Festive Special: फैमिली के लिए बनाएं बादाम मूंग हलवा

फेस्टिव सीजन में मीठा बनना एक परंपरा की तरह है. वहीं मीठे की कई तरह की रेसिपी मौजूद है, जिनमें हलवा एक आम रेसिपी है. इसीलिए आज हम आपको बादाम मूंग हलवा की आसान रेसिपी बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली और फ्रैंड्स को परोस सकते हैं.

सामग्री

– 1/2 कप बादाम

– 1/2 कप मूंग दाल

– 2 बड़े चम्मच खसखस

– 1/2 कप गुड़

– 1/2 कप घी.

विधि

– मूंग दाल को भिगो कर कुंडी में पीस कर देशी घी में अच्छी तरह भून लें.

– फिर उस में भुने बादाम डालें. अब एक भारी तले वाले बरतन में गुड़ डाल कर पकाएं.

– पकने के बाद इस में मूंग दाल का मिक्स्चर डाल कर चलाती रहें.

– अब एक ट्रे में घी लगा कर उस में मिक्स्चर डालें. टुकड़ों में काट कर सर्व करें.

Festive Special: पुराने कपड़ों को नया करने के 5 ट्रिक्स

फेस्टिव सीजन प्रारम्भ हो चुका है. फेस्टिवल्स में बाजार में भांति भांति के वस्त्रों की भरमार होती है. कपड़ों के साथ साथ हमें घरेलू सामान की भी शॉपिंग करनी होती है और ऐसे में अक्सर बजट गड़बड़ाने लगता है. हर बार नए कपड़े खरीदना न तो हर किसी के लिए सम्भव होता है और न ही खरीदने में कोई बुद्धिमानी है क्योंकि कपड़ों का फैशन बहुत जल्दी बदलता है इस साल खरीदे गए कपड़े अगली साल तक आउट ऑफ फैशन हो जाते हैं और फिर उन्हें पहनने का मन ही नहीं करता. तो क्यों न थोड़ी सी क्रिएटिविटी से पुराने कपड़ों को ही नया रूप प्रदान किया जाए इससे आप कम खर्च में ही नई ड्रेस तैयार कर लेंगी साथ अपने हाथों से तैयार की गई ड्रेस को पहनकर आप आत्मिक संतोष भी अनुभव करेंगी. आज हम आपको पुराने कपड़ों को नया बनाने के कुछ ट्रिक्स बता रहे हैं-

-टॉय एंड डाय

ये कपड़ों को रंगने की ट्रिक है जिसमें डिजाइन के अनुसार कपड़े को धागे, सुतली से बांधकर शेष भाग को रंग देते हैं, सूखने के बाद जब धागे को खोला जाता है तो डिजाइन उभर आता है. इसके लिए डाइंग या फ़ूड कलर का प्रयोग किया जाता है. आप प्योर कॉटन के जैकेट, साड़ी, दुपट्टा, स्कर्ट आदि  को इस विधि से नया बना सकतीं हैं. इसमें आप स्पायरल, शिबोरी या क्रम्बल जैसे पैटर्न को प्रयोग कर सकतीं हैं. सूखने के बाद इन्हें पहली बार गर्म पानी में 1 टीस्पून नमक डालकर धोकर सुखाएं.

-हैंड पेंटिंग

अपने वार्डरोब की किसी भी साड़ी, दुपट्टा, जैकेट, स्कर्ट आदि पर आप अपने हाथों का जादू चलाकर उन्हें एकदम नया रूप दीजिए.

इसके लिए आप बाजार में उपलब्ध वाटर रेजिस्टेंट फेब्रिक कलर का प्रयोग करें, रंग को पतला करने के लिए पानी के स्थान पर  कपड़े के लिए विशेष रूप से बनाये गए मीडियम का प्रयोग करें. पेंटिंग पूरी हो जाने के बाद उस पर पार्चमेंट पेपर रखकर गर्म प्रेस रख दें इससे पेंटिंग जल्दी सूख जाएगी. पेंट किये गए कपड़ों को धोकर धूप में न सुखाएं और सदैव उल्टा करके ही सुखाएं.

-पैचवर्क

यूं तो यह काफी पुरानी टेक्नीक है परन्तु पैचवर्क का फैशन सदाबहार होता है जो सदैव फैशन में रहता है. पुराने शर्ट्स, दुपट्टे, कुर्ते आदि को इस विधि से नया रूप दे सकतीं हैं. बाजार में भी भांति भांति के पैच उपलब्ध हैं जिनका आप आसानी से प्रयोग कर सकतीं है. इन्हें आप फेवीग्लू से चिपकाने के साथ साथ सिलाई से भी अटैच कर सकतीं हैं.

-इम्ब्रॉयडरी और लेसेज

इम्ब्रॉयडरी अर्थात कढाई के माध्यम से आप किसी भी कपड़े को नया बना सकतीं हैं.  कढाई करने के लिए आप किसी भी फेब्रिक का प्रयोग कर सकतीं हैं. यदि आप बहुत अधिक कढाई नही  करना चाहतीं तो बॉर्डर पर लेस लगाएं और बीच में कोई भी छोटा नमूना बना सकतीं हैं. आज बाजार में भांति भांति की आधुनिक डिजाइन वाली लेसेज उपलब्ध है किसी भी सिंपल सी ड्रेस को आप लेस के प्रयोग से नया बना सकतीं हैं. कढाई के लिए सदैव अच्छी कम्पनी के धागे और पक्के रंग के कपड़े का ही प्रयोग करें ताकि धुलने पर उनका रंग न निकले.

-रीसाईक्लिंग

इस विधि से कपड़ों के साथ साथ आप किसी भी पुराने स्नीकर, सैंडल या फुटवियर को बीड्स, मोती, लेस, पॉम पॉम आदि से नया सा रूप दें. आप इन्हें ग्लू या रनिंग स्टिच से फिक्स कर सकतीं हैं. इसी प्रकार प्रयोग में न आने वाली साड़ी से लहंगा या स्कर्ट बनवाकर फेस्टिवल पर पहनें. पुराने फैंसी दुपट्टों से भी आप कुर्ते या बच्चों की स्कर्ट बनवा सकतीं हैं.

क्या आप करती हैं अपनी स्क‍िन की नियमित देखभाल

ग्लोइंग स्किन पाना किसकी ख्वाहिश नहीं होती, लेकिन हममें से ज्‍यादातर लोग अपनी स्किन का ठीक से ध्‍यान नहीं रखते हैं. ऐसे में होता ये है कि आपके समझते समझते इतनी देर हो जाती है कि आपकी स्क‍िन पूरी तरह से डैमेज हो जाती है.

यूं तो स्क‍िन डैमेज होने के बहुत से कारण होते हैं लेकिन धूल, धुंआ और प्रदूषण हमारी स्क‍िन पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालते हैं. ऐसे में स्क‍िन को नियमित देखभाल और पोषण की जरूरत होती है. थोड़ी सी सावधानी अपनाकर, आप पिग्मेंटेशन, सेंसिटिविटी और एंटी एजिंग जैसी समस्याओं से बच सकती हैं.

ज्यादातर मामलों में होता ये है कि लोग समय रहते अपनी स्क‍िन पर ध्यान नहीं देते और तब तक प्रॉब्लम इतनी बढ़ जाती है कि उसका असर नजर आने लगता है. ऐसे में देर करने से बेहतर है कि आप अभी से अपनी त्वचा पर ध्यान देना शुरू कर दीजिए.

1. क्‍लींजिंग

अपना चेहरा साफ करने के लिए नारियल पानी का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. क्‍लींजिंग के बाद स्किन के पोर्स बंद करने के लिए अल्कोहल फ्री टोनर का इस्तेमाल करना चाहिए.

2. मॉइश्चराइजर

मॉइश्चराइजर का इस्तेमाल सर्दियों और गर्मियों दोनों में करना चाहिए. अगर आपकी ऑयली स्किन है तो आपको वॉटर बेस्ड जेल और मॉइश्चराइजर का इस्तेमाल करना चाहिए. चेहरे को ठंडे पानी से धोएं. इससे आपके चेहरे का तापमान सही रहेगा, चेहरे पर ऑयल कम आएगा और मुहांसे भी नहीं होंगे.

3. सनस्क्रीम

सनस्‍क्रीन लोशन लगाना कभी ना भूलें. भारतीय स्किन के हिसाब से SPF 20 सबसे अच्छा रहता है. UVA प्रोटेक्शन वाला सनस्क्रीन नॉर्मल स्किन के लिए बहुत फायदेमंद है. अगर आपकी सेंसिटिव स्किन है तो सनब्लॉक UVB प्रोटेक्शन वाला सनस्क्रीन इस्तेमाल कर सकते हैं.

4. नाइट क्रीम

रात को सोने से पहले चेहरा धोकर नाइट क्रीम जरूर लगाएं. इससे आपकी त्वचा हमेशा कुदरती बनी रहती है और आसानी से प्रभावित नहीं होती है.

क्या हो जब गर्भ में बच्चा उल्टा हो जाए? प्रेग्नेंसी से जुड़ी दिक्कतों के बारे में एक्सपर्ट से जानें

प्रैग्नेंसी के दौरान, अक्सर बच्चे उलटते-पलटते हैं. जैसे-जैसे सप्ताह आगे बढ़ते हैं, शिशु का आकार बढ़ने लगता है, जिससे उनको घूमने-फिरने की बहुत कम जगह बचती है. लेकिन इसके बावजूद, शिशु बेहद ही हैरतअंगेज जिम्मानास्टिक के करतब करते रहते हैं. 32वें से 38वें सप्ताह के बीच, ज्यादातर बच्चों का सिर नीचे की तरफ होने लगता है. प्रसव की इस आदर्श स्थिति में बच्चे का सिर आपके गर्भाशय ग्रीवा के बिलकुल करीब होता है और आमतौर पर उसका रुख आपके पीछे की ओर होता है.

डॉ. मनीषा रंजन, सीनियर कंसलटेंट, प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा की बता रही हैं यदि आपका बच्चा प्रसव के दिन भी ब्रीच यानी उल्टी अवस्था में है तो कैसे नार्मल डिलीवरी या सामान्य प्रसव मुश्किल या असंभव हो सकता है.

हालाँकि, हर भ्रूण का सिर गर्भ में दक्षिण की ओर नहीं हो पाता. अवधि पूरी होने के बाद, लगभग 3 से 4 प्रतिशत बच्चों का सिर उनके समय पूरा होने तक ऊपर की तरफ ही रहता है. चूँकि, आपके बच्चे का निचला हिस्सा आपकी तय तारीख के कुछ हफ्ते पहले तक नीचे की तरफ है तो इसका मतलब यह नहीं है कि प्रसव के समय भी वह उल्टा ही होगा. कुछ बच्चे अंत तक यह पता नहीं लगने देते कि क्या होगा. लेकिन यदि आपका बच्चा प्रसव के दिन भी ब्रीच यानी उल्टी अवस्था में है तो नार्मल डिलीवरी या सामान्य प्रसव मुश्किल या असंभव हो सकता है.

ब्रीच प्रेग्नेंसी के क्या कारण हैं?

ब्रीच प्रेग्नेंसी यानी गर्भ में बच्चे का उलटा होने की अवस्था तीन प्रकार की होती है : फ्रैंक, पूर्ण और फुटलिंग ब्रीच. यह गर्भाशय में बच्चे की स्थिति पर निर्भर करता है. फ्रैंक ब्रीच, सबसे आम ब्रीच स्थिति है, जिसमें आपके बच्चे का निचला हिस्सा नीचे की ओर होता है और उसके पैर ऊपर की तरफ और उसके तलवे उसके सिर के पास होते हैं. वहीं, पूर्ण ब्रीच की स्थिति में सिर ऊपर की तरफ और उसके नितंब नीचे की ओर, साथ ही उसके पैर क्रॉस की स्थिति में होते हैं. वहीं, दूसरी तरफ फुटलिंग ब्रीच में, बच्चे का एक या दोनों पैर नीचे की तरफ होते हैं (इसका मतलब है, यदि उसका प्रसव योनी मार्ग से होता है तो उसके पैर पहले बाहर आएंगे). गर्भ में बच्चा खुद ही कैसे “गलत” स्थिति में हो जाता है, उसके कई सारे कारण हैं.

कारण-

-यदि किसी महिला की कई सारी प्रेग्नेंसी रही है

-कई सारे शिशुओं के साथ प्रेग्नेंसी हो

-यदि महिला ने पहले समय पूर्व जन्म दिया हो

-यदि गर्भाशय में काफी ज्यादा या काफी कम एम्निओटिक फ्लूइड हो, यानी बच्चे को घूमने के लिये -काफी जगह हो या फिर घूमने के लिये बिलकुल ही फ्लूइड ना हो.

-यदि महिला के गर्भाशय का आकार असामान्य हो या -फिर गर्भाशय में फ्राइब्रॉयड जैसी अन्य समस्याएं हों.

-यदि महिला को प्लेसेंटा प्रीविया की परेशानी हो.

कैसे पता चले कि बच्चा उल्टा है?-

लगभग 35 या 36 हफ्ते तक शिशु को ब्रीच नहीं माना जाता है. सामान्य गर्भधारण में, एक शिशु आमतौर पर जन्म की तैयारी की स्थिति में आने के लिये सिर नीचे कर लेता है. 35 सप्ताह से पहले शिशुओं का सिर नीचे या बगल में होना सामान्य है. वैसे, उसके बाद जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता जाता है और अपने क्षेत्र से बाहर आता है, उसके के लिये मुड़ना और सही स्थिति में आना कठिन हो जाता है.

आपका डॉक्टर आपके पेट के माध्यम से आपके शिशु की स्थिति को महसूस करके यह बता पाएगा कि आपका शिशु ब्रीच कर रहा है या नहीं यानी उलटा हो रहा है या नहीं. वे आपके प्रसव से पहले अपने ऑफिस और अस्पताल में अल्ट्रासाउंड के जरिए इस संभावना की सबसे अधिक पुष्टि कर पाएंगे कि बच्चा ब्रीच कर रहा है या नहीं.

ब्रीच प्रेग्नेंसी में क्या परेशानियाँ होती हैं?-

सामान्य तौर पर, ब्रीच प्रेग्नेंसी खतरनाक नहीं होती, जब तक कि बच्चे के जन्म का समय नहीं हो जाता. ब्रीच के साथ प्रसव होने पर इस बात का खतरा काफी ज्यादा होता है कि बच्चा बर्थ कैनाल में ना फंस जाए और गर्भनाल से बच्चे को हो रही ऑक्सीजन की आपूर्ति खत्म हो जाए.

इस तरह की स्थिति में सबसे बड़ा सवाल यह होता है कि उल्टी स्थिति के बच्चे को जन्म देने का सबसे सुरक्षित तरीका क्या है? परम्परागत रूप से, जब सिजेरियन डिलीवरी (पेट का ऑपरेशन करके प्रसव कराना) का इतना आम प्रचलन नहीं हटा था, तब डॉक्टरों और सबसे आम तौर पर दाइयों को उलटे शिशु का सुरक्षित प्रसव (ब्रीच डिलीवरी) कराना सिखाया जाता था . करान और सबसे आम दाइयाँ, सुरक्षित रूप से ब्रीच प्रसव करवाने के लिये प्रशिक्षित होते थे. तथापि, योनी मार्ग से ब्रीच डिलीवरी में ज्यादा जटिलताओं का खतरा रहता है. कई सारे डॉक्टर्स के अलग-अलग तरीके हो सकते हैं, लेकिन ज्यादातर एक्सपर्ट जितना संभव हो सके, सुरक्षित रास्ता अपनाना पसंद करते हैं, इसलिए ब्रीच प्रेग्नेंसी वाली महिलाओं में सर्जरी को प्रसव का सबसे सही तरीका माना जाता है.

संभवत: आपके डॉक्टर आपको बताएंगे कि आपका बच्चा उल्टा है या नहीं. आपको बच्चे के उल्टे जन्म लेने की चिंता के बारे में अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए, जिसमें सारे जोखिमों और सर्जरी को चुनने के फायदे शामिल होंगे. उनसे पूछना चाहिए कि सर्जरी से क्या होगा और कैसे उसकी तैयारी करनी है.

संतुलन: क्यों कर्तव्य निभाने के लिए राजी हुए दीपकजी

family story in hindi

कुछ इस तरह निभाएं घर की जिम्मेदारी

अकसर पत्नियों को शिकायत रहती है कि पति घरेलू कामों में उन की मदद नहीं करते. किसी हद तक उन की यह शिकायत सही भी है, क्योंकि शादी के बाद ज्यादातर पति घर के बाहर की जिम्मेदारी तो बखूबी निभाते हैं, मगर बात अगर रसोई में पत्नी की मदद करने की हो या घर की साफसफाई की तो अमूमन सभी पति कोई न कोई बहाना बना कर इन कामों से बचने की कोशिश करते नजर आते हैं. कहने को तो पतिपत्नी गाड़ी के 2 पहियों की तरह होते हैं, मगर जब आप एक ही पहिए पर घरगृहस्थी का सारा बोझ डाल दोगे तो फिर गाड़ी का लड़खड़ाना तो लाजिम है.

अकसर पत्नियां घर के कामों में इतनी उलझ जाती हैं कि उन के पास खुद के लिए भी समय नहीं होता. ऐसे में यदि उन्हें घर के कामों में पति का सहयोग मिल जाए तो उन का न सिर्फ बोझ कम हो जाता है, बल्कि पतिपत्नी के रिश्ते में मिठास और बढ़ जाती है.

यों बांटें काम

घर के काम को हेय समझना छोड़ कर पति कुछ कामों की जिम्मेदारी ले कर अननी गृहस्थी की बगिया को महका सकते हैं. ऐसे कई काम हैं, जिन्हें पतिपत्नी दोनों आपस में बांट कर कर सकते हैं:

– किचन को लव स्पौट बनाएं, अकसर पति किचन में जाने के नाम से ही कतराते हैं, मगर यहां आप पत्नी के साथ खाना पकाने के साथसाथ प्यार के एक नए स्वाद का भी आनंद ले सकते हैं. सब्जी काटना, खाना टेबल पर लगाना, पानी की बोतलें फ्रिज में भर कर रखना, सलाद तैयार करना आदि काम कर आप पत्नी की मदद कर सकते हैं. यकीन मानिए आप के इन छोटेछोटे कामों को आप की पत्नी दिल से सराहेगी.

– कभी पत्नी के उठने से पहले उसे सुबह की चाय पेश कर के देखिए, आप के इस छोटे से प्रयास को वह दिन भर नहीं भूलेगी. अगर पत्नी की तबीयत ठीक नहीं है तो ऐसे में हलकाफुलका नाश्ता बना कर उसे थोड़ा आराम दे सकते हैं.

– यदि पति किचन में कुछ पकाना चाहे तो उन्हें टोकिए मत. रसोईघर को व्यवस्थित रखें. सभी डब्बों में लेबल लगा कर रखने से पति हर चीज के लिए आप से बारबार नहीं पूछेंगे.

– अगर आप को शिकायत है कि आप की पत्नी सारा वक्त बाथरूम में कपड़ों की सफाई में गुजार देती है और आप के लिए उन से पास जरा भी फुरसत नहीं है तो इस का सारा दोष पत्नी को मत दीजिए. छुट्टी वाले दिन आप इस काम में उस का हाथ बंटा सकते हैं. कपड़ों को ड्रायर कर के उन्हें सुखाने डालते जाएं. इस तरह एकसाथ काम करते हुए आप दोनों को बतियाने का मौका भी मिल जाएगा.

– अकसर सभी घरों में हफ्ते भर की सब्जियां ला कर फ्रिज में स्टोर कर दी जाती हैं. टीवी पर अपना पसंदीदा शो या क्रिकेट मैच देखने में मशगूल पति को आप मटर छीलने के लिए बोल सकती हैं या फिर सब्जियां साफ करने के लिए दे सकती हैं.

– गार्डन में लगे पौधों को पानी देने का काम पति से बोल कर करवा सकती हैं.

– घर में कोई पालतू जानवर है तो उसे टहलाने की जिम्मेदारी दोनों मिल कर उठाएं.

– बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ विषय आप चुन लें. कुछ पति को दें.

– पति व घर के अन्य सदस्यों में अपने छोटेमोटे काम स्वयं करने की आदत डलवाएं. नहाने के बाद गीला तौलिया सूखने डालना, अपने कपड़े, मोजे आदि अलमारी में सलीके से रखने जैसे कई ऐसे काम हैं, जिन्हें घर का हर सदस्य खुद कर सकता है.

– यदि आप चाहती हैं कि पति घरेलू कामों में आप की दिल से मदद करें तो प्यार व मनुहार से कहें. यदि आप जबरदस्ती कोई काम उन पर थोपेंगी तो जाहिर है मिनटों का काम करने में उन्हें घंटों लग जाएं और कार्य भी ढंग से पूरा न हो. शुरू में उन के साथ मिल कर काम करें.

थोड़ा धैर्य बनाए रखें. धीरेधीरे ही सही, मगर एक बार पति आप के कामों में सहयोग देने लगेंगे तो उन्हें भी इस बात का एहसास होगा कि आप दिन भर में कितना खटती हैं. पति हो या पत्नी जब घर दोनों का है तो घर के कामों का जिम्मा भी दोनों मिल कर उठाएं. तभी तो वैवाहिक जीवन की गाड़ी सुचारु रूप से चलेगी.

REVIEW: बदले की कहानी है Chup: Revenge of the Artist 

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताःराकेश झुनझुनवाला,  आर बाल्की और गौरी शिंदे

निर्देशकः आर आल्की

कलाकारः दुलकर सलमान, श्रेया धनवंतरी, सनी देओल, पूजा भट्ट, सरन्या पोंवन्नन, राजीव रविंदनाथन, अभिजीत सिन्हा व अन्य.

अवधिः दो घंटे 15 मिनट

सिनेमा समाज का दर्पण होता है. यह बहुत पुरानी कहावत है.  इसी के साथ सिनेमा मनोरंजन का साधन भी है. लेकिन भारतीय, खासकर बौलीवुड के फिल्मकार निजी खुन्नस निकालने व किसी खास अजेंडे के तहत फिल्में बनाने के लिए सत्य को भी तोड़ मरोड़कर ही नहीं पेश कर रहे हैं, बल्कि कई फिल्म स्वतः रचित झूठ को सच का लबादा पहनाकर अपनी फिल्मों में पेश करते हुए उम्मीद करने लगे हैं कि दर्शक उनके द्वारा उनकी फिल्म में पेश किए जाने वाले हर उल जलूल व असत्य को सत्य मान कर उनकी स्तरहीन फिल्मों पर अपनी गाढ़ी कमाई लुटाते रहें. ऐसे ही फिल्मकारों में से एक हैं- आर.  बाल्की, जिनकी नई फिल्म ‘‘चुपः रिवेंज आफ आर्टिस्ट’’ 23 सितंबर को सिनेमा घरांे में पहुॅची है.

लगभग तीस वर्ष तक एडवरटाइजिंग से जुड़े रहने के बाद 2007 में जब आर बाल्की बतौर लेखक व निर्देशक पहली फीचर फिल्म ‘‘चीनी कम’’ लेकर आए थे, उस वक्त कई फिल्म क्रिटिक्स ने उनकी इस फिल्म को अति खराब फिल्म बतायी थी. यह बात आर बाल्की को पसंद नही आयी थी. उसी दिन उन्होने फिल्म क्रिटिक्स को संवेदनशीलता व संजीदगी का पाठ पढ़ाने के लिए फिल्म बनाने का निर्णय कर लिया था. यह अलग बात है कि ‘चीनी कम’ के बाद उन्होने ‘पा’ जैसी सफल फिल्म के अलावा ‘शमिताभ’ जैसी अति घटिया व ‘की एंड का’ जैसी अति साधारण फिल्में बनाते रहे. और अब ‘चुपः रिवेंज आफ आर्टिस्ट’ लेकर आए हैं. जिसमें उन्होने संवेदनशीलता की सारी हदें पार करने के साथ ही दर्शकों को असत्य परोसने की पूरी कोशिश की गयी है. इतना ही नही आर बाल्की ने अपनी पहली फिल्म की समीक्षा की ख्ुान्नस निकालते हुए फिल्म ‘चुपः द रिवेंज आफ आर्टिस्ट’ में चार फिल्म क्रिटिक्स की बहुत विभत्स तरह से हत्या करवायी है. अफसोस सेंसर बोर्ड ने ऐसे दृश्यों को पारित भी कर दिया.

आर बाल्की ने अपनी फिल्म ‘‘चुप. . ’’ में दिखाया है कि गुरूदत्त की अंतिम फिल्म ‘‘कागज के फूल ’’ थी. इस फिल्म की फिल्म क्रिटिक्स ने इतनी बुराई की थी कि इसी अवसाद में गुरूदत्त ने ‘कागज के फूल’ के बाद कोई फिल्म नहीं बनायी और इसी गम में उनका देहांत हो गया था. अब फिल्म ‘चुप’ में गुरूदत्त का शागिर्द फिल्मों को एक स्टार देने वाले फिल्म क्रिटिक्स की निर्मम हत्या करने पर निकला है. मुझे नही पता कि हमारे साथ ही फिल्म ‘‘चुपः रिवेंज आफ आर्टिस्ट’ देख रही अदाकारा वहीदा रहमान पर यह सब देखकर क्या बीत रही होगी,  क्योंकि गुरूदत के संंबंंध में वहीदा रहमान से बेहतर कौन जानता है?

हर कोई जानता है कि स्व. गुरूदत्त अपने जमाने के मशहूर कलाकार, निर्माता,  लेखक व निर्देशक थे. गुरूदत्त की फिल्म ‘कागज के फूल ’ 1959 में प्रदर्शित हुई थी.  फिर 1960 में प्रदर्शित फिल्म ‘चैंदहवीं का चांद’ का निर्माण करने के साथ ही गुरूदत्त ने इसमें अभिनय भी किया था. फिल्म ‘कला बाजार’ में भी अभिनय किया था. 1962 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘साहिब बीबी और गुलाम’ का भी  निर्माण करने के साथ उसमें अभिनय किया था. इसके अलावा 1963 में प्रदर्शित ‘भरोसा’ व ‘बहूरानी’, 1964 में प्रदर्शित ‘सुहागन’, ‘सांझ और सवेरा’ में गुरूदत्त ने अभिनय किया था. जब गुरूदत्त की मृत्यू हुई तब वह अभिनेत्री साधना के साथ फिल्म ‘पिकनिक’ में अभिनय कर रहे थे, जो कि बाद में पूरी नही हो पायी. पर इस बात को आर बाल्की अपने स्वार्थ व निजी बदले की कहानी लिखते समय नजरंदाज कर गए. .

इतना ही नही आर बाल्की को अपनी बात को रखने के लिए 110 वर्ष के भारतीय सिनेमा में महज एक फिल्म ‘कागज के फूल’ ही याद रही. वह फिल्म ‘शोले’’ या ‘लम्हे’ को क्यों भूल गए?

कहानीः

फिल्म ‘चुप’ शुरू होती है फिल्म क्रिटिक्स नितिन श्रीवास्तव की विभत्स तरीके से निर्मम हत्या से. पता चलता है कि उन्होने एक फिल्म की समीक्षा लिखते हुए एक स्टार दिया था. इसके बाद इसी तरह से तीन क्रिटिक्स की हत्याएं होती हैं. पुलिस हत्यारे को पकड़ने के लिए सक्रिय हो जाती है. उधर ‘फिल्म क्रिटिक गिल्ड’ निर्णय लेता है कि वह किसी भी फिल्म की समीक्षा नही लिखेगें. और हत्याओं का सिलसिला रूक जाता है. एक तरफ पुलिस इंस्पेक्टर अरविंद( सनी देओल) अपनी टीम के साथ हत्यारे की तलाश की में लगे हुए हैं. उधर एक फिल्म पत्रकार नीला(श्रेया धनवंतरी ) और फूल की दुकान चलाने वाले डैनी(दुलकर सलमान ) के बीच प्रेम कहानी चल रही है. कोई सुराग न मिलता देख  पुलिस इंस्पेक्टर अरविंद फिल्म वालों की चहेती सायके्रटिक जिनोबिया (पूजा भट्ट ) की मदद लेते हैं. और फिर एक नाटक रचकर उसमंे नीला का साथ लेती है. अंततः हत्यारा पकड़ा जाता है. पता चलता है कि हत्यारा गुरूदत्त को पूजता है. वह फिल्म ‘कागज के फूल’ का दीवाना है. उसके घर में एक फिल्म की रील पड़ी है. उसे गुस्सा इस बात का है कि उसके पिता की फिल्म की क्रिटिक्स ने आलोचना की थी और फिर उसके पिता ने फिल्म नहीं बनायी.

लेखन व निर्देशनः

इस फिल्म की पटकथा आर बाल्की ने फिल्म क्रिटिक राजा सेन और रिषि विरमानी के साथ मिलकर लिखा है. लेकिन आर बाल्की मात खा गए हैं. जो फिल्मसर्जक या फिल्म क्रिटिक्स नही है, वह इस फिल्म को समझ पाएंगे, इसमें शक है? फिल्म का क्लायमेक्स बहुत गड़बड़ है. क्लायमेक्स में हत्यारा जेल में बंद है. उसके कार्यों से अहसास होता है कि कुछ विक्षिप्त है. एक दिन अखबार में छपी खबर ‘‘फिल्म क्रिटिक्स रोहित वर्मा की कोविड से मौत’ पढ़कर वह हंसता है और कहता है कि यह सब इसी तरह मरेंगें? भले ही आर बाल्की ने उसे विक्षिप्त जतला दिया, पर इस दृश्य से फिल्मकार स्वयं कितना संवेदनशील व संजीदा है, इसका अहसास भी हो जाता है.

फिल्म की गति काफी धीमी है. इंटरवल से पहले फिल्म सशक्त है, मगर इंटरवल के बाद फिल्म पर फिल्मकार की पकड़ ढीली हो जाती है. वैसे गुरूदत्त को फिल्म के माध्यम से अच्छा ट्ब्यिूट दिया गया है. गुरूदत्त की फिल्म के गाने व कुछ दृश्य दिखाए गए हैं. तो वहीं लीना व डैनी के प्यार में भी फिल्म ‘कागज के फूल’ के दृश्य नजर आते हैं. मगर श्रेया धनवंतरी व दुलकर सलमान को अर्धनग्न अवस्था में दिखाए बिना भी काम चल सकता था. इतना ही नही फिल्मकार ने फिल्म के अंत में क्रेडिट देते समय मशहूर गीतकार ‘साहिर लुधियानवी’ को का नाम ‘साहिर लुधियाना’ लिखकर अपने सिनेमा के ज्ञान का बखान भी कर दिया.

गुरुदत्त की ‘कागज के फूल’ के जाने के तूने कही,  ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है जैसे गानों को निर्देशक ने कहानी में काफी रूमानी और मार्मिक अंदाज में फिल्माया है.  अमित त्रिवेदी का संगीत कानों को सुकून देता है.

अभिनयः

फूल की दुकान चलाने वाले डैनी के किरदार में दुलकर सलमान का अभिनय शानदार हैं. उन्होने इस किरदार की जटिलता को भी बाखूबी अपेन अभिनय से उकेरा है. नीला के किरदार में श्रेया धनवंतरी खूबसूरत लगने के साथ ही चपल व चंचल नजर आयी हैं. पूजा भट्ट का अभिनय कमाल का है. इंटरवल से पहले पुलिस इंस्पेक्टर अरविंद के किरदार में सनी देओल का अभिनय साधारण है, पर इंटरवल के बाद उनकी परफॅार्मेंस जोरदार है.

Anupama के खिलाफ किंजल को करेगी बा, कहेगी ये बात

सीरियल अनुपमा में इन दिनों फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां तोषू के अफेयर के कारण किंजल टूट गई है तो वहीं अनुपमा के फैसले के कारण बा, पाखी और तोषू गुस्से में नजर आ रहे हैं. हालांकि अपकमिंग एपिसोड में अनुपमा की मुसीबतें और बढ़ने वाली हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

किंजल को भड़काती है बरखा

 

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अब तक आपने देखा कि बरखा, किंजल को तोषू के खिलाफ भड़काते हुए तलाक लेने का सुझाव देती है, जिसे सुनकर किंजल उसे अकेला छोड़ने की बात कहती है. वहीं अनुपमा ऑफिस जाती है. इसी बीच किंजल, आर्या को लेकर परेशान होती है, जिसके चलते अनुपमा घर पहुंचने की बात कहता है. दूसरी तरफ, बा, अनुपमा पर तोषू और किंजल की शादी तोड़ने का आरोप लगाती है और वनराज से किंजल को घर वापस लाने के लिए कहती है.

 

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सुसाइड की धमकी देगा तोषू

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि किंजल को संभालते हुए अनुज के चोट लग जाती है, जिसके कारण अनुपमा पैनिक हो जाती है. हालांकि अनुज उसे शांत कराता है, जिसके बाद किंजल और अनुज उसे संभालने की बात कहते हैं. दूसरी तरफ, तोषू अपना गुस्सा वनराज से जाहिर करेगा और अपना घर टूटने का जिम्मेदार वनराज और अनुपमा को बताएगा. साथ ही वह उन्हें सुसाइड करने की धमकी देगा, जिसे सुनकर वनराज परेशान हो जाएगा.

 

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बा लगाएगी अनुपमा पर इल्जाम

 

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इसके साथ ही बा एक बार फिर कपाड़िया हाउस में जाकर हंगामा खड़ा करेगी. दरअसल, बा, किंजल और उसकी बेटी को जबरदस्ती शाह हाउस लौटने के लिए खिंचेगी और कहेगी कि अनुपमा उसका घर तोड़ देगी. हालांकि अनुपम उसे रोकेगी और किंजल और तोषू को उनकी जिंदगी का फैसला लेने के लिए कहेगी. लेकिन बा उसे कहेगी कि उसने पहले खुद का घर तोड़ा और अब वह किंजल का घर भी तोड़ देगी, जिसे सुनकर अनुपमा और अनुज गुस्से में दिखेंगे.

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सायंतनी घोष एक मॉडल और अभिनेत्री है. उन्होंने सबसे अच्छा किरदार जी टीवी के धारावाहिक ‘नागिन’ में निभाया था.वर्ष 2002 में टेलीविजन सीरियल कुमकुम – एक प्यारा सा बंधन, नागिन, महाभारत, नामकरण आदि से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली इस बंगाली बाला ने अभिनय के बल पर अपनी जगह बनाई है.

बंगाली परिवार में जन्मी सायंतनी घोष ने मिस कलकत्ता सौंदर्य प्रतियोगिता जीती और कई बांग्ला फिल्मों में काम की. साल 2002 में धारावाहिक कुमकुम – एक प्यारा सा बंधन में पहली टेलीविजन डेब्यू किया. साल 2014 में घोष ने ‘इतना करो ना मुझे प्यार’ में एक प्रतिपक्षी की भूमिका निभाई और डेयर 2 डांस में एक प्रतियोगी बन गई. इसके अलावा उन्होंने बिग बॉस 6 में भी भाग लिया है.

इन दिनों सायंतनी सोनी सब पर अलीबाबा दास्तान ए काबुल’ एक फेंटासी शो में सिमसिम की भूमिका निभा रही है, पेश है कुछ अंश.

सवाल – अभिनय में आना एक इत्तफाक था या बचपन से सोचा था, किससे प्रेरणा मिली?

जवाब – मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से हूं, जहाँ एक्टिंग के बारें में कभी सोचा नहीं जाता. मैं पढ़ाई में तेज थी और परिवार वाले चाहते थे कि मैं इंजिनियर या डॉक्टर बनू. मैंने इस प्रोफेशन को नहीं चुना, प्रोफेशन ने मुझे चुना है. ये सही है कि बंगाल कला और संस्कृति में बहुत धनी है, वहां आज भी शाम को तकरीबन हर घर में शास्त्रिय संगीत की आवाज सुनाई पड़ती है. ऐसी जगह में अभिनय में आना कोई बड़ी बात नहीं थी. बचपन से ही डांस का शौक था और मैंने कई डांस ड्रामा में भाग भी लिया था, लेकिन अभिनय की बात नहीं सोची थी. असल में मैंने जब मिस कोलकाता के लिए भाग लिया और रनर अप रही, तो मेरे लिए अभिनय का क्षेत्र खुल गया, कई ऑफर आने लगे. पहले मैंने मॉडलिंग औरबांग्ला फिल्मों में अभिनय करना शुरू किया. इसके बाद मुंबई मैं छुट्टियों  में आई थी और कुछ पॉकेट मनी कमाने की इच्छा थी और छोटी-छोटी अभिनय का काम मुझे मिलते गए और मैं करती गयी. मुंबई आने के तीन से चार साल बाद पता चला कि मेरा अभिनय में ही जाना ठीक रहेगा.

सवाल – इस शो में खास आपके लिए क्या है?

जवाब – पहले इसके ऑफर में मुझे समझ नहीं आया था, क्योंकि सिमसिम की कोई भूमिका अबतक नहीं थी. निर्देशक ने मुझे समझाया कि इसमें सिमसिम को एक आकार दिया जाएगा, जो पहले एक साउंड थी. इससे मुझे बहुत अच्छा लगा और इसे करने की इच्छा पैदा हुई. ये पहली बार हो रहा है और दर्शक भी सिमसिम को देखना पसंद कर रहे है, उनके लिए भी यह एक सरप्राइज है. पहले भी मैंने सोनी सब के साथ काम किया है, इसलिए कोई नई बात नहीं है. अलीबाबा की कहानी एक ऐसी कहानी है, जिसे बच्चे सुनना और देखना पसंद करते है. इसकी शूटिंग भी लार्जर देन लाइफ की तरह की गई है. इसमें मैजिक, रोमांस, फेंटासी के साथ-साथ मेरी भूमिका एक विलेन की है, जो मैंने कभी नहीं किया. इसके अलावा इसमें अभिनय भी चुनौतीपूर्ण है. कहानी में एक प्यार है, जिसके लिए सिमसिम सबकुछ करना पसंद करती है. लुक बहुत सुंदर है और यह उडती रहती है.

सवाल – इसमें आपकी कॉस्टयूम काफी हैवी है, कितने घंटे तक इसे पहने रहती है, इसे निकलना कितना मुश्किल होता है?

जवाब – हर दिन इसे पहनना पड़ता है, ड्रेस काफी हैवी है, लेकिन सबसे अधिक हैवी मुकुट है. इसे अभिनय करते वक़्त गिरने की संभावना होती है, डांस के समय भी सम्हालना कठिन होता है. मुझे इस कॉस्टयूम को पहनने में दो घंटे लगते है, क्योंकि ड्रेस के अलावा जेवर, मुकुट आदि को पहनना पड़ता है, जबकि उतारने में अधिक समय नहीं लगता.

सवाल – पहला ब्रेक कब मिला? परिवार का सहयोग कितना रहा?

जवाब – धारावाहिक ‘कुमकुम’ में मुझे पहली ब्रेक मिली. परिवार का सहयोग होने की वजह से 17 साल तक मैं काम कर पा रही हूं. 18 साल में मैंने मॉडलिंग शुरू की तब उन्हें लगा नहीं था कि मैं अभिनय भी करुँगी, क्योंकि मैं मध्यम वर्गीय परिवार से है, इसलिए पढाई को अधिक महत्व दिया गया, लेकिन जब मैं अभिनय के लिए कही भी गई मेरी माँ साथ जाती थी. कोलकाता से मुंबई आकर यहाँ तक पहुंचना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है.

सवाल – क्या कभी कास्टिंग काउच का सामना करना पड़ा?

जवाब – मुझे सामना नहीं करना पड़ा. एक दो बार मैने एक फिल्म के लिए निर्देशक से मिलने गयी थी और उनकी बातों से मैं सहज नहीं थी. एक निर्देशक ने कहा था कि मैं पोर्टफोलियो के अलावा आपका ऑडिशन ले लूँगा,लेकिन उससे आपकी अभिनय क्षमता का पता चलना मुश्किल होगा, इसलिए थोड़ा समय हम दोनों एक दूसरे को समझने के लिए देते है, ऐसी बाते शुरू होते ही मैंने उसे वहीँ रोक दिया. टीवी इंडस्ट्री के लिए मैं गर्व महसूस करती हूं, दूसरे शहर से होने के बावजूद मुझे काम मिला और मैं ग्रो भी कर रही हूं.

सवाल – आप अपने पति से कब मिली?

जवाब – मैं उनसे एक कॉमन फ्रेंड्स के द्वारा मिली थी थी. 8 से 9 साल की दोस्ती के बाद दोनों ने शादी की. एक दूसरे को 9 सालों से दोस्त के रूप में जाना, बाद में शादी की. इतने समय तक एक दूसरे को जानने के बाद कुछ समस्या नहीं रह जाती. वैसे तो हर रिश्ते में एक दूसरे के साथ सामंजस्य करने के लिए समय और इच्छा दोनों की जरुरत होती है.

सवाल – क्या कभी रिजेक्शन हुआ, उसे कैसे लिया?संघर्ष कितना रहा?

जवाब –रिजेक्शन का सामना हर कलाकार को करना पड़ता है और ये सभी आर्टिस्ट को पता होता है. अच्छी भूमिका मिलने का भी संघर्ष हमेशा रहता है. इसके अलावा शो कितने दिनों तक चलेगी, उसका स्ट्रेस रहता है. ये फील्ड तनावपूर्ण होती है. कभी दर्शक किसी शो को स्वीकार न करने पर वह तुरंत बंद हो जाती है. ये असुरक्षित प्रोफेशन है. संघर्ष सबका अलग होता है. किसी को दो वक्त की रोटी का संघर्ष, किसी को जल्दी कामयाबी के लिए संघर्ष करना पड़ता है. मेरे संघर्ष कम करने की वजह मेरा का बांग्ला फिल्मों में काम करना था. मेरे लिए मेरी कामयाबी टिकाये रखना एक बड़ी संघर्ष है. मेरी जिंदगी के डेढ़ साल कुछ काम किये बिना गुजरे है. काम आते थे, लेकिन मेरे हिसाब से नहीं थे, तो छोड़ना पड़ता था. इसके अलावा पहले मुझे किसी भूमिका के लिए यंग कहा जाता था, अब स्किन में एज बताते है. 40 के बाद एक नारी माँ जैसी ही दिखनी चाहिए. समाज में भी एक टाइपकास्टिंग है. उस वक़्त परिवार ही काम आता है, क्योंकि उन्होंने मेरी आत्मविश्वास को कभी कम होने नहीं दिया और मैं आगे बढती गयी. मैंने सब अपनी बलबूते पर किया है और गलत भी मैंने ही किया है. मुझे हमेशा खुद को ये समझाना पड़ता है कि अभिनय मेरा काम है और इसे मेहनत और लगन से करना है, स्टारडम आती, जाती है, इसलिए क्रिएटिविटी पर अधिक ध्यान देना आवश्यक है.

सवाल – कोई कॉम्प्लीमेंट जो आपको बहुत पसंद आई?

जवाब – मैंने एक टीवी शो ‘नामकरण’ में सौतेली माँ की भूमिका निभाई थी, सबकी सोच है कि सौतेली माँ एक चुड़ैल होगी, बच्चे कोमारेगी डाटेंगी, लेकिन सौतेले बच्चे के साथ मेरा घर रिश्ता था. उस शो में मैंने खून का नहीं, दिल का रिश्ता जोड़ा है, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया. मैं एक कलाकार हूं और एक्टिंग दिल से करती हूं, ऐसे में अगर मेरी कोई भूमिका किसी दर्शक की जिंदगी के साथ जुड़ जाती है,  तो उससे अच्छी बात कुछ नहीं हो सकती. इसके अलावा कुछ लोगों ने मुझे शार्प फीचर वाली लड़की कहा, जो सिंपल लड़की की भूमिका नहीं निभा सकती. ये सब बातें सुननी पड़ती है, लेकिन मैं अपने काम से खुश हूं.

एक्सपर्ट के अनुसार दिल की बीमारियों के बारे में ऐसे पैदा करें जागरूकता

कार्डियोवैस्कुलर बीमारी और इससे जुड़े जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाने से आबादी के इसके संपर्क में आने की सम्भावना कम हो जाती है, जिससे कि सीवीडी से संबंधित मौतों की संख्या में भी कटोती होती है. जागरूकता के साथ हर बीमारी को रोका जा सकता है, सही समय पर पता लगने से उचित इलाज देकर लाखो ज़िन्दगीयाँ बचाई जा सकती हैं.

जब किसी इंसान को बीमारी के बारे में पता चलता है, तो वे उस बीमारी के निवारक के लिए’ कदम उठाता है , जैसे स्क्रीनिंग और परीक्षणों के लिए सक्रिय रूप से जाना, जिससे कि बीमारी के हानिकारक प्रभावों को कम किया जा सके.  यह तभी संभव है जब वे रेगुलर हेल्थ चेकअप करवाए.

ऐसा अनुमान है कि भारत में होने वाली 63 प्रतिशत मौतें नॉन -कम्युनिकेबल डिज़ीज़  के कारण होती हैं, जिनमें से 27 प्रतिशत मौतों का कारण हृदय रोग होता है.  इसके अतिरिक्त, 40 से 69 वर्ष की आयु के लोगों में होने वाली 45% मौतों, सीवीडी के कारण होती  है. इस बीमारी के लक्षणों में उच्च रक्तचाप, सीने में दर्द, और सांस लेने में कठिनाई शामिल है.  भारत में दिल के दौरे की घटनाएं इतनी खतरनाक दर पर हैं कि जागरूकता पैदा करना आवश्यक है. सीवीडी के लिए शारीरिक गतिहीन और अस्वस्थ जीवन शैली प्रमुख योगदानकर्ता हैं.  भारत में सीवीडी के मामले अस्वास्थ्य भोजन के सेवन, धूम्रपान और शराब पीने जैसे कारणों से भी बढ़ रहे हैं. इसके अलावा, COIVD-19 ने  सीवीडी के जोखिम को और तीव्र गति से बड़ा दिया हैं.

डॉ अंबू पांडियन, चिकित्सा सलाहकार, अगत्सा इस  खतरनाक बीमारी के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के कुछ तरीके साझा कर रहे हैं जिनसे  विश्वभर में लाखों लोगों की जान बच सकती हैं.

सीपीआर पर सेमिनार और कार्यशालाओं का आयोजन –

अस्पताल के बाहर दिल का दौरा पड़ने से मरने वालों की संख्या 10 में से 8 है. अगर कार्डियक अरेस्ट के पहले कुछ मिनटों में ही मरीज़ को सीपीआर  दे दिया जाए तो इन नम्बर्स को कम किया जा सकता है.   जब दिल धड़कना बंद कर देता है तो किसी व्यक्ति की जान बचाने के लिए एक आपातकालीन प्रक्रिया –  सीपीआर दिया जाता है. अस्पताल के बाहर हजारों लोगों की जान बचाने के लिए पैरामेडिक्स और चिकित्सक भी कार्यशालाएं और सेमिनार आयोजित कर सकते हैं ताकि लाखों लोगो की जान बचाई जा सके.

नियमित जांच करवाना  –

हृदय रोग से पीड़ित लोगों का अज्ञानी होना भी आम बात है. ज्यादातर मामलों में, लक्षण अपरिचित लेकिन घातक होते हैं. उच्च कोलेस्ट्रॉल और उच्च रक्तचाप जैसे जोखिम कारक कार्डियक अरेस्ट के चेतावनी संकेत हैं. एक दूसरे को नियमित जांच के लिए प्र्रोत्साहन करने से सीवीडी से जुडी मौतों को कम किया जा सकता है.

फिटनेस बनाए रखें –

कार्डियक अरेस्ट का सबसे बड़ा कारण अनियमित शारीरिक गतिविधि हैं. बिना किसी शारीरिक गतिविधि के लम्भे समय तक बैठे रहने से दिल के दौरे का ख़तरा बढ़ जाता है.  इसलिए पूरे दिन में कम से कम एक बार एक्सेर्साइज़ करने की एडवाइस दी जाती है.  अगर एक्सेर्साइज़ न हो पाए तो कम से कम पूरे दिन में 30 मिनट के लिए पैदल चले.

भारत में, सीवीडी एक गंभीर खतरे के रूप में उभरा है. जिस प्रकार पच्छिमी देशों ने इस महामारी को नियंत्रण किया है ठीक उसी प्रकार भारत को भी इस बीमारी से बचने के लिए सख्त कदम उठाने का समय नज़दीक आगया हैं.  जनसंख्या स्तर पर सामान्य जोखिम कारकों और चिकित्सा उपचारों में परिवर्तन के कारण इन देशों में हृदय संबंधी मृत्यु दर में गिरावट आई है, जनसंख्या स्तर पर तंबाकू के उपयोग, कोलेस्ट्रॉल और रक्तचाप में परिवर्तन के कारण मृत्यु दर में आधे से अधिक कमी आई है. हृदय रोग के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के लिए पच्छिमी देशों में नेशनल वियर रेड डे मनाया जाता हैं.  ठीक उसी प्रकार हमारा देश भी  जागरूकता पैदा करने के लिए इसी तरह की पहल करने की आवश्यकता है.

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