GHKKPM: विराट को गोली लगते ही लोगों का फूटा गुस्सा, मेकर्स की लगाई क्लास

स्टार प्लस के सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी अक्सर दर्शकों के निशाने पर आ जाती है. जहां सरोगेसी ट्रैक के चलते फैंस ने पाखी और विराट के किरदारों की धज्जियां उड़ाई थीं तो वहीं अब अपकमिंग ट्रैक का प्रोमो देखकर फैंस के बीच एक बार फिर मेकर्स के लिए गुस्सा बढ़ गया है और सोशलमीडिया पर वह ट्रोलिंग के शिकार हो रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

विराट को लगेगी गोली

 

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सीरियल में लीप के बाद इन दिनों विनायक के इलाज के लिए सई और विराट एक बार फिर साथ दिख रहे हैं. हालांकि सई, विराट से सवि की सच्चाई छिपाने की कोशिश करती दिख रही हैं. हालांकि नए प्रोमो में विराट को जहां सवि के बेटी होने का सच पता चलेगा तो वहीं विराट को इसी दौरान गोली लग जाएगी. दरअसल, गुलाबराव के आदमी सई और विराट पर हमला करेंगे. जहां वह सवि को गोली मारने वाले होंगे तो सई, विराट से सवि को बचाने के लिए कहेगी, जिसके चलते विराट को गोली लग जाएगी.

यूजर्स ने लगाई विराट की क्लास

गोली लगने का प्रोमो देखते ही सोशलमीडिया पर खबरें जोरों पर हैं कि विराट की मौत हो जाएगी, जिसके चलते फैंस का एक बार फिर गुस्सा दिख रहा है. दरअसल, इस नए ट्रैक का प्रोमो देखकर विराट का किरदार एक बार फिर ट्रोलिंग का शिकार हो गया है. दरअसल, फैंस का कहना है कि मेकर्स दर्शकों को बेवकूफ बना रहे हैं क्योंकि विराट को कुछ भी नहीं होने वाला है. वहीं एक यूजर ने लिखा कि हमारी इतनी अच्छी किस्मत कहां…. ये पनौती यानी विराट खुद तो मरेगा नहीं बल्कि ये तो दूसरों को मरवाएगा.

नए ट्रैक में होगा हंगामा


एक तरफ जहां अपकमिंग एपिसोड में विराट को सवि का सच पता लग जाएगा तो वहीं सई, विनायक को ठीक करेगी. इसके अलावा खबरों की मानें तो फेस्टिव सीजन में एक बार फिर चौह्वाण निवास में एंट्री करती हुई दिखने वाली हैं.

TMKOC: नए तारक मेहता के रोल में दिखे सचिन श्रॉफ, प्रोमो में दिखा फैंस का रिएक्शन

टीवी के फेवरेट शोज में से एक ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ (TMKOC) इन दिनों सुर्खियों में हैं. जहां दर्शक दयाबेन और तारक मेहता की शो में दोबारा एंट्री का इंतजार कर रहे हैं तो वहीं शो का लेटेस्ट प्रोमो देखकर फैंस के बीच गुस्सा दिखाई दे रहा है. दरअसल, प्रोमो में नए तारक मेहता के रोल में एक्टर सचिन श्रॉफ (Sachin Shroff As Taarak Mehta) की झलक दिखाई दी है, जिसके बाद फैंस गुस्से में हैं. हालांकि एक्टर ने अपने इस नए रोल को लेकर काफी नर्वस दिख रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

प्रोमो में दिखी तारक मेहता की झलक

हाल ही में तारक मेहता के मेकर्स ने नया प्रोमो रिलीज (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah Promo) कर दिया है, जिसमें अंजलि मेहता अपने पति का इंतजार करती दिख रही हैं. वहीं सचिन श्रॉफ गणपति सेलिब्रेशन में एंट्री करते हुए दिख रहे हैं. हालांकि प्रोमो में एक्टर सचिन श्रॉफ की केवल आंखे दिख रही है. लेकिन इसे देखते ही फैंस पुराने तारक मेहता के रोल में एक्टर शैलेश लोढा को लाने की मांग करते दिख रहे हैं.

एक्टर ने एंट्री पर कही ये बात

नए तारक मेहता के रोल में एक्टर सचिन श्रॉफ को केवल फैंस का गुस्सा ही नहीं बल्कि प्यार भी मिलता दिख रहा है. हालांकि एक्टर ने अपने एक इंटरव्यू में इस नई जर्नी के लिए एक्साइटमेंट होने की बात कही है. दरअसल, एक इंटरव्यू में Sachin Shroff ने कहा है कि वह जितने एक्साइटेड हैं. उतने ही अपने रोल के लिए नर्वस भी हैं. हालांकि वह अपने किरदार में एकदम फिट बैठने के लिए पूरी कोशिश करेंगे. वहीं उन्होंने टीम के सपोर्ट मिलने की बात भी कही है, जिसके चलते वह अपने रोल को पूरी शिद्दत से निभाने की बात कह रहे हैं.


बता दें, बीते कुछ सालों में तारक मेहता का उल्टा चश्मा को कई किरदारों ने अलविदा कहा है, जिनमें अंजलि, दयाबेन और तारक मेहता जैसे मेन किरदार शामिल हैं. हालांकि अंजलि मेहता और तारक मेहता के लिए मेकर्स को जहां नए एक्टर्स मिल गए हैं तो वहीं दयाबेन के लिए अभी भी एक्ट्रेस की तलाश जारी है.

विवाहेतर संबंध: कागज के फूल महकते नहीं

पतिपत्नी के शारीरिक संबंध जहां दांपत्य जीवन में प्रेम संबंध के मजबूत स्तंभ माने जाते है वहीं विवाहेतर पर स्त्री या पर पुरुष शारीरिक संबंध कई प्रकार की समस्याओं और अपराधों का कारण भी बनते हैं.

2011 का एनआरआई निरंजनी पिल्ले का उस के पति सुमीत हांडा द्वारा कत्ल का केस पुराना है. अपनी पत्नी को अपने बिस्तर पर मित्र कहलाने वाले पर पुरुष को साथ वासनात्मक शारीरिक संबंध की स्थिति में देखना सुमीत के लिए सदमा तो था ही, बरदाश्त से बाहर भी था. जलन, क्रोध और धोखे के एहसास ने उस के हाथों पत्नी की हत्या करवा दी.

नोएडा के निवासी मिश्रा को अपनी पत्नी पर संदेह था कि उस के पर पुरुष से संबंध हैं. मिश्रा ने पुष्टि करना भी आवश्यक नहीं समझ कि उस का संदेह केवल संदेह या वास्तविकता. संदेह के आधार पर ही मिश्रा ने पत्नी का कत्ल कर दिया.

एक मां के विवाहेतर शारीरिक संबंधों का पता उस के 20 वर्षीय बेटे को चल गया. उस ने जब इन संबंधों पर ऐतराज किया, तो मां ने अपने संबंध बरकरार रखने के लिए अपने ही बेटे की सुपारी दे कर मरवा दिया. यहां विवाहेतर संबंधों की वासना पर ममता की बलि चढ़ गई.

समस्या से उपजा असंतोष

ऐसे संबंधों से जुड़े इस प्रकार के कितने ही अपराध आए दिन सुनने को मिलते हैं. कत्ल के अतिरिक्त कारण से कितने ही तलाक और सैपरेशन के केस भी हो जाते हैं, जिन की गिनती ही नहीं. कितने परिवार ऐसे भी हैं जो सामाजिक सम्मान अथवा बच्चों के कारण मुखौटा लगाए जीए जा रहे हैं परंतु इस समस्या से उपजा असंतोष उन्हें भीतर ही भीतर खाए जा रहा है.

यदि हम अपनेअपने दायरे में अवलोकन करें तो कितने ही दंपतियों में यह समस्या दिखती है. भावना का पति तो भंवरा है. न जाने उस में वासना की इतनी भूख है या उच्छृंखलताकी अति है कि उस के एक नहीं कई लड़कियों से संबंध हैं. एक समय पर वह 1 से अधिक लड़कियों से संबंध बनाने को भी उत्सुक रहता है. भावना ने विरोध भी बहुत किया और बरदाश्त भी. अंतत: वही हुआ जिस के आसार बहुत पहले से दिख रहे थे. अपने मन की शांति पाने और अपने बच्चों को स्वस्थ वातावरण देने हेतु भावना पति से अलग हो गई.

सूरज की पत्नी ने न चाहते हुए भी सूरज के पर स्त्री संबंध स्वीकार किए. सूरज ने साफ  कह दिया कि वह दूसरी स्त्री से संबंध नहीं तोड़ेगा. पत्नी चाहे तो साथ रहे चाहे तो अलग हो जाए. वह किसी हाल में सूरज से अलग होना नहीं चाहती थी. इस मजबूर स्वीकृति से मन ने कितनी पीड़ा बरदाश की होगी.

टूटते हैं परिवार

भावना और सूरज के अतिरिक्त भी अन्य बहुत से उदाहरण हैं. यदि सब का वर्णन किया जाए तो ग्रंथ के ग्रंथ तैयार हो जाएंगे. प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि जब विवाह के रूप में शारीरिक संबंधों को सामाजिक मान्यता प्राप्त हो जाती है तो कभी पुरुष और कभी स्त्री क्यों विवाह से बाहर छिपछिपा कर संतुष्टि या तृप्ति ढूंढ़ते हैं?  सभी जानते हैं कि विवाहेतर संबंधों की कोई सामाजिक मान्यता नहीं है और उजागर हो जाने पर सुखी परिवार का सारा सुखसम्मान नष्ट हो जाता है.

मधुर दांपत्य संबंधों मं कटुता आ जाती है. इस सब जानकारी के होते हुए भी आए दिन इस तरह के संबंध बनते रहते हैं. इन संबंधों के कारण अनेक परिवार टूटते हैं, अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं और अनेक अपराध जन्म लेते हैं.

विचार करें तो अनेक कारण ऐसे हो सकते हैं जिन की वजह से विवाहेतर संबंध बनते हैं. इन में कुछ कारण तो ऐसे हैं जिन्हें बेहद खोखला कहा जा सकता है. जैसे- उच्छृंखलता, विलासिता, अहम आदि. ये ऐसे कारण हैं जिन्हें किसी भी प्रकार की कसौटी पर परखें, नैतिकता से गिरे हुए ही कहलाएंगे.

सम्मान खोने का भय

इस श्रेणी के स्त्री या पुरुष समाज में चरित्रहीन कहलाते हैं. ऐसे लोग न तो समाज में सम्मान योग्य माने जाते हैं और न ही परिवार में. इस श्रेणी के अधिकतर लोग बेशर्म होते हैं. ऐसे लोग या तो सबकुछ खुल्लमखुल्ला करते हैं या फिर जो अपने संबंध छिपा पाने में सक्षम होते हैं उन्हें उन के खुल जाने का कोई भय नहीं होता. उच्छृंखलता और विलासिता उन की प्राथमिकता होती है. इस के लिए चाहे कितना भी अपमान क्यों न झेलना पड़े. संस्कारहीनता, शिक्षा का अभाव, नैतिकता का अभाव, गलत माहौल, गलत संगीसाथी, गलत दृष्टिकोण ऐसे कारणों की नींव होते हैं.

इन के अतिरिक्त कुछ अन्य कारण भी होते हैं जिन्हें इन खोखले कारणों से अलग रख कर देखा जा सकता है. जैसे असंतुष्टि, अलगाव, विवश्ता, ब्लैकमेलिंग, भावनात्मक लगाव, आकर्षण, असंयम आदि.

शारीरिक क्षुधा की चाहत

वैवाहिक जीवन में पतिपत्नी के पारस्परिक शारीरिक संबंध विवाह का आवश्यक अंग होते हैं. ये संबंध पति और पत्नी दोनों की ही आवश्यकता होते हैं, परंतु कभीकभी पति पत्नी ये या पत्नी पति से अथवा दोनों एकदूसरे से इस रिश्ते में असंतुष्ट रहते हैं. यह असंतुष्टि दूसरे साथी में शारीरिक संबंधों के प्रति इच्छा के अभाव से भी उपजती है और किसी एक साथी में अत्यधिक अर्थात सामान्य से कहीं अधिक शारीरिक क्षुधा से भी. नैतिकता की दृष्टि से न चाहते हुए भी दोनों या कोई एक साथी शारीरिक क्षुधा की संतुष्टि हेतु विवाहेतर संबंध बना लेता है.

कई संबंधों में भावनात्मक अलगाव भी विवाहेतर संबंधों का कारण बन जाते हैं. कई बार घर वालों के दबाव के कारण या किसी प्रकार के लालच के कारण विवाह तो हो जाता है, परंतु पतिपत्नी में भावनात्मक स्तर पर प्रेम संबंध नहीं बन पाते. इस का कारण दोनों में बौद्धिक स्तर की भिन्नता, दृष्टिकोण की भिन्नता, आपसी समझ का अभाव या आर्थिक स्तर और लाइफस्टाइल में अत्यधिक अंतर आदि कुछ भी हो सकता है. एकदूसरे के प्रति अलगाव और अरुचि अकसर उन की दिशाएं बदल देती हैं.

भावनात्मक या शारीरिक आकर्षण

भावनात्मक अलगाव की भांति भावनात्मक लगाव भी अकसर विवाहेतर संबंधों का कारण बन जाता है. विवाहपूर्व के प्रेमीप्रेमिका जब अन्यत्र विवाह हो जाने के बाद भी एकदूसरे को भूल नहीं पाते तो चाहेअनचाहे उन का भावनात्मक लगाव उन्हें एकदूसरे के करीब ले आता है. ये नजदीकियां धीरेधीरे उन्हें इतना नजदीक ले आती हैं कि वे सामाजिक सीमाएं भूल कर एकदूसरे में खो जाते हैं.

कई बार पति या पत्नी का पर स्त्री या पर पुरुष पर मुग्ध और आकर्षित हो जाना भी विवाहेतर संबंधों का सूत्रपात कर देता है. एकतरफा आकर्षण भी कभीकभी सामने वाले को चुंबक की भांति आकर्षित कर लेता है और आकर्षण यदि दोतरफा हो तो परिणाम अकसर ऐसे संबंधों में परिवर्तित हो जाता है. अब आकर्षण का कारण शारीरिक सौंदर्य, प्रभावशाली व्यक्तित्व, वाकचातुर्य, आर्थिक स्तर अथवा उच्चपद आदि कुछ भी हो सकता है.

इन कारणों के अतिरिक्त भी विवाहेतर संबंधों के कई कारण होते है. जैसे कहीं बौस ने पदोन्नति का लालच दे कर या रिपोर्ट बिगाड़ने की धमकी दे कर किसी को विवश किया, तो कभी बास को प्रसन्न करने हेतु किसी ने अपनी इच्छा से स्वयं को परोस दिया. किसीकिसी को आर्थिक विवशता के कारण इच्छा के विरुद्ध भी यह अनैतिक कार्य करने को बाध्य होना पड़ता है.

कभीकभी परिस्थितियां और हालात 2 प्रेमियों या 2 लोगों को ऐसी स्थिति में डाल देते हैं कि उन्हें न चाहते हुए भी एकांत में परस्पर एकसाथ समय बिताना पड़ जाता है. ऐसे में एकांत वातावरण में कभीकभी कुछ लोग असंयम का शिकार हो जाते हैं और उन के विवाहेतर संबध बन जाते हैं.

विवाहेतर संबंध बनाते समय यह ध्यान रखें कि संबंध होने के बाद पति या पत्नी से संबंध तोड़ना आसान नहीं है. फरवरी, 2022 में केरल हाई कोर्ट ने एक मामले में डाइवोर्स ग्रांट करा क्योंकि पति के मना करने पर भी वह प्रेमी को फोन करती थी पर यह विवाद शुरू हुआ 2012 में. 10 साल बाद तलाक दिया, पत्नी ने हैरेसमैंट का केस 2012 में दायर किया था.

कारण और परिस्थितियां कुछ भी हों, ऐसे संबंधों के बन जाने और उन के खुलने के परिणाम अकसर विध्वंसक ही होते हैं. परिवारों का टूटना, सामाजिक प्रतिष्ठा का हनन, बच्चों की दृष्टि में मातापिता का सम्मान गिरना, बच्चों के लिए समाज में अपमानजनक स्थितियां उत्पन्न होना, विवाहेतर संबंधों से उत्पन्न बच्चों की उलझनें, संपत्ति व जायदाद के लिए झगड़ा, अलगाव, तनाव, मनमुटाव, सैपरेशन, तलाक, कत्ल आदि अनेक समस्याएं पगपग पर कांटे बन कर चुभने लगती हैं. सब से अधिक झेलना पड़ता है टूटे या तनावग्रस्त परिवारों के बच्चों को.

परिणाम विध्वंसक होते हैं

यद्यपि आज के युग में सामाजिक मान्यताएं बहुत बदल गई हैं, फिर भी जब गर्मजोशी का बुखार उतरता है तो व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या स्त्री स्वयं को अकेला ही पाता है. 2 नावों का सवार डूबता ही है. लिव इन रिलेशनशिप में कोई वादा या वचन नहीं होता फिर भी धोखा चोट देता है, फिर विवाह तो नाम ही सुरक्षा और विश्वास का है. अत: स्वयं से विवाह को ईमानदारी से निभाने का वादा करते हुए ही इस बंधन में बंधें. खुले जमाने का अर्थ विवाहेतर संबंध नहीं अपितु संबंध जोड़ने से पहले खुल कर अपने होने वाले साथी से चर्चा करें और एकदूसरे से अपनी आशाएं तथा कमजोरियां न छिपाएं और दोनों साथी एकदूसरे को भलीभांति परख लें कि दोनों एकदूसरे के लिए उचित हैं या नहीं. इस प्रकार समस्या का अंत भले ही संभव न हो परंतु समस्या में कमी तो अवश्य संभव है.

वजन कम होने से पीरियड्स बंद हो गए हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 19 साल की हूं और कालेज में पढ़ती हूं. मैं अपने बढ़े वजन को कम करने के लिए दिन में कम से कम 2 घंटे व्यायाम करती हूं. मैं ने इस दौरान 12-13 किलोग्राम वजन कम भी कर लिया है. मगर अब मेरे पीरियड्स बिलकुल बंद हो गए हैं. कृपया बताएं क्या करूं?

जवाब-

कई चीजें मासिकधर्म को रोक सकती हैं, जिन में बहुत ज्यादा व्यायाम कर जल्दी वजन कम करना भी शामिल है. खासकर तब जब आप पर्याप्त कैलोरी और पौष्टिक खाद्यपदार्थों का सेवन नहीं कर रही हों. दिन में 2 घंटे व्यायाम करने से बहुत सारी कैलोरी बर्न हो जाती है, इसलिए अब आप को अपने खाने में अधिक कैलोरी लेनी चाहिए और डाक्टर से जल्दी मिलना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आप के पीरियड्स रोकने के लिए और कोई समस्या जिम्मेदार तो नहीं. आप स्वस्थ भोजन और व्यायाम की योजना पर काम करें, जिस से आप की पीरियड्स की साइकिल दोबारा ठीक हो सके.

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औरतों को हर माह पीरियड से दोचार होना पड़ता है, इस दौरान कुछ परेशानियां भी आती हैं. मसलन, फ्लो इतना ज्यादा क्यों है? महीने में 2 बार पीरियड क्यों हो रहे हैं? हालांकि अनियमित पीरियड कोई असामान्य घटना नहीं है, किंतु यह समझना आवश्यक है कि ऐसा क्यों होता है.

हर स्त्री की मासिकधर्म की अवधि और रक्तस्राव का स्तर अलगअलग है. किंतु ज्यादातर महिलाओं का मैंस्ट्रुअल साइकिल 24 से 34 दिनों का होता है. रक्तस्राव औसतन 4-5 दिनों तक होता है, जिस में 40 सीसी (3 चम्मच) रक्त की हानि होती है.

कुछ महिलाओं को भारी रक्तस्राव होता है (हर महीने 12 चम्मच तक खून बह सकता है) तो कुछ को न के बराबर रक्तस्राव होता है.

अनियमित पीरियड वह माना जाता है जिस में किसी को पिछले कुछ मासिक चक्रों की तुलना में रक्तस्राव असामान्य हो. इस में कुछ भी शामिल हो सकता है जैसे पीरियड देर से होना, समय से पहले रक्तस्राव होना, कम से कम रक्तस्राव से ले कर भारी मात्रा में खून बहने तक. यदि आप को प्रीमैंस्ट्रुल सिंड्रोम की समस्या नहीं है तो आप उस पीरियड को अनियमित मान सकती हैं, जिस में अचानक मरोड़ उठने लगे या फिर सिरदर्द होने लगे.

असामान्य पीरियड के कई कारण होते हैं जैसे तनाव, चिकित्सीय स्थिति, अतीत में सेहत का खराब रहना आदि. इन के अलावा आप की जीवनशैली भी मासिकधर्म पर खासा असर कर सकती है.

कई मामलों में अनियमित पीरियड ऐसी स्थिति से जुड़े होते हैं जिसे ऐनोवुलेशन कहते हैं. इस का मतलब यह है कि माहवारी के दौरान डिंबोत्सर्ग नहीं हुआ है. ऐसा आमतौर पर हारमोन के असंतुलन की वजह से होता है. यदि ऐनोवुलेशन का कारण पता चल जाए, तो ज्यादातर मामलों में दवा के जरीए इस का इलाज किया जा सकता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए-जानें अनियमित पीरियड्स से जुड़ी जरुरी बातें

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

लेखिकाएं: साहस बनाम कट्टरवाद

इस साल के ख्यातिनाम अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार ‘बुकर’ के लिए गीतांजलि के उपन्यास ‘रेत की समाधि’ का चयन किया गया तो साहित्यप्रेमी झम उठे क्योंकि यह सम्मान हासिल करने वाली यह एकमात्र हिंदी पुस्तक है. 65 वर्षीय गीतांजलि ने अपने लेखकीय जीवन की शुरुआत आम और औसत हिंदी लेखकों जैसे ही की थी. उन की पहली कहानी 1987 में एक साहित्यिक पत्रिका में छपी थी. उस के बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक के बाद एक 5 उपन्यास लिखे.

90 के दशक में प्रकाशित उन का उपन्यास ‘हमारा शहर उस बरस’ भी खासा चर्चित हुआ था. मूलतया अयोध्या कांड की सांप्रदायिक हिंसा और दंगों को उकेरते इस उपन्यास में धर्म की वजह से पैदा हुई हिंसा का सटीक चित्रण था जो बहुतों को नागवार गुजरा था खासतौर से उन लोगों को जो सच से डरते हैं और उसे ढक कर रखे रहना चाहते हैं.

खुन्नस खा गए कट्टरपंथी

उपन्यास के ये चुनिंदा अंश या वाक्य ही बता देते हैं कि क्यों गीतांजलि श्री कुछ खास किस्म के लोगों की नजरों में ‘रेत की समाधि’ को ले कर भी खटक रही हैं:

– उस बरस भगवानों की बाकायदा खेती हुई. बीज लगे जिन के ऊपर अंगुलभर मूर्तियां रखी गईं देवी जगदंबे की और जब धरती को फाड़ कर पौधा और देवी प्रकट हुईं तो जय जगदंबे से लाउड स्पीकर झनझनाने लगे. ऐसे कि दीवारें हिल गईं गिरजाघरों और मसजिदों की नींवें हिल गईं.

नींवें तो मंदिरों की भी हिलीं. जिस तरह मुल्क में ईंटें टूटीं उस से तो शायद सच यह है कि नींव तो मुल्क की भी हिली. धूल के गुबार थे, भीड़ की कुचलमकुचलाई थी, लाठीपत्थरों की बारिश थी.

यह और इस तरह की बातों पर कट्टरपंथी खुन्नस खाए बैठे थे, लेकिन तब खुल कर इस का विरोध नहीं कर पाए थे तो इस की कई वजहें भी थीं. मसलन, उपन्यास में सांप्रदायिक हिंसा का देखा हुआ सच था. दूसरे तब गीतांजलि बहुत बड़ा यानी आज जितना चर्चित नाम भी नहीं था. ‘उस बरस हमारा शहर’ की घटनाएं प्रतीकात्मक रूप में ही सही वास्तविक इसलिए भी थीं कि गीतांजलि ने धार्मिक हिंसा और नफरत को बहुत करीब से देखा था खासतौर से उत्तर प्रदेश में जहां उन की पैदाइश और परवरिश हुई.

बेबाक राय

मैनपुरी के एक ब्राह्मण परिवार की गीतांजली पांडे के पिता अनिरुद्ध पांडेय पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर विभिन्न शहरों में तैनात रहे जो खुद भी शौकिया लेखक थे.

कालेज की पढ़ाई के लिए गीतांजलि दिल्ली चली गईं और वहां लेडी श्रीराम कालेज और जेएनयू में पढ़ीं. इतिहास की पढ़ाई छोड़ कर उन्होंने हिंदी में पीएचडी की उपाधि ली वह भी प्रेमचंद के साहित्य पर जो उन्हें असली भारत के और नजदीक ले जाने बाली बात साबित हुई. इस के बाद उन्होंने अपनी रचनाओं में कोई लिहाज किसी का नहीं किया.

गीतांजलि के लेखन पर गहरी नजर रखने वाले कट्टरपंथी देख और समझ रहे थे कि यह युवती एक खतरा बनती जा रही है जो सच बयानी से हिचकती नहीं. इसी दौरान गीतांजलि की शादी हो गई और स्वाभाविक तौर पर वे घरगृहस्थी में रम गईं. लेखन धीमा जरूर हुआ पर बंद नहीं हुआ. अब तक हिंदी साहित्य में उन की जगह बन चुकी थी और खुद का अपना पाठक वर्ग भी वे तैयार कर चुकी थीं.

यों ही लिखतेलिखते उन्होंने 2018 में ‘रेत की समाधि’ उपन्यास लिखा जो चर्चा में इस साल आया क्योंकि उसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘बुकर’ के लिए चुना गया था. इस खबर को साहित्य जगत में तो खूब अंडरलाइन किया गया, लेकिन मीडिया में उम्मीद के मुताबिक स्पेस नहीं मिला क्योंकि गीतांजलि को किसी राष्ट्रपति प्रधानमंत्री तो दूर की बात है विपक्ष के किसी नेता ने भी बधाई नहीं दी थी.

ऐसा भी नहीं था और न है कि गीतांजलि किसी ऐसी खास तारीफ या प्रोत्साहन की मुहताज हों जिस का साहित्य की तरफ से पीठ कर सोने वालों का कोई वास्ता और योगदान हो.

अब तक आमतौर पर फ्लैश बैक लेखन करने वाली गीतांजलि पर साहित्य के खेमेबाजों ने वामपंथी होने का ठप्पा जरूर लगा दिया था. इस पर खुद गीतांजलि ने चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि मेरी समझ से बात संवेदना की है न कि वाद की वाद और विचारधारा का साहित्य बंदी नहीं है यह चिंता पाठक आलोचक अकादमिक बहसों में पड़ने बालों की है मुश्किल यह है कि अकसर वे हर कलाकृति को वाद और विचारधारा में बांटने के आदी हो गए हैं.

आगरा से आरंभ

बीती 31 जुलाई को गीतांजलि का कहा सच भी साबित हुआ. इस दिन ताज नगरी आगरा के प्रबुद्ध वर्ग में खासी उत्तेजना और गहमागहमी थी. जहां इस दिन 2 सांस्कृतिक संगठनों रंगलीला और आगरा थिएटर क्लब ने ‘बुकर’ पुरस्कार प्राप्त लेखिका को सम्मानित करने का आयोजन किया था. इस उत्साह और तैयारियों पर उस वक्त पानी फिर गया जब गीतांजलि ने आगरा आने से मना कर दिया क्योंकि उन के खिलाफ हाथरस के सादाबाद थाने में संदीप पाठक नाम के शख्स ने तहरीर दी थी.

इस पाठक का आरोप था कि ‘रेत की समाधि’ उपन्यास में हिंदू देवता शिव और पार्वती देवी के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई हैं. संदीप ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पुलिस महानिदेशक को भी इस बाबत ट्वीट करते हुए गुजारिश की थी कि इस शिकायत को एफआईआर में बदला जाए. गीतांजलि इस से इतनी आहत हुईं कि अपने अभिनंदन समारोह में ही नहीं गईं, जबकि उन से उम्मीद तो यह की जाती है कि वे कट्टरवादियों का डट कर मुकाबला करें.

मुमकिन है गीतांजलि डर गई हों. हालांकि यह बात उन के लेखकीय तेवरों से मेल नहीं खाती. गीतांजलि को न आता देख आयोजकों में गुस्सा देखा गया जो एक स्वाभाविक बात थी. लेकिन इन सभी का गुस्सा सत्ता पक्ष और दक्षिणपंथियों पर उतरना बताता है कि दरअसल में पेंच क्या है और इस पाठक की शिकायत का लब्बोलुआब क्या था. रंगलीला के पदाधिकारी अनिल शुक्ला के मुताबिक इस उपन्यास में आपत्तिजनक कुछ नहीं है. इस में एक पौराणिक घटना का जिक्र भर है.

भेदभाव के खिलाफ आवाज

वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी दोटूक हकीकत बयान करते हुए बताते हैं कि यह जाति के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव की तरह है जिस पर हिंदी की यह कहावत लागू होती है- चेहरा देख कर टीका लगाना. अगर कोई व्यक्ति हमारी विचारधारा में फिट नहीं बैठता तो हम उस का सम्मान नहीं करेंगे.

अपनी भड़ास को और विस्तार देते हुए ओम कहते हैं इन लोगों ने उन की बैकग्राउंड देख ली है. ये जेएनयू वाली है बाकी इन्होंने साहित्य तो पढ़ा नहीं है. हमारे यहां किसी खेल में पुरस्कार जीतने वालों को प्रधानमंत्री सम्मानित करते हैं, लेकिन हिंदी की किसी लेखिका ने पहली बार ?‘बुकर’ जीता और उन्होंने बधाई तक नहीं दी. राजनीतिक सत्ता में बैठे लोग साहित्य के मामले में निरक्षर हैं.

‘रेत की समाधि’ की केंद्रीय पात्र एक अवसादग्रस्त बुजुर्ग महिला है. यह उपन्यास उस की जीवनयात्रा है जिस के अंतिम पड़ाव पर वह सारी वर्जनाएं और परंपराएं तोड़ने पर आमादा है. भारतपाकिस्तान विभाजन की त्रासदी उपन्यास की पृष्ठभूमि है जो शिद्दत से यह बताती है कि एक औरत की जिंदगी पर उस का क्या और कैसाकैसा असर पड़ता है.

यही शायद बड़ी परेशानी की बात कुछ लोगों को है कि एक औरत मुख्य पात्र क्यों है और है भी तो आजादी के 75 साल बाद उस में इतनी हिम्मत कैसे आ गई कि वह खुद सोचने लगी जबकि औरत को तो सोचने का भी हक नहीं. अगर है भी तो उसे व्यक्त करने का तो बिलकुल भी नहीं क्योंकि कोई भी औरत जब भी सच बोलेगी तो वह मर्दों के खिलाफ ही होगा.

सामने आई साहित्यिक खेमेबाजी

सादाबाद थाने में की गई शिकायत में देवी देवताओं की आड़ महज परेशान करने और हिम्मत तोड़ने की गरज से की गई लगती है वरना तो उपन्यास में न केवल पेज नंबर 222 बल्कि कहीं भी आपत्तिजनक कुछ भी नहीं है जिस पर हायहाय मचाई जाए. इसे शुरुआत समझना बेहतर होगा. हालांकि गीतांजलि का अंदरूनी तौर पर साहित्यिक बहिष्कार तो इस उपन्यास के प्रकाशित होने के साथ ही शुरू हो गया था. कई मठाधीशों ने उन से कन्नी काटते उन्हें साहित्य की मुख्यधारा (बशर्ते अब कोई होती हो तो) से अलग होने का एहसास कराया था.

‘रेत की समाधि’ का अंगरेजी अनुवाद डेजी राकवेल ने किया है जो कि बेहतर अनुवाद के लिए जानी जाती हैं. इस उपन्यास को मिली 50 हजार पौंड की इनामी राशि में से आधा हिस्सा उन्हें मिला है. दक्षिणपंथी साहित्यकारों ने तभी से अफवाह उड़ाने की कोशिश की थी कि दरअसल में ‘बुकर’ पुरस्कार अनुवाद के लिए मिला है यानी गीतांजलि और उन का ‘रेत की समाधि’ गौण है.

बिलाशक डेजी के अनुवाद की गुणवत्ता पर सवाल नहीं उठाए जा सकते, लेकिन यह चर्चा कि अगर अनुवाद अच्छा न होता तो उपन्यास ‘बुकर’ पुरस्कार के मंच तक पहुंचता कैसे एक हास्यास्पद बात है जिसे तर्क कहना तर्क के साथ छल होगा.

इन जलकुक्कड़ खेमेबाजों ने हवा यह भी उड़ाई थी कि अब गीतांजलि के साथी उन्हें महान साबित करने की कोशिश करेंगे जबकि उलट इस के सच तो यह है कि गीतांजलि और उन के साथियों ने कभी कोई ऐसी कोशिश नहीं की शायद इसलिए भी कि ‘बुकर’ का मिलना ही उन्हें महान साबित करता है. पर लोग चाहते थे कि जब तक देश के आका तारीफ न कर दें तब तक महानता स्थापित नहीं होती.

टोटके जब बेअसर होने लगे

ये और ऐसे तमाम टोटके जब बेअसर साबित होने लगे तो किन्हीं पाठकजी की नजर पेज नंबर 222 पर पड़ गई जहां उन्हें एहसास हुआ कि अरे यह तो हमारे देवीदेवताओं का मजाक है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू देवीदेवताओं का मजाक उड़ाने वाली लेखिका को लोग आगरा में सरेआम समारोहपूर्वक सम्मानित कर रहे हैं. धिक्कार है उन आयोजकों पर जो हिंदू होते हुए भी पूज्य देवीदेवताओं की मर्यादा की हिफाजत नहीं कर रहे या कर पा रहे. ऐसे पापियों को सजा दिलाने की पहली सीढ़ी थाने से हो कर जाती है जहां के पुलिस कर्मियों ने समकालीन आलोचकों को पछाड़ते हुए फैसला दिया कि कुछ आपत्तिजनक है या नहीं इस का फैसला उपन्यास पढ़ने के बाद लिया जाएगा.

ये पुलिस वाले उन महान साहित्यकारों से कमतर होंगे ऐसा कहने की कोई वजह नहीं जो ‘रेत की समाधि’ के अंगरेजी अनुवाद ‘टौंब या टूंब औफ सैंड’ पूरे आत्मविश्वास से कुछ इस तरह कह रहे हैं कि औक्सफोर्ड वाले भी शरमा जाएं कि भारत पहुंचते ही हमारा शब्द टूम, टौंब या टूंब कैसे हो गया. इन लोगों को मालूम ही नहीं कि अंगरेजी के शब्दकोष में सही उच्चारण क्या है, लेकिन मुद्दा या तिलमिलाहट उच्चारण नहीं है, अंदर क्या लिखा है यह भी बहुत ज्यादा नहीं है क्योंकि यह एक ऐसी साहित्यकार की सफलता और उपलब्धि है जो कट्टरवाद के खांचे में फिट बैठना तो खवाव की बात है कट्टरवाद को ध्वस्त करने पर उतारू है.

अब दुकान खराब होगी तो कुछ तो करना पड़ेगा. लिहाजा हाथरस से कर दिया गया जिस में दुखद बात गीतांजलि का आगरा के आयोजन में न जाना रहा जो कि एक खतरनाक इशारा न केवल साहित्य के लिहाज से है बल्कि गीतांजलि सरीखी बोल्ड मानी जाने वाली लेखिका की मनोदशा का भी है कि क्या सचमुच वे देश के और उत्तर प्रदेश के माहौल से भयभीत हैं? अगर हां तो अपनी बात उन्हें भी योगीमोदी तक पहुंचानी चाहिए. इस से कुछ हासिल नहीं होगा यह सब को मालूम है, लेकिन कुछ नहीं होता यह दिखाने के लिए ही सही उन्हें इन लोगों से गुजारिश तो करनी चाहिए.

मनोबल तोड़ने की कोशिश

गीतांजलि कोई पहली या आखिरी लेखिका नहीं हैं जिन का मनोबल तोड़ने के लिए यों कोशिश की गई बल्कि उन के पहले कई लेखिकाओं को निशाने पर लिया गया है. इन में एक बड़ा और चर्चित नाम अरुंधती राय का है जिन के उपन्यास ‘गौड औफ स्माल थिंग्स’ को ‘बुकर’ मिला था. तब भी भक्तों ने खूब बबाल यह आरोप लगाते किया था कि इस उपन्यास में कामुकता और अश्लीलता है.

यह भी कोई हैरत की बात इस लिहाज से नहीं थी कि एतराज जताने वाले छाती सिर्फ इसलिए कूट रहे थे कि अरुंधती घोषित तौर पर वामपंथी हैं और आज भी भगवा गैंग की नाक में दम किए रहती हैं.

ये और ऐसी कई बातें हैं जो अरुंधती से ऐलर्जी रखने के लिए काफी हैं. एक जागरूक महिला बोले तो फर्क पड़ता है और अगर वह महिला अरुंधती हो तो इतना फर्क पड़ता है कि कट्टरवादी भीतर तक हिल जाते हैं और उसे राष्ट्रद्रोही वामपंथी और न जाने क्याक्या कहने लगते हैं.

1997 में ‘बुकर’ पुरस्कार मिलने के बाद से तो वे और मुखर हो गई हैं. यह सोचना बेमानी है कि वे सिर्फ भगवा गैंग की छिलाई करती रहती हैं. हकीकत में कांग्रेसियों को भी उन्होंने कभी बख्शा नहीं है जो खुद को उदारवादी हिंदू कहते थकते नहीं.

अरुंधती का गुनाह इतना भर है कि वे कश्मीर समस्या का हल उस की आजादी मानती हैं, बकौल अरुंधती कश्मीर पर आखिरी हक कश्मीरियों का है और वे आजादी चाहते हैं हमें उन के फैसले का सम्मान करना चाहिए.

अरुंधती का दूसरा गुनाह संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु की फांसी के बारे में यह कहना है कि उस के खिलाफ मिले सुबूत काफी नहीं थे और उसे सजा लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए दी गई. उन का तीसरा गुनाह माओवादियों का हिमायती होना और चौथा भीमराव अंबेडकर के बारे में यह कहना है कि उन के सभी कामों को देखा जाए तो उन की किताब ‘ऐनिहिलेशन औफ कास्ट’ सब से पूर्ण है, यह हिंदूवादी कट्टरपंथ के लिए नहीं पर ऐसे लोगों को जो खुद को उदार हिंदू मानते हैं, हिंदू शास्त्रों पर विश्वास करना और खुद को उदार मानना एकदूसरे के उलट है.

सोशल मीडिया पर भड़ास

बात लिखने तक ही सीमित नहीं है बल्कि अरुंधती बोलती भी बेबाक हैं. उन के ताजे आइडिए का मजमून यह है कि प्रधानमंत्री एक टर्म के लिए ही चुना जाना चाहिए. पिछले साल दिसंबर में दिल्ली प्रैस क्लब के एक आयोजन में उन्होंने इस की वजह भी बताई थी कि राजा महाराजा का दौर अब खत्म हो चला है. इस पर उन्हें ट्विटर पर खूब कोसा यानी ट्रोल किया गया था. एक फिल्मकार अशोक पंडित ने ट्वीट किया कि एक और फ्रस्ट्रेटेड लिबरल, अरुंधती राय हमेशा देश के खिलाफ जहर उगलती रहती हैं, लेकिन हर बार हार जाती हैं.

अरुंधती ने एक सुझव भर दिया था जिस के एवज में उन पर भद्दी गालियों की बारिश हुई. ये तो कुछ बानगियां भर है. कई कमैंट्स का तो यहां जिक्र भी नहीं किया जा सकता. एक प्रधानमंत्री का टर्म एक क्यों हो इस के नफानुकसान पर एक सार्थक बहस हो सकती थी, लेकिन मकसद जब औरतों को जलील करना और नीचा दिखाना हो तो मुद्दे की बात और मर्यादा जाने कहां घास काटने चली जाती हैं. कट्टरवादियों को तो बहाना चाहिए होता है.

कौन हैं अशोक पंडित जैसे धर्मांधों के आदर्श. यदि वे पौराणिक पात्र हों तो ढूंढे़ से एक भी नहीं मिलेगा जिस ने कभी महिलाओं का अपमान न किया हो. राम ने शूर्पणखा की नाक लक्ष्मण से कटवा कर कौन सा आदर्श गढ़ा था, यह बात समझ से परे है: यदि वह प्रणयनिवेदन कर रही थी तो उसे शराफत से टाला भी जा सकता था.

लक्ष्मण ने शूर्पणखा के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया था जिस से लगता है कि नारी सम्मान एक वर्ग विशेष की महिलाओं के लिए ही था नहीं तो पापिन, कुलटा, नीच, दुष्टा, पतिता, व्यभिचारिणी और सब से अपमानजनक वेश्या जैसे शब्दों से पौराणिक ग्रंथ भरे पड़े हैं.

त्याग पर तंज

ऐसे ट्वीट करने वालों के आदर्श अगर मौजूदा दौर के नेता हैं तो फिर कुछ कहनेसुनने की जरूरत नहीं रह जाती. कांग्रेसी बुजुर्ग दिग्विजय सिंह ने अपनी ही पार्टी की एक नेत्री को टंच माल कह कर छिछोरी मानसिकता दिखाई थी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेसी नेता शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर को 50 करोड़ की गर्ल फ्रैंड कह कर अपनी मानसिकता उजागर करने से खुद को रोक नहीं पाए थे.

इस पर सुनंदा ने उन्हें सलाह दी थी कि वे महिलाओं के प्रति सम्मान दिखाएं और इस स्तर तक न गिरें. शशि थरूर ने जरूर नरेंद्र मोदी के उन के पत्नी त्याग को ले कर तंज कसा था कि मेरी पत्नी आप की 50 करोड़ की सोच से कहीं ज्यादा है. वह अनमोल है. आप को ऐसी बातें समझने के लिए किसी से प्यार करने की जरूरत है.

इन्हीं मोदीजी ने संसद में कांग्रेसी नेत्री रेणुका चौधरी की हंसी की तुलना ताड़का से करते जता दिया था कि उन्होंने सुनंदा शशि की प्रतिक्रिया से कोई सबक नहीं लिया है

अगर तमाम छोटेबड़े नेताओं के बयानों की बात की जाए तो 19वां पुराण रचा जा सकता है. बात अकेले राजनीति या साहित्य की नहीं है बल्कि आम जिंदगी में भी झग्गियों से ले कर आलीशान मकानों तक में महिलाओं को अपशब्द कहना आम बात है. होगी भी क्यों नहीं जब हमारी जिंदगी को पगपग पर निर्देशित करने वाला धर्म ही औरत को सेविका, दोयम दर्जे की, नर्क का द्वार, गंदगी की खान, पांव की जूती और शूद्र करार देता हो.

धर्म बना दुश्मन

महिलाओं के प्रति बराबरी और सम्मान के भाव बहुत सीमित हैं क्योंकि परंपराओं और रीतिरिवाजों की घुसपैठ घरों के अलावा मन में भी है जिस का उद्भव वही धर्म है जो साल में कुछ दिन नारी को पूजनीय तो कहता है, लेकिन हकीकत में महिला का सब से बड़ा दुश्मन वही है. अफसोस तो इस बात का है कि अधिकतर महिलाओं ने इस अशिष्टता और शोषण को ही अपना भाग्य मान लिया है.

गीतांजलि और अरुंधति जैसी जमीनी साहित्यकार जब औरत को उस के वजूद का, ताकत का अधिकारों का एहसास अपने लेखन के जरीए कराती हैं तो तिलमिलाते वे पुरुष हैं जो औरत को अपनी जायदाद मानते और समझते हैं. उन्हें मुफ्त की यह सहूलियत अपने चंगुल से छूटती दिखाई देती है तो वे और उद्दंड होने लगते हैं.

वे एक नहीं बल्कि समूची स्त्री जाति को हतोत्साहित कर रहे होते हैं. यही समाज पर उन के दबदबे का राज है और ऐसा हर धर्म में है. साहित्य के लिहाज से देखें तो तसलीमा नसरीन और इस्मत चुगताई भी इन दोनों से कम परेशान नहीं की गईं, लेकिन इकलौती सुखद बात है

कि ये भी झकी नहीं बल्कि शोषण के खिलाफ लड़ती रहीं.

तसलीमा भी हैं उदाहरण

महिलाओं के शोषण और प्रताड़ना पर सभी धर्म कितनी शिद्दत से सहमत हैं बंगलादेश मूल की उर्दू और बंगाली लेखिका 62 वर्षीय तसलीमा नसरीन इस का बेहतर उदाहरण हैं जो अपने लिखे से ज्यादा अपने इसलामविरोधी तेवरों को ले कर सुर्खियों में रहती हैं. उन के लिए दुआ में तो कोई हाथ उठता नहीं, लेकिन फतवों की बौछार लगी रहती है. इसलामिक कट्टरवाद का मुखर विरोध करने वाली यह लेखिका दरअसल में यह पोल खोलती रही है कि कट्टरपंथी कैसेकैसे औरतों का शोषण करते हैं.

8 साल सरकारी अस्पताल में डाक्टर रहने के बाद 1994 में तसलीमा मुल्लेमौलवियों और फिर आम कट्टरवादी मुसलमानों के निशाने पर आई थीं. उन के बदनाम उपन्यास ‘लज्जा’ के प्रकाशित होते ही उन के खिलाफ फतवे जारी होने शुरू हो गए थे. खतरा जान जाने की हद तक बढ़ गया तो उन्होंने बंगलादेश छोड़ भारत की पनाह ली और 18 साल से यहीं रह रही हैं. इस के पहले वे दुनियाभर के देशों अमेरिका, स्वीडन जैसे देशों में भटकी थीं. यह इस गुनाह की सजा है कि वे ऊपर वाले के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगाती हैं जोकि सारे फसादों की जड़ है.

बकौल तसलीमा

– क्या आप वास्तव में सोचते हैं कि एक ईश्वर जिस ने ब्रह्मांड अरबों आकाशगंगाओं सितारों, अरबों ग्रहों को बनाया है- धुंधला नीले बिंदु (जाहिर है पृथ्वी) पर कुछ छोटी चीजों को पुरस्कृत करने का वादा करता है कि वे बारबार कह रहे हैं कि वह (जाहिर है नवी या अल्लाह) सब से महान और दयालु है. उस के लिए उपवास (रोजा) रखने के लिए इस तरह के एक महान निर्माता इतने आत्ममोह, आत्म पूजा वाले नहीं हो सकते इसी बात को अरुंधती अलग अंदाज और शब्दों में कह चुकी हैं कि धर्म और उदारता एक साथ नहीं चल सकते.

सनातन और इसाई धर्म की तरह इसलाम भी बहुत संकरापन लिए हुए है. औरतों को सभी धर्मों ने अदृश्य अस्तित्वहीन ईश्वर से जोड़ कर उन्हें गुलाम बनाए रखने की साजिश रच रखी है जिसे गीतांजलि अरुंधती और तसलीमा समझ कर नारी स्वाभिमान और आत्मसम्मान की बात करने लगती हैं तो उन के खिलाफ फतवे जारी होने लगते हैं, उन्हें जान से मारने और बलात्कार करने की धमकियां दी जाने लगती हैं, उन के खिलाफ सार्वजनिक प्रदर्शन किए जाने लगते हैं. सहज समझ जा सकता है कि पुरुषों की सहूलियत के लिए गढ़े गए धर्मों की असलियत क्या है.

नारीवादी लेखिका का विरोध

असलियत नास्तिक तसलीमा की नजर में यह है कि ईश्वर एक कोरी गप्प है. वे कहती हैं यकीन मानिए मेरा स्वर्गनर्क में कोई विश्वास नहीं है समानता, न्याय, सच बोलना और अपने हक के लिए लड़ना यही मेरी जिंदगी की फिलौसफी है. यह फिलौसफी धर्म के दुकानदारों के लिए बेहद घातक है. लिहाजा, वे इस नारीवादी लेखिका का जीना हराम कर देते हैं. उस की हिम्मत तोड़ने में कोई कसार नहीं छोड़ते. हाथरस के सादाबाद में यही सब 31 जुलाई को किया था.

कोशिश या षड्यंत्र यह है कि आगे से गीतांजलि, अरुंधती, तसलीमा और इस्मत जैसी महिलाएं पैदा ही न हों जो धर्म की पोल खोलती हैं. महिला अधिकारों और समानता की बात करते हुए ये साबित कर देती हैं कि धर्म कैसे इस की अहम वजह है. इन कट्टरवादियों की नजर में मुकम्मल औरत वही है जो मुंहअंधेरे उठ कर पूजापाठ में जुट जाए, तुलसाने पर दिया और अगरबत्ती जलाए, किचन में खटती रहे, पुरुषों की चाकरी करती रहे, रात को बिस्तर में इच्छा हो न हो चादर सी बिछ जाए और इस के लिए भी करवाचौथ जैसे तरहतरह के व्रतउपवास और रोजे रखे.

अर्ली मेनोपॉज़ का होना बन सकता है कोरोनरी हार्ट रोगों का कारण

मासिक धर्म और उससे जुड़े हार्मोनल बदलाव किसी भी महिला के जीवन में प्रजनन काल के महत्‍वपूर्ण चरण माने जाते हैं, लेकिन समय से पहले यानि अर्ली मेनोपॉज़, अर्थात 40 वर्ष से पूर्व मेनोपॉज़ के कारण महिलाओं में कोरोनरी हार्ट रोगों की आशंका बढ़ जाती है.पिछले दोदशकों में ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं, जब किशोरियों में अर्ली प्‍यूबर्टी हो रही है और महिलाओं में अर्ली मेनोपॉज, इसकी वजह खराब डाइट, खराब जीवनशैली और तनाव को बताया जा रहा है. वहीं महिलाओं में बढ़ती स्‍मोकिंग और एल्‍कोहल की लत भी उनके स्‍वास्‍थ्‍य पर नकारात्‍मक असर डाल रही है. खासतौर से तनाव के कारण महिलाओं का स्‍वास्‍थ्‍य बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

पहचाने लक्षण

इस बारें में दिल्ली के फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स हार्ट इंस्‍टीट्यूट की डायरेक्‍टर, इलैक्‍ट्रोफिजियोलॉजी एंड कार्डियाक पेसिंग की डॉ अपर्णा जसवाल कहती है कि कोरोनरी हार्ट रोग आजकल काफी होने लगा है. इसे साधारण किस्‍म के हृदय रोगों में शामिल किया जाता हैं, जिनमें हृदय के आसपास मौजूद धमनियों में प्‍लाक जमा होने की वजह से रुकावट पैदा हो जाती है और धीरे-धीरे यह समस्‍या गंभीर हो जाती है. यदि इसका समय रहते इलाज न कराया जाए, तो महिलाओं को सीने में दर्द, हार्ट अटैक या कई बार अचानक कार्डियाक अरेस्‍ट की शिकायत भी हो सकती है, जिन महिलाओं को अर्ली मेनोपॉज़ हुआ है उनमें कम समय में हृदय रोग होने की आशंका बढ़ जाती है. महिलाओं के मामले में हृदय रोगों की वजह से जोखिम बढ़ाने वाले कारक कौन से हो सकते हैं, जिसकी जोखिम मेनोपॉज़ सेजुड़ा हो सकता है, आइये जाने मुख्य लक्षण क्या है?

  • थकान
  • भोजन के बाद असहज होने का अहसास
  • जबड़े में और पीठ में भी अजीबोगरीब दर्द
  • बाएं और दाएं हाथ में दर्द
  • सीढ़ियां चढ़ते समय सांस ज्यादा फूलना, खासकर भोजन के बाद
  • खाने के बाद पेट में दर्द या पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द हृदय संबंधी समस्या के कारण हो सकता है
  • बिना किसी कारण काफी ज्यादा पसीना आना आदि है.

डॉ. कौल ने बताया कि ये सभी दिक्कतें महिलाओं में दिल की समस्याओं के संकेत हैं. हालांकि, हृदय रोगों की जांच और इलाज पुरुषों व महिलाओं के लिए एक जैसा होता है.

सावधानी की जरुरत

डॉ. अपर्णा कहती है कि तीन में से एक से अधिक महिला को किसी न किसी तरह का कार्डियोवास्क्‍युलर रोग होता है. सच तो यह है कि हृदय रोग महिलाओं में मृत्‍यु का सबसे प्रमुख कारण बन चुका हैं. इसलिए हृदय रोगों से बचाव के लिहाज़ से महिलाओं को काफी सावधान रहने की जरूरत है. युवावस्‍था में महिलाओं का बचाव इस्‍ट्रोजेन और प्रोजेस्‍ट्रोन हार्मोनों से होता है, लेकिन यह सुरक्षा कवच मनोपॉज़ के साथ खत्‍म हो जाता है. जैसे-जैसे महिलाएं रजोनिवृत्ति की ओर बढ़ती हैं, उन्‍हें कई कष्‍टकारी लक्षणों का सामना करना पड़ सकता है, जिनमें हॉट फ्लश, सोते समय पसीने छूटना, मूड में उतार-चढ़ाव, अवसाद, चिंता, और साथ ही, जेनाइटोयूरिनरी और यौन क्रियाओं में बदलाव आदि हो सकता है.

जोखिम कोरोनरी हार्ट डिसीज का

डॉ. अपर्णा आगे कहती है कि मेनोपॉज़ होने के बाद महिलाओं के शरीर में इस्‍ट्रोजेन और प्रोजेस्‍ट्रोन हार्मोनों का बनना रुक जाता है, जिसके चलते उन्‍हें भी पुरुषों के समान जोखिमों का सामना करना पड़ता है. ये हार्मोन न सिर्फ प्रजनन से जुड़े हैं, बल्कि महिलाओं के स्‍वास्‍थ्‍य में भी इनकी महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है और उनकी धमनियों में प्‍लाक जमने, हृदय धमनी के रोगों, उच्‍च रक्‍तचाप, नुकसानदायक कलेस्‍ट्रोल के अधिक स्‍तर, उपयोगी कलेस्‍ट्रोल के कम स्‍तर जैसी परेशानियों से भी बचाते हैं. इस्‍ट्रोजेन के बारे में माना जाता है कि यह आर्टरी की अंदरूनी दीवार को सुरक्षित रखता है, रक्‍त वाहिकाओं को लचीला बनाता है और उन्‍हें सूजन, अन्‍य नुकसान से भी बचाता है, लेकिन जिन महिलाओं में रजोनिवृत्ति हो चुकी होती है, उनके शरीर में इस प्रकार के हार्मोन न रहने पर महिलाओं में उच्‍च रक्‍तचाप, कोरोनरी प्‍लाक और एंडोथीलियल की समस्‍या बढ़ जाती है. एंडोथीलियल को नुकसान पहुंचने के बाद, कोरोनरी आर्टरी रोग का जोखिम बढ़ जाता है और यहां तक कि हार्ट अटैक का भी जोखिम बढ़ जाता है.

असल में मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं को समान उम्र के पुरुषों की तुलना में हृदय रोग का जोखिम अधिक होता है. इसलिए हमेशा याद रखना चाहिए कि मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं में जोखिम बढ़ने की वजह से उन्‍हें खुद को हृदय रोगों से बचाने वाले जोखिमों से बचाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए. महिलाओं को अपनी कार्डियोवास्‍क्‍युलर सेहत को लेकर काफी सक्रिय होना चाहिए और अपने उच्‍च रक्‍तचाप तथा मधुमेह को नियंत्रित रखना चाहिए.साथ ही इस ओर काफी ध्‍यान देने की जरूरत है.इसके अलावा महिलाओं के कार्डियोवास्‍क्‍युलर जोखिम को कम करने के लिए पर्सनलाइज्‍़ड, प्रीवेंटिव कार्डियोलॉजी केयर काफी महत्‍वपूर्ण होता है.

रिस्क फैक्टर्स

कुछ रिस्क फैक्टर्स निम्न है,

  • परिवार में हृदय रोगों का इतिहास रहा हो, या मधुमेह, उच्‍च रक्‍तचाप, मोटापा, धूम्रपान और व्‍यायाम रहित जीवनशैली होने वालों में अर्ली मेनोपॉज़ के बाद कार्डियोवास्‍क्‍युलर समस्‍याएं बढ़ सकती है.
  • अर्ली मेनोपॉज़ होने पर अपने हृदय के स्‍वास्‍थ्‍य की ओर अच्‍छी तरह से ध्‍यान देना जरुरी है, जिसमे जीवनशैली में बदलाव, नियमित व्‍यायाम, स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक भोजन, निरंतर ब्‍लड प्रेशर औरकोलेस्‍ट्रॉल स्‍तर की जांचकरना जरुरी है.
  • इसके अलावा मधुमेह रोगियों के ब्‍लड शुगर को नियंत्रित रखने, धूम्रपान न करने जैसे उपाय हृदय रोगों से बचाव में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

अर्ली मेंनोपॉज के बाद शरीर को स्‍वस्‍थ रखने के लिए आवश्‍यक पोषक तत्‍वों की आवश्यकता भोजन में होती है, जो निम्न है,

फल एवं सब्जियां

साबुत अनाज

कम वसायुक्‍त डेयरी उत्‍पाद

पोल्‍ट्री, मछली और मेवे

रैड मीट, शूगर युक्‍त फूड एवं बेवरेज़ेस का सीमित सेवन आदि

डॉ. मानती है कि महिलाओं को हृदय रोगों को खुद से दूर रखने के लिए हर हफ्ते शारीरिक व्‍यायाम को अपनी जीवनशैली में शामिल कर लें, ये भी व्‍यक्तिगत आवश्‍यकतानुसार वेट लॉस प्रोग्राम को ही अपनाएं.इसके अलावा, सैर, साइकिल चलाना, नृत्‍य करना और तैराकी जैसी गतिविधियां भी, जो कि मांसपेशियों का बड़े पैमाने पर इस्‍तेमाल करती हैं, अच्‍छे ऐरोबिक व्‍यायाम माने जाते हैं.महिलाओं के प्री-मेनोपॉज़ल और रिप्रोडक्टिव वर्षों में, मासिक धर्म के दौरान शरीर की एंडोमीट्रियल कोशिकाएं नष्‍ट होती रहती हैं.इसके अलावा मेनोपॉज़ के बाद हृदय रोगों से सुरक्षा के लिए हार्मोन रिप्‍लेसमेंट थेरेपी की सलाह नहीं दी जाती.

हर साल करवाएं जांच

इस प्रकार यह कहना सही होगा कि अर्ली मेनोपॉज़ होने पर महिलाओं को हर साल अपनी नियमित रूप से जांच करवानी चाहिए ताकि हृदय रोगों के जोखिम से बचा जा सके, साथ ही, जीवनशैली में भी बदलाव करें तथा गाइनीकोलॉजिस्‍ट से नियमित रूप से मिलें.

Festive Special: फैमिली के लिए बनाएं पनीर नान

फैमिली के लिए अगर आप चटपटी सब्जी के साथ नान परोसना चाहते हैं तो पनीर नान की ये रेसिपी ट्राय करना ना भूलें.

आटा गूंधने की सामग्री

250 ग्राम मैदा

– 1/4 छोटा चम्मच बेकिंग सोडा

-2 बड़े चम्मच दही

– 1/2 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर

– 2 बड़े चम्मच दूध

– 1/2 छोटा चम्मच चीनी

– 2 बड़े चम्मच रिफाइंड औयल

पर्याप्त पानी, नमक स्वादानुसार.

भरावन की सामग्री

150 ग्राम पनीर

– 1 बड़ा चम्मच आलू मैश किया

– 1 प्याज बारीक कटा

– 2 छोटे चम्मच कसूरी मेथी

– 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

2 हरीमिर्चें बारीक कटी

– 1/2 छोटा चम्मच कालीमिर्च

– 1/2 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर

1 शिमलामिर्च कटी

– 1 छोटा चम्मच मक्खन

25 ग्राम चीज क्यूब्स

– नमक स्वादानुसार.

नान पर लगाने की सामग्री

2 बड़े चम्मच मक्खन पिघला

2 बड़े चम्मच कलौंजी

1 बड़ा चम्मच खसखस.

विधि

मैदे को बेकिंग पाउडर, बेकिंग सोडा और नमक के साथ छान कर अच्छी तरह मिक्स करें. अब दही, चीनी और दूध को मिला कर मैदे में मिलाएं. तेल भी डालें. मुलायम आटा गूंधें फिर 2 घंटों के लिए कहीं गरम स्थान पर रख दें. भरावन की सामग्री में प्याज, शिमलामिर्च और हरीमिर्च को 1 चम्मच मक्खन में भून कर भरावन की बाकी सामग्री में मिला दें फिर आटे की गोलियां बना कर उन में भरावन भर कर अंडाकार बेल लें. गैस तंदूर गरम कर उस में पानी की सहायता से नान लगाएं और उस के ऊपर मक्खन, कलौंजी और खसखस का मिश्रण लगाएं. फिर मक्खन लगा कर गरमगरम परोसें. नान तवे पर भी बना सकती हैं. एक तरफ से सिंकने पर पलट कर दूसरी तरफ से सेंक लें.

Festive Special: फैस्टिवल की धूम में पति को भी ले जाएं सैलून

सपना अपनी सहेली ज्योति की शादी में अपने पति के साथ गई. वहां ज्योति ने अपनी छोटी बहन आरती से सपना कोे मिलवाया तो वह बोली, ‘‘हैलो सपना दी, हैलो अंकल. सपना दी, क्या जीजाजी को साथ नहीं लाईं?’’

‘‘आरती, यही तो हैं सपना के पति. ये अंकल नहीं तुम्हारे जीजाजी हैं,’’ ज्योति ने बताया.

यह सुन कर आरती बोली, ‘‘सौरी सपना दी, मैं ने पहचाना नहीं.’’

फिर तो मियांबीवी दोनों ने बेमन से शादी अटैंड की और घर लौट आए. सपना को रहरह कर आरती की कही बात याद आती रही. इस भागदौड़ भरी जिंदगी में लापरवाही की वजह से पुरुष अकसर उपहास का पात्र बन जाते हैं. ऐसा अकसर देखा जाता है कि फैस्टिवल हो या शादीब्याह का सीजन, महिलाएं तो निकल पड़ती हैं सुंदर दिखने की चाहत में, जबकि पति महोदय ‘हम ठीक लग रहे हैं’ की तख्ती गले में लटकाए फिरते हैं. और ऐसे में कहीं कोई और आरती जैसी उन्हें अंकल कह देती है तो मियांबीवी दोनों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंच जाती है और फंक्शन का सारा मजा किरकिरा हो जाता है. इसलिए जरूरी है कि उपहास का पात्र बनने से पहले ही ऐसी स्थिति न आए इस के लिए जागरूक रहा जाए.

आकर्षण दोनों के लिए जरूरी

सौंदर्य एवं आकर्षण को हमेशा से ही स्त्री से जोड़ कर देखा गया है. जबकि हकीकत तो यह है कि जिस तरह से पुरुष सुंदर स्त्री चाहता है, उसी तरह स्त्री भी यही चाहती है कि उस का साथी किसी भी माने में उस से या किसी और से कम न हो. इसीलिए मौजूदा समय में हर छोटेबड़े शहर में खुलने वाले यूनीसैक्स सैलून ऐसे हैं, जहां एक ही छत के नीचे पुरुष व महिला दोनों सुंदर दिखने की चाह को पूरा करते हैं. लेकिन बदलती तसवीर के बावजूद भी कई कपल ऐसे हैं, जो लकीर के फकीर बन कर बैठे हैं या तो अज्ञानता के कारण या फिर लोग क्या कहेंगे इस डर से और फिर गाहेबगाहे वे अपना मजाक बनवा लेते हैं.

सकरात्मक सोच अपनाएं

पति को सौंदर्य के प्रति जागरूक करने के लिए सकारात्मक सोच अपनाएं. उन्हें समझाएं कि जैसे वे आप को सजासंवरा देखना चाहते हैं, वैसे ही आप भी उन्हें स्मार्ट और हैंडसम देखना चाहती हैं. उन के ‘ना’ को ‘हां’ में बदलने के लिए प्यारभरी बातों का सहारा लें.

रिलैक्स थेरैपी

काम की आपाधापी, टैंशन आदि के कारण शरीर व दिमाग थकने लगता है, जिस के कारण उत्सव चाहे जो भी हो भारी लगने लगता है. इसीलिए बौडी व माइंड को रिलैक्स देने के लिए किसी अच्छे स्पा सैंटर में जा कर आप दोनों बौडी स्पा, सोना, पूल, स्टीम रूम और वर्लपूल जैसी सुविधाओं का लाभ उठाएं. इन से उन की बौडी रिलैक्स तो फील करेगी ही, उन में नई स्फूर्ति व ताजगी का संचार भी होगा. इस पौजिटिव चेंज के बाद वे अपने कायाकल्प के लिए आगे भी झिझकेंगे नहीं.

खुद करें पहल

पति की कायापलट करने से पहले यह जानना बहुत जरूरी है कि आप को क्याक्या तैयारी करनी है. मसलन, अगर उन के ड्रैसिंग स्टाइल में चेंज लाना है, तो उन की पसंद को ध्यान में रखते हुए ही आप कदम उठाएं. इस के लिए आप ड्रैस डिजाइनर कीहैल्प भी ले सकती हैं.

बौडी ऐक्सफोलिएशन

प्रदूषण के कारण पुरुषों में टैनिंग व डैड स्किन की समस्या बेहद कौमन होती है. त्वचा से डैड सैल्स की परत को हटाने के लिए ऐक्सफोलिएशन बेहद कारगर उपाय है. वैसे तो ऐक्सफोलिएशन ट्रीटमैंट सैलून में उपलब्ध है, लेकिन अगर आप चाहें तो घर पर भी अपने पतिदेव की नियमित रूप से स्क्रबिंग कर सकती हैं. मार्केट में कई ब्रैंड के बौडी स्क्रब उपलब्ध हैं, आप अपनी पसंद का उन में से कोई ले सकती हैं.

फेशियल

महिलाओं की तुलना में पुरुषों की त्वचा ज्यादा संवेदनशील होती है. उन की त्वचा ज्यादा ही रूखीसूखी होने के अलावा ब्लैक पोर्स, ब्लैक हैड्स और टैनिंग आदि से घिरी होती है. इसलिए उन की त्वचा के अनुरूप प्रोडक्ट व सर्विसेज मार्केट में उपलब्ध हैं. फेशियल द्वारा पुरुषों की स्किन को हैल्दी व ग्लोइंग इफैक्ट दिया जा सकता है.

पुरुषों की स्किन के अनुरूप कुछ खास फेशियल ये हैं:

 बूस्ट फेशियल: इस को मिनी फेशियल भी कहा जाता है. अगर आप के पास बिजी शैडयूल के चलते समय की कमी है, तो रेडियंस बूस्ट फेशियल बेहतर औप्शन है. इस में क्लींजिंग, एक्फोलिएशन स्टीम, बूस्टिंग मास्क, टोनिंग, मौइश्चराइजिंग और शोल्डर मसाज की जाती है. इसे करवाने में तकरीबन 30-35 मिनट लगते हैं.

रिजेनिरेटिंग फेशियल: यह फेशियल हर प्रकार की स्किन के अनुकूल है. अगर आप पैचेज को लाइट करवाने के इच्छुक हैं तो यह फेशियल इस्तेमाल करें. यह सनडैमेज व पिग्मैंटेशन पैचेज के लिए भी बेहद कारगर है. इस में ड्यूल क्लींजिंग, स्टीम ऐक्सफोलिएशन, प्रैशर पौइंट मसाज, टैन रिमूविंग पैक, शोल्डर मसाज व सनप्रोटैक्शन वाला मौइश्चराइजर इस्तेमाल किया जाता है. इस में लगने वाला समय तकरीबन 1 घंटे का होता है. सूरज के हानिकारक प्रभाव से झुलसी त्वचा के लिए यह बेहद कारगर स्किन ट्रीटमैंट फेशियल है.

डर्मालौजिकल फेशियल: रूखीसूखी डिहाइड्रेट त्वचा के लिए डर्मालौजिकल फेशियल एकदम उपयुक्त फेशियल है. इस में सी माइल्ड क्लींजिंग, स्ट्रीम ऐक्सफोलिएशन, शोल्डर मसाज, फेशियल प्रैशर पौइंट मसाज, हाइड्रेटिंग मास्क, सीरम व स्कैल्प मसाज आती है. इस फेशियल का समय 1 घंटा रहता है.

ऐंटी ऐजिंग ट्रीटमैंट

ऐंटी ऐजिंग ट्रीटमैंट की बात करें तो स्किनपील, लेजर स्किन रिसर्फेसिंग, बोटोक्स ट्रीटमैंट, डर्माबे्रजन, कोलाजन ट्रीटमैंट व कौस्मैटिक सर्जरी पुरुषों के लिए समान रूप से कारगर है. लेकिन ये ट्रीटमैंट महंगे व कुशल डाक्टर की देखरेख में हीप्रभावशाली परिणाम देने वाले होते हैं.

हेयरकट व हेयरस्टाइलिंग

पिछले कुछ सालों से पुरुषों में हेयरकट व हेयरस्टाइलिंग को ले कर काफी क्रेज व बदलाव देखा जा रहा है. इस की शुरुआत आमिर खान की फिल्म ‘तारे जमीं पर’ की हेयरस्टाइल से हुई. फिर इन्हीं की फिल्म ‘गजनी’ के इन के लुक, सलमान के फिल्म ‘वीर’ के लुक, रितिक रोशन के फिल्म ‘जोधा अकबर’ के बैंगबैंग लुक व योयो हनी सिंह आदि के स्टाइलिश लुक का क्रेज सिर चढ़ कर बोला. इसी में बाउंस हेयर, ऐंगुलर फ्रिंज व डीप हेयरकट प्रमुख हैं.

 प्रोडक्ट्स

बालों को वाल्यूम व मनपसंद स्टाइल देने के लिए मार्केट में कई हेयरस्टाइलिंग प्रोडक्ट उपलब्ध हैं. इन का इस्तेमाल आप अपनी जरूरत के हिसाब से आराम से कर सकते हैं: पौलिश स्पे्र: बालों में चमक बढ़ाने के लिए इस का प्रयोग किया जाता है.

जैल व क्रीम: बालों में वेट लुक के लिए जैल व बालों को घना दिखाने के लिए क्रीम का इस्तेमाल किया जाता है.

ऐरोसोल स्प्रे: बालों को परफैक्ट बाउंस देने के लिए ऐरोसोल हेयर स्प्रे का इस्तेमाल किया जाता है.

मूस: बालों को ब्लो ड्राइंग व स्कं्रच करने के लिए मूस का इस्तेमाल किया जाता है. मार्केट में अलगअलग कंपनी के स्टाइलिंग प्रोडक्ट उपलब्ध हैं.

मैनिक्योर पैडिक्योर

ज्यदातर पुरुषों के हाथपैर रूखे, बेजान व भद्दे से दिखाई देते हैं. फिर वे चाहे कितने ही अच्छे कपड़े क्यों न पहने, उन के हाथपैर उन के आलसी व बेढंगेपन का भंडा फोड़ देते हैं. इसलिए किसी नेल सैलून में जा कर क्यूटिकल को रिमूव करवाएं व नेल्स को ट्रिम करवा कर अपने हाथपैरों की खूबसूरती बढ़ाएं. कई पुरुषों के नाखून बहुत हार्ड होते हैं, जो अंदर ही अंदर धंस कर दर्द पैदा कर देते हैं. इसलिए नेल सौफ्टनर का इस्तेमाल कर के नाखूनों को नरम बना कर काट लें. इस के अलावा जैल, औयल, स्पा व वैक्स मैनिक्योर पैडिक्योर करवाएं.

हेयर रिमूवल

हेयर रिमूवल से मतलब बिकनी, आर्म्स व लैग्स वैक्सिंग से नहीं है. बल्कि कितनी ऐसी जगहें होती हैं जहां पर आप का ध्यान नहीं जाता, लेकिन देखने वाले उन्हें नोटिस जरूर कर लेते हैं. जैसे कानों के ऊपर, नाक के किनारों पर व हेयरकट के बाद गले के आसपास बेतरतीब छोटेछोटे बाल और अंडरआर्म्स के बाल जिन के कारण बदबूदार पसीने और संक्रमण के कारण भी पुरुष बेढंगे व बैरोनक नजर आते हैं. इन्हें आसानी से ट्रिम व रिमूव करवाया जा सकता है, जिस से आप दोनों की जोड़ी भी हिट नजर आए.

रखें उन की पसंद का खयाल

माना कि आप उन की पर्सनैलिटी को निखारने की कोशिश कर रही हैं, मगर इस बात का ध्यान रखें कि उन की पसंद को अनजाने में ही आप नजरअंदाज न कर दें. हम बात कर रहे हैं ड्रैसिंग सैंस की. महिलाओं और पुरुषों के डै्रसिंग सैंस बिलकुल अलगअलग होता है, इसलिए अपनी पसंद उन पर थोपने से अच्छा है कि आप काउंटर बौय या गर्ल की मदद लें. ऐसा करने से आप के पतिदेव को अपने ऊपर कुछ थोपा हुआ महसूस नहीं होगा. इस फैस्टिवल सीजन में अपने साथसाथ अपने पतिदेव का भी रूप निखार के आप पा सकती हैं लोगों की तारीफ का अवार्ड, जो फैस्टिवल सीजन में आप की खुशियों में चार चांद लगा देगा.

कार की बदबू दूर करने के 5 टिप्स

आजकल कार फैशन नहीं बल्कि हम सबकी आवश्यकता बन गयी है. हम सभी कार से छोटी बड़ी दूरियों को पूरा करते हैं अक्सर कार में विभिन्न प्रकार की दुर्गंध समा जाती है जिससे कार में सफर करना बहुत मुश्किल हो जाता है. आज हम आपको ऐसे कुछ टिप्स बता रहे हैं जो कार की दुर्गंध को दूर करने में आपके लिए मददगार साबित होंगे और आपके सफर को आसान बनाएंगे-

1. पेट्स की दुर्गंध

अक्सर लोग कार में अपने पालतू कुत्ते या बिल्ली को लेकर जाते हैं और ऐसे में कार की सीट्स और फ्लोर कवर में से दुर्गंध आने लगती है. इसे दूर करने के लिए कार को वैक्यूम क्लीनर से वैक्यूम करके किसीएयर फ्रेशनर से लाइट स्प्रे कर दें आपकी कार महक उठेगी.

2. दूध की गंध

कार में सफर करते समय छोटे बच्चों को बोतल या कटोरी चम्मच से दूध पिलाया जाता है जिससे  अक्सर कार में दूध गिर जाता है और दूध की गंध पूरी गाड़ी में आने लगती है. जितना जल्दी हो सके दूध को साफ सूती कपड़े से पोंछकर  एंजाइम बेस्ट क्लींजर से साफ करें और  यदि दूध अधिक मात्रा में कार की सीट और फ्लोर पर गिर गया है दुर्गंध नहीं जा रही है फिर तो प्रोफेशनल की मदद लें.

3. बॉडी फ्लूइड्स

गर्मियों में शरीर से निकलने वाले पसीने की गंध अथवा परिवार के किसी सदस्य को उल्टी हो जाने अथवा छोटे बच्चे के द्वारा सू सू पॉटी कर लेने पर भी कार में दुर्गंध आने लगती है. इससे बचने के लिए कार में अमोनिया छिड़ककर सूती कपड़े से साफ कर दें.

4. सिगरेट की गंध

सिगरेट की गंध को दूर करने के लिए शुगर सोप से सतहों की सफाई करें या सफेद सिरका और पानी को समान मात्रा में मिलाकर एक घोल तैयार करें और इससे कार के इंटीरियर सर्फेस को अच्छी तरह साफ करके सूती कपड़े से पोछ दें.यदि फिर भी गन्ध न जाये तो कार का एयर फिल्टर बदल दें.

5. कुछ अन्य उपाय

उपरोक्त दुरगंधों के अतिरिक्त सीलन, अचार, या फफूंदी जैसी अन्य दुर्गंध भी कार के सफर को मुश्किल बना देतीं हैं. इस प्रकार की बदबू को दूर करने के लिए प्रभावित स्थान पर बेकिंग सोडा और नमक को अच्छी तरह छिड़क दें, 1-2 घण्टे के बाद ब्रश से रगड़कर साफ कर दें. अंत मे एयर फ्रेशनर से स्प्रे कर दें. इसके अतिरक्त कार में सदैव एयर फ्रेशनर का प्रयोग करें इससे काफी हद तक कार की बदबू नियंत्रण में रहेगी.

GHKKPM: भवानी की नाक में दम करेगी ये नई मेहमान, पाखी की जिंदगी में आएगा तूफान!

सीरियल गुम हैं किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisi Ke Pyaar Mein) की कहानी में इन दिनों सई और विराट को साथ में दिखाया जा रहा है. जहां विराट, सई के लिए गुंडों से लड़ता है तो वहीं पाखी सच से अब तक अंजान दिख रही है. हालांकि अपकमिंग एपिसोड में सीरियल में नई एंट्री के चलते चव्हाण परिवार में ड्रामा होते हुए नजर आने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे (Ghum Hai Kisi Ke Pyaar Mein Written Update)…

विराट को आया गुस्सा

अब तक आपने देखा कि नेता गुलाबराव से विराट की लड़ाई हो जाती है, जिसका कारण सई होती है. दरअसल, गुलाबराव, सई के चरित्र पर सवाल उठाता है और सवि के पिता के ना होने की बात कहता है, जिसे सुनकर विराट को गुस्सा आ जाता है और वह उसकी पिटाई कर देता है. हालांकि वक्त रहते सई उसे रोक लेती है और अपने घर ले जाती है.

भवानी की बेइज्जती करेगी देवयानी की बेटी

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि सई जहां विनायक का इलाज शुरु करेगी तो वहीं चौह्वाण निवास में देवयानी और पुलकित की बेटी हरिणी रहने के लिए आएगी. जहां उसकी परवरिश पर भवानी को गुस्सा आएगा. दरअसल, घर में आते ही हरिणी परिवार के लोगों के साथ बद्तमीजी करती दिखेगी, जिसमें सबसे पहले भवानी का नंबर आएगी. वहीं पाखी उसकी बद्तमीजी का करारा जवाब देती दिखेगी. हालांकि भवानी उसे सुधारने की बात कहती नजर आएगी.

 

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पाखी को होगा शक


दूसरी तरफ, सवि के पिता न होने का सच विराट को परेशान करता है और इसीलिए वह अपकमिंग एपिसोड में सच जानने की कोशिश करेगा. दरअसल, विराट, सई से पूछेगा कि सवि उसे कहां मिली और उसके माता-पिता के बारे में सवाल करेगा, जिसे सुनकर सई को गुस्सा आता है. दूसरी तरफ, विराट का फोन ना उठाना और बातें छिपाना पाखी को परेशान करेगा और वह सच जानने की कोशिश करती दिखेगी.

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