभावित हो रहा है. अभिभावक अन्य खर्चों में कटौती तो कर लेते हैं लेकिन बच्चों के भविष्य से जुड़े स्कूली खर्च में कैसे कटौती करें?
एसोचैम के अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2000 में बच्चों के शर्ट, टाई आदि का खर्च 2,500 रुपए सालाना था, जो 2008 में बढ़ कर 5,500 रुपए हो गया, जबकि जूते, सैंडल और इसी तरह के अन्य सामान का सालाना खर्च 3,000 रुपए से बढ़ कर 6,800 रुपए हो गया है.
कमरतोड़ महंगाई
एसोचैम के अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2000 में स्कूली बच्चों के बैग, पानी की बोतल, लंच बौक्स आदि का सालाना खर्च 1,500 रुपए से बढ़ कर वर्ष 2008 में 3,000 रुपए हो गया, जबकि खेल मद में स्कूली खर्च 2,000 रुपए बढ़ कर 4,500 रुपए हो गया है. अध्ययन के अनुसार बच्चों के किताब का खर्च वर्ष 2000 में करीब 3,000 रुपए था, जो वर्ष 2008 में बढ़ कर लगभग 7,000 रुपए हो गया है. इसी तरह स्कूल ट्रिप्स का खर्च 2000 से बढ़ कर 5,500 रुपए हो गया है.
बच्चों की ट्यूशन का खर्च वर्ष 2000 से 32,800 रुपए सालाना था, जो वर्ष 2008 में बढ़ कर 65,000 रुपए हो गया. शिक्षा एवं कैरियर काउंसलर अंजली कुमार का मानना है कि स्कूली खर्च में वृद्धि के कारण जो अभिभावक पहले अपने बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ व्यावसायिक कोर्स और अतिरिक्त ट्यूशन के लिए भेजते थे, आज उस चलन में भी कमी आई है. कई अभिभावक बच्चों को पुरानी पुस्तकें भी दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि आज के स्कूल की इमारतें ऐसी हैं जैसे पांच सितारा होटल हों और इस के रखरखाव में जो खर्च आता है वह छात्रों से ही वसूला जाता है.
अकसर स्कूलों में छोटेमोटे कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं. इन कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए भी अतिरिक्त रकम वसूली जाती है. लोगों के दिमाग में यह बात घर कर गई है कि अच्छी पढ़ाई तो नामीगिरामी स्कूलों में ही होती है. 4 दशक पहले न तो ऐसे भव्य स्कूल हुआ करते थे और न ऐसे कार्यक्रम और तब स्कूलों में स्विमिंग पूल की बात तो छोडि़ए, छत भी मयस्सर नहीं थी. लेकिन तब भी लोगों ने पढ़ाई की और दुनिया में नाम कमाया.