सावधानी हटी दुर्घटना घटी

कहने को तो आजकल मोबाइल पर सारी दुनिया के तथ्य है और इस से कुछ भी खरीदा जा सकता है, कुछ भी बेचा जा सकता है और बैठेबिठाए कुछ भी सेवा ली जा सकती है, पर मोबाइल बेइमानी और आप की निजी ङ्क्षजदगी का पर्दाफाश करने का सब से बड़ा जरिया बन रहा है, जो भी आप के मोबाइल पर है, जो लिख रहे हैं, जो कह रहे हैं, जो पिक्चर ले रहे हैं, जो देख रहे हैं सब की सब दुनिया के हर उस जने को मालूम हो सकती है जो आप को लूटना चाहता है.

औरतों के लिए यह ब्लैक मोल, झगड़े, तूतूमैंमैं, गोपनीय बातों के खुलने का सब से बड़ा जरिया बन गया है. आमतौर पर पता नहीं चलता क्योंकि एक आम आदमी या औरत में किसी की रूचि नहीं होती पर अगर वक्त पडऩे पर आप ने क्या कहा था खोजना था तो आसान है. आप का मोबाइल अब हर समय औन रहता है, रात को कितना सोए क्या साथी को कहा यह सब किसीकिसी तरह रिकार्ड हो सकता है.

मोबाइल को हथियार बना कर आजकल सस्ता कर्ज दे फुसलाने का धंधा चल पड़ा है. दिल्ली पुलिस ने 3000 करोड़ की लूट पकड़ी है. आप आप का कौंटैक्ट किसी दुकान, हलवाई, उबर एप, स्वीगी एप, मेडिकल एप से ले कर आप को निशाना बना कर 5000 से 5 लाख तक का कर्ज दिया जाने का प्रलोभन दे सकते हैं. शिकार के फोन वालों, क्रेडिट कार्डों की गतिविधियों से भाप कर आज कम्प्यूटर उन लोगों को छांट सकते हैं जो पैसा चाह रहे हैं, उन्हें फोन कर के लच्छेदार बातों से लोग औफर किया जाता है. एक एप में जानकारी दें, पैन कार्ड, बैंक अकाउंड नंबर दें, ओटीपी लिखें, परमीशनें दे और पैसा मिल गया. कोई कागज नहीं, कोई चक्कर नहीं पर यह फंसना है.

इस के बाद शुरू होती है उगाई. 50 हजार के लोन पर इंट्रस्ट जोडज़ोड़ पर 4-5 लाख तक मांगे जाने लगते हैं. कर्ज लेने वाले के सारे रिश्तेदारों और संपर्कों के कौटैक्ट इन का एप ले चुका होता है इसलिए पब्लिक को जलील करना शुरू कर दिया जाता है.  हार कर कर्ज लेने वाले को फैसला करना पड़ता है, सब औनलाइन, रोज बदलते मोबाइल नंबरों के जरिए जो रातदिन कभी भी खडक़ उठ सकते हैं.

कोलकाता की एक टीचर को वाइस चांसलर ने नौकरी से निकलवा दिया क्योंकि उस के इंस्टाग्राम पर स्वीमिंग सूट में कुछ तस्वीरें थीं. 21 साल की युवती का स्वीमिंग सूट पहनना कोई बड़ी बात नहीं है पर चूंकि यह गोपनीय रहना जगजाहिर हो गया तो ऐसा लगने लगा कि मानो उस टीचर ने गुनाह कर लिया.

किसी भी जाने अनजाने के साथ कहीं भी खींची गई एक सैल्फी आज आफत बन सकती है, 4 दिन बाद या 4 साल बाद.

आज गलीगली में लगे कैमरे चोरों से तो शायद नागरिकों को बचा रहे हों पर एक आम नागरिक को हर समय ऐसे रख रहे हो मानो हैडमास्टर सिर पर सवार हो. किस घर के आपसी झगड़े का क्लिप सामने वाले यार के कैमरे में कैद हो जाए और फिर जगजाहिर हो जाए कह नहीं सकते. व्हाट्सएप, टिï्वटर, इंस्टाग्राम या पौर्न साइटों तक यह निजी मामले पूरी दुनिया में फैलाए जा सकते हैं.

अपने को सुरक्षित चाहते हो तो स्मार्ट फोन, सब से सस्ता केवल बात करने वाला फोन लें. इस से कठिनाई होगी, बहुत जानकारी सुलभ नहीं होगी पर आप की जिंदगी आप की मुट्ठी में होगी, चीन, अमेरिका में बंद सर्वरों में नहीं.

मैंस्ट्रुअल हाइजीन के लिए 5 बातें

मासिकधर्म यानी पीरियड्स के दौरान हाइजीन का ध्यान रखना हर महिला के के लिए बेहद जरूरी है. वूमन हैल्थ और्गेनाइजेशन द्वारा कराए गए सर्वे में भारत में सभी तरह की प्रजनन संबंधी बीमारियों के पीछे मेन कारण पीरियड्स के दौरान साफसफाई का ध्यान न रखना पाया गया.

देश के देहातों में मासिकधर्म को ले कर कई तरह के भ्रम फैले हैं. ग्रामीण इलाकों में तो आज भी मासिकधर्म पर बात करना मना सा है, जिस से मासिकधर्म के दौरान साफसफाई की कमी रह जाती है, जो कई बीमारियों का कारण बनती है.

आज भी गिनीचुनी महिलाओं की ही पहुंच उन साधनों तक है, जिन से संपूर्ण हाइजीन तय होती है. ज्यादातर महिलाएं मासिकधर्म और हाइजीनिक हैल्थ प्रैक्टिस के वैज्ञानिक पहलुओं से अनजान हैं. मासिकधर्म के बारे में जानकारी की कमी के कारण न सिर्फ सेहत पर असर पड़ता है, बल्कि यह महिलाओं की मासिक सेहत के लिए भी खतरा हो सकता है. वे तनाव, विश्वास में कमी जैसी परेशानियों से घिर सकती हैं.

मासिकधर्म के दौरान बेसिक हाइजीन को ले कर हर लड़की, महिला को इन बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिए:

सैनिटेशन का तरीका: आज बाजार में कई तरह के साधन मुहैया हैं जैसे सैनिटरी नैपकिन, टैंपून्स और मैंस्ट्रुअल कप जिन से मासिकधर्म के दौरान साफसफाई तय होती है. कुछ महिलाएं अपने पीरियड्स के दौरान अलगअलग दिनों पर अलगअलग प्रकार के सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करती हैं या फिर अलग प्रकार के उपायों को अपनाती हैं जैसे टैंपून और सैनिटरी नैपकिन. लेकिन कुछ किसी एक प्रकार और ब्रैंड को अपनाती हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि वह आप की जरूरतों के हिसाब से सही है या नहीं.

रोज नहाएं: कुछ समाजों में यह मान्यता है कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को नहाना नहीं चाहिए. इस सोच के पीछे का कारण यह है कि पुराने जमाने में महिलाओं को खुले में या फिर किसी नदी अथवा झील के किनारे खुले में नहाना पड़ता था. नहाने से बदन की सफाई होती है. नहाने से मासिकधर्म के दौरान ऐंठन, दर्द, पीठ दर्द, मूड में सुधार होने के साथसाथ पेट फूलना जैसी परेशानी से भी राहत मिलती है. इस के लिए कुनकुने पानी से नहाएं.

साबुन इस्तेमाल न करें: मासिकधर्म के दौरान साबुन का प्रयोग न करें. योनि की साबुन से सफाई करने पर अच्छे बैक्टीरिया के नष्ट होने का खतरा रहता है, जो इन्फैक्शन का कारण बन सकता है. लिहाजा, इस दौरान योनि की सफाई के लिए कुनकुना पानी ही काफी है. हां, बाहरी भाग की सफाई के लिए साबुन का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस दौरान वैजाइनल केयर लिक्विड वाश का इस्तेमाल करना चाहिए और इस का इस्तेमाल सिर्फ मासिकधर्म के दौरान ही नहीं, बल्कि बाकी दिनों में भी करना चाहिए.

हाथ अवश्य धोएं: सैनिटरी पैड या टैंपून या फिर मैंस्ट्रुअल कप बदलने के बाद हाथ जरूर धोएं. हाइजीन की इस आदत का हमेशा पालन करें. इस के अलावा इस्तेमाल किए गए पैड या टैंपून को डस्टबिन में ही डालें, फ्लश न करें.

अलग अंडरवियर का इस्तेमाल करें: मासिकधर्म के दौरान अलग अंडरवियर्स का इस्तेमाल करें. इन्हें सिर्फ पीरियड्स के दौरान ही इस्तेमाल करें और अलग से कुनकुने पानी और साबुन से धोएं. एक ऐक्स्ट्रा पैंटी साथ जरूर रखें ताकि रिसाव होने पर उस का इस्तेमाल किया जा सके. यदि पैंटी पर दाग लग जाए तो नीबू या ब्लीचिंग पाउडर से हटा लें.

-अमोल प्रकाश (संस्थापक, डिया कौर्प)

माफी: क्या थी प्रमोद की गलती

दस साल हो गए थे शादी को मग़र साथ 6 साल ही रह पाए थे. चार साल तो तलाक की कार्यवाही में ही बीत गये गए.

शेफाली के हाथ मे दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी प्रमोद के घर से लेना था और प्रमोद के हाथ मे गहनों की लिस्ट थी जो उसने शेफाली से लेने थे.

साथ मे कोर्ट का यह आदेश भी था कि प्रमोद शेफाली को  दस लाख रुपये की राशि एकमुश्त देगा.शेफाली और प्रमोद दोनो एक ही  औटो में बैठकर प्रमोद के घर आये.  आज ठीक 4 साल बाद आखिरी बार ससुराल जा रही थी शेफाली, अब वह कभी इन रास्तों से इस घर तक नहीं आएगी. यह बात भी उसे कचोट रही थी कि जहां वह 4 साल तक रही आज उस घर से उसका नाता टूट गया है. वह  दहेज के सामान की लिस्ट लेकर आई थी, क्योंकि सामान की निशानदेही तो उसे ही करनी थी.

सभी रिश्तेदार अपनेअपने घर जा चुके थे. बस, तीन प्राणी बचे थे. प्रमोद,शेफाली और उस की मां. प्रमोद यहां अकेला ही रहता था, क्योंकि उसके पेरेंट्स गांव में ही रहते थे.

शेफाली और प्रमोद की इकलौती 5 साल की बेटी जो कोर्ट के फैसले के अनुसार बालिग होने तक शेफाली के पास ही रहेगी. प्रमोद महीने में एक बार उससे मिल सकता है.

घर में  घुसते ही पुरानी यादें ताज़ी हो गईं. कितनी मेहनत से सजाया था शेफाली ने इसे. एक एक चीज में उसकी जान बसती थी. सबकुछ उसकी आंखों के सामने बना था. एकएक ईंट से उसने धीरेधीरे बनते घरौदे को पूरा होते देखा था. यह उसका सपनो का घर था. कितनी शिद्दत से प्रमोद ने उसके सपने को पूरे किए थे.

प्रमोद थकाहारा सा सोफे पर पसर गया और शेफाली से बोला, “ले लो जो कुछ भी तुम्हें लेना है, मैं तुम्हें नही रोकूंगा.”

शेफाली बड़े गौर से प्रमोद को देखा और सोचने लगी 4 साल में कितना बदल गया है प्रमोद. उसके बालों में  अब हल्की हल्की सफेदी झांकने लगी थी. शरीर पहले से आधा रह गया है. चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई थी.

शेफाली स्टोर रूम की तरफ बढ़ी, जहां उसके दहेज का समान पड़ा था. कितना था उसका सामान. प्रेम विवाह था दोनो का. घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे.

प्रेम विवाह था तभी तो नजर लग गई किसी की. क्योंकि प्रेमी जोड़ी को हर कोई टूटता हुआ देखना चाहता है.

बस एक बार पीकर बहक गया था प्रमोद. हाथ उठा बैठा था उस पर. बस तभी वो गुस्से में मायके चली गई थी.

फिर चला था लगाने सिखाने का दौर. इधर प्रमोद के भाईभाभी और उधर शेफाली की माँ. नौबत कोर्ट तक जा पहुंची और आखिर तलाक हो गया. न शेफाली लौटी और न ही प्रमोद लेने गया.

शेफाली की मां जो उसके साथ ही गई थीं,बोली, ” कहां है तेरा सामान? इधर तो नही दिखता. बेच दिया होगा इस शराबी ने ?”

“चुप रहो मां,” शेफाली को न जाने क्यों प्रमोद को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नही लगा.

फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक एक कर लिस्ट से मिलाया गया.

बाकी कमरों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया.

शेफाली ने सिर्फ अपना सामान लिया प्रमोद के समान को छुआ तक नही.  फिर शेफाली ने प्रमोद को गहनों से भरा बैग पकड़ा दिया.

प्रमोद ने बैग वापस शेफाली को ही दे दिया, ” रखलो, मुझे नही चाहिए काम आएगें तेरे मुसीबत में .”

गहनों की किम्मत 15 लाख रुपये से कम नही थी.

“क्यों, कोर्ट में तो तुम्हरा वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था.”

“कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई, शेफाली. वहाँ तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित किया गया है.”

सुनकर शेफाली की मां ने नाकभों चढ़ा दीं.

“मुझे नही चाहिए.

वो दस लाख रुपये भी नही चाहिए.”

“क्यों?” कह कर प्रमोद सोफे से खड़ा हो गया.

“बस यूं ही” शेफाली ने मुंह फेर लिया.

“इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी? ले जाओ,,, काम आएंगे.”

इतना कह कर प्रमोद ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया. शायद आंखों में कुछ उमड़ा होगा जिसे छुपाना भी जरूरी था.

शेफाली की मां गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी.

शेफाली को मौका मिल गया. वो प्रमोद के पीछे उस कमरे में चली गई.

वो रो रहा था. अजीब सा मुंह बना कर.  जैसे भीतर के सैलाब को दबाने  की जद्दोजहद कर रहा हो. शेफाली ने उसे कभी रोते हुए नही देखा था. आज पहली बार देखा न जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला.

मग़र वह ज्यादा भावुक नही हुई.

सधे अंदाज में बोली, “इतनी फिक्र थी तो क्यों दिया तलाक प्रमोद?”

“मैंने नही तलाक तुमने दिया.”

“दस्तखत तो तुमने भी किए.”

“माफी नही मांग सकते थे?”

“मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने. जब भी फोन किया काट दिया.”

“घर भी तो आ सकते थे”?

“मेरी हिम्मत नही हुई थी आने की?”

शेफाली की मां आ गई. वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गई. “अब क्यों मुंह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया.”

मां-बेटी बाहर बरामदे में सोफे पर बैठकर गाड़ी का इंतजार करने लगी.

शेफाली के भीतर भी कुछ टूट रहा था. उसका दिल बैठा जा रहा था. वो सुन्न सी पड़ती जा रही थी. जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी. कैसे कैसे बचत कर के उसने और प्रमोद ने वो सोफा खरीदा था. पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था.”

फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई. कितनी शिद्दत से देखभाल किया करती थी. उसके साथ तुलसी भी घर छोड़ गई.

घबराहट और बढ़ी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई. माँ ने पीछे से पुकारा मग़र उसने अनसुना कर दिया. प्रमोद बेड पर उल्टे मुंह पड़ा था. एक बार तो उसे दया आई उस पर. मग़र  वह जानती थी कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नही होना है.

उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा. अस्त व्यस्त हो गया था पूरा कमरा. कहीं कंही तो मकड़ी के जाले झूल रहे थे.

कभी कितनी नफरत थी उसे मकड़ी के जालों से?

फिर उसकी नजर चारों और लगी उन फोटो पर गई जिनमे वह प्रमोद से लिपट कर मुस्करा रही थी.

कितने सुनहरे दिन थे वो.

इतने में मां फिर आ गई. हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गई.

बाहर गाड़ी आ गई थी. सामान गाड़ी में डाला जा रहा था. शेफाली सुन सी बैठी थी. प्रमोद गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आ गया.

अचानक प्रमोद कान पकड़ कर घुटनो के बल बैठ गया.

बोला,” मत जाओ…माफ कर दो.”

शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी. सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए. शेफाली ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और फाड़ दिया .

और मां कुछ कहती उससे पहले ही लिपट गई प्रमोद से. साथ मे दोनो बुरी तरह रोते जा रहे थे.

दूर खड़ी शेफाली की माँ समझ गई कि कोर्ट का आदेश दिलों के सामने कागज से ज्यादा कुछ नही.

काश, उनको पहले मिलने दिया होता?

अगर माफी मांगने से ही रिश्ते टूटने से बच  जाएं, तो माफ़ी मांग लेनी चाहिए.

क्या चेहरे पर कोई भी क्रीम लगाने से व्हाइट हैड्स हो जाते हैं?

सवाल-

मैं 25 साल की हूं. मैं जब भी चेहरे पर कोई क्रीम लगाती हूं तो चेहरे पर व्हाइटहैड्स हो जाते हैं. कृपया उन्हें दूर करने का उपाय बताएं?

जवाब-

व्हाइटहैड्स स्किन के पोरों, तेल के रिसाव के साथसाथ गंदगी के जम जाने की वजह से उत्पन्न होते हैं. व्हाइटहैड्स स्किन की भीतरी परत में बनते हैं, जिसे प्रकाश आदि नहीं मिल पाता है और उस का रंग सफेद रहता है. हमारी स्किन में प्राकृतिक रूप से तेल मौजूद होता है, जो हमारी स्किन में नमी और मौइस्चर बनाए रखता है. अगर स्किन पर अधिक तेल मौजूद रहेगा तो उस से हमारी स्किन को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. कुछ क्रीमें ऐसी होती हैं, जो स्किन को और अधिक चिपचिपा बना देती हैं, जिस कारण स्किन पर मुंहासे होने लगते हैं. अगर आप की स्किन औयली है तो आप औयल फ्री क्रीम ही लगाएं. व्हाइटहैड्स दूर करने के लिए मेथी के पत्तों में पानी मिला कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को चेहरे पर घिसें. खासतौर पर वहां जहां व्हाइटहैड्स हों. इस प्रक्रिया से व्हाइटहैड्स हट जाते हैं. पेस्ट सूखने के बाद चेहरे को कुनकुने पानी से धो लें.

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वातावरण में मौजूद प्रदूषण और चेहरे को नियमित ऐक्सफौलिएट न करने की वजह से चेहरे पर होने वाले दागधब्बे अच्छे नहीं लगते हैं. खासकर नाक और लोअर लिप के नीचे होने वाले ब्लैकहैड्स और व्हाइटहैड्स. दरअसल, सिबेसियस ग्लैंड के द्वारा जरूरत से ज्यादा तेल पैदा करने पर स्किन के पोर्स बंद हो जाते हैं या फिर मृत कोशिकाओं के एकत्रित हो हेयर फौलिकल्स को ब्लौक करने के कारण स्किन तक औक्सीजन नहीं पहुंच पाती और स्किन सांस नहीं ले पाती.

इन्हें ठीक करने के लिए बहुत से उपायों का इस्तेमाल किया जाता है, बावजूद इस के ये बारबार हो जाते हैं. मशहूर कौस्मैटोलौजिस्ट भारती तनेजा इस परेशानी से बचने के लिए नियमित रूप से अपने चेहरे को सैलिसिलिक ऐसिड युक्त क्लींजर से धोने की सलाह देती हैं.

व्हाइटहैड्स के लिए करें ये उपाय

नीम और हलदी पैक:

नीम और हलदी दोनों ही अपने औषधीय गुणों के लिए जाने जाते हैं. इन दोनों में पाए जाने वाले ऐंटीऔक्सीडैंट के कारण ये व्हाइटहैड्स को दूर करने में मदद करते हैं. इस के लिए नीम की कुछ पत्तियां ले कर उन में 1 चुटकी हलदी मिला कर पीस लें. फिर इस पेस्ट को चेहरे पर लगा लें. 10 मिनट लगा रहने के बाद पानी से धो लें. इस से आप को व्हाइटहैड्स से छुटकारा मिल जाएगा.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- ब्लैकहैड्स और व्हाइटहैड्स को ऐसे करें दूर

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

सिर्फ 75 रुपए में देख सकेंगे फिल्म, क्या बौयकट से घबरा गया बौलीवुड! जाने पूरा मामला

बौलीवुड संकट में है. हर सप्ताह प्रदर्शित हो रही फिल्में औंधे मुंह गिर रही है. कुछ लोग इसे ‘बौयकाट बौलीवुड’’ वजह बता कर अपनी गलतियों पर परदा डालते जा रहे हैं. जबकि हकीकत यह है कि कोविड के बाद जितनी भी हिंदी फिल्में बौक्स आफिस पर पिटी हैं, वह सभी फिल्में कहानी, पटकथा, निर्देशन व कलाकारों के घटिया अभिनय से ही सराबोर रही है.

सभी फिल्में मनोरंजन परोसने में विफल रही हैं. अब इस बात का अहसास फिल्मकारों को होने लगा है. तभी तो चार दिन पहले स्वरा भास्कर, मेहर विज, शिखा तलसानिया व पूजा चोपड़ा के अभिनय से सजी फिल्म ‘‘जहां चार यार’’ के निर्माता विनोद बच्चन ने ऐलान किया था कि दर्शक उनकी फिल्म ‘‘जहां चार यार’’ को सिर्फ एक दिन सोलह सितंबर को पचहत्तर रूपए में देख सकेंगे.

फिल्म ‘जहां चार यार’’ चार शादीशुदा महिलाओं की दोस्ती और रोड ट्रिप की कहानी है. यह चारों महिलाएं छोटे शहर से हैं. यूं तो चारों मध्यमवर्गीय परिवार से ही हैं, मगर इनमें से एक अमीर है. यह चारों महिलाएं अपनी गृहस्थ जिंदगी में फंसकर अपनी जिंदगी जीना भूल चुकी हैं.

फिल्म ‘‘जहां चार यार’’ के निर्माता विनोद बच्चन ने जब यह घोषणा फेसबुक पर की थी, तब लगा था कि उन्होने सिनेमाघर मालिको के संग कुछ अलग तरह का अनुबंध कर ऐसा कर रहे हैं. मगर हकीकत यह है कि फिल्मों के लगातार असफल होने से सिनेमाघर मालिक और मल्टीप्लैक्स मालिक भी जबरदस्त नुकसान उठा रहे हैं. और इन सिनेमाघरों के सामने सिनेामघर बंद करने का संकट आ गया है. उधर हर तबके से सिनेमाघरों में टिकटों के दाम घटाने की भी मांग हो रही थी.

इन सभी बातों पर गौर करते हुए ‘‘मल्टीप्लैक्स ओनर एसोसिएशन’’ ने स्वयं निर्णय लेते हुए 16 सितंबर को ‘राष्ट्रीय सिनेमा दिवस’ मनाने के नाम पर पूरे देश में हर सिनेमाघर में सिर्फ पचहत्तर रूपए की ही टिकट दर पर फिल्म दिखाने का ऐलान किया है.मगर यह दर सिर्फ एक दिन यानी कि सोलह सितंबर के लिए ही है.इसी दिन ‘जहां चार यार’ ,‘सरोज का रिश्ता’ के साथ ही प्रकाश झा के अभिनय वाली ‘‘मट्टो की साइकिल’’ भी प्रदर्शित हो रही है.

रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘‘सरोज का रिश्ता’’ के निर्देशक अभिषेक सक्सेना कहते हैं- ‘‘‘मुझे लगता है कि यह सभी फिल्म प्रेमियों के लिए एक अच्छी खबर है और हम सिनेमाघरों में ‘सरोज का रिश्ता‘ मनाने के लिए राष्ट्रीय सिनेमा दिवस से बेहतर कोई और दिन नहीं सोच सकते. हमारी फिल्म राष्ट्रीय सिनेमा दिवस यानी 16 सितंबर 2022 को रिलीज हो रही है.

मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया इस बड़े दिन को मनाने के लिए टिकट की कीमत को घटाकर पूरे भारत भर में सभी शो के लिए 75।स्पए की है.यह मल्टीप्लेक्स की ओर से सिनेमा प्रेमी दर्शकों के लिए तोहफा है. हमें अपनी फिल्म ‘सरोज का रिश्ता’ हर दर्शक को पचहत्तर रूपए में दिखाकर खुशी होगी. 16 सितंबर को हर दर्शक हमारी फिल्म सिर्फ पचहत्तर रूपए में देखकर इस सकारात्मक प्रयास का हिस्सा बनें.’’

फिल्म ‘‘ सरोज का रिश्ता’’ गाजियाबाद की एक लड़की सरोज की कहानी है, जिसे एक ऐसे साथी की तलाश है,जो न केवल उसे बचाता है बल्कि उससे प्यार करता है. यह फिल्म सरोज के जीवन साथी को खोजने और आत्म प्रेम को अपनाने की यात्रा है. इसमें सना कपूर, गौरव पांडे और रणदीप राय ने अभिनय किया है.

वहीं एम गनी निर्देशित और प्रकाश झा की शीर्ष भूमिका वाली फिल्म ‘‘मट्टो की सायकल’’ एक गरीब मजदूर की व्यथा है.यह फिल्म दो वर्ष पहले बन चुकी थी. इसका ‘बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ के अलावा अमरीका में प्रदर्शन हो चुका है. पर अब 16 सितंबर को यह फिल्म भारतीय सिनेमाघरों में पहुंचेगी.

बौलीवुड एक्ट्रेस स्वरा भास्कर खुद को कंट्रोवर्सी चाइल्ड क्यों कहती हैं, जानिए उन्हीं से

स्पष्टभाषी और साहसी अभिनेत्री स्वरा भास्कर (Swara Bhaskar) अक्सर ही अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. यूजर्स उनको ट्रोल करने का कोई मौका भी अपने हाथ से जाने नहीं देते. उन्होंने हिंदी सिनेमा जगत से लेकर देश-दुनिया से जुड़े हर मु्द्दे पर अपनी बेबाक राय रखी हैं. हाल में उन्होंने ‘बायकॉट बॉलीवुड’ ट्रेंड पर काफी सारे ट्वीट्स किए थे.स्वरा ने आम लोगों को ही इसका जिम्मेदार ठहराया है.जो उसकी सत्यता को जाने बिना ही ट्रोल करते है. कंट्रोवर्सी के बारें में स्वरा का कहना है कि मैं कंट्रोवर्सी में ही पली-बड़ी हुई हूँ. मुझे ‘कंट्रोवर्सी चाइल्ड’ कहलाना ही ठीक रहेगा. ये सही है कि पब्लिक लाइफ में कंट्रोवर्सी होती है. उसे झेलना पड़ेगा, उससे बचपाना संभव नहीं. मगर मैंने कोई फूहड़ बात नहीं कही है और बातों की नियत और आदर्श सही है, तो किसी भी गलत बात के लिए मैं अवश्य खड़ी रहूंगी और लडूंगी भी. जिसपर मेरा विश्वास होता है, मैं उसके लिए सामने खड़ी हूँ,मेरी बातें सालों बाद उन्हें सही लगेगा. मैं वैसे ही कंट्रोवर्सी को लेती हूँ और देखा जाय तो कंट्रोवर्सी केवल 3 दिन तक चलती है.

किया संघर्ष

यहाँ तक पहुँचने में स्वरा ने बहुत मेहनत करनी पड़ी. वह कहती है कि अगर कोई जानने वाला इंडस्ट्री से नहीं है, तो संघर्ष करना ही पड़ता है, पर मुझे काम जल्दी मिल गया और अभी भी कर रही हूँ. मुझमें मेहनत और धीरज की कोई कमी नहीं, दर्शकों का साथ ही मेरी प्रेरणा है.

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एक्टिंग पर किया फोकस

‘निल बट्टे सन्नाटा’ फिल्म से चर्चित होने वाली अभिनेत्री स्वराभास्कर, तेलुगु परिवार में जन्मी और उनका पालनपोषण दिल्ली में हुआ. वहां से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त कर अभिनय करने मुंबई आईं और कुछ दिनों के संघर्ष के बाद फिल्मों में काम मिलने लगा. उन की पहली फिल्म कुछ खास नहीं रही, पर ‘तनु वैड्स मनु’ में कंगना रनौत की सहेली पायल की भूमिका निभा कर उन्होंने दर्शकों का दिल जीत लिया.स्वरा भास्कर के पिता उदय भास्कर नेवी में औफिसर थे. अब वे रक्षा विशेषज्ञ हैं और मां इरा भास्कर प्रोफेसर हैं.

है चुनौती अभिनय में

इन दिनों स्वरा फिल्म ‘जहाँ चार यार’ में एक सहमी हुई गृहणी की भूमिका निभा रही है, जो उसके रियल लाइफ के चरित्र से बहुत अलग है, लेकिन उन्होंने इसे एक चुनौती की तरह लिया है और अपनी नानी की चरित्र से प्रेरित होकर इस भूमिका को निभाई है.उनकी नानी रमा सिन्हा की शादी 15 साल में हुई थी और इतनी कम उम्र में उन्होंने पूरे परिवार को सम्हाला था. इससे स्वरा बहुत प्रेरित हुई. स्वरा कहती है कि दोस्ती और रोड ट्रिप पर कई फिल्में बनी है, लेकिन शादी-शुदा महिलाओं को मुख्य किरदार में और उनकी दोस्ती को लेकर ऐसी फिल्में निर्माता, निर्देशक कम बनाते है. अधिकतर फिल्मों या टीवी में महिलाओं को प्रताड़ित और दुखी दिखाया जाता है, जिसे आज तक दर्शक देखते आ रहे है. ये सही भी है कि हमारे घर के चाची, मामी, नानी, दादी, माँ आदि के सपनों, उनकी खुशियों का ख्याल बहुत कम रखा जाता है. उनके जीवन में कुछ मजे या कुछ दिन चूल्हा- चौके से मुक्ति होकर खुद पर ध्यान दे सकती हो, क्योंकि उन्हें देखने, समझने वाला कोई नहीं होता. कही जाना हो, तो महिलाएं नहा-धोकर पसीने से तर-बतर होकर टिफिन पैक करती है, उनके परिश्रम को किसी ने आजतक महसूस नहीं किया है.  ऐसे में निर्देशक कमल पांडे इस कहानी को लेकर आये है, जो शादी-शुदा महिलाओं की कहानी है, जिसमे उनकेसपने, दोस्ती,मौज मस्ती, ट्रिप आदि को दर्शाने की कोशिश की गयी है.

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कठिन था शूट करना

एक दृश्य को शूट करते हुए स्वरा बहुत परेशान हुई . वह हंसती हुई कहती है कि मुझे पानी में भीगना एकदम पसंद नहीं. एक दृश्य में मुझे पानी में शूट करना पड़ा. मैं पूरी तरह से भींग चुकी थी. मुझे गीला होना पसंद नहीं. मुझे तैरना भी बहुत कम आता है. इसके अलावा इसकी शूटिंग कोविड 19 की दूसरी वेव के दौरान गोवा में हुई जहाँ हम सब फंस चुके थे. एक एक्ट्रेस को कोविड भी हुआ, शूट कैंसिल करना पड़ा. 8 से 10 महीने देर हुई. इसके बाद फिर से गोवा जाकर उसे शूट किया गया.

चरित्र में स्ट्रेंथ है जरुरी

अभिनेत्री स्वरा कहती है कि मैंने हमेशा एक अलग भूमिका निभाने की कोशिश की है,फिर चाहे वह नील बटे सन्नाटा’ हो या राँझना, तनु वेड्स मनु, प्रेम रतन धन पायों आदि सभी में मैंने अपनी भूमिका की स्ट्रेंथ को देखा है. इस बार भी मैंने बेचारी यानि दब्बू महिला की भूमिका निभाई है, जो मेरे लाइफ के विपरीत है. हर बात को वह अपने पति से पूछ लेती है, जो उसकी टैग लाइन भी है. उसे जिंदगी में डर है कि पति से बिना पूछे वह कुछ करना गलत होगा. मुझे एक कलाकार के रूप में इसे नया लगा और मैंने किया, क्योंकि सोशल मीडिया, ट्विटर, फेसबुक पर मेरी एक अलग इमेज है, जिसे मैं काम के द्वारा ब्रेक कर सकूँ. यही मेरा उद्देश्य रहा. मुझे हंसी आती है कि मैं एक अकेली लड़की होकर शादी-शुदा महिलाओं की भूमिका निभा रही हूँ.

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अलग किरदार निभाना जरुरी

स्वरा आगे कहती है कि कलाकार को हमेशा खुद से अलग भूमिका निभानी चाहिए. मुझे मेरी भूमिका से बस एक चीज ऐसी ढूंढ़नी होती है, जो मुझे समझ में आये या फिर किसी करीबी इंसान में वो गुण हो, जिससे मैं रिलेट कर सकूँ. फिल्म राँझना में मेरे और बिंदिया में बहुत फर्क था, पर मैंने उनमे पाया कि बिंदियाँ दिल से नहीं दिमाग से सोचती है, जो मुझसे मेल खाती थी. ‘नील बटे सन्नाटा’फिल्म में मैंने माँ के तरीके को सोचकर ढालने की कोशिश की फिल्म ‘अनारकली ऑफ़ आरा’ में अन्याय के खिलाफ लड़ाई, जो मुझसे काफी मेल खाता हुआ रहा है. इस फिल्म की चरित्र में मैंने नानी को अपने जीवन में उतारा है, क्योंकि उनकी शादी 15 साल में हो गयी थी. बनारस में रहती थी, उन्हें अंग्रेजी बोलना नहीं आता था, जबकि मेरे नाना बिहार के जमींदार थे और इंग्लैंड में अपनी पढाई पूरी की थी. वे बहुत आधुनिक तरीके से जीवन-यापन करते थे. नानी उस समय बहुत डरी हुई रहती थी कि उनसे कोई गलती न हो जाय. ये सारी कहानियां उन्होंने अपने जीवन की मुझे सुनाया करती थी. उन्होंने पूरी जिंदगी बच्चों और परिवार के लिए जिया है. कई कहानियाँ बताया करती थी. मैं उन्हें बहुत मिस करती हूँ, क्योंकि कैंसर से उनकी मृत्यु कुछ साल पहले हो चुकी है.

रखे बनाए शादी से पहले की फ्रेंडशिप को

स्वरा के साथ सभी को स्टार ने बहुत अच्छा काम किया है. दोस्तों की केमिस्ट्री को निर्देशक ने अच्छी तरह से फिल्माया है. महिलाओं की दोस्ती शादी के बाद ख़त्म होने की वजह पूछने पर स्वरा स्पष्ट रूप में कहती है कि कोई महिला दोस्ती को बनाएं रखने के बारें में नहीं सोचती, वे घर गृहस्थी में इतना घुस जाती है कि वे अपने बारें में कुछ नहीं सोचती. समय बचता ही नहीं, जबकि वह दूसरों की सेवा करने में व्यस्त है. दोस्ती महिलाओं के लिए उतना ही जरुरी है, जितना पुरुषों को है, क्योंकि सबके पास अपने जीवन की किसी समस्या को कहने के लिए किसी का होना आवश्यक है. उनके अनुभव भी आपके जैसे ही कुछ है. इसे कौन समझेगा? वही व्यक्ति समझ सकता है, जिनके जीवन में पति, बच्चे सास-ससुर आदि हो. मेरा नानी को उनकी सहेलियों के साथ 40 से 50 साल तक साथ निभाते हुए देखना मेरे लिए बड़ी बात है. मैं जब शूटिंग के दौरान मुंबई आती थी, तो नानी को मुंबई में उनके दोस्तों के साथ कुछ दिनों के लिए छोडती थी. मैंने हमेशा उनकी लाइफ में एक्साइटमेंट को देखा है.

बुद्धू- भाग 2: अनिल को क्या पता चला था

‘‘इस के बाद विशेष कुछ नहीं है, पर हां, कभीकभी एक धुंधला सा चित्र आंखों के सामने आ जाता है. ठीक वैसे ही जैसे भोर की अर्धनिद्रा में आया स्वप्न हो, जिस का कोई आकार नहीं होता, पर उस की झलक मात्र से मनमस्तिष्क में बेचैनी सी छा जाती है. यदि तुम सोचती हो कि वह चित्र निवेदिता का होगा तो यह तुम्हारी भूल है. मैं कह नहीं सकता कि तुम स्त्रियों के साथ भी ऐसा होता है क्या?’’

‘‘औरतों की हालत कैसी होती है, यह तुम ने उस समय निवेदिता से पूछा होता तो इस का पता लग गया होगा.’’

‘‘मैं एक बार फिर तुम्हें  बता देता हूं कि हमारी आमनेसामने बातचीत शायद ही कभी हुई हो, यद्यपि जिस दिन भी वहां जाता था, हमारी मुलाकात अवश्य होती थी. भाभीजी, उस की मां और हम सभी शाम के समय अधिकतर लौन में कुरसियां डाल कर बैठ जाते थे. वह अपनी कुरसी कुछ दूर ही रखती थी. पता नहीं क्यों? हां, इतना अवश्य था कि भाभीजी जब भी उस से कहती थीं, वह गाना अवश्य सुना दिया करती थी. कभीकभी वह गीत में इतना खो जाती थी कि एक के बाद एक सुनाती जाती थी. उस का गाना रुक जाने के बाद बहुत देर तक हम लोग बातें करना भूल जाते थे.’’

‘‘वह कैसा गाती थी?’’

‘‘श्रद्धा, यह तो मैं नहीं जानता, वैसे उस के गाने की तारीफ सभी करते थे. लेकिन जब वह गाती थी तब मुझे ऐसा लगता था कि उस के गाने में जो दर्द, जो टीस है, वही मेरे दिल में है. पर मेरे पास उसे प्रकट करने के लिए कोई शब्द नहीं थे, भाषा नहीं थी. उस के कुछ गाने मैं ने चोरी से रिकौर्ड कर लिए थे.’’

‘‘गाने तो वह तुम्हारे लिए ही गाती थी, यही कहना चाहते हो न?’’

‘‘ऐसी बेतुकी बातें मैं ने कभी नहीं सोचीं. कोई लड़की अगर आंख उठा कर

देख ले और मैं सोचने लगूं कि वह मुझे किसी विशेष कारण से देख रही है तो यह मेरी बेवकूफी के सिवा और क्या होगा? और रही रिकौर्डिंग की बात तो उस के बाद तो न जाने कितनी बार मोबाइल बदले जा चुके हैं. अब कहां मिलेगी वह आवाज.’’

‘‘तुम्हारी यह बात मेरी बुद्धि में नहीं घुसी. खैर, आगे बताओ.’’

‘‘ठीक ही कहा तुम ने. उस की मां को उस की शादी की बड़ी जल्दी थी. पर मैं भाभीजी को अकसर यह कहते सुना करता था कि अरे, ऐसी भी क्या जल्दी है. लड़की अभी बीए तो कर ले. उसे पढ़ने भी दो, समय आने पर शादी हो जाएगी.

‘‘लेकिन उस की मां कहती थी कि शादीब्याह की कोशिश तो पहले से करनी पड़ती है. लड़की की शादी है, कोई हंसीमजाक तो नहीं.

‘‘एक दिन निवेदिता की मां ने मुझे से भी कहा कि अनिल, तुम इतनी अच्छी नौकरी पर हो. क्या निवेदिता के लिए अपने ही जैसे किसी लड़के को नहीं ढूंढ़ सकते?

‘‘तभी भाभीजी मेरा मजक उड़ाती हुई बोलीं कि तुम ने भी बड़े भले आदमी से जिक्र छेड़ा है. अपने छोटों से बात करने में तो यह पसीने में भीग जाता है, यह बिटिया के लिए क्या लड़का ढूंढ़ेगा. हां, इस की निगाह में एक लड़का जरूर है.

‘‘और वह यह कह कर मेरी ओर स्नेहभरी दृष्टि डाल कर मुसकरा पड़ीं.

‘‘उस की मां ने उत्सुकतापूर्वक तुरंत पूछा कि कौन है वह लड़का? कहां रहता है? क्या काम करता है?

‘‘पर भाभीजी मेरी ओर देख कर मुसकरा ही रही थीं. मुझ से वहां एक पल भी न ठहरा गया. मैं तुरंत उठ कर गली में आ गया. मेरा मन यह सोच कर बड़ा खराब हो गया कि भाभीजी ने मेरे विषय में क्या सोच रखा है.

‘‘मैं लज्जा से गड़ा जा रहा था. सोचता, आखिर भाभीजी को किस तरह प्रमाण दूं कि मैं निवेदिता के आकर्षण से उन के घर नहीं आता. किस तरह से उन्हें बताऊं कि मैं इतना गिरा हुआ इनसान नहीं कि भाभीजी के निस्स्वार्थ प्रेम का ऐसा दुरुपयोग करूंगा. निवेदिता के आने से पहले भी मैं अकसर आता था और अब भी कभीकभी चला आता हूं. क्या निवेदिता के आने के बाद मेरे व्यवहार में कोई तबदीली हुई? क्या मैं ने भाभीजी को ऐसा सोचने का मौका दिया? मैं रास्ते भर अपने मन को टटोलता रहा. मैं ने कोई गलती की है? कहीं मेरी किसी हरकत ने अनजाने से ही कुछ ऐसा तो प्रकट नहीं किया जिस से भाभीजी के नारीमन के बारीक परदे पर कुछ झलक गया हो. ऐसा कब हुआ. कैसे हुआ. कुछ भी, किसी भी तरह समझ में नहीं आया.

‘‘घर आ कर मैं आंखें मूंद कर चारपाई पर लेट गया. पर चैन न मिला. मन का

क्लेश बढ़ता ही गया. आखिर मैं ने स्वयं ही फैसला किया, भाभीजी का संदेह दूर करना ही होगा, इस के लिए चाहे कुछ भी करना पड़े.

‘‘उस के बाद से भाभीजी के घर जाने के लिए अपनेआप को तैयार करने में बड़ा असमर्थ पाने लगा, पर भाभीजी के निस्स्वार्थ प्यार के बारे में सोचसोच कर मेरा दिल भरभर जाता. मगर यह भी डर था कि अचानक जाना बंद करने से कहीं सब को शक न हो जाए. इसलिए बजाय एकदम जाना बंद करने के यह सोचा करता कि क्या किया जाए. तब सहसा मेरे दिमाग में यह बात आईर् कि क्यों न निवेदिता के लिए कोई अच्छा सा वर ढूंढ़ दूं. इस से अच्छा और कोई नेक काम नहीं हो सकता. सच, मैं इतने समय तक बेकार ही परेशान रहा.

‘‘इसी बीच अचानक एक दिनकनाटप्लेस में रोमित मिल गया. उस ने एमएससी मेरे साथ ही की थी. पर पढ़ने में तेज होने के कारण आई.

एएस प्रतियोगिता में चुन लिए जाने से राजपत्रित अधिकारी हो गया था. बातोंबातों में जब पता चला कि रोमित अभी कुंआरा है तो खुशी से मेरा दिल उछल पड़ा.

‘‘मैं ने जिक्र छेड़ने में देर करना उचित नहीं समझ. शुरू में तो बात मजाक में उड़ गई, पर थोड़ी देर बाद रोमित इस मामले में गंभीर दिखाई दिया. दिल्ली से बाहर का जीवन, फिर अकेले में उस का दिल भी नहीं लगता था. मैं ने मौका अच्छा समझ और निवेदिता का जिक्र छेड़ दिया.

‘‘बात जब लड़की को देखने की आई तो रोमित बोला कि कैसी बात करते हो, अनिल? अगर लड़की तुम्हारी निगाहों में मेरे लायक है तो बस ठीक है. पर मेरी मां लड़की को बिना देखे नहीं मानेंगी.

‘‘मैं ने कहा कि बेशक… बेशक, मुझे इस में क्या परेशानी हो सकती है? जब चाहो माताजी को ले कर आ जाओ.

‘‘वह बोला कि ठीक है, अनिल. मैं अगले चक्कर में कुछ दिनों की छुट्टी ले कर दिल्ली आऊंगा.

‘‘रोमित ने इस से ज्यादा कुछ नहीं कहा था, पर उस के चेहरे के भाव ने मुझे बहुत कुछ समझ दिया था.

‘‘उसी रात तो मैं ने भाभीजी को अकेले में रोमित के विषय में सब कुछ बता दिया. भाभीजी हैरान करती हुई बोलीं कि सच कह रहे हो, अनिल?

‘‘मैं ने कहा कि भाभीजी मैं ने आप से कभी मजाक किया है?

‘‘भाभीजी कुछ देर मेरे चेहरे को एकटक देखने के बाद बोलीं कि ठीक है.

‘‘उन की ओर से मुझे जितनी खुशी की आशा थी उतनी मैं उन के चेहरे पर न देख सका. पर निवेदिता की मां खुशी से फूली न समाईं और मुझे कंधे से पकड़ कर बोलीं कि अनिल, तुम्हें यह रिश्ता शीघ्र ही तय कर देना चाहिए. ऐसे वर बारबार नहीं मिलते.

‘‘कुछ ही दिनों में निवेदिता की शादी तय हो गई. निवेदिता की मां सभी नातेरिश्तेदारों में मेरी तारीफ के पुल बांधा करतीं और उत्तर में वे सब भी मेरी प्रशंसा करने लगे थे. मुझ जैसे बुद्धू व्यक्ति से इतना बड़ा नेक काम भी हो सकता है, किसी को ऐसी आशा तक नहीं थी.

थोड़ी सी जमीं थोड़ा आसमां- भाग 1: क्या थी कविता की कहानी

कविता ने ससुराल में कदम रखते ही अपनी सास के पैर छुए तो वह मुसकरा कर बोलीं, ‘‘बेटी, अपने जेठजी के भी पैर छुओ.’’

कविता राघव के पैरों पर झुक गई तो वह अपने स्थान से हटते हुए बोले, ‘‘अरे, बस…बस कविता, हो गया, तुम थक गई होगी. जाओ, आराम करो.’’

राघव को देख कर कविता को याद आ गया कि जब दोनों भाई उसे देखने पहली बार आए थे तो उस ने राघव को ही रंजन समझा था. वह तो उसे बाद में पता चला कि राघव रंजन का बड़ा भाई है और उस की शादी राघव से नहीं रंजन से तय हुई है. कविता की इस गलत- फहमी की एक वजह यह भी थी कि देखने में रंजन अपने बड़े भाई राघव से बड़ा दिखता है. उस के चेहरे पर बड़े भाई से अधिक प्रौढ़ता झलकती है.

ससुराल आने के कुछ दिनों बाद ही कविता को पता चला कि उस के जेठ राघव अब तक कुंआरे हैं और उन के शादी से मना करने पर ही रंजन की शादी की गई है.

एक दिन कविता ने पूछा था, ‘‘रंजन, जेठजी अकेले क्यों हैं? उन्होंने शादी क्यों नहीं की?’’

तब रंजन ने कविता को बताया कि मेरे पिताजी का जब देहांत हुआ तब राघव भैया कालिज की पढ़ाई पूरी कर चुके थे और मैं स्कूल में था. राघव भैया पर अचानक ही घर की सारी जिम्मेदारी आ गई थी. जैसेतैसे उन्हें नौकरी मिली, फिर भैया ने पत्राचार से एम.बी.ए. किया और तरक्की की सीढि़यां चढ़ते ही गए. उन्होंने ही मुझे पढ़ायालिखाया और अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बनाया. जब उन की शादी की उम्र थी तब वह इस परिवार की जरूरतों को पूरा करने में व्यस्त थे और जब उन्हें शादी का खयाल आया तो रिश्ते आने बंद हो चुके थे. बस, फिर उन्होंने शादी का इरादा ही छोड़ दिया. कविता राघव भैया के सम्मान को कभी ठेस न पहुंचाना.’’

यह सब जानने के बाद तो कविता के मन में राघव के लिए आदर के भाव आ गए थे.

एक दिन कविता राघव को चाय देने गई तो देखा कि वह कोई पेंटिंग बना रहे हैं. कविता ने पूछा, ‘‘भैया, आप पेंटिंग भी करते हैं?’’

राघव ने हंस कर कहा, ‘‘हां, इनसान के पास ऐसा तो कुछ होना चाहिए जो वह सिर्फ अपनी संतुष्टि के लिए करता हो. बैठो, तुम्हारा पोटे्रट बना दूं, फिर बताना मैं कैसी पेंटिंग करता हूं.’’

कविता बैठ गई, फिर अपने बालों पर हाथ फिराते हुए बोली, ‘‘क्या आप किसी की भी पेंटिंग बना सकते हैं?’’

राघव ने एक पल को उसे देखा और कहा, ‘‘कविता, हिलो मत…’’

उन की बात सुन कर कविता बुत बन गई. उसे खामोश देख कर राघव ने पूछा, ‘‘कविता, तुम चुप क्यों हो गईं?’’

कविता ने ठुनकते हुए कहा, ‘‘आप ने ही तो मुझे चुपचाप बैठने को कहा है.’’

राघव ने जोरदार ठहाका लगाया तो कविता बोली, ‘‘जानते हैं, कभीकभी मेरा भी मन करता है कि मैं फिर से डांस करना और लिखना शुरू कर दूं.’’

राघव ने आश्चर्य से कहा, ‘‘अच्छा, तो तुम डांसर होने के साथसाथ कवि भी हो. अच्छा बताओ क्या लिखती हो?’’

‘‘कविता.’’

राघव ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारा नाम नहीं पूछा.’’

‘‘मैं ने भी अपना नाम नहीं बताया है, बल्कि आप को यह बता रही हूं कि मैं कविता लिखती हूं.’’

राघव ने कहा, ‘‘कुछ मुझे भी सुनाओ, क्या लिखा है तुम ने.’’

कविता ने सकुचाते हुए अपनी एक कविता राघव को सुनाई और प्रतिक्रिया जानने के लिए उन की ओर देखने लगी, तो वह बोले, ‘‘कविता, तुम्हारी यह कविता तो बहुत ही अच्छी है.’’

कविता ने खुश होते हुए कहा, ‘‘आप को सच में अच्छी लगी?’’ फिर अचानक ही उदास हो कर वह बोली, ‘‘पर रंजन को तो यह बिलकुल पसंद नहीं आई थी. वह तो इसे बकवास कह रहे थे.’’

राघव कविता के सिर पर स्नेह से हाथ फिराते हुए बोले, ‘‘वह तो पागल है, तुम उस की बात पर ध्यान मत दिया करो और मैं तो कहूंगा कि तुम लिखो.’’

रात को कविता ने रंजन से कहा, ‘‘तुम मेरी कविताओं का मजाक बनाते थे न, पर जेठजी को तो बहुत पसंद आईं, देखो, उन्होंने मेरा कितना सुंदर स्केच बनाया है.’’

रंजन ने बिना स्केच की ओर देखे, फाइलें पलटते हुए कहा, ‘‘अच्छा है.’’

कविता नाराज होते हुए बोली, ‘‘तुम्हें तो कला की कोई कद्र ही नहीं है.’’

रंजन हंस कर बोला, ‘‘तुम और भैया ही खेलो यह कला और साहित्य का खेल, मुझे मत घसीटो इस सब में.’’

रंजन की बातों से कविता की आंखों में आंसू आ गए तो वह चुपचाप जा कर लेट गई. थोड़ी देर बाद कविता के गाल और होंठ चूमते हुए रंजन बोला, ‘‘तुम्हारी कविता…और वह स्केच…दोनों ही सुंदर हैं,’’ इतना कहतेकहते उस ने कविता को अपने आगोश में ले लिया.

अगले दिन रंजन आफिस से जाते समय कविता से बोला, ‘‘सुनो, बहुत दिनों से हम कहीं घूमने नहीं गए, आज शाम को तुम तैयार रहना, फिल्म देखने चलेंगे.’’

पति की यह बात सुन कर कविता खुश हो गई और वह पूरे दिन उत्साहित रही, फिर शाम 5 बजे से ही तैयार हो कर वह रंजन का इंतजार करने लगी.

राघव ने उसे गौर से देखा, धानी रंग की साड़ी में कविता सचमुच बहुत सुंदर लग रही थी. वह पूछ बैठे, ‘‘क्या बात है कविता, आज कहीं जाना है क्या?’’

कविता मुसकरा कर बोली, ‘‘आज रंजन फिल्म दिखाने ले जाने वाले हैं.’’

धीरेधीरे घड़ी ने 6 फिर 7 और फिर 8 बजा दिए, पर रंजन नहीं आया. कविता इंतजार करकर के थक चुकी थी. राघव ने देखा कि कविता अनमनी सी खड़ी है, तो पल भर में उन की समझ में सारा माजरा आ गया. उन्हें रंजन पर बहुत गुस्सा आया. फिर भी वह हंस कर बोले, ‘‘कोई बात नहीं कविता, चलो, आज हम दोनों आइसक्रीम खाने चलते हैं.’’

कविता ने भी बेहिचक बच्चों की तरह मुसकरा कर हामी भर दी.

राघव ने चलतेचलते कविता से कहा, ‘‘तुम रंजन की बातों का बुरा मत माना करो, वह जो कुछ कर रहा है, सब तुम्हारे लिए ही तो कर रहा है.’’

कविता व्यंग्य से बोली, ‘‘वह जो कर रहे हैं मेरे लिए कर रहे हैं? पर मेरे लिए तो न उन के पास समय है न मेरी परवा ही करते हैं. अगर मैं ही न रही तो उन का यह किया किस काम आएगा?’’

कविता के इस सवाल का राघव ने कोई जवाब नहीं दिया. शायद वह जानते थे कि कविता सही ही कह रही है.

वे दोनों आइसक्रीम खा रहे थे कि एक भिखारी उन के पास आ कर बोला, ‘‘2 दिन से भूखा हूं, कुछ दे दो बाबा.’’

राघव ने जेब से 10 रुपए निकाल कर उसे दे दिए.

वह आशीर्वाद देता हुआ बोला, ‘‘आप दोनों की जोड़ी सलामत रहे.’’

कविता ने एक पल को राघव की ओर देखा और अपनी नजरें झुका लीं.

दोनों घर पहुंचे तो देखा कि रंजन आ चुका था. कविता को देखते ही रंजन भड़क कर बोला, ‘‘कहां चली गई थीं तुम? कितनी देर से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं, अब जल्दी चलो.’’

कविता ने भी बिफर कर कहा, ‘‘मुझे पूरी फिल्म देखनी थी, उस का अंत नहीं. मैं बहुत थक गई हूं, अब मुझे कहीं नहीं जाना है.’’

रंजन की आंखें क्रोध से दहक उठीं, ‘‘क्या मतलब है इस का? नहीं जाना था तो पहले बतातीं, मैं अपना सारा काम छोड़ कर तो नहीं आता…’’

कविता की आंखों में आंसू छलक आए, ‘‘काम, काम और बस काम…मेरे लिए कभी समय होगा तुम्हारे पास या नहीं? मैं 5 बजे से इंतजार कर रही हूं तुम्हारा, वह कुछ नहीं…तुम्हें 5 मिनट मेरा इंतजार करना पड़ा तो भड़क उठे?’’

गुस्से से पैर पटकते हुए रंजन बोला, ‘‘तुम्हारी तरह मेरे पास फुरसत नहीं है और फिर यह सब मैं तुम्हारे लिए नहीं तो किस के लिए करता हूं?’’

कविता ने शांत स्वर में कहा, ‘‘मैं तुम से बस, तुम्हारा थोड़ा सा समय मांगती हूं, वही दे दो तो बहुत है, और कुछ नहीं चाहिए मुझे,’’ इतना कह कर कविता अपने कपड़े बदल कर लेट गई.

राघव ने उन दोनों की बातें सुन ली थीं, उन्हें लगा कि दोनों को अकेले में एकदूसरे के साथ समय बिताना बहुत जरूरी है,  अगले दिन शाम को जब राघव आफिस से आए तो बोले, ‘‘मां, मैं आफिस के काम से 15 दिन के लिए बनारस जा रहा हूं, तुम भी चलो मेरे साथ, रास्ते में तुम्हें मौसी के पास इलाहाबाद छोड़ दूंगा और लौटते हुए साथ ही वापस आ जाएंगे.’’

राघव की बात पर मां तैयार हो गईं. कविता ने जब यह सुना तो एक पल को वह उदास हो गई. वह मां से बोली, ‘‘मैं  अकेली पड़ जाऊंगी मां, आप मत जाओ.’’

मां ने कविता को समझाते हुए कहा, ‘‘रंजन तो है न तेरा खयाल रखने के लिए, अब कुछ दिन तुम दोनों एकदूसरे के साथ बिताओ.’’

अगले दिन राघव और मां चले गए. रंजन आफिस जाने लगा तो कविता अपने होंठों पर मुसकान ला कर बोली, ‘‘आप आज आफिस मत जाओ न, कितने दिन हो गए, हम ने साथ बैठ कर समय नहीं बिताया है.’’

रंजन बोला, ‘‘नहीं, कविता, आज आफिस जाना बहुत जरूरी है, पर मैं शाम को जल्दी आ जाऊंगा, फिर हम कहीं बाहर खाना खाने चलेंगे.’’

एक मुलाकात ऐसी भी: निशि का क्या था फैसला

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मेरे चेहरे और बालों पर कौन सा रंग ज्यादा फबेगा?

सवाल-

मेरी उम्र 19 साल है. मेरा रंग सांवला है और बाल काले. एक सहेली की सलाह पर बालों में बरगंडी कलर कराया. लेकिन उस से मेरा रंग काफी दबा लग रहा है. मुझे लगता है कि वह रंग मुझ पर जरा भी नहीं फब रहा है. कृपया बताएं कि बालों का यह रंग कैसे और कितनी जल्दी हट सकता है, साथ ही मेरे चेहरे और बालों पर कौन सा रंग ज्यादा फबेगा?

जवाब-

आप बालों के रंग को ले कर परेशान न हों. सब से पहले किसी अच्छे ब्यूटी क्लीनिक में जा कर बालों में नैचुरल कलर वाली डाई करवाएं और बालों की कंडीशनिंग सही तरीके से लें. हमेशा अच्छी क्वालिटी के शैंपू का ही इस्तेमाल करें ताकि बालों को नुकसान न पहुंचे. आप की सांवली रंगत पर वाइन और बालनट कलर अच्छे लगेंगे. कोई जरूरी नहीं है कि पूरे बालों को कलर कराया जाए. आप चाहें तो हेयर कलर्स से बालों की स्ट्रीकिंग भी ले सकती हैं. 

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इसमें कोई शक नहीं कि  हेयर कट के अलावा हेयर कलर से बालों को मेकओवर देने का तरीका आजकल काफी पौपुलर हो चुका है. इससे ना सिर्फ आपके सफेद बाल छिप जाते हैं ,बल्कि इससे आपको वही पुराने नेचुरल हेयर कलर से थोड़ा ब्रेक मिलता है .इसलिए चाहे पार्लर जा कर या खुद घर पर करना हो. इसे कराने या करने से पहले और बाद में कुछ बातों का रखें ध्यान.

1. हर्बल कलर्स

जब भी बालों को कलर करें तो सिंथेटिक की जगह हर्बल कलर का इस्तेमाल करें. सिंथेटिक कलर में केमिकल मौजूद होते हैं.जो बालों को ड्राई और सफेद करते हैं .वही हर्बल कलर आपके बालों को नेचुरल और शाइन लुक देते हैं.

2. स्किन टोन

जरूरी नहीं कि जो हेयर कलर दूसरों पर अच्छा लगे वह आप पर भी जचें. क्या आपने अपनी दोस्त या किसी सेलिब्रिटी को किसी हेयर कलर में देखा है और इसे ट्राई करने की सोची है .ऐसी गलती ना करें. हमेशा हेयर कलर अपनी स्किन टोन के अनुसार ही चुने .ना ज्यादा ब्राइट और ना ज्यादा लाइट. जैसे बाजार में ब्लैक से बरगंडी  और ब्राउन कई ऑप्शंस हैं. इसलिए समझदारी से काम लें.

पूरी खबर पढ़ें- स्किन टोन के हिसाब से चुनें हेयर कलर

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