वाराणसी पर्यटन के लिहाज से बहुत ही अच्छा शहर है. यहां आसपास ऐसे तमाम शहर हैं जहां पर्यटक घूम सकते हैं. नवंबर-दिसंबर माह में यहां घूमना सब से अच्छा होता है. यहां दीवाली के 15 दिन के बाद देव दीवाली मनाई जाती है. इसमें गंगा के घाटों को सजाया जाता है.

यह त्योहार पर्यटकों के लिए सब से प्रमुख आकर्षण होता है. इस में गंगा नदी पूरी तरह से दीपों जगमगा उठती है. त्योहार की रात हजारों की संख्या में लोग यहां आते हैं. लोग नावों पर बैठ कर गंगा की सैर करने और दीप दान करने जैसे अवसरों का लाभ लेते हैं. केवल गंगा घाट ही नहीं आसपास की इमारतों को भी दीयों से सजाया जाता है.

बनारसी सिल्क साडि़यों और कालीनों ने भी इस शहर को वैश्विक बाजार में पहचान दिलाई है. यहां घाटों पर सुबह कुछ देर समय बिताना मन और चित्त को शुद्ध करने का अनोखा अनुभव है.

सारनाथ

वाराणसी से सिर्फ 10 किलोमीटर दूर है सारनाथ, जो बौद्ध धर्मावलंबियों का एक बड़ा तीर्थ है. ऐसा विश्वास है कि बोधगया में ज्ञान प्राप्त करने के बाद बुद्ध ने पहला उपदेश यहीं सारनाथ में दिया था. इसे महाधर्म चक्र परिवर्तन के नाम से भी जाना जाता है. धमेकस्तूप का निर्माण यह संकेत है कि उस समय इस की क्या अहमियत रही होगी.

चौखंडी स्तूप वह जगह है जहां पहली बार सारनाथ आए बुद्ध की अपने पहले 5 शिष्यों से मुलाकात हुई थी. यह जगह धर्म राजिकास्तूप और मूलगंधकुटी विहार जैसी पुरातात्विक महत्त्व की संरचनाओं के लिहाज से भी खासी अहमियत रखती है. सम्राट अशोक ने 273-232 ईसा पूर्व यहां बौद्ध संघ के प्रतीकस्वरूप विशालकाय स्तंभ स्थापित किया था. इस के ऊपर स्थापित सिंह आज देश का राष्ट्रीय प्रतीक है.

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