ये 6 बातें लड़कियां पार्टनर को कभी नहीं बताती

कई बार हमारे साथ होता है या फिर हम इस बात पर विश्वास करते है कि हमारा पार्टनर हमें हर चीज बता देता हैं. हम उस पर आंख बंद करके विश्वास करते है. लेकिन आप जानते है कि आपकी पार्टनर आपसे कई बातें छिपाती है.

जिनके बारे में वह हर संभव कोशिश करती है कि आपको पता न चले. लेकिन हम आपको कुछ ऐसी बातों के बारे में बता रहे है जो हमेशा लड़कियां अपने पार्टनर से छिपाती है. इसमें लिए सोशल मीडिया में एक सर्वे किया गया जिसमें ये सामने आई कि आखिर लड़किया क्या चीज अपने पार्टनर से छिपाती है. जानिए

1. लड़कियां कभी भी अपने पिछले अफेयर्स के बारें में नहीं बताती है. चाह कुछ भी हो. अगर बताती है तो आधी अधूरी बात. अगर आपके साथ भी ऐसा है तो आप उससे कतई उसके पिछली लाइफ के बारे में न पूछे.

2. लड़किया कभी भी अपने को कमजोर नहीं महसूस होने देती है. जैसे कि वह कभी भी नहीं बता सकती है कि उन्हे काक्रोच से तो डर लगता है लेकिन पार्लर जाकर वैक्स कराने में बिल्कुल नहीं लगता है.

3. कई बार जब आप उनकी फैमली के बारे में पूछते है तो वह बढ़ा चढ़ाकर बताती है. कभी भी वह अपनी फैमली के बारे में नकारात्मक चीजें नहीं बोलते है. वह अपने माता-पिता के प्यार, भाई के प्रति आकर्षण वह सब सच नहीं बोलती. एक सर्वे में यह बात सामने आभ कि कोई भी लड़की अपने पार्टनर से अपने परिवार के बारे में सबी चीजें सही नहीं बोलती है.

4. आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि जब आप अपनी पार्टनर से उसकी सुंदरता के बारें में पूछते है, तो वह गोल-गोल बाते बना दती है. या फिर हंस के टाल देती है. वह कभी आपके सामने जाहिर नहीं होने देगी कि आखिर वह इतनी सुंदर कैसे है. मेकअप के द्वारा या फिर नेचुरल.

5. कभी भी आपकी पार्टनर अपने गुजरे हुए पल बहुत छिपा कर रखती है. अगर आप उनसे पूछेगे कि आपसे रिश्ते में आने के बाद वह पहले की जिंदगी के बारें में क्या महसूस करती है. तो वह यह बात कभी नहीं बताना चाहती है.

6. लड़किया ऐसी होती है जो अपने पार्टनर से हर बात शेयर नहीं करना चाहती. और बात दोस्तों की हो तो फिर बिल्कुल भी नहीं. इस बारे में उन्हें लगता है कि उनके रिश्ते से उनके दोस्तों से संबंधो के बारें में कुछ लेना देना नहीं है.

Festive Special: फैमिली के लिए बनाएं राजपूताना ढोकला

गुजरात के फेमस ढोकले की रेसिपी तो आपने कई बार ट्राय की होगी. लेकिन क्या आपने कभी राजपूताना ढोकला की ये नई रेसिपी ट्राय की है. ये आसान और हेल्दी रेसिपी है, जिसे कोई भी बना सकता है.

सामग्री

400 ग्राम मकई का आटा

40 ग्राम दही 

10 ग्राम कड़े पापड़ 

 10 एमएल तिल का तेल

2 चुटकियां हींग 

आवश्यकतानुसार गरम पानी.

सामग्री मूंग दाल की

100 ग्राम साबूत मूंग दाल को 30 मिनट पानी में भिगो कर निकाल लें.

1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

20 एमएल देशी घी

1 छोटा चम्मच नीबू का रस

नमक स्वादानुसार.

विधि

पापड़, दही, मकई का आटा, हींग और गरम पानी मिला कर मुलायम गूंध लें. अब इसे 20 मिनट के लिए अलग रख दें. अब गुंधे आटे को 30 ग्राम के गोल आकार में बांटें और हर लोई में उंगली से छेद कर लें. अब लोई को स्टीमर में 30 मिनट स्टीम दें. एक बरतन में देशी घी गरम कर मूंगदाल व हलदी पाउडर डाल कर पकाएं. थोड़ा सा पानी भी डाल दें. पानी डाल कर मूंग दाल को लगातार तब तक चलाती रहें जब तक वह पक न जाए. जब दाल बन जाए तब उस में नीबू रस डालें. अब ढोकले को तिल के तेल और मैश की हुई मूंग दाल के साथ परोसें.

Alzheimer के खतरे से बचायेंगे ये 7 फूड हैबिट्स

क्या आपने भी अब एक छोटी डायरी रखने का फैसला कर लिया है? भूलने की बीमारी ने बहुतों को नोट बुक रखने पर मजबूर कर दिया है. पर सोचिए किसी दिन आप इस नोट बुक को ही कहीं रखकर भूल गए तो…?

अगर आपको अपनी जरूरी चीजों को भी याद रखने में तकलीफ होने लगी है तो सावधान हो जाइए. ये अल्जाइमर  के शुरुआती लक्षण हैं. अभी अल्जाइमर  की शुरुआत हुई है और आप चाहें तो अपनी डाइट में कुछ चीजों को शामिल करके और कुछ आदतें बदलकर इस खतरे को बढ़ने से रोक सकते हैं.

अल्जाइमर , एक खतरनाक दिमागी बीमारी है, जिसका सीधा असर दिमाग पर होता है, जिसकी वजह से ता‍र्किक क्षमता और याददाश्त पर असर पड़ता है.

ये डिमेंशिया का सबसे सामान्य रूप है. इस बीमारी का सीधा संबंध बढ़ती उम्र से है. 60-65 की उम्र के बाद ज्यादातर लोगों को अल्जाइमर  की शिकायत हो जाती है.

कुछ लोगों में ये अनुवांशिक भी होता है. कई बार सिर में गंभीर चोट लगने की वजह से या बहुत अधिक तनाव लेने वालों को भी अल्जाइमर  की शिकायत हो जाती है. सबसे अधिक चिंता की बात ये है कि अल्जाइमर  की कोई स्पेसिफिक दवा नहीं है. इससे बचाव ही इसका इलाज है.

ऐसे में बेहतर यही है कि हम सावधान रहें और खानपान में ऐसी चीजों को शामिल करें, जिससे इस बीमारी के खतरे से बचा जा सके.

डाइट में शामिल करें ये 7 चीजें और दूर करें अल्जाइमर  का खतरा:

1. हरी सब्ज‍ियां

हरी सब्ज‍ियों को डाइट में शामिल करें. ये विटामिन ए और सी का बेहतरीन स्त्रोत होती हैं. हरी सब्ज‍ियों में कई ऐसे पोषक तत्व भी पाए जाते हैं जो दिमागी सेहत के लिए जरूरी होते हैं. आप चाहें तो अपनी डाइट में पालक, ब्रोकली, बीन्स और ऐसी ही दूसरी हरी सब्ज‍ियों को शामिल कर सकते हैं.

2. ओमेगा 3 फैट

साल्मन मछली, टुना और दूसरी मछलियां हेल्दी ऑयल और ओमेगा 3 फैटी एसिड का अच्छा स्त्रोत होती हैं. अपनी डाइट में ऐसी चीजों को जरूर शामिल करें, जिनमें ओमेगा 3 मौजूद हो.

3. बहुत तली-भुनी चीजों से बचें, पैकेट वाले खाने को भी कहें ना

डीप फ्राई चीजों को खाने से बचें. इसके अलावा प्रोसेस्ड फूड भी नुकसानदेह हो सकता है. ये चीजें शरीर में फ्री-रेडिकल्स को बढ़ाती हैं, जो दिमाग के लिए खतरनाक हो सकती हैं. इन चीजों में हाइड्रोजेनेटेड ऑयल होता है, जो दिमागी सेहत के लिए खतरनाक होता है.

4. अलसी या फ्लैक्स सीड्स

फ्लैक्स सीड्स में ओमेगा 3 फैटी एसिड्स की अच्छी मात्रा होती है. बहुत से अध्ययनों में साबित हो चुका है कि फ्लैक्स सीड्स बीटा-एमिलॉयड प्लाक को बनने से रोकता है, जिससे अल्जाइमर  का खतरा कम होता है.

5. चीनी कम खाएं

बहुत अधिक मात्रा में चीनी लेना खतरनाक हो सकता है. इससे ब्लड शुगर बढ़ जाता है, जिससे दिमाग को नुकसान पहुंचता है.

6. फल खाना है जरूरी

फलों में एंटी-ऑक्सीडेंट, विटामिन, कैल्शियम, आयरन, जिंक और दूसरे कई पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं. इनके सेवन से याददाश्त दुरुस्त रहती है. साथ ही अल्जाइमर  का खतरा भी कम होता है.

7. ड्राई फ्रूट्स

अल्जाइमर  से बचे रहना है तो ड्राई फ्रूट्स जरूर खाएं. इनमें फाइबर, फैट और एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं. जो दिमागी सक्रियता को बढ़ाते हैं और अल्जाइमर  के खतरे को कम करते हैं.

समझौता: क्या हुआ राजीव और रिया के साथ

‘‘य ह क्या राजीव, तुम अभी तक कंप्यूटर में ही उलझे हुए हो?’’ रिया घर में घुसते ही तीखे स्वर में बोली थी.

‘‘कंप्यूटर में उलझा नहीं हूं, काम कर रहा हूं,’’ राजीव ने उतने ही तीखे स्वर में उत्तर दिया था.

‘‘ऐसा क्या कर रहे हो सुबह से?’’

‘‘हर बात तुम्हें बतानी आवश्यक नहीं है और कृपया मेरे काम में विघ्न मत डालो,’’ राजीव ने झिड़क दिया तो रिया चुप न रह सकी.

‘‘बताने को है भी क्या तुम्हारे पास? दिन भर बैठ कर कंप्यूटर पर गेम खेलते रहते हो. कामधंधा तो कुछ है नहीं. मुझे तो लगता है कि तुम काम करना ही नहीं चाहते. प्रयत्न करने पर तो टेढ़े कार्य भी बन जाते हैं पर काम ढूंढ़ने के लिए हाथपैर चलाने पड़ते हैं, लोगों से मिलनाजुलना पड़ता है.’’

‘‘तो अब तुम मुझे बताओगी कि काम ढूंढ़ने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?’’

‘‘ठीक कहा तुम ने. मैं होती कौन हूं तुम से कुछ कहने वाली. मैं तो केवल घर बाहर पिसने के लिए हूं. बाहर काम कर के लौटती हूं तो घर वैसे का वैसा पड़ा मिलता है.’’

‘‘ओह, मैं तो भूल ही गया था कि अब तुम ही तो घर की कमाऊ सदस्य हो. मुझे तो सुबह उठते ही तुम्हें साष्टांग प्रणाम करना चाहिए और हर समय तुम्हारी सेवा में तत्पर रहना चाहिए. मैं अपनी तरफ से भरसक प्रयत्न कर भी रहा हूं कि महारानीजी को कोई कष्ट न पहुंचे. फिर भी कोई कोरकसर रह जाए तो क्षमाप्रार्थी हूं,’’ राजीव का व्यंग्यपूर्ण स्वर सुन कर छटपटा गई थी रिया.

‘‘क्यों इस प्रकार शब्दबाणों के प्रयोग से मुझे छलनी करते हो राजीव? अब तो यह तनाव मेरी सहनशक्ति को चुनौती देने लगा है,’’ रिया रो पड़ी थी.

‘‘यह क्यों नहीं कहतीं कि बेकार बैठे निखट्टू पति को तुम सह नहीं पा रही हो. दिन पर दिन कटखनी होती जा रही हो.’’

क्रोधित स्वर में बोल राजीव घर से बाहर निकल गया था. रिया अकेली बिसूरती रह गई थी.

मातापिता को आपस में तूतू मैंमैं करते देख दोनों बच्चे किशोर और कोयल अपनी किताबें खोल कर बैठ गए थे और कनखियों से एकदूसरे को देख कर इशारों से बात कर रहे थे. शीघ्र ही इशारों का स्थान फुसफुसाहटों ने ले लिया था.

‘‘मम्मी बहुत गंदी हैं, घर में घुसते ही पापा पर बरस पड़ीं. पापा कितना भी काम करें मम्मी उन्हें चैन से रहने ही नहीं देतीं,’’ कोयल ने अपना मत व्यक्त किया था.

‘‘मम्मी नहीं पापा ही गंदे हैं, घर में काम करने से कुछ नहीं होता. बाहर जा कर काम करने से पैसा मिलता है और उसी से घर चलता है. मम्मी बाहर काम न करें तो हम सब भूखे मर जाएं.’’ किशोर ने प्रतिवाद किया तो कोयल उस पर झपट पड़ी थी और दोचार थप्पड़ जमा दिए थे. फिर तो ऐसा महाभारत मचा कि दोनों के रोनेबिलखने पर ही समाप्त हुआ था.

कोहराम सुन कर रिया दौड़ी आई थी. वह पहले से ही भरी बैठी थी. उस ने दोनों बच्चों की धुनाई कर दी और उन का कं्रदन धीरेधीरे सिसकियों में बदल गया था.

रिया बच्चों को मारपीट कर देर तक शून्य में ताकती रही थी, जबकि चारों ओर फैला अस्तव्यस्त सा उस का घर उसे मुंह चिढ़ा रहा था.

‘मेरे हंसतेखेलते घर को न जाने किस की नजर लग गई,’ उस ने सोचा और फफक उठी. कभी वह स्वयं को संसार की सब से भाग्यशाली स्त्री समझती थी.

आर्थिक मंदी के कारण 6 माह पूर्व राजीव की नौकरी क्या गई घर की सुखशांति को ग्रहण ही लग गया था. वहीं से प्रारंभ हुआ था उन की मुसीबतों का सिलसिला.

80 हजार प्रतिमाह कमाने वाले व्यक्ति के बेरोजगार हो जाने का क्या मतलब होता है. यह राजीव को कुछ ही दिनों में पता चल गया था.

जो नौकरी रिया ने शौकिया प्रारंभ की थी इस आड़े वक्त में वही जीवन संबल बन गई थी. न चाहते हुए भी उसे अनेक कठोर फैसले लेने पड़े थे.

उच्ववर्गीय पौश इलाके के 3 शयनकक्ष वाले फ्लैट को छोड़ कर वे साधारण सी कालोनी के दो कमरे वाले फ्लैट में चले आए थे. पहले खाना बनाने, कपड़े धोने तथा घर व फर्नीचर की सफाई, बरतन धोने वाली अलगअलग नौकरानियां थीं पर अब एक से ही काम चलाना पड़ रहा था. नई कालोनी में 2 कारों को खड़े करने की जगह भी नहीं थी. ऊपर से पैसे की आवश्यकता थी अत: एक कार बेचनी पड़ी थी.

सब से कठिन निर्णय था किशोर और कोयल को महंगे अंतर्राष्ट्रीय स्कूल से निकाल कर साधारण स्कूल में डालने का. रियाराजीव ने बच्चों को यही समझाया था कि पढ़ाई का स्तर ठीक न होने के कारण ही उन्हें दूसरे स्कूल में डाल रहे हैं पर जब एक दिन किशोर ने कहा कि वह मातापिता की परेशानी समझता है और अच्छी तरह जानता है कि वे उसे महंगे स्कूल में नहीं पढ़ा पाएंगे तो राजीव सन्न रह गया था. रिया के मुंह से चाह कर भी कोई बोल नहीं फूटा था.

इस तरह की परिस्थिति में संघर्ष करने वाला केवल उन का ही परिवार नहीं था, राजीव के कुछ अन्य मित्र भी वैसी ही कठिनाइयों से जूझ रहे थे. वे सभी मिलतेजुलते, एकदूसरे की कठिनाइयों को कम करने का प्रयत्न करते. इस तरह हंसतेबोलते बेरोजगारी का दंश कम करने का प्रयत्न करते थे.

अपनी ओर से रिया स्थिति को संभालने का जितना ही प्रयत्न करती उतनी ही निराशा के गर्त्त में गिरती जाती थी. पूरे परिवार को अजीब सी परेशानी ने घेर लिया था. बच्चे भी अब बच्चों जैसा व्यवहार कहां करते थे. पहले वाली नित नई मांगों का सिलसिला तो कब का समाप्त हो गया था. जब से उन्हें महंगे अंतर्राष्ट्रीय स्कूल से निकाल कर दूसरे मध्यवर्गीय स्कूल में डाला गया था, वे न मित्रों की बात करते थे और न ही स्कूल की छोटीमोटी घटनाओं का जिक्र ही करते थे.

रिया को स्वयं पर ही ग्लानि हो आई थी. बिना मतलब बच्चों को धुनने की क्या आवश्यकता थी. न जाने उन के कोमल मन पर क्या बीत रही होगी. भाईबहनों में तो ऐसे झगड़े होते ही रहते हैं. कम से कम उसे तो अपने होश नहीं खोने चाहिए थे पर नहीं, वह तो अपनी झल्लाहट बच्चों पर ही उतारना चाहती थी.

रिया किसी प्रकार उठ कर बच्चों के कमरे में पहुंची थी. किशोर और कोयल अब भी मुंह फुलाए बैठे थे.

रिया ने दोनों को मनायापुचकारा, ‘‘मम्मी को माफ नहीं करोगे तुम दोनों?’’ बच्चों का रुख देख कर रिया ने झटपट क्षमा भी मांग ली थी.

‘‘पर यह क्या?’’ डांट खा कर भी सदा चहकती रहने वाली कोयल फफक पड़ी थी.

‘‘अब हमारा क्या होगा मम्मी?’’ वह रोते हुए अस्पष्ट स्वर में बोली थी.

‘‘क्या होगा का क्या मतलब है? और ऐसी बात तुम्हारे दिमाग में आई कैसे?’’

‘‘पापा की नौकरी चली गई मम्मी. अब आप उन्हें छोड़ दोगी न?’’ कोयल ने भोले स्वर में पूछा था.

‘‘क्या? किस ने कहा यह सब? न जाने क्या ऊलजलूल बातें सोचते रहते हो तुम दोनों,’’ रिया ने किशोर और कोयल को झिड़क दिया था पर दूसरे ही क्षण दोनों बच्चों को अपनी बाहों में समेट कर चूम लिया था.

‘‘हम सब का परिवार है यह. ऐसी बातों से कोई किसी से अलग नहीं होता. हमसब का बंधन अटूट है. पापा की नौकरी चली गई तो क्या हुआ? दूसरी मिल जाएगी. तब तक मेरी नौकरी में मजे से काम चल ही रहा है.’’

‘‘कहां काम चल रहा है मम्मी? मेरे सभी मित्र यही कहते हैं कि अब हम गरीब हो गए हैं. तभी तो प्रगति इंटरनेशनल को छोड़ कर हमें मौडर्न स्कूल में दाखिला लेना पड़ा. ‘टाइगर हाइट्स’ छोड़ कर हमें जनता अपार्टमेंट के छोटे से फ्लैट में रहना पड़ रहा है.’’ किशोर उदास स्वर में बोला तो रिया सन्न रह गई थी.

‘‘ऐसा नहीं है बेटे. तुम्हारे पुराने स्कूल में ढंग से पढ़ाई नहीं होती थी इसीलिए उसे बदलना पड़ा,’’ रिया ने समझाना चाहा था. पर अपने स्वर पर उसे स्वयं ही विश्वास नहीं हो रहा था. बच्चे छोटे अवश्य हैं पर उन्हें बातों में उलझाना बच्चों का खेल नहीं था.

कुछ ही देर में बच्चे अपना गृहकार्य समाप्त कर खापी कर सो गए थे पर रिया राजीव की प्रतीक्षा में बैठे हुए ऊंघने लगी थी.

रात के 11 बज गए तो उस ने मोबाइल उठा कर राजीव से संपर्क करने का प्रयत्न किया था. घर से रूठ कर गए हैं तो मनाना तो पड़ेगा ही.

पर नंबर मिलाते ही खाने की मेज पर रखा राजीव का फोन बजने लगा था.

‘‘तो महाशय फोन यहीं छोड़ गए हैं. इतना गैरजिम्मेदार तो राजीव कभी नहीं थे. क्या बेरोजगारी मनुष्य के व्यक्तित्व को इस तरह बदल देती है? कब तक आंखें पसारे बैठी रहे वह राजीव के लिए. कल आफिस भी जाना है.’’ इसी ऊहापोह में कब उस की आंख लग गई थी, पता ही नहीं चला था.

दीवार घड़ी में 12 घंटों का स्वर सुन कर वह चौंक कर उठ बैठी थी. घबरा कर उस ने राजीव के मित्रों से संपर्क साधा था.

‘‘कौन? रमोला?’’ रिया ने राजीव के मित्र संतोष के यहां फोन किया तो फोन उस की पत्नी रमोला ने उठाया था.

‘‘हां, रिया, कहो कैसी हो?’’

‘‘सौरी, रमोला, इतनी रात गए तुम्हें तकलीफ दी पर शाम 6 बजे के गए राजीव अभी तक घर नहीं लौटे हैं. तुम्हारे यहां आए थे क्या?’’

‘‘कैसी तकलीफ रिया, आज तो लगता है सारी रात आंखों में ही कटेगी. राजीव आए थे यहां. राजीव और संतोष ने साथ चाय पी. गपशप चल रही थी कि मनोज की पत्नी का फोन आ गया कि मनोज ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है. दोनों साथ ही मनोज के यहां गए हैं. पर उन्हें तुम्हें फोन तो करना चाहिए था.’’

‘‘राजीव अपना मोबाइल घर ही भूल गए हैं. पर मनोज जैसा व्यक्ति ऐसा कदम भी उठा सकता है मैं तो सोच भी नहीं सकती थी. हुआ क्या था?’’

‘‘पता नहीं, संतोष का फोन आया था कि मनोज और उस की पत्नी में सब्जी लाने को ले कर तीखी झड़प हुई थी. उस के बाद वह तो पास के ही स्टोर में सब्जी लेने चली गई और मनोज ने यह कांड कर डाला,’’ रमोला ने बताया था.

‘‘हाय राम, इतनी सी बात पर जान दे दी.’’

‘‘बात इतनी सी कहां है रिया. ये लोग तो आकाश से सीधे जमीन पर गिरे हैं. छोटी सी बात भी इन्हें तीर की तरह लगती है.’’

‘‘पर इन्होंने एकदूसरे को सहारा देने के लिए संगठन बनाया हुआ है.’’

‘‘कैसा संगठन और कैसा सहारा? जब अपनी ही समस्या नहीं सुलझती तो दूसरों की क्या सुलझाएंगे.’’ रमोला लगभग रो ही पड़ी थी.

‘‘संतोष भैया फिर भी तकदीर वाले हैं कि शीघ्र ही दूसरी नौकरी मिल गई.’’ रिया के शब्द रमोला को तीर की तरह चुभे थे.

‘‘तुम से क्या छिपाना रिया, संतोष के चाचाजी की फैक्टरी है. पहले से एकतिहाई वेतन पर दिनरात जुटे रहते हैं.’’

‘‘ऐसा समय भी देखना पड़ेगा कभी सोचा न था,’’ रिया ने फोन रख दिया था.

रिया की चिंता की सीमा न थी. इतनी सी बात पर मनोज ने यह क्या कर डाला. अपनी पत्नी और बच्चे के बारे में भी नहीं सोचा. रिया पूरी रात सो नहीं सकी थी. उस के और राजीव के बीच भी तो आएदिन झगड़े होते रहते हैं. वह तो दिन भर आफिस में रहती है और राजीव अकेला घर में. उस से आगे तो वह सोच भी नहीं सकी और फफक कर रो पड़ी थी.

राजीव लगभग 10 बजे घर लौटे थे.

‘‘यह क्या है? कल छह बजे घर से निकल कर अब घर लौटे हो. एक फोन तक नहीं किया,’’ रिया ने देखते ही उलाहना दिया था.

‘‘क्या फर्क पड़ता है रिया. मैं रहूं या न रहूं. तुम तो अपने पावों पर खड़ी हो.’’

‘‘ऐसी बात मुंह से फिर कभी मत निकालना और किसी का तो पता नहीं पर मैं तो जीतेजी मर जाऊंगी,’’ रिया फफक उठी थी.

‘‘यह संसार ऐसे ही चलता रहता है रिया. देखो न, मनोज हमें छोड़ कर चला गया पर संसार अपनी ही गति से चल रहा है. न मनोज के जाने का दुख है और न ही उस के लिए किसी की आंखों में दो आंसू,’’ राजीव रो पड़ा था.

पहली बार रिया ने राजीव को इस तरह बेहाल देखा था. वह बच्चों के सामने ही फूटफूट कर रो रहा था.

रिया उसे अंदर लिवा ले गई थी. किशोर और कोयल आश्चर्यचकित से खड़े रह गए थे.

‘‘तुम दोनों यहीं बैठो. मैं चाय बना लाती हूं,’’ रिया हैरानपरेशान सी बच्चों को बालकनी में बिठा कर राजीव को सांत्वना देने लगी थी. वह नहीं चाहती थी कि राजीव की इस मनोस्थिति का प्रभाव बच्चों पर पड़े.

‘‘ऐसा क्या हो गया जो मनोज हद से गुजर गया. पिछले सप्ताह ही तो सपरिवार आया था हमारे यहां. इतना हंसमुख और मिलनसार व्यक्ति अंदर से इतना उदास और अकेला होगा यह भला कौन सोच सकता था,’’ रिया के स्वर में भय और अविश्वास साफ झलक रहा था.

उत्तर में राजीव एक शब्द भी नहीं बोला था. उस ने रिया पर एक गहरी दृष्टि डाली थी और चाय पीने लगा था.

‘‘मनोज की पत्नी और बच्चे का क्या होगा?’’ रिया ने पुन: प्रश्न किया था. वह अब भी स्वयं को समझा नहीं पाई थी.

‘‘उस के पिता आ गए हैं वह ही दोनों को साथ ले जाएंगे. पिता का अच्छा व्यवसाय है. मेवों के थोक व्यापारी हैं. वह तो मनोज को व्यापार संभालने के लिए बुला रहे थे पर यह जिद ठाने बैठा था कि पिता के साथ व्यापार नहीं करेगा.’’

रिया की विचार शृंखला थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. मनोज की पत्नी मंजुला अकसर अपनी पुरातनपंथी ससुराल का उपहास किया करती थी. पता नहीं उन लोगों के साथ कैसे रहेगी. उस के दिमाग में उथलपुथल मची थी. कहीं कुछ भी होता था तो उन के निजी जीवन से कुछ इस प्रकार जुड़ जाता था कि वह छटपटा कर रह जाती थी.

राजीव भी अपने मातापिता की इकलौती संतान है. वे लोग उसे बारबार अपने साथ रहने को बुला रहे हैं. उस के पिता बंगलौर के जानेमाने वकील हैं पर रिया का मन नहीं मानता. न जाने क्यों उसे लगता है कि वहां जाने से उस की स्वतंत्रता का हनन होगा. धीरेधीरे जीवन ढर्रे पर आने लगा था. केवल एक अंतर आ गया था. अब रिया ने पहले की तरह कटाक्ष करना छोड़ दिया था. वह अपनी ओर से भरसक प्रयास करती कि घर की शांति बनी रहे.

उस दिन आफिस से लौटी तो राजीव सदा की तरह कंप्यूटर के सामने बैठा था.

‘‘रिया इधर आओ,’’ उस ने बुलाया था. वह रिया को कुछ दिखाना चाहता था.

‘‘यह तो शुभ समाचार है. कब हुआ था यह साक्षात्कार? तुम ने तो कुछ बताया ही नहीं,’’ रिया कंप्यूटर स्क्रीन पर एक जानीमानी कंपनी द्वारा राजीव का नियुक्तिपत्र देख कर प्रसन्नता से उछल पड़ी थी.

‘‘इतना खुश होने जैसा कुछ नहीं है एक तो वह आधे से भी कम वेतन देंगे, दूसरे मुझे बंगलौर जा कर रहना पड़ेगा. यहां नोएडा में उन का छोटा सा आफिस है अवश्य, पर मुझे उन के मुख्यालय में रहना पड़ेगा.’’

‘‘यह तो और भी अच्छा है. वहां तो तुम्हारे मातापिता भी हैं. उन की तो सदा से यही इच्छा है कि हमसब साथ रहें.’’

‘‘मैं सोचता हूं कि पहले मैं जा कर नई नौकरी ज्वाइन कर लेता हूं. तुम कोयल और किशोर के साथ कुछ समय तक यहीं रह सकती हो.’’

‘‘नहीं, न मैं अकेले रह पाऊंगी न ही कोयल और किशोर. सच कहूं तो यहां दम घुटने लगा है मेरा. मेरे मामूली से वेतन में 6-7 महीने से काम चल रहा है. तुम्हें तो उस से दोगुना वेतन मिलेगा. हमसब साथ चलेंगे.’’

कोयल और किशोर सुनते ही प्रसन्नता से नाच उठे थे. उन्होंने दादादादी के घर में अपने कमरे भी चुन लिए थे.

राजीव के मातापिता तो फोन सुनते ही झूम उठे थे.

‘‘वर्षों बाद कोई शुभ समाचार सुनने को मिला है,’’ उस की मां भरे गले से बोली थीं और आशीर्वादों की झड़ी लगा दी थी.

‘‘पर तुम्हारी स्वतंत्रता का क्या होगा?’’ फोन रखते ही राजीव ने प्रश्न किया था.

‘‘इतनी स्वार्थी भी नहीं हूं मैं कि केवल अपने ही संबंध में सोचूं. तुम ने साथ दिया तो मैं भी सब के खिले चेहरे देख कर समझौता कर लूंगी.’’

‘‘समझौता? इतने बुरे भी नहीं है मेरे मातापिता, आधुनिक विचारों वाले पढ़ेलिखे लोग हैं और मुझ से अधिक मेरे परिवार पर जान छिड़कते हैं.’’

इतना कह कर राजीव ने ठहाका लगाया तो रिया को लगा कि इस खुशनुमा माहौल के लिए कुछ बलिदान भी करना पड़े तो वह तैयार है.

वार पर वार- भाग 3: नमिता की हिम्मत देख क्यों चौंक गया भूषण राज

नमिता की समझ में नहीं आया कि वह अपनी नौकरी कैसे बचा सकती थी? लेकिन पूछा नहीं… प्रीति खुद ही बताने लगी, ‘‘तुम नौकरी छोड़ दोगी तो दूसरी नौकरी जल्दी कहां मिलेगी? वह भी सरकारी नौकरी… प्राइवेट नौकरी भले ही मिल जाए.

‘‘पर, हर जगह एक ही से हालात हैं नमिता. इनसानरूपी मगरमच्छ हर जगह मुंह खोले जवान लड़कियों को निगलने के लिए तैयार रहते हैं. समझौता कर लो. किसी को पता भी नहीं चलेगा. सुख तुम्हारी झोली में भर जाएंगे और नौकरी भी बची रहेगी.’’

नमिता का शक सच में बदल गया. कई बार उसे लगता था कि प्रीति उसे किसी न किसी जाल में फंसाएगी… वह बौस भूषण राज की दलाल थी.

उस ने प्रीति को गौर से देखा, तो वह हलके से मुसकराई. प्रीति बोली, ‘‘तुम अपने मन में कोई शक मत पालो. उससे तुम्हारी समस्या का समाधान नहीं होगा.

तुम मुझे भले ही बुरा समझो, पर इस में तुम्हारी ही भलाई है. सोचो, खूबसूरती और जवानी का क्या इस्तेमाल…?’’

नमिता अच्छी तरह समझ गई थी कि इस दुनिया में मर्द ही नहीं, बल्कि औरतें भी एकदूसरे की दुश्मन होती हैं. औरतें कब नागिन बन कर किसी को डस लें, पता ही नहीं चलता. उस ने एक कठोर फैसला किया.

प्रीति अभी तक नमिता के दिमाग की सफाई करने में जुटी हुई थी, ‘‘औरत और मर्द के संबंध में किसी का कुछ नहीं बिगड़ता, पर सुख दोनों को मिलता है… तुम ठीक से समझ रही हो न? जा कर एक बार बौस से माफी मांग लो. वे जैसा कहें, कर दो.’’

अब नमिता को किसी और प्रवचन की जरूरत नहीं थी. वह झटके से उठी और धीरेधीरे कदमों से बौस भूषण राज के चैंबर में चली गई. आज न तो उस के मन में डर था, न वह कांप रही थी. उस की आंखें भी झुकी हुई नहीं थीं. वह भूषण राज की आंखों में आंखें डाल कर देख रही थी.

पहले तो भूषण राज चौंका, फिर कुरसी से उठ कर बोला, ‘‘आओआओ, निम्मी. कैसी हो?’’ उस के मुंह से लार टपकने लगी थी.

‘‘मैं ठीक हूं सर…’’ नमिता ने सपाट लहजे में कहा, ‘‘मैं आप से माफी मांगने आई हूं, उस सब के लिए, जो अभी

तक हुआ है और उस सब के लिए, जो अभी तक नहीं हुआ, पर कभी भी हो सकता है.’’

नमिता का अंदाज ऐसा था, जैसे वह कह रही हो, ‘भूषण साहब, मैं आप को देखने आई हूं कि कितने खूंख्वार भेडि़ए हैं आप. किसी तरह आप औरत के शरीर को खाते हैं, नोंच कर या पूरा… चलिए दिखाइए अपनी ताकत.’

भेडि़ए की खुशी का ठिकाना न रहा. शिकार अपनेआप उस के जाल में फंस गया था. वह अपनी जगह से उठा और इस तरह अंगड़ाई ली, जैसे वह अच्छी तरह जानता था कि अब शिकार उस के पंजे से बच कर कहीं नहीं जा सकता. उसे अपनी चालों पर पूरा भरोसा था. वह धीरेधीरे मुसकराते हुए आगे बढ़ रहा था.

भेड़ को डर नहीं लग रहा था. वह सीधे तन कर खड़ी थी. भेडि़या नजदीक आ गया था, वह फिर भी नहीं डरी.

भेडि़या थोड़ा सहमा… इस भेड़ को आज क्या हो गया. वह उस के भयानक मुंह के तीखे दांतों और नुकीले पंजों से भी नहीं डर रही थी.

भेडि़या भेड़ को जिंदा निगलने की जल्दबाजी में था. भेड़ अगर तन कर खड़ी रही, उस से डर कर भागी नहीं, तो फिर शिकार करने का फायदा क्या?

भेडि़ए ने अपने नुकीले पंजे भेड़ के कंधे पर रखे और दर्दनाक हालत तक उस के नरम गोश्त में चुभाया, पर भेडि़ए को भेड़ के कंधे पत्थर के लगे. उस ने अपना चेहरा भेड़ के खूबसूरत लपलपाते चेहरे की तरफ बढ़ाया तो उसे लगा जैसे वह एक आग का गोला निगल रहा हो.

नमिता ने बालों को मादक झटका दे कर और छातियों को हलका उभार देते हुए कहा, ‘‘शाम को 7 बजे घर पर आइएगा. घर पर और कोई नहीं है. बस, मैं, आप और पूरी रात.’’

भूषण राज भौचक्का रह गया, पर उस का विवेक तो मर चुका था. वह समझ नहीं सकता था कि ऐसी लड़की जो इतने दिन से उस के हर प्रस्ताव को ठुकरा रही थी, अचानक कैसे बदल गई.

भूषण राज ने दिन कैसे बिताया, यह बताना आसान नहीं, पर नमिता आधे दिन की छुट्टी ले कर यह कह कर चली गई थी कि घर को ठीक करना है.

शाम 6 बजे से ही भूषण राज को बेचैनी होने लगी थी. फिर भी उस ने

7 बजाए. औफिस में नहाया, कपड़ों की 1-2 जोड़ी वह हमेशा अपनी दराज में रखता था. पत्नी को कहा कि देर रात तक मीटिंग चलेगी, वह सो जाए.

शबाब मिल रहा था तो शराब भी होनी चाहिए. 2 बोतलें खरीदीं. शायद नमिता भी पी ले तो रात पूरी मस्त

हो जाए.

भूषण राज नमिता के बताए पते पर पहुंचा तो थोड़ा मन खट्टा हुआ. बेहद मिडिल क्लास इलाका था. छोटे मैले मकानों में एक संकरे जीने पर चढ़ कर पुराने से दरवाजे को खटखटाया.

दरवाजा नमिता ने ही खोला था. वह पूरी तरह सजीधजी थी. बढि़या मेकअप. पोशाक जो उस के बदन को ढक कम रही थी, दिखा ज्यादा रही थी. घर में खुशबू फैली थी. रोशनी केवल मोमबत्तियों की थी या 2 टेबल लैंपों की.

नमिता ने उसे बांहों में जकड़ लिया. इसी का तो इंतजार वह महीनों से कर रहा था.

‘‘आज तो बड़े स्मार्ट लग रहे हो सर,’’ कहते हुए वह उसे सोफे पर ले गई. सामने मेज पर खाने का सामान और कई गिलास थे. शायद नमिता जान गई थी, भूषण राज क्या चीज है. उस ने उस के हाथ से बोतलें लीं और कहा कि लाइए, इन्हें मैं फ्रिज में रख दूं.

‘यह कबूतरी तो खुद ही शिकारी के तीर तेज कर रही है…’ भूषण राज ने सोचा. उसे अपने पर गर्व हुआ. है ही वह ताकतवर. कौन चिडि़या है जो उस के जाल से निकल सकती है.

नमिता ने सोफे पर बैठा कर कहा, ‘‘सर, आप कपड़े तो उतारिए, मैं अभी आई.’’

भूषण राज तो सब सावधानियां छोड़ कर कपड़े उतारने लगा और सोफे पर आराम से पसर गया. फिर तसल्ली से खाना ठूंसा? नमिता शायद नहा रही थी.

‘आज तो मजा आ जाएगा… ऐसा सुख तो उसे कभी न मिला था.’

तभी दरवाजे पर खटखट हुई. भूषण राज ने सोचा, ‘कौन हो सकता है इस समय? नमिता ने तो कहा था कि वह अकेली है?’

बिना कपड़ों के किसी के घर में आ जाने पर क्या हो सकता है, वह जान सकता था. पर इस से पहले कि वह कुछ कहता, नमिता दूसरे कमरे से तकरीबन भागती हुई आई और दरवाजा खोल डाला.

बाहर पूरा स्टाफ खड़ा था. कुछ लोग कैमरे भी लिए थे.

‘हैप्पी बर्थडे नमिता’ की आवाज गूंजी और 10-15 लोग कमरे में

घुस गए.

भूषण राज फटीफटी आंखों से देख रहा था. उस ने अपने कपड़े उठाने चाहे थे कि नमिता ने झपट कर छीन लिए.

उस के बाद बहुतकुछ हुआ. बहुत सारे फोटो ले लिए गए. भूषण राज की पत्नी को बुला लिया गया. नमिता को ट्रांसफर करने का आदेश पास हो गया. छोटे से घर में हंगामा हो गया. नमिता के घर वाले भी उसी समय पहुंच गए थे.

अब नमिता शान से काम कर रही थी उसी दफ्तर में. भूषण राज ने इस्तीफा दे दिया था और वह शहर बदल कर जा चुका था.

नमिता की हिम्मत और आंखों की अनोखी चमक ने भूषण राज के सारे हौसलों को मात कर दिया. उस को अपने जाल में फंसाने के लिए भूषण राज ने न जाने कितने जतन किए थे, पर अब वह उस के फंदे में आ कर फंस गया था.

पूजा चोपड़ा इंटरव्यू: आसान नहीं था मिस इंडिया से बौलीवुड तक का सफर

पूजा चोपड़ा उन हजारों लड़कियों में से एक है, जिनके जन्म से पिता खुश नहीं थे, क्योंकि वे एक बेटे के इंतजार में थे. यही वजह थी कि पूजा की मां नीरा चोपड़ा अपने दोनों बेटियों के साथ पति का घर छोड़ दिया और जॉब करने लगीं. इस दौरान परिवार के किसी ने उनका साथ नहीं दिया, पर उनकी मां ने हिम्मत नहीं हारी और एक स्ट्रोंग महिला बन दोनों बेटियों की परवरिश की. आज बेटी और अभिनेत्री पूजा अपनी कामयाबी को मां के लिए समर्पित करना चाहती हैं और जीवन में उनकी तरह ही स्ट्रोंग महिला बनने की कोशिश कर रही हैं.

असल में पूजा चोपड़ा एक भारतीय मॉडल-फिल्म अभिनेत्री हैं. वह वर्ष 2009 की मिस फेमिना मिस इंडिया का ताज अपने नाम कर चुकी हैं. पूजा चोपड़ा का जन्म 3 मई वर्ष 1986 पश्चिम बंगाल के कोलकात्ता में हुआ था. पूजा चोपड़ा ने अपनी शुरुआती पढाई कोलकाता और पुणे से पूरी की है. कई ब्यूटी पेजेंट जीतने के बाद उन्होंने मॉडलिंग शुरू की और धीरे-धीरे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी साख जमाई. मृदु भाषी और हंसमुख पूजा ने अपने जीवन के संघर्ष और फिल्म ‘जहां चार यार’के बारें में गृहशोभा के साथ शेयर करते हुए कहा कि ये मैगजीन मेरे घर में आती है,पुणे में रहने वाली मेरी नानी और मां इसे पढ़ती है, मैंने भी कई बार पढ़ी है, इसके सभी लेख आज के ज़माने की होती है, जो महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत है.

मानसिकता कम करना है जरुरी

अभिनेत्री पूजा आगे कहती है कि इस फिल्म की कहानी आज की है, केवल लखनऊ की नहीं, बल्कि मुंबई, पुणे, दिल्ली आदि में भी रहने वाली कुछ महिलाओं की हालत ऐसी ही होती है. आज भी पत्नी ऑफिस से आने पर घर के लोग, उसके ही हाथ से बने खाने का इंतजार करते है, ये एक मानसिकता है, जो हमारे देश में कायम है, इसे मनोरंजक तरीके से इस फिल्म में बताने की कोशिश की गई है. स्क्रिप्ट बहुत अच्छी है और मैंने इसमें एक मुस्लिम लड़की की भूमिका निभाई है, जो आत्मनिर्भर होना चाहती है.देखा जाय तो रियल लाइफ में मुस्लिम लड़कियों को बहुत दबाया जाता है, ऐसे में मेरे लिए एक मुस्लिम लड़की की भूमिका निभाना बड़ी बात है, क्योंकि मैं भी स्ट्रोंग और आत्मनिर्भर हूं. इससे अगर थोड़ी सी भी मेसेज प्रताड़ित महिलाओं को जाएँ, जो खुद को बेचारी समझती है और सहती रहती है,तो मुझे ख़ुशी होगी.

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अलग चरित्र करना है जरुरी

पूजा हंसती हुई कहती है कि इससे चरित्र से मेरा कोई मेल नहीं है, ये लड़की सकीना शादी-शुदा है और अंदर से खाली है. शादी के बाद उसके मायके वालों से उसका कोई रिश्ता नहीं है. उनकी एक गूंगी सास और पति है, वह घर पर खुद को स्ट्रोंग दिखाती है, पर अंदर से कमजोर है. उस पर काफी जुल्म होता है, पर वह घर से निकल नहीं सकती. इसका सबसे अधिक और बड़ा उदहारण मेरी मां नीरा चोपड़ा है, जिसने दो बेटियों को लेकर बाहर निकल आई. एक पल के लिए उन्होंने कुछ सोचा नहीं, उन्होंने कई बड़ी-बड़ी होटलों में काम किया है. आज भी वह काम करती है. इस फिल्म में सकीना अंदर से कमजोर है, उसका कोई इस दुनिया में नहीं है, पति और सास उसपर अत्याचार के रहे है अब उसके पास 3 आप्शन है, या तो वह इसे सहती जाय, कुछ बोली तो घर से निकाल दिया जाएगा और घर से निकालने पर वह जायेगी कहा. अकेली कमजोर होते हुए खुद को मजबूत जाहिर करना बहुत चुनौतीपूर्ण था.

बदलाव को करें सेलिब्रेट

पूजा कुछ बदलाव आज देखती है और कहती है कि पारंपरिक परिवारों में आज भी महिलाओं पर अत्याचार होते रहते है, लेकिन इसके लिए किसी पर ऊँगली उठाना ठीक नहीं. दूसरों को कहने से पहले खुद को सम्हालना जरुरी है. अभी बहुत कुछ बदला है. आज महिलाओं को काफी घरों में सहयोग मिलता है. इसे सेलिब्रेट करने की जरुरत है. पूरी बदलावहोने में समय लगेगा. विश्व प्लेटफार्म पर आजकल शादी-शुदा महिला को भी ब्यूटी कांटेस्ट में भाग लेने का मौका मिलता है, ये बहुत बड़ी बदलाव है.

मिली प्रेरणा

पूजा ने कॉलेज में एक्टिंग या मॉडलिंग के बारें में दूर-दूर तक सोचा नहीं था, क्योंकि स्कूल कॉलेज में वह टॉम बॉय की तरह थी. लेकिन उसकी हाइट अधिक होने की वजह से उन्होंने कई फैशन शो और ब्यूटी कांटेस्ट में भाग लिया और जीत भी गई.पुणे में उन्होंने काफी प्रतियोगिताए जीती इससे उनके अंदर एक कॉन्फिडेंस आया. आसपास के दोस्त और रिश्तेदारों ने भीबड़ी-बड़ी होर्डिंग मर पूजा की तस्वीरें देखकर तारीफ़ करने लगे फिर उन्होंने  एक्टिंग की तरफ आने के बारे में सोचा.

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मिला सम्मान

अभिनेत्री पूजा कहती है कि मैंने मिस इंडिया के लिए काफी मेहनत की थी, क्योंकि मुझे जीतना था और मिस वर्ल्ड में देश की प्रतिनिधित्व करना था. मैं पहली भारतीय थी, जिन्होंने ब्यूटी विथ पॉर्पोज अवार्ड जीती थी. मिस इंडिया के बाद फिल्मों के ऑफर आने लगे थे और मैंने किया. मिस इंडिया जीतने से लोगों के बीच एक सम्मान और ओहदा मिला, जो एक नार्मल पूना से आई हुई लड़की को नहीं मिलता. किसी से मिलना चाहती हूं तो वो इंसान टाइम देता था. इससे जर्नी थोड़ी आसान हो गयी थी, लेकिन बाद में टैलेंट ही आपको आगे ले जाती है.

काम में पूरी शिद्दत

पूजा का कहना है कि मैं आउटसाइडर हूं, इसलिए मुझे सोच-सोचकर कदम बढ़ाना है ये मैं जानती थी. इसके अलावा मैंने अपनी मां से शिद्दत और मेहनत से काम करना सीखा है. मुझे सोशलाईज होना  पसंद नहीं, मेहनत और लगन  से ही काम करना आता है. मैं जिस किसी काम को आज तक किया, उसमे मैंने सौप्रतिशत कमिटमेंट देना सीखा है.

करती हूं सोशल वर्क

सोशल वर्क करने के बारें में अभिनेत्री पूजा बताती है कि सोशल वर्क मैं करती हूं, क्योंकि ऐसी कई लडकियां होंगी, जो मेरी तरह ऐसी माहौल से गुजरी होंगी, मेरी मां की तरह उन्होंने भी कष्ट झेले होंगे, या कही अनाथ होंगी. ऐसे में मैं उनकी कुछ मदद कर सकूँ, तो वह मेरे लिए अच्छी बात होगी. मैं अपने स्तर पर जो संभव हो करती जाती हूं.

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मिला परिवार का सहयोग

पूजा के जीवन में उसकी मां और दीदी का बहुत सपोर्ट रहा, जिसकी वजह से वह यहाँ तक पहुँच पाई है. वह कहती है कि मेरा सपना हैं कि मेरी मां का 12 घंटे काम कर थक जाना अच्छा नहीं लगता, मैं उन्हें एक ऐसी जिंदगी दे दूँ,जिसमे वह खुश होकर अपनी जिंदगी बिता सकें और कहे कि अब मैं बहुत खुश हूं,मैंने देखा है कि मेरी मां खुश होने पर ग्लो करती है. मेरी दीदी जॉब करती है. उन्होंने भी मुझे यहाँ तक आने में बहुत सहयोग दिया है, जब मैं 7 वीं कक्षा में थी तो मेरी दीदी उस समय कॉलेज जाती थी. उन्होंने सुबह 4 बजे उठकर शेयर रिक्शा में पुणे में 6 से 7 किलोमीटर कैंट एरिया में जाकर अखबार वितरित करती थी. उससे आए एक्स्ट्रा पैसे से मैंने ट्यूशन लिया, क्योंकि मैं हिंदी और मराठी में बहुत कमजोर थी. मेरी दीदी मुझसे 4 साल बढ़ी है और उन्होंने मुझे नहलाना, धुलाना, खाना खिलाना आदि करती थी, क्योंकि मां जॉब करती थी और सुबह निकलकर रात को आती थी. इस तरह से मेरी दो माएं है.

खुद के सपने को खुद करें पूरा

पूजा महिलाओं को मेसेज देना चाहती है कि खुद को पुरुषों से कभी कम न समझे, जो भी सपना उन्होंने देखा है, उसे उठकर खुद पूरा करें, खुद में आत्मविश्वास रखें. अभी महिलाएं,वार फील्ड से लेकर हर क्षेत्र में काम कर रही है. पुरुषों को चाहिए कि वे महिलाओं को आगे आने में सपोर्ट करें, लड़कियों को लड़कों से कभी कम न आंके.

समय बड़ा बलवान- भाग 3: एक क्षण में राजा को रंक बनते लोग

अब शहर में चहलपहल बढ़ रही थी. नावें एक तरफ हो चुकी थीं. उस की जगह राहत गाडि़यों ने ली जो पूरे शहर में घूम रही थीं. जहां पानी उतर चुका थो वहां कीचड़ ही कीचड़ था. पर अभी भी बेसमैंट में पानी भरा हुआ था, जिसे उस के मालिक पंप से निकालने की कोशिश कर रहे थे. इतना पानी था कि 24 घंटे पंप चलने के बाद भी पानी निकल नहीं पाया. दुकान का फर्नीचर, जो प्लाइवुड का था, पानी में रह कर किताब, मतलब, परतदार बन चुका था. सामान का तो पूछो ही मत. सबकुछ जैसे शून्य हो गया. पार्किंग में खड़ी गाडि़यां खराब हो चुकी थीं और सर्विस सैंटर के आगे लंबी लाइनें लगी थीं. सर्विस सैंटर ने भी पूरे गुजरातभर से अपने कारीगर यहां बुलाए. चारों तरफ तबाही के मंजर थे.

सूरत आए हुए 5वां दिन था. आज हमें वराछा विस्तार में भेजा गया था. यह सूरत का सब से पौश विस्तार गिना जाता था. यह रईसों का इलाका माना जाता है. यहां पूरे सूरत शहर की तरह बड़ीबड़ी इमारतों की जगह बड़ेबड़े बंगले थे. ऐसे ही एक बड़े बंगले के सामने खाली जगह, जहां पेवर ब्लौक का मैदान था, हम ने अपनी एंबुलैंस पार्क की.

मैं वहीं मैडिसिन ले कर चाइना मोजैक की बैंच पर बैठ गया. यहां मरीजों के आने की संभावना बहुत ही कम थी. कुछ ही देर बाद एक सज्जन नए मौडल की मर्सिडीज गाड़ी से उतरे. उन्होंने इस मौसम में भी सफेद  झक नए कपड़े पहने हुए थे. पायजामे के किनारे कीचड़ लगा हुआ था. उन की दोनों हाथों की दस की दस उंगलियों में महंगे हीरेरत्न, जो सोने की भारीभरकम अंगूठियों में मढे़ हुए थे, दिख रहे थे. पीछे से उन का वरदीधारी ड्राइवर बहुत सारा सामान ले कर उतरा.

पहले तो वे बंगले की ओर, जिस के ऊपर गोल्डन रंग की धातु से स्वयं लिखा हुआ था, जा रहे थे, लेकिन हमें देख कर वे रुके और हमारी ओर आए.

‘‘सरकार की ओर से मैडिकल इमरजैंसी सेवा. आप डाक्टर हैं?’’ उन्होंने मेरे गले में स्टेथोस्कोप देख कर, मेरी ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘जी हां,’’ मैं ने भी अपना हाथ उन की ओर बढ़ाते हुए अपना परिचय दिया.

‘‘कहां से आए हैं डाक्टर साहब,’’ उन्होंने कुछ औपचारिक प्रश्न पूछे.

‘‘गांधीनगर से.’’

‘‘ओह, हैरान हो गए होंगे यहां आ कर?’’

‘‘इस शहर वालों से कम,’’ मैं ने अपने 5 दिन के अनुभव पर कहा.

यह सुन कर वे हंसने लगे, ‘‘यह आप का बड़प्पन है. आइए मेरे घर, सामने है,’’ उन्होंने अपने घर की ओर इशारा करते हुए कहा.

हम हिचक रहे थे.

‘‘आइए न प्लीज, हमारे यहां एक कप चाय पीजिए. आप तो हमारे शहर के मेहमान हैं,’’ उन्होंने आग्रहपूर्वक कहा.

स्टेथोस्कोप गाड़ी में रख कर स्टाफ के साथ मैं उन के बंगले में गया.

उन का ड्राइंगरूम प्रथम मंजिल पर था जो फाइवस्टार होटल जितना विशाल व भव्य था. छत पर बेल्जियम के  झूमर लटक रहे थे. उन के ड्राइंगरूम की एक भी चीज ऐसी नहीं थी जिसे मैं अपने वेतन से खरीद सकूं.

‘‘श्यामलाल, चाय व नाश्ता बनाना,’’ उन्होंने अपने नौकर को आदेश दिया. फिर सूरत शहर के बारे में वर्तमान हालात के बारे में हम से बातें कीं.

चाय व नाश्ता शानदार था. क्रौकरी शायद बेल्जियम के सब से अच्छे स्टोर की थी, एकदम क्रिस्टल क्लीयर और उस पर यूरोपियन संस्कृति की मीनाकारी थी. नाश्ता करते समय उन्होंने अपनी कंपनी के बारे में संक्षिप्त में बताया. उन की कंपनी अपने तराशे हुए डायमंड सिर्फ अमेरिका के मशहूर रिटेल स्टोर को ही सप्लाई करती है. यह पूरी फर्म उन्होंने अपने मजबूत इरादों व मेहनत से खड़ी की थी. उन के पिता का राजस्थान में अनाज का काम था.

‘‘आप बहुत ही सुशील व सह्यदयी व्यक्ति हैं जिन्हें अपने अरबों की दौलत पर और खुद की सफलता पर जरा सा भी घमंड नहीं है,’’ मैं ने शानदार मेहमाननवाजी के लिए धन्यवाद देते हुए कहा. यह सुन कर वे जोर से हंसने लगे, ‘‘डा. साहब, यदि आप मु झे बाढ़ से पहले मिलते, तो यह आप कभी नहीं कहते.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मेरे साथ मेरा स्टाफ भी उन की ओर हैरानी से देखने लगे.

‘‘सच बात है डाक्टर साहब. इस बाढ़ से पहले मु झे अपनी सफलता व मेहनत पर और मेरी मेहनत से कमाई अथाह दौलत पर बहुत ही घमंड था. मैं कभी भी किसी से सीधेमुंह बात तक नहीं करता था. मेरे पैसे के इस अहंकार से मेरे बचपन के दोस्त तक मुझ से दूर हो गए. मैं अपनी कंपनी में काम करने वालों को गुलाम सम झता था, जो मेरे द्वारा दिए गए वेतन के कारण जी रहे हैं.’’

‘‘फिर अचानक कुछ ही दिनों में आप पर यह जादुई बदलाव कैसे आया?’’ मेरे अंदर का कहानीकार जाग उठा.

‘‘जिस दिन हम ने सरकार की घोषणा सुनी कि तापी बांध से इतना पानी छोड़ेंगे कि पूरा सूरत शहर कई दिनों तक जल पल्लवित हो जाएगा और सभी नागरिक लंबे समय के लिए खानेपीने की व्यवस्था कर के रखें, मैं ने उस समय यही सोचा कि यह घोषणा मेरे जैसे लोगों के लिए नहीं है, जिन के घर में पूरे वर्ष में भी कभी कम नहीं पड़ता. पर पत्नी ने नौकर को भेज कर काफी सामान मंगा लिया था.

‘‘पर इस बार बाढ़ सूरतवासियों की अपेक्षा से भी ज्यादा लंबी चली. मेरे यहां बाकी वस्तुओं से सब चलता रहा, पर दूध तीसरे दिन ही खत्म हो गया. हम बड़ी उम्र के लोग चाय के बिना जैसेतैसे कुछ दिन निकाल दें, पर छोटेछोटे बच्चे बिना दूध के कैसे रह सकते हैं. पाउडर का दूध तो बच्चे सूंघ कर ही मना कर देते हैं. सारा बाजार बंद था.

‘‘ऐसे ही दोपहर को मेरा बच्चा दूध के बिना रो रहा था और उस समय सरकारी व स्वयंसेवी संस्थाएं हमारे घर के सामने नाव से दूध व दूसरे सामान का वितरण करने के लिए आई थीं. मैं ने भी मजबूरी में दूध के लिए हाथ लंबा कर के कहा, ‘दूध चाहिए,’ उन्होंने उस हाथ में दो थैली दूध की रखीं जिस हाथ में चारों उंगलियों में से एक तर्जनी में लक्जमबर्ग से खरीदा शुद्ध पुखराज था, मध्यमा में नीलम, जो गोलकुंडा की खानों से निकला हुआ था, अंगुष्ठा में लंदन का माणिक जगमगा रहा था. पहली अंगूठी में अफ्रीका से खरीदा हीरा था. 10 करोड़ रुपए से भी ज्यादा सोने की अंगूठियों में नग मढ़े हुए थे जो मैं ने दुनिया के बाजार से मुंहमांगी कीमत से खरीदे थे क्योंकि वे मु झे बहुत ही पसंद आए थे.

‘‘10 करोड़ के हाथ में 40 रुपए का दूध मु झे मेरी औकात बता रहा था कि, ‘सेठ, समय ही ताकतवर होता है,’ उन्होंने गहरी सांस ले कर कहा.

‘‘हमें हमारी उपलब्धि पर खुश होना चाहिए, न कि अभिमानी. इस बाढ़ ने मेरे गर्व व अभिमान को उसी तरह से तोड़ दिया जिस तरह बड़े से बड़ा चमकदार शीशा एक फेंके हुए छोटे से पत्थर के सामने टूट जाता है,’’ हमें मुख्य दरवाजे तक छोड़ते हुए उन्होंने कहा.

समय बड़ा बलवान- भाग 2: एक क्षण में राजा को रंक बनते लोग

चाय बन रही थी. चाय पी कर हम उधना स्वास्थ्य केंद्र गए जहां से हमें किधर जाना है, इस बात के आदेश मिलने थे.

वहां हमें निर्देश मिले कि हमें फलां जगह जाना है और एंबुलैंस में ही सब की जांच कर के दवा देनी है और कोई गंभीर हो तो उसे यहां लाना है. हमें आज सूरत की सब से मशहूर जगह पार्ले पौइंट मिली. वह वीआईपी जगह थी. हमें यहां ज्यादा मरीज मिलने की आशा नहीं थी. बाहर आ कर हम ने स्थानीय व्यक्ति से जगह पूछी. वहीं पर हमें आज का ही अखबार भी मिला, यह हमारे लिए खुशी की बात थी. मैं ने 2-3 तरह के अखबार ले लिए जिस से स्थानीय जानकारी ज्यादा मिल सके और यदि काम नहीं हो तो समय भी कट जाए. अखबार पर थोड़ी नजर रास्ते में ही डाल ली. काफी भयावह दृश्य थे. कुछ हादसों की तसवीरें भी थीं और हमेशा की तरह सरकारी तंत्र पर दोषारोपण भी थे.

ेहमारा पहला पड़ाव नजदीक ही था, पर पानी भरा होने व ड्राइवर को रास्ता पता न होने के कारण थोड़ा समय लगा. यह स्थल पानी में डूबा हुआ था और पानी तेज धार के साथ बह भी रहा था. मेरे कहने पर ड्राइवर ने गाड़ी फुटपाथ पर चढ़ा दी जिस से हम मरीजों को आसानी से देख सकें, हालांकि, हमें सूरत के सब से पौश एरिया में मरीजों के आने की उम्मीद कम थी.

पहले वहां नजदीक में कोई नहीं था, पर एंबुलैंस व डाक्टर देख कर धीरेधीरे लोग आने लगे. एंबुलैंस का पीछे का दरवाजा खुला हुआ था. मैं जांच कर रहा था और मेरा स्टाफ दवाई दे रहा था. इतने दिनों की बरसात के चलते ठंड के कारण लोग बीमार पड़ गए थे. उन्हें बुखार व सर्दी थी. दूसरे, काफी मरीज ब्लडप्रैशर व मधुमेह के थे. इतने दिनों की बाढ़ के कारण उन की दवाइयां खत्म हो गई थीं. मैं उन का रक्तचाप माप कर दवाइयां दे रहा था, तो कुछ लोग एडवांस में ही बुखार व सर्दी की दवा मांग रहे थे कि कहीं बीमार पड़ गए तो काम आएगी. हम ने हंसते हुए थोड़ी दवा उन्हें भी दे दी. मैं ने गौर से देखा कि सरकारी दवा लेने वाले लगभग सभी वर्गों के थे.

यहां 2-3 घंटे मरीजों को देख कर थोड़ी दूर दूसरी जगह गए. यह कमर्शियल जगह थी, ऊंचीऊंची बिल्ंिडगें थीं जिन के नीचे शौपिंग कौम्पलैक्स थे. और इन के बेसमैंट में पानी भरा हुआ था. पानी पहली मंजिल की दूसरी दुकान में भी घुस गया था. मैं सोच रहा था कि लाखों रुपयों का फर्नीचर और न जाने कितना सामान पानी के कारण खराब हो गया और इन व्यापारियों की जीवनभर की कमाई इस में लगी हुई होगी.

यहां पर हमारी एंबुलैंस तो थी ही साथ में, सड़क पर छोटीमोटी नावें भी चल रही थीं जहां कार व दोपहिए वाहन चलते थे. यह थोड़ा रोमांचक पर अजीब लग रहा था. यह तो ऐसा हुआ कि कभी नाव सड़क पर, तो कभी कार सड़क पर.

नाव में से सामाजिक कार्यकर्ता राहत सामग्री, दूध के पाउच व फूड पैकेट बांट रहे थे. कई नावों के ऊपर उन का एक कार्यकर्ता अपने संगठन का  झंडा लगाए हुए खड़ा था. हर श्रेणी के लोग हाथ आगे कर के पैकेट ले रहे थे.

पार्ले के आगे एक भाईसाहब जौगिंग के लिए निकल रहे थे. जहां खुली जगह थी वहां जौगिंग कर रहे थे. मैं ने उन की ओर हंसते हुए हाथ हिलाया तो वे रुक गए, ‘‘आज भी जौगिंग?’’

‘‘हां, 30 वर्षों से कर रहा हूं चाहे कैसी भी परिस्थतियां हों, आदत हो गई है. आज भी मन नहीं माना, तो घर से निकल पड़ा,’’ उन्होंने भी मुसकराते हुए कहा. उन से सूरत शहर व बाढ़ के बारे में बातें हुईं. वे अपनी सूरत शहर की नगरपालिका की बातबात पर बड़ाई कर रहे थे.

तो मैं ने कहा, ‘‘आप की नगरपालिका इतनी अच्छी है तो बाढ़ ही क्यों आई? क्या पानी निकासी के मार्ग अच्छे नहीं हैं?’’

‘‘डा. साहब, यह तो पूर्णिमा व महाराष्ट्र में भंयकर भारी बरसात के मेल के कारण हुआ.’’ उन्हें मेरा व्यंग्यबाण अच्छा नहीं लगा.

मेले व तीजत्योहार तो सम झा जो पूर्णिमा के कारण होते हैं. पर बाढ़ का कारण वह भी पूर्णिमा? मु झे सोचते हुए देखते उन्होंने कहा, ‘‘हां, यह शहर तापी नदी व समुद्र के बीच बसा हुआ है. तापी नदी यहीं शहर के बीचोंबीच बह कर समुद्र में मिलती है. तापी नदी पर ही सूरत से पहले उकाई डैम बना हुआ है. अभी पूर्णिमा के समय समुद्र में ज्वारभाटा आता है जिस से नदी का पानी समुद्र में जाना तो दूर, उलटा समुद्र का पानी बाहर किनारे पर आता है. इस कारण नदी का सारा पानी उबल कर सूरत शहर में ही फैल गया. ऊपर से शहर में बरसात हो रही है. पानी को कोई रास्ता ही नहीं मिल रहा है बाहर जाने का. आज ज्वार कम हुआ है, इसलिए आशा है कि जल्दी ही पानी समुद्र में चला जाएगा और शहर में पानी का लैवल कम हो जाएगा,’’ उन्होंने विस्तार से बाढ़ का कारण बताया जो मेरे जैसे मरु रेगिस्तानी बाश्ंिदे के लिए आश्चर्य का विषय था.

उन्होंने अपने शहर के लोगों की समृद्धि के किस्से सुनाए. कैसे यहां का सब्जी वाला सब्जी के भाव पूछने पर ही भड़क जाता है और व्यंग्य से बोलता है, ‘रहने दो न साहब, यह सब्जी तो यहां के हीरे तराशने वाले ही खा सकते हैं.’ हम उन की बातें गौर व आश्चर्य से सुन रहे थे. यह व्यावसायिक एरिया होने के कारण यहां मरीज ज्यादा नहीं थे. पर हमें आज का पूरा समय यहीं गुजारना था.

दोपहर के 2 बज रहे थे. अब खाने का सवाल था. मैं ने फोन कर के दूसरी टीम से पूछा, ‘‘खाने की कोई व्यवस्था पता चली?’’ तो पता चला कि मैडिकल कालेज, जो यहां से लगभग 5 किलोमीटर दूर है, में खाने की व्यवस्था है. मैं ने स्टाफ से कहा, ‘‘ठीक है, शाम को ही खा लेंगे.’’

‘‘सर, अभी 2-3 घंटे के बाद जब भूख लगेगी तो क्या करेंगे? चाय तक नहीं मिल रही है, खाना कहां मिलेगा?’’ उस की बात सही थी, आज सुबह नाश्ता भी नहीं किया था.

हम मैडिकल कालेज पहुंचे जहां दुनियाभर की एंबुलैंस व सरकारी गाडि़यां खड़ी थीं. नंबर प्लेट से लग रहा था कि पूरे गुजरात की गाडि़यां यहां आई हुई हैं, जीजे 01 से ले कर जीजे 30 तक.

हम भी खाने की लाइन में खड़े हो गए. आज मिनरल वाटर की बोतलें भी थीं. हम ने खाने के साथ कुछ ऐक्स्ट्रा भी लीं ताकि पूरे दिन काम आएं. यहां दूसरी बातें भी पता चलीं कि डीजल के कूपन भी मिल रहे थे. हमारा ड्राइवर कूपन ले कर आया.

यहां आए हुए 3-4 दिन हो गए थे. अब पानी उतरना शुरू हो गया था. उतरता हुआ पानी नयनरम्य लग रहा था. पानी बहुत ही तेजी से उतर रहा था क्योंकि बांध से पानी छोड़ा जाना बंद हो चुका था और ज्वारभाटे का असर खत्म हो चुका था. कुछ दिनों बाद पानी अपना निशान छोड़ चुका था.

समय बड़ा बलवान- भाग 1: एक क्षण में राजा को रंक बनते लोग

आधी रात को गांधीनगर जिला आरोग्य अधिकारी का फोन आया, ‘‘डा. माहेश्वरी, तुम्हें कल सुबह जितना जल्दी हो सके स्वास्थ्य टीम के साथ सूरत के लिए निकलना है. वहां बाढ़ से हालात बद से बदतर हो रहे हैं,’’ कहते हुए उन्होंने फोन काट दिया.

प्रतिनियुक्ति की बात सुन कर दूसरे सरकारी अधिकारियों की तरह मेरा दिमाग भी खराब हो गया. अपना घर व अस्पताल छोड़ कर अनजान शहर में जा कर चिकित्सा का कार्य करना. कई सरकारी चिकित्सकों ने प्रतिनियुक्ति की बारंबारता से हैरान हो कर सरकारी नौकरी ही छोड़ दी. पर नौकरी तो नौकरी ही होती है, भले ही चिकित्सक की सम्मानित नौकरी ही क्यों न हो.

अचानक सूरत जाने की बात सुन कर पत्नी उदास हो गई. बच्ची बहुत ही छोटी थी. शुक्र था कि मां मेरे यहां ही थीं. आधी रात को ही बैग तैयार कर दिया.

‘‘खाने का सूखा नाश्ता ले लो. पता नहीं, इस हालत में सूरत में कुछ मिलेगा भी कि नहीं?’’ पत्नी ने सलाह दी. हालांकि, जौहरियों का शहर अपने खानपान के लिए मशहूर था.

‘‘इतना बड़ा शहर है, कुछ न कुछ तो खाने को मिलेगा ही.’’

मेरे मना करने के बाद भी उस ने नमकीन व मूंगफली के पैकेट मेरे बैग में डाल दिए.

हम सरकारी एंबुलैंस वाहन से पूरी टीम के साथ सूरत के लिए निकल गए. हमारे साथ दूसरी गाडि़यां भी थीं जिन में आसपास के सरकारी चिकित्सकों की टीमें थीं. गांधीनगर में भी बरसात चालू थी और बादलों से पूरा आकाश भरा पड़ा था.

जैसे ही हम बड़ौदा से आगे निकले, टै्रफिक बढ़ता ही जा रहा था. गाडि़यां धीरेधीरे चल पा रही थीं. बड़ौदा से सूरत का 3 घंटे का रास्ता 6 घंटे से भी ज्यादा हो गया था. ऊपर से सड़क पर बड़ेबड़े गड्ढे.

करीब 5 बजे हम सूरत पहुंचे. सूरत शहर के अंदर पहुंचते ही भयावह स्थिति का अंदाजा लगा. शहर के किनारे पर ही एक फुट तक पानी था जो बढ़ ही रहा था. हमें ऐसे लग रहा था कि हम जैसे आस्ट्रिया की राजधानी वियना में प्रवेश कर रहे हैं, जहां पूरा शहर पानी के अंदर बसा हुआ है, सड़कें पानी की बनी हुई हैं और दोनों ओर खूबसूरत इमारतें हैं. हमें कंट्रोल रूम जा कर रिपोर्टिंग करनी थी जो शहर के बीचोंबीच था. यह जानकारी हमारा ड्राइवर पान की दुकान से लाया था.

सूरत शहर भव्य व हजारों साल पुराना है. हजारों वर्षों से यहां से गुजराती व्यापारी जलमार्ग से पूरी दुनिया में व्यापार करते थे. यहीं पर पुर्तगालियों ने अपनी पहली कोठी स्थापित की थी जिस की अनुमति मुगल सम्राट जहांगीर ने दी थी.

यह शहर उस समय पूरी दुनिया के सामने आया जब 90 के दशक में प्लेग ने पूरे शहर को जकड़ लिया था. पूरी दुनिया भारत आने से डर गई थी, उसी शहर से जहां पूरी दुनिया ने भारत में आधित्पय जमाने की कोशिश की थी.

यह शहर सच में बहुत ही खूबसूरत व भव्य था. बड़ी इमारतें, चौड़े रास्ते व खूबसूरत चौराहे. यह शहर अभी भी टैक्सटाइल व हीरेजवाहरात के लिए पूरी दुनिया में महत्त्वपूर्ण शहर है. कच्चे हीरे यहां लाए जाते हैं और तराश कर पूरी दुनिया में भेजे जाते हैं.

अब हम 2-3 फुट पानी में रेंग रहे थे. हम कंट्रोल रूम रात के 7 बजे पहुंचे. कंट्रोल रूम में भी 2-3 फुट पानी था. औफिस प्रथम मंजिल पर था. हम ने वहां प्रतिनियुक्ति पत्र दिया और अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. उन्होंने हमारा बेमन से स्वागत किया, शायद वे भी प्रतिनियुक्ति पर आए हुए थे.

‘‘तुम्हारा कार्यक्षेत्र उधना स्वाथ्य केंद्र में है और वहीं से वे तुम्हें जहां का आदेश दें वहां जाना है. और तुम्हारा कैंप स्थल पब्लिक स्कूल में है, वहीं तुम्हें रुकना है,’’ उन्होंने एक लिखित आदेश दिया जिस में पूरा पता था.

हम पब्लिक स्कूल की ओर चले. चाय की जोरदार तलब हो रही थी, हालांकि हम ने रास्ते में 3-4 बार चाय पी थी.

लंबा व उबाऊ रास्ता होने के कारण थकान व चिड़चिड़ाहट हो रही थी. दुकानें बंद थीं और चाय के ठेले नदारद थे. 3 किलोमीटर की दूरी एक घंटे में तय करने के बाद हमारा अस्थायी आशियाना एक पब्लिक स्कूल दिखा. यह पब्लिक स्कूल भी महानगर के प्राइवेट स्कूल जैसा दिखा. कैंपस छोटा, पर ऊंचा था. ड्राइवर ने गली में ही गाड़ी पार्क की और हम ने सामान उतार कर स्कूल में प्रवेश किया.

टेबल पर एक वृद्ध सज्जन बैठे थे. वे स्कूल के ट्रस्टी थे. पास में ही खाना बन रहा था, जो शायद हमारे जैसे प्रतिनियुक्ति वालों के लिए था. हमें ऊपर दूसरी मंजिल पर रुकवाया गया था जहां फर्श पर ही बिस्तर लगे हुए थे. मैं ने दूसरी मंजिल पर जाने से पहले उन सज्जन से पूछा, ‘‘क्या चाय मिल सकती है?’’ हालांकि सब की इच्छा थी पर कोईर् भी संकोच के कारण कह नहीं रहा था.

‘‘हां, पर उस ने अभी ही गैस बंद की है क्योंकि अब शाम का खाना बन रहा है,’’ उन्होंने सीधे न कह कर चाय न बनाने का कारण बताया.

‘‘ओह,’’ मेरे पीछे से डा. गज्जर की आवाज आई.

‘‘धन्यवाद, कोई बात नहीं,’’ मैं ने कहा और सामान ले कर दूसरी मंजिल पर पहुंच गया.

हम ने ऊपर जा कर हाथमुंह धोए, नाइट सूट पहन कर थोड़ी देर बाद नीचे आ गए क्योंकि खाने का समय हो गया था. हमारे साथ आए स्वास्थ्य कार्यकर्ता डोडियार भाई ने कहा, ‘‘साहब, जल्दी चलते हैं, नहीं तो वह भी खत्म हो जाएगा.’’ उस की बात सुन कर सब हंसते हुए नीचे आ गए.

दूसरे जिले से आईर् टीमों ने खाना शुरू कर दिया था. काफी लंबी लाइन लगी हुई थी. हम भी अनुशासित रूप से प्लेट ले कर लाइन में लग गए. ऐसा लग रहा था कि हम भी बाढ़ प्रभावित हैं. हमारे साथ आए डा. वैष्णव ने कहा, ‘‘मैं यहां लंगर का खाना नहीं खाऊंगा, मैं होटल में खाने जा रहा हूं.’’

यह सुन कर डा. पटेल हंसने लगे, ‘‘तो फिर तुम्हें उपवास रखना पड़ेगा. शहर में आज सारे होटल बंद हैं क्योंकि नदी का पानी काफी बढ़ चुका है.’’

मन मार कर उन्हें भी प्लेट ले कर लाइन में लगना पड़ा. खाना अच्छा व स्वादिष्ठ भी था. पर जब एक ही चपाती डाली तो मैं ने एक और चपाती के लिए कहा, तो उस ने ऐसा जवाब दिया कि मैं ने तो क्या, लाइन में खड़े किसी ने भी मांगने की गुस्ताखी नहीं की. उस का जवाब सुन कर मूड बहुत ही खराब हो गया था.

रात के 9 बज चुके थे. सब खाना खा कर बातें करने के मूड में थे. पर थकावट इतनी थी कि 10 बजतेबजते सब सो चुके थे.

दूसरे दिन सुबह 6 बजे उठ कर हम नहाधो कर नीचे आए. हालांकि उस में समय लगा क्योंकि लोग ज्यादा थे और बाथरूम कम थे. नीचे देखा तो रात को और भी टीमें आई थीं. मेरी पुरानी जगह पाटन शहर के पहचान वाले मिले. हम दोनों को ही काफी समय बाद मिलने की खुशी हुई.

Imlie में लीप आते ही मालिनी का किरदार होगा खत्म! पढ़ें खबर

स्टार प्लस के सीरियल ‘इमली’ (Imlie) की पौपुलैरिटी दिन पर दिन कम होती जा रही है, जिसके चलते खबरें हैं कि शो में जल्द ही लंबा लीप दिखाया जाने वाला है, जिसके बाद शो की स्टारकास्ट में बड़ी फेरबदल देखने को मिलने वाली है. हालांकि अब खबरें हैं कि इन फेरबदल के बीच मालिनी यानी एक्ट्रेस मयूरी देशमुख ने एक बार फिर शो छोड़ दिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

मालिनी का किरदार होगा खत्म

 

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सीरियल इमली को नया ट्विस्ट देने के लिए खबरें हैं कि मेकर्स शो में जल्द ही जनरेशन गैप लाने वाले हैं, जिसके बाद इमली की बेटी की एंट्री होती दिखेगी. इसी बीच खबरे हैं कि इमली की जिंदगी में जहर घोलने वाली मालिनी की जल्द शो से छुट्टी होने वाली है. हालांकि अभी इसे लेकर कोई ऑफिशियल अपडेट सामने नहीं आई हैं. हालांकि एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मालिनी के किरदार को जल्द ही खत्म कर दिया जाएगा.

इमली की जिंदगी में आएंगी नए बदलाव

सीरियल ‘इमली’ की बात करें तो चीनी की मां मालिनी ने राठौड़ परिवार के सामने इमली को घर से बाहर निकाल दिया है. वहीं चीनी को डरा धमका कर चुप करा दिया है. हालांकि जल्द ही इमली उसे सबक सिखाते हुए दिखने वाली है. वहीं लीप की बात करें तो खबरें हैं कि मालिनी के जाने के बाद इमली दोबारा मां बनेगी. वहीं लीप के बाद इमली की बेटी की कहानी शुरु होगी. हालांकि इसके बाद आर्यन और इमली का रोमांस यानी एक्ट्रेस सुंबुल तौकीर खान और फहमान खान की जोड़ी फैंस को साथ नहीं दिखेगी.

बता दें, काफी समय से सीरियल इमली टीआरपी चार्टस में कमाल नहीं दिखा पा रहा है, जिसके चलते कई बार शो के बंद होने की खबरें भी सामने आई हैं. हालांकि अभी तक शो बंद नहीं हुआ है और मेकर्स ने इन खबरों को केवल अफवाह बताया है.

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