हाल ही में दूसरे देशों में नैशनल और्गेज्म डे मनाया गया और वहां इस से जुड़ी बातें लोग खुले तौर पर करते भी रहते हैं. वहीं भारत में सैक्स और और्गेज्म पर बात करने से लोग मुंह छिपाने लगते हैं. यहां तक कि ज्यादातर लोग अपने ही साथी या पार्टनर से भी इस पर बात नहीं कर पाते. एक बेहद दिलचस्प बात यह भी है कि हिंदी में और्गेज्म का मतलब तृप्ति है जो इस शब्द का सही अर्थ नहीं है.

महिला और पुरुष दोनों एकदूसरे से शारीरिक तौर पर बेहद अलग हैं और दोनों पर धर्म से नियंत्रित समाज का नजरिया और भी अलग है. जहां पुरुषों को सभी प्रकार की छूट बचपन से ही भेंट में मिल जाती है, वहीं महिलाओं को बचपन से ही अलग तरीकों से पाला जाता है. उन के लिए तमाम तरह के नियमबंधन बनाए जाते हैं. उन के बचपन से वयस्क होने की दहलीज तक आते आते उन्हें इस तरह की शिक्षा दी जाती है कि वे अपने शरीर से जुड़ी बातें चाह कर भी नहीं कर पाती हैं.

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जो पुरुषों के लिए वह महिलाओं के लिए गलत क्यों:

अगर एक महिला बिना पुरुष के साथ संबंध बनाए शारीरिक सुख प्राप्त करने में सक्षम है तो इस बात को यह पूरा समाज हजम नहीं कर पाता. हम यहां सीधे तौर पर मास्टरबेशन यानी हस्तमैथुन पर बात कर रहे हैं, जिस के बारे में ज्यादातर लड़के 10-12 साल की उम्र में ही जान लेते हैं, पर लड़कियों को वयस्क होने तक भी इस बात की पूरी जानकारी नहीं होती है. अगर वे बिना किसी पुरुष के साथ संबंध बनाए शारीरिक सुख प्राप्त करती हैं तो उसे वे अपने दोस्तों में स्वीकार नहीं कर पातीं. समाज में यह धारणा जो बना दी गई है कि पुरुषों के लिए मास्टरबेशन ठीक है पर महिलाओं के लिए गलत है.

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मास्टरबेशन सही तो और्गेज्म गलत क्यों…

इसी तरह मास्टरबेशन पर बात करना एक पुरुष के लिए बेहद साधारण बात है पर एक महिला के लिए ऐसा मसला है जो उस का होते हुए भी उस का नहीं है. जबकि ऐसे मुद्दों पर बात करना बेहद जरूरी है. यह जितनी आसानी से पुरुष के लिए स्वीकार्य है, उतना ही एक औरत के लिए भी होना जरूरी है.

लड़कियां तो अगर अपनी सब से सामान्य चीजों जैसे पीरियड्स और ब्रा जैसी चीजों पर भी बात करने का साहस जुटाती हैं, तो उन्हें पब्लिकली ट्रोल किया जाता है, शेम किया जाता है. ऐसे में और्गेज्म और वह भी लड़कियों के और्गेज्म पर बात करना तो कल्पना से भी परे की बात है.

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बौलीवुड ने शुरू की कोशिश…

‘वीरे दी वैडिंग’ और ‘लस्ट स्टोरीज’ ऐसी फिल्में हैं जिन में महिला से जुड़े शारीरिक सुख के मुद्दे पर थोड़ी रोशनी डालने का प्रयास किया गया, लेकिन भारतीय मर्दों ने खुल कर उस पर बातचीत करने के बजाय इन फिल्मों की और इन की हीरोइनों को ही ट्रोल किया.

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मर्दों को यह पता ही नहीं:

ज्यादातर भारतीय मर्द नहीं जानते कि महिलाओं का भी और्गेज्म उतना ही मैटर करता है, जितना उन का. दरअसल, इंटरकोर्स यानी शारीरिक संबंध के वक्त उन को इस बारे में खयाल ही न आना एक तरह से पितृसत्ता का हावी होना ही बताता है.

इस पर जयपुरिया अस्पताल, जयपुर की अधीक्षक विमला जैन का कहना है, ‘‘भारतीय पुरुष लड़कियों के मास्टरबेशन को इसलिए भी हजम नहीं कर पाते, क्योंकि उन्हें अपनी सत्ता, मर्द होने की धमक पर यह हमले जैसा लगता है, जबकि कई ऐसी रिसर्च बताती हैं कि 62% महिलाओं को और्गेज्म मास्टरबेशन के वक्त ही होता है. यह भी दूसरी सामान्य और प्राकृतिक प्रक्रियाओं का ही एक हिस्सा है. स्वास्थ्य पर इस का सीधा असर होता है, लेकिन भारतीय मर्द यह शायद ही समझें. उन्हें लगता है कि और्गेज्म पुरुषों के अधिकार क्षेत्र का ही मसला है, सामाजिक टैबू है.’’

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इन मुद्दों पर यौन शिक्षा से जुड़े पहलुओं पर खुल कर बात हो ताकि एक स्वस्थ और बराबरी वाला समाज बनाया जा सके. घरों में औरतें हर समय खीजी सी और तनाव में न रहें या उन्हें अछूतपन न लगे और वे अन्य रिस्क न लें इस के लिए जरूरी है कि इन बातों को कम से कम लड़कियां तो आपस में खुल कर कर सकें.                                   –

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