Travel Tips : रितिक अपने परिवार के साथ साल में 2-3 बार ट्रिप पर जाता है. दिल खोल कर खर्च करता है, फिर भी न तो बच्चे खुश होते हैं और न ही वाइफ. सब की अपनीअपनी शिकायतें होती हैं. किसी को होटल पसंद नहीं आता तो किसी को खाना. किसी को डैस्टिनेशन का चुनाव गलत लगता.

रितिक की प्रौबल्म यह है कि वह खुद कुछ भी प्लान नहीं करता. जैसे ही घूमने का डिसीजन हुआ, अपने ट्रैवल एजेंट को फोन मिलाता पूछता कि कहां जाएं. एजेंट उस के बजट के हिसाब से 2-4 डैस्टिनेशन बताता. रितिक बच्चों और वाइफ से कहता है कि उन में से कोई एक चुन लें.

बहुत सारे किंतुपरंतु के साथ एक डैस्टिनेशन फाइनल होती है. एजेंट सब बुक कर देता है. न रितिक को, न बच्चों को और न ही वाइफ को पता होता है कि वहां उन्हें कैसा होटल मिलेगा, कैसा ब्रेकफास्ट मिलेगा और वे क्याक्या उम्मीद कर सकते हैं.

नतीजा यह होता है कि वहां जा कर उन्हें कई सरप्राइज मिलते हैं. जाहिर है वे नैगेटिव ही होते हैं, जिस वजह से सब निराश हो जाते हैं.

प्लानिंग करना है जरूरी

कहीं भी घूमने जाने से पहले पूरी प्लानिंग नहीं करेंगे तो रितिक की तरह परेशान रहेंगे. डैस्टिनेशन आप की पसंद की होनी चाहिए न कि जो एजेंट बताए. बहुत बार एजेंट अपने हिसाब से चीजें थोपने लगते हैं. उन की बातों में न आएं. एक बजट तय करें. उस के बाद परिवार के साथ मिल कर पूरी रिसर्च करें. डैस्टिनेशन के लिए सब की सहमति होनी जरूरी है. पूरी प्लानिंग में बच्चों को जरूर शामिल करें ताकि बाद में वे शिकायत न कर पाएं. वैसे भी आजकल के बच्चे टेक सैवी हैं तो उन्हें ऐसा करने में मजा भी आएगा.

वहां कैसे जाना है, होटल सस्ता पड़ेगा या गैस्टहाउस अथवा एअर बीएनबी, अच्छे से पता कर लें. गूगल पर सब मिल जाता है. वहां के यूट्यूब वीडियो देख सकते हैं. ट्रेन, बस या फ्लाइट के टिकट बुक कराने के बाद तुरंत होटल बुक करने का प्रोसीजर शुरू कर दें. सब के रेट और सुविधाओं को मैच करें. जो सब से अच्छा लगे उसी को बुक करें. वैसे शहर के सैंटर में रहना ज्यादा अच्छा रहता है क्योंकि वहां से घूमने की जगहें ज्यादा दूर नहीं होतीं, साथ ही ट्रांसपोर्ट की सुविधा भी अच्छी होती है.

उस के बाद होटल के आसपास के रैस्टोरैंट देख लें, जहां पर आप डिनर करेंगे क्योंकि लंच तो वहीं होगा, जहां घूमने जाएंगे. एक बात और होटल में नाश्ता नहीं मिलेगा तो पहले ही पता करें कि नाश्ता कहां करेंगे. होटल के आसपास कोई जगह देख सकते हैं. उन से फोन कर के पूछ लें कि नाश्ता कितने बजे मिल जाएगा. आप को घूमने के लिए भी निकलना होगा. दूर की जगहों पर घूमने के लिए जल्दी निकलना होता है. इसलिए 7-8 बजे नाश्ता मिल जाना चाहिए. नाश्ते में क्याक्या मिलेगा, यह भी पता कर लें.

जहांजहां घूमने जाएंगे, वहां खाने के क्या औप्शन मिलेंगे, यह भी नोट कर लें. वैजिटेरियन हैं तो देख लें कि वहां आप के मतलब का कुछ मिलेगा भी कि नहीं खासकर विदेश जाते समय क्योंकि वहां वैजिटेरियंस को अकसर दिक्कत होती है. बेहतर है कि लोकल स्टोर से कुछ फ्रूट्स खरीद कर ले जाएं या घर से बिस्कुट, मठरी, लड्डू बना कर ले जा सकते हैं.

जो लोग नौनवैजिटेरियन हैं, विदेशों का नौनवेज उन की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता क्योंकि वहां अलग तरह का नौनवेज बनता है. इसलिए यह सोच कर खुश न हों कि हम तो नौनवैजिटेरियन हैं, कुछ भी खा लेंगे. आप को ढूंढना पड़ेगा कि कहां आप की चौइस का नौनवेज मिलेगा.

कब, कहां, क्या पहनना है

जहां जा रहे हैं, वहां के मुताबिक कपड़े चुनें. वहां का टैंपरेचर चैक कर लें कि आप की डेट्स पर वहां कैसा मौसम होगा. सफर लंबा हो या छोटा, जरूरी कपड़े ही रखें. वहां फैशन शो में तो जा नहीं रहे जो थोड़ीथोड़ी देर बाद कपड़े बदलेंगे. एक हफ्ते के सफर में 2 डैनिम के साथ आराम से घूम सकते हैं. टौप रोजाना बदला जा सकता है.

नितिका अपने हनीमून पर बाली गई तो उस ने ढेर सारे कपड़े रख लिए. वहां जा कर उसे बैक पेन शुरू हो गया. लिहाजा, सारे बैग उस के हस्बैंड को संभालने पड़े. रास्ते में ही दोनों की तकरार हो गई.

बेहतर है कि मिक्स और मैच कर के कपड़े रख लें.

कृतिका ने मनाली जाते समय यही किया. कभी शाल को स्वैटर की तरह पहन लिया, कभी शाल की तरह ओढ़ लिया. लेयर्स में कपड़े पहन लिए. इस से सामान ज्यादा नहीं हुआ और बिना टैंशन के मजेदार सफर गुजरा.

जूते, चप्पल पर भी ध्यान दें. हील की जगह आरामदायक जूते, जूतियां पहनें. स्पोर्ट्स शूज बेहतर रहते हैं. अच्छी कंपनी के स्पोर्ट्स शूज पहनेंगे तो पैरों में दर्द नहीं होगा.

नो मेकअप लुक

किसीकिसी जगह के लिए सुबह जल्दी निकलना होता है. ऐसे में मेकअप के लिए कम टाइम होता है. अगर शेयरिंग राइड से जा रहे हैं तो और भी जल्दी जाना पड़ता है क्योंकि बस, वैन या गाड़ी को कई होटलों से सब को इकट्ठा करना होता है. ढेर सारा मेकअप लगाना जरूरी नहीं है. हां, अगर आप को वीडियो बनाने हैं, वलौग बनाने हैं तो अलग बात है लेकिन उस में भी कभीकभार नैचुरल लुक अच्छा रहेगा.

खानेपीने का रखना होगा खयाल

लोकल क्चिजीन ट्राई करने से पहले अपने पेट की हालत का जायजा लें. आप को किस चीज से ऐलर्जी है, उस का भी खयाल कर लें वरना लेने के देने पड़ सकते हैं. बिना सोचेसम?ो लोकल चीजें ट्राई करने की गलती न करें. विदेश में तो ऐसा बिलकुल न करें. वहां इंडियन रैस्टोरैंट में भी जरूरी नहीं कि इंडियन शैफ ही हों. वहां जा कर आप निराश हो सकते हैं क्योंकि हो सकता है कि खाने में आप को वह स्वाद न मिले, जिस की तलाश में आप वहां पहुंचते हैं. रिसर्च कर के जाएंगे तो मुश्किल नहीं होगी.

यूट्यूब पर रैस्टोरैंट के वीडियो देखें. नौर्थ इंडियन खाने में रोटी, नान और दाल को करीब से देखें. वे सही हैं तो मतलब खाना इंडियन शैफ ने बनाया है.

होटल या गैस्टहाउस में ब्रेकफास्ट मिलेगा तो उसे भी देख लें. अपने देश में कोई खास दिक्कत नहीं होगी लेकिन विदेश जा रहे हैं तो होटल वालों को फोन या ईमेल कर के पूछ लें कि ब्रेकफास्ट में इंडियन औप्शन होंगे या नहीं.अगर नहीं हैं तो पहले से जान लें कि वहां आप को ब्रैड, फ्रूट्स, ड्राई फ्रूट्स, जूस, पेस्ट्री आदि पर ही गुजारा करना होगा. हां, अगर अंडा खाते हैं तो आप का काम बन जाएगा. एग स्टेशन पर जा कर अपनी पसंद का आमलेट बनवा सकते हैं.

वेज या नौनवेज भी पूछ लें. ज्यादातर देशों में वेज खाने को ‘नो मीट’ कहते हैं क्योंकि अंडा भी उन के लिए वेज होता है. तो आप कह सकते हैं कि आप को ‘नो मीट’ ऐंड ‘नो एग’ औप्शन चाहिए.

वहां से कोई चिप्स वगैरह खरीदें तो सावधान रहें क्योंकि चिप्स में भी नौनवेज होता है. ज्यादातर देशों में प्रोडक्ट की डिटेल इंग्लिश में न हो कर लोकल भाषा में होती है जिसे शायद आप पढ़ नहीं पाएंगे. जरूरी नहीं है कि नौनवेज वाले चिप्स पर लाल निशान दिया ही हो, जिस से आप सम?ा जाएं कि वह नौनवेज है. आप लोकल फू्रट्स ले सकते हैं. इस से आप के शरीर को पोषण भी मिलेगा. बेहतर है कि ऐसी चीजें इंडिया से ही ले कर जाएं.

सजग रहें

मीरा अपने परिवार के साथ मारीशस गई तो जिस दिन लौटना था, वहां तूफान आ गया. सभी फ्लाइट्स बंद हो गईं. वे होटल से चैक आउट कर चुके थे. पता किया तो होटल के सारे कमरे बुक थे. आननफानन में एक अपार्टमैंट बुक कराया. लेकिन खाने के लिए पास में कुछ नहीं था. पूरा मारीशस बंद हो चुका था. अपार्टमैंट की मालकिन के पास भी कुछ खास औप्शन नहीं थे. इसलिए उन्हें भूखे रहना पड़ा. वह ट्रिप उन के लिए एक बुरी याद बन कर रह गया. उस ने अपने साथ कुछ रखा होता, तो इस स्थिति से बच सकती थी.

शीना और वीरेन ने इस के बिलकुल उलट किया. अपने बच्चों के साथ सिंगापुर गए तो ढेर सारा खाने का सामान पैक कर लिया. रैडी टू ईट फूड की इतनी सारी वैरायटीज रख लीं लेकिन वहां कुछ नहीं खा पाए क्योंकि सिंगापुर में, ‘लिटल इंडिया’ नाम की जगह है, जहां हर तरह का इंडियन खाना बड़े आराम से और बजट में मिल जाता है. उन्हें चाहिए था कि बस थोड़ी सी चीजें इमरजैंसी के लिए रख लेते.

शौपिंग करना क्यों जरूरी

नीलेश और रिद्धिमा हनीमून पर घूमने दुबई गए. वहां से आते हुए उन के पास 5 सूटकेस थे. उन में से 3 तो शौपिंग के सामान से भरे थे. इस से उन का बजट कई गुणा बढ़ गया. एअरपोर्ट पर सामान के पैसे देने पड़े, सो अलग.

अकसर लोग अपने सगेसंबंधियों, दोस्तों के लिए खूब सारी शौपिंग कर के लाते हैं. इस से बजट तो बिगड़ता ही है, साथ ही सामान उठाने का झंझट अलग से. इस का नुकसान यह होता है कि वे कम बार घूमने जा पाते हैं क्योंकि बजट बहुत ज्यादा हो जाता है. एक बार किसी के लिए कुछ ले आए तो हर बार लाना पड़ता है.

अंजना और सागर हनीमून पर श्रीनगर गए तो उन्होंने अपनेअपने पेरैंट्स के लिए शाल और स्वैटर लिए. इस से उन के बजट पर भी असर नहीं पड़ा और उन्हें ज्यादा सामान भी नहीं उठाना पड़ा.

खुद के लिए भी शौपिंग करनी हो तो बहुत सोचसम?ा कर करें. रेट वगैरह चैक कर लें. घूमने आए हैं तो शौपिंग करना जरूरी है, यह किसी किताब में नहीं लिखा है. लिमिट में शौपिंग करेंगे या नहीं करेंगे तो घूमने का ज्यादा मजा ले पाएंगे.

मसाज कराना रहेगा फायदेमंद

आप कहीं भी घूमने जाते हैं तो पैरों में दर्द होना स्वाभाविक है. बड़ों के ही नहीं, बच्चों के पैरों में भी दर्द होता है. हर जगह आप को फुट मसाज वाले मिल जाएंगे, चाहे आप अपने देश में हों या कहीं विदेश में.

रात को होटल लौटते समय रास्ते में ही डिनर वगैरह निबटा कर मसाज जरूर करवाएं. इस से आप को नींद अच्छी आएगी और अगले दिन घूमने में परेशानी नहीं होगी.

मगर मसाज कराने से पहले मसाज करने वाले को अपनी फिजीकल कंडीशन बता दें. अगर कहीं दर्द है या डाक्टर ने कोई खास इंस्ट्रक्शन दी है तो जरूर बताएं वरना आप को फायदे की जगह नुकसान हो सकता है.

ये गोल्डन टिप्स आप के ट्रिप को मजेदार बना देंगे

घूमने की सभी जगहों की लिस्ट की 3 कौपीज साथ रखें. एक कौपी अपने हैंडबैग में, दूसरी कौपी सूटकेस में रखें क्योंकि अगर एक कौपी खो भी जाए तो दूसरी काम आ जाएगी. दूसरी के बाद तीसरी यूज कर सकते हैं. उस की 2-3 सौफ्ट कौपी भी अपने फोन, लैपटौप, ईमेल में जरूर रखें ताकि जरूरत पड़ने पर आप उसे यूज कर पाएं.

बस, ट्रेन, फ्लाइट के टिकट एडवांस में बुक कराने पर कुछ डिस्काउंट मिल सकता है या कहें कि सस्ते टिकट मिल सकते हैं.

टिकट पर अपना नाम जरूर चैक कर लें खासकर फ्लाइट टिकट में. एक भी स्पैलिंग की गलती होगी तो आप नहीं जा पाएंगे.

अपने टिकट की भी 2-3 कौपी करवा लें. एक कौपी घर वालों को जरूर दे कर जाएं ताकि उन्हें पता हो कि आप कौन सी बस, ट्रेन या फ्लाइट से जा रहे हैं. टिकट की भी सौफ्ट कौपी अपने मोबाइल, व्हाट्सऐप, ईमेल में जरूर रखें.

औनलाइन होटल की बुकिंग करने के बाद तुरंत होटल वालों से फोन पर बात कर लें. उन से ईमेल पर भी कन्फर्मेशन मंगवा लें. ऐसा न हो कि वहां जा कर आप को सरप्राइज मिल जाए. होटल वाले कहें कि आप की बुकिंग है ही नहीं. कोई भी कारण हो सकता है. इंटरनैट की कोई गलती हो सकती है. किसी व्यक्ति की गलती हो सकती है. अगर एजेंट ने होटल बुक किया है तो भी यह जरूरी है.

होटल चैक इन का टाइम अकसर दोपहर

बाद ही होता है. अगर आप डैस्टिनेशन पर जल्दी पहुंचने वाले हैं तो होटल वालों से बात कर लें, शायद वे आप को जल्दी चैक इन दे दें. अगर उन के पास रूम होता है तो वे दोपहर से पहले भी चैकइन दे देते हैं. लेकिन आप को पहले उन्हें इन्फार्म करना होगा कि आप किस समय पहुंचने वाले हैं. फोन पर बात हो तो ईमेल पर भी कन्फर्मेशन जरूर मंगवा लें क्योंकि हो सकता है कि जिस से आप की

बात हुई है वह नोट करना भूल जाए और जब आप पहुंचे उस समय डैस्क पर न हो, आप के पास ईमेल होगा तो आप दूसरे व्यक्ति को दिखा पाएंगे.

यह भी देख लें कि बसस्टौप, रेलवे स्टेशन या एअरपोर्ट से होटल या गैस्टहाउस तक कैसे पहुंचना है. कुछ होटल अपनी शटल सेवा चलाते हैं. मतलब वे अपने गैस्ट को लेने के लिए अपनी वैन या गाड़ी, एअरपोर्ट भेजते हैं. अगर आप का होटल शटल देता है तो उस की टाइमिंग जरूर पूछ लें. यह भी पूछ लें कि कौन सी गाड़ी आप को लेने आएगी. कभीकभी पता नहीं होता और शटल पास से हो कर निकल जाती है. उस के बाद वाली शटल आधा घंटा या इस से भी बाद में आती है. गाड़ी का फोटो मंगवा लें तो बेहतर है. इस से आप को उसे पहचानने में परेशानी नहीं होगी.

लगेज जितना कम होगा, आप घूमने का उतना ही ज्यादा मजा ले पाएंगे. फ्लाइट से जा रहे हैं तो एअरपोर्ट पर आप को आसानी होगी. डैस्टिनेशन पर पहुंचेंगे तो वहां बैल्ट पर सामान लेने में मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी. सूटकेस ज्यादा होते हैं तो वे बैल्ट पर अकसर एकसाथ नहीं आते. सामान लेने में ही आप को घंटों लग सकते हैं. बस या ट्रेन पर भी सामान चढ़ानेउतारने में आप को परेशानी होगी.

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