फ्रीजी हेयर नो प्रौब्लम

औफिस के लिए तैयार होते वक्त मोहिनी का 1 घंटा सिर्फ अपने बाल संवारने में लग जाता है. अब यह सुन कर आप को और हैरानी होगी कि इस 1 घंटे में मोहिनी कोई स्टाइलिश हेयरस्टाइल नहीं बनाती, बल्कि साधारण तरीके से 1 पोनीटेल ही बना पाती है. 1 पोनीटेल बनाने में मोहिनी को इतना वक्त इसलिए लग जाता है, क्योंकि उस के बालों में फ्रीजी बेबी हेयर की समस्या है. इस समस्या को कई नामों से पुकारा जाता है. मसलन, बेबी हेयर, फ्लायवेज आदि.

दरअसल, फ्रीजी बेबी हेयर समस्या सिर्फ मोहिनी की ही नहीं, बल्कि हर उस महिला की है जिस के बाल रूखे और घुंघराले होते हैं. फिर चाहे बाल छोटे हों या बड़े. डर्मेटोलौजिस्ट वरुण कतियाल इस समस्या को ऐलोपेशिया बताते हैं. वे कहते हैं, ‘‘यह समस्या जैनेटिक भी हो सकती है और खराब वातावरण की वजह से भी महिलाएं इस समस्या का शिकार हो सकती हैं.’’

वैसे यह समस्या अधिकतर सर्दी के मौसम में होती है. लेकिन इस बाबत एशियन इंस्टिट्यूट में डर्मेटोलौजिस्ट डाक्टर अमित बांगिया का कहना है, ‘‘मनुष्य के सिर पर बालों की संख्या लगभग 1 से 2 लाख के बीच होती है. हर बाल का जीवन 1 से 3 वर्ष होता है. वैसे यह बाल की गुणवत्ता पर भी निर्भर करता है कि कितने समय तक वह जीवित रहेगा. जैसे-जैसे बाल की उम्र पूरी होती जाती है वह टूट जाता है और उस के स्थान पर नया बाल निकल आता है. इस बात की जानकारी भी कम ही महिलाओं को होती है कि  रोज लगभग 100 बाल टूटते हैं और 50 नए बाल उगते हैं. इसलिए हर बाल की एक लैंथ नहीं हो सकती है.’’

मगर अधिकतर महिलाओं को यह समस्या हेयरलाइन पर होती है. डाक्टर वरुण कहते हैं, ‘‘जहां अधिकतर महिलाओं की फ्रंट हेयरलाइन पर बालों की लैंथ बहुत कम होती है, वहीं कुछ महिलाओं के कानों के पीछे और नैक हेयरलाइन पर फ्लायवेज हेयर होते हैं. इन की लैंथ बढ़ाने का वैसे कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं है, लेकिन थोड़ी देखभाल और सही उत्पादों के इस्तेमाल से इन्हें व्यवस्थित किया जा सकता है.’’

जानें क्या हैं कारण

फ्रीजी बेबी हेयर की सब से बड़ी वजह होती है लो ह्यूमिडिटी और शुष्क हवा. डाक्टर अमित के अनुसार, बालों में मौइश्चर की कमी होने से वे रूखे हो जाते हैं, साथ ही उन का एकदूसरे से जुड़ाव भी खत्म हो जाता है. ऐसे में डीप कंडीशनिंग बालों की फ्रीजीनैस खत्म करने का सब से अच्छा विकल्प है. डीपकंडीशनिंग के लिए नारियल का गरम तेल काफी फायदेमंद रहता है. गरम तेल से मालिश करने के लगभग 1 घंटे बाद शैंपू से बाल धोए जा सकते हैं. ध्यान रहे बाल ऐंटीसैप्टिक फौर्मूला बेस्ड शैंपू से ही धोएं.

हेयर स्प्रे का करें इस्तेमाल

हेयरस्टाइल बनाते वक्त अकसर छोटी लैंथ के बाल लुक को खराब कर देते हैं. ऐसे में स्ट्रौंग मगर अच्छी क्वालिटी का हेयर स्प्रे लगा कर फ्रीजी बेबी हेयर को दबाया जा सकता है. यदि हेयर स्प्रे का इस्तेमाल न करना चाहती हों, तो सिलिकौन बेस्ड हेयर जैल या हेयर सीरम का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. ये दोनों ही उत्पाद बालों को स्मूद और शाइनी फिनिश देते हैं. इस के अतिरिक्त बहुत ही कम मात्रा में बौडी लोशन भी फ्रीजी बेबी हेयर पर लगाया जा सकता है. लेकिन ध्यान रहे कि लोशन सिर्फ बालों को दबाने के लिए लगाएं न कि उन्हें ग्रीसी बनाने के लिए.

ड्रायर शीट और स्टैटिक फ्री ब्रश की लें मदद

बालों को इंस्टैंट फिक्स करने के लिए हाथों में हलका पानी लगा कर बालों में फिराएं और फिर स्टैटिक फ्री ब्रश से कंघी करें. स्टैटिक फ्री ब्रश इसलिए, क्योंकि यह स्कैल्प में रक्तसंचार को सुधारता है, जिस से दोमुंहे बाल और फ्रीजी बेबी हेयर की समस्या काफी हद तक कम हो जाती है.

बालों में अधिक पिनें लगाना भी है एक कारण

कई महिलाएं हेयरस्टाइल बनाने के लिए तरहतरह की पिनों का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन ये बालों को खींचती हैं और उन्हें कमजोर बना देती हैं. ब्यूटीशियन रेनू महेश्वरी कहती हैं, ‘‘कभी पिनें ऐसे न लगाएं कि बाल खिंचने लगें, बल्कि बालों में ऐसे लगाएं कि बाल बंधे रहें. पिनें लगाने की ही तरह उन्हें निकालने का भी तरीका होता है. कभी उन्हें खींच कर बालों से न निकालें और साथ ही ऐसी पिनों का चुनाव करें, जो बालों में फंस कर उन्हें तोड़ें नहीं.’’

इन बातों का भी रखें ध्यान

– चेहरा धोते वक्त साबुन या फेसवाश बालों में न लगे. बारबार साबुन लगने से बालों से नमी चली जाती है और वे टूटने लगते हैं.

– बालों में कंघी करते वक्त हमेशा नीचे से ऊपर की तरफ को पहले उन्हें सुलझा लें, फिर ब्रश करें.

– रात में सोते वक्त बालों को हमेशा हलका बांध कर सोएं.

– फ्रीजी बेबी हेयर की औलिव औयल से मालिश करें.

– ऐसे बालों पर अच्छी तरह कंडीशनर लगाएं.

– गीले बालों को उंगलियों से सुलझाएं.

ये भी पढ़ें- इन 6 दवाईयों से बनाएं फेस पैक और पाएं बेदाग स्किन

विदेश में पढ़ाई से पहले जानें 7 बातें

बीते 2 सालों में कोरोना ने पूरी दुनिया में कुहराम मचाया है और इस महामारी की दोहरी मार झेली विदेशों में पढ़ने वाले छात्रों ने. कई छात्रों को अपने देश वापस आने के लिए पहले विदेशी नियमों की मुश्किलों से गुजरना पड़ा और फिर बाद में अपने देश आ कर क्वारंटाइन के सख्त नियमों से. आप के बच्चे के लिए विदेश में पढ़ाई करना मुश्किल न हो इस के लिए इन बातों का ध्यान जरूर रखें:

1. करें पूरी रिसर्च

जिस देश में बच्चा पढ़ने जा रहा है उस देश के रहनसहन के तौरतरीकों और नियमों के बारे में पूरी जानकारी जमा करें. इस के लिए सिर्फ गूगल के भरोसे न रहें बल्कि ऐसे किसी बच्चे से मिलने की कोशिश करें जो पहले वहां रह कर पढ़ाई कर चुका हो. वहां करंसी ऐक्सचेंज करने के क्या नियम हैं यह भी जरूर पता करें. जिस यूनिवर्सिटी में बच्चा पढ़ने जा रहा है वह रहने और खाने की क्या सुविधा देती है यह भी जानना जरूरी है. सब से जरूरी बात यह कि वहां का मौसम कैसा रहता है और आप के बच्चे को किसी खास मौसम से कोई स्वास्थ्य समस्या तो नहीं, यह जानकारी भी रखें.

2. पेपर वर्क

पासपोर्ट के साथसाथ वे सभी पेपर्स संभाल कर रख लें जो आप को विदेश में पढ़ाई की अनुमति देते हैं. उस देश में अपना बैंक अकाउंट खुलवाने के लिए जरूरी प्रूफ्स का पहले से पता कर लें और उन्हें भी संभाल कर रख लें. अपने हैल्थ इंश्योरैंस से जुड़े पेपर्स साथ रखें और यदि वे विदेश में मान्य नहीं हैं तो उन्हें कैसे अपडेट कराना है यह जानकारी भी आप को होनी चाहिए. एटीएम इत्यादि इंटरनैशनल ट्रांजैक्शन के लिए पहले ही मान्य करवा लें.

3. बैग पैक

आस्ट्रेलिया, अमेरिका, जरमनी और रूस जैसे देशों में विंटर सीजन भारत के विंटर सीजन से बिलकुल अलग होता है. यदि इन देशों में जा रहे हैं तो पहले से रिसर्च करने के बाद ही कपड़े तैयार करें. इलैक्ट्रौनिक उपकरणों को चार्ज करने वाले अडौप्टर इत्यादि के बारे में भी पता कर लें क्योंकि हर देश में स्विच पौइंट्स का पैटर्न अलगअलग होता है. जिस देश में जा रहे हैं वहां की ट्रैवल गाइड अपने साथ जरूर रखें.

4. विदेश में रहने की तैयारी

हर देश सांस्कृतिक रूप से अलग होता है. भाषा, पहनावा और कुछ नियम ऐसे होते हैं जिन्हें ले कर वहां के लोग सैंसिटिव होते हैं. सही रहेगा यदि आप उस देश की भाषा को सीख लें. हर देश में सिर्फ अंगरेजी बोलने से काम नहीं चलेगा. विदेश जाने से पहले अपने ट्रैवल डाक्टर से जरूरी दवाओं की प्रिस्क्रिप्शन जरूर ले लें. विदेश में रहना और आसान बनाना है तो वहां के इतिहास और राजनीति के बारे में भी थोड़ी जानकारी जमा कर लें.

5. विदेश पहुंचने पर

विदेश पहुंचने पर 24 घंटों के अंदर अपना रजिस्ट्रेशन जरूर करवा लें. वैसे तो हर देश में इस के नियम अलग हैं, मगर यदि आप भारतीय दूतावास में अपना पंजीकरण करा लेंगे तो आगे आप को बहुत सुविधा होगी. बीते 2 सालों में कोरोना या रूसयूक्रेन युद्ध के चलते उन छात्रों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा जिन की जानकारी दूतावास के पास नहीं थी.

6. पढ़ाई भी कमाई भी

वैसे यह कल्चर भारत में कम देखने को मिलता है, लेकिन विदेशों में यह बहुत है. यदि आप का शिक्षण संस्थान अनुमति दे तो आप पढ़ने के साथसाथ कुछ पैसा भी कमा सकते हैं जो आप की आगे की पढ़ाई में काम आ सकता है. कुछ देशों में इस के लिए लोकल परमिशन लेनी पड़ती है तो कहीं वर्क परमिट की जरूरत होती है. ऐक्स्ट्रा पैसा रहेगा तो युद्ध और महामारी की स्थिति में आप के बेहद काम आएगा.

7. इंटरनैशनल स्टूडैंट आइडैंटिटी कार्ड

इस कार्ड के सफर के दौरान कई फायदे हैं. लोकल ट्रैवलिंग के साथसाथ कुछ शौपिंग सैंटर्स पर भी इस कार्ड से डिस्काउंट पा सकते हैं. इसे पाने के लिए आईएसआईसी की वैबसाइट विजिट करें. कुछ पू्रफ अपलोड करने के बाद यहां से इसे औनलाइन भी बनवाया जा सकता है. कुछ देशों में इस कार्ड का इस्तेमाल कर के आप फूडिंग और लौजिंग में भी डिस्काउंट पा सकते हैं.

इन सब बातों के साथसाथ सब से जरूरी है खुद को विदेश में रहने के लिए मानसिक तौर पर तैयार करना. वहां शुरुआती कुछ दिनों तक आप को हर काम में अपनी सहायता खुद ही करनी होगी, इसलिए मानसिक रूप से खुद को पहले से तैयार रखें.

ये भी पढ़ें- क्यों जरूरी है करियर काउंसलिंग

ब्रेन ट्यूमर के 10 सामान्य लक्षण

क्या आपको लगातार सिरदर्द, मितली, धुंधला दिखाई देना और शारीरिक संतुलन में परेशानी हो रही है? इन लक्षणों को नजर अंदाज ना करें, यह ब्रेन ट्यूमर जैसी बड़ी समस्या हो सकती है. ब्रेन ट्यूमर में दिमाग में कोई बहुत सी कोशिकाएं या कोई एक कोशिका असामान्य रूप से बढ़ती है. सामान्यतः दो तरह के ब्रेन ट्यूमर होते हैं कैंसर वाला (घातक) या बिना कैंसर वाला (सामान्य) ट्यूमर.

दोनों ही मामलों में दिमाग की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होती हैं, जो कि कई बार घातक सिद्ध होता है. इसके साथ सबसे बड़ी परेशानी है कि इसके कोई विशेष कारण नहीं हैं, केवल कुछ शोधकर्ताओं ने इसके कुछ रिस्क फैक्टर्स का पता लगाया है.

ब्रेन ट्यूमर किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन बढ़ते उम्र के साथ इसका जोखिम भी बढ़ जाता है. कई मामलों में तो यह आनुवांशिक कारण हो सकता है और कई बार किसी केमिकल के ज्यादा इस्तेमाल या रेडिएशन से हो सकता है. बहुत से लोगों को पता ही नहीं चलता है कि उन्हें ब्रेन ट्यूमर है क्यों कि उनमें कोई लक्षण दिखाई ही नहीं देते हैं.

जब ये ट्यूमर बड़ा हो जाता है और स्वास्थ्य पूरी तरह बिगड़ जाता है तब लोग चैक-अप करवाते हैं और तब इसका पता चलता है. हम आपको इसके 10 लक्षणों से अवगत करा रहे हैं, जिनको जानने की आवश्यकता है.

1. सिरदर्द

यह ब्रेन ट्यूमर का सबसे बड़ा लक्षण है. यह दर्द मुख्यतः सुबह होता है और बाद में यह लगातार होने लगता है, यह दर्द तेज होता है. यदि ऐसा लक्षण दिखाई दे तो जांच कराएं.

2. उबाक या उल्टी का मन होना

सिरदर्द की तरह यह भी सुबह होता है, खास तौर पर जब व्यक्ति एक जगह से दूसरी जगह जाता है तब यह ज्यादा होता है.

3. कम दिखना

जब किसी को आक्सिपिटल के आस पास ट्यूमर होता है तो चीजें कम दिखाई देती हैं. उन्हें धुंधला दिखाई देने लगता है और रंगों व चीजों को पहचानने में परेशानी होती है.

4. संवेदना कम महसूस होना

जब किसी व्यक्ति के दिमाग के पराइअटल लोब पे ट्यूमर होता है तो उसे अपनी बाजुओं और पैरों पर संवेदना कम महसूस होती है, क्यों कि ट्यूमर से कोशिकाएं प्रभावित होती हैं.

5. शरीर का संतुलन बनाने में परेशानी

जब किसी को ट्यूमर होता है तो उसके शरीर का संतुलन नहीं बन पाता है, क्यों कि यदि सेरिबैलम में ट्यूमर है तो वह मूवमेंट को प्रभावित करता है.

6. बोलने में परेशानी

यदि किसी को टैंपोरल लोब में ट्यूमर होता है तो बोलने में परेशानी होती है, सही तरह बोला नहीं जाता है.

7. रोजाना के कामों में गड़बड़ी करना

पराइअटल लोब में ट्यूमर होने पर संवेदना प्रभावित होती है, इससे व्यक्ति को दैनिक क्रियाओं में परेशानी होती है.

8. व्यक्तिगत और व्यवहारिक बदलाव

जिन्हें फ्रन्टल लोब में ट्यूमर होता है वे अपने व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं. इन्हें नई चीजें सीखने में परेशानी होती है.

9. दौरे पड़ना

ब्रेन ट्यूमर में दौरे पड़ना एक आम समस्या है. जब भी दौरा पड़ता है तो व्यक्ति बेहोश हो जाता है.

10. सुनने में समस्या

जिन लोगों को दिमाग के टैंपोरल लोब में ट्यूमर होता है उन्हें सुनने में परेशानी होती है, कभी कभी सुनना पूरी तरह प्रभावित हो जाता है.

ये भी पढ़ें- जानें क्यों होता है गर्भाशय कैंसर

Summer Special: बचा खाना बन जाए लजीज

संडे को घर में मेहमानों का आनाजाना लगा रहता है. इस स्थिति में कभीकभी खाना ज्यादा बन जाता है. बढ़ती महंगाई की वजह से बचा खाना फेंकने का मन नहीं करता, वहीं 1-2 बार खाने के बाद खाने का मन भी नहीं करता है. लेकिन यदि इसी खाने को नया टेस्ट दिया जाए तो न सिर्फ खाना फेंकने से बचा जा सकता है, पैसा व समय भी बरबाद होने से बच जाते हैं.

अगर आप के साथ भी कभी ऐसी परिस्थिति आए तो घबराएं नहीं, निम्न टिप्स आजमाएं और बचे खाने में नया स्वाद लाएं-

– बची इडली में राई, लालमिर्च और करीपत्ते का छौंक लगाएं. ऊपर से पावभाजी मसाला डाल कर उलटेपलटें व धनियापत्ती डाल कर सर्व करें.

– मिक्स्ड वैजिटेबल बच गई हो तो उस में उबला व मैश किया 2 आलू, अदरक, हरीमिर्च व धनियापत्ती मिलाएं और कटलेट बना कर ब्रैडक्रंब्स में लपेट कर डीप फ्राई करें.

– रसेदार सब्जी बची हो तो उस की गे्रवी को सुखा लें और उस में 1 बड़ा चम्मच बेसन डालें. बढि़या, चटपटी सूखी सब्जी तैयार है.

– सूखी सब्जी जैसे मेथी, आलू, पालकआलू, पनीर भुरजी, बींस आदि बचे हों तो 2 ब्रैडस्लाइसों के बीच रख कर सैंडविच मेकर में सैंडविच तैयार कर लें.

– उबले नूडल्स बच गए हों तो उन्हें कुनकुने पानी में डाल कर छान लें और थोड़ा सा तेल लगा कर सूप, चाऊमीन में प्रयोग लाएं या चाइनीज सब्जियां मिला कर कटलेट बनाएं.

– सलाद ज्यादा बचा हो तो उसे 2-3 आलू के साथ प्रैशरकुकर में हींग, जीरे का तड़का लगा कर छौंक दें. साथ ही पावभाजी मसाला डालें. एक सीटी लगाएं. जब सब्जी तैयार हो तो उस में 2 बड़े चम्मच टोमैटो सौस मिक्स कर दें.

– बचे चावलों से आप लेमन राइस बना सकते हैं. इस के लिए बस करीपत्ता, राई, हरीमिर्च, चना व उरद दाल का तड़का तैयार करें. इस में हलदी पाउडर व नमक डालें. साथ ही चावल डाल कर उलटेपलटें. अंत में नीबू का रस डालें. लेमन राइस तैयार है.

– रोटी के पकौड़े बनाए जा सकते हैं. बस रोटी की मात्रा के अनुसार मोटा बेसन घोलें. उस में बारीक कटा पालक, नमक, मिर्च, धनियापत्ती, 1 बड़ा चम्मच चावल का आटा और अजवाइन मिलाएं. रोटी के मनचाहे आकार के टुकड़े काट कर बेसन के घोल में लपेट कर डीप फ्राई कर लें. आप चाहें तो साबूत रोटी को ही बेसन में लपेट कर तवे पर चीले की तरह सेंक लें.

– पूरियां बच गई हों तो उन्हें भी सुखा कर मिक्सी में पीस लें. थोड़ा सा देशी घी डाल कर भूनें. मेवा, बूरा मिलाएं और चूरमे के लड्डू बना लें या ऐसे ही चूरमा तैयार करें.

– बिस्कुट के बचे चूरे व टूटे बिस्कुटों को थोड़े से ठंडे दूध व चीनी के साथ मिला कर मिक्सी में फेंटें. बिस्कुटी शेक बच्चों को बहुत पसंद आएगा.

ये भी पढ़ें- Summer Special: लंच में परोसें गट्टे का पुलाव

भोर- भाग 2: क्या राजवी को हुआ गलती का एहसास

उस मुलाकात के बाद दोनों ने एकदूसरे को दूसरे दिन जवाब देना तय किया. पर उसी दिन रात में राजवी ने अक्षय को फोन लगाया, ‘‘एक बात का डिस्कशन तो रह गया. क्या शादी के बाद मैं आगे पढ़ाई कर सकती हूं? और क्या मैं आगे जा कर जौब कर सकती हूं? अगर आप को कोई एतराज नहीं तो मेरी ओर से इस रिश्ते को हां है.’’

‘‘ओह. इस में पूछने वाली क्या बात है? मैं मौडर्न खयालात का हूं क्योंकि मौडर्न समाज में पलाबढ़ा हूं. नारी स्वतंत्रता मैं समझता हूं, इसलिए जैसी तुम्हारी मरजी होगी, वैसा तुम कर सकोगी.’’

अक्षय को भी राजवी पसंद आ गई थी, उसे इतनी सुंदर पत्नी मिलेगी, उस की कल्पना ही उस को रोमांचित कर देने के लिए काफी थी. फिर तो जल्दी ही दोनों की शादी हो गई. रिश्तेदारों की उपस्थिति में रजिस्टर्ड मैरिज कर के 4 ही दिनों के बाद अक्षय ने अमेरिका की फ्लाइट पकड़ ली और उस के 2 महीने बाद आंखों में अमेरिका के सपने संजोए और दिल में मनपसंद जिंदगी की कल्पना लिए राजवी ने ससुराल का दरवाजा खटखटाया. ये ऐसे सपने थे जिन्हें हर कुंआरी, महत्त्वाकांक्षी और उत्साही लड़की देखती है. राजवी खुश थी, लेकिन एक हकीकत उसे खटक रही थी. वह इतनी सुंदर और पति था सांवला. जोड़ी कैसे जमेगी उस के साथ उस की? पर रोमांचित कर देने वाली परदेशी धरती ने उसे ज्यादा सोचने का समय ही कहां दिया.

कई दिन दोनों खूब घूमे. शौपिंग, पार्टी जो भी राजवी का मन किया अक्षय ने उसे पूरा किया. फिर शुरू हुई दोनों की रूटीन लाइफ. वैसे भी सपनों की दुनिया में सब कुछ सुंदर सा, मनभावन ही होता है. जिंदगी की हकीकत तो वास्तविकता के धरातल पर आ कर ही पता चलती है. एक दिन अक्षय ने फरमाइश की, ‘‘आज मेरा इंडियन डिश खाने को मन कर रहा है.’’

‘‘इंडियन डिश? यू मीन दालचावल और रोटीसब्जी? इश… मुझे ये सब बनाना नहीं आता. मैं तो अपने घर में भी खाना कभी नहीं बनाती थी. मां बोलती थीं तब भी नहीं. और वैसे भी पूरा दिन रसोई में सिर फोड़ना मेरे बस की बात नहीं. मैं उन लड़कियों में नहीं, जो अपनी जिंदगी, अपनी खुशियां घरेलू कामकाज के जंजालों में फंस कर बरबाद कर देती हैं.’’

चौंक उठा अक्षय. फिर भी संभलते हुए बोला, ‘‘अब मजाक छोड़ो, देखो मैं ये सब्जियां ले कर आया हूं. तुम रसोई में जाओ. तुम्हारी हैल्प करने मैं आता हूं.’’

‘‘तुम्हें ये सब आता है तो प्लीज तुम ही बना लो न… दालसब्जी वगैरह मुझे तो भाती भी नहीं और बनाना भी मुझे आता नहीं. और हां, 2 दिनों के बाद तो मेरी स्टडी शुरू होने वाली है, क्या तुम भूल गए? फिर मुझे टाइम ही कहां मिलेगा इन सब झंझटों के लिए. अच्छा यही रहेगा कि तुम किसी इंडियन लेडी को कुक के तौर पर रख लो.’’

अक्षय का दिमाग सन्न रह गया. राजवी को हर रोज सुबह की चाय बनाने में भी नखरे करती थी और ठीक से कोई नाश्ता भी नहीं बना पाती थी. लेकिन आज तो उस ने हद ही कर दी थी. तो क्या यही है राजवी का असली रूप? लेकिन कुछ भी बोले बिना अक्षय औफिस के लिए निकल गया. पर यह सब तो जैसे शुरुआत ही थी. राजवी के उस नए रंग के साथ जब नया ढंग भी सामने आने लगा अक्षय के तो होश ही उड़ गए. एक दिन राजवी बिलकुल शौर्ट और पतले से कपड़े पहन कर कालेज के लिए निकलने लगी.

अक्षय ने उसे टोकते हुए कहा, ‘‘यह क्या पहना है राजवी? यह तुम्हें शोभा नहीं देता. तुम पढ़ने जा रही हो तो ढंग के कपड़े पहन कर जाओगी तो अच्छा रहेगा…’’

‘‘ये अमेरिका है मिस्टर अक्षय. और फिर तुम ने ही तो कहा था न कि तुम मौडर्न सोच रखते हो, तो फिर ऐसी पुरानी सोच क्यों?’’

‘‘हां कहा था मैं ने पर पराए देश में तुम्हारी सुरक्षा की भी चिंता है मुझे. मौडर्न होने की भी हद होती है, जिसे मैं समझता हूं और चाहता हूं कि तुम भी समझ लो.’’

‘‘मुझे न तो कुछ समझना है और न ही तुम्हारी सोच और चिंता मुझे वाजिब लगती है. और यह मेरी निजी लाइफ है. मैं अभी उतनी बूढ़ी भी नहीं हो गई कि सिर पर पल्लू रख कर व साड़ी लपेट कर रहूं. और बाई द वे तुम्हें भी तो सुंदर पत्नी चाहिए थी न? तो मैं जब सुंदर हूं तो दुनिया को क्यों न दिखाऊं?’’

राजवी के इस क्यों का कोई जवाब नहीं था अक्षय के पास. फिर जैसेजैसे दिन बीतते गए, दोनों के बीच छोटीमोटी बातों पर झगड़े बढ़ते गए. अक्षय को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे? भूल कहां हो रही है और इस स्थिति में क्या हो सकता है, क्योंकि अब पानी सिर के ऊपर शुरू हो चुका था. राजवी ने जो गु्रप बनाया था उस में अमेरिकन युवकों के साथ इंडियन लड़के भी थे. शर्म और मर्यादा की सीमाएं तोड़ कर राजवी उन के साथ कभी फिल्म देखने तो कभी क्लब चली जाती. ज्यादातर वह उन के साथ लंच या डिनर कर के ही घर आती. कई बार तो रात भर वह घर नहीं आती. अक्षय के पूछने पर वह किसी सहेली या प्रोजैक्ट का बहाना बना देती.

अक्षय बहुत दुखी होता, उसे समझाने की कोशिश करता पर राजवी उस के साथ बात करने से भी कतराती. अक्षय को ज्यादा परेशानी तो तब हुई जब राजवी अपने बौयफ्रैंड्स को ले कर घर आने लगी. अक्षय उन के साथ मिक्स होने या उन्हें कंपनी देने की कोशिश करता तो राजवी सब के बीच उस के सांवले रंग और चश्मे को मजाक का विषय बना देती और अपमानित करती रहती. एक दिन इस सब से तंग आ कर अक्षय ने नीतू आंटी को फोन लगाया. उस ने ये सब बातें बताना शुरू ही किया था कि राजवी उस से फोन छीन कर रोने जैसी आवाज में बोलने लगी, ‘‘आंटी, आप ने तो कहा था कि तुम वहां राज करोगी. जैसे चाहोगी रह सकोगी. पर आप का यह भतीजा तो मुझे अपने घर की कुक और नौकरानी बना कर रखना चाहता है. मेरी फ्रीडम उसे रास नहीं आती.’’

अक्षय आश्चर्यचकित रह गया. उस ने तब तय कर लिया कि अब से वह न तो किसी बात के लिए राजवी को रोकेगा, न ही टोकेगा. उस ने राजवी को बोल दिया कि तुम अपनी मरजी से जी सकती हो. अब मैं कुछ नहीं बोलूंगा. पर थोड़े दिनों के बाद अक्षय ने नोटिस किया कि राजवी उस के साथ शारीरिक संबंध भी नहीं बनाना चाहती. उसे अचानक चक्कर भी आ जाता था. चेहरे की चमक पर भी न जाने कौन सा ग्रहण लगने लगा था.

घर के कपड़ों को ऐसे करें रिसाइकल

कपड़े हम सभी के घरों में पहने जाते हैं. आजकल बाजार में भांति भांति के डिजाइन्स के कपड़े उपलब्ध हैं जिन्हें देखकर हम सभी का उन्हें खरीदने का भी मन करने लगता है, और हम बिना यह सोचे विचारे कपड़े खरीद भी लेते हैं कि इन्हें रखा कहां जाएगा. इसीलिए अक्सर कवर्ड तक छोटी पड़ने लगती है और कई बार कहीं जाते समय कुछ ड्रेसेज की मैचिंग ही नहीं मिलती. जब कि मैनेजमेंट विशेषज्ञों के अनुसार आपकी कवर्ड में कोई नया वस्त्र तभी आये जब आप पुराने को अपनी कवर्ड से चलता कर दें. पर पुराने कपड़ों का किया जाए यह आज की सबसे बड़ी समस्या है. आमतौर पर पुराने कपड़े घर के कामगारों को दे दिए जाते हैं अथवा उनसे स्टील के बर्तन खरीद लिए जातें हैं परन्तु आजकल कामगार  अपने मालिकों के दिल रखने को भले ही सामने कुछ न कहें पर घर से बाहर जाकर वे उन कपड़ों को कचरे के ढेर में फेंक देते हैं और कपड़ों के बदले लिए गए बर्तनों की क्वालिटी अच्छी नहीं होती. इसका सबसे अच्छा उपाय है कपड़ों की डिक्लटरिंग करके उन्हें रीसायकल कर लिया जाए अर्थात घर बेकार हुए चादरों और कपड़ों को फिर से उपयोग के योग्य बनाना इससे आपके पुराने कपड़ों को आप थोड़ी सी मेहनत से फिर से यूज कर सकेंगीं साथ ही आपकी कवर्ड  ही व्यवस्थित रहेगी.  आज हम आपको पुराने कपड़ों के ऐसे ही कुछ उपयोग बताने जा रहे हैं-

ऐसे करें डिक्लटरिंग

अपनी कवर्ड को पूरा खाली करके आप उन कपड़ों को छांट लें जिन्हें आप उपयोग में नहीं लातीं हैं. इनमें वे सभी कपड़े शामिल करें जो आपको छोटे हो गए हैं अथवा कट, फट, घिस और बेरंग हो गए हैं. यही प्रक्रिया आप चादरों, साड़ियों और जेंट्स कपड़ों के लिए भी अपनाएं. अनुपयोगी कपड़ों को अलग करने के उपरांत आप उपयोगी कपड़ों को व्यवस्थित रूप से अपनी कवर्ड में रख लें. इस प्रक्रिया से आपकी कवर्ड में नए कपड़ों के लिए काफी स्पेस भी निकल आएगा.

ऐसे करें रीसायकल

-पुरानी साड़ियां, और दुपट्टे

1-साड़ियां और दुपट्टे सीधे सपाट और लम्बाई में होते हैं. यदि इनका फेब्रिक मोटा है या सिल्क का है आप दुपट्टे से  कुर्ता और साड़ी से पूरा सूट बनवा सकतीं हैं.

2-सिंथेटिक साड़ी से आप दो दुपट्टे अथवा पलाजो और दुपट्टा बनवाये और मैचिंग का कुर्ता खरीदकर शानदार सूट तैयार कर लीजिए.

3-दुपट्टे चूंकि सूट की अपेक्षा कम पहने जाते हैं इसलिए ये आमतौर पर नए जैसे ही रहते हैं इनसे आप घर की छोटी बच्चियों की फ्रॉक, स्कर्ट आदि भी बना सकतीं हैं. 4-सिंथेटिक साड़ियों से आप घर के अंदरूनी दरवाजों के पर्दे भी आराम से बना सकतीं हैं. इसी प्रकार पुरानी साड़ियों का उपयोग आप गाउन बनवाने में भी कर सकतीं हैं.

-चादरें और तौलिया

1-घर की पुरानी हो चुकीं चादरों और तौलियों से आप किचिन के कपड़े, घर के बक्सों, अलमारियों के अंदर और फ्रिज आदि पर उनके साइज के अनुसार काटकर बिछाने में कर सकतीं हैं.

2- सिंक और वाशबेसिन के लिए भी आप बड़े  टॉवेल से काटकर छोटे टॉवेल तैयार कर सकतीं हैं.

3-पुराने चादरों से छोटे बच्चों के लिए नैपी और बेड पर बिछाने के लिए गद्दी  भी तैयार कर सकतीं हैं. ये बाजार की अपेक्षा काफी सस्ती और मजबूत रहती है. इसे बनाने के लिए आप चादर से 1-1 मीटर के दो टुकड़े काट लें. 1 मीटर स्पंज को इनके बीच में रखकर सिल दें, किनारों पर पाइपिंग लगाकर प्रयोग करें.

4-आप एक तरफ कपड़ा और दूसरे तरफ प्लास्टिक शीट भी लगा सकतीं हैं.पुरानी तौलियों को फोल्ड करके किनारे से पाइपिंग लगा कर सिंक के पास धुले कांच के बर्तन रखने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है.

-जीन्स और पेंट्स

जीन्स और पेंट्स का फेब्रिक काफी मोटा और मजबूत होता है इन्हें 3/4  काटकर बहुत अच्छे शॉर्ट्स तैयार किये जा सकते हैं. हां काटने के बाद मोहरी पर सिलाई अवश्य लगा दें अन्यथा धागे निकलने प्रारम्भ हो जाएंगे. बचे भाग से आप शानदार बैग्स बना सकतीं हैं.

अन्य उपयोग

-दो तीन रंग के सूती फेब्रिक के कपड़ों से 6-6 इंच के चौकोर टुकड़े काट लें अब इन्हें एक दूसरे के साथ जोड़ते हुए एक नया रंग बिरंगा कच्छ डिजाइन का कपड़ा तैयार कर लें. इसके नीचे पुरानी चादर या दुपट्टे का अस्तर लगाएं. किनारों पर चौड़ी पाइपिंग या लेस लगाएं. इस प्रकार आप डायनिंग टेबल के मैट्स, सोफा और कुशन कवर, दोहर और बेडशीट बड़े आराम से तैयार कर सकतीं हैं.

-यदि कोई दुपट्टा या बेडशीट बहुत सुंदर डिजाइन या रंग की है तो उससे अस्तर लगाकर डायनिंग और सेंट्रल टेबल का रनर बनाएं पूरा बनने के बाद किनारों पर लटकन अवश्य लगाएं.

-पैच वर्क के कुर्ते और बेडशीट के पैच या कढ़ाई को नई चादर या कुर्ते में लगाकर उसे एक नवीन रूप प्रदान करें.

-साड़ी में से बॉर्डर निकालकर नई साड़ी या सूट  में लगाएं और साड़ी में से निकली फॉल का उपयोग पाइपिंग लगाने में करें.

-यदि डबल की चादर का कुछ भाग ही खराब हुआ है तो उस बेकार भाग को निकालकर सिंगल या बेबी बेड की चादर बनाएं.

मजबूरियां- भाग 4: प्रकाश को क्या मिला निशा का प्यार

ज्योति एकाएक फूटफूट कर रो उठी, ‘‘मैं आप को ऐसे घुटघुट कर जीते नहीं देख सकती. आप मेरे दिल में बसे हैं. मैं बदनसीब आप के जीवन में खुशियां भरने के बजाय दुख, चिंता और तनाव भरने का कारण बनती जा रही हूं. मैं ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मेरा प्रेम आप की परेशानी का कारण बन जाएगा. मेरी सम झ में नहीं आता कि मैं क्या करूं?  मैं आप को ऐसे उदास और परेशान नहीं देख सकती.’’

‘‘तुम्हारी आंखों से बहते आंसू देख कर मेरे दिल को बहुत पीड़ा होती है, ज्योति. रोओ मत प्लीज,’’  प्रकाश की बांहों में कैद होने के बावजूद ज्योति का रोना बहुत देर तक बंद नहीं हुआ.

निशा ने प्रकाश का उतरा चेहरा देख कर चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘क्या तबीयत ठीक नहीं है?  इतनी देर कैसे लग गई घर आने में?’’

‘‘तुम सब हत्यारे हो,’’ प्रकाश रुंधे गले से बोला, ‘‘तुम सब ने मेरी ज्योति को आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया- वह आज मु झे अकेला छोड़ कर बहुत दूर चली गई मु झ से.’’

‘‘हमें जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते हैं आप. उस की आत्महत्या के लिए वह खुद जिम्मेदार थी अपने जीवन को उल झाने के लिए. दूसरों के लिए कांटे बोने वाले का अंत सदा ही दुख और पीड़ा से भरा होता है. इसे ही कहते  हैं इंसाफ.’’

‘‘हम सब के मुकाबले वह कहीं ज्यादा नेक और सरल इंसान थी. निशा, मैं ही उस की जिंदगी में न आया होता तो वह आज जिंदा होती. ज्योति, ज्योति, तुम क्यों मु झे अकेला छोड़ कर चली गईं,’’ अपने हाथों में मुंह छिपा कर प्रकाश फूटफूट कर रोने लगा तो निशा पैर पटकती रसोई की तरफ चली गई.

अपनी बेटी के सगाई समारोह की समाप्ति के बाद अकेले में निशा प्रकाश से उल झ पड़ी, ‘‘खुशी के मौके पर आज दिनभर क्यों मुंह लटकाए रहे आप? सब मेहमानों को मु झ पर हंसने का मौका देने में आप को क्या मजा आता है?’’

‘‘मैं ऐसा कोई गलत प्रयास जानबू झ कर नहीं करता, निशा,’’ प्रकाश ने थकेहारे स्वर में जवाब दिया.

‘‘लेकिन आप की उदास सूरत देख कर तो लोग यही अंदाजा लगाते हैं न कि आप अभी तक अपनी मृत प्रेमिका को भूले नहीं हैं. मैं तुम्हें खुश और संतुष्ट नहीं रख सकती, इस कारण वे मु झ पर हंसते हैं.’’

‘‘ज्योति की यादों को भुलाना मेरे वश में होता तो मैं वैसा जरूर करता, निशा. मेरे कारण तुम खुद को परेशान करना छोड़ दो, प्लीज.’’

‘‘आप हंसनामुसकराना फिर से शुरू कर दीजिए,’’ निशा का स्वर कुछ कोमल हो उठा, ‘‘ज्योति की याद में अगर ऐसे उदास और बु झेबु झे रहेंगे तो आप का हाई ब्लडप्रैशर और ज्यादा बिगड़ता चला जाएगा.’’

‘‘अब और ज्यादा जीना नहीं चाहता मैं, मेरी फिक्र न किया करो,’’ प्रकाश का स्वर इतना टूटा और उदासी से भरा था कि निशा को अपना गला भर आया महसूस हुआ.

अपनी बहू के हाथ से पानी का गिलास ले कर निशा ने प्रकाश को पकड़ाया और चिंतित स्वर में बोली, ‘‘अपनी दवा ले लीजिए, आप की घबराहट और बेचैनी जल्दी ही कम  हो जाएगी.’’

दवा खाने के बाद प्रकाश ने गहरी सांस छोड़ कर कहा, ‘‘अब दवा खाखा कर मैं ऊब चुका हूं, निशा. पता नहीं कब इन गोलीकैप्सूलों से छुटकारा मिलेगा.’’

‘‘आप कोशिश करें तो जल्दी ही आप की तबीयत में सुधार होने लगे,’’ निशा की आंखों में अचानक आंसू छलक आए, ‘‘देखिए, अब तो घर में बहू भी आ गई है. मु झ से तो आप जीवनभर नाराज रहे. नहीं की मैं ने आप की सेवा, मैं यह मान लेती हूं, पर अब तो बहू है घर में, उसे सेवा करने दीजिए. उस के कारण हंसाबोला कीजिए. मैं आप की आंखों के सामने आना ही बंद कर दूंगी. पर मैं आप से हाथ जोड़ कर विनती करती हूं कि खुश रहा करिए. ज्योति की मौत के बाद से आप एक बार भी तो सही ढंग से कभी नहीं हंसे.’’

‘‘ज्योति की आत्महत्या ने मेरे अंदर तक तोड़ डाला, कुछ ऐसा महत्त्वपूर्ण सदा के लिए चला गया कि मु झे अपना जीवन नीरस और बेकार लगने लगा है. सच तो यही है कि उसे भी मैं सुख नहीं दे पाया और तुम्हें भी परेशान रखा है आज तक. अब मु झे मौत ही…’’

निशा ने प्रकाश के मुंह पर हाथ रख दिया और फिर रोंआसी आवाज में बोली, ‘‘ऐसी बात मुंह से मत निकालिए. अगर आप को कुछ हो गया, तो मैं खुद को कभी माफ नहीं  कर पाऊंगी.’’

‘‘मेरी बिगड़ी हालत के लिए  तुम खुद को जिम्मेदार मानना बंद कर दो, निशा.’’

‘‘अगर मु झे बहुत पहले यह अंदाजा हो गया होता कि ज्योति से अलग हो कर आप की सेहत इतनी खराब हो जाएगी कि आप जीने की चाह और उत्साह भी खो देंगे तो मैं आप को आजादी दे देती. ज्योति के चले जाने के बाद भी तो आप मु झे नहीं मिल पाए. यों साथसाथ रहने से क्या होता है,’’ कहतेकहते निशा सुबकने लगी थी.

प्रकाश ने निशा का हाथ थपथपा कर बेबस स्वर में कहा, ‘‘मैं ऐसा करती, अगर ऐसा होता… ऐसे वाक्य सोचनेविचारने से कोई फायदा नहीं होता. अपने दिल, अपने अहंकार, अपने स्वार्थ और अपनी कामनाओं के हाथों हम सब मजबूर हैं. ये मजबूरियां हम से जानेअनजाने सबकुछ करा लेती हैं. बाद में पछताने और आंसू बहाने से कुछ नहीं होता.’’

‘‘हमारा जीवन बेहतर गुजर सकता था अगर मैं कुछ सम झदारी से काम लेती,’’ निशा बोली.

‘‘यह बात मु झ पर भी लागू होती है, सभी पर लागू होती है, निशा, लेकिन अतीत तो सदा के लिए हाथ से निकल कर खो जाता है. इस तरह सोच कर खुद को दुखी न करो. अब सोने की कोशिश करो,’’ हाथ बढ़ा कर प्रकाश ने बत्ती बु झा दी, पर उन दोनों की आंखों से नींद बहुत देर तक दूर रही थी.

अस्पताल के आपातकालीन वार्ड के पलंग पर लेटे प्रकाश से निशा ने हौसला बढ़ाते हुए कहा, ‘‘डाक्टर महेश शहर के सब से काबिल हृदय रोग विशेषज्ञ हैं. उन के द्वारा लिखी दवाओं के शुरू होते ही आप जल्दी ठीक होने लगेंगे.’’

‘‘2 बार दिल का दौरा पड़ चुका है मु झे. अब मैं क्या ठीक होऊंगा,’’ प्रकाश के होंठों पर उदास सी मुसकान उभरी.

‘‘उदासी और निराशा का शिकार हो कर आप ने अपने शरीर को घुन लगा लिया. ज्योति को भूल जाने की कभी दिल से कोशिश ही नहीं की आप ने. आप की यही नासम झी आज आप को यहां तक ले आई. कम से कम अब तो…’’ भावावेश का शिकार होने के कारण निशा का गला अचानक रुंध  गया था.

‘‘तुम ठीक ही कह रही हो, निशा. ज्योति ने जिस दिन आत्महत्या की उसी दिन से मेरी जीने की चाह जाती रही. अपनी मौत का साया मु झे अब अपने सिर मंडराता साफ दिख रहा है, पर मेरी मौत के दिन की उलटी गिनती तो ज्योति की मौत के साथ ही शुरू हो गई थी. मेरी नासम िझयों के लिए तुम मु झे माफ कर देना.’’ प्रकाश की आवाज तभी उस के सिर के ऊपर लगी मशीन से निकलने वाले खतरे के अलार्म की आवाज में दब गई थी.

डाक्टर और नर्सों की भीड़ को प्रकाश की तबीयत संभालने के प्रयास में जीजान से लगा देख निशा का चेहरा अपने पति की संभावित मौत की आशंका से पीला पड़ गया और वह बेहद दुखी व कांपती आवाज में बुदबुदा उठी, ‘‘तुम खुशकिस्मत हो, प्रकाश. तुम्हें जीवन के एक मोड़ पर ज्योति का सच्चा प्यार मिला तो सही. मैं बदकिस्मत न तुम्हें प्रेम कर पाई, न तुम्हारा प्यार पा सकी. वक्त रहते न मैं ने खुद को बदला न तुम्हें ज्योति को सौंपने की सम झदारी दिखाई. तुम भी मु झे माफ कर देना.’’

निशा की बात पूरी होने के साथ ही प्रकाश के बीमार दिल ने सदा के लिए धड़कना बंद कर दिया था.

अंतर्व्यथा- भाग 3: कैसी विंडबना में थी वह

इसी कारण उन के मुंह से यह बात निकली. लेकिन मेरा? मेरा क्या? मेरा तो हर तरफ से छिन गया. लग रहा था छाती के अंदर, जो रस या खून से भराभरा रहता है, उस को किसी ने बाहर निकाल कर स्पंज की तरह निचोड़ दिया हो. टीवी के हर चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज में यह खबर प्रसारित हो रही थी. दूसरे दिन अपहरणकर्ता का संभावित स्कैच जारी किया गया. दाढ़ी भरे उस दुबलेपतले चेहरे में भी चमकती उन 2 आंखों को पहचानने में मेरी आंखें धोखा नहीं खा पाईं. मैं ने अनुज को फोन लगाया, उस ने मेरे शक को यकीन में बदला. रहीसही कसर उस के नाम से पूरी हुई- ‘अज्जू भैया’. मैं शरद के मुंह से कई बार यह नाम सुन चुकी थी. ‘बहुत खतरनाक खूंखार इंसान है, इस को किसी तरह पकड़ लिया तो समझो नक्सलियों का खेल खत्म.’ उस ने ही बारूदी सुरंग बिछा कर पैट्रोलिंग पर गए शरद को बंदी बनाया. 2 कौंस्टेबल, 1 ड्राइवर शहीद हुए थे. अनुज आ गया था. नक्सलियों से 2 बार बातचीत असफल रही थी. मुख्यमंत्री की अपील का भी कोई असर नहीं था. अनुज के साथ मिल कर बहुत हिम्मत कर के मैं ने यह निर्णय लिया. मैं ने कलैक्टर साहब से बात की, ‘मुझे वार्त्ता के लिए भेजा जाए,’ पहले तो उन्होंने साफ मना कर दिया, ‘आप? वह भी इस उम्र में, एक खूंखार नक्सली से मिलने जंगल जाएंगी? पता भी है कितनी जानें ले चुका है?

बातचीत में, व्यवहार में, जरा सी चूक से जान जा सकती है.’ मैं फफक पड़ी, ‘ममता की कोई उम्र नहीं होती, सर. भले ही वह खूंखार हो, है तो किसी का बेटा ही, एक मां के आगे जरूर झुकेगा.’ मैं ने रंजनजी को भी जाने से सख्ती से मना कर दिया. अनुज मेरे साथ था. घने सरई, सागवान, पलाश के पेड़ों, बरगद की विशाल लटों से उलझते हुए हमें एक खुली जगह ले जाया गया. आंखें बंधी थीं. अंदाज से समझ में आया कि गंतव्य आ गया है. फुसफुसाहट हो रही थी. रास्ते में 5-6 जगह हमारी जांच की गई थी. यहां फिर जांच हुई और पट्टी खोल दी गई. साफसुथरी जगह में एक झोंपड़ीनुमा घर था. उसी के सामने खटिया पर अजय बैठा था. मामा को देखते ही परिचय की कौंध सी चमकी जो मुझे देखते ही विलुप्त हो गई. कितनी घृणा, कितना आक्रोश था उन नजरों में. कुछ देर की खामोशी के बाद उस ने साथियों को आंखों से जाने का इशारा किया. अब सिर्फ हम 3 थे. वह हमारी तरफ मुखातिब हुआ, ‘ओह, तो वह पुलिस वाला आप का बेटा है, कहिए, क्यों आई हैं? रिश्ते का कौन सा जख्म बचा है जिसे और खरोंचने आई हैं? आप क्या सोचती हैं, मैं उसे छोड़ दूंगा, कभी नहीं. अब तो और नहीं. मुझे जन्म दे कर आप ने जो पाप किया है उस की सजा तो आप को भुगतनी ही होगी.’ अनुज कुछ कहने को आतुर हुआ, उस के पहले ही मैं उस के पैरों पर गिर पड़ी, ‘मुझे सजा दो, गोलियों से भून दो, आजीवन बेडि़यों से जकड़ कर अपने पास रखो लेकिन उसे छोड़ दो, उसे मेरी गलती की सजा मत दो. मैं पापिन हूं, तुम को अधिकार है, तुम अपने सारे कष्टों का, दुखों का बदला मुझ से ले लो. ‘मैं लाचार थी. तुम ने एक गाय देखी है रस्सी में बंधी, जिसे उस का मालिक दूसरे के हाथों में थमा देता है, वह चुपचाप चल देती है दूसरे खूंटे से बंधने.’ ‘नहीं, गाय से मत कीजिए तुलना,’ वह चिल्लाया, ‘गाय तो अपने बच्चे के लिए खूंटा उखाड़ कर भाग आती है. आप तो वह भी नहीं कर पाईं.

एक मासूम को तिलतिल कर जलते देखती रहीं. आप ने एक पाप किया मुझे जन्म दे कर, दूसरा पाप किया मुझे पालपोस कर जिंदा रखने का. यह जिंदगी ही मेरे लिए नरक बन गई. जिस जिंदगी को आप संवार नहीं सकती थीं उस में जान फूंकने का आप को कोई हक नहीं था,’ उस का एकएक शब्द घृणा और तिरस्कार में लिपटा था. मैं गिड़गिड़ाने लगी, ‘मैं कमजोर थी, सचमुच गाय से भी कमजोर. अजय, मेरे बेटे, मैं माफी के भी काबिल नहीं. मैं मरना चाहती हूं, वह भी तुम्हारे हाथों, तभी मुझे शांति मिलेगी. बेटा, मुझे बंधक बना लो लेकिन उसे छोड़ दो, वह तुम्हारा भाई है.’ ‘खबरदार, भाई मत कहना, अगर यह वास्ता दोगी तो अभी जा कर उसे गोलियों से भून दूंगा,’ वह चिल्लाया, पहली बार उस के मुंह से मेरे लिए अनादर सूचक संबोधन निकले थे, ‘वह तुम्हारा बेटा है बस, इतना ही जानता हूं. जानते हैं मामा,’ वह अनुज की तरफ मुड़ कर कह रहा था, ‘नानाजी ने पता नहीं क्या सोच कर 15वीं सालगिरह पर दिनकर की रश्मिरथि मुझे उपहार में दी थी. अकसर मैं जब बहुत उदास होता, उसे खोल कर बैठ जाता. न जाने कितनी रातों की उदासी को मैं ने अपने आंसुओं से धोया है उसे पढ़ते हुए, कुंती-कर्ण संवाद तो मुझे कंठस्थ थे- दुनिया तो उस से सदा सभी कुछ लेगी पर क्या माता भी उसे नहीं कुछ देगी. लेकिन मामा, मैं कर्ण नहीं हूं, मैं कर्ण नहीं बनूंगा.’

लोगों की नजरों में एक क्रूर, हत्यारा अज्जू भैया अभी निर्विरोध मेरे सीने से लग कर फूटफूट कर रो रहा था. रात बीतने को थी, अचानक वह उठा, झोपड़ी के अंदर गया और कोई चीज अनुज को थमाई, फिर थोड़ी देर उसे कुछ समझाता रहा. अनुज पीछे की तरफ पहाड़ी की ओर चला गया. मैं ने निर्णय ले लिया था कि अब अजय को छोड़ कर नहीं जाऊंगी. मुझे किसी की चिंता नहीं थी, किसी का डर नहीं था लेकिन अजय ने मेरी बात सुन कर फिर उसी घृणित भाव से कहा, ‘अब बहुत देर हो गई, यहां किस के साथ किस के भरोसे रहेंगी, शेर, चीता और भालू के भरोसे? क्या आप जानती हैं एसपी को छोड़ने के बाद मेरे साथी मुझे जिंदा छोड़ेंगे? कभी नहीं. उन के हाथों मरने से तो अच्छा है खुद ही…’ बात अचानक बीच में ही छोड़ कर उस ने मेरी आंखों पर पट्टी बांधी और एक जगह ला कर छोड़ दिया फिर बोला, ‘भागिए.’ मैं असमंजस में थी. आगे शरद और अनुज दौड़ रहे थे. मैं भी उन के पीछे हांफते हुए दौड़ने लगी. अनुज ने रुक कर मुझे अपने आगे कर लिया. तभी पीछे से 3-4 राउंड गोली चलने की आवाज आई.

अनुज चिल्लाया, ‘शरद, गोली चलाओ, वे लोग हमारा पीछा कर रहे हैं,’ शरद के पास बंदूक कहां होगी? मैं सोच ही रही थी कि सचमुच शरद पीछे मुड़ कर गोलियां दागने लगा. घबरा कर मैं बेहोश हो गई. सुबह जब मेरी आंखें खुलीं, मैं अस्पताल में थी. तालियों की गड़गड़ाहट सुन कर मैं वर्तमान में लौटी. मेयर साहब शरद को मैडल पहना रहे थे. शरद की इस बड़ी उपलब्धि का सारा खोखलापन नजर आ रहा था. भीतर ही भीतर यह खोखलापन मुझे ही खोखला करता जा रहा था. अजय का अनुज को कुछ दे कर समझाना. शरद के पास बंदूक का होना. अनुज का शरद को गोली चलाने के लिए उकसाना. अचानक मेरे सामने से सारे रहस्य पर से परदा उठ गया. मैं स्तब्ध थी. प्रायश्चित्त का गहरा बवंडर घुमड़ रहा था जो मुझे निगलता जा रहा था. मेरा दम घुटने लगा. सामने टीवी पर अजय की फोटो दिखाई दी. नीचे लिखा था, ‘आतंक का अंत’. फिर मेरी बड़ी सी सुंदर तसवीर दिखाई जाने लगी और शीर्षक था ‘ममता की विजय’. मेरे पुत्रप्रेम और हिम्मत के कसीदे पढ़े जा रहे थे लेकिन मुझे मेरा चेहरा धीरेधीरे विकृत, फिर भयानक होता नजर आया. घबरा कर मैं ने पास रखे पेपरवेट को उठा कर टीवी पर जोर से फेंका और दूसरी ओर लुढ़क गई

अंतर्व्यथा- भाग 1: कैसी विंडबना में थी वह

बंद अंधेरे कमरे में आंखें मूंदे लेटी हुई मैं परिस्थितियों से भागने का असफल प्रयास कर रही थी. शाम के कार्यक्रम में तो जाने से बिलकुल ही मना कर दिया, ‘‘नहीं, अभी मैं तन से, मन से उतनी स्वस्थ नहीं हुई हूं कि वहां जा पाऊं. तुम लोग जाओ,’’ शरद के सिर पर हाथ फेरते हुए मैं ने कहा, ‘‘मेरा आशीर्वाद तो तुम्हारे साथ है ही और हमेशा रहेगा.’’ सचमुच मेरा आशीर्वाद तो था ही उस के साथ वरना सोच कर ही मेरा सर्वांग सिहर उठा. शाम हो गई थी. नर्स ने आ कर कहा, ‘‘माताजी, साहब को जो इनाम मिलेगा न, उसे टीवी पर दिखलाया जा रहा है. मैडम ने कहा है कि आप के कमरे का टीवी औन कर दूं,’’ और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए वह टीवी औन कर के चली गई. शहर के लोकल टीवी चैनल पर शरद के पुरस्कार समारोह का सीधा प्रसारण हो रहा था.

मंच पर शरद शहर के गण्यमान्य लोगों के बीच हंसताखिलखिलाता बैठा था. सुंदर तो वह था ही, पूरी तरह यूनिफौर्म में लैस उस का व्यक्तित्व पद की गरिमा और कर्तव्यपरायणता के तेज से दिपदिप कर रहा था. मंच के पीछे एक बड़े से पोस्टर पर शरद के साथसाथ मेरी भी तसवीर थी. मंच के नीचे पहली पंक्ति में रंजनजी, बहू, बच्चे सब खुशी से चहक रहे थे. लेकिन चाह कर भी मैं वर्तमान के इस सुखद वातावरण का रसास्वादन नहीं कर पा रही थी. मेरी चेतना ने जबरन खींच कर मुझे 35 साल पीछे पीहर के आंगन में पटक दिया. चारों तरफ गहमागहमी, सजता हुआ मंडप, गीत गाती महिलाएं, पीली धोती में इधरउधर भागते बाबूजी, चिल्लातेचिल्लाते बैठे गले से भाभी को हिदायतें देतीं मां और कमरे में सहेलियों के गूंजते ठहाके के बीच मुसकराती अपनेआप पर इठलाती सजीसंवरी मैं. अंतिम बेटी की शादी थी घर की, फिर विनयजी तो मेरी सुंदरता पर रीझ, अपने भैयाभाभी के विरुद्ध जा कर, बिना दानदहेज के यह शादी कर रहे थे. इसी कारण बाबूजी लेनदेन में, स्वागतसत्कार में कोई कोरकसर नहीं छोड़ना चाहते थे.

शादी के बाद 2-4 दिन ससुराल में रह कर मैं विनयजी के साथ ही जबलपुर आ गई. शीघ्र ही घर में नए मेहमान के आने की खबर मायके पहुंच गई. भाभी छेड़तीं भी, ‘बबुनी, कुछ दिन तो मौजमस्ती करती, कितनी हड़बड़ी है मेहमानजी को.’ सचमुच विनयजी को हड़बड़ी ही थी. हमेशा की तरह उस दिन भी सुबह सैर करने निकले, बारिश का मौसम था. बिजली का एक तार खुला गिरा था सड़क पर, पैर पड़ा और क्षणभर में सबकुछ खत्म. मातापिता जिस बेटी को विदा कर के उऋण ही हुए थे उसी बेटी का भार एक अजन्मे शिशु के साथ फिर उन्हीं के सिर पर आ पड़ा. ससुराल में सासससुर थे नहीं. जेठजेठानी वैसे भी इस शादी के खिलाफ थे. क्रियाकर्म के बाद एक तरह से जबरन ही मैं वहां जाने को मजबूर थी. ‘सुंदरता नहीं काल है. यह एक को ग्रस गई, पता नहीं अब किस पर कहर बरसाएगी,’ हर रोज उन की बातों के तीक्ष्ण बाण मेरे क्षतविक्षत हृदय को और विदीर्ण करते. मन तो टूट ही चुका था, शरीर भी एक जीव का भार वहन करने से चुक गया.

7वें महीने ही सवा किलो के अजय का जन्म हुआ. जेठ साफ मुकर गए. 7वें महीने ही बेटा जना है. पता नहीं विनय का है भी या नहीं. एक भाई था वह गया, अब और किसी से मेरा कोई संबंध नहीं. सब यह समझ रहे थे कि हिस्सा न देने का यह एक बहाना है. कोर्टकचहरी करने का न तो किसी को साहस था न ही कोई मुझे अपने कुम्हलाए से सतमासे बच्चे के साथ वहां घृणा के माहौल में भेजना चाहता था. 1 साल तो अजय को स्वस्थ करने में लग गया. फिर मैं ने अपनी पढ़ाई की डिगरियों को खोजखाज कर निकाला. पहले प्राइमरी, बाद में मिडल स्कूल में पढ़ाने लगी. मायका आर्थिक रूप से इतना सुदृढ़ नहीं था कि हम 2 जान बेहिचक आश्रय पा सकें. महीने की पूरी कमाई पिताजी को सौंप देती. वे भी जानबूझ कर पैसा भाइयों के सामने लेते ताकि बेटे यह न समझें कि बेटी भार बन गई है. अपने जेबखर्च के लिए घर पर ही ट्यूशन पढ़ाती. मां की सेवा का असर था कि अजय अब डोलडोल कर चलने लगा था. इसी बीच, मेरे स्कूल के प्राध्यापक थे जिन के बड़े भाई प्यार में धोखा खा कर आजीवन कुंवारे रहने का निश्चय कर जीवन व्यतीत कर रहे थे. छत्तीसगढ़ में एक अच्छे पद पर कार्यरत थे. उन्हें सहयोगी ने मेरी कहानी सुनाई. वे इस कहानी से द्रवित हुए या मेरी सुंदरता पर मोहित हुए, पता नहीं लेकिन आजीवन कुंवारे रहने की उन की तपस्या टूट गई. वे शादी करने को तैयार थे लेकिन अजय को अपनाना नहीं चाहते थे. मैं शादी के लिए ही तैयार नहीं थी, अजय को छोड़ना तो बहुत बड़ी बात थी. मांबाबूजी थक रहे थे. वे असमंजस में थे. वे लोग मेरा भविष्य सुनिश्चित करना चाहते थे.

भाइयों के भरोसे बेटी को नहीं रखना चाहते थे. बहुत सोचसमझ कर उन्होंने मेरी शादी का निर्णय लिया. अजय को उन्होंने कानूनन अपना तीसरा बेटा बनाने का आश्वासन दिया. रंजनजी ने भी मिलनेमिलाने पर कोई पाबंदी नहीं लगाई. इस प्रकार मेरे काफी प्रतिरोध, रोनेचिल्लाने के बावजूद मेरा विवाह रंजनजी के साथ हो गया. मैं ने अपने सारे गहने, विनयजी की मृत्यु के बाद मिले रुपए अजय के नाम कर अपनी ममता का मोल लगाना चाहा. एक आशा थी कि बेटा मांपिताजी के पास है जब चाहूंगी मिलती रहूंगी लेकिन जो चाहो, वह होता कहां है. शुरूशुरू में तो आतीजाती रही 8-10 दिन में ही. चाहती अजय को 8 जन्मों का प्यार दे डालूं. उसे गोद में ले कर दुलारती, रोतीबिलखती, खिलौनों से, उपहारों से उस को लाद देती. वह मासूम भी इस प्यारदुलार से अभिभूत, संबंधों के दांवपेंच से अनजान खुश होता.

बड़े भैया के बच्चों के साथसाथ मुझे बूआ पुकारता. धीरेधीरे मायके आनाजाना कम होता गया. शरद के होने के बाद तो रंजनजी कुछ ज्यादा कठोर हो गए. सख्त हिदायत थी कि अजय के विषय में कभी भी उसे कुछ नहीं बतलाया जाए. मायके में भी मेरे साथ शरद को कभी नहीं छोड़ते. मेरा मायके जाना भी लगभग बंद हो गया था. शायद वह अपने पुत्र को मेरा खंडित वात्सल्य नहीं देना चाहते थे. फोन का जमाना नहीं था. महीने दो महीने में चिट्ठी आती. मां बीमार रहने लगी थीं.

अंतर्व्यथा- भाग 2: कैसी विंडबना में थी वह

मेरे बड़े भैया मुंबई चले गए. छोटे भाई अनुज की भी शादी हो गई और जैसी उम्मीद थी उस की पत्नी सविता को 2 बड़ेबूढ़े और 1 बच्चे का भार कष्ट देने लगा. अंत में अजय को 11 साल की उम्र में ही रांची के बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया. फासले बढ़ते जा रहे थे और संबंध छीजते जा रहे थे. एकएक कर के पापामां दोनों का देहांत हो गया. मां के श्राद्ध में अजय आया था. लंबा, दुबलापतला विनयजी की प्रतिमूर्ति. जी चाहता खींच कर उसे सीने से लगा लूं, खूब प्यार करूं लेकिन अब उसे रिश्तों का तानाबाना समझ में आ चुका था.

वह गुमसुम, उदास और खिंचाखिंचा रहता. पापा के देहांत के बाद उस के प्यारदुलारस्नेह का एकमात्र स्रोत नानी ही थीं, वह सोता भी अब सूख चुका था. अब उसे मेरी जरूरत थी. मैं भी अजय के साथ कुछ दिन रहना चाहती थी. अपने स्नेह, अपनी ममता से उस के जख्म को सहलाना चाहती थी लेकिन रंजनजी के गुस्सैल स्वभाव व जिद के आगे मैं फिर हार गई. शरद को पड़ोस में छोड़ कर आई थी. उस की परीक्षा चल रही थी. जाना भी जरूरी था लेकिन वापस लौट कर एक दर्द की टीस संग लाई थी. इस दर्द का साझेदार भी किसी को बना नहीं पाती. जब शरद को दुलारती अजय का चेहरा दिखता. शरद को हंसता देखती तो अजय का उदास सूखा सा चेहरा आंखों पर आंसुओं की परत बिछा जाता. उस के बाद अजय का आना बहुत कम हो गया. छुट्टियों में भी वह घर नहीं आता.

महीने दो महीने में अनुज, मेरा छोटा भाई ही उस से भेंट कर आता. वह कहता, ‘दीदी, मुझे उस की बातों में एक अजीब सा आक्रोश महसूस होता है, कभी सरकार के विरुद्ध, कभी परिवार के विरुद्ध और कभी समाज के विरुद्ध. ‘इस महीने जब उस से मिलने गया था, वह कह रहा था, मामा, जिस समाज को आप सभ्य कहते हैं न वह एक निहायत ही सड़ी हुई व्यवस्था है. यहां हर इंसान दोगला है. बाहर से अच्छाई का आवरण ओढ़ कर भीतर ही भीतर किसी का हक, किसी की जायदाद, किसी की इज्जत हथियाने में लगा रहता है. मैं इन सब को बेनकाब कर दूंगा. ‘ये आदिवासी लोग भोलेभाले हैं. यही भारत के मूल निवासी हैं और यही सब से ज्यादा उपेक्षित हैं. मैं उन्हें जाग्रत कर रहा हूं अपने अधिकारों के प्रति. अगर मिलता नहीं है तो छीन लो. यह समाज कुछ देने वाला नहीं है. ‘प्रगति के उत्थान के नाम पर भी इन का दोहन ही हो रहा है. इन के साथसाथ जंगल, जो इन का आश्रयदाता है, जिस पर ये लोग आर्थिक रूप से भी निर्भर हैं, उस का व उस में पाई जाने वाली औषधियों, वनोपाज सब का दोहन हो रहा है.

अगर यही हाल रहा तो ये जनजाति ही विलुप्त हो जाएगी. मैं ऐसा होने नहीं दूंगा.’ अचानक एक दिन खबर आई कि अजय लापता है. अनुज ने उसे ढूंढ़ने में जीजान लगा दी. मैं भी एक सप्ताह तक रांची में उस के कमरे में डटी रही. उस के कपड़े, किताबें सहेजती, उस के अंतस की थाह तलाशती रही. दोस्तों ने बतलाया कि उस के लिए घर से जो भी पैसा आता उसे वह गांव वालों में बांट देता. उन्हें पढ़ाता, उन का इलाज करवाता, उन के बच्चों के लिए किताबें, कपड़े, दवा, खिलौने ले कर जाता. उन के साथ गिल्लीडंडा, हौकी खेलता. अपने परिवार से मिली उपेक्षा, मातापिता के प्यार की प्यास ने ही उसे उन आदिवासियों की तरफ आकृष्ट किया. उन भोलेभाले लोगों का निश्छल प्रेम उस के अंदर अपनों के प्रति धधक रहे आक्रोश को शांत करता और इसी कारण उन लोगों के प्रति एक कर्तव्यभावना जाग्रत हुई जो धीरेधीरे नक्सलवाद की तरफ बढ़ती चली गई. अजय का कुछ पता नहीं चला. वहां से लौटने पर पहली बार रंजनजी से जम कर लड़ी थी, ‘आप के कारण मेरा बेटा चला गया. आप को मैं कभी माफ नहीं करूंगी.

क्या मैं सौतेली मां थी कि आप को लगा, अपने दोनों बेटों में भेदभाव करती. रही बात उस के खर्च की तो उस के पास पैसों की कभी कमी नहीं थी. उसे केवल प्यार की दरकार थी, ममता की छांव चाहिए थी, वह भी मैं नहीं दे पाई. मेरा आंचल इतना छोटा नहीं था जिस में केवल एक ही पुत्र का सिर समा सकता था. एक मां का आंचल तो इतना विशाल होता है कि एक या दो क्या, धरती का हर पुत्र आश्रय पा सकता है. आप को आप के किए की सजा अवश्य मिलेगी.’ पता नहीं मेरे भीतर उस वक्त कौन सा शैतान घुस गया था कि मैं अपने पुत्र के लिए अपने ही पति को श्राप दिए जा रही थी. रंजनजी को भी अपनी गलती का पछतावा था. शायद इसी कारण वे मेरी बातें चुपचाप सह गए. दिन, महीने, साल बीत गए, अजय का कुछ पता नहीं चला. इधर, शरद अपनी बुद्धि और पिता के कुशल मार्गदर्शन में कामयाबी की सीढि़यां चढ़ता हुआ आईपीएस में चयनित हो गया. शादी हुई, 2 प्यारे बच्चे हुए. अभी उस की पोस्टिंग बस्तर के इलाके में हुई थी. मैं और रंजनजी दोनों ने विरोध किया, ‘लेदे कर कहीं दूसरी जगह तबादला करवा लो.’ लेकिन उस ने भी उस चैलेंज को स्वीकार किया.

‘मां, बड़े शहर के लोगों का दिल छोटा होता है, न शुद्ध हवा, न पानी, न खाना. यहां तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. इसी वातावरण में तो बड़ा हुआ हूं. मुझे क्यों दिक्कत होगी.’ सचमुच 1 साल के भीतर उस की ख्याति फैल गई. आत्मसमर्पण किए नक्सलियों के लिए ‘अपनालय’ का शुभारंभ किया जिस में मैडिटेशन सैंटर, गोशाला, फलों का बगीचा सबकुछ था उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए. खुद मुख्यमंत्री ने इस का उद्घाटन किया था. प्रदेश में हजारों नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, पकड़े भी गए. शरद का यही सुप्रयास उस की जान का दुश्मन बन गया. उस दिन सुबह 6 बजे ही घर के हर फोन की घंटियां घनघनाने लगीं. फोन उठाते ही रंजनजी चौंक उठे और उन्हें चौंका देख मैं घबरा गई. ‘क्या? कब? कैसे? जंगल में वह क्या करने गया था.’ हर प्रश्न हृदय पर हथौड़े सा प्रहार कर रहा था. ‘क्या हुआ था उस के साथ?’ मेरी आवाज लड़खड़ा गई. ‘तुम्हारी आह लग गई. शरद का अपहरण हो गया,’ वे फूटफूट कर रो रहे थे. बरसों पहले कही बात उन के मन में धंस गई थी. शायद अपनी करनी से वे भयाकांत भी थे. इसी कारण उन के मुंह से यह बात निकली. लेकिन मेरा? मेरा क्या? मेरा तो हर तरफ से छिन गया. लग रहा था छाती के अंदर, जो रस या खून से भराभरा रहता है, उस को किसी ने बाहर निकाल कर स्पंज की तरह निचोड़ दिया हो.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें