घर से कुछ समय निकाल कर कहीं घूमने जाना हमेशा ही नया अनुभव देता है. यात्रा के दौरान बहुत से नए लोगों को, नई चीजों को देखते हैं जिस से दुनिया के बारे में हमें नया नजरिया मिलता है. जब भी संभव होता है मैं कहीं घूमने जरूर निकलती हूं. आजकल के व्यस्त जीवन से कुछ दिन निकाल कर परिवार के साथ थोड़ा समय बिताना अब जरूरी सा लगने लगा है वरना वही हाथ में फोन लिए ?ाकी हुई गरदनें या लैपटौप को घंटों घूरती आंखें, दिनरात की भागदौड़. इस से हट कर कुछ दिन रिलैक्स हो कर बिताना हैल्थ के लिए भी जरूरी है.
सो अब की बार सपरिवार घूमने का प्रोग्राम बना तो टर्की फाइनल हुआ. मुंबई से टर्किश एअरलाइंस से इस्तांबुल की फ्लाइट बुक की गई. 8 घंटे की फ्लाइट थी पर आजकल एअरपोर्ट पर इंटरनैशनल फ्लाइट के लिए 4 घंटे पहले जाना पड़ता है.
तुर्किए
इस देश का नाम राष्ट्रपति रेसेप तैयप एडोर्गन के कहने पर ही बदला गया था. घरेलू स्तर पर तुर्की को तुर्किए ही कहते हैं मगर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस का नाम तुर्किए हो गया था जिसे अंगरेजी में लोग टर्की कहने लगे थे. संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से 2022 में तुर्की का नाम आधिकारिक तौर पर तुर्किए कर दिया गया था.
इस्तांबुल तुर्की का सब से बड़ा शहर और प्रमुख बंदरगाह है. यह बीजान्टिन साम्राज्य और आटोमन साम्राज्य दोनों की राजधानी रहा है लेकिन जब आधुनिक तुर्की गणराज्य की स्थापना हुई और अंकारा को नई राजधानी के रूप में चुना गया तो इस ने राजधानी के रूप में अपनी स्थिति खो दी.
इस्तांबुल एअरपोर्ट बहुत बड़ा और सुंदर बना हुआ है. वहां इमीग्रेशन की बहुत लंबी लाइन थी. फ्लाइट में इंडियंस भी काफी थे. बैल्ट से सामान लिया तो देखा, हमारे एक बड़े बैग का हैंडल टूट गया है. हम ने वहीं के एक स्टाफ को बताया तो उस ने कहा कि बैगेज हैंडलिंग औफिस में बात कर लो. वहां जा कर हम ने अपना बैग दिखाया. उन्होंने हमारे बैग पर लगा टैग लिया और तुरंत एक नया बड़ा बैग दे दिया. यह हमारे लिए बड़ी हैरानी की बात थी. हम ने वहीं अपना सामान नए बैग में रखा और उन्हें थैंक्स कह कर एअरपोर्ट से बाहर निकले.
जब एअरपोर्ट से बाहर निकले ठंड से हालत खराब हो गई जो जैकेट और पैंट पहनी हुई थी लगा इसे तो ठंडी हवा उड़ा कर ले जाएगी. यह मार्च के आखिरी दिन थे. टैक्सी का इंतजार कर ही रहे थे कि बारिश शुरू हो गई. ठंडी हवा से कांपते हुए खड़ेखड़े इधरउधर नजर डाली तो एक अलग ही माहौल था.
इतने खूबसूरत और स्टाइलिश लोग कभी नहीं देखे थे. लोगों के चेहरों से नजर ही नहीं हट रही थी. कमाल की खूबसूरती ने मन मोह लिया. टैक्सी आ गई. जो होटल बुक किया था, वह सिटी सैंटर में था जो एअरपोर्ट से 1 घंटा दूर था. यह होटल इसलिए बुक किया था वहां से हर देखने की जगह 20-25 मिनट चल कर पहुंचा जा सकता था.
होटल पहुंचने में दोपहर के 3 बज रहे थे. जा कर लंच किया, फिर बच्चे बराबर वाले अपने रूम में सोने चले गए. चारों थके थे, सब सो गए. शाम को उठे तो आसपास घूमने, डिनर करने निकले.
साफसुथरी जगह
डिनर जिस रेस्तरां में किया वह काफी अच्छी जगह थी. लाइव म्यूजिक चल रहा था जो सम?ा तो नहीं आ रहा था पर धुनें बहुत अच्छी थीं. टूरिस्ट्स इस म्यूजिक पर डांस भी कर रहे थे. धुन कर्णप्रिय थी. मेन्यू पर हाथ रखरख कर वेटर को इशारों से सम?ाया गया कि क्या चाहिए. यहां बहुत कम लोगों को अंगरेजी भाषा आती है. टर्किश भाषा ही चलती है. घूमटहल कर हम अपने होटल देर रात लौट आए.
अगले दिन हम सुबह नाश्ता कर के होटल से बस 5 मिनट दूर इस्तांबुल यूनिवर्सिटी का एरिया देखने गए. बहुत ही विशाल परिसर में बहुत ही सुंदर साफसुथरी यूनिवर्सिटी है. इस के एक एरिया में एक विशाल, आलीशान मसजिद बनी हुई है. जैसे हमारे देश में हर 10 मिनट पर एक मंदिर है, यूरोप में चर्च हैं.
यहां हम ने आधा घंटा बिताया. उस के बाद हम ने फेरी बुक की हुई थी. फेरी से आधा घंटा दूर एशियन साइड आफ इस्तांबुल जाना था. फेरी से यह टूर यहां की फेमस चीजों में से एक है. इस्तांबुल दुनिया का एकमात्र शहर है जो 2 अलगअलग महाद्वीपों पर स्थित है. यूरोप और एशिया. एक दिन के लिए फेरी से जा कर एक नई जगह देखी जा सकती है. फेरी से जाते हुए कई सुंदर दृश्य दिखते हैं. हजारों सफेद, सुंदर सीगल लगातार उड़ती दिखती हैं. बहुत ही मनोहर दृश्य होता है. इस तरफ लाइंस से टूरिस्ट्स के लिए सुंदर रेस्तरां हैं. यूरोपीय की तुलना में यहां कीमतें थोड़ी कम हैं.
हागिया सोफिया
1935 में कमाल अतातुर्क ने चर्च और मसजिद के रूप को समाप्त कर के उसे म्यूजियम बना दिया था जिस के बाद जुलाई, 2020 में दोबारा उसे मसजिद बना दिया गया. हागिया सोफिया को तुर्की भाषा में आया सोफिया कहा जाता है. अंगरेजी में कभीकभी उसे सेंट सोफिया भी कहा जाता है. रोम में सेंट पीटर बेसिलिका के बाद हागिया सोफिया दुनिया का सब से बड़ा लटकता हुआ गुंबद है. यह इस्तांबुल में यूनैस्को की विश्व धरोहर का हिस्सा है.
इस के बनने के बाद लगभग एक सहस्त्राब्दी तक यह पूरे ईसाई जगत में सब से बड़ा चर्च था. इस ने बीजांटिन दुनिया के लिए धार्मिक, राजनीतिक और कलात्मक जीवन के केंद्र के रूप में कार्य किया. अया (पवित्र, संत) और सोफोस (ज्ञान) शब्दों से बना है जिस का अर्थ पवित्र ज्ञान है. यह इमारत धार्मिक परिवर्तनों को साफसाफ दिखाती है.
ड्यूटी पर स्टाफ काफी सख्ती से तैनात हैं. उस ने हमें सिर ढकने के लिए कहा. यहां बेहतरीन मार्बल के खभे हैं जिन्हें उन के रंग और विविधता के लिए चुना गया है. हम ने गाइड लिया था ताकि इतनी प्रसिद्द जगह के बारे में अच्छी तरह से जान सकें. वह जरमन था पर अंगरेजी भाषा में बोल रहा था.
यह एक बार फिर महसूस किया कि हर दौर में राजनीति और धर्म सरकार के हिसाब से बदलते रहते हैं. इस इमारत को कभी चर्च, कभी मसजिद, कभी म्यूजियम होना पड़ा. यहां एक जगह स्वास्तिक भी बना है. गाइड ने एक बात और मजेदार बताई. एक जगह एक रानी का चित्र बना हुआ था. जो भी राजा बना, उस का चित्र उस रानी के साथ बना दिया गया. इस तरह रानी के साथ 3 राजाओं के चित्र बने. एक का चित्र खुरच दिया जाता और दूसरे का बना दिया जाता था.
हर जगह सुंदर काम हुआ है, दीवारों से नजर नहीं हटती. कहीं वर्जिन मेरी का चित्र बना है, कहीं अल्लाह, हसन हुसैन लिखा है, कहीं स्वास्तिक. गाइड ने एक मजबूत दरवाजा दिखाते हुए कहा कि इस के बारे में कहा जाता है कि यह कयामत तक खुला रहेगा. शायद दुनिया में हर जगह धार्मिक मान्यताओं का बोलबाला है.
यहां घूमने में 3 घंटे लगे. यह बहुत लंबीचौड़ी जगह है. टूरिस्ट्स बहुत थे पर कहीं कोई धक्कामुक्की नहीं, कोई शोर नहीं, सब शांत. यहां बहुत सारे ट्यूलिप दिखे. पहले कभी ट्यूलिप नहीं देखे थे. बहुत ही मैंटेन्ड गार्डन में सफेद, लाल सुंदर से फूल बहुत आकर्षक लगे.
ग्रैंड बाजार
यह एक भूलभुलैया जैसा पुराना बाजार है जो कई छोटीछोटी गलियों में स्थित है. आर्टिफिशियल ज्वैलरी की हजारों दुकानें हैं, गिफ्ट्स आइटम्स हैं, चीजें बहुत सुंदर हैं पर बार्गेनिंग बहुत होती है. यहां के मसाले बहुत मशहूर हैं. ले कर आई हूं. किसी भी चीज में डाल रही हूं, अलग ही स्वाद आ रहा है.
ब्लू मास्क
हजारों नीली टाइल्स इस संरचना को इसे यह नाम देती हैं. 1985 से यूनैस्को की विश्व धरोहर स्थल, ब्लू मसजिद अपनी आश्चर्यजनक वास्तुकला सुविधाओं, इतिहास, स्थान और अपने इंटीरियर के लिए प्रसिद्ध है. इस के वास्तुशिल्प डिजाइन में ओटोमन शैली और बीजांटिन के तत्त्व दोनों हैं. इस के इंटीरियर में हरे, लाल हुए सोने जैसे सहायक रंगों के साथ नीली इज्निक टाइल्स के पैटनर्स हैं.
इसे आटोमन काल की कला और 20वीं सदी की अन्य कलाओं से सजाया गया है. यहां प्रवेश नि:शुल्क है. इसे सुलतान अहमत मसजिद के नाम से भी जाना जाता है.
अगले दिन हम ने एक फेरी ट्रिप लिया. इस में बहुत से टूरिस्ट्स थे. यह साफसुथरा, खूब सजा हुआ था. इस के अंदर सुंदर चेयर्स, टेबल लगी हुई थीं. कुछ टूरिस्ट्स बाहर रेलिंग के पास खड़े हो कर वीडियो बना रहे थे. अनगिनत सुंदर सीगल पानी में तैर रही थीं. मु?ो उन की गतिविधियां देखने में विशेष आनंद आ रहा था. ?ांड की ?ांड सीगल समुद्र की लहरों को छूतीं.
कुछ देर उन पर टिकतीं, फिर डुबकी मार कर उड़ जातीं. इस फेरी ने पूरे शहर को दिखाया. 2 घंटे का शानदार चक्कर था. इस शिप में 19-20 साल का एक लड़का था जो रेलिंग पर खड़े फोटो खिंचवाते लोगों के फोटो अपने प्रोफैशनल कैमरे से खींचने लगा. उन के पोज बनवाने लगा, हम भी उन में से थे. थोड़ी देर बाद जब हम अंदर आ कर चेयर्स पर बैठ गए, वह एक अलबम में अपने खींचे फोटो लगा कर लाया. उस ने हम चारों की बहुत से फोटो, कुछ सोलो, कुछ साथ में खींचे हुए थे और कहने लगा कि इस में से आप कुछ छांट कर 70 यूरो में खरीद सकते हैं. यह तो बहुत महंगा लगा, फिर थोड़ी बार्गेनिंग शुरू हुई फोटोज बहुत अच्छे आए थे.
अनमोल यादें
आखिर में हम ने कुछ फोटो छांटे और 30 यूरो में खरीद लिए. जब शिप से उतरने का टाइम आया, हम ने हंसीमजाक में उससे कहा कि अरे, तुम पैसा लेना भूल गए हो. अपने पैसे तो ले लो. वह याद दिलाने पर बहुत खुश हुआ. उस ने बहुत थैंक्स कहा. फिर हम ने कहा कि हमारे बाकी फोटो भी दे दो. ये सब तुम्हारे काम के भी तो नहीं हैं. भाषा की समस्या थी. अब तक सिर्फ अंगरेजी के कुछ शब्दों में ही बात हो रही थी.
उस ने अपने होंठों पर हाथ रख कर चुप रहने का इशारा किया और जल्दी से नीचे जा कर हमारे सारे फोटो हमें ला कर दे दिए. शायद वह उस के पैसे याद दिलाने से बहुत खुश हो गया था.
यहां घूम कर हम 3 रात के लिए फ्लाइट से अंतालिया चले गए जो फ्लाइट से 1 घंटे की दूरी पर स्थित बेहद खूबसूरत जगह है. यहां हम ने डुडेन फाल्स देखा. बहुत ही सुंदर. इस जगह ने मन मोह लिया. समुद्र का नीला, हरा सा पानी, उस पर ये फाल्स. वाह, क्या नैसर्गिक सौंदर्य था, तेज धूप थी पर जब एक बार यहां पहुंच गए तो ठंडी फ्रैश हवा ने सारी गरमी भुला दी. इस्तांबुल की अपेक्षा यहां का मौसम गरम था.
यहां हम ने जिस बड़े से सुंदर रेस्तरां में लंच किया वह समुद्र से कुछ ही दूर था और यहां ज्यादा स्टाफ नहीं था. जो खाना सर्व कर रहा था वह काफी जौली नेचर का था. एक लड़की कुछ ले कर आई. उस ने पूछा कि इंडियंस? हमारे ‘हां’ कहने पर उस ने ओह शाहरुख खान कहते हुए हाथ से दिल का साइन बनाया. हम हंस दिए. इस यात्रा में ऐसा कई बार हुआ. शाहरुख खान के जलवे विदेशों में कई बार देखे.
एक दिन हम ओल्ड टाउन गए. यह जगह ऐसे अनुभव देगी जिसे आप कभी नहीं भूल सकते. आप यहां शानदार हैड्रियन गेट, निजी समुद्र तट, वाचटावर और बोहेमियन कैफे देख सकते हैं. यहां बहुत पतलीपतली साफसुंदर, सजी हुई गलियां हैं, जिन्हें देखने से मन नहीं भरता.
यहां हर चीज को बहुत खूबसूरती से सजाया गया है. यहां हम ने एक दिन की बोट राइड ली क्योंकि बच्चों को स्कूबा डाइविंग करनी थी. इस बोट पर गुरुग्राम के 2 युवा लड़के भी मिल गए. बोट पर 4 लोगों का स्टाफ था जो बहुत ही केयरिंग था. उन में जो सब से सीनियर था. वह खुद हमारी बेटी को जो पहली बार स्कूबा डाइविंग से अचानक डरने लगी. उसे पानी में ले कर उतरा. बहुत ही अच्छी सेफ व्यवस्था थी. हर तैराक के साथ वह सीनियर और स्टाफ में से कोई एक रहता. हम दोनों बस उन सब को मछलियां बनते देख कर ऐंजौय करते रहे. हम पानी में नहीं उतरे.
बच्चों ने 1 घंटा बहुत ऐंजौय किया. फिर सब को सैंडविच और कोल्ड ड्रिंक्स दी गई. स्टाफ ने ही बहुत सी विक्ट्री के साइन के साथ कई तरह के फोटो लिए, पानी के अंदर के वीडियो बनाए. इन फोटो को लेने के लिए 6 हजार देने होते हैं. बच्चों ने इस यादगार दिन की मैमोरीज रखने के लिए सब ले लिए. उन्होंने सब मेल कर दिए.
एक दिन हम यहां मूरतपासा गए. यह भी एक बीच है. यहां भी बहुत से होटल्स हैं. यहां बहुत शांति थी. बीच बहुत साफ था. फिर हम वापस इस्तांबुल लौट आए.
बकलावा
अगर आप टर्की में हैं तो यहां की सब से फेमस स्वीट डिश खाए बिना लौट ही नहीं सकते. यह एक बहुत ही स्वादिष्ठ पेस्ट्री जैसी चीज होती है जो कई ड्राई फ्रूट्स से भरी होती है. हम ने हैल्थ के सब नियम भूल कर लंच और डिनर के बाद रोज बकलावा खाया. जब कभी होटल में खाना खाते हुए अच्छा बड़ा और्डर हो जाता है, यहां बकलावा कौंप्लिमैंटरी सर्व कर दिया जाता है.
टर्किश टी
जब आप टर्की में हों तो यहां की चाय और काफी जरूर चखें. इसे बहुत ही छोटेछोटे बेहद खूबसूरत कपों में सर्व किया जाता है. यह कई फ्लेवर की मिलती है. ज्यादा महंगी भी नहीं है. कई होटल इसे कौंप्लिमैंटरी सर्व करते हैं. अपना एक अनुभव बताना चाहती हूं. मैं ने बचपन से ही दूध वाली, अदरक की चाय पी है. यह आदत छूटती ही नहीं थी. जब टर्किश चाय पी, सालों की यह आदत इस का एक कप पी कर छूट गई. मु?ो अपनी चाय एक बार भी याद नहीं आई. जो ले कर आई हूं, वही पी रही हूं. इस के बहुत से हैल्थ बैनिफिट्स भी हैं. इस में कुछ नहीं करना होता है, बस गरम पानी मिलाना होता है जैसे लोग हर्बल टी पीते हैं. पर इस के जैसा स्वाद किसी और चाय में नहीं है. यहां की करेंसी लीरा है.
खुशमिजाज लोग
जहांजहां भी खाना खाया. सब से पहले कौंप्लिमैंटरी ब्रैड आती है. यह बहुत बड़ी और बहुत अच्छी तरह से सिंकी होती है जो कुछकुछ भठूरे की शेप में होती है पर तली हुई नहीं होती. रोटी की तरह सिंकी होती है. वेटर्स बहुत खुशमिजाज हैं. कोईकोई तो उठते समय पूछता है कि गुड फूड?‘यस कहने पर हाई फाइव देता है. यहां भुट्टे बहुत बिक रहे थे. यहां हम पैदल बहुत चले. एक दिन तो 19 किलोमीटर चले. ट्राम भी थी पर इधरउधर खूबसूरत लोग. सुंदर चीजों को देखते हुए पैदल चलने में आनंद आ रहा था. न कोई पौल्यूशन न कोई भीड़.
इस्तांबुल में कुछ दिन बिता कर लौटने का समय आ गया. पैकिंग कर होटल से निकले. इस्तांबुल एअरपोर्ट पर काफी समय बिताया. बहुत सुंदर चीजें थीं. कुछ ड्यूटी फ्री में खरीद लीं. वहां के हिसाब से 8 बजे की फ्लाइट थी.
जब सुबह 5 बजे फ्लाइट ने मुंबई लैंड किया. सुंदर अनुभवों के साथ घर वापसी हो चुकी थी. यात्रा कई दिनों तक मनमिजाज खुश रखती है.