कच्चे चावल खाने की आदत से कैसे छुटकारा पाएं?

सवाल-

मैं 44 साल की महिला हूं. 1 साल से एक विचित्र समस्या से परेशान हूं. मैं रोजाना 1 कटोरी कच्चे चावल खाती हूं. इन्हें खाए बिना मुझे चैन नहीं मिलता. मैं ने इस आदत को छोड़ने की बहुत कोशिश की पर लत है कि छूटे नहीं छूट रही है. इस बीच मुझे त्वचा रोग ऐग्जिमा भी हुआ, जो दवा खाने से ठीक हो गया. 2 बार यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन भी हुआ. वह भी दवा लेने से ठीक हो गया. कहीं ऐग्जिमा और यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन कच्चे चावल खाने की लत से तो नहीं हुआ या फिर यह कहीं शरीर में किसी विटामिन की कमी का लक्षण तो नहीं? कृपया बताएं कि कच्चे चावल खाने की अपनी इस आदत से छुटकारा पाने के लिए क्या करूं?

जवाब-

आप जिस समस्या से गुजर रही हैं वह पाइका नामक विकार का ही एक रूप नजर आता है. यह तन से अधिक मन का विकार है, जो वयस्कों में कम बच्चों में अधिक देखा जाता है. गर्भवती स्त्रियों में भी यह विकार देखा जाता है. अकसर इस में मिट्टी, दीवार का चूना, पेंट, लकड़ी का चूरा आदि चीजें खाने की आदत पड़ जाती है. यह तो गनीमत है कि आप की लत कच्चे चावल खाने तक ही सीमित है. यह विकार किन कारणों से जन्म लेता है, यह कोई ठीकठीक नहीं जानता. पर अत्यधिक मानसिक स्ट्रैस, शरीर में विटामिन और खनिज आदि तत्त्वों की कमी, औब्सेसिव कंपल्सिव डिसऔर्डर जैसी कई भिन्नभिन्न स्थितियां इस के लिए दोषी पाई गई हैं. आप के शरीर में किसी विटामिन या खनिज तत्त्व की कमी है, यह सहीसही जानकारी तो डाक्टरी जांच से ही प्राप्त हो सकती है. शारीरिक जांच और विशेष रक्त जांच कर के डाक्टर विटामिन और खनिज तत्त्वों की कमी की पुष्टि का उपाय बता सकता है. अगर समस्या मनोवैज्ञानिक है, तब इस का समाधान किसी योग्य साइकोलौजिस्ट की मदद से किया जा सकता है. बिहेवियर थेरैपी और कुछ दवाएं इस स्थिति में लाभकारी सिद्ध होती हैं.

हां, ऐग्जिमा या यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन से पाइका का कोई संबंध होने की कोई गुंजाइश नहीं है. अत: इस विषय में आप मन में किसी प्रकार की ग्रंथि न पालें. बहुत संभव है कि कुछ समय तक मल्टीविटामिन टैबलेट लेने और अपने मन को समझाने से ही आप इस विकार पर जीत हासिल कर लें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

हो जाने दो- भाग 3: कनिका के साथ क्या हुआ

एक दिन फेसबुक पर सैम की फ्रैंड रिक्वैस्ट देख कर कनिका को बहुत आश्चर्य हुआ. कुछ सोच कर उस ने उसे स्वीकार कर लिया.“थैंक्स फौर ऐक्सेप्टिंग मी ऐज फ्रैंड.” तुरंत ही मैसेंजर पर सैम का मैसेज उभरा. कनिका बिना कोई रिप्लाई दिए औफलाइन हो गई.

“हेलो.”“हाउ आर यू?”“हैव यू स्टार्टेड औफिस?”“कैन वी चैट औन फोन?”“प्लीज, गिव योर मोबाइल नंबर.”दूसरे दिन सुबह सैम के इतने सारे मैसेज देख कर कनिका मुसकराए बिना न रह सकी. उस ने अपना मोबाइल नंबर उसे मैसेज कर दिया.

रात 11 बजे जब सब सो गए, तब कनिका औनलाइन थी.“मे आई कौल यू?” सैम का मैसेज दिखाई दिया.

“ओके,” कनिका ने रिप्लाई करने से पहले मोबाइल को साइलैंट मोड पर कर दिया. मोबाइल घरघराया. अनजान नंबर था. कनिका ने कौल रिसीव की. यह सैम ही था. थोड़ी देर औपचारिक बातें हुई. कनिका को सैम से बात कर के अच्छा लगा. आगे भी टच में रहने की अनुमति लेने के बाद सैम ने फोन रख दिया.

अब हर रोज देररात सैम के फोन आने लगे. कनिका को भी उस के कौल्स का इंतज़ार रहने लगा था. सैम टूटीफूटी हिंदी में उस से पूरे दिन का ब्योरा पूछता और कनिका टूटीफूटी इंग्लिश में उसे बताती. हो सकता है यह बातचीत सैम के लिए उस के शोध का एक हिस्सा मात्र हो, लेकिन कनिका उस से बात कर के बेहद तनावमुक्त महसूस करती थी. अनजान व्यक्ति के सामने खुलना वैसे भी काफी राहत भरा होता है क्योंकि यहां राज के जगजाहिर होने का भय नहीं होता.

“जलज तो अब रहे नहीं. कनिका का यहां अकेले दम घुटता होगा. आप कहें तो हम इसे अपने साथ ले जाएं,” एक दिन बेटी से मिलने आए कनिका के मांपापा ने माधवी से इजाजत मांगी. कनिका भी इस बोझिल माहौल से निकलना चाहती थी.

“अभी तो सबकुछ बिखरा पड़ा है. कुछ दिनों बाद पंकज इसे आप के पास छोड़ आएगा,” माधवी ने कुछ सोचते हुए कहा. कनिका के मांपापा खाली हाथ लौट गए.

“क्यों न कनिका को जलज के नाम की चुनरी ओढ़ा दी जाए… बात घर की घर में ही रह जाएगी,” एक रात माधवी ने पति रमेश से जिक्र किया. रमेश को भी पत्नी की बात में दम लगा.

“लेकिन क्या पंकज और भाईसाहब इस बात के लिए राजी हो जाएंगे? उन के भी तो अपने बेटे की शादी को ले कर कुछ अरमान होंगे. कौन जाने पंकज ने किसी को पसंद ही कर रखा हो,” रमेश ने आशंका जताई.

“मैं कल पंकज से बात कर के देखती हीन,” माधवी ने पति को आश्वस्त किया.“चाची, मैं भाभी को अपनाने के लिए सोच तो सकता हूं लेकिन यह बच्चा? मुझे लगता है कि बच्चे को ले कर आज भावनात्मक आवेश में लिया गया फैसला मेरी आने वाली पूरी जिंदगी के लिए नासूर बन सकता है. यह किसी के भी हित में नहीं होगा, न मेरे न कनिका और ना ही बच्चे के,” पंकज ने व्यावहारिकता भरा अपना मत स्पष्ट किया.

“तो ठीक है न, अभी तो ज्यादा वक्त नहीं हुआ है, मैं किसी डाक्टर से बात कर के इसे अबौर्ट करवाने की व्यवस्था करती हूं,.” माधवी ने कहा. सुनते ही कनिका के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई. अनजाने ही फैमिली मीटिंग में उठे इस मुद्दे पर हो रही बहस उस के कानों में पड़ गई थी.

“सैम, आय एम इन ट्रबल. माय फैमिली हैज डिसाइडेड टू अबौर्ट माय बेबी,” रात में कनिका ने सिसकते हुए सैम को फोन पर बताया.

“ओ माय गौड़, हाउ कैन दे डू दिस? कनिका, माय डियर, आय एम फीलिंग सो हैल्पलैस. बट लिसन, यू शुड गो टू योर मौम. शी मस्ट हैल्प यू,” सैम ने कनिका को अपनी मजबूरी तो बताई लेकिन साथ ही उसे रास्ता भी सुझा दिया. दूसरे दिन कनिका ने अपनी मां को फोन कर के मायके जाने की इच्छा जताई और 2 दिनों बाद ही उस के पापा उसे ससुराल से ले गए.

“वैसे कनिका, तुम्हारी सास और पंकज का फैसला मुझे व्यावहारिक लगता है. अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है. तुम्हें अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए. बच्चे तो और हो जाएंगे. तुम्हें पंकज के फैसले में सहयोग करना चाहिए,” मां ने भी जब कनिका को दुनियादारी समझाने की कोशिश की, तो वह टूट गई.

“प्लीज सैम, जस्ट गाइड मी. व्हाट शुड आई डू नाऊ? आय वांट टू कीप माय चाइल्ड,” रात को कनिका सैम से बातें करते हुए फफक पड़ी.

“वुड यू लाइक टू मैरी मी. आय विल ऐक्सेप्ट दिस बेबी,” सैम ने बिना किसी लागलपेट के कहा तो कनिका चौंक गई.

“आर यू ओके? यू नो व्हाट यू से?” कनिका ने पूछा.“येस, आय नो व्हाट आय सेड,” सैम ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा.“ओके, दैन कम टू मीट माय फैमिली,” कनिका ने उस का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए उसे आमंत्रित किया. अगले ही सप्ताह सैम और महेश कनिका के घर आए.

“तुम पागल हुई हो कनिका, तुम जानती भी हो कि इस फैसले के दूरगामी परिणाम क्या हो सकते हैं. सैम तो आज यहां है, कल अपने देश चला जाएगा. क्या तुम हम से दूर पराए देश में रह पाओगी? कहीं तुम्हारे प्रति सैम का मन बदल गया तो हम तुम्हारी मदद करने की स्थिति में भी नहीं होंगे,” पापा ने उसे समझाया.

“कल किस ने देखा है पापा. क्या हम ने जलज को ले कर कभी यह कल्पना की थी कि हमें यह दिन देखना पड़ेगा. नहीं ना. तो फिर जो हो रहा है उसे हो जाने दीजिए. मुझे अपना बच्चा चाहिए पापा. यह जलज की आखिरी निशानी है,’ कनिका लगभग रो ही पड़ी थी.

पापा निशब्द थे. कमरे में सिर्फ कनिका की सिसकियां गूंज रही थीं. “हम तुम्हारी बेवकूफी में साथ नहीं दे सकते कनिका. जान न पहचान, ऐसे ही कैसे किसी परदेसी के साथ शादी के तुम्हारे फैसले को मान लें? तुम खुद भी सैम को कितना जानती हो? एक बार तो उजड़ चुकी हो, तुम्हें दोबारा उजड़ता हुआ नहीं देख पाएंगे. बेहतर है, तुम पंकज के बारे में ही सोचो. बच्चों का क्या है, और हो जाएंगे,” मां ने भी शब्दों को कठोर करते हुए पापा की हां में हां मिलाई.

बात नहीं बनी. न तो कनिका मम्मीपापा के सामने अपना पक्ष ठीक से रख पाई और न ही भाषा की समस्या के कारण सैम उन का भरोसा जीत सका. महेश की मध्यस्थता भी काम न आई. दोष किसी का भी नहीं कहा जा सकता. बेटी के मांबाप थे, फिक्रमंद होना लाजिमी था. सभी मांबाप शायद ऐसे ही होते होंगे. सैम को निराश ही वापस लौटना पड़ा.

बातें के पांव भले ही न हों लेकिन उन की गति बहुत तीव्र होती है. कनिका और सैम के बारे में जब उस की ससुराल वालों को पता चला तो बहुत बवाल मचा. सास ने तो कुलच्छनी कहते हुए उस के लिए घर के दरवाजे ही बंद कर दिए. कनिका अकेली जरूर हो गई थी लेकिन कमजोर नहीं. उस ने अपनी नौकरी वापस जौइन कर ली. हालांकि, मां अब भी चाहती थीं कि कनिका पंकज से शादी कर के उसी घर में वापस चली जाए. आखिर देखाभाला परिवार है. अनहोनी तो किसी के भी साथ हो सकती है.

इधर कनिका के गर्भ का आकार बढ़ता जा रहा था और उधर उस पर मां का दबाव भी. दबाव था पंकज से शादी करने और बच्चा गिराने का, लेकिन कनिका किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकी. तनाव अधिक बढ़ने लगा, तो उस ने घर छोड़ दिया और वर्किंग वीमेन होस्टल में रहने लगी. सैम का शोधकार्य लगभग पूरा होने को ही था. इस के बाद यदि वह चाहे तो उसे स्थायी तो फिलहाल नहीं पर गेस्ट फैकल्टी के रूप में वहीं यूनिवर्सिटी में ही जौब मिल जाएगी. किसी और को भरोसा हो न हो, कनिका को उस पर पूरा भरोसा था.

प्रसव का समय नजदीक आ रहा था. बच्चे की दादी ने तो उस से नाता तोड़ ही लिया था, नानी भी कनिका के पास नहीं थीं. सैम और महेश ने ही आ कर सारा काम संभाला. कनिका ने बेटी को जन्म दिया. उस नर्म सी बच्ची को गोद में ले कर सैम आश्चर्य से अपनी भूरी आंखें चौड़ी कर रहा था.

‘इज दिस रियली माइन?” सैम ने बच्ची को चूमते हुए कहा.“किस के साथ किस का रिश्ता कब और कैसे बंध जाता है, कोई नहीं जानता. बीज किस ने डाला और फल किस के हाथ लगा. सब संयोग की बातें हैं,” यह सोच कर कनिका मुसकरा दी.

“सैम, कनिका और यह बच्चा, मेरे दोस्त की निशानी हैं. इन्हें हिफाजत से रखना मेरे दोस्त,” महेश ने सैम को गले लगा कर नई जिंदगी की शुभकामनाएं दीं.सैम कुछ समझा, कुछ नहीं समझा लेकिन इतना तो समझ ही गया था कि अब कनिका उस की हो चुकी है. उस ने कनिका को बांहों के घेरे में ले लिया. कनिका ने मुसकरा कर अपना हाथ एक तरफ सैम और दूसरी तरफ बच्ची के इर्दगिर्द लिपटा लिया.

बंद आंखों से खुशी की बूंदें छलकने लगीं.

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जाल: अनस के साथ क्या हुआ था

लल्लन मियां ने बहुत मेहनत से यह गैराज बनाया था और आज उन का यह काम इतना बढ़ गया था कि लल्लन मियां के सभी बेटे भी इसी काम में लग गए थे.

पर आजकल गैराज के काम में भी कंपीटिशन बहुत बढ़ गया था. ग्राहक भी यहांवहां बंट गए थे, जिस के चलते धंधा थोड़ा मंदा हो गया था. इस से लल्लन मियां थोड़ा परेशान भी रहते थे. उन की परेशानी की वजह थी कि उन का मकान अभी पूरी तरह से बन नहीं पाया था.  2 कमरे और एक रसोईघर ही थी.

लल्लन मियां के 3 बेटे थे, जिन में से 2 बेटों की शादी हो चुकी थी और तीसरा बेटा अनस अभी तक कुंआरा था.

दोनों बहुओं का दोनों कमरों पर कब्जा हो गया. अम्मीअब्बू बरामदे में सो जाते और अनस आंगन में.

पता नहीं क्यों, पर जब भी अनस के अब्बू उस से रिश्ते की बात करते, तो वह उन की बात सिरे से ही खारिज कर देता.

‘‘अब अनस से क्या कहूं…? तुम्हीं बताओ अनस की अम्मी कि वह अब  25 बरस का हो चुका है… शादी करने की सही उम्र है और फिर फरजाना जैसी अच्छी लड़की भी तो न मिलेगी… पर यह मानता ही नहीं,’’ लल्लन मियां अनस की अम्मी से मशवरा कर रहे थे.

‘‘अजी, आप इतनी गरमी से बात मत करो… जवान लड़का है… क्या पता, कहीं उस के दिमाग में किसी और लड़की का खयाल बसा हो…? मैं अपने हिसाब से पता लगाती हूं,’’ अनस की अम्मी ने शक जाहिर करते हुए कहा.

जुम्मे वाली रात को अम्मी ने अनस को अपने पास बिठाया और पीठ पर हाथ फेरते हुए कहने लगीं, ‘‘देख अनस, तेरे अब्बू ने बड़ी मेहनत से इस परिवार की खुशियों को संजोया है. यह छोटा सा मकान बनवा कर उन्होंने अपने सपनों में सुनहरे रंग भरे हैं और अब हम दोनों ही यह चाहते हैं कि तेरी शादी अपनी इन आंखों से देख लें.’’

‘‘पर अम्मी, मैं तो अभी निकाह करना ही नहीं चाहता,’’ अनस बोला.

‘‘देख बेटा, हर चीज की एक उम्र होती है और तेरी शादी कर लेने की उम्र हो गई है. हां, अगर कोई लड़की खुद  के लिए पसंद कर रखी हो, तो मुझे बेफिक्र हो कर बता सकता है. मैं किसी से नहीं कहूंगी.’’

‘‘नहीं अम्मी, ऐसी तो कोई बात नहीं है,’’ इतना कह कर अनस चला गया.

अगले दिन ही अनस ने शमा से मुलाकात की.

‘‘सब लोग मेरे पीछे पड़े हैं…  शादी कर लो, शादी कर लो,’’ अनस परेशान हालत में कह रहा था.

‘‘तो कर लो शादी… इस में हर्ज ही क्या है?’’ शमा ने हंसते हुए कहा.

‘‘तुम अच्छी तरह से जानती हो शमा कि अब्बू ने बड़ी मुश्किल से 2 कमरे का मकान बनवाया है. उन दोनों कमरों में दोनों बड़े भाई रह रहे हैं. अब तुम ही बताओ कि मैं शादी कर के भला क्या तुम्हें आंगन में बिठा दूं…’’ अनस काफी गुस्से में था.

‘‘अब तो ऐसे में हमारे सामने सिर्फ 2 ही रास्ते हैं… पहला रास्ता यह है कि हम शादी कर लें और उसी घर में जैसेतैसे गुजारा करें. दूसरा रास्ता यह है कि हमतुम पैसे जमा करें और जो छोटीमोटी रकम जमा हो सके, उस  से एक छोटा सा कमरा बनवा लें,’’ शमा ने कहा.

दरअसल, अनस ने अपनी जिंदगी में एक वह समय भी देखा था, जब अब्बू ने प्लाट खरीदने के बाद दीवारें तो खड़ी कर ली थीं, पर पैसों की तंगी के चलते कमरे बनवा पाना उन के बस में नहीं रह गया था.

इस से अनस के दोनों बड़े भाइयों कमर और जफर को दिक्कत हुई, क्योंकि दोनों शादीशुदा थे और दिनभर के काम के बाद अपनी बीवियों के साथ रात गुजारें भी तो कैसे?

हालात कुछ ऐसे बने कि दोनों भाइयों की चारपाई अलग और उन की बीवियों की चारपाई अलग पड़ने लगी.

पर भला ऐसा कब तक चलता? उन सभी की जिस्मानी जरूरत उन लोगों को एकसाथ रात गुजारने को कहती थी, पर हालात के चलते ऐसा हो पाना मुमकिन नहीं लग रहा था.

अपनी जिस्मानी जरूरत और रात गुजारने की मुहिम की शुरुआत करने में पहला कदम बड़े भाई कमर ने उठाया. बड़े ही करीने से कमर ने अपनी चारपाई को दीवार से सटा कर डाल दिया और उस के ऊपर आड़ेतिरछे बांस अड़ा कर एक खाका बनाया और उस के ऊपर से एक बेहतरीन टाट का परदा डाल दिया. अब यह जगह ही कमर और बीवी का ड्राइंगरूम थी और यही जगह उन का बैडरूम भी.

छोटे भाई जफर को यह सब थोड़ा अजीब भले ही लगा हो, पर उस ने कभी हावभाव से कुछ जाहिर नहीं होने दिया. अलबत्ता, कुछ दिनों के बाद उस ने भी दूसरी दीवार के पास अपनी चारपाई डाल कर उसे भी टाट से कवर कर के अपना बैडरूम बना लिया.

कमर और जफर और उन की बीवियां तो अब टाट के परदे के अंदर सोते और बाकी सब लोग आंगन में,

अनस के दोनों बड़े भाई बेफिक्री से रात में अपनी शादीशुदा जिंदगी का मजा लूटते, पर उन लोगों की चारपाई की चूंचूं की आवाज अनस की नींद खराब करने को काफी होती. भाभियों की खनकती चूडि़यां अनस को बिना कुछ देखे ही टाट के अंदर का सीन दिखा जातीं.

कुंआरा अनस आंगन में लेटेलेटे ही बेचैन हो उठता. कुछ समय तक एक खास अंदाज में चारपाई की चूंचूं होती और उस के बाद एक खामोशी छा जाती. कहने को तो हर काम परदे में हो रहा था, पर हर चीज बेपरदा हो रही थी.

अगर किसी रात में कमर की चारपाई पर खामोशी रहती, तो जफर की चारपाई पर आवाजें शुरू हो जातीं. अनस अकसर सोचता कि भला ये आवाजें अम्मीअब्बू को सुनाई नहीं देती होंगी क्या? क्या वे लोग जानबूझ कर इन आवाजों को अनसुना कर देते हैं?

रात में होने वाली इन आवाजों से अनस परेशान हो जाता. उस के भी कुंआरे मन में कई उमंगें जोर मारने लगतीं और वह कभीकभार तो अपने बिस्तर पर ही उठ कर बैठ जाता और जब सुबह के समय गैराज में नींद न पूरी होने के चलते काम में उस का मन नहीं लगता, तब अब्बू और उस के बड़े भाई उसे डांटते.

ये सारी परेशानियां कम जगह और पैसे की तंगी के चलते ही तो थीं. अनस हमेशा ही एक अलादीन के चिराग की खोज में रहता, जिस से उस की सारी माली तंगी दूर हो जाती.

हालांकि वक्त हमेशा एकजैसा नहीं रहता. कमर और जफर ने खूब मेहनत कर के पैसा इकट्ठा किया और छोटेछोटे 2 कमरे बनवा लिए, जिन्हें दोनों शादीशुदा भाइयों ने आपस में बांट लिया.

पर, अनस और अम्मीअब्बू के लिए अब भी कमरा नहीं था. वे सब अब भी बाहर बरामदे में ही सोते थे.

पैसे और जगह की तंगी के चलते ही अनस ने अपने मन में यह फैसला ले लिया था कि जब तक घर में रहने के लिए एक कमरा नहीं बनवा लेगा, तब तक वह शादी के लिए हामी नहीं भरेगा और इसीलिए अनस ने अब तक शादी के लिए हामी नहीं भरी थी.

उस दिन पता नहीं क्यों शमा फोन पर बहुत घबराई हुई थी, ‘हां अनस… आज ही तुम से मिलना जरूरी है… बताओ, कहां और कितनी देर में मिल सकोगे?’

‘‘हां… मिल तो लूंगा… पर सब खैरियत तो है?’’

पर उस की इस बात का शमा ने कोई जवाब नहीं दिया. फोन काटा जा चुका था.

दोपहर को 2 बजे शमा और अनस उसी पार्क में एकसाथ थे, जहां वे अकसर मिला करते थे.

‘‘अब्बू मेरा निकाह कहीं और करने जा रहे हैं… अगर मुझ से निकाह  नहीं करना है तो कोई बात नहीं,’’ शमा ने कहा.

‘‘अरे, ऐसी कोई बात नहीं है. पर जब तक मैं अपने घर में एक कमरा न बनवा लूंगा, तब तक कैसे निकाह कर लूं, तुम्हीं बताओ?’’ अनस ने अपनी परेशानी जाहिर की.

‘‘हां… मैं तुम्हारे घर की परेशानी समझती हूं, पर एक कमरा न सही तो क्या हुआ, जहां दिलों में गुंजाइश होती है वहां सबकुछ हो जाता है… और फिर मेरे हाथों में भी हुनर है. शादी के बाद मैं भी कशीदाकारी का काम करूंगी और हम दोनों मिल कर पैसे कमाएंगे तो हम एक कमरा बहुत जल्दी ही बनवा लेंगे,’’ शमा ने राह सुझाई.

अनस बेचारा दोराहे पर फंस गया था. अगर वह शमा से निकाह करता है, तो उस के घर में कमरे की परेशानी है. और अगर यह बात सोच कर वह शादी नहीं करता है, तो शमा ही उस की जिंदगी से चली जाएगी… क्या करे और क्या न करे?

इसी ऊहापोह में अनस गैराज में आ कर काम करने लगा, पर उस का मन काम में न लगता था. बारबार उस की आंखों के सामने शमा का चेहरा घूम जाता था और वह खुद को एक हारा हुआ खिलाड़ी महसूस करने लगता था.

एक दिन जब अनस को और कोई रास्ता नहीं सूझा, तो उस ने अपनी और शमा की मुहब्बत के बारे में अम्मी को सबकुछ बता दिया.

अम्मी को अनस की यह साफगोई पसंद आई और उन्होंने भी अब्बू से बात कर के शमा के घर पैगाम भिजवा दिया.

शमा के घर वाले भी सुलझे हुए लोग थे. उन्होंने भी रिश्ता पक्का करने में कोई देरी नहीं की और अनस का निकाह शमा के साथ कर दिया गया.

घर के दोनों कमरों में बड़े भाईभाभियों का कब्जा था. लिहाजा, अपनी शादी की पहली रात में अनस को भी एक दीवार का ही सहारा लेना पड़ा. उस ने अपनी चारपाई एक दीवार के सहारे लगा कर उस पर एक सुनहरे रंग का परदा लगा दिया.

‘‘नई दुलहन के लिए कोई भाभी अपना कमरा 2-4 दिन के लिए खाली नहीं कर सकती थी क्या? पर नहीं… यहां तो बूढ़ों के भी रंगीन ख्वाब हैं,’’ भनभना रहा था अनस.

पूरी रात अनस ने शमा को हाथ भी नहीं लगाया, क्योंकि वह चारपाई से निकलने वाली आवाजों से अनजान न था. अपने मन को कड़ा किए वह चारपाई के एक कोने में बैठा रहा, जबकि शमा दूसरी तरफ. 2 दिल कितने पास थे, पर उन के जिस्म एकदूसरे से कितनी दूर.

अगले दिन से ही अनस को पैसे कमाने की धुन लग गई थी. वह जल्दी से जल्दी पैसे कमा कर अपने और शमा के लिए एक कमरा बनवा लेना चाहता था, इसीलिए गैराज में 12-12 घंटे काम करने लगा था.

एक दिन की बात है, अनस जब गैराज में काम कर रहा था, तभी एक बड़े आदमी की गाड़ी वहां आ कर रुकी. उस गाड़ी के एयरकंडीशनर की गैस निकल जाने के चलते एयरकंडीशनर नहीं चल रहा था और उस में बैठा हुआ आदमी बेहाल हुआ जा रहा था.

अनस ने उस की परेशानी समझी और फटाफट काम में लग गया. तकरीबन आधा घंटे में उस की गाड़ी का एयरकंडीशनर ठीक कर दिया.

‘‘बड़े मेहनती लगते हो… मुझे मेरे काम में भी तुम्हारे जैसे जवान और मेहनती लोगों की जरूरत रहती है… अगर तुम चाहो, तो मेरे साथ जुड़ सकते हो. मैं तुम्हें तुम्हारे काम की अच्छी कीमत दूंगा.’’

‘‘पर, मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘एक गाड़ी वाले से गाड़ी का ही काम तो लूंगा न… उस की चिंता मत करो… अगर मन करे, तो मेरे इस पते  पर आ जाना,’’ इतना कह कर वह सेठ चला गया.

यह एजाज खान का कार्ड था, जो दवाओं का होलसेलर था.

अनस पैसे के लिए परेशान तो था ही, इसलिए एक दिन एजाज खान के पते पर जा पहुंचा और काम मांगा.

‘‘ठीक है, तुम्हें काम मिलेगा… पर, मैं तुम से कुछ छिपाऊंगा नहीं. मुझे तुम्हारे जैसे तेज ड्राइवर की जरूरत है, जो रात में ही इस गाड़ी को शहर के बाहर ले जा सके और सुबह होने से पहले वापस भी आ सके.’’

शहर के बाहर वाले पैट्रोल पंप पर एक आदमी तुम्हारे पास आएगा, जिसे तुम्हें ये दोनों डब्बे देने होंगे और वापस यहीं आना होगा.’’

‘‘पर, इन डब्बों में क्या है?’’

‘‘इन डब्बों में ड्रग्स हैं… मैं ड्रग्स का काम करता हूं और इस के शौकीन लोगों को इस की डिलीवरी करवाना मेरी जिम्मेदारी है.’’

अनस अच्छी तरह समझ गया था कि एजाज खान उस से गैरकानूनी काम कराना चाहता?है, पर अपनी शादीशुदा जिंदगी में रंग घोलने के लिए अनस को भी पैसे की जरूरत थी.

अनस को यह काम करने में थोड़ी हिचक तो हुई, पर उस ने इसे करना मंजूर कर लिया. उस ने एजाज खान की गाड़ी शहर से बाहर ले जा कर पैट्रोल पंप पर खड़ी कर के वे डब्बे एक शख्स को दे दिए और वापस आ गया.

एजाज खान ने उसे इस जरा से काम के 25,000 रुपए दिए, तो अनस बहुत खुश हुआ.

‘‘बस शमा… अब देर नहीं है… ये देखो 25,000 रुपए… मुझे एक नया काम मिल गया?है, जिस के जरीए मैं खूब सारे पैसे कमा लूंगा और फिर अपना एक अलग कमरा होगा, जिस में हम दोनों खूब प्यार कर सकेंगे,’’ घर आ कर अनस ने शमा के हाथ को हलके से दबाते हुए कहा. यह सुन कर एक अच्छे भविष्य की कल्पना से शमा की आंखें भी छलछला आईं. 2 दिन बाद अनस के मोबाइल  पर एजाज खान का फोन आया, जिस  में उस ने एक बार और गाड़ी से दवा  की डिलीवरी करने के लिए अनस  को बुलाया.

हालांकि इस बार दवाओं के डब्बों की मात्रा ज्यादा थी, लेकिन पिछली बार की तरह अनस इस बार भी आराम से दवाएं डिलीवर कर आया था और इस के बदले में एजाज खान ने उसे 40,000 रुपए दिए.

अनस से ज्यादा खुश आज कोई नहीं था. वह पैसे ले कर सीधा बाजार पहुंचा और वहां से एक मिस्त्री की सलाह से ईंट, सीमेंट और मौरंग का और्डर कर दिया. वह जल्द से जल्द अपना कमरा बनवा लेना चाहता था.

अनस बिस्तर पर लेटा हुआ था. उस के नथुने में सीमेंट और मौरंग की महक रचबस जाती थी. वह सोच रहा था कि जिंदगी में सारी तकलीफें पैसे की कमी से आती?हैं, पर आज अनस के पास पैसा भी था और मन ही मन में ये सुकून भी था कि अब उसे और शमा को टाट के साए में नहीं सोना पड़ेगा.

रात के 11 बजे होंगे कि अचानक अनस का मोबाइल बजा, उधर से  एजाज खान बोल रहा था, ‘तुम अभी  मेरे पास चले आओ और एक गाड़ी दवा की ले कर तुम्हें शहर के बाहर जाना  है. वहां पर एक आदमी तुम से माल  ले लेगा.’

‘‘पर, अभी तो आधी रात हो रही है. और फिर मैं सोया भी नहीं हूं… मैं कैसे जा सकता हूं.’’

‘ज्यादा चूंचपड़ मत करो और चले आओ… पिछली बार से दोगुना दाम दूंगा… और वैसे भी हमारे धंधे में आने का रास्ता तो है, पर जाने का कोई रास्ता नहीं,’

कह कर एजाज खान ने फोन  काट दिया.

‘‘इतनी रात गए जाना पड़ेगा…?’’ शमा ने पूछना चाहा.

‘‘बस मैं यों गया और यों आया.’’

एजाज खान से गाड़ी ले कर अनस चल पड़ा. हाईवे पर उस की कार तेजी से भागी जा रही थी. अचानक अनस चौंक पड़ा था. सामने पुलिस की

2 जीपें रोड के बीचोंबीच खड़ी थीं. न चाह कर भी अनस को अपनी कार रोकनी पड़ी.

‘‘हमें तुम्हारी गाड़ी चैक करनी है… पीछे का दरवाजा खोलो,’’ एक पुलिस वाले ने कहा.

अनस के माथे पर पसीना आ गया, ‘‘पीछे कुछ नहीं है सर… दवाओं के डब्बे हैं. बस इन्हें ही पहुंचाने जा रहा हूं,’’ अनस ने कहा.

‘‘हां तो ठीक है… जरा हम भी तो देखें कि कौन सी दवाएं हैं, जिन्हें तू इतनी रात को ले जा रहा हैं,’’ पुलिस वाला बोला.

अनस को अब भी उम्मीद थी कि वह बच जाएगा, पर शायद ऐसा नहीं था. पुलिस ने दवा के डब्बे में छिपी हुई चरस बरामद कर ली थी. अनस को गिरफ्तार कर लिया गया.

अनस के हाथपैर फूल गए थे.

अगले दिन खुद पुलिस वालों ने अनस के मोबाइल से उस के घर वालों को सारी सूचना दी. शमा यह खबर सुन कर बेहोश हो गई.

अब अनस को किसी कमरे की जरूरत नहीं थी. उस की बाकी की जिंदगी के लिए तो जेल का ही कमरा काफी था, क्योंकि ड्रग्स के जाल में वह फंस चुका था.

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एक दिन के दोस्त: क्या बरकरार रह पाई पति पत्नी की दोस्ती

“बच्चे नहीं दिख रहे इला? कहां गए हैं?”

“दोस्तों के साथ डिनर पर गए हैं.”

“तुम उदास सी लग रही हो. क्या बात है?”

“कुछ नहीं, सुवीर. यहां तो मेरे कोई दोस्त ही नहीं बचे. या तो सब बाहर बस गए हैं या सब दूरदूर ही हैं. फोन पर भी कोई कितना बात करे,” मैं ने एक ठंडी सी सांस लेते हुए कहा.

सुवीर ने जैसे पति धर्म निभाते हुए मुझे तसल्ली दी, “अरे, ऐसा क्यों कहती हो? चलो, बताओ, कहां जाना है?”

“तुम तो पति हो, मेरे दोस्त थोड़े ही हो.”

“अरे डार्लिंग, ऐसा क्यों सोच रही हो? पतिपत्नी भी अच्छे दोस्त हो सकते हैं.”

“नहीं, मुझे नहीं लगता.”

“अच्छा, बताओ तो ज़रा. पतिपत्नी एकदूसरे के दोस्त क्यों नहीं हो सकते? इतनी अच्छी तरह से एकदूसरे को जानने वाले, रोज साथ में रहने वाले दो लोग दोस्त क्यों नहीं हो सकते?”

“दोस्तों से तो हम अपने मन की बातें आराम से कर सकते हैं.”

“अरे, तो क्या तुम अपने मन की बातें मुझ से नहीं करतीं?”

मैं चुप रही. यह शनिवार की शाम की बात है. सुवीर शायद आज कुछ ज़्यादा ही फ्री थे, पर इतनी बात क्यों कर रहे हैं मुझ से? मैं ने इधरउधर नजर डाली, उन के हाथ देखे, समझ आया, फोन चार्जिंग में लगा कर आए हैं, अब टाइम पास कर रहे हैं. कितने चालाक हैं. फोन हाथ में होता है तो किसी और  बात में ज़नाब का मन नहीं लगता. हर समय सोशल मीडिया पर रहने वाले इनसान हैं.

सुवीर अचानक मेरे पास आ कर बैठ गए और मेरी गोद में सिर रख कर लेट गए. बच्चों के घर में न होने का फायदा उठाने के मूड में आए ही थे कि मैं ने फिर पूछ लिया, शायद मेरी मति मारी गई थी, “सचमुच तुम्हें लगता है कि पतिपत्नी अच्छे दोस्त हो सकते हैं? कल संडे है, हम कल एकदूसरे के साथ पूरा दिन ऐसे रह कर देखें जैसे अपने दोस्तों के साथ रहते हैं? एक दिन के दोस्त बन कर देखें?”

“हां, मेरी जान. हम अच्छे दोस्त हैं ही, बन कर क्या देखना. फिर भी तुम कहती हो तो कल सिर्फ दोस्त बन कर रहेंगे, एक गेम खेल ही लेते हैं, मजा आएगा, फिलहाल तो पति बनने का मन कर रहा है,” शरारत से हंसते हुए वह मेरा हाथ पकड़ कर बेडरूम में ले गए. मैं तो यों ही छोटीछोटी बातों में एक्ससाइटेड हो ही जाती हूं, बस अब आने वाले कल की कल्पना में डूबी जोश से भर उठी.

बच्चे विवान और आर्या रात को आए तो मैं ने उन्हें बड़े उत्साह से अपना संडे का प्रोग्राम बताते हुए कहा, “कल बहुत मजा आएगा. हम दोनों कल दोस्तों की तरह रहने वाले हैं, जो मन होगा, वो बात करेंगे.”

विवान और आर्या ने एकदूसरे पर जैसे नजर डाली, मैं भड़क गई, “मजाक उड़ाने वाली क्या बात है?”

”पर मौम, हम ने तो कुछ भी नहीं कहा,” विवान ने अपनी हंसी रोकते हुए कहा.

“हां, जैसे मैं जानती नहीं दोनों को. हुंह,” कहते हुए मैं सोने की तैयारी करने लगी, तो आर्या की शरारत भरी आवाज आई, “आल द बेस्ट, मौम एंड डैड.”

विवान ने धीरे से आर्या से कहा, “बहन, क्या तुम कल के एंटरटेनमेंट के लिए तैयार हो? मौमडैड कल बहुत ड्रामा करने वाले हैं न? कोई बहाना कर के हम सुबह ही निकल लें दोस्तों के साथ?”

“नहीं भाई, ड्रामा होगा तो देखने वाले भी होने चाहिए न?”

मुझे उन की बातें साफसाफ सुनाई दे रही थीं, हद से ज्यादा उस्ताद बच्चे हैं, वे भी जान रहे थे कि मुझे सुनाई दे रहा होगा.

सुबह फ्रेश होने के बाद सुवीर ने कहा, “डार्लिंग, एक कप बढ़िया सी चाय तो पिला दो.”

मैं ने कहा, “हां, बना रही हूं, याद है न. आज हम दोस्त हैं. बीवी समझ कर ज्यादा फरमाइश न करना.”

सुवीर हंस पड़े, पूछा, “नाश्ते में क्या बनाओगी?”

“सैंडविच.”

“ठीक है.”

हम दोनों ने चाय हलकेफुलके मूड में ही पी, छुट्टी वाले दिन बच्चे थोड़ा लेट ही उठते हैं. वे दोनों सीधा लंच ही करते हैं, जब तक मेड आ कर काम निबटा कर गई, मैं रोज के कामों से थोड़ा फ्री हो कर सुस्ताने लगी, सुवीर आ कर पास ही बैठ गए, उन के हाथ में फोन था, वे मुसकरा रहे थे. मैं ने पूछ लिया, “क्यों हंस रहे हो?”

“अपने कलीग अजय की बात पर.”

“मुझे भी सुनाओ.”

“नहीं, रहने दो.”

सुवीर जिस तरह से फोन में आंखें गड़ाए मुसकरा रहे थे, मुझे उन की यह हंसी हजम नहीं हुई, इतनी आसानी से तो नहीं हंसते हैं. क्या बात है.

“बताओ न, सुवीर. आज तो हम दोस्त हैं न. दोस्तों से क्या परदा.”

“पक्का? आज दोस्त बन कर ही सुनोगी न? नाराज तो नहीं  होगी?”

“नहीं बाबा, बताओ न.”

“अरे, ये अजय है न, बहुत शैतान है, औफिस में जो नई प्रोडक्ट मैनेजर रोमा आई है न, कुछ ज्यादा ही स्टाइलिश है. उसी पर हंस रहा है.”

मेरे अंदर की पत्नी ऐसे जागी कि पूछिए मत… फिर याद आया कि आज दोस्त हैं, मैं ने नकली हंसी से पूछा, “वाह, बढ़िया है, खूब मन लग रहा होगा आजकल औफिस में.”

सुवीर फंस गए मेरी ऐक्टिंग में. बेचारे मर्द. चहक कर बोले, “हां यार, अच्छा टाइम पास होता है आजकल. और ये रोमा मुझे कुछ फ्लर्ट भी लग रही है. लड़कियों के पास कम, हमीं लोगों के आसपास ज्यादा मंडराती रहती है. ऐसेऐसे कपड़े पहन कर आती है कि हमारी ही आंखें झुक जाएं.”

मेरा मन हुआ, अभी रोमा को ढूंढ़ निकालूं और उस के बाल नोच लूं. औफिस में काम करने आती है या इन शादीशुदा मूर्ख मर्दों के साथ फ्लर्ट करने.

वैसे तो हर नारी में एक अभिनेत्री होती है, पर मुझे अभी ही पता चला कि मैं कितनी अच्छी ऐक्टिंग कर सकती हूं, बहुत ही प्यारी स्माइल के साथ कहा, “अच्छा? तुम्हें वो कैसी लगती है?”

सुवीर चहक उठे, “ये तो अच्छा है कि आज दोस्त बन कर पूछ रही हो, नहीं तो इस सवाल का जवाब बहुत मुश्किल था, पति बन कर तो मैं जवाब देता ही न. यार, बहुत हौट है वह.”

मेरा मन किया, सुवीर को बेड से नीचे गिरा दूं, पर चुप रह गई. वे बीचबीच में फोन देख रहे थे, मैं ने पूछा, “किस से चैट कर रहे हो? अब भी अजय से ?”

“हां यार, कह रहा है कि आज छुट्टी है, रोमा को नहीं देख पाए,” कह कर सुवीर जोर से हंसे. मैं ने अपनेआप को कोसा कि काश, मैं अभी ये दोस्तदोस्त न खेल रही होती तो अच्छे से बताती, इन्हें भी और अजय की वाइफ को भी.

मैं उठ कर जाने लगी, तो सुवीर बोले, “अरे, कहां चली?”

“नाश्ता बनाने.”

नहीं बनाए मैं ने सुवीर की पसंद के सैंडविच. नहीं की उन के लिए मेहनत. जाएं और बनवाएं उस हौट रोमा से. दूध में मयूसली डाली, सुवीर को मयूसली पसंद नहीं है न, इसलिए आज इस समय वही खिलाने का मन कर आया.

दूध का बाउल देख कर सुवीर का मुंह उतर गया, “अरे, तुम तो सैंडविच बनाने वाली थी न.”

“हां यार, मूड नहीं रहा. शार्टकट का मूड हो गया.”

उतरे मुंह से सुवीर ने नाश्ता खत्म किया. मैं भी रोजमर्रा के कामों में व्यस्त हो गई, पर दिल ही दिल में रोमा को गालियां  दे रही थी. रोमा की बच्ची. शर्म नहीं आती तुम्हें. देखो, इन पतियों को. छुट्टी वाले दिन भी तुम याद आ रही हो. और यह अजय… कितना सीधा लगता है. मिलने पर अपनी पत्नी के आगेपीछे घूमता रहता है. हाय, कैसे होते हैं ये लोग. जब इस समय उस की पत्नी घर के काम कर रही होगी, वह नालायक सुवीर से रोमा पर जोक मार रहा है.

“और सुवीर, हौट कहा है रोमा को इस ने. नहीं बनाऊंगी लंच में भी कुछ. अच्छा, आराम से नेटफ्लिक्स पर ‘फेमगेम’ देखूंगी.

इतने में सुवीर मेरा हाथ पकड़ कर वापस बैडरूम में ले गए और बोले, “काम बाद में करती रहना. आज छुट्टी है. बच्चे  भी सो रहे हैं. आओ न, बैठो मेरे पास.”

मैं ने पूछा, “तुम्हारा फोन कहां है? हो गई गप्पें?”

वे हंस दिए, कहा, “आज हलकाहलका लग रहा है न. थोड़ा चेंज लग रहा है न दोस्त बन कर? नहीं तो तुम सुबह ही चिढ़ना शुरू हो जाती थी.”

“मैं चिढ़ना शुरू करती थी?”

“छोड़ो न. तुम्हें बताना भूल गया कि अगले हफ्ते मीना यहां लखनऊ हमारे घर  आने वाली है.”

मुझे जैसे करंट लगा, “क्यों…?”

“अरे, उस का भाई हूं, मेरी बहन जब चाहे यहां आ सकती है.”

“फैमिली के साथ?”

“हां, जतिन को कुछ काम है, बच्चों को अपने सासससुर के पास छोड़ कर आ रही है.”

“अच्छा, जतिन भी आ रहा है?”

“हां.”

“बढ़िया, ”मैं ने खुश होते हुए कहा, “तुम्हें पता है कि मैं आजकल फेमगेम देख रही हूं न, जतिन बिलकुल मानव कौल लगता है. मानव कौल मुझे बहुत ही अच्छा  लग रहा है. जब भी स्क्रीन पर मानव कौल आता है, मुझे जतिन का ध्यान आता है, हाय, इस शो में  तो मानव कौल ने मेरा दिल जीत लिया. वैसे, क्या जतिन अब भी फिटनेस पर उतना ध्यान देता है? अब भी उस के सिक्स पैक एब्स हैं?”

एक चिढ़ी सी आवाज आई, “मुझे क्या पता? मैं ने कभी उस की फिटनेस पर इतना ध्यान नहीं  दिया.”

मैं ने कहा, “वैसे, एक बात सचसच बताऊं, मुझे तुम्हारी बहन इतनी नहीं पसंद जितना उस का हस्बैंड पसंद है.”

सुवीर को भी जैसे याद आया कि आज हम दोस्त बने हैं तो पति जैसा कोई ताना मारना ठीक नहीं होगा, ऐक्टिंग भी नहीं कर पा रहे थे. सो इतना ही बोले, “थोड़ी देर सोने का मन कर रहा है.”

मैं ने कहा, “तुम्हारी अम्मा तो नहीं आने वाली?”

“तुम्हारी कुछ नहीं लगती.”

“आज तो ऐसे बोल सकती हूं न? तुम ने कहा था न कि अपने मन की बात आज दोनों ही कर सकते हैं.”

“तो अपने मन में तुम उन्हें अपनी अम्मा नहीं समझतीं?”

“सास हैं, सास ही समझती हूं.”

इस बार सुवीर ने फ्लौप ऐक्टिंग करते हुए मुसकराने की कोशिश की. बच्चे उठ गए. फ्रेश हो कर पास बैठते हुए वे बोले, “अरे हां, तो फिर आज आप दोनों दोस्त बन कर बातें कर रहे हो ?”

हम ने हां में सिर हिलाया, तो शैतानों ने हमें ध्यान से देखते हुए कहा, “दोस्त बन कर ज्यादा मजा नहीं आ रहा क्या?”

उन के पूछने के ढंग पर हम दोनों हंस पड़े. मैं ने कहा, “तुम्हारी बूआफूफा आ रहे हैं अगले हफ्ते ?”

आर्या बोली, “मौम, आप तो बहुत खुश लग रही हैं उन के आने से.”

फिर एक जली हुई आवाज आई, “जतिन भी आ रहा है न. मुझे भी आज ही पता चला कि मीना से ज्यादा जतिन को देख कर तुम्हारी मां खुश होती है.”

मैं ने सुवीर को घूरा तो बोले, “ऐसे क्या देख रही हो? तुम ने ही तो बताया है न कि जतिन तुम्हें अच्छा लगता है.”

“कम से कम मैं किसी दोस्त से उस के कपड़े और उस की हौटनेस तो डिसकस नहीं कर रही न?”

तीर निशाने पर लगा, सुवीर चुप हो गए, पर बच्चे कुछ समझे नहीं. विवान ने पूछा, “क्या हुआ डैड?”

“कुछ नहीं, बच्चो. मैं लंच की तैयारी करती हूं,” कह कर मैं किचन में चली गई. लंच कर के बच्चे अपने रूम में थोड़ी देर टीवी चला कर बैठ गए, सुवीर और मैं भी थोड़ी देर आराम करने लगे. शायद हम दोनों ही मन ही मन कुछ उलझे से थे, पर फिर भी मैं ने ही बात छेड़ी, “रोमा मैरिड है?”

“उस ने शादी नहीं की।”

“क्यों?”

“पता नहीं, कभी पूछा नहीं.”

सुवीर ने मेरी तरफ करवट ली और बोले, “शाम को क्या बनाओगी?”

“कोफ्ते सोचा है.”

“डिनर पर बाहर चलना है?”

“कोफ्ते नहीं खाने?”

“ना.”

“क्यों?”

“पसंद नहीं.”

“अरे, हमेशा तो बच्चों के साथ मिल कर तारीफ करते हो.”

“बच्चे तुम्हारे बनाए कोफ्ते शौक से खाते हैं, इसीलिए झूठ बोल देता हूं. आज दोस्त बन कर बोल रहा हूं, पति बन कर ऐसे सच बोलना मुश्किल होता है. मुझ से कोफ्ते खाए नहीं जाते, कोफ्ते प्लेट में अलग घूम रहे होते हैं, ग्रेवी अलग. बेसन कच्चाकच्चा सा लगता है. आज बाहर चल कर कुछ चाटपकोड़ी खा कर आते हैं.”

मन हुआ कि फ्रिज में रखी लौकी ही इन के सिर पर दे मारूं. सारी दुनिया मेरे बनाए कोफ्तों की फैन है, ये जनाब आज दोस्त बन कर बहुत बोल रहे हैं, ये पति ही ठीक हैं, दोस्त बनाने लायक ही नहीं. मैं ने कहा, “ठीक है, बाहर चलते हैं, जतिन और मीना आएंगे तो कोफ्ते बना लूंगी, जतिन तो पिछली बार दूसरे टाइम भी वही कोफ्ते से खाना खा रहा था.”

“मैं जानता हूं इन मर्दों को. ये ऐसे ही दूसरी औरतों को इम्प्रेस करते हैं, आने दो इस बार. अच्छे से देखता हूं इसे.”

इस बार सुवीर का स्वर तेज हुआ, तो किचन में पानी पीने आई आर्या हमारे रूम में आती हुई बोली, “क्या हुआ, डैड?”

हम दोनों के चेहरे गुस्से से लाल से हो रहे थे, वह भागी गई और विवान  को बुला लाई. दोनों हमारे बीच में बैठ कर ध्यान से हमें देखने लगे, फिर विवान ने कहा, “मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आप दोस्त बन कर आज उतने खुश नहीं हो जितने हमेशा रहते हो. कुछ ज्यादा बातें शेयर कर लीं क्या?”

आर्या और विवान के चेहरों पर गजब की मस्ती दिखी, हम दोनों थोड़ी देर चुप रहे, फिर मैं ही बोल पड़ी, “अच्छा हुआ कि आज दोस्त बनने का नाटक किया. तुम्हारे पापा को तो मेरे बनाए कोफ्ते ही नहीं पसंद. आज बता रहे हैं. मैं ही पागल हूं, जो इन की हर बात पर विश्वास कर लेती हूं और वो रोमा की बच्ची… उस के बारे में भी आज बता रहे हैं.”

आर्या ने सुवीर को घूरा, वे अपना सिर पकड़ कर बैठते हुए बोले, “अरे यार, औफिस में नई आई है, बस इतना बताया. मुझे उस से क्या मतलब? और दोनों  मुझे क्या घूर रहे हो? अपनी मां से पूछो कि जतिन के सिक्स पैक एब्स में इन्हें कितना इंटरेस्ट है.”

मैं ने सुवीर को घूरा, उन्होंने मुझे. दोनों बच्चे अचानक हंसतेहंसते हमारे ऊपर ही गिरने लगे. हम दोनों झेंप गए. अपने पापा की लाड़ली आर्या ने कहा, “बस इस से ज्यादा ड्रामा हम नहीं झेल पाएंगे. पतिपत्नी हो, वही रहो.”

विवान ने सुवीर को हमदर्दी दिखाने की ऐक्टिंग करते हुए कहा, “आप दोस्त बन कर अपना जो नुकसान कर चुके हैं, उसे संभालने में मैं आप के साथ हूं.”

हम दोनों को ही बच्चों की बातों पर हंसी आ गई. मैं ने कहा, “सुवीर, रहने दो. हम पतिपत्नी ही ठीक हैं, खुश हैं. बस तुम मुझे जरा रोमा के अपडेट्स ईमानदारी से देते रहना.”

“तुम भी इस बार जतिन के लिए कोफ्ते मत बनाना.”

यह सुन कर मैं खुल कर हंसी, “हां, नहीं बनाऊंगी. कहते हुए मैं ने गुनगुनाया, ‘जो तुम को हो पसंद वही बात करेंगे, दोस्त नहीं बनना, पतिपत्नी ही रहेंगे’.”

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7 टिप्स: खूबसूरत स्किन और बालों के लिए वोदका

पार्टी आदि में वोदका खूब पी जाती है लेकिन क्‍या आप जानती हैं कि यह वोदका आपके बालों तथा त्‍वचा के लिये कितनी ज्‍यादा फायदेमंद है. हम इसे पीने के लिये नहीं कह रहे हैं बल्‍कि हम इसे चेहरे पर लगाने तथा शैंपू की तरह प्रयोग करने की सलाह दे रहे हैं.

वोदका एक रशियन ड्रिंक है. क्‍या आपने कभी नोटिस किया है कि रशियन लेडिज के चेहरे हर वक्‍त चमकते क्‍यूं रहते हैं? ऐसा इसलिये क्‍योंकि वे वोदका को एक सौंदर्य सामग्री के रूप में प्रयोग करती हैं.

चेहरे को चमकदार बनाना हो या फिर चाहे मुंहासे हटाने हों, वोदका की बस कुछ बूंदे अपना असर दिखा सकती हैं. यह बालों को मजबूत बनाता है तथा बालों से रूसी का भी सफाया करता है. तो चलिये जानते हैं वोदका किस प्रकार से चेहरे तथा बालों के लिये अच्‍छी मानी जाती है.

1. चेहरे पर चमक भरे: चेहरे पर चमक भरनी हो तो आप थोड़े से वोदका को कॉटन बॉल में लगा कर चेहरे पर लगा सकती हैं. इससे मुर्झाया हुआ चेहरा बिल्‍कुल खिल उठेगा और चेहरे पर चमक आ जाएगी.

2. स्‍किन को टोन करे: इसे चेहरे पर लगाने से स्‍किन के खुले पोर्स बंद हो कर टाइट हो जाते हैं, जिस्‍से स्‍किन स्‍मूथ दिखने लगती है.

3. झुर्रियां मिटाए: वोदका में स्‍टार्च होता है जो लटकती हुई त्‍वचा को टाइट बनाने में मदद करता है. इसके नियमित प्रयोग से बारीक धारियां गायब हो जाती हैं.

4.एक्‍ने और मुंहासों से छुट्टी: वोदका में एंटीबैक्‍टीरियल गुण होते हैं इसलिये मुंहासों पर वोदका लगाने से मुंहासे जल्‍द ही सूख जाते हैं.

5. बालों और त्‍वचा को साफ करे: इसमें त्‍वचा तथा बालों से गंदगी साफ करने की क्षमता होती है. इसे लगाने से त्‍वचा और बाल सुंदर और स्‍वस्‍थ बनते हैं.

6. बाल बनें मुलायम: अपने शैंपू में थोड़ा सा वोदका मिला कर लगाने से बाल मुलायम बनते हैं तथा उनमें नमी आती है. साथ ही रूखे-सूखे बाल ठीक हो जाते हैं.

7. रूसी से मुक्‍ति: वोदका में एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं, जो फंगस और बैक्‍टीरिया का खात्‍मा करता है. यही बैक्‍टीरिया सिर में रूसी का कारण बनते हैं. इसके लिये आपको अपने शैंपू में कुछ बूंद वोदका की मिलानी होंगी और फिर उससे सिर धोना होगा.

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घर संभालता प्यारा पति

सुबह के 8 बजे हैं. घड़ी की सूइयां तेजी से आगे बढ़ रही हैं. स्कूल की बस किसी भी क्षण आ सकती है. घर का वातावरण तनावपूर्ण सा है. ऐसे में बड़ा बेटा अंदर से पापा को आवाज लगाता है कि उसे स्कूल वाले मोजे नहीं मिल रहे. इधर पापा नानुकुर कर रही छोटी बिटिया को जबरदस्ती नाश्ता कराने में मशगूल हैं. इस के बाद उन्हें बेटे का लंचबौक्स भी पैक करना है. बेटे को स्कूल भेज कर बिटिया को नहलाना है और घर की डस्टिंग भी करनी है.

यह दृश्य है एक ऐसे घर का जहां बीवी जौब करती है और पति घर संभालता है यानी वह हाउस हसबैंड है. सुनने में थोड़ा विचित्र लगे पर यह हकीकत है.

पुरातनपंथी और पिछड़ी मानसिकता वाले भारतीय समाज में भी पतियों की यह नई प्रजाति सामने आने लगी है. ये खाना बना सकते हैं, बच्चों को संभाल सकते हैं और घर की साफसफाई, बरतन जैसे घरेलू कामों की जिम्मेदारी भी दक्षता के साथ निभा सकते हैं.

ये सामान्य भारतीय पुरुषों की तरह नहीं सोचते, बिना किसी हिचकिचाहट बिस्तर भी लगाते हैं और बच्चे का नैपी भी बदलते हैं. समाज का यह पुरुष वर्ग पत्नी को समान दर्जा देता है और जरूरत पड़ने पर घर और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उठाने को भी हाजिर हो जाता है.

हालांकि दकियानूसी सोच वाले भारतीय अभी भी ऐसे हाउस हसबैंड को नाकारा और हारा हुआ पुरुष मानते हैं. उन के मुताबिक घरपरिवार की देखभाल और बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी सदा से स्त्री की रही है, जबकि पुरुषों का दायित्व बाहर के काम संभालना और कमा कर लाना है.

हाल ही में हाउस हसबैंड की अवधारणा पर आधारित एक फिल्म आई थी ‘का एंड की.’ करीना कपूर और अर्जुन कपूर द्वारा अभिनीत इस फिल्म का मूल विषय था- लिंग आधारित कार्यविभेद की सोच पर प्रहार करते हुए पतिपत्नी के कार्यों की अदलाबदली.

लिंग समानता का जमाना

आजकल स्त्रीपुरुष समानता की बातें बढ़चढ़ कर होती हैं. लड़कों के साथ लड़कियां भी पढ़लिख कर ऊंचे ओहदों पर पहुंच रही हैं. उन के अपने सपने हैं, अपनी काबिलीयत है. इस काबिलीयत के बल पर वे अच्छी से अच्छी सैलरी पा रही हैं. ऐसे में शादी के बाद जब वर्किंग कपल्स के बच्चे होते हैं तो बहुत से कपल्स भावी संभावनाओं और परेशानियों को समझते हुए यह देखते हैं कि दोनों में से किस के लिए नौकरी महत्त्वपूर्ण है. इस तरह आपसी सहमति से वे वित्तीय और घरेलू जिम्मेदारियों को बांट लेते हैं.

यह पतिपत्नी का आपसी फैसला होता है कि दोनों में से किसे घर और बच्चों को संभालना है और किसे बाहर की जिम्मेदारियां निभानी हैं.

यहां व्यवहारिक सोच महत्त्वपूर्ण है. यदि पत्नी की कमाई ज्यादा है और कैरियर को ले कर उस के सपने ज्यादा प्रबल हैं तो जाहिर है कि ऐसे में पत्नी को ब्रैड अर्नर की भूमिका निभानी चाहिए. पति पार्टटाइम या घर से काम करते हुए घरपरिवार व बच्चों को देखने का काम कर सकता है. इस से न सिर्फ बच्चों को अकेला या डेकेयर सैंटर में छोड़ने से पैदा तनाव कम होता है, बल्कि उन रुपयों की भी बचत होती है जो बच्चे को संभालने के लिए मेड या डेकेयर सैंटर को देने पड़ते हैं.

हाउस हसबैंड की भूमिका

हाउस हसबैंड होने का मतलब यह नहीं है कि पति पूरी तरह से पत्नी की कमाई पर निर्भर हो जाए या जोरू का गुलाम बन जाए. इस के विपरीत घर के काम और बच्चों को संभालने के साथसाथ वह कमाई भी कर सकता है. आजकल घर से काम करने के अवसरों की कमी नहीं. आर्टिस्ट, राइटर्स ज्यादा बेहतर ढंग से घर पर रह कर काम कर सकते हैं. पार्टटाइम काम करना भी संभव है.

सकारात्मक बदलाव

लंबे समय तक महिलाओं को गृहिणियां बना कर सताया गया है. उन के सपनों की अवहेलना की गई है. अब वक्त बदलने का है. एक पुरुष द्वारा अपने कैरियर का त्याग कर के पत्नी को अपने सपने सच करने का मौका देना समाज में बढ़ रही समानता व सकारात्मक बदलाव का संदेश है.

एकदूसरे के लिए सम्मान

जब पतिपत्नी अपनी ब्रैड अर्नर व होममेकर की पारंपरिक भूमिकाओं को आपस में बदल लेते हैं, तो वे एकदूसरे का अधिक सम्मान करने लगते हैं. वे पार्टनर की उन जिम्मेदारियों व काम के दबाव को महसूस कर पाते हैं, जो इन भूमिकाओं के साथ आते हैं.

एक बार जब पुरुष घरेलू काम और बच्चों की देखभाल करने लगता है तो खुद ही उस के मन में महिलाओं के लिए सम्मान बढ़ जाता है. महिलाएं भी उन पुरुषों को ज्यादा मान देती हैं जो पत्नी के सपनों को उड़ान देने में अपना योगदान देते हैं और स्त्रीपुरुष में भेद नहीं मानते.

जोखिम भी कम नहीं

समाज के ताने: पिछड़ी और दकियानूसी सोच वाले लोग आज भी यह स्वीकार नहीं कर पाते कि पुरुष घर में काम करे व बच्चों को संभाले. वे ऐसे पुरुषों को जोरू का गुलाम कहने से बाज नहीं आते. स्वयं चेतन भगत ने स्वीकार किया था कि उन्हें ऐसे बहुत से सवालों का सामना करना पड़ा जो सामान्यतया ऐसी स्थिति में पुरुषों को सुनने पड़ते हैं. मसलन, ‘अच्छा तो आप की बीवी कमाती है?’ ‘आप को घर के कामकाज करने में कैसा महसूस होता है? वगैरह.’

पुरुष के अहं पर चोट: कई दफा खराब परिस्थितियों या निजी असफलता की वजह से यदि पुरुष हाउस हसबैंड बनता है तो वह खुद को कमजोर और हीन महसूस करने लगता है. उसे लगता है जैसे वह अपने कर्त्तव्य निभाने (कमाई कर घर चलाने) में असफल नहीं हो सका है और इस तरह वह पुरुषोचित कार्य नहीं कर पा रहा है.

मतभेद: जब स्त्री बाहर जा कर काम कर पैसे कमाती है और पुरुष घर में रहता है तो और भी बहुत सी बातें बदल जाती हैं. सामान्यतया कमाने वाले के विचारों को मान्यता दी जाती है. उसी का हुक्म घर में चलता है. ऐसे में औरत वैसे इशूज पर भी कंट्रोल रखने लगती है जिन पर पुरुष मुश्किल से ऐडजस्ट कर पाते हैं.

सशक्त और अपने पौरुष पर यकीन रखने वाला पुरुष ही इस बात को नजरअंदाज करने की हिम्मत रख सकता है कि दूसरे लोग उस के बारे में क्या कह रहे हैं. ऐसे पुरुष अपने मन की सुनते हैं न कि समाज की.

स्त्रीपुरुष गृहस्थी की गाड़ी के 2 पहिए हैं. आर्थिक और घरेलू कामकाज, इन 2 जिम्मेदारियों में से किसे कौन सी जिम्मेदारी उठानी है, यह कपल को आपस में ही तय करना होगा. समाज का दखल बेमानी है.

जानेमाने हाउस हसबैंड्स

ऐसे बहुत से जानेमाने चेहरे हैं, जिन्होंने अपनी इच्छा से हाउस हसबैंड बनना स्वीकार किया है-

भारतीय लेखक चेतन भगत, जिन के उपन्यासों पर ‘थ्री ईडियट्स’, ‘2 स्टेट्स’, ‘हाफ गर्लफ्रैंड’ जैसी फिल्में बन चुकी हैं, ने अपने जुड़वां बच्चों की देखभाल के लिए हाउस हसबैंड बनने का फैसला लिया.

वे ऐसे दुर्लभ पिता हैं, जिन्होंने आईआईटी, आईआईएम से निकलने के बाद अपने बच्चों को अपने हाथों बड़ा किया. हाउस हसबैंड बनने का फैसला उन्होंने तब लिया था जब वे अपने कैरियर में ज्यादा सफल नहीं थे जबकि उन की पत्नी यूबीएस बैंक की सीईओ थीं. चेतन भगत ने नौकरी छोड़ कर भारत आने का फैसला लिया और खुशीखुशी घर व बच्चों की देखभाल में समय लगाने लगे. साथ में लेखन का कार्य भी चलता रहा. आज उसी चेतन भगत के उपन्यासों का लोगों को बेसब्री से इंताजर रहता है.

इसी तरह की कहानी जानेमाने फुटबौलर डैविड बैकहम की भी है, जिन्होंने प्रोफैशनल फुटबौल की दुनिया से अलविदा कह कर हाउस हसबैंड बनने का फैसला लिया. एक टैलीविजन शो के दौरान उन्होंने स्वीकारा था कि वे अपने 4 बच्चों के साथ समय बिता कर ऐंजौय करते हैं. बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, स्कूल छोड़ कर आना, लंच बनाना, सुलाना जैसे सभी कामों को वे बड़ी सहजता से करते हैं.

न्यूटन इनवैस्टमैंट मैनेजमैंट की सीईओ हेलेना मोरिसे लंदन की चंद ऐसी महिला सीईओ में से एक हैं जो 50 बिलियन पाउंड्स से ज्यादा का कारोबार संभालती हैं और करीब 400 से ज्यादा कर्मचारियों पर हुक्म चलाती हैं. वे 9 बच्चों की मां भी हैं. जब हेलेना ने बिजनैस वर्ल्ड में अपना मुकाम बनाया तो उन के पति रिचर्ड ने खुशी से घर पर रह कर बच्चों की जिम्मेदारी उठाना स्वीकारा.

कुछ इसी तरह की कहानी भारत की सब से शक्तिशाली बिजनैस वूमन, इंदिरा नूई की भी है. पेप्सिको की सीईओ और चेयरमैन इंदिरा नूई के पति अपनी फुलटाइम जौब को छोड़ कर कंसलटैंट बन गए ताकि वे अपनी दोनों बच्चियों की देखभाल कर सकें.

इसी तरह बरबेरी की सीईओ ऐंजेला अर्हेंड्स के पति ने भी अपनी पत्नी के कैरियर के लिए अपना बिजनैस समेट लिया और बच्चों की देखभाल व घर की जिम्मेदारियां अपने ऊपर ले लीं.

डिप्लोमैट जेम्स रुबिन ने भी खुशीखुशी अपनी हाई प्रोफाइल जौब छोड़ दी ताकि वे अपनी पत्नी जर्नलिस्ट क्रिस्टीन अमान पोर को सफलता की सीढि़यां चढ़ता देख सकें. उन्होंने जौब छोड़ कर अपने बेटे की परवरिश करने की ठानी.

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Anupama बनने के बाद काफी बदल चुकी हैं Rupali Ganguly, देखें फोटोज

सीरियल अनुपमा (Anupamaa) की कहानी में जहां नए-नए ट्विस्ट आ रहे हैं तो वहीं टीआरपी में भी सीरियल कमाल करता दिख रहा है. इन दिनों सीरियल में फैंस को अनुपमा और अनुज की रोमांटिक कैमेस्ट्री काफी पसंद आ रही हैं. हालांकि बुढापे में अनुपमा के मां बनने को लेकर मेकर्स को ट्रोलिंग का सामना भी करना पड़ रहा है. हालांकि अनुपमा यानी रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) और सीरियल के दूसरे सितारे (Anupamaa Serial Cast) शो को हिट बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. इसी बीच, रुपाली गांगुली का लेटेस्ट पोस्ट सोशलमीडिया पर छा गया है, जिसमें उनका नया अवतार देखने को मिल रहा है.

अनुपमा को बनाया खूबसूरत

 

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सीरियल में इन दिनों कपाड़िया खानदान की बहू बनने के बाद अनुपमा का नया अवतार देखने को मिलने वाला है. दरअसल, हाल ही में रुपाली गांगुली ने अनुपमा के लुक में नई फोटोज शेयर की हैं, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. खूबसूरत बनारसी साड़ी पहने और बालों में गजरा औऱ गोल्ड की ज्वैलरी पहने अनुपमा के लुक में रुपाली गांगुली बेहद खूबसूरत लग रही हैं.

 

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 काफी वजन घटा चुकी हैं रुपाली गांगुली

 

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सीरियल अनुपमा के लिए रुपाली गांगुली काफी वजन घटा चुकी हैं, जिसका अंदाजा उनकी लेटेस्ट फोटोज से लगाया जा सकता है. मौर्डन लुक में रुपाली गांगुली का ट्रांसफौर्मेशन फैंस को काफी पसंद आ रहा है और वह एक्ट्रेस के पोस्ट पर कमेंट करते हुए तारीफें कर रहे हैं.

 

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बेहद ग्लैमरस हैं रुपाली

 

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सीरियल अनुपमा में जहां एक्ट्रेस रुपाली गांगुली का रोल बेहद सिंपल है तो वहीं रियल लाइफ में वह नए-नए अवतार में नजर आती हैं. किसी अवौर्ड शो में गाउन हो या बर्थडे पार्टी में वेस्टर्न अवतार हर लुक में एक्ट्रेस रुपाली गांगुली बेहद खूबसूरत लगती हैं. हाल ही में एक फोटोशूट में एक्ट्रेस का ग्लैमरस लुक सोशलमीडिया पर काफी वायरल हुआ था. वहीं फैंस ने भी इस लुक की काफी तारीफें की थीं.

 

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ये भी पढ़ें- कम खर्चे में फैशनेबल दिखने के 6 टिप्स

Customized Furniture से घर को सजाएं कुछ ऐसे

क्या आप घर में पुराने फ़र्निचर देखकर थक चुके है, क्या उसे आप बदलना चाहते है? बजट कम है? आइये बताते है कुछ आसान बातें, जिससे आप घर की फर्नीचर को अपने बजट और टेस्ट के अनुसार बदल सकते है या फिर नए घर को सजा सकते है.

मुंबई जैसे शहर में, जहाँ फ्लैट्स बाकी शहरों की तुलना में काफी छोटे होते है,कस्टमाइज्डफर्नीचर का प्रचलन अधिक है. सही ढंग से फर्नीचर रखे होने पर हर कमरे की जगह सही तरीके से उपयोग करना संभव होता है.साथ ही कमरे बड़े और अच्छे लगते है, जिसे आजकल फ्लैट या मकान मालिक करवाना पसंद करते है. इसके अलावा घर की फर्नीचर को बदलने के लिए भी अनुकूल फर्नीचर मार्केट से रेडीमेड खरीदकर या जगह के अनुसार कारीगर के द्वारा बनाया जा सकता है, इसमें सभी काम बजट के अनुसार ही किया जाता है. इस बारें में कारपेंटर श्यामलाल कहते है कि मैं उत्तरप्रदेश का रहने वाला हूँ, मुंबई आकर कम जगह में फर्नीचर बनाने की कला सीखी और अब मैंने कई फ्लैट्स में कस्टमाइज्ड फर्नीचर बनाए है, जिसे फ्लैट मालिक बहुत पसंद करते है, वे कहते है कि इसमें पहले ओनर के साथ मिलकर फर्नीचर का खाका तैयार करना पड़ता है,इसके बाद लकड़ियों का चयन और बनाने का कॉस्ट बताता हूँ,मैं अधिकतर अच्छी लकड़ियों से ही फर्नीचर बनाता हूँ, जो काफी सालों तक चलती है. बजट कम हो तो इंजिनीयर वुड से भी फर्नीचर बनता हूँ.

कस्टमाइज्डफर्नीचर है क्या

  • इस तरह के फर्नीचर ओनर अपने स्टाइल से आर्डर देकर अपने पसंद के अनुसार कारपेंटर को बुलाकर फ़र्निचर बनाते है.
  • ऐसे फर्नीचर एक्सक्लूसिव होते है, क्योंकि वैसी डिजाईन मार्केट में नहीं मिलता.
  • कस्टमाइज्डफर्नीचर अधिकतर ट्रेडिशनल होते है, जिसमे कारपेंटर की कारीगरी खास होती है, क्योंकि इसे बनाने के लिए स्किल्ड कारीगर और शिल्पी की जरुरत होती है, इसलिए ऐसे काम करने वाले कारीगर भी कम है और इसका खर्चा भी बाकी फर्नीचर से अधिक होता है, क्योंकि इसमें प्रयोग किये जाने वाले मटेरियल और लकड़ियाँ भी बहुत खास होती है.

लाभ

  • ऐसे फर्नीचर को टेलर मेड फर्नीचर भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें व्यक्ति की खास स्टाइल और टेस्ट को अधिक महत्व मिलता है.
  • कस्टमाइज्ड फर्नीचरके द्वारा कमरे के जगह का अधिक से अधिक प्रयोग किया जा सकता है, क्योंकि जगह के अनुसार ही फर्नीचर का निर्माण होता है.
  • कमरे में पहले से रखे सामानों के साथ ऐसे फर्नीचर को मिक्स एन मैच किया जा सकता है, जिसमे उनके कलर,टेक्सचर, डिजाईन आदि कई चीजों को व्यक्ति पसंद के अनुसार बना सकते है, जो यूनिक और स्टाइलिश लगता है.
  • कस्टमाइज्ड फर्नीचर काफी दिनों तक टिकता है, क्योंकि इसमें प्रयोग किये जाने वाले रॉ मटेरियल, प्रीमियम क्वालिटी की होती है, इसलिए ऐसे फर्नीचर पर किये गए खर्च, सालों बाद भी इसकी ओरिजिनालिटी को बनाए रखते है.
  • ऐसे फर्नीचर जल्दी ख़राब नहीं होते, इसलिए इसे करवाने वाला व्यक्ति बाहरी फिनिशिग और रॉ मटेरियल को अपने बजट के अनुसार फिक्स कर सकता है.

हानि

  • कस्टमाइज्ड फ़र्नीचर बाकी फर्नीचर से महंगा होता है.
  • ऐसे फर्नीचर बनाने में काफी समय लगता है, क्योंकि इसके लिए कई बार लकड़ियों की क्वालिटी, टेक्सचर और बनावट को ओनर से अप्रूवल लेने के बाद फाइनल प्रोडक्ट बनाना पड़ता है, जिसमे समय अधिक लग जाता है, जबकि रेडीमेड फर्नीचर को शो रूम में देखकर तुरंत घर पर लाया जा सकता है. साथ ही ये मूवेबल होते है, लेकिन रॉ मटेरियल की कोई गारंटी नहीं होती.

फर्नीचर बनाने में योगदान ठोस और इंजीनियर लकड़ी का

इसके अलावा आजकल फ़र्निचर कई प्रकार के लकड़ियों से बनते है, जिसमें ठोस लकड़ी और इंजीनियर लकड़ीखास है. ठोस लकड़ी से बने फ़र्नीचर टिकाऊ और मजबूत होते है, जबकि इंजीनियर लकड़ी से बने फर्नीचर कम समय तक टिकते है. ठोस लकड़ी पर दीमक का हमला जल्दी होता है. ये प्राकृतिक होने की वजह से मौसम का अनुसार फूलने और सिकुड़ने लगती है, इससे उसका मूल रूप बदल जाता है,इसलिए इसे धूप और नमी से बचाना पड़ता है , जबकि इंजीनियर लकड़ी नमी या नमी के प्रभाव का सामना कुछ हद तक कर सकती है और इंजीनियर लकड़ी प्राप्त करने के लिए ताजी लकड़ी की आवश्यकता नहीं होती है. यह पर्यावरण के अनुकूल विकल्प है. ये ठोस लकड़ी से हलकी होती है, इसलिए इसे आसानी से हिलाया जा सकता है.

पथभ्रष्ठा- भाग 4: बसु न क्यों की आत्महत्या

अब बाई भी सच पर उतर आई थी, ‘‘इंसान की शक्ल में भेडि़या है भेडि़या. दिनरात गाली बकता है, दारू पीता है.’’

‘‘बसु कहां है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अस्पताल में है. बिटिया हुई है.’’

मैं ने बाई की बात सुन कर मां को बताया और फिर औटो कर के हम अस्पताल पहुंच गईं.

बसु सरकारी अस्पताल के बिस्तर पर अकेली लेटी थी. मैं ने जैसे ही उस के सिर पर हाथ फेरा. उस की आंखों से अश्रुधारा बह निकली. पता नहीं ये आत्मग्लानि के आंसू थे या पश्चात्ताप के… पास ही झूले में लेटी उस की बिटिया को गोद में उठा कर मैं ने बसु से पूछा, ‘‘रवि कहां हैं?’’

‘‘व्यस्त होंगे वरना जरूर आते,’’ उस ने बिना मेरी ओर देखे अपना मुंह दूसरी ओर मोड़ लिया.

बसु मुझे धोखे में रखना चाह रही थी या खुद धोखा खा रही थी. पता नहीं, क्योंकि जिस रात बसु प्रसव पीड़ा से छटपटा रही थी उस रात रवि अपनी पत्नी के साथ था.

एक बार बसु ने बताया था कि अपने दोनों बेटों के प्रसव के समय शुभेंदु पूरी रात अस्पताल के कौरिडोर में दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में चहलकदमी करते रहे थे. अपनी पत्नी या बच्चों की जरा सी भी पीड़ा वे बरदाश्त नहीं कर पाते थे. आज बसु खुद को कितना अकेला महसूस कर रही होगी. उधर रेगिस्तान में लू के थपेड़ों के बीच शुभेंदु ने भी कितने अनदेखे दंश खाए होंगे. यहां भी उन के लिए मरुभूमि के अतिरिक्त क्या था?

औरत विधवा हो या परित्यक्ता, पुनर्विवाह करने पर बरसों अपने पूर्व पति को भुला नहीं पाती. यादें कोई स्लेट पर लिखी लकीरें तो नहीं होतीं कि जरा सा पोंछने पर ही मिट जाएं. सहज नहीं होता एक नीड़ को तोड़ कर, दूसरे नीड़ की रचना करना. बसु ने कैसे भुलाया होगा शुभेंदु को? अपने बच्चों की नोकझोंक, उठतेबैठते शुभेंदु की बसुबसु की गुहार क्या उसे पुराने परिवेश में लौट जाने के लिए बाध्य नहीं करती होगी या फिर जानबूझ कर शुभेंदु को भुलाने का नाटक कर रही है?

2 वर्ष का अंतराल चुपचाप दरक गया. उन दिनों अतुल की अंशकालिक पोस्टिंग देहरादून हो गई. मैं नन्हे संभव को ले कर थोड़ाबहुत जरूरत का सामान ले कर देहरादून पहुंच गई थी. 6 महीने के लिए अतुल को देहरादून के अतिरिक्त मसूरी और सहारनपुर का भी अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया था. काम की व्यस्तता उन्हें हर समय घेरे रहती. ऐसे में घरगृहस्थी के हर छोटेबड़े काम को निबटाने का दायित्व मुझ पर आ गया था.

एक दिन मैं अतुल के साथ फिल्म देख कर लौट रही थी तभी सामने एक गाड़ी से एक स्मार्ट, आकर्षक व्यक्तित्व के व्यक्ति को उतरते देखा. हालांकि मैं उन्हें काफी समय बाद देख रही थी, फिर भी मैं ने उन्हें तुरंत पहचान लिया. वे शुभेंदु थे. मन में संशय जगा कि शुभेंदु यहां कैसे? क्या दुबई का बिजनैस समेट दिया या मन भर गया वहां की चकाचौंध और पैसा कमाने की लालसा से? फिर मन ही मन सोचा कि उकसाने वाली पत्नी ही साथ छोड़ गई तो क्यों भटकते फिरते उस रेगिस्तान में? चलो देर से ही सही अपनी आत्मशक्ति और पौरुष का इजहार तो किया उन्होंने वरना तो सारी जिंदगी बसु के ही हाथों की कठपुतली बने रहे थे.

अगली सुबह अतुल दफ्तर के लिए निकल ही रहे थे कि शुभेंदु का फोन आ गया. मैं अचरज में पड़ गई. इन्हें मेरा नंबर कहां से मिला? शायद टैलीफोन डाइरैक्टरी से ढूंढ़ निकाला हो.

तभी उन का हताश स्वर सुनाई दिया, ‘‘चारु मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘मैं कुछ देर बाद आप को फोन करती हूं,’’ मैं ने टालने की गरज से कहा और फिर फोन काट दिया.

अतुल मेरे पास आ कर खड़े हो गए थे. सब कुछ जानने के बाद उन्होंने मुझे समझाया. ‘‘चारु, किसी की निजी जिंदगी से हमें क्या लेनादेना? मिल लो उन से.’’

दफ्तर पहुंच कर अतुल ने अपनी गाड़ी मेरे पास भेज दी. मैं ने संभव को आया के पास छोड़ा और कुछ ही देर में शुभेंदु के मसूरी रोड स्थित भव्य बंगले पर पहुंच गई.

शुभेंदु बेहद गर्मजोशी से मिले. बेशकीमती सामान से सजे उस बंगले को देख कर मेरी आंखें चौंधिया गईं. द्वार पर दरबान, माली और घर के अंदर दौड़ते नौकर, रसोइए. सामने वाली दीवार पर उन्होंने अपने परिवार का बड़ा सा चित्र टांगा हुआ था. साइड स्टूल, शोकेस पर हर जगह बसु के ही फोटो रखे थे. हंसतीखिलखिलाती बसु, राजेशमहेश को गोद में उठाए बसु, शुभेंदु के कंधों पर झूलती बसु, विदेशी पहनावा पहने हुए कैरियर वूमन बसु. घर के चप्पेचप्पे पर बसु का आधिपत्य था. शुभेंदु ने उस की अनुपस्थिति में भी उस की पसंदनापसंद का पूरा ध्यान रखा था. खिड़कियों पर आसमानी रंग के परदे, गमलों में सजे मनीप्लांट. जैसे किसी भी पल बसु आएगी और कहेगी कि शुभेंदु देखो मैं उस दरिंदे को छोड़ कर तुम्हारे पास लौट आई.

‘‘बसु कैसी है?’’ शुभेंदु का स्वर मुझे कल्पना लोक से यथार्थ में लौटा गया था. नजरें उन के उदास चेहरे पर अटक गईं. क्षण भर के लिए मुझे बसु के प्रति रवि का बर्बरतापूर्ण व्यवहार याद आ गया था. कदमकदम पर बेइज्जती, तानेउलाहने, गालीगलौज, मारपीट… क्या शुभेंदु कायर हैं, जो अभी भी उस की यादों को सीने से चिपकाए बैठे हैं? मानसम्मान, सब कुछ तो ले डूबी यह औरत. क्षमाप्रार्थी तो वह कदापि नहीं थी.

क्या उत्तर देती शुभेंदु के प्रश्न का? बस इतना ही कहा था मैं ने, ‘‘बस यह समझ लीजिए अपने किए की सजा भुगत रही है… इंसान जो बोता है वही काटता है.’’

6 माह की अवधि समाप्त हुई और हम दिल्ली लौट आए. न अब बसु से मेरा या मेरे परिवार का कोई संबंध रह गया था. मां और भैयाभाभी सभी लखनऊ चले गए थे. शुभेंदु अकसर फोन करते रहते थे. हर बार बसु के विषय में पूछते, लेकिन मैं सहजता से टाल जाती. क्या जवाब थे मेरे पास उन के प्रश्नों के?

एक दिन अचानक बसु मेरे घर आ गई. गोद में मुसकान थी. मन में प्रश्नों के नाग फन उठा कर खड़े हो गए कि क्यों आई है बसु यहां? कहीं रवि ने भी तो इसे नहीं निकाल दिया? हमेशा ही तो अश्लील भाषा में बात करता था इस से. प्रकृति का नियम है कि जीवन में हम जिन लोगों से दूर भागना चाहते हैं, वे हमें उतना ही अपने पास खींचते हैं. बसु के साथ मेरा रिश्ता भी तो ऐसा था… कुछ प्यार का, कुछ नफरत का, कुछ सहानुभूति का.

मैं ने उस की खूब आवभगत की. कटाक्ष भी किए. अपने सुखद गृहस्थ जीवन का रेखाचित्र खींचते हुए मैं उसे जताना चाह रही थी कि इंसान यदि अपनी इच्छाओं और कामनाओं पर नियंत्रण रखे तो जिंदगी सुख से कट जाती है. महत्त्वाकांक्षी होना बुरा नहीं, लेकिन उस के लिए रिश्तों को दांव पर लगाना सही नहीं. रिश्तों की चादर ओढ़ कर भी सपनों को सच किया जा सकता है.

बसु मेरी बातें चुपचाप सुनती रही. जैसे शतरंज का खिलाड़ी अपनी ढेर सारी चालों के बावजूद यकायक विपक्षी की एक ही चाल से मात खा कर उठ जाता है कुछ ऐसा ही भाव लिए वह मुझे घूरती रही.

अहंकार के दायरे- भाग 2: क्या बेटे की खुशियां लौटा सके पिताजी

‘अरे, यह अर्चना है?’ नीरा आश्चर्य व्यक्त करते हुए प्रसन्न हो उठी, ‘तुम दोनों ने मिल कर मुझे बेवकूफ बनाया. आओ अर्चना,’ नीरा ने उसे प्यार से अपने पास बैठा लिया, ‘कहां से घूम कर आ रहे हो तुम दोनों?’

‘भाभी, आज मैं औफिस से जल्दी आ गया था. अर्चना को तुम से मिलवाने लाना था न.’

‘यह तुम ने बहुत अच्छा किया, यतीन. मैं तो स्वयं ही तुम से कहने वाली थी.’

अर्चना करीब 2 घंटे वहां बैठी रही. नीरा ने उस से बहुत सी बातें कीं. जब यतीन उसे छोड़ कर वापस आया तो नीरा ने कहा, ‘लड़की मुझे पसंद है. अपने लिए मुझे ऐसी ही देवरानी चाहिए.’

‘सच, भाभी,’ प्रसन्नता के अतिरेक में यतीन चहक उठा, ‘बस फिर तो भाभी, बाबूजी और भैया को ऐसी पट्टी पढ़ाओ कि वे लोग तैयार हो जाएं.’

‘परंतु अर्चना राजपूत है और हम लोग ब्राह्मण. मुझे डर है, बाबूजी इस रिश्ते के लिए कहीं इनकार न कर दें.’

‘सबकुछ तुम्हारे हाथ में है, भाभी. तुम कहोगी तो बाबूजी मान जाएंगे.’

किंतु बाबूजी सहमत न हुए. नरेन को तो नीरा ने तुरंत राजी कर लिया था मगर बाबूजी के समक्ष उस की एक न चली. एक दिन रात को नरेन और नीरा ने जब इस विषय को छेड़ा तो बाबूजी ने क्रोधित होते हुए कहा, ‘तुम लोगों ने यह सोच भी कैसे लिया कि मैं इस रिश्ते के लिए सहमत हो जाऊंगा. यतीन के लिए मेरे पास एक से एक अच्छे रिश्ते आ रहे हैं.’

‘वह भी बहुत अच्छी लड़की है, बाबूजी. आप एक बार उस से मिल कर तो देखिए. सुंदर, पढ़ीलिखी और अच्छे संस्कारों वाली लड़की है.’

‘किंतु है तो राजपूत.’

‘जातिपांति सब व्यर्थ की बातें हैं, बाबूजी, हमारे ही बनाए हुए ढकोसले. अगर लड़के और लड़की के विचार मेल खाते हों, दोनों एकदूसरे को पसंद करते हों तो मेरे विचार में आप को आपत्ति नहीं होनी चाहिए,’ नरेन पिताजी को समझाते हुए बोले.

‘लड़के और लड़की की पसंद ही सबकुछ नहीं होती. कभी सोचा है, लोग क्या कहेंगे? रिश्तेदार क्या सोचेंगे? आखिर रहना तो हमें समाज में ही है न. आज तक इस खानदान में दूसरी जाति की बहू नहीं आई है.’

‘रिश्तेदारों की वजह से क्या आप अपने बेटे की खुशियां छीन लेंगे?’

‘मुझ से बहस मत करो, नरेन. मैं किसी की खुशियां नहीं छीन रहा. तुम मुझे नहीं यतीन को समझाओ. यह प्रेम का चक्कर छोड़ कर जहां मैं कहूं वहां विवाह करे. उस के लिए अर्चना से भी अच्छी लड़की ढूंढ़ना मेरा काम है. व्यर्थ की भावुकता में कुछ नहीं रखा.’

बाबूजी उठ कर बाहर चले गए. इस का मतलब था, अब वे इस विषय पर और बात नहीं करना चाहते थे.

नीरा परेशान रहने लगी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस समस्या को कैसे सुलझाए. एक ओर बाबूजी का हठी स्वभाव, दूसरी ओर यतीन की कोमल भावनाएं. दोनों में सामंजस्य किस प्रकार स्थापित करे.

जब से यतीन को बाबूजी के इनकार के विषय में बताया था, वह खामोश रहने लगा था. उस का अधिकांश समय घर से बाहर व्यतीत होता था. नीरा को भय था कि कहीं यह खामोशी आने वाले तूफान की सूचक न हो.

एक दिन नीरा रसोई में खाना बना रही थी. यतीन वहीं आ कर खड़ा हो गया और बोला, ‘भाभी, मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं.’ नीरा का हृदय जोरजोर से धड़कने लगा कि न जाने यतीन क्या कहने वाला है. उस ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उस की ओर देखा.

‘मैं ने अर्चना से विवाह कर लिया है,’ यतीन नीरा से नजरें चुराते हुए बोला.

नीरा सन्न रह गई. कुछ पलों के लिए तो जैसे होश ही न रहा. इतने में उसे रोटी जलने की गंध आई. उस ने फुरती से गैस बंद की और पलट कर यतीन का चेहरा देखने लगी, ‘यह तुम ने क्या किया?’

‘मैं मजबूर था, भाभी. मैं स्वयं ऐसा कदम नहीं उठाना चाहता था किंतु क्या करता, अर्चना को क्या छोड़ देता? पिछले 4-5 वर्षों से उस की और मेरी मित्रता है.’

‘तुम कुछ समय तक प्रतीक्षा कर सकते थे. मैं और नरेन बाबूजी को मनाने का दोबारा प्रयास करते.’

‘कोई फायदा नहीं होता, भाभी. मैं जानता हूं, वे मानने वाले नहीं थे. उधर अर्चना के घर वाले विवाह के लिए जल्दी मचा रहे थे इसलिए विवाह में विलंब नहीं हो सकता था वरना वे लोग उस का अन्यत्र रिश्ता कर देते.’

‘अब क्या होगा, यतीन? अर्चना को तुम घर कैसे लाओगे?’ नीरा बुरी तरह घबरा रही थी.

‘मैं अर्चना को तब तक घर नहीं लाऊंगा जब तक बाबूजी उसे स्वयं नहीं बुलाएंगे. अब वह मेरी पत्नी है. उस का अपमान मैं हरगिज सहन नहीं कर सकता,’ यतीन दृढ़ स्वर में बोला.

‘फिर उसे कहां रखोगे?’

‘फिलहाल कंपनी की ओर से मुझे फ्लैट मिल गया है. मैं और अर्चना वहीं रहेंगे,’ यतीन धीमे स्वर में बोला और वहां से चला गया.

पिछले कुछ दिनों से यतीन कितना परेशान था, यह तो उस का दिल ही जानता था. भैयाभाभी और बाबूजी से अलग रहने की कल्पना उसे बेचैन कर रही थी. वह किसी को भी छोड़ना नहीं चाहता था किंतु परिस्थितियों के सम्मुख विवश था.

इस के बाद के दिनों की यादें नीरा को अंदर तक कंपा देतीं. बाबूजी को जब यतीन के विवाह के विषय में पता चला तो वे बुरी तरह से टूट गए. उन की हठधर्मी बेटे को विद्रोही बना देगी, इस का उन्हें स्वप्न में भी गुमान न था. उन्होंने बेटों को पालने में बाप की ही नहीं, मां की भूमिका भी निभाई थी. बेटों के पालनपोषण में स्वयं का जीवन होम कर डाला था. किंतु एक लड़की के प्रेम में पागल बेटे ने उन के समस्त त्याग को धूल में मिला दिया था.

अब बाबूजी थकेथके और बीमार रहने लगे थे. नीरा के आने से घर की जो खुशियां पूर्णिमा के चांद के समान बढ़ रही थीं, यतीन के जाते ही अमावस के चांद की तरह घट गईं. नीरा की दशा उस चिडि़या की तरह थी जिस के घोंसले का तिनका बिखर कर दूर जा गिरा था. वह उस तिनके को उठा लाने की उधेड़बुन में लगी रहती थी.

आज जब उस ने बाबूजी को यतीन की फोटो के समक्ष रोते देखा तो विकलता और भी बढ़ गई. अगले दिन नीरा बाजार गई हुई थी. जब लौटी, उस के साथ एक अन्य युवती भी थी. बाबूजी बाहर लौन में बैठे थे.

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