चेक भरते समय न करें ये 5 गलतियां

चेक का इस्तेमाल आप सभी ने कभी न कभी किया ही होगा. किसी को बड़ी राशि देने के लिए लोग नकदी के बजाए चेक से पेमेंट करना ही पसंद करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपको चेक भरते समय भी सावधानी बरतने की जरूरत होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि चेक भरते समय अक्सर लोग छोटी-मोटी गलतियां कर देते हैं, जिसका खामियाजा उन्हें बाद में भुगतना पड़ता है. आज हम आपको ऐसी 5 बातें बताने जा रहे हैं जिन्हें अगर आप चेक भरते समय ध्यान में रखेंगे तो आपको नुकसान नहीं होगा.

1. चेक पर तारीख जरूर लिखें

चेक भरते समय तारीख का विशेष ध्यान रखें. आप को बता दें कि जो डेट आप चेक पर लिखते हैं उससे तीन महीने की अवधि तक चेक मान्य होता है. इसमें महीना, वर्ष और डेट तीनों चीजों को ध्यानपूर्वक भरें.

2. हस्ताक्षर करने समय रहें सावधान

बैंक में लेनदेन करते समय खाताधारक को ध्यानपूर्वक हस्ताक्षर करने चाहिए. आप को बता दें कि अगर बैंक अधिकारी को हस्ताक्षर में थोड़ा सा भी शक होता है तो वह चेक रोक सकता है. इसलिए ध्यान रहे चेक पर हस्ताक्षर करते समय आपके साइन ठीक वैसे होने चाहिए जैसे आपने खाता खुलवाते समय दर्ज किए थे. बैंक के रिकॉर्ड में वही हस्ताक्षर स्कैन करके आगे के लिए रख लिए जाते हैं.

3. मोबाइल नंबर दें

एकाउंट होल्डर को कोशिश करनी चाहिए कि चेक के पीछे अपनी खाता संख्या और मोबाइल नंबर लिख दें. यह इसलिए ताकि अगर आपके चेक में बैंक अधिकारी को कोई भी दिक्कत या कंफ्यूजन लगती है तो वह आपसे फोन करके उसके बारे में जानकारी ले सकता है.

4. चेक पर दो लाइनें खींचे

यदि किसी व्यक्ति या संस्था के नाम पर एकाउंट पेई चेक काटते हैं तो चेक के ऊपर बाईं ओर दो लाइनें जरूर खींचें. यह इस बात का प्रमाण होता है कि चेक पर लिखी राशि को चेक वाहक को नकद न देकर खाते में हस्तान्तरित करनी है.

5. संभाल कर रखें स्लिप

चेक जमा करते समय जो फॉर्म भरते हैं, वह दो हिस्सों में होता है. चेक जमा करने के बाद अपनी स्लिप को संभाल कर रखें क्योंकि चेक खो जाने की स्थिति वही एक मात्र ऐसा दस्तावेज होता है जिस पर आपके चेक की डिटेल्स होती हैं.

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लव इन सिक्सटीज : जानिए क्या करें और क्या नहीं

आधी से ज्यादा उम्र बीत जाने के बाद जब जीवन में किसी नए साथी के रूप में स्त्री या पुरुष का प्रवेश होता है तो एक नए अध्याय की शुरुआत होती है. इस नए अध्याय को पढ़ने की जिम्मेदारी उठाना बड़ा मुश्किल काम है.

आइए ऐसे नए रिश्ते जो खासकर अधिक उम्र में पनपें उन की साजसंभाल, जोखिम, परख और सावधानियों पर चर्चा करें ताकि जब भी उम्र के कई पड़ाव पार कर आप ऐसे किसी नए रिश्ते को संग ले चलने का निर्णय लें, तो खतरों को भांप सकें, जिद और मानसिक असंतुलन की स्थिति में नहीं, बल्कि वास्तविकता की समझ विकसित कर के.

स्त्री पुरुष की दोस्ती की कुछ मुख्य बातें:

स्त्रीपुरुष की दोस्ती में बस दोस्त का रिश्ता बहुत कठिन है. इस के अंतत: रोमांस में तबदील होने की पूरी संभावना रहती है.

स्त्रीपुरुष की दोस्ती अगर सिर्फ सामान्य दोस्ती रह पाए तो यह बहुत लंबी भी चल सकती है, लेकिन ऐसी दोस्ती में जब रोमांस आ जाता है तब दोस्ती की उम्र कम हो जाती है. बीच में साथ टूटने का अंदेशा रहता है.

उम्रदराज से क्रौस दोस्ती यानी विपरीत सैक्स से दोस्ती कब और किन हालात में हो सकती है और ऐसी दोस्ती के क्या कारक और जोखिम हैं इस पर काफी रिसर्च हुई है.

जब हो जाए कम उम्र के लड़के को अधिक उम्र की स्त्री से लगाव: कई बार कम उम्र के लड़कों की मानसिक स्थिति काफी परिपक्व रहती है और वे अपनी ही तरह किसी मानसिक रूप से परिपक्व स्त्री की दोस्ती चाहते हैं. ऐसे में जब उन्हें अपने से काफी अधिक उम्र की ऐसी स्त्री मिलती है, जो रुचि, व्यवहार, सोचसमझ और दृष्टिकोण में उन के साथ समानता रखे, तो उन की दोस्ती मजबूत हो जाती है. अगर बाद में ऐसे रिश्ते में रोमांस या शादी का रंग भर जाए तो आश्चर्य नहीं.

कम उम्र की स्त्री का अधिक उम्र के पुरुषों के प्रति लगाव और इस के कारण: इस स्थिति में कम उम्र की स्त्रियां अपने से दोगुनी उम्र के व्यक्ति यहां तक कि पिता की उम्र के व्यक्ति से भी मानसिक, शारीरिक आधार पर जुड़ने की कामना रखती हैं. साइकोलौजिकल आधार पर देखा जाए तो ऐसा पुरुष उम्र की परिपक्वता के साथसाथ सैक्सअपील से भी भरपूर होता है. उसे खुद को प्रस्तुत करने का तरीका आता है और वह अपनी उम्र में नहीं, बल्कि व्यक्तित्व में जीता है.

कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसे पुरुषों का अपनी बढ़ती उम्र की मजबूरी या असुविधाओं से ज्यादा ध्यान अपने व्यक्तित्व के गुणों को निखारने और प्रस्तुत करने पर होता है. ऐसे में उन के साथ मिलनेजुलने वाली स्त्री खुद उन पर ध्यान देती है, उन के संरक्षण में जाने और उन से जुड़ने का ख्वाब देखती है.

ऐसे पुरुषों का जीनगत प्रभाव भी काफी अच्छा रहता है. ये अपने कर्म, विचार और सामर्थ्य में शक्तिशाली, अपने परिवार की पूरी देखभाल करने वाले या फिर अपने ऊंचे पद और कर्मजीवन को बखूबी निभाने वाले होते हैं. ऐसे में कम उम्र की स्त्रियां इन पर समर्पित हो कर तृप्त होना चाहती हैं.

कई मामलों में पति की अवहेलना भी स्त्रियों के इन कर्मठ और रोमांटिक पुरुषों के प्रति आकर्षण का कारण बनती है. इन के सान्निध्य में अतृप्त स्त्रियां आत्मविश्वास वापस पाती हैं. इन पुरुषों के द्वारा की गई प्रशंसा, मदद इन्हें जीने की राह भी दिखा सकती है.

60 या इस के बाद की उम्र वाले पुरुषों का कम उम्र की स्त्रियों के प्रति झुकाव: ऐसी स्थिति आज के समाज में आम है. काम और व्यवसाय के सिलसिले में अधिक उम्र वाले पुरुषों से कम उम्र की स्त्रियों का नजदीकी वास्ता जब लगातार पड़े, तो पुरुष का इन स्त्रियों के प्रति हमदर्दी, अपनापन और रोमांस स्वाभाविक है.

ऐसे रिश्तों में पुरुष के व्यक्तित्व का खासा प्रभाव पड़ता है कि कम उम्र की स्त्रियों के साथ उन का आपसी संबंध कैसा होगा. दूसरे, पुरुष का स्वभाव और जुड़ने वाली स्त्री से पुरुष की अपेक्षाएं दोनों तय होती हैं उस पुरुष की बैकग्राउंड से. कैसे, आइए जानें:

उम्रदराज कामुक पुरुष और उस की स्त्री से अपेक्षाएं: ऐसे पुरुष स्वभाव से स्त्रीशरीर कामी होते हैं. ये अपनी कामनापूर्ति के लिए नाखुश रहने को ढाल बना कर स्त्री के भोग का बहाना ढूंढ़ ही लेते हैं. इस से इन्हें समाज व्यवस्था या न्यायव्यवस्था को न मानने के दोष से उबरने का सहारा मिलता है. इस तरह अपराधभावना से बच कर सिर्फ अपने स्वार्थ को तवज्जो देते हैं.

भोगी पुरुषों की पहचान और स्त्री की इन से खुद की सुरक्षा: यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण मुद्दा है. नौकरी हो या व्यवसाय या फिर कैरियर का कोई भी पहलु 20 से 40 साल की महिला को ज्यादातर उम्रदराज पुरुषों के सान्निध्य में काम करना पड़ता है.

ऐसी स्त्रियां अपनी बातों, विचारों, व्यवहार और गुणों की वजह से अकसर सब के आकर्षण का केंद्र होती हैं. स्वाभाविक है कि उम्रदराज पुरुष ऐसी स्त्रियों का सान्निध्य ज्यादा चाहें. मगर बात तब बिगड़ती है जब ये दोस्ती के नाम पर स्त्रियों को लुभा कर उन्हें अपने चंगुल में फंसाते हैं. जो स्त्रियां जानबूझ कर अपने रिस्क पर इन रिश्तों में आगे बढ़ती हैं उन के लिए यह चर्चा भले ही काम की न हो, लेकिन उन्हें आगाह करना जरूरी है जो ऐसे पुरुषों की दोस्ती को बिना समझे ही अपना लेती हैं और बाद में उन्हें न पीछे लौटने का रास्ता मिलता है, न आगे जाने का. इन्हीं शरीरकामी पुरुषों की मानसिकता की कुछ झलकियां हैं, जिन्हें जान लेने से ऐसे पुरुषों की पहचान आसान हो जाएगी:

ऐसे पुरुष शुरुआती दौर में भावनात्मक पहल करते ही पाए जाते हैं.

जुड़ने वाली स्त्री की हर जरूरत का खयाल रखना चाहते हैं.

स्त्री के परिवार में पति या निकट के लोगों में खामियां ढूंढ़ कर वे खुद भला बन कर स्त्री पर छा जाना चाहते हैं.

काम के क्षेत्र में अतिरिक्त सुविधा देते हैं.

गाहेबगाहे स्त्री शरीर का स्पर्श करते हैं, लेकिन उसे केयर का रूप देते हैं.

झूठ बोलने और अभिनय में माहिर होते हैं.

शिकार को पूरा वक्त देते हैं, चाशनी में उतारने की जल्दी नहीं करते.

उम्रदराज पुरुषों का कम उम्र की स्त्री से भावनात्मक संबंध: अधिक उम्र वाले ऐसे पुरुष भी होते हैं जो कम उम्र की समझदार स्त्री से दोस्ती का भावनात्मक संपर्क बनाए रखना चाहते हैं. ऐसे पुरुष ऐसी स्त्री के साथ दोस्ती रखना चाहते हैं, जो विचारों, स्वभाव और अनुभूति में उन के समान हो.

अगर ऐसे संबंध सहज हों, विचारों के आदानप्रदान से ले कर स्वस्थ मानसिकता तक दर्शाते हों और दोनों के पारिवारिक संबंधों को नष्ट न करते हों, तो यह दोस्ती ठीक है.

भावनात्मक सहारे ढूंढ़ने वाले पुरुषों की पारिवारिक स्थिति: ऐसे पुरुष घर में अकसर पत्नी को जीवनसंगिनी का वह मोल नहीं दे पाते जिस की पत्नी को अपेक्षा रहती है. ऐसे व्यक्ति पारिवारिक जिम्मेदारियां तो निभाते हैं और पत्नी की जरूरतों को भी पूरा करते हैं, लेकिन पत्नी को खुद के बराबर नहीं समझते.

हो सकता है, पत्नी में भी उन का सहारा बनने की योग्यता न हो, घरपरिवार में कई तरह के क्लेश हों या पुरुष के कामकाजी जीवन की मुश्किलों को उस की पत्नी न समझती हो या फिर उस पुरुष की अपेक्षाएं इतनी हों कि उन पर खरा उतरना उस की पत्नी के लिए संभव न हो.

जो भी कारण रहे, अगर बाहरी स्त्रीपुरुष में संबंध बन ही गए हों, तो ‘लव इन सिक्सटीज’ के लिए कुछ मुख्य बातें जो स्त्रीपुरुष दोनों पर ही लागू होंगी:

ऐसे साझा संबंध निभाते वक्त सब से पहले संबंध का प्रकार अवश्य तय कर लें. इस पर अमल दोनों ही करें. मसलन, यह संबंध सिर्फ दोस्ती का है और दोस्ती ही रहेगी या इस संबंध को आगे किसी भी मोड़ तक ले जाने को दोनों स्वच्छंद हैं.

दोनों अपनी दोस्ती को समाजपरिवार से छिपा कर रखेंगे या जाहिर करेंगे, यह भी दोनों तय कर लें.

दोनों ही एकदूसरे को कोई छोटामोटा गिफ्ट देने तक ही सीमित रहें. बड़ा गिफ्ट देने से बचें. इस से परिवार विद्रोह पर उतर सकता है और आप बेमतलब के झंझट में फंस सकते हैं.

आपसी रिश्ते को पारदर्शी रखें और सच के साथ जुड़े रहें. इस से दोस्त को आप की सीमाओं का भान रहेगा और आप से उस की अपेक्षाएं कम रहेंगी.

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बचपन में ही हो जाता है मिरगी का रोग

मिरगी एक आम मस्तिष्क संबंधी विकार है, जिसका इलाज संभव है. कुल मिला कर प्रति 1000 लोगों में 7-8 लोगों को मिरगी का रोग बचपन में हो जाता है. अनुमान तो यह भी लगाया गया है कि दुनिया भर में 50 लाख लोग मिरगी के रोग से पीडि़त हैं.

मिरगी की अभिव्यक्ति के अलग अलग तरीके होते हैं, जिनमें से कुछ नाम नीचे दिए गए हैं:

शरीर के पूरे या आधे भाग में मरोड़ और अकड़न.

दिन में सपने देखना.

असामान्य अनुभूतियां जैसे डरना, अजीब सा स्वाद महसूस करना, गंध और पेट में झनझनाहट महसूस करना

अत्यधिक चौंकना

फिट आने के बाद रोगी नींद या उलझन महसूस करने लगता है, साथ उसे सिरदर्द की शिकायत भी हो सकती है

क्या हैं मिरगी के कारण?

मस्तिष्क कई तंत्रिका कोशिकाओं से मिल कर बना हुआ है, जो शरीर के विभिन्न कार्यों को विद्युत संकेतों द्वारा नियंत्रित करता है. यदि ये संकेत बाधित होते हैं, तो व्यक्ति मिरगी के रोग से पीडि़त हो जाता है (इसे ‘फिट’ या ‘आक्षेप’ कहा जा सकता है.) मिरगी के जैसे कई अन्य रोग भी होते हैं. मसलन, बेहोश (बेहोशी), सांस रोग और ज्वर आक्षेप.

मगर इन सभी को मिरगी का दौरा नहीं कहा जा सकता. क्योंकि ये मस्तिष्क की गतिविधियों को बाधित नहीं करते हैं. यह महत्त्वपूर्ण है कि इन की सही पहचान हो और इन की अलग प्रबंधन रणनीति का ज्ञान हो.

कई रोगियों को मस्तिष्क में निशान होने की वजह से मिरगी के दौरे आते हैं. ये निशान उन्हें बचपन में सिर पर चोट लगने या फिर मस्तिष्क में संक्रमण के कारण हो जाते हैं. कुछ लोगों को मस्तिष्क विकृतियों के कारण मिरगी के दौरे पड़ने लगते हैं. कुछ बच्चों की मिरगी के पीछे आनुवंशिक कारण होते हैं. कह सकते हैं कि मिरगी के दौरे पड़ने का सही कारण जान पाना अभी भी आसान नहीं है.

क्या है मिरगी का निदान?

इलैक्ट्रोइंसेफ्लोग्राफी और मस्तिष्क का एमआरआई जैसे टैस्ट करवा कर भी मिरगी के रोग की पुष्टि की जा सकती है.

कैसे हो सकता है मिरगी का इलाज?

मिरगी का इलाज जीवनशैली में परिवर्तन ला कर और दवाओं से ठीक हो सकता है. एक सिंगल एंटीपिलैक्टिक दवा लगभग 70% मामलों में दौरे पर नियंत्रण कर लेती हैं हालांकि कोई भी दवा मिरगी के कारण को पूरी तरह सुधार नहीं सकती है.

यदि एक दवा विफल हो जाती है तो दूसरी और तीसरी दवा का मिश्रण दिया जाता है. सभी दवाओं की तरह एईडीएस के भी दुष्प्रभाव होते हैं. मसलन इस से उनींदापन, व्यग्रता, सक्रियता और वजन बढ़ने जैसी परेशानियां हो जाती हैं.

कुछ मामलों में दवा रोगियों पर असर नहीं दिखा पाती तो उन्हें कैटोजेनिक डाइट के लिए कहा जाता है, मगर चिकित्सक से बिना पूछे दवा अपने मन से बदलना घातक हो सकता है. दवाओं के अलावा इस बीमारी में अच्छी नींद लेना भी बहुत जरूरी है.

एपिलैप्सी के कुछ रिफ्रैक्टरी केसेज में बच्चे के जीवन को बचाने के लिए सर्जरी भी करनी पड़ सकती है. यह अति विश्ष्टि सेवा केवल कुछ ही अस्पतालों में उपलब्ध है. हिंदुजा अस्पताल पैडियट्रिक एपिलैप्सी सर्जरी में माहिर है.  इस सर्जरी के लिए हिंदुजा अस्पताल का नाम सभी बड़े अस्पतालों में सब से अव्वल है.

मिरगी रोग से पीड़ित बच्चे आम बच्चों जैसे ही होते हैं, वे उन की तरह ही खेलकूद सकते हैं.

दीर्घकालिक परिणाम क्या हैं?

अधिकांश बच्चे जिन्हें सही इलाज और दवा मिल रही होती है, वे 3-4 साल बाद मिरगी के रोग से आजाद हो जाते हैं, वहीं मुश्किल मामलों में चिकित्सक मिरगी विशेषज्ञ को केस रैफर कर देते हैं.

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1st वेडिंग एनिवर्सरी के 5 दिन बाद पिता बने Choti Sardarni फेम एक्टर, पढ़ें खबर

जहां कई सेलेब्स ने साल 2022 में शादी करके फैंस को चौंका दिया है तो वहीं इस साल कई सेलेब्स ने अपने घर नन्हे मेहमान का स्वागत किया है. इसी लिस्ट में अब छोटी सरदारनी (Choti Sardarni) फेम एक्टर अंकित गेरा (Ankit Gera) का नाम भी जुड़ गया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

बेटे के पिता बने एक्टर

 

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हाल ही में अपनी शादी की पहली एनिवर्सरी मनाने वाले एक्टर अंकित गेरा की पत्नी राशि पुरी ने 10 जून को बेटे को जन्म दिया है. हालांकि कपल ने 5 दिन पहले ही अपनी वेडिंग एनिवर्सरी सेलिब्रेट की थी. वहीं पिता बनने की खुशी एक्टर ने अपने फैंस के साथ शेयर करते हुए एक पोस्ट भी किया था.

बेटे को गोद में लेने की खुशी की जाहिर

 

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हाल ही में अंकित गेरा अपने पिता बनने के एक्सपीरियंस को शेयर करते हुए एक इंटरव्यू में कहा, ‘मैं अपनी खुशी का इजहार नहीं कर सकता. जैसे ही मैंने पहली बार अपने बेटे को गोद लिया मेरी सारी चिंताएं खत्म हो गईं. शुक्र है कि मेरा बेटा बिना मास्क के मेरी शक्ल और मुस्कुराहट देख पाएगा. हम काफी समय से कोरोना से बचने के लिए सावधानी बरत रहे हैं. राशि 16 घंटों तक लेबर पेन में थी. ये वख्त मेरे लिए काफी मुश्किल था. उस समय मैं रोने लगा था. प्रेग्नेंसी की वजह से मैंने और राशि ने घर से बाहर निकलना ही बंद कर दिया था.

बता दें सपने सुहाने लड़कपन के (Sapne Suhane Ladakpan Ke), मन की आवाज प्रतिज्ञा (Mann Ki Awaaz Pratigya) और अग्निफेरा (Agneephera) जैसे शोज का हिस्सा रह चुके एक्टर अंकित गेरा ने बीते साल 5 जून 2021 को राशि पुरी से शादी की थी. वहीं एक्टिंग की दुनिया के साथ-साथ वह बिजनेस संभालते हुए नजर आ रहे हैं. हालांकि बीते दिनों वह सीरियल छोटी सरदारनी का भी हिस्सा रहे थे.

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सीरियल गुम हैं किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी दिलचस्प मोड़ लेती नजर आ रही है. जहां सम्राट की मौत के बाद पाखी, सई से बदला लेने का प्लान बना रही है तो वहीं वह विराट के करीब जाने की कोशिशों में लगी हुई है. इसी बीच सोशलमीडिया पर एख वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें सम्राट के साथ पाखी मस्ती करती हुई सेट पर नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो…

सम्राट ने किया ये काम

 

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हाल ही में पाखी के रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा ने एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वाइट साड़ी पहने वह सम्राट यानी योगेंद्र सिंह के साथ मस्ती करते हुए नजर आ रही हैं. दरअसल, वीडियो में सम्राट, पाखी के साथ फ्लर्ट करते हुए दिख रहा है, जिसके जवाब में पाखी, सम्राट को गाली और चांटा मारने की बात कह रही हैं. वहीं इस वीडियो के कैप्शन में ऐश्वर्या शर्मा ने लिखा, पहले डिसाइड कर लेते हैं क्या करना है.

 

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सई का दिल जीतने की कर रही है कोशिश

 

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सीरियल के लेटेस्ट ट्रैक की बात करें तो सई के कहने पर पाखी वापस चौह्वाण हाउस लौट आई है. वहीं पाखी भी सरोगेसी के जरिए विराट के बच्चे की मां बनने का सपना देख रही है. हालांकि सई उसके इरादों से अंजान है. अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि सई, सम्राट का बर्थडे सेलिब्रेट करने की बात कहेगी. हालांकि भवानी उसके फैसले के खिलाफ होगी. लेकिन सई का दिल जीतने के लिए वह उसे थैंक्यू कहेगी. दूसरी तरफ वह सई के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बताएगी. इस दौरान वह विराट को भी अपनी साइड करने की कोशिश करेगी.

 

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बता दें, इन दिनों गुम हैं किसी के प्यार में के लेटेस्ट ट्रैक के चलते सीरियल के मेकर्स को ट्रोलिंग का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि ट्रोलिंग के बावजूद मेकर्स सीरियल की कहानी में नए ट्विस्ट लाने के लिए तैयार हैं.

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योगी सरकार के राज में महिलाएं चलाएगी हाई टेक नर्सरी

बागवानी को बढ़ावा देने और ग्रामीण आजीविका में सुधार के दोहरे उद्देश्य को पूरा करने के लिए, उत्तर प्रदेश सरकार ने मनरेगा योजना के तहत इज़राइली तकनीक पर आधारित 150 हाई-टेक नर्सरी स्थापित करने का निर्णय लिया है.

इन हाईटेक नर्सरी का संचालन उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गठित स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं करेंगी.

योजनान्तर्गत प्रत्येक जिले में बेर, अनार, कटहल, नींबू, आम, अमरूद, ड्रेगन-फ्रूट आदि फल तथा स्थानीय भौगोलिक आवश्यकताओं के अनुरूप अनेक सब्जियां उगाने के लिए दो-दो हाईटेक नर्सरी विकसित की जा रही हैं.

सरकार गुणवत्तापूर्ण फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के साथ-साथ हाई-टेक नर्सरी में गुणवत्ता वाले पौधे और बीज विकसित करना चाहती है. सरकार के इस कदम का एक और उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की बढ़ती संख्या के लिए पर्याप्त फसल उपलब्ध कराना भी है.

उल्लेखनीय है कि बस्ती और कन्नौज में क्रमशः फलों और सब्जियों के लिए इंडो-इजरायल सेंटर फॉर एक्सीलेंस की स्थापना की गई है, ताकि किसानों को गुणवत्तापूर्ण पौध मिल सके.

ये 150 हाईटेक नर्सरी राज्य के कृषि विज्ञान केंद्रों, कृषि विश्वविद्यालयों के परिसर, बागवानी विभाग के अनुसंधान केंद्र में स्थापित की जाएंगी ताकि किसानों को आसानी से प्रशिक्षित किया जा सके. उद्यान विभाग के अनुमान के अनुसार प्रत्येक हाई-टेक नर्सरी की औसत लागत लगभग एक करोड़ रुपये होगी.

इन नर्सरियों को उचित बाड़, सिंचाई सुविधा, हाई-टेक ग्रीन हाउस जैसी बुनियादी सुविधाओं से लैस किया जाएगा और सीएलएफ (क्लस्टर लेवल फेडरेशन) / राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अन्य समूहों के माध्यम से इनका रखरखाव किया जाएगा.

इन नर्सरी से उत्पादित पौधों को इच्छुक स्थानीय किसानों, क्षेत्रीय स्तर पर किसान उत्पादन संगठनों (एफपीओ), राज्य स्तर पर अन्य निजी नर्सरी, राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राज्य सरकारों और अन्य के पौधरोपण के लिए बेचा जाएगा.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अगले 5 वर्षों में बागवानी फसलों की खेती के क्षेत्र को 11.6 प्रतिशत से बढ़ाकर 16 प्रतिशत करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है ताकि खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को पर्याप्त फल और सब्जियां मिल सकें.

जहां से चले थे- भाग 2: पेरेंट्स की मौत के बाद क्या हुआ संध्या के साथ

एक दिन मांपापा ने मेरी पसंद और नापसंद के बीच झूलते हुए दुखी मन से कहा, ‘शादी तो तुम्हें करनी ही पड़ेगी. यही समाज का नियम है. तुम अपनी नहीं तो हमारी चिंता करो. लोग कैसीकैसी बातें करते हैं.’

पापा की जिद के सामने मुझे झुकना ही पड़ा और मैं विनम्रता से बोली कि जो आप को उचित लगे और मेरे विचारों के अनुकूल हो, आप उस से मेरा विवाह कर सकते हैं.

जल्दी ही एक जगह बात पक्की हो गई. लड़का भारतीय सेना में डाक्टर था. मुझे इस बात से संतोष था कि वह मेरे साथ नहीं रहेगा और मैं मनचाही नौकरी कर सकूंगी.

शादी के दिन मैं बड़े अनमने मन से तैयार हो रही थी. मुझे चूड़ा और कलीरें पहनना, महंगे लहंगे के साथ ढेर सारे जेवर और कोहनी तक मेहंदी रचाना आदि आडंबर लगे. मैं सोचती रही कि जल्दी से किसी तरह यह निबटे तो इस से मुक्ति मिले. हर शृंगार पर मैं पूछती कि इस के बाद तो कुछ नहीं बचा है.

‘क्यों, पति से मिलने की इतनी जल्दी है क्या?’ सहेलियों ने पूछा. कोई और अवसर होता तो मैं कभी का उन्हें भगा चुकी होती पर यह सामाजिक व्यवस्था थी उस पर मांपापा की इच्छा का भी खयाल था. जितनी देर होती रही मेरा धैर्य चुकता रहा.

उसी समय बरात आ गई. मेरी सहेलियां बरात देखने चली गईं और मैं अकेली कमरे में बैठी थी. तभी मेरे पास वाले कमरे से पापा की आवाज आई, ‘भाई साहब, हम से जो बन पड़ा है हम ने किया. कोई कमी रह गई हो तो हमें माफ कर दीजिए,’ मैं ने देखा, पापा हाथ जोड़ कर विनती कर रहे थे, ‘कार का इंतजाम इतनी जल्दी नहीं हो पाया वरना उसी में बिठा कर बेटी को विदा करता.’

‘कार की तो कोई बात नहीं, भाई साहब. बस, अपनी बेटी के महंगे गहने शादी के फौरन बाद ही उतरवा दीजिए.’

इतना सुनना था कि मेरे तेवर चढ़ गए. क्या मैं इतनी कमजोर और अनपढ़ हूं कि पापा को इतना कुछ देना पड़ रहा है. मैं ने वहीं पर तहलका मचा दिया कि इन दहेज के लालची लोगों के घर मैं नहीं जाऊंगी. चारों तरफ एक अफरातफरी का माहौल खड़ा हो गया. लड़के वालों को लोग अर्थपूर्ण नजरों से देखने लगे. पापा ने मुझे एक तरफ ले जा कर समझाने की कोशिश की, ‘बेटी, बात इतनी न बढ़ाओ कि संभालनी मुश्किल हो जाए,’ वे बोले, ‘लड़की की शादी में समाज और बिरादरी के भी कुछ नियम हैं. तुम क्या जानो कि क्या कुछ करना पड़ता है. बेटी पैदा होते ही अपना पिंजरा साथ ले कर आती है. इस में लड़के वालों की कोई गलती नहीं है.’

इतने में किसी ने पुलिस को खबर भेज दी. फिर क्या था, टीवी चैनल और प्रिंट मीडिया ने मुझे चारों तरफ से घेर लिया. मैं ने जो सुना, देखा था, थोड़ा बढ़ाचढ़ा कर कह दिया.

लड़के और उस के घर वाले तो सलाखों के पीछे पहुंच गए और मुझे रातोंरात लोग पहचानने लगे. मैं इंटरव्यू पर इंटरव्यू देती रही और वे इसे छापते रहे.

उस के बाद तो कई सामाजिक संगठन और समाजसेवी संस्थाएं आ कर मुझे मानसम्मान देने के लिए समय मांगती रहीं.

कुछ दिनों में यह बात ठंडी हो गई, पापा ने थाने में कई चक्कर लगा कर उन्हें दहेज के आरोप से मुक्त करवा दिया पर उन पर लांछन तो लग ही चुका था. पापा उस दिन के बाद अंतर्मुखी हो गए और मां भी जरूरत भर की बातें ही करतीं.

उस हादसे से पापा इतना टूट गए कि दुनिया से उन्होंने नाता ही तोड़ लिया. हां, मरने से पहले पापा बता गए थे कि लड़के वालों की तरफ से कोई दहेज की मांग नहीं थी. कार देने का वादा तो मैं ने ही किया था और गहने उतरवाने की बात पहले से ही तय थी. देर रात को मेरा इतना शृंगार कर के होटल में जाना अनचाहे तूफान से बचने का उपाय था, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

वक्त गुजरता गया और वक्त के साथसाथ मैं ऊंचाइयां छूती गई. पापा की मृत्यु के बाद तो मां ने भी चुप्पी साध ली थी. मैं उन के दुख को अच्छी तरह जानती थी. उन्हें एक ही चिंता थी कि उन के बाद मेरा कौन सहारा होगा. एक दिन मां ने समझाते हुए कहा, ‘संध्या, जवान और खूबसूरत लड़की समाज की नजरों में वैसे भी खटकती रहती है. औरत कितनी भी सबल क्यों न हो उसे मजबूत सहारे की जरूरत पड़ती ही है, जो उसे समाज की बुरी निगाहों से बचा कर रखता है…’

‘मां, छोड़ो भी यह सब बातें. मैं तुम्हें दिखा दूंगी कि मुझे किसी सहारे की तलाश नहीं है. बस, समाज को समझाने और टक्कर लेने की हिम्मत होनी चाहिए,’ यह कह कर मैं वहां से उठ गई थी.

मां के कहे शब्द दिमाग में कौंधे तो मैं चौंक कर उठ बैठी. मांपापा का जो रक्षा कवच मेरे चारों ओर था वह अब टूट चुका था, अपना झूठा दंभ कहां दिखाती. घर के सभी काम, जो सुनियोजित ढंग से चल रहे थे, अब मुझे ही संभालने थे. मुझे इन 4 दिनों में ही अपना अंधकारमय भविष्य नजर आने लगा.

संध्या की मां को गुजरे 4-5 दिन हो चुके थे पर वह आज भी अतीत में विचरण कर रही थी.

15 अगस्त वाले दिन सुबहसुबह मेरी अंतरंग सहेली वंदना मिलने आ गई. मैं उसे देखते ही उछल पड़ी और बोली, ‘अब आई है तुझे मेरी याद. मां की अंतिम यात्रा में शामिल हो कर तू ने समझा सारे फर्ज निभा दिए.’

नाराज होते हुए वह बोली, ‘मिलूं कैसे, आफिस में तेरा फोन हमेशा व्यस्त रहता है और घर तू देर से पहुंचती है.’

‘अच्छा, अब बातें न बना,’ यह कह कर उस का हाथ पकड़ उसे बिठाते हुए मैं बोली, ‘बता, क्या लेगी?’

‘कुछ भी बना ले,’ वंदना बोली, ‘तेरी बड़ी याद आ रही थी, सो सोचा कि तू आज के दिन तो घर पर ही मिलेगी,’ और इसी के साथ वंदना पांव पसार कर बैठ गई.

जब तक मैं चायनाश्ता तैयार कर के लाई वंदना ने मेज पर ढेर सारे पत्र और फोटो बिछा दिए.

‘यह सब क्या है,’ मैं ने मेज के एक कोने पर टे्र रखते हुए पूछा.

‘बस, क्या बताऊं संध्या, आंटी ने मरने से कुछ ही दिन पहले मुझे बुलाया और तेरे लिए पुन: घर वर खोजने को कहा था, शायद उन से तेरी बात हुई होगी. यह उसी विज्ञापन के पत्र हैं.’

‘बात तो हुई थी, मैं ने तो वैसे ही उन का मन रखने के लिए कह दिया था पर मुझे क्या पता था कि मां सचमुच मेरे विवाह के लिए इतनी सीरियस हैं. शायद उन्हें अपने जाने का एहसास हो गया था,’ कह कर मैं बिलखने लगी.

‘संध्या, जमाना अभी भी वहीं है और समाज आज भी पुरुषों का ही है, वश उन का ही चलता है. तुम नए सिरे से मनुस्मृति लिखने की कोशिश मत करो. रहना तुम्हें भी इसी समाज में है. तुम चाहे कितनी भी ऊंचाइयां छू लो, रहोगी तुम औरत ही. स्त्रियोचित मर्यादा, गुण, स्वभाव, शर्म तुम्हें भी अपनाने होंगे,’ कह कर वंदना चुप हो गई.

मैं इस बहस को ज्यादा तूल नहीं देना चाहती थी और उत्सुकतावश एकएक कर के पत्र और फोटो देखने लगी.

‘बस, यही सब रह गए हैं अब मेरे लिए,’ मैं कुछ लोगों का विवरण पढ़ते हुए बोली, ‘कोई विधुर 2 बच्चों का बाप है तो कोई तलाकशुदा. किसी का बच्चा विदेश में है तो कोई विकलांग. एकदो को छोड़ कर बाकी मुझ से आधी तनख्वाह भी नहीं पाते.’

‘मैडम, अब तुम्हारे लिए कोई 20-22 वर्ष का नौजवान तो मिलेगा नहीं. मिलेगा तो आदमी ही. तुम्हारी उम्र 45 के आसपास है, बालों में भी सफेद चांदी के तार चमकने लगे हैं. अब इस उम्र में कोई अपनी वंशवृद्धि के लिए तो विवाह करेगा नहीं और न ही तुम सक्षम हो, और कोई इस उम्र तक तुम्हारे लिए भी नहीं बैठा होगा. अब तो वही मिलेगा जो उम्र के इस पड़ाव में साथ चाहता होगा.’

‘तेरा मतलब है मैं उस की केयर टेकर बन कर उस का साथ दूं,’ यह कह कर मैं ने वंदना की ओर देखा और बोली, ‘इस से तो शादी न करना ही अच्छा है,’ मुझ से अपने व्यक्तित्व का अपमान बरदाश्त नहीं हुआ.

ममता: भाग 2- कैसी थी माधुरी की सास

गंभीरतापूर्वक सोचविचार कर आखिरकार माधुरी ने ही उचित अवसर पर एक दिन पल्लव से कहा, ‘यदि हम अपनी इस मित्रता को रिश्ते में नहीं बदल सकते तो इसे तोड़ देना ही उचित होगा, क्योंकि आज शांतनु ने संदेह किया है, कल दूसरा करेगा तथा परसों तीसरा. हम किसकिस का मुंह बंद कर पाएंगे. आज हम खुद को कितना ही आधुनिक क्यों न कह लें किंतु कहीं न कहीं हम अपनी परंपराओं से बंधे हैं और ये परंपराएं एक सीमा तक ही उन्मुक्त आचरण की इजाजत देती हैं.’ पल्लव को भी लगा कि जिस को वह अभी तक मात्र मित्रता समझता रहा वह वास्तव में प्यार का ही एक रूप है, अत: उस ने अपने मातापिता को इस विवाह के लिए तैयार कर लिया. पल्लव के पिताजी बहुत बड़े व्यवसायी थे. वे खुले विचारों के थे इसलिए अपने इकलौते पुत्र का विवाह एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार में करने को तैयार हो गए. मम्मीजी ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि जातिपांति पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन यदि उन्हें लड़की पसंद आई तभी वे इस विवाह की इजाजत देंगी.माधुरी के मातापिता अतिव्यस्त अवश्य थे किंतु अपने संस्कारों तथा रीतिरिवाजों को नहीं छोड़ पाए थे इसलिए विजातीय पल्लव से विवाह की बात सुन कर पहले तो काफी क्रोधित हुए थे और विरोध भी किया था, लेकिन बेटी की दृढ़ता तथा निष्ठा देख कर आखिरकार तैयार हो गए थे तथा उस परिवार से मिलने की इच्छा जाहिर की थी.दोनों परिवारों की इच्छा एवं सुविधानुसार होटल में मुलाकात का समय निर्धारित किया गया था. बातों का सूत्र भी मम्मीजी ने ही संभाल रखा था. पंकज और पल्लव तो मूकदर्शक ही थे.

उन का जो भी निर्णय होता उसी पर उन्हें स्वीकृति की मुहर लगानी थी. यह बात जान कर माधुरी अत्यंत तनाव में थी तथा पल्लव भी मांजी की स्वीकृति का बेसब्री से इंतजार कर रहा था.बातोंबातों में मां ने झिझक कर कहा था, ‘बहनजी, माधुरी को हम ने लाड़प्यार से पाला है, इस की प्रत्येक इच्छा को पूरा करने का प्रयास किया है. इस के पापा ने तो इसे कभी रसोई में घुसने ही नहीं दिया.’‘रसोई में तो मैं भी कभी नहीं गई तो यह क्या जाएगी,’ बात को बीच में ही काट कर गर्वभरे स्वर के साथ मम्मीजी ने कहा. मम्मीजी के इस वाक्य ने अनिश्चितता के बादल हटा दिए थे तथा पल्लव और माधुरी को उस पल एकाएक ऐसा महसूस हुआ कि मानो सारा आकाश उन की मुट्ठियों में समा गया हो. उन के स्वप्न साकार होने को मचलने लगे थे तथा शीघ्र ही शहनाई की धुन ने 2 शरीरों को एक कर दिया था.पल्लव के परिवार तथा माधुरी के परिवार के रहनसहन में जमीनआसमान का अंतर था. समानता थी तो सिर्फ इस बात में कि मम्मीजी भी मां की तरह घर को नौकरों के हाथ में छोड़ कर समाजसेवा में व्यस्त रहती थीं.

अंतर इतना था कि वहां एक नौकर था तथा यहां 4, मां नौकरी करती थीं तो ससुराल में सास समाजसेवा से जुड़ी थीं.मम्मीजी नारी मुक्ति आंदोलन जैसी अनेक संस्थाओं से जुड़ी हुई थीं, जहां गरीब और सताई गई स्त्रियों को न्याय और संरक्षण दिया जाता था. उन्होंने शुरू में उसे भी अपने साथ चलने के लिए कहा और उन का मन रखने के लिए वह गई भी, किंतु उसे यह सब कभी अच्छा नहीं लगा था. उस का विश्वास था कि नारी मुक्ति आंदोलन के नाम पर गरीब महिलाओं को गुमराह किया जा रहा है. एक महिला जिस पर अपने घरपरिवार का दायित्व रहता है, वह अपने घरपरिवार को छोड़ कर दूसरे के घरपरिवार के बारे में चिंतित रहे, यह कहां तक उचित है? कभीकभी तो ऐसी संस्थाएं अपने नाम और शोहरत के लिए भोलीभाली युवतियों को भड़का कर स्थिति को और भी भयावह बना देती हैं. उसे आज भी याद है कि उस की सहेली नीता का विवाह दिनेश के साथ हुआ था. एक दिन दिनेश अपने मित्रों के कहने पर शराब पी कर आया था तथा नीता के टोकने पर नशे में उस ने नीता को चांटा मार दिया. यद्यपि दूसरे दिन दिनेश ने माफी मांग ली थी तथा फिर से ऐसा न करने का वादा तक कर लिया था, किंतु नीता, जो महिला मुक्ति संस्था की सदस्य थी, ने इस बात को ऐसे पेश किया कि उस की ससुराल की इज्जत तो गई ही, साथ ही तलाक की स्थिति भी आ गई और आज उस का फल उन के मासूम बच्चे भोग रहे हैं.

ऐसा नहीं है कि ये संस्थाएं भलाई का कोई काम ही नहीं करतीं, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि किसी भी प्रतिष्ठान की अच्छाइयां छिप जाती हैं जबकि बुराइयां न चाहते हुए भी उभर कर सामने आ जाती हैं.वास्तव में स्त्रीपुरुष का संबंध अटूट विश्वास, प्यार और सहयोग पर आधारित होता है. जीवन एक समझौता है. जब 2 अजनबी सामाजिक दायित्वों के निर्वाह हेतु विवाह के बंधन में बंधते हैं तो उन्हें एकदूसरे की अच्छाइयों के साथसाथ बुराइयों को भी आत्मसात करने का प्रयत्न करना चाहिए. प्रेम और सद्भाव से उस की कमियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए, न कि लड़झगड़ कर अलग हो जाना चाहिए.मम्मीजी की आएदिन समाचारपत्रों में फोटो छपती. कभी वह किसी समारोह का उद्घाटन कर रही होतीं तो कभी विधवा विवाह पर अपने विचार प्रकट कर रही होतीं, कभी वह अनाथाश्रम जा कर अनाथों को कपड़े बांट रही होतीं तो कभी किसी गरीब को अपने हाथों से खाना खिलाती दिखतीं. वह अत्यंत व्यस्त रहती थीं.

वास्तव में वह एक सामाजिक शख्सियत बन चुकी थीं, उन का जीवन घरपरिवार तक सीमित न रह कर दूरदराज तक फैल गया था. वह खुद ऊंची, बहुत ऊंची उठ चुकी थीं, लेकिन घर उपेक्षित रह गया था, जिस का खमियाजा परिवार वालों को भुगतना पड़ा था. घर में कीमती चीजें मौजूद थीं किंतु उन का उपयोग नहीं हो पाता था.मम्मीजी ने समय गुजारने के लिए उसे किसी क्लब की सदस्यता लेने के लिए कहा था किंतु उस ने अनिच्छा जाहिर कर दी थी. उस के अनुसार घर की 24 घंटे की नौकरी किसी काम से कम तो नहीं है. जहां तक समय गुजारने की बात है उस के लिए घर में ही बहुत से साधन मौजूद थे. उसे पढ़नेलिखने का शौक था, उस के कुछ लेख पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हो चुके थे. वह घर में रहते हुए अपनी इन रुचियों को पूरा करना चाहती थी.यह बात अलग है कि घर के कामों में लगी रहने वाली महिलाओं को शायद वह इज्जत और शोहरत नहीं मिल पाती है जो बाहर काम करने वाली को मिलती है. घरेलू औरतों को हीनता की नजर से देखा जाता है लेकिन माधुरी ने स्वेच्छा से घर के कामों से अपने को जोड़ लिया था.

घर के लोग, यहां तक कि पल्लव ने भी यह कह कर विरोध किया था कि नौकरों के रहते क्या उस का काम करना उचित लगेगा. तब उस ने कहा था कि ‘अपने घर का काम अपने हाथ से करने में क्या बुराई है, वह कोई निम्न स्तर का काम तो कर नहीं रही है. वह तो घर के लोगों को अपने हाथ का बना खाना खिलाना चाहती है. घर की सजावट में अपनी इच्छानुसार बदलाव लाना चाहती है और इस में भी वह नौकरों की सहायता लेगी, उन्हें गाइड करेगी.

Summer Special: बच्चों के लिए बनाएं पास्ता विद पनीर

बच्चों के लिए बनाएं स्वाद और सेहत से भरपूर पास्ता विद सलाद.

सामग्री

100 ग्राम पनीर क्यूब्स

200 ग्राम पास्ता उबला हुआ

पुदीना कटा हुआ

अनन्नास ताजा कटा हुआ

शिमलामिर्च लाल व पीली कटी हुई

प्याज कटा हुआ

1/2 कप इटैलियन सौस

1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च

नमक स्वादानुसार

विधि

एक कटोरे में सभी ब्जियां व उबला पास्ता सौस के साथ अच्छी तरह मिलाएं. फिर नमक व कालीमिर्च मिलाएं. इसे फ्रिज में रखें फिर ठंडा परोसें.

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टोमैटो फेस मास्क दें कुदरती खूबसूरती

सेहत बनाने के लिए तो हम सभी टमाटर खाते हैं लेकिन क्या आपने कभी रूप निखारने और त्वचा की देखभाल के लिए टमाटर का इस्तेमाल किया है?

टमाटर में कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो त्वचा के लिए फायदेमंद होते हैं. ये त्वचा को कुदरती तौर पर निखारने का काम करता है. बढ़ती उम्र के लक्षणों को कम करता है और सनस्क्रीन की तरह त्वचा की देखभाल करता है.

टमाटर में विटामिन ए, सी और एंटी-ऑक्सीडेंट की भरपूर मात्रा होती है. ये त्वचा की नमी को बनाए रखता है और पोषित करने का काम करता है. टमाटर का इस्तेमाल कई प्रकार से किया जा सकता है.

आप चाहें तो अपनी आवश्यकता और सहूलियत के अनुसार टमाटर का फेस मास्क तैयार कर सकते हैं. टमाटर का फेस मास्क तैयार करना बहुत ही आसान है. आप अपनी जरूरत के आधार पर इनमें से कोई भी चुन सकते हैं.

टमाटर और छाछ का फेस मास्क

दो चम्मच टमाटर के रस में 3 चम्मच छाछ मिला लें. इन दोनों को अच्छी तरह मिलाकर चेहरे पर लगाएं. थोड़ी देर इसे यूं ही लगे रहने दीजिए. जब ये सूख जाए तो इसे साफ कर लें. टमाटर और छाछ के फेसपैक के नियमित इस्तेमाल से दाग-धब्बों की समस्या दूर हो जाती है.

ओटमील, दही और टमाटर का फेस मास्क

ओटमील, टमाटर का रस और दही ले लें. इन सभी चीजों को अच्छी तरह मिला लें. इस पेस्ट को चेहरे पर लगाकर कुछ देर के लिए यूं ही छोड़ दें. उसके बाद हल्के गुनगुने पानी से चेहरा धो लें. एक ओर जहां टमाटर के इस्तेमाल से त्वचा में निखार आता है वहीं ओटमील डेड स्कि‍न को दूर करने का काम करता है. दही से चेहरा मॉइश्चराइज हो जाता है.

टमाटर और शहद का फेस मास्क

एक चम्मच शहद और टमाटर ले लें. इन दोनों को अच्छी तरह मिला लें और चेहरे पर लगाएं. 15 मिनट तक इस मास्क को लगा रहने दें. फिर गुनगुने पानी से चेहरा धो लें. इससे चेहरे पर निखार आ जाएगा.

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