एक ताजमहल की वापसी- भाग 2: क्या एक हुए रचना और प्रमोद

एक तेज खुशबूदार सैंट की महक उस में मादकता भरने के लिए काफी थी. चुंबक के 2 विपरीत ध्रुवों के समान रचना उसे अपनी ओर खींचती प्रतीत हो रही थी. कमरे में वे दोनों थे, जानबूझ कर चंदा उन के एकांत में बाधा नहीं बनना चाहती थी.

‘एक हारे हुए खिलाड़ी की ओर से यह एक छोटी सी भेंट स्वीकार कीजिए,’ कह कर रचना ने एक सुनहरी घड़ी प्रमोद को भेंट की तो वह इतना महंगा तोहफा देख कर हक्काबक्का रह गया.

‘जरा इसे पहन कर तो दिखाइए,’ रचना ने प्रमोद की आंखों में झांक कर उस से आग्रह किया.

‘इसे आप ही अपने करकमलों से बांधें तो…’ प्रमोद ने भी मृदु हास्य बिखेरा.

रचना ने जैसे ही वह सुंदर सी घड़ी प्रमोद की कलाई पर बांधी मानो पूरी फिजा ही सुनहरी हो गई. उसे पहली बार किसी हमउम्र युवती ने छुआ था. शरीर में एक रोमांच सा भर गया था. मन कर रहा था कि घड़ी चूमने के बहाने वह रचना की नाजुक उंगलियों को छू ले और छू कर उन्हें चूम ले. पर ऐसा हुआ नहीं और हो भी नहीं सकता था. प्यार की पहली डगर में ऐसी अधैर्यता शोभा नहीं देती. कहीं वह उसे उस की उच्छृंखलता न समझे. समय की पहचान हर किसी को होनी जरूरी है वरना वक्त का मिजाज बदलते देर नहीं लगती.

अब प्रमोद का भी रचना को कोई सुंदर सा उपहार देना लाजिमी था. प्रमोद की न जाने कितने दिन और कितनी रातें इसी उधेड़बुन में बीत गईं. एक युवती को एक युवक की तरफ से कैसा उपहार दिया जाए यह उस की समझ के परे था. सोतेजागते बस उपहार देने की धुन उस पर सवार रहती. उस के मित्रों ने सलाह दी कि कश्मीर की वादियों से कोई शानदार उपहार खरीद कर लाया जाए तो सोने पर सुहागा हो जाए.

मित्रों के उपहास का जवाब देते हुए प्रमोद बोला, ‘मुझे कुल्लूमनाली या फिर कश्मीर से शिकारे में बैठ कर किसी उपहार को खरीदने की क्या जरूरत है? मेरे लिए तो यहीं सबकुछ है जहां मेरी महबूबा है. मेरा मन कहता है कि रचना बनी ही मेरे लिए है. मैं रचना के लिए हूं और मेरा यह रचनामय संसार मेरे लिए कितना रचनात्मक है, यह मैं भलीभांति जानता हूं.’

यह सुन कर सभी दोस्त हंस पड़े. ऐसे मौके पर दोस्त मजाक बनाने का कोई अवसर नहीं छोड़ते. हासपरिहास के ऐसे क्षण मनोरंजक तो होते हैं, लेकिन ये सब उस प्रेमी किरदार को रास नहीं आते, क्योंकि जिस में उस की लगन लगी होती है. उसे वह अपने से कहीं ज्यादा मूल्यवान समझने लगता है. उसे दरख्तों, झीलों, ऋतुओं और फूलों में अपने महबूब की छवि दिखाई देने लगती है, कामदेव की उन पर महती कृपा जो होती है. कुछ तो था जो उस के मनप्राण में धीरेधीरे जगह बना रहा था. वह खुद से पूछता कि क्या इसी को प्यार कहते हैं. वह कभी घबराता कि कहीं यह मृगतृष्णा तो नहीं है. उस का यह पहलापहला प्यार था.

कहते हैं कि प्यार की पहचान मन को होती है, पर मन हिरण होता है, कभी यहां, कभी वहां उछलकूद करता रहता है. वह ज्यादातर इस मामले में अपने को अनाड़ी ही समझता है.

आजकल वह एकएक पल को जीने की कोशिश कर रहा था. वह मनप्राण को प्यार रूपी खूंटे से बांध रहा था. प्रेमरस में भीगी इस कहानी को वह आगे बढ़ाना चाह रहा था. इस कहानी को वह अपने मन के परदे पर उतार कर प्रेम की एक सजीव मूर्ति बनना चाहता था.

धीरेधीरे रचना से मुलाकातें बढ़ रही थीं. अब तो रचना उस के ख्वाबों में भी आने लगी थी. वह उस के साथ एक फिल्म भी देख आया था और अब अपने प्यार में उसे दृढ़ता दिखाई देने लगी थी. अब उसे पूरा भरोसा हो गया था कि रचना बस उस की है.

प्रमोद मन से जरूर कुछ परेशान था. वह अपने मन पर जितना काबू करता वह उसे और तड़पा जाता. वह अकसर अपने मन से पूछता कि प्यार बता दुश्मन का हाल भी क्या मेरे जैसा है? ‘हाल कैसा है जनाब का…’ इस पंक्ति को वह मन ही मन गुनगुनाता और प्रेमरस में डूबता चला जाता. प्रेम का दरिया किसी गहरे समुद्र से भी ज्यादा गहरा होता है. आजकल प्रमोद के पास केवल 2 ही काम रह गए थे. नौकरी की तलाश और रचना का रचना पाठ.

रचना…रचना…रचना…यह कैसी रचना थी जिसे वह जितनी बार भी भजता, वह उतनी ही त्वरित गति से हृदय के द्वार पर आ खड़ी होती. हृदय धड़कने लगता, खुमार छाने लगता, दीवानापन बढ़ जाता, वह लड़खड़ाने लगता, जैसे मधुशाला से चल कर आ रहा हो.

इसी तरह हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ उसे पूरी तरह याद हो गई थी, जरूर ऐसे दीवाने को मधुशाला ही थाम सकती है, जिस के कणकण में मधु व्याप्त हो, रसामृत हो, अधरामृत हो, प्रेमी अपने प्रेमी के साथ भावनात्मक आत्मसात हो.

आत्मसात हो कर वह दीनदुनिया में खो जाए. तनमन के बीच कोई फासला न रह जाए. प्रकृति के गूढ़ रहस्य को इतनी आसानी से पा लिया जाए कि प्यार की तलब के आगे सबकुछ खत्म हो जाए, मन भ्रमर बस एक ही पुष्प पर बैठे और उसी में बंद हो जाए. वह अपनी आंखें खोले तो उसे महबूब नजर आए.

अपनी चचेरी बहन चंदा पर प्रेम प्रसंग उजागर न हो इसलिए रचना प्रमोद से बाहर बरगद के पेड़ के नीचे मिलने लगी. वे शंकित नजरों से इधरउधर देखते हुए एकदूसरे में अपने प्यार को तलाश रहे थे. प्रेम भरी नजरों से देख कर अघा नहीं रहे थे. यह प्रेममिलन उन्हें किसी अमूल्य वस्तु से कम नहीं लग रहा था.

उस ने रचना के लिए अपना मनपसंद गिफ्ट खरीद लिया. उसे लग रहा था कि इस से अच्छा कोई और गिफ्ट हो ही नहीं सकता. रंगीन कागज में लिपटा यह गिफ्ट जैसे ही धड़कते दिल से प्रमोद ने रचना को दिया, तो उस की महबूबा भी रोमांच से भर उठी.

‘इसे खोल कर देखूं क्या?’ अपनी बड़ीबड़ी पलकें झपका कर रचना बोली.

‘जैसा आप उचित समझें. यह गिफ्ट आप का है, दिल आप का है. हम भी आप के हैं,’ प्रमोद बोला.

‘वाऊ,’ रचना के मुंह से एकाएक निकला.

एक ताजमहल की वापसी- भाग 1: क्या एक हुए रचना और प्रमोद

रचना ने प्रमोद के हाथों में ताजमहल का शोपीस वापस रखते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो प्रमोद, मैं प्यार की कसौटी पर खरी नहीं उतरी. मैं प्यार के इस खेल में बुरी तरह हार गई हूं. मैं तुम्हारे प्यार की इस धरोहर को वापस करने को विवश हो गई हूं. मुझे उम्मीद है कि तुम मेरी इस विवशता को समझोगे और इसे वापस ले कर अपने प्यार की लाज भी रखोगे.’’ प्रमोद हैरान था. उस ने अभी कुछ दिन पहले ही अपने प्यार की मलिका रचना को प्यार का प्रतीक ताजमहल भेंट करते हुए कहा था, ‘यह हमारे प्यार की बेशकीमती निशानी है रचना, इसे संभाल कर रखना. यह तुम्हें हमारे प्यार की याद दिलाता रहेगा. जैसे ही मुझे कोई अच्छी जौब मिलेगी, मैं तुरंत शादी करने आ जाऊंगा. तब तक तुम्हें यह अपने प्यार से भटकने नहीं देगा.’

रचना रोतेरोते बोली, ‘‘मैं स्वार्थी निकली प्रमोद, मुझ से अपने प्यार की रक्षा नहीं हो सकी. मैं कमजोर पड़ गई…मुझे माफ कर दो…मुझे अब इसे अपने पास रखने का कोई अधिकार नहीं रह गया है.’’

प्रमोद असहज हो कर रचना की मजबूरी समझने की कोशिश कर रहा था कि रचना वापस भी चली गई. सबकुछ इतने कम समय में हो गया कि वह कुछ समझ ही नहीं सका. अभी कुछ दिन पहले ही तो उस की रचना से मुलाकात हुई थी. उस का प्यार धीरेधीरे पल्लवित हो रहा था. वह एक के बाद एक मंजिल तय कर रहा था कि प्यार की यह इमारत ही ढह गई. वह निराश हो कर वहीं पास के चबूतरे पर धम से बैठ गया. उस का सिर चकराने लगा मानो वह पूरी तरह कुंठित हो कर रह गया था.

कुछ महीने पहले की ही तो बात है जब उस ने रचना के साथ इसी चबूतरे के पीछे बरगद के पेड़ के सामने वाले मैदान में बैडमिंटन का मैच खेला था. रचना बहुत अच्छा खेल रही थी, जिस से वह खुद भी उस का प्रशंसक बन गया था.

हालांकि वह मैच जीत गया था लेकिन अपनी इस जीत से वह खुश नहीं था. उस के दिमाग में बारबार एक ही खयाल आ रहा था कि यह इनाम उसे नहीं बल्कि रचना को मिलना चाहिए था. बैडमिंटन का कुशल खिलाड़ी प्रमोद उस मैच में रचना को अपना गुरु मान चुका था.

अपनी पूरी ताकत लगाने के बावजूद वह रचना से केवल 1 पौइंट से ही तो जीत पाया था. इस बीच रचना मजे से खेल रही थी. उसे मैच हारने का भी कोई गम न था.

मैच जीतने के बाद भी खुद को वह उस खुशी में शामिल नहीं कर पा रहा था. सोचता, ‘काश, वह रचना के हाथों हार जाता, तो जरूर स्वयं को जीता हुआ पाता.’ यह उस के अपने दिल की बात थी और इस में किसी, क्यों और क्या का कोई भी महत्त्व नहीं था. उसे रचना अपने दिल की गहराइयों में उतरते लग रही थी. किसी खूबसूरत लड़की के हाथों हारने का आनंद भला लोग क्या जानेंगे.

दिन बीतते गए. एक दिन रचना की चचेरी बहन ने बताया कि वह बैडमिंटन मैच खेलने वाली लड़की उस से मिलना चाहती है. वह तुरंत उस से मिलने के लिए चल पड़ा. अपनी चचेरी बहन चंदा के घर पर रचना उस का इंतजार कर रही थी.

‘हैलो,’ मानो कहीं वीणा के तार झंकृत हो गए हों.

उस के सामने रचना मोहक अंदाज में खड़ी मुसकरा रही थी. उस पर नीले रंग का सलवारसूट खूब फब रहा था. वह समझ ही नहीं पाया कि रचना के मोहपाश में बंधा वह कब उस के सामने आ खड़ा हुआ था. हलके मेकअप में उस की नीलीनीली, बड़ीबड़ी आंखें, बहुत गजब लग रही थीं और उस की खूबसूरती में चारचांद लगा रही थीं. रूप के समुद्र में वह इतना खो गया था कि प्रत्युत्तर में हैलो कहना ही भूल गया. वह जरूर उस की कल्पना की दुनिया की एक खूबसूरत झलक थी.

‘कैसे हैं आप?’ फिर एक मधुर स्वर कानों में गूंजा.

वह बिना कुछ बोले उसे निहारता ही रह गया. उस के मुंह से बोल ही नहीं फूट पा रहे थे. चेहरे पर झूलती बालों की लटें उस की खूबसूरती को और अधिक बढ़ा रही थीं. वास्तव में रचना प्रकृति की सुंदरतम रचना ही लग रही थी. वह किंचित स्वप्न से जागा और बोला, ‘मैं अच्छा हूं और आप कैसी हैं?’

‘जी, अच्छी हूं. आप को जीत की बधाई देने के लिए ही मैं ने आप को यहां आने का कष्ट दिया है. माफी चाहती हूं.’

‘महिलाएं तो अब हर क्षेत्र में पुरुषों से एक कदम आगे खड़ी हैं. उन्हें तो अपनेआप ही मास्टरी हासिल है,’ प्रमोद ने हलका सा मजाक किया तो रचना की मुसकराहट दोगुनी हो गई.

‘चंदा कह रही थी कि आप ने कैमिस्ट्री से एमएससी की है. मैं भी कैमिस्ट्री से एमएससी करना चाहती हूं. आप की मदद चाहिए मुझे,’ प्रमोद को लगा, जैसे रचना नहीं कोई सिने तारिका खड़ी थी उस के सामने.

प्रमोद रचना के साथ इस छोटी सी मुलाकात के बाद चला आया, पर रास्ते भर रचना का रूपयौवन उस के दिमाग में छाया रहा. वह जिधर देखता उधर उसे रचना ही खड़ी दिखाई देती. रचना की मुखाकृति और मधुर वाणी का अद्भुत मेल उसे व्याकुल करने के लिए काफी था. यह वह समय था जब वह पूरी तरह रचनामय हो गया था.

दूसरी बार उसे फिर आलोक बिखेरती रचना द्वारा याद किया गया. इस बार रचना जींस में अपना सौंदर्य संजोए थी. चंदा ने उसे आगाह कर दिया था कि रचना शहर के एक बड़े उद्योगपति की बेटी है. इसलिए वह पूरे संयम से काम ले रहा था. उस के मित्रों ने कभी उसे बताया था कि लड़कियों के मामले में बड़े धैर्य की जरूरत होती है. पहल भी लड़कियां ही करें तो और अच्छा, लड़कों की पहल और सतही बोलचाल उन में जल्दी अनाकर्षण पैदा कर सकता है. इसलिए वह भी रचना के सामने बहुत कम बोल कर केवल हांहूं से ही काम चला रहा था. अब की बार रचना ने प्रमोद को शायराना अंदाज में ‘सलाम’ कहा तो उस ने भी हड़बड़ाहट में उसी अंदाज में ‘सलाम’ बजा दिया.

Aashiqui 3 में TV एक्ट्रेस जेनिफर विंगेट के साथ रोमांस करेंगे Kartik Aaryan!

बॉलीवुड की पौपुलर रोमांटिक फिल्म ‘आशिकी’ (Aashiqui) के बाद Aashiqui 2 ने फैंस के दिलों पर राज किया है. वहीं जल्द ही तीसरा पार्ट यानी आशिकी 3 (Aashiqui 3) भी फैंस को खुश करने आने वाली है, जिसका हाल ही में ऐलान किया गया था. वहीं इसी बीच फिल्म की स्टारकास्ट की भी चर्चा जोरों पर हैं, जिसके लिए लीड रोल के लिए एक्टर कार्तिक आर्यन (Kartik Aaryan) का चुनाव हो गया है तो वहीं एक्ट्रेस को लेकर कई खबरें सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं, जिनमें टीवी हसीनाओं के नाम भी शामिल हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

कार्तिक आर्यन ने फिल्म का किया ऐलान

 

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एक्टर कार्तिक आर्यन ने हाल ही में बताया कि वह वर्ष 1990 की फिल्म ‘आशिकी’ के तीसरे पार्ट में वह नजर आने वाले हैं, जिसका निर्देशन अनुराग बसु करेंगे. वहीं ‘आशिकी 3’ का निर्माण भूषण कुमार की टी-सीरीज और विशेष फिल्म्स के निर्माता मुकेश भट्ट कर रहे हैं. दरअसल, एक्टर ने सोशल मीडिया पर फिल्म के हिट गाने ‘अब तेरे बिन जी लेंगे हम..’ का एक वीडियो शेयर किया.

 

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इस टीवी एक्ट्रेस संग कर सकते हैं रोमांस

लीड एक्टर फाइनल होने के बाद अब एक्ट्रेस की तलाश जारी है. वहीं खबरों की मानें तो इस फिल्म के लिए टीवी एक्ट्रेस जेनिफर विंगेट का नाम सामने आया है. हालांकि अभी ऑफिशियल स्टेटमेंट सामने नहीं आया है. लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक, मेकर्स ने कहा है कि, ‘आशिकी 3 में कार्तिक की एक्ट्रेसेस वाली खबरों में कोई सच्चाई नहीं है. एक्ट्रेस के लिए अभी भी खोज जारी है. अभी हम शुरुआती दौर में हैं और फिल्म के लिए कई आइडियाज आदि ढूंढ रहे हैं. दर्शकों की तरह ही हम भी फिल्म के लिए एक्ट्रेस की तलाश में हैं और ऐसा होते ही जल्द से जल्दी फैन्स संग न्यूज शेयर की जाएगी.

बता दें, जहां टीवी एक्ट्रेस जेनिफर विंगेट के फिल्म में होने की खबरों से फैंस काफी खुश दिख रहे हैं तो वहीं आशिकी 2 का हिस्सा रह चुकीं बौलीवुड एक्ट्रेस श्रद्धा कपूर का नाम भी इस फिल्म के लिए सामने आया है. हालांकि देखना होगा कि मेकर्स इस फिल्म के लिए किसका चुनाव करते हैं.

सान्निध्य

मौसम बहुत ही लुहवाना हो गया था. आसमान में घिर आए गहरे काले बादलों ने कुछ अंधेरा सा कर दिया था, लेकिन शाम के चार ही बजे थे, तेज बारिश के साथ जोरों की हवाएं और आंधी भी चल रही थी, पार्क में पेड़ झूमते लहराते अपनी प्रसन्नता का इजहार कर रहे थे. यमन का मन हुआ कि कमरे के सामने की बालकनी में कुर्सी लगाकर मौसम का लुफ्त उठाया जाए लेकिन फिर उन्हें लगा कि यामिनी का कमजोर शरीर तेज हवा सहन नहीं कर पाएगा. यमन ने यामिनी की ओर देखा वह पलंग पर आँखें मूंदे लेटी थी. यमन ने यामिनी से पूछा- अदरक वाली चाय बनाऊँ, पियोगी. अदरक वाली चाय यामिनी को बहुत पसंद थी, उसने धीरे से आँखे खोली और मुस्कराई, ‘‘आप क्यों, रामू से कहिये न, वह बना देगा. वह धीरे-धीरे बस इतना भी कह पाई.

अरे, रामू से क्यूँ कहूँ, वह क्या मुझसे ज्यादा अच्छी चाय बनाता है, तुम्हारे लिए तो चाय मैं ही बनाऊँगा. कहकर यमन रसोई में चले गये जब वे वापस आये तो ट्रे में दो कप चाय के साथ कुछ बिस्कुट भी रख लाए, उन्होंने सहारा देकर यामिनी को उठाया और हाथ में चाय का कप पकड़ा कर बिस्कुट आगे कर दिया.

नहीं, कुछ नहीं खाना, कहकर यामिनी ने बिस्कुट की प्लेट सरका दी…

‘बिस्कुट चाय में डुबाकर…….. उनकी बात पूरी होने से पहले ही यामिनी ने सिर हिला कर मना कर दिया. यामिनी की हालत देखकर यमन का दिल भर आया, उसका खाना पीना लगभग न के बराबर हो गया था. आँखों के नीचे काले गड्ढे हो गए थे, वज़न एकदम कम हो गया था. वह इतनी कमजोर हो गयी थी कि उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी. यमन खुद को विवश महसूस कर रहे थे, समय के आगे हारते चले जा रहे थे यमन.

यह कैसी विडंबना थी कि डॉक्टर होकर उन्होंने ना जाने कितने मरीजों को स्वस्थ किया था, किन्तु खुद अपनी पत्नी के लिए कुछ नहीं कर पा रहे थे, बस धीरे-धीरे अपनी जान से भी प्रिय पत्नी यामिनी को मौत की ओर जाते हुए भीगी आँखों से देख रहे थे.

यमन को वह दिन याद आया जिस दिन वे यामिनी को ब्याह कर अपने घर लाए थे. माँ अपनी सारी जिम्मेदारियाँ बहू यामिनी को सौंप कर निश्चिंत हो गई थीं, प्यारी सी दिखने वाली यामिनी ने भी खुले दिन से अपनी हर जिम्मेदारी को पूरे मन से स्वीकारा और किसी को भी शिकायत का मौका न दिया. उसके सौम्य, सरल स्वभाव ने परिवार के हर सदस्य को इसका कायल बना दिया था, सारे सदस्य यामिनी की तारीफ करते नहीं थकते थे.

यमन मेडिकल कॉलेज में लेक्चरर के पद पर थे, साथ ही घर में भी एक क्लीनिक खोल रखा था. स्वयं को एक योग्य व नामी डॉक्टर के रूप में स्थापित होने की बड़ी तमन्ना थी, घर की जिम्मेदारियाँ अकेली यामिनी पर डालकर वे सुबह से रात तक अपने कामों में व्यस्त रहते, नई नवेली पत्नी के साथ वक्त गुजारने की उन्हें फुरसत ही न थी या फिर शायद यमन ने जरूरत ही ना समझी, या यों कहा जाय कि ये अनमोल क्षण उसकी जिंदगी में ही नहीं थे, उन्हें लगता था कि यामिनी को तमाम सुख-सुविधा व ऐशो आराम में रखकर वे पति होने का फर्ज बखूबी निभा रहे हैं, जबकि सच तो यह था कि यामिनी की भावनाओं से उन्हें कोई सरोकार ना था.

यामिनी का मन तो यही चाहता था कि यमन उसके साथ सुकून व प्यार के दो पल गुजारे, वह तो यह भी सोचती थी कि यमन उसके साथ जितना भी समय बिताएंगे उतने ही पल उसके जीवन के अनमोल पल कहलाएंगे, लेकिन अपने मन की यह बात वह यमन से कभी नहीं कह पाई, जब कहा तब यमन समझ नहीं पाए और जब समझे तब तक बहुत देर हो चुकी थी, वक्त के साथ-साथ यमन की प्रैक्टिस बढ़ने लगी और उन्होंने एक सर्व सुविधा युक्त नर्सिंग होम खोल लिया. हर कदम पर वह यमन का मौन संबल बनी रही, वह उनके जीवन में एक घने वृक्ष सी शीतल छांव देती रही, यमन की मेहनत रंग लाई, कुछ समय बाद सफलता यमन के कदम चूमने लगी कुछ ही समय में उनके नर्सिंग होम का नाम काफी हो गया, वहाँ उनकी व्यस्तता इतनी बढ़ गयी कि उन्होंने नौकरी छोड़ दी और सिर्फ अपने नर्सिंग होम पर ही ध्यान देने लगे. इस बीच यामिनी ने भी दो बच्चों को जन्म दिया और वह उनकी परवरिश में ही अपनी खुशी तलाशने लगी, जिंदगी एक बंधे बधायें ढर्रे पर चल रही थी. यमन के लिए उसका अपना काम था और यामिनी के लिए उसके बच्चे, परिवार. सास-ससुर के देहांत और ननद की शादी के बाद यामिनी और भी अकेलापन महसूस करने लगी. बच्चे भी बड़े होकर अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गए थे. यामिनी का मन किस बात के लिए लालायित था, यह जानने की यमन ने कभी कोशिश नहीं की, जिंदगी ने यमन को एक मौका दिया था, कभी कोई भी फरमाइश न करने वाली उनकी पत्नी यामिनी ने एक बार उन्हें अपने दिल की गहराइयों से वाकिफ भी कराया था, लेकिन वे ही उसके दिल का दर्द और आंखों के सूनेपन को अनदेखा कर गए थे.

उस दिन यामिनी का जन्मदिन था, उन्होंने प्यार जताते हुए उससे पूछा था, बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या तोहफा लाया हूँ? तब यामिनी के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान आ गयी थी, उसने धीमी आवाज में बस इतना ही कहा…. तोहफे तो आप मुझे बहुत दे चुके, अब तो बस आपका सानिध्य चाहिए.

यमन बोले… वो भी मिल जायेगा, कुछ साल और मेहनत कर लूँ अपनी व बच्चों की लाइफ सैटल कर लूँ, फिर तो तुम्हारे साथ समय ही समय गुजारना है. कहते हुए साड़ी का एक पैकेट थमा कर यमन चले गये.

यामिनी ने फिर कभी यमन से कुछ नहीं कहा था, बेटा भी डॉक्टर बन गया था उसने भी डॉक्टर लड़की से शादी कर ली थी, बेटे बहू का भी सहयोग यमन को मिलने लगा बेटी की भी शादी हो गयी थी. दोनों अपनी जिम्मेदारी से निवृत्त हो गये. लेकिन परिस्थिति आज भी पहले की ही तरह थी. यामिनी अब भी यमन के सानिध्य को तरस रही थी, शायद सब कुछ इसी तरह चलता रहता अगर यामिनी बीमार न पड़ती.

एक दिन जब तब लोग नर्सिंग होम में थे, तब यामिनी चक्कर खाकर गिर पड़ी घर के नौकर रामू ने जब फोन पर बताया तो सब घबरा गए फिर शुरू हुआ टेस्ट कराने का सिलसिला जब रिपोर्ट आई तो पता चला कि यामिनी को कैंसर है. यमन यह सुनकर घबरा गए, मानों उनके पैरों तले जमीन खिसकने लगी उन्होंने अपने मित्र कैंसर स्पेशलिस्ट को रिपोर्ट दिखाई, उन्होंने देखते ही साफ कह दिया, ‘यमन, तुम्हारी पत्नी को कैंसर है इसमें कुछ तो बीमारी के लक्षणों का पता ही देरी से चलता है और कुछ इन्होंने अपनी तकलीफें छिपाई होंगी, अब तो इनका कैंसर चौथी स्टेज पर है, यह शरीर के दूसरे अंगों तक भी फैल चुका है कुछ भी कर लो, लेकिन कुछ खास फायदा नहीं होने वाला, अब तो जो शेष समय है इनके पास, इनको बस खुश रखो.

यह सुनते ही यमन के हाथपैरों से मानो दम ही निकल गया, उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि यामिनी इतनी जल्दी इस तरह उन्हें दुनिया में अकेली छोड़कर चली जाएगी, वह तो हर वक्त एक खामोश साये की तरह उनके साथ रहती थी, उनकी हर छोटी-छोटी जरूरतों को कहने के पहले ही पूरा कर देती थी फिर यों अचानक उसके बिना……… अब जाकर यमन को लगा कि उन्होंने अपनी जिन्दगी में कितनी बड़ी गलती कर दी थी, यामिनी के अस्तित्व की कभी कोई कद्र नहीं की, उसे कभी महत्व ही नहीं दिया, आज यमन को अपनी की हुई गलतियों की कड़ी सजा मिल रही थी, जिस महत्वाकांक्षा के पीछे भागते-भागते उनकी जिंदगी गुजरी थी, जिसका उन्हें बेहद गुमान भी था, आज अपना सारा गुमान व शान तुच्छ लग रहा था, अब जब उन्हें पता चला कि यामिनी के जीवन का बस थोड़ा ही समय बाकी रह गया था. तब उन्हें एहसास हुआ कि वह उनके जीवन का कितना बड़ा अहम हिस्सा थी, यामिनी के बिना जीने की कल्पना मात्र से ही वे सिहर उठे, वे हमेशा यामिनी को उपेक्षित करते रहे लेकिन अब अपनी सारी सफलताएं उन्हें बेमानी लगने लगी थीं.

पापा जी, आप चिंता मत कीजिए, मैं अब नर्सिंग होम नहीं आऊंगी, घर पर ही रहकर मम्मी जी का ध्यान रखूँगी, उनकी बहू कह रही थी. यमन ने एक गहरी सांस ली और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, नहीं बेटा…………… नर्सिंग होम अब तुम्हीं लोग संभालो, तुम्हारी मम्मी को इस वक्त सबसे ज्यादा मेरी ही जरूरत है. उसने मेरे लिए बहुत कुछ त्याग किया है, उसका ऋण तो मैं किसी भी हालत में नहीं चुका पाऊँगा, लेकिन कम से कम अंतिम समय में उसका साथ तो निभाऊँ. उसके बाद यमन ने नर्सिंग होम जाना छोड़ दिया, अब घर पर ही रहकर यामिनी की देखभाल करते, उससे दुनिया जहान की बातें करते, कभी कोई किताब पढ़कर सुनाते, तो कभी साथ बैठकर टीवी देखते, वे किसी भी तरह यामिनी के जाने के पहले बीते वक्त की भरपाई करना चाहते थे, मगर वक्त उनके साथ नहीं था. धीरे-धीरे यामिनी की तबियत और भी बिगड़ने लगी थी, यमन उसके सामने तो संयम रहते, मगर अकेले में उनके दिल की पीड़ा आंसुओं की धारा बनकर बहती थी. यामिनी का कमजोर शरीर और सूनी आँखें यमन के हृदय में शूल की तरह चुभती रहती, वे स्वयं को यामिनी की इस हालत का दोषी मानने लगे थे व उनके मन में यामिनी को खो देने का डर भी रहता, वे जान चुके थे कि बुरा समय उनकी नियति में लिखा जा चुका था, लेकिन उस सबकी कल्पना करते हुए हमेशा डरे रहते. अंधेरा हो गया जी, ‘‘यामिनी की आवाज से यमन की तंद्रा टूटी, उन्होंने उठ कर लाइट जला दी, देखा कि यामिनी का चाय का कप आधा भरा हुआ रखा था और वह फिर से आँखे मूंदें टेक लगाकर बैठी थी, चाय ठंडी हो चुकी थी. यमन ने चुपचाप चाय का कप उठाया, किचन में जाकर सिंक में चाय फेंक दी, उन्होंने खिड़की से बाहर देखा, बाहर अभी भी तेज बारिश हो रही थी, हवा का ठंडा झोंका आकर उन्हें छू गया, लेकिन अब उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था, उन्होंने अपनी आँखों के कोरों को पोंछा और रामू को आवाज लगाकर खिचड़ी बनाने को कहा. खिचड़ी भी मुश्किल से दो चम्मच ही खा पाई थी यामिनी. आखिर में यमन उसकी प्लेट उठाकर किचन में रख आए. तब तक बहू-बेटा भी नर्सिंग होम से लौट आए थे.

कैसी हो मम्मा- बेटे ने प्यार से यामिनी की गोद में लेटते हुए बोला, ठीक हूँ मेरे बच्चे….. मुस्कुराते हुए यामिनी ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए धीमी आवाज में कहा. यमन ने देखा कि यामिनी के चेहरे पर असीम संतोष था. अपने पूरे परिवार के साथ होने की खुशी थी उसे, वह अपनी बीमारी से अनजान नहीं थी, परन्तु फिर भी वह प्रसन्न ही रहती थी, जिस अनमोल सान्निध्य की आस लेकर वह वर्षों से जी रही थी, वह अब उसे बिना मांगे ही मिल रही थी, अब वह तृप्त थी इसलिए आने वाली मौत के लिए कोई डर या अफसोस यामिनी के चेहरे पर दिखाई नहीं दे रहा था. बच्चे काफी देर तक माँ का हालचाल पूछते रहे, उसे अपने दिनभर के काम के बारे में बताते रहे फिर यामिनी का रुख देखकर यमन ने उनसे कहा- अब तुम लोग खाना खाकर आराम करो थक गये होगे. पापा आप भी खाना खा लीजिए बहू ने कहा, मुझे भूख नहीं है बेटा, मैं बाद में खा लूंगा.

बच्चों के जाने के बाद यामिनी फिर आंखें मूंदकर लेट गयी. यमन ने धीमी आवाज में टीवी ऑन कर दिया लेकिन थोड़ी देर में ही उनका मन ऊब गया भूख लगने पर भी खाना खाने का मन नहीं किया, उन्होंने सोचा यामिनी और अपने लिए दूध ही ले आएं. किचन में जाकर यमन ने दो गिलास दूध गरम किया, यामिनी दूध लाया हूँ……. कमरे में आकर यमन ने धीरे से आवाज लगाई लेकिन यामिनी ने कोई जवाब नहीं दिया, उन्हें लगा कि वो सा रही है उन्होंने उसके गिलास को ढंककर रख दिया और खुद पलंग के दूसरी तरफ बैठकर दूध पीने लगे. यमन ने यामिनी की तरफ देखा उसके सोते हुए चेहरे पर कितनी शांति झलक रही थी, यमन का हाथ बरबस ही उसका माथा सहलाने के लिए आगे बढ़ा, वे चौंक पड़े, दोबारा माथे, गालों को स्पर्श किया, तब उन्हें एहसास हुआ कि यामिनी का शरीर ठंडा था वह सो नहीं रही थी बल्कि हमेशा के लिए चिरनिद्रा में विलीन हो चुकी थी.

वे एकदम सुन्न हो गये, उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वे क्या करें, फिर यमन को धीरे-धीरे चेतना जागी, पहले सोचा जाकर बच्चों को खबर कर दें लेकिन कुछ सोच कर रुक गये सारी उम्र यामिनी यमन के सान्निध्य के लिए तड़पी थी लेकिन आज यमन एकदम तन्हा हो गये थे, अब वे यामिनी के सान्निध्य के लिए तरस रहे थे, आँखों से आँसू लगातार बहे जा रहे थे.

वे यामिनी की मौजूदगी को अपने दिल में महसूस करना चाह रहे थे, इस एहसास को अपने अंदर समेट लेना चाहते थे, क्योंकि बाकी की तन्हा जिन्दगी उन्हें अपने इसी दुखभरे एहसास के साथ व पश्चाताप के दर्द के साथ ही तो गुजारनी थी, यमन के पास केवल एक रात ही थी, अपने और अपनी प्रिय पत्नी के सान्निध्य के इस आखिरी पलों में वे किसी और की दखलअंदाजी नहीं चाहते थे उन्होंने लाइट बुझा दी और निर्जीव यामिनी को अपने हृदय से लगाकर फूट-फूट कर रोने लगे. बारिश अब थम चुकी थी, लेकिन यमन की आंखों की बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.

काश…………….. यमन अपने जीवन के व्यस्त क्षणों में से कुछ पल यामिनी के साथ गुजार लेते तो शायद आप यामिनी यमन को छोड़कर ना जाती.

यमन के सान्निध्य की तड़फ अपने साथ लेकर यामिनी हमेशा के लिए चली गयी और यमन को दे गई पश्चाताप का असहनीय दर्द.

डा0 अनीता सहगल

‘वसुन्धरा’

मालिनी के बाद Imlie और आर्यन ने भी छोड़ा शो, एक्टर्स ने बताई वजह

स्टार प्लस के सीरियल ‘इमली’ (Imlie) में हाल ही में खबरें थीं कि मालिनी के किरदार में एक्ट्रेस मयूरी देशमुख शो को अलविदा कहने वाली है. वहीं एक्ट्रेस ने इन खबरों पर जहां मोहर लगाते हुए एक पोस्ट शेयर किया है तो वहीं आर्यन और इमली के रोल में दिखने वाले फहमान खान  (Fahmaan Khan) और सुंबुल तौकीर खान (Sumbul Touqeer Khan) ने भी शो छोड़ने की खबर से फैंस को झटका दे दिया है.

इमली आर्यन की भी हुई छुट्टी

 

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हाल ही में मयूरी देशमुख के बाद लीड रोल में दिखने वाले इमली फेम सुंबुल तौकीर खान और आर्यन यानी फहमान खान ने भी शो छोड़ दिया है, जिस पर मोहर लगाते हुए दोनों एक्टर्स ने वीडियो शेयर किया है. दरअसल, वीडियो में अपने शो छोड़ने की वजह बताते हुए कहा, कि हमारे फैंस ने इमली शो को लेकर जो भी खबरें सुनी हैं वह सही हैं. सभी को हक है कि उन्हें सही जानकारी दी जाए. इमली शो के लिए मेकर्स और चैनल ने मिलकर ये फैसला लिया है. इमली और आर्यन की बहुत ही खूबसूरत जर्नी रही है. मैं सभी फैंस को यही कहना चाहता हूं कि आप निराश न होइए. सबको सब अच्छा ही देखने को मिलेगा और हम दोनों भी दुखी नहीं है.

 

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इमोशनल हुए एक्टर्स

आर्यन और इमली यानी फहमान खान और सुंबुल वीडियो में इमोशनल होते हुए बताया कि मेकर्स ने सभी की सहमति में शो में कुछ बदला. मैंने कभी सोचा नहीं था कि इमली शो को इतना प्यार मिलेगा. मेरे लिए ये शो हमेशा बहुत खास था और रहेगा. दूसरी तरफ, मालिनी के रोल में एक्ट्रेस मयूरी पांडे ने भी अपने एक पोस्ट में मालिनी के किरदार के लिए शुक्रिया अदा किया और अपने फैंस को जल्द मिलने का वादा किया नए शो के जरिए.

बता दें, शो में जल्द ही जनरेशन गैप देखने को मिलने वाला है, जिसके चलते शो में कई नए बदलाव देखने को मिल रहे हैं. वहीं लीड एक्टर्स के बाद शो की नई कहानी क्या होगी ये देखना भी दिलचस्प होगा.

टूटा गरूर- भाग 3: छोटी बहन ने कैसे की पल्लवी की मदद

अपनेआप के साथ रह कर, जो अकेलापन कभी अकेलापन नहीं लगा वही पारुल के साथ होने पर भी क्यों आज इतने बरसों बाद काट खाने को दौड़ रहा है? शायद इसलिए कि पारुल उस के साथ, उस के सामने होते हुए भी लगातार पीयूष से जुड़ी हुई है, उस के साथ और जुड़ाव का एहसास ही पल्लवी के अकेलेपन को लगातार बढ़ाता जा रहा था.

पल्लवी ने फिर प्रशांत को फोन लगाया. लेकिन अब की बार उस का फोन स्विच औफ मिला. झुंझला कर पल्लवी ने प्रशांत के औफिस में फोन लगाया. उस की पी.ए. को तो कम से कम पता ही होगा कि प्रशांत कहां हैं, किस होटल में ठहरे हैं. औफिस में जिस ने भी फोन उठाया झिझकते हुए बताया कि सर की पी.ए. तो सर के साथ ही मुंबई गई है.

पल्लवी सन्न रह गई. तो इसलिए प्रशांत फोन नहीं उठा रहे थे. रात में और सुबह से ही फोन का स्विच औफ होने का कारण भी यही है. मुंबई के बाद बैंगलुरु फिर हैदराबाद. एक से एक आलीशान होटल और… पल्लवी हर बार कहती कि घर में बच्चे तो हैं नहीं, मैं भी साथ चलती हूं तो प्रशांत बहाना बना देते कि मैं तो दिन भर काम में रहूंगा. रात में भी देर तक मीटिंग चलती रहेगी. तुम कहां तक मेरे पीछे दौड़ोगी? बेकार होटल के कमरे में बैठेबैठे बोर हो जाओगी.

सच ही तो है बीवी की जरूरत ही नहीं है. पी.ए. को साथ ले जाने में ही ज्यादा सुविधा है. दिन भर काम में मदद और रात में बिस्तर में सहूलत. अचानक पल्लवी की आंखों के सामने आपस में हंसीचुहल करते हुए खाना बनाते और  काम करते पीयूष और पारुल के चित्र घूम गए. पहले जिस बात को सुन कर पल्लवी तुच्छता से हंस दी थी आज उसी चित्र की कल्पना कर के उसे ईर्ष्या हो रही थी.

ईर्ष्या, क्षोभ, प्रशांत द्वारा दिया जा रहा धोखा और अपमान सब पल्लवी की आंखों से बहने लगे. क्यों बुलाया पारुल को उस ने? आराम से इस ऐश्वर्य और पैसे से खरीदे गए सुखसाधनों से, अपनेआप को संपन्न, सुखी मान कर सुख से बैठी थी कि पारुल ने आ कर उस के सुख को चूरचूर कर दिया. जीवन में पहली बार पारुल का सुख और चेहरे की चमक देख कर पल्लवी को लगा कि पैसा ही सुख का पर्याय नहीं है.

पारुल के चेहरे को घूरघूर कर पल्लवी दुख की लकीर ढूंढ़ना चाह रही थी. आज उसी चेहरे की चमक देख कर उस के अपने चेहरे पर मायूसी के बादल छा रहे हैं. अब वह पारुल के चेहरे पर नजर डालने की ही इच्छा नहीं कर पा रही है, डर रही है. उस के चेहरे की रोशनी से खुद के मन का अंधेरा और घना न हो जाए.

दोपहर के खाने के बाद दोनों बातें करने बैठीं.

‘‘तुम ने अपनी क्या हालत बना रखी है दीदी? बच्चे होस्टल में, जीजाजी इतनेइतने दिन टूअर पर… पहाड़ सा दिन अकेले कैसे काटती हो?’’ पारुल के चेहरे पर पल्लवी के लिए सचमुच की हमदर्दी थी.

शाम को दोनों फिर घूमने निकल गईं. पल्लवी पारुल को शहर के सब से महंगे बुटीक में ले गई.

‘‘अपने लिए कोई सूट पसंद कर ले,’’ पल्लवी ने कहा.

‘‘बाप रे, यहां तो सारे सूट बहुत महंगे और चमकदमक वाले हैं. मैं ऐसे सूट पहन कर कहां जाऊंगी दीदी. इतनी चमकदमक मेरे प्रोफैशन को सूट नहीं करती,’’ पारुल के स्वर में चमकदमक के लिए तिरस्कार और अपने प्रोफैशन के प्रति स्वाभाविक गर्व का आभास था.

चोट मानो पल्लवी पर ही हुई थी. तब भी पल्लवी ने बहुत कहा पर पारुल मुख्यतया पैसों पर ही अड़ी रही. कहती रही कि यह फुजूलखर्ची है.

‘‘अरी, शादी के बाद पहली बार आई है. पैसों की चिंता मत कर. मैं उपहार दे रही हूं,’’ पल्लवी बोली.

‘‘बात पैसों की नहीं है दीदी. तुम दो या मैं दूं. बात वस्तु के उपयोग की है. बेकार अलमारी में बंद पड़ा रहेगा. अब मैं तुम्हारी तरह हाईफाई बिजनैस पार्टियों में तो जाती नहीं हूं,’’ कह कर पारुल बुटीक से बाहर आ गई.

रात खाना दोनों बाहर ही खा कर आईं. घर लौटते ही पीयूष का फोन आया. सेमिनार खत्म हो चुका है. वह सुबह की फ्लाइट पकड़ कर आ रहा है. उस ने पारुल से भी कहा कि कल ही फ्लाइट से वापस आ जाओ.

‘‘पर तेरा तो परसों रात का रिजर्वेशन है न?’’ पल्लवी ने पूछा.

‘‘उसे मैं कल सुबह कैंसल करवा आऊंगी. 11 बजे की फ्लाइट है. टिकट तो मिल ही जाएगा. एअरपोर्ट पहुंच कर ही ले लूंगी. 2 बजे तक पहुंच जाऊंगी,’’ पारुल के चेहरे की चमक और खुशी दोनों जैसे कई गुना बढ़ गई थीं.

‘‘इतने सालों बाद आई है. ठीक से बात भी नहीं कर पाई और 2 ही दिन में वापस जा रही है. ऐसा भी क्या है कि पीयूष 2 दिन भी नहीं छोड़ सकता तुझे,’’ पल्लवी नाराजगी वाले स्वर में बोली.

‘‘फिर कभी आ जाऊंगी दीदी. बल्कि तुम ही क्यों नहीं आ जाया करतीं. बच्चे दोनों घर पर नहीं हैं और जीजाजी इतनेइतने दिन टूअर पर… उफ, कैसे रहती हो तुम,’’ पारुल के स्वर में सहजता थी. लेकिन पल्लवी को लगा पारुल कटाक्ष कर रही है.

सच ही तो है. ऐसी दीवानगी है एकदूसरे के लिए जैसी पल्लवी ने अपने लिए 4 दिन भी नहीं देखी. दीवानगी नहीं देखी यह बात नहीं है, लेकिन अपने लिए नहीं देखी, देखी है पैसे के लिए. पैसे से खरीदी जा सकने वाली हर चीज के लिए. एक पल्लवी में भी तो दीवानगी बस पैसे के लिए ही रही है. और किसी के लिए भी जीवन में दीवाना हुआ जा सकता है, यह तो पारुल को देख कर पता चला. जो पारुल महज पैसों की खातिर महंगा सूट नहीं खरीद रही थी वह और पीयूष से 2 दिन जल्दी मिमने की खातिर प्लेन से वापस जाने को तैयार हो गई. जो पल्लवी से मिलने व साधारण स्लीपर क्लास में आई थी. यानी पैसा है, लेकिन मनुष्य के लिए पैसा है, पैसे के लिए मनुष्य नहीं है.

जिस शानदार पलंग पर पल्लवी पैर पसार कर निश्चिंत सोती थी, आज उसी पलंग पर मानों वह अंगारों की जलन महसूस कर रही थी. वह यहां अकेली है और वहां प्रशांत के साथ… पैसे से हर सुख नहीं खरीदा जा सकता, कम से कम औरतों के बारे में तो यह बात लागू होती ही है.

उठ कर पल्लवी पता नहीं किस अनजाने आकर्षण में बंध कर पारुल के कमरे की तरफ गई. देखा पलंग के सिरहाने की तरफ रोशनी झिलमिला रही है. अपने पलंग पर औंधी पड़ कर पल्लवी सुबकने लगी. उस का गरूर टूट कर आंखों के रास्ते बहने लगा.

जानें मनी मैनेजमेंट की ये 4 टिप्स

महीने की आखिरी तारीख को जब सैलरी आपके अकाउंट में आ जाती है, आप उसका क्या करते हैं? हमारी कुछ प्राथमिकताएं पहले से तय होती हैं, जैसे- किराया, EMI, स्कूल फीस वगैरह. इसके अलावा हम कुछ पैसे उन प्लान्स के लिए बचाते हैं जिन्हें हम आने वाले दिनों में अंजाम देने वाले हैं. इसमें से कुछ पैसे हम फ्यूचर के बाकी जरूरी कामों के लिहाज से भी बचाते हैं.

1. स्पेडिंग मनी यानी खर्च किए जाने वाले पैसे

इन पैसों को हमें पहले से तय प्राथमिकताओं पर खर्च करना होता है. जैसे- किराया, घरेलू खर्च, EMI और स्कूल फीस वगैर. इसके अलावा लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस के लिए किए जाने वाले पेमेंट्स भी इसी कैटिगरी में आते हैं. इनमें से कुछ चीजों पर हर महीने खर्च करना होता है तो कुछ पर सालाना. लेकिन रोजाना की जिंदगी में खर्च चलाने के लिए इन्हीं पैसों का इस्तेमाल करते हैं.

2. शॉर्ट टर्म मनी

1 से 5 साल के अंदर होने वाले खर्च के लिए आपको नियमित रूप से पैसे अलग से निकाल कर रखना चाहिए. जैसे, कार खरीदने के लिए या घर का डाउन पेमेंट करने के लिए. इसके लिए आरडी या एफडी यूज करें. आप कुछ सुरक्षित डेट फंड्स भी चुन सकते हैं क्योंकि इन पर टैक्स बहुत कम लगता है.

3. लॉन्ग टर्म मनी

रिटायरमेंट के लिहाज से सेव किए, बच्चों की हायर एजुकेशन और शादी के लिए इकट्ठा किए जाने वाले पैसे लॉन्ग टर्म मनी की कैटिगरी में आते हैं. लॉन्ग टर्म मनी इन्वेस्ट या सेव करते वक्त आपको मंहगाई को भी ध्यान में रखना चाहिए. क्योंकि मंहगाई बढ़ने के साथ ही आपके पैसे की वैल्यू भी कम हो जाएगी.

लॉन्ग टर्म में अच्छा रिटर्न पाने का सबसे अच्छा जरिया शेयर मार्केट में पैसे इन्वेस्ट करना. इन पर मंहगाई का असर भी कम होता है. इसलिए सोच समझकर स्टॉक्स का चुनाव करें और पैसे इन्वेस्ट करें.

4. टैक्स सेविंग मनी

लॉन्ग टर्म सेविंग्स को बढ़ावा देने के लिए सरकार हमें टैक्स ब्रेक्स देती है. कुछ खास जगहों पर इन्वेस्ट करने पर आपकी इनकम से डेढ़ लाख रुपये तक काट लिए जाते हैं और इन्हें अलग से सेव किया जाता है. इसलिए इन्वेस्ट करते वक्त इन ऑप्शन्स पर गौर जरूर फरमाएं. यह भी एक तरह से लॉन्ग टर्म मनी ही है.

इन चारों को मैनेज करने का सबसे अच्छा तरीका है म्यूचुअल फंड्स में इन्वेस्ट करना. इससे आप रोजमर्रा की जरूरतों के लिए भी पैसे निकाल सकते हैं क्योंकि अब म्यूचुअल फंड के साथ डेबिट कार्ड भी अवेलेबल है.

कोरोना लव: शादी के बाद क्या दूर हो गए अमन और रचना

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दोस्त की डिप्रेशन से निकलने में कैसे मदद करुं?

सवाल

मेरी सहेली को बचपन में पिता का प्यार नहीं मिला. उस की मां ने मेहनत कर के उसे पढ़ायालिखाया. अब उस के पति को  ब्लड कैंसर है, जिस से वह मेरी सहेली से बहुत रूखा व्यवहार करता है. बचपन से अब तक उपेक्षा झेलतेझेलते वह डिप्रैशन का शिकार हो गई है. रातरात भर रोती है. नींद की 2-2 गोलियां खाने पर भी उसे नींद नहीं आती. उसे अपनी मां की परवाह है. उन्हें दुखी नहीं करना चाहती, इसीलिए खुदकुशी नहीं करना चाहती. वह क्या करे कि तनाव से बाहर आ कर खुशहाल जीवन जी सके?

जवाब

जीवन में कमियों के साथ जीने की तो आदत डालनी ही होती है. अगर पति को ब्लड कैंसर है और मां अकेली हैं, तो आप की सहेली को दोगुनी मेहनत कर के दोनों को संभालना होगा वरना सभी नुकसान में रहेंगे, वह खुद भी. नींद की गोलियां खाना इलाज नहीं, क्योंकि इस से समस्या सुलझने वाली नहीं. समस्या तो और ज्यादा काम, चाहे वह घरों की सफाई का हो, दफ्तर का हो या खुद हाथ से मेहनत का, करना ही होगा.

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विश्व में प्रसव के बाद लगभग 13% महिलाओं को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है, जो उन्हें परेशान कर देता है. प्रसव के तुरंत बाद होने वाले डिप्रैशन को पोस्टपार्टम डिप्रैशन कहा जाता है. भारत और अन्य विकासशील देशों में यह संख्या 20% तक है.  2020 में सीडीसी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार यह सामने आया है कि 8 में से 1 महिला पोस्टपार्टम डिप्रैशन की शिकार होती है. विशेष रूप से टियर 2 और टियर 3 शहरों में  पोस्टपार्टम डिप्रैशन होने के चांसेज ज्यादा होते है.

इस संबंध में बैंगलुरु के मणिपाल हौस्पिटल की कंसलटैंट, ओब्स्टेट्रिक्स व गायनेकोलौजिस्ट डाक्टर हेमनंदीनी जयरामन बताती हैं कि महिलाओं में मानसिक समस्याएं होने पर वे अंदर से टूट जाती हैं. इन्हें परिवार के लोग भी समझ नहीं पाते हैं, जिस से वे खुद को बहुत ही असहाय महसूस करती हैं.

पोस्टपार्टम का मतलब बच्चे के जन्म के तुरंत बाद का समय होता है. प्रसव के तुरंत बाद महिलाओं में शारीरिक, मानसिक व व्यवहार में जो बदलाव आते हैं, उन्हें पोस्टपार्टम कहा जाता है. पोस्टपार्टम की अवस्था में पहुंचने से पहले 3 चरण होते हैं जैसे इंट्रापार्टम यानी प्रसव से पहले का समय और एंट्रेपार्टम यानी प्रसव के दौरान का समय तथा पोस्टपार्टम बच्चे के जन्म के बाद का समय होता है.

भले ही बच्चे के जन्म के बाद एक अनोखी खुशी होती है, लेकिन इस सब के बावजूद कई महिलाओं को पोस्टपार्टम का सामना करना पड़ता है. इस समस्या का इससे कोई संबंध नहीं होता है कि प्रसव नौर्मल डिलिवरी से हुआ है या फिर औपरेशन से. पोस्टपार्टम की समस्या महिलाओं में प्रसव के दौरान शरीर में होने वाले सामाजिक, मानसिक व हारमोनल बदलावों की वजह से होती है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- क्या है पोस्टपार्टम डिप्रैशन

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

..तो निकल जायेगा बालों से कलर

आजकल के समय में हेयर कलर कराना एक फैशन बन गया हैं. जिसके लिए सभी हर बार कोई न कोई कलर करा लेते हैं. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि ये कलर खराब हो जाता हैं. जिसके कारण आपके बाल खराब हो जाते हैं. जो कि किसी को पसंद नहीं होता हैं. इसके लिए आप सैलून जाकर कलर हटवाते हैं. जिसके कारण आपकी अच्छी खासी जेब ढीली हो जाती हैं.

अगर आपके बालों का रंग खराब हो गया है और आप उसे हटाना चाहते है, तो आप इसे घर में ही हटा सकते हैं. जी हां बेकिंग सोडा के इस्तेमाल से आप इस समस्या से निजात पा सकते हैं. जो कलर अपने लगाया है वो अगर तीन दिन से ज्यादा का हो गया है तो उसको निकालना संभव नहीं है पर अगर तीन दिन से कम हो तो बेकिंग पाउडर की सहायता से इसको साफ किया जा सकता है. जानिए किस तरह अपने बालों का कलर घर में आसानी से निकाल सकते हैं.

कई लोगों की आदत होती हैं कि अपने बालों का कलर निकालने के लिए ब्लीचिंग का भी इस्तेमाल कर लेते हैं, लेकिन आप जानते है इसके इस्तेमाल से आपके बाल और खराब हो जाते हैं. इसलिए इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

जब भी आप अपने बालों का कलर निकलना चाहते है. उससे पहले अपने बालों को ठीक ढंग से किसी एंटी डैंड्रफ शैंपू से साफ कर लें. इसके बाद फिर शैंपू और बेकिंग सोडा को समान मात्रा में लेकर मिला लीजिए. और इसे अपने बालों में ठीक ढ़ंग से लगा लीजिए. थोड़ी देर बाद साफ गुनगुने पानी से बालों को धो लें.

अगर आपके बालों में डैंड्रफ है, तो बेकिंग सोडा  के इस्तेमाल से इस समस्या से भी निजात पा सकते हैं. बेकिंग सोडा के इस्तेमाल से आपके बालों के अंदर छिपी गंदगी साफ हो जाती हैं. जिसके कारण आपके बालों का डैंड्रफ गायब हो ने साथ-साथ दो मुंहे बालों से बी निजात मिल जाता हैं.

अगर आपके बाल ड्राई है, तो बेकिंग सोडा काफी फायदेमंद हो सकता हैं. इसके लिए बेकिंग सोडा को गीलाकर बालों के जड़ो में लवगाएं और धीरे से मसाज करें. इससे आपको काफी फायदा मिलेगा.

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