REVIEW: जानें कैसी है Akshay और Manushi की फिल्म Samrat Prithviraj

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः आदित्य चोपड़ा

लेखक व निर्देशकः डॉं.  चंद्रप्रकाश द्विवेदी

कलाकारः अक्षय कुमार, मानुषी छिल्लर, मानव विज, संजय दत्त, सोनू सूद, ललित तिवारी व अन्य

अवधिः दो घंटे 15 मिनट

भारतीय इतिहास में सम्राट पृथ्वीराज चैहान को वीर योद्धा माना जाता है. मगर उन्ही पर बनायी गयी फिल्म ‘‘सम्राट पृथ्वीराज’’ में  पृथ्वीराज की वीरता पर ठीक से रेखांकित नही किया गया है. इसके अलावा पिछले एक सप्ताह से अक्षय कुमार और डां. चंद्रप्रकाश द्विवेदी जिस तरह के विचार व्यक्त कर रहे थे,  उससे फिल्म कोसों दूर है. डां.  चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने यह फिल्म एक खास नरेटिब को पेश करते हुए बनायी है, मगर इसमें भी बुरी तरह से असफल रहे है.

कहानीः

फिल्म शुरू होती है गजनी,  अफगानिस्तान में मो. गोरी(मानव विज )के दरबार से, जहां बंदी बनाए गए सम्राट पृथ्वीराज चैहान (अक्षय कुमार ) को लाया जाता है, उनकी आंखें जा चुकी हैं. दर्शक दीर्घा में चंद बरदाई (सोनू सूद )भी हैं. वह वहां भी सम्राट की महानता का बखान करने वाला गीत गा रहे हैं. पृथ्वीराज का मुकाबला तीन शेरों से होता है, जिन्हे वह शब्द भेदी बाण से मार गिराते हैं. फिर वह मो.  घोरी से कहते हैं कि जानवरांे को छोड़िए आप या आपका बहादुर सैनिक मुझसे लड़ें. यदि मेरी जीत हो तो मेरे साथ सभी हिंदुस्तानियों को रिहा किया जाए. इसके बाद वह जमीन पर गिर पड़ते हैं और फिर कहानी अतीत में चली जाती है. और कहानी शुरू होती है कनौज के राजा जयचंद(आशुतोष राणा) की बेटी संयोगिता(मानुषी छिल्लर) और अजमेर के राजा पृथ्वीराज की प्रेम कहानी से. फिर तराइन का पहला युद्ध होता है, जहां मो. गोरी को हार का सामना करना पड़ता है. तो वहीं अजमेर के राजा पृथ्वीराज (अक्षय कुमार) को दिल्ली का राजा बनाया जाना उनके संबंधी और कन्नौज के राजा जयचंद (आशुतोष राणा) को रास नहीं आता. यही नहीं सम्राट पृथ्वीराज खुद से प्रेम करने वाली जयचंद की बेटी संयोगिता (मानुषी छिल्लर) को भी स्वयंवर के मंडप से उठा लाते हैं. इससे अपमानित जयचंद तराइन के पहले युद्ध में पृथ्वीराज के हाथों शिकस्त हासिल कर चुके गजनी के सुलतान मोहम्मद गोरी (मानव विज) को पृथ्वीराज को धोखे से बंदी बनाकर उसे सौंप देने की चाल चलता है.  जिसमें वह कायमाब होता है और सम्राट पृथ्वीराज,  मो. गोरी के बंदी बन जाते हैं.  कहानी फिर से वर्तमान में आती है पृथ्वीराज के आव्हान को स्वीकार कर मो.  गोरी ख्ुाद पृथ्वीराज  से युद्ध करने के लिए मैदान में उतरता है. फिर क्या होता है, इसके लिए फिल्म देखना ही ठीक होगा.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म में संजय दत्त के अभिनय को छोड़कर ऐसा कुछ भी नही है, जिसकी तारीफ की जाए. फिल्म के लेखक व निर्देशक डां.  चंद्र प्रकाश द्विवेदी के बारे में कहा जाता है कि उन्हे इतिहास की बहुत अच्छी समझ है, मगर अफसोस फिल्म देखकर इस बात का अहसास नही होता. हमने अब तक जो कुछ किताबांे में पढ़ा है, या जो लोक गाथाएं सुनी हैं,  उनसे विपरीत फिल्म का क्लायमेक्स  गढ़कर डां.  चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने देश की जनता के सामने एक नए इतिहास को पेश किया है. यह इतिहास उन्हे कहां से पता चला यह तो वही जाने. पटकथा में विखराव बहुत है. बतौर निर्देशक वह बुरी तरह से मात खा गए हैं. फिल्म को बनाते समय डॉं.  चंद्र्रप्रकाश द्विवेदी यह भी भूल गए कि यह फिल्म ग्यारहवीं सदी की है न कि वर्तमान समय की. फिल्म के गीत और भाषा वर्तमान समय की है. फिल्म में पृथ्वीराज चैहान व संयोगिता के संवादो में उर्दू शब्द ठॅूंेसे गए हैं. ‘हद कर  दी. . ’गाना कहीं से भी ग्यारहवी सदी का गाना होनेे का अहसास नही कराता. ‘ये शाम है बावरी सी. . ’गाना भी एैतिहासिक फिल्म के अनुरूप नही है.  इतना ही नही शाकंभरी मंदिर में पृथ्वीराज अपनी पत्नी व अन्य के साथ डांडिया व गरबा डंास करते हैं. . क्या कहना. . यह है इतिहास के जानकार. . .  इंटरवल से पहले तराइन के पहले युद्ध के छोटे से दृश्य को नजरंदाज कर दें, तो फिल्म में एक भी युद्ध दृश्य नहीं है, जबकि कहानी वीर योद्धा पृथ्वीराज चैहान की है. फिल्म के सभी एक्शन दृश्य हाशिए पर ढकेलने लायक हैं. प्रेम कहानी व जयचंद की कहानी को ज्यादा महत्व दिया गया है. इसके साथ ही नारी सम्मान व नारी उत्थान पर भी कुछ अच्छे संवाद है. ‘चाणक्य’ सीरियल व ‘पिंजर’ जैसी फिल्म के लेखक व निर्देशक डॉं. चंद्र प्रकाश द्विवेदी के अब तक के कैरियर का यह सबसे घटिया काम है.  इतना ही नहीं वह जो बयान बाजी कर रहे हैं और फिल्म से जो बात निकलकर आती है, उसमे विरोधाभास है. फिल्म देखकर अहसास होता है कि मो. गोरी को हिंदुस्तान भारत पर आक्रमण करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह तो पृथ्वीराज चैहाण को भी नही मारना चाहता था. वह इतना चाहता था कि पृथ्वीराज उसके सामने सिर झुका लें. आखिर लेखक एवं निर्देशक स्पष्ट रूप से कहना क्या चाहते हैं?वह बार बार अंतिम ंिहंदू राजा की बात जरुर करते हैं.

फिल्म में वह पृथ्वीराज और उनके बचपन के दोस्त व राज दरबारी कवि चंद बरदाई की दोस्ती व उसके इमोशंस को भी ठीक से चित्रित नही कर पाए. मगर इसमें उनका कोई दोष नही है. कहा जाता है कि इंसान के निजी जीवन की फितरत व स्वभाव जाने अनजाने उसके लेखन व उसकी बातों सामने आ ही जाता है.

फिल्म का वीएफएक्स बहुत कमजोर है. फिल्म के शुरूआत में शेर से लड़ने वाले दृश्य का वीएफएक्स ही नही एडीटिंग भी कमजोर है.

अभिनयः

अफसोस पृथ्वीराज के किरदार में अक्षय कुमार कहीं से भी फिट नहीं बैठते. वह हर दृश्य में कमजोर साबित हुए है. संयोगिता के किरदार में विश्व सुंदरी मानुषी छिल्लर भी निराश करती है. वह विश्व सुंदरी का ताज पहने हुए जितनी खूबसूरत लगी थी, इस फिल्म में वह उतनी खूबसूरत नही लगी. जहां तक अभिनय का सवाल है, तो हर दृश्य में उनका सपाट चेहरा ही नजर आता है. यदि मानुषी को अभिनय जगत में  कामयाब होना है, तो उन्हे बहुत मेहनत करने की जरुरत है.  काका कान्हा के किरदार में संजय दत्त अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं. चंद बरादाई के किरदार में सोनू सूद प्रभावित करने में विफल रहे हैं. वास्तव में उनके किरदार को सही ढंग से लिख ही नही गया. मो. गोरी के किरदार में मानव विज का चयन ही गलत है. इसके अलावा विलेन को इतना कमजोर दिखाया गया है कि कल्पना नहीं की जा सकती. वैसे मो.  गोरी का किरदार छोटा ही है.

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पथभ्रष्ठा- भाग 3: बसु न क्यों की आत्महत्या

1 वर्ष बाद शुभेंदु ने दिल्ली पहुंचते ही कई प्रतिष्ठित कंपनियों में अपना आवेदनपत्र भेजना शुरू कर दिया. साक्षात्कार के लिए उन्हें बुलाया भी गया. शुभेंदु की शिक्षा और खाड़ी देश के अनुभव को देखते हुए कंपनियां उन्हें मोटी पगार के साथ, दुबई जैसी सारी सुविधाएं भी देने को तैयार थीं, किंतु बसु नोएडा स्थित बुटीक को छोटे से कारखाने में बदल कर रेडीमेड कपड़ों के आयातनिर्यात का काम शुरू करने की योजना बना चुकी थी.

निर्यात किए गए माल की देखभाल करने के लिए बसु ने दुबई में एक औफिस खोलने की बात पर जोर दिया तो शुभेंदु घबरा गए. बोले, ‘‘पेशे से इंजीनियर हूं. मैं ने बिजनैस कभी नहीं किया है. मैं ने जो कुछ कमाया है. कहीं ऐक्सपोर्ट और दुबई औफिस के चक्कर में उसे भी न गंवा दूं.’’

लेकिन बसु को ठहराव से नफरत थी. उसे तो आंधीतूफान की तरह बहना और उड़ना ही रुचिकर लगता था. अपने रूपजाल से शुभेंदु को ऐसा दिग्भ्रमित किया कि वे भी मान गए.

नोएडा, में कारखाने के नियंत्रण और संचालन का कार्यभार रवि ने अपने ऊपर ले लिया था. वह स्मार्ट तो था ही, चतुर भी था. पुलिस से ले कर, राजनेताओं तक उस की पहुंच थी, शुभेंदु को भी उस ने आश्वस्त किया कि जब तक बसु बिजनैस संभालने में पूर्णरूप से सक्षम नहीं हो जाती वह तब तक बसु के साथ रहेगा.

शुभेंदु निश्चिंत हो कर दुबई चले गए. अपना व्यवसाय आगे बढ़ाने के लिए बसु ने अपनी चालढाल बदली, वेशभूषा बदली, अंगरेजी बोलना सीखा. रवि हमेशा, साए की तरह उस के साथ रहता. उसे, अपनी कार में बैठा कर ले जाता. शाम ढलने के बाद छोड़ जाता. कभीकभी रात में भी वह उस के घर ठहर जाता था. जब तक रवि घर से बाहर नहीं निकलता था. महल्ले वालों की निगाहें बसु के घर पर ही चिपकी रहती थीं. महिलाएं बसु के विरुद्ध खूब विष उगलतीं, ‘‘कैसी बेहया औरत है? अपने मर्द को विदेश भेज कर दूसरे मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है.’’

लोगों की आलोचनाएं मां को दंश सी पीड़ा देतीं. बेटी मानती थीं वे बसु को. उदास मन से कहतीं, ‘‘इस का यह बिजनैस प्रेम इसे कहीं का नहीं छोड़ेगा.’’

भैया शुरू से ही इस लाइन में थे. अत: मां को दिलासा देते, ‘‘बिजनैस बढ़ाने के लिए लोगों से मेलजोल बढ़ाना ही पड़ता है न. बुरे खयाल मन से निकाल दीजिए.’’

मां फिर भी परेशान दिखतीं, ‘‘मजबूत पांव उड़ान भरने के लिए लालायित रहते हैं. यह तो मैं भी समझती हूं, लेकिन परिंदे को इतना ध्यान तो रखना ही पड़ता है कि थक जाने पर पांव टिकाने लायक जमीन को न तरस जाए.’’

भाभी भी मां का समर्थन करतीं, ‘‘समाज का डर न सही. फिर भी, क्या यह सब खुद अपने लिए ठीक है? पति है, बेटे हैं… रवि भी तो शादीशुदा है… बसु 1 नहीं, 2 गृहस्थियां बरबाद कर रही है.’’

‘‘तेरी तो मित्र है बसु. तू क्यों नहीं समझाती उसे?’’ मां ने मुझ से कहा, तो मैं संकोच से घिर गई किसी के निजी जीवन में हस्तक्षेप करने का अधिकार मुझे नहीं है. किंतु मां और भाभी के बारबार उकसाने पर मैं ने यह प्रसंग बसु के सामने छेड़ दिया था.

सुनते ही बसु सुलग उठी थी, ‘‘तू भी आ गई लोगों की बातों में.’’

‘‘बसु, समझने की कोशिश कर. यह इस जमाने की सोने की लंका है. जिस पर सोने का मुलम्मा चढ़ा होता है. पर यह मुलम्मा उतरता है तो पीतल ही निकलता है.’’

लेकिन मेरी बात उस के सिर के ऊपर से निकल गई थी. उस ने तो हिमपात में घोंसला बनाने का संकल्प ले लिया था.

कुछमहीनों बाद शुभेंदु दिल्ली लौटे, ढेर सारे उपहार लिए. जितने दिन दिल्ली रहे रवि कम आता था. उन दिनों बसु भी अनमनी सी रहती थी. ऐसा लगता जैसे वह बेसब्री से उन के लौटने की राह देख रही हो. शुभेंदु जितना उस के करीब आने की कोशिश करते बसु उन से उतनी ही दूर रहती थी. सहृदय, सरल स्वभाव वाले शुभेंदु एक पल के लिए भी समझ नहीं पाए थे कि कुछ अनर्थ घटने वाला है. बसु ने अपनी वाक्पटुता से बच्चों को भी होस्टल भेज दिया था.

3 हफ्ते रह कर शुभेंदु दुबई लौट गए. धीरेधीरे उन का बिजनैस पूरे दुबई में फैलता जा रहा था. शुभेंदु का दिल्ली बहुत कम आना हो पाता था. अब महीनों  बसु का चेहरा भी दिखाई नहीं देता था. मां ने मेरे विवाह के बहाने उस से अपना मकान खाली करवा लिया था. वे नहीं चाहती थीं कि मेरी भावी ससुराल में किसी को इस बात की भनक भी लगे कि हमारा उठनाबैठना बसु जैसी महिला के साथ है.

बिजनैस के सिलसिले में जमती कौकटेल पार्टियां और कौकटेल के बीच उठते ठहाके… समय चुपचाप रिसता चला गया. चौंकी तो वह तब थी जब रवि का अंश उस की कोख में पलने लगा था.

हमारी शादी को अभी कुछ महीने ही हुए थे कि अतुल को 1 माह के टूर पर चैन्नई जाना पड़ा. मैं उस समय गर्भवती थी. कमरे में झांक कर देखा तो मां के पास बसु बैठी थी. मांग में सिंदूर, हाथों में लाल चूडि़यां, माथे पर लाल बिंदी. सभी सुहागचिह्नों से सजी बसु ने जैसे ही रवि के साथ अपने ब्याह और गर्भवती होने की सूचना दी मैं जड़ हो गई. उस के चेहरे पर कुतूहल था. मां ने बसु को घूरा, फिर मुझे निहारा. उस के सामने अब मेरा ठहरना उन के लिए असुविधाजनक हो गया था, जिसे बसु जैसी व्यवहारकुशल स्त्री भांप चुकी थी. अत: चुपचाप वहां से चली गई.

‘‘न जाने क्यों चली आती है? महल्ले भर में इस की चर्चा है. इसीलिए तो मैं ने इसे तेरे ब्याह पर भी नहीं बुलाया था. कलंकिनी ने अपने पति को ही नहीं, अपने पितृकुल और ससुरकुल तक को कीचड़ में घसीट दिया,’’ मां की बड़बड़ाहट शुरू हो गई.

मैं अपने कमरे में आ गई. शुभेंदु का चेहरा मेरी आंखों के सामने आ गया. तिनकातिनका कर के उन्होंने घोंसला बनाया. प्यार और विश्वास से सींचा और यह मृगमरीचिका सी चिडि़या फुर्र से उड़ गई. सम्मान, गौरव, आभिजात्य, कोई भी बंधन इसे रोक नहीं पाया. जब सब कुछ मिल जाए तो उस की अवमानना में ही सुख मिलता है. इन्हीं विचारों की गुत्थियों में उलझतेसुलझते मैं ने पूरी रात काट दी.

एक दिन मैं मां और भाभी के साथ लौनमें बैठी सुबह की चाय का आनंद ले रही थी. भैया अपने लैपटौप पर काम कर रहे थे कि तभी चीखपुकार, मारपीट के स्वर सुनाई दिए. नजर सामने के जंग खाए फाटक के भीतर चली गई जहां टूटेफूटे पीले मकान में तमाम आलोचनाओं की केंद्र बसु अपने दूसरे पति के साथ रह रही थी.

मैं ने मां से उस के विषय में पूछा तो वे गहरी सांस भर कर बोलीं, ‘‘यह सब तो रोज का काम है. पाप पेट में पलता है तो उस की यही परिणति होती है. बस यह समझ ले कारावास की सजा भुगत रही है.’’

कुछ समय बाद भैया दफ्तर के लिए निकले ही थे कि तभी दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो द्वार पर बसु की कामवाली घबराई हुई खड़ी थी. साथ में छोटी सी बच्ची भी थी. मांबेटी के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं.

जब मैं ने पूछा कि क्या हुआ तो कांपते स्वर में बाई ने बताया, ‘‘बसु सीढि़यों से गिर पड़ी है.’’

तभी उस की बच्ची बोल पड़ी, ‘‘झूठ मत बोलो मां, बाबूजी ने धक्का दिया है. पीठ पर भी मारा है.’’

Kundali Bhagya को Dheeraj Dhoopar ने कहा अलविदा! होगी नई एंट्री

सीरियल ‘कुंडली भाग्य’ (Kundali Bhagya) के करण लूथरा यानी एक्टर धीरज धूपर (Dheeraj Dhoopar) इन दिनों सुर्खियों में हैं. जहां हाल ही में एक्टर ने अपनी वाइफ के लिए बेबी शॉवर पार्टी रखकर फैंस को तोहफा दिया था तो वहीं अब खबरें हैं कि उन्होंने अपने 5 साल पुराने शो को अलविदा कहने का फैसला लिया है. आइए आपको बता दें पूरी खबर….

धीरज धूपर ने छोड़ा शो

 

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करीब 5 साल पहले ‘कुंडली भाग्य’ से जुड़ने वाले एक्टर धीरज धूपर कपूर ने शो छोड़ने का फैसला किया है. वहीं इस पर सीरियल के एक सोर्स ने बताया है कि धीरज धूपर ने शो से आगे बढ़ने का फैसला कर लिया है और वह अब वेंचर्स एक्सप्लोर करना चाहते हैं, जिसके चलते धीरज ने मेकर्स के साथ बात करके शो छोड़ने का फैसला किया. वहीं मेकर्स ने भी उनके फैसले का सम्मान किया है. हालांकि अभी इसमें एक्टर का कोई अधिकारिक बयान सामने नहीं आया है.

शो में होगी नई एंट्री

 

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इसके अलावा सीरियल में लीड एक्टर के शो छोड़ने की खबरों के बीच एक नए हीरो की एंट्री होने जा रही हैं. दरअसल, मेकर्स ने ‘कुंडली भाग्य’ के लिए शक्ति अरोड़ा (Shakti Arora) को साइन कर लिया है. लेकिन अभी तक यह पक्का नहीं है कि वह धीरज धूपर की जगह लेंगे. हालांकि मेकर्स सीरियल की नई कहानी पर जोर दे रहे हैं. कई सीरियल्स में काम कर चुके एक्टर शक्ति अरोड़ा के फैंस उनकी एंट्री के लिए काफी एक्साइटेड हैं.

बता दें, हाल ही में धीरज धूपर ने अपनी वाइफ विन्नी धूपर के लिए बेबी शॉवर पार्टी रखी, जिसकी फोटोज और वीडियो सोशलमीडिया पर वायरल हुई थीं. वहीं कहा जा रहा है कि सीरियल को अलविदा कहने के बाद वह अपनी वाइफ के संग वक्त बिताते नजर आएंगे, जिसके चलते वह बेहद एक्साइटेड हैं. दरअसल, एक्टर का ये 2016 में हुई शादी के बाद ये पहला बच्चा है, जिसके चलते वह बेहद एक्साइटेड नजर आ रहे हैं.

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REVIEW: दिल को छू लेने वाली गाथा है ‘मेजर’

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः महेश बाबू और सोनी पिक्चर्स

निर्देशकः शशि किरण टिक्का

लेखकः अदिवी शेष

कलाकारः अदिवी शेष,सई मांजरेकर, शोभिता धूलिपाला,प्रकाश राज,रेवती, डॉ. मुरली शर्मा व अन्य

अवधिः दो घंटे 28 मिनट

26/11 को मुंबई में एक साथ कई जगह हुए आतंकवादी हमले में ताज होटल में छिपे आतंकियों से  बेकसूर आम जनता को बचाने के लिए मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के नेतृत्व में एनएसजी कमांडो ताज होटल में घुसकर आतंकियों को ढूंढ ढूंढ़कर मार रहे थे. पर कुछ आतंकियों की घेरे बंदी में मेजर संदीप उन्नीकृष्णन इस कदर अकेले फंसे कि वह शहीद हो गए. ऐसे ही वीर के जीवन पर फिल्मकार शशि किरण टिक्का व लेखक व अभिनेता अदिवी शेष फिल्म ‘‘मेजर’’ लेकर आए हैं. जो कि तमिल, तेलगू मलयालम व हिंदी में एक साथ तीन जून को प्रदर्शित हुई है. पूरी फिल्म देखने के बाद एक बात उभर कर आती है कि यह फिल्म सिर्फ मेजर संदीप के बलिदानों के लिए श्रद्धांजलि नही है,बल्कि यह फिल्म एक अकेली पत्नी के बलिदानों और अपने बेटे को खोने वाले माता पिता के बलिदानों को भी श्रृद्धांजली है.  फिल्म सैनिकों के परिवार की मनः स्थिति व दर्द का सटीक चित्रण करती है.

कहानीः

स्व. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की बायोपिक फिल्म ‘‘मेजर’’ की कहानी की शुरूआत संदीप के बचपन से होती है,जिन्हे हर चीज से डर लगता है. लेकिन जब किसी की जिंदगी बचानी हो,तो वह खुद को नुकसान पहुंचाने से पहले दो बार नहीं सोचता. उसे वर्दी से प्यार है. इसलिए उसे जेल में खेलना पसंद है. उसे जेल में कैदियों से बात करना पसंद है. यही वजह है कि वह बचपन  से ‘वर्दी’,‘नेवी’ व सैनिक की जीवन शैली से मोहित है. कालेज में पहुॅचने के बाद भी संदीप उन्नीकृष्णन (आदिवी शेष) के डीएनए में एक सुरक्षात्मक प्रवृत्ति अंतर्निहित है. स्कूल दिनों में ही संदीप की मुलाकात ईशा से हो जाती है,जो कि अपने माता पिता की व्यस्तता के चलते घर में अकेले पन के चलते दुःखी रहती है. . फिर दोनों के बीच प्यार पनपता है और विवाह भी करते हैं. संदीप के पिता चाहते है कि बेटा डाक्टर बने,मगर संदीप तो सैनिक बनना चाहता है. और उसका एनडीए की ट्रेनिंग के लिए चयन हो जाता है. ट्रेनिंग के बाद संदीप एनएसजी कमांडो बन जाता है. बहुत जल्द वह मेजर ही नहीं बल्कि नए एनसीजी कमांडो को टे्निंग देने लगते हैं. अचानक 2008 में मुंबई पर आतंकवादी हमला होता है. जब ताज होटल के लिए कमांडो रवाना होते हैं,तो मेजर संदीप खुद से उनका नेतृत्व करते हैं और महज 31 वर्ष की अल्प उम्र में वह वीरगति को प्राप्त होते हैं.

लेखन व निर्देशनः

इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि 26/11 के दुःखद आतंकवादी हमले (जिससे सभी परिचित हैं ) के गड़े मर्दे उखाड़ने में समय बर्बाद करने की बजाय लेखक अदिवि शेष  व निर्देशक शशि किरण टिक्का अपना सारा ध्यान एक इंसान के तौर पर शहीद मेजर संदीप के ही इर्द गिर्द सीमित रखते हैं. लेकिन संदीप की अपने सेना के साथियों के बारे में कुछ ट्रैक अधूरे लगते हैं. फिल्म की पटकथा जिस अंदाज में लिखी गयी है,उसके चलते ढाई घ्ंाटे तक फिल्म दर्शकों को कुछ भी सोचने का वक्त नही देती. इंटरवल से पहले फिल्म कुछ ज्यादा ही फिल्मी हो गयी है. पर इंटरवल के बाद तो हर दृश्य कमाल का है. मगर संदीप और ईशा की पहली मुलाकात का दृश्य प्रभावित नहीं करता,यह कमजोर लेखन के साथ ही कमजोर निर्देशन की वजह से होता है. इतना ही नही संदीप व ईशा के रोमांस को ठीक से उकेरा नही गया. मतलब रोमांस को कुछ वक्त दिया जा सकता था. यह अलग बात है कि बाद में दोनों की कैमिस्ट्री कमाल की उभरकर आती है.

अमूमन इस तरह की युद्ध परक या सैनिक पर बनी फिल्मों में जबरन देशभक्ति को ठॅूंसा जाता है. मगर फिल्म ‘मेजर’ में कहीं भी उपदेशात्मक देशभक्ति नही है. फिल्म रोमांचक शैली में बनी है. रोमांच के पल व एक्शन दृश्य शानदार बन पड़े हैं.  फिल्म तो मेजर के विचारों और उनकी बहदुरी का सेलीब्रेशन है. इतना ही नही फिल्म का क्लायमेक्स भी एकदम हटकर व शानदार है. यह फिल्म शहीद के पार्थिव शरीर के वक्त रूदन दिखाकर दर्शको को इमोशनल ब्लैकमेल नही करती है. क्लामेक्स में शहीद मेजर संदीप पिता के संवाद काफी प्रभाव छोड़ते हैं.

अक्षत अजय शर्मा के संवाद दिल तक पहुंचते हैं. कुछ जगहों पर श्रीचरण पकाला का संगीत कमजोर पड़ जाता है.

अभिनयः

फिल्म की कहानी व पटकथा लिखने के साथ ही चिकने चेहरे वाले किशोर संदीप के किरदार में अदिवि शेष ने जान डाल दी है. कहा जाता है कि जब अभिनेता खुद ही कहानी,पटकथा व किरदार लिखता है,तो वह किरदार लिखते लिखते उस किरदार का हिस्सा बन चुका होता है,उसके बाद उस किरदार को परदे पर पेश करना उसके लिए अति सहज होता है. कम से कम यह बात यहां अदिवि शेष के संदर्भ में एकदम सटीक बैठती है. जीवन से क्या चाहिए,इसकी समझ के साथ उसके लिए विपरीत परिस्थितियों में भी लड़ने को तैयार मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के किरदार को अपने अभिनय से अदिवी शेष ने जीवंतता प्रदान की है.

सही मायनों में देखा जाए तो सई मंाजरेकर को पहली बार एक बेहतरीन किरदार निभाने का अवसर मिला है. ईशा के किरदार में वह न सिर्फ खूबसूरत लगी हैं, बल्कि ईशा के अकेले मन की बेबसी को बहुत ही अच्छे ढंग से परदे पर उकेरने में सफल रही हैं. मगर भावनात्मक दृश्यों में वह विफल रही हैं और उनकी अनुभवहीनता उभरकर सामने आती है. इतना ही नही आर्मी आफिसर की पत्नी के दर्द को भी व्यक्त करने में वह बुरी तरह से असफल रही हैं. इस फिल्म की कमजोर कड़ी तो सई मांजरेकर ही हैं. एक बिजनेस ओमन व एक छोटी बच्ची की मां प्रमोदा के छोटे किरदार में शोभिता धूलिपाला अपनी छाप छोड़ जाती हैं. मुरली शर्मा भी छोटी सी भूमिका में याद रह जाते हैं.

संदीप के पिता के किरदार में प्रकाश राज और मंा के किरदार में रेवती ने अपनी तरफ से सौ प्रतिशत दिया है. वैसे भी यह दोनो माहिर कलाकार हैं. यह दोनों जिस तरह से अपने बेटे से प्यार करते हैं या उसकी मौत पर बारिश में भीगते हुए शोक करते हैं,यह दृश्य अति यथार्थ परक व  दिल दहला देने वाले हैं. इन्हे रोते देख दर्शक की आंखे भी नम हो जाती हैं. मुरली शर्मा और अनीश कुरुविला का अभिनय ठीक ठाक है.

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पथभ्रष्ठा- भाग 2: बसु न क्यों की आत्महत्या

मुझे यों अचानक बिना किसी पूर्व सूचना के अपने घर पर देख कर शुभेंदु अचरज में पड़ गए. राजेश और महेश अपनीअपनी पत्नी को ले कर काम पर निकल गए थे. इसीलिए मुझे अपने मन की बात कहने के लिए विशेष भूमिका नहीं बांधनी पड़ी. बातचीत को लंबा न खींच कर मैं ने शुभेंदु से मुसकान के बारे में प्रश्न किया, तो उन्होंने मुझे बताया कि मुसकान उन की गोद ली हुई बेटी है. यह बात तो मैं भी जानती थी, पर किस की बेटी है. मैं यह जानना चाह रही थी.

‘‘मुसकान, बसु की बेटी है… बसु और रवि…’’ उन्होंने नजरें नीची कर के बताया. तो ऐसा लगा, मानो एकसाथ कई हथौड़ों ने मेरे सिर पर प्रहार कर दिया हो. सब कुछ तो सामने था. उजली धूप सा. कुछ देर के लिए हम दोनों के बीच मौन सा छा गया.

शुभेंदु ने धीमे स्वर में अपनी बात कही, ‘‘तुम जानती हो, बसु ने रवि की हत्या कर के खुद भी नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या कर ली थी… इस बच्ची को पुलिस अपने साथ ले गई और नारी सेवा सदन में डाल दिया. ऐसे बच्चों का आश्रय स्थल ये अनाथाश्रम ही तो होते हैं. समझ में नहीं आता इस पूरी वारदात में मुसकान का क्या दोष था. मैं अनाथाश्रम संचालक से बातचीत कर के मुसकान को अपने घर ले आया. थोड़ी देर चुप रहने के बाद फिर शुभेंदु ने मुझे आश्वस्त किया. चारु मुसकान की रगों में मेरा खून प्रवाहित नहीं हो रहा है. पर उस में मेरे ही संस्कार हैं. वह मेरी देखरेख में पली है. उस के अंदर तुम्हें अंगरेजी और हिंदू संस्कृति का सम्मिश्रण मिलेगा. संभव और मुसकान का विवाह 2 संस्कृतियों, 2 विचारधाराओं का सम्मिश्रण होगा. मुझे पूरा विश्वास है, मुसकान एक आदर्श बहू और पत्नी साबित होगी.’’

मैं ने पुन: प्रश्न किया, ‘‘मुसकान को यह सब मालूम है?’’

‘‘नहीं. शुरू में मुसकान हर समय डरीसहमी रहती थी. उस ने अपनी आंखों के सामने हत्या और अगले ही दिन मां की मौत देखी थी. वह कई बार रात में भी चिल्लाने लगती थी. उस के मन से उस भयानक दृश्य को मिटाने में मुझे काफी परिश्रम करना पड़ा था. इसीलिए पहले मैं ने शहर छोड़ा और फिर देश. लंदन में आ कर बस गया. नन्हे बच्चों का दिल स्लेट सा होता है. जरा सो पोंछ दो तो सब कुछ मिट जाता है.’’

उस के बाद वे नन्ही मुसकान की कई तसवीरें ले आए जिन से स्पष्ट हो गया कि मुसकान बसु की ही बेटी है. घटनाएं यों क्रम बदलेंगी, किस ने सोचा था?

उस रात मैं सो नहीं पाई थी. मन परत दर परत अतीत में विचर रहा था. बसु मेरी आंखों के सामने उपस्थित हो गई थी. जिस के साथ मेरा संबंध सगी बहन से भी बढ़ कर था.

30 वर्ष पूर्व बसु मां के पास मकान किराए पर लेने आई थी. साथ में शुभेंदु भी थे. वह सुंदर थी, स्मार्ट थी. मृदुभाषिणी इतनी कि किसी को भी अपना बना ले. शुभेंदु सिविल इंजीनियर थे. स्वभाव से सहज सरल थे और सलीकेदार भी थे. थोड़ीबहुत बातचीत के बाद पुरानी जानपहचान भी निकल आई तो मां पूरी तरह आश्वस्त हो गई थीं और मकान का पिछला हिस्सा उन्होंने किराए पर दे दिया था.

शुभेंदु सुबह 8 बजे दफ्तर के लिए निकलते तो शाम 8 बजे से पहले नहीं लौटते थे. बसु अपने दोनों बेटों को स्कूल भेज कर हमारे घर आ जाती थी. मां से पाक कला के गुर सीखती. नएनए डिजाइन के स्वैटर बनाना सीखती. बसु कुछ ही दिनों में हमारे परिवार की सदस्य जैसी बन गई थी. मां उसे बेटी की तरह प्यार करतीं. मुझे भी उस के सान्निध्य में कभी बहन की कमी महसूस नहीं होती थी.

कुछ ही दिनों के परिचय में मैं इतना जान गई थी कि बसु बेहद महत्त्वाकांक्षी है. उस में आसमान को छूने की ललक है. जो कुछ अब तक जीवन में नहीं मिला था, उसे वह अब किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहती थी. चाहे इस के लिए उसे कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े.

एक दिन बसु बहुत खुश थी. पूछने पर उस ने बताया कि शुभेंदु को दुबई में नौकरी मिल रही है. 50 हजार प्रतिमाह तनख्वाह मकान, गाड़ी, बोनस सब अलग. लेकिन शुभेंदु जाना नहीं चाहते. कह रहे हैं कि कभी तो यहां भी नहीं है. अच्छी गुजरबसर हो ही रही है.

‘‘सिर ढको तो पैर उघड़ जाते हैं और पैर ढको तो सिर उघड़ जाता है,’’ बसु ठठा कर हंस दी थी, ‘‘बच्चे बड़े हो रहे हैं. धीरेधीरे खर्चे भी बढ़ेंगे. इस मुट्ठी भर तनख्वाह से क्या होगा?’’ फिर गंभीर स्वर में से मां बोली, ‘‘चाची आप ही समझाइए इन्हें. ऐसे मौके जिंदगी में बारबार नहीं मिलते.’’

‘‘तुम भी जाओगी शुभेंदु के साथ?’’ मां के चेहरे पर चिंता के भाव दिखाई दिए थे.

‘‘नहीं, सब के जाने से खर्च ज्यादा होगा… बचत कहां हो पाएगी?’’ यह सुन मां के मन का कच्चापन सख्त हो उठा. बोलीं, ‘‘भरी जवानी में पति को अकेले विदेश भेजना कहां की समझदारी है?’’

लेकिन बसु अपनी ही बात पर अटल थी, ‘‘जवानी में ही तो इंसान चार पैसे जोड़ सकता है. एक बार आमदनी बढ़ी तो जीवन स्तर भी बढ़ेगा. सुखसुविधा के सारे साधन जुटा सकेंगे हम… छोटीछोटी चीजों के लिए तरसना नहीं पड़ेगा.’’

शुभेंदु चुपचाप पत्नी की बातें सुनते रहे. बसु की धनलोलुपता के कारण अकसर उन के आपसी संबंधों में कड़वाहट आ जाती थी. शुभेंदु तीव्र विरोध करते. अपनी सीमित आय का हवाला देते. पर बसु निरंतर उन पर दबाव बनाए रखती थी.

आखिर शुभेंदु दफ्तर से इस्तीफा दे कर दुबई चले गए. उन का फोन हमेशा ही घर आता था. उन की बातों में ऐसा लगता था जैसे दुबई में उन का मन नहीं लग रहा है.

बसु उन्हें समझाती, दिलासा देती, ‘‘अपने परिवार से दूर, नए लोगों के साथ तालमेल स्थापित करने में कुछ समय तो लगता ही है. 1 साल का ही तो प्रोजैक्ट है. देखते ही देखते समय बीत जाएगा.’’

शभेंदु नियमित पैसा भेजने और बसु बड़ी ही समझदारी से उस पैसे को विनियोजित करती. कुछ ही दिनों में उन की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो गई. नोएडा में उन्होंने 200 गज का एक प्लाट भी खरीद लिया.

एक दिन अचानक बसु निर्णयात्मक स्वर में बोली, ‘‘पूरा दिन बोर होती रहती हूं. सोच रही हूं, आधे प्लाट पर शेड डाल कर एक छोटा सा बुटीक खोल लूं.’’

‘‘बच्चे बहुत छोटे हैं बसु. उन्हें छोड़ कर इतनी दूर कैसे संभाल पाओगी बुटीक? आनेजाने में ही अच्छाखासा समय निकल जाएगा,’’ मां ने अपने अनुभव से उसे सलाह दी.

‘‘मैं तो हफ्ते में 2-3 दिन ही जाऊंगी. बाकी दिन काम रवि संभाल लेंगे?’’

‘‘कौन रवि,’’ मां की भृकुटियां तन गईं, माथे पर बल पड़ गए.

‘‘मेरे राखी भाई. दरअसल, उन्हीं के प्रोत्साहन से मैं ने यह काम शुरू करने की योजना बनाई है?’’

‘‘शुभेंदु से अनुमति ले ली है?’’ मां ने पूछा.

मां शुरू से ही शंकालु स्वभाव की थीं. उन्हें इन राखी भाइयों पर विश्वास नहीं था. बसु ने मां को आश्वस्त किया था, ‘‘चाची, आप क्यों घबरा रही हैं? रवि शुभेंदु के भी परिचित हैं और शादीशुदा भी… मैं जानती हूं इस काम के लिए कभी मना नहीं करेंगे.’’

कच्चे चावल खाने की आदत से कैसे छुटकारा पाएं?

सवाल-

मैं 44 साल की महिला हूं. 1 साल से एक विचित्र समस्या से परेशान हूं. मैं रोजाना 1 कटोरी कच्चे चावल खाती हूं. इन्हें खाए बिना मुझे चैन नहीं मिलता. मैं ने इस आदत को छोड़ने की बहुत कोशिश की पर लत है कि छूटे नहीं छूट रही है. इस बीच मुझे त्वचा रोग ऐग्जिमा भी हुआ, जो दवा खाने से ठीक हो गया. 2 बार यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन भी हुआ. वह भी दवा लेने से ठीक हो गया. कहीं ऐग्जिमा और यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन कच्चे चावल खाने की लत से तो नहीं हुआ या फिर यह कहीं शरीर में किसी विटामिन की कमी का लक्षण तो नहीं? कृपया बताएं कि कच्चे चावल खाने की अपनी इस आदत से छुटकारा पाने के लिए क्या करूं?

जवाब-

आप जिस समस्या से गुजर रही हैं वह पाइका नामक विकार का ही एक रूप नजर आता है. यह तन से अधिक मन का विकार है, जो वयस्कों में कम बच्चों में अधिक देखा जाता है. गर्भवती स्त्रियों में भी यह विकार देखा जाता है. अकसर इस में मिट्टी, दीवार का चूना, पेंट, लकड़ी का चूरा आदि चीजें खाने की आदत पड़ जाती है. यह तो गनीमत है कि आप की लत कच्चे चावल खाने तक ही सीमित है. यह विकार किन कारणों से जन्म लेता है, यह कोई ठीकठीक नहीं जानता. पर अत्यधिक मानसिक स्ट्रैस, शरीर में विटामिन और खनिज आदि तत्त्वों की कमी, औब्सेसिव कंपल्सिव डिसऔर्डर जैसी कई भिन्नभिन्न स्थितियां इस के लिए दोषी पाई गई हैं. आप के शरीर में किसी विटामिन या खनिज तत्त्व की कमी है, यह सहीसही जानकारी तो डाक्टरी जांच से ही प्राप्त हो सकती है. शारीरिक जांच और विशेष रक्त जांच कर के डाक्टर विटामिन और खनिज तत्त्वों की कमी की पुष्टि का उपाय बता सकता है. अगर समस्या मनोवैज्ञानिक है, तब इस का समाधान किसी योग्य साइकोलौजिस्ट की मदद से किया जा सकता है. बिहेवियर थेरैपी और कुछ दवाएं इस स्थिति में लाभकारी सिद्ध होती हैं.

हां, ऐग्जिमा या यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन से पाइका का कोई संबंध होने की कोई गुंजाइश नहीं है. अत: इस विषय में आप मन में किसी प्रकार की ग्रंथि न पालें. बहुत संभव है कि कुछ समय तक मल्टीविटामिन टैबलेट लेने और अपने मन को समझाने से ही आप इस विकार पर जीत हासिल कर लें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

हो जाने दो- भाग 3: कनिका के साथ क्या हुआ

एक दिन फेसबुक पर सैम की फ्रैंड रिक्वैस्ट देख कर कनिका को बहुत आश्चर्य हुआ. कुछ सोच कर उस ने उसे स्वीकार कर लिया.“थैंक्स फौर ऐक्सेप्टिंग मी ऐज फ्रैंड.” तुरंत ही मैसेंजर पर सैम का मैसेज उभरा. कनिका बिना कोई रिप्लाई दिए औफलाइन हो गई.

“हेलो.”“हाउ आर यू?”“हैव यू स्टार्टेड औफिस?”“कैन वी चैट औन फोन?”“प्लीज, गिव योर मोबाइल नंबर.”दूसरे दिन सुबह सैम के इतने सारे मैसेज देख कर कनिका मुसकराए बिना न रह सकी. उस ने अपना मोबाइल नंबर उसे मैसेज कर दिया.

रात 11 बजे जब सब सो गए, तब कनिका औनलाइन थी.“मे आई कौल यू?” सैम का मैसेज दिखाई दिया.

“ओके,” कनिका ने रिप्लाई करने से पहले मोबाइल को साइलैंट मोड पर कर दिया. मोबाइल घरघराया. अनजान नंबर था. कनिका ने कौल रिसीव की. यह सैम ही था. थोड़ी देर औपचारिक बातें हुई. कनिका को सैम से बात कर के अच्छा लगा. आगे भी टच में रहने की अनुमति लेने के बाद सैम ने फोन रख दिया.

अब हर रोज देररात सैम के फोन आने लगे. कनिका को भी उस के कौल्स का इंतज़ार रहने लगा था. सैम टूटीफूटी हिंदी में उस से पूरे दिन का ब्योरा पूछता और कनिका टूटीफूटी इंग्लिश में उसे बताती. हो सकता है यह बातचीत सैम के लिए उस के शोध का एक हिस्सा मात्र हो, लेकिन कनिका उस से बात कर के बेहद तनावमुक्त महसूस करती थी. अनजान व्यक्ति के सामने खुलना वैसे भी काफी राहत भरा होता है क्योंकि यहां राज के जगजाहिर होने का भय नहीं होता.

“जलज तो अब रहे नहीं. कनिका का यहां अकेले दम घुटता होगा. आप कहें तो हम इसे अपने साथ ले जाएं,” एक दिन बेटी से मिलने आए कनिका के मांपापा ने माधवी से इजाजत मांगी. कनिका भी इस बोझिल माहौल से निकलना चाहती थी.

“अभी तो सबकुछ बिखरा पड़ा है. कुछ दिनों बाद पंकज इसे आप के पास छोड़ आएगा,” माधवी ने कुछ सोचते हुए कहा. कनिका के मांपापा खाली हाथ लौट गए.

“क्यों न कनिका को जलज के नाम की चुनरी ओढ़ा दी जाए… बात घर की घर में ही रह जाएगी,” एक रात माधवी ने पति रमेश से जिक्र किया. रमेश को भी पत्नी की बात में दम लगा.

“लेकिन क्या पंकज और भाईसाहब इस बात के लिए राजी हो जाएंगे? उन के भी तो अपने बेटे की शादी को ले कर कुछ अरमान होंगे. कौन जाने पंकज ने किसी को पसंद ही कर रखा हो,” रमेश ने आशंका जताई.

“मैं कल पंकज से बात कर के देखती हीन,” माधवी ने पति को आश्वस्त किया.“चाची, मैं भाभी को अपनाने के लिए सोच तो सकता हूं लेकिन यह बच्चा? मुझे लगता है कि बच्चे को ले कर आज भावनात्मक आवेश में लिया गया फैसला मेरी आने वाली पूरी जिंदगी के लिए नासूर बन सकता है. यह किसी के भी हित में नहीं होगा, न मेरे न कनिका और ना ही बच्चे के,” पंकज ने व्यावहारिकता भरा अपना मत स्पष्ट किया.

“तो ठीक है न, अभी तो ज्यादा वक्त नहीं हुआ है, मैं किसी डाक्टर से बात कर के इसे अबौर्ट करवाने की व्यवस्था करती हूं,.” माधवी ने कहा. सुनते ही कनिका के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई. अनजाने ही फैमिली मीटिंग में उठे इस मुद्दे पर हो रही बहस उस के कानों में पड़ गई थी.

“सैम, आय एम इन ट्रबल. माय फैमिली हैज डिसाइडेड टू अबौर्ट माय बेबी,” रात में कनिका ने सिसकते हुए सैम को फोन पर बताया.

“ओ माय गौड़, हाउ कैन दे डू दिस? कनिका, माय डियर, आय एम फीलिंग सो हैल्पलैस. बट लिसन, यू शुड गो टू योर मौम. शी मस्ट हैल्प यू,” सैम ने कनिका को अपनी मजबूरी तो बताई लेकिन साथ ही उसे रास्ता भी सुझा दिया. दूसरे दिन कनिका ने अपनी मां को फोन कर के मायके जाने की इच्छा जताई और 2 दिनों बाद ही उस के पापा उसे ससुराल से ले गए.

“वैसे कनिका, तुम्हारी सास और पंकज का फैसला मुझे व्यावहारिक लगता है. अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है. तुम्हें अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए. बच्चे तो और हो जाएंगे. तुम्हें पंकज के फैसले में सहयोग करना चाहिए,” मां ने भी जब कनिका को दुनियादारी समझाने की कोशिश की, तो वह टूट गई.

“प्लीज सैम, जस्ट गाइड मी. व्हाट शुड आई डू नाऊ? आय वांट टू कीप माय चाइल्ड,” रात को कनिका सैम से बातें करते हुए फफक पड़ी.

“वुड यू लाइक टू मैरी मी. आय विल ऐक्सेप्ट दिस बेबी,” सैम ने बिना किसी लागलपेट के कहा तो कनिका चौंक गई.

“आर यू ओके? यू नो व्हाट यू से?” कनिका ने पूछा.“येस, आय नो व्हाट आय सेड,” सैम ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा.“ओके, दैन कम टू मीट माय फैमिली,” कनिका ने उस का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए उसे आमंत्रित किया. अगले ही सप्ताह सैम और महेश कनिका के घर आए.

“तुम पागल हुई हो कनिका, तुम जानती भी हो कि इस फैसले के दूरगामी परिणाम क्या हो सकते हैं. सैम तो आज यहां है, कल अपने देश चला जाएगा. क्या तुम हम से दूर पराए देश में रह पाओगी? कहीं तुम्हारे प्रति सैम का मन बदल गया तो हम तुम्हारी मदद करने की स्थिति में भी नहीं होंगे,” पापा ने उसे समझाया.

“कल किस ने देखा है पापा. क्या हम ने जलज को ले कर कभी यह कल्पना की थी कि हमें यह दिन देखना पड़ेगा. नहीं ना. तो फिर जो हो रहा है उसे हो जाने दीजिए. मुझे अपना बच्चा चाहिए पापा. यह जलज की आखिरी निशानी है,’ कनिका लगभग रो ही पड़ी थी.

पापा निशब्द थे. कमरे में सिर्फ कनिका की सिसकियां गूंज रही थीं. “हम तुम्हारी बेवकूफी में साथ नहीं दे सकते कनिका. जान न पहचान, ऐसे ही कैसे किसी परदेसी के साथ शादी के तुम्हारे फैसले को मान लें? तुम खुद भी सैम को कितना जानती हो? एक बार तो उजड़ चुकी हो, तुम्हें दोबारा उजड़ता हुआ नहीं देख पाएंगे. बेहतर है, तुम पंकज के बारे में ही सोचो. बच्चों का क्या है, और हो जाएंगे,” मां ने भी शब्दों को कठोर करते हुए पापा की हां में हां मिलाई.

बात नहीं बनी. न तो कनिका मम्मीपापा के सामने अपना पक्ष ठीक से रख पाई और न ही भाषा की समस्या के कारण सैम उन का भरोसा जीत सका. महेश की मध्यस्थता भी काम न आई. दोष किसी का भी नहीं कहा जा सकता. बेटी के मांबाप थे, फिक्रमंद होना लाजिमी था. सभी मांबाप शायद ऐसे ही होते होंगे. सैम को निराश ही वापस लौटना पड़ा.

बातें के पांव भले ही न हों लेकिन उन की गति बहुत तीव्र होती है. कनिका और सैम के बारे में जब उस की ससुराल वालों को पता चला तो बहुत बवाल मचा. सास ने तो कुलच्छनी कहते हुए उस के लिए घर के दरवाजे ही बंद कर दिए. कनिका अकेली जरूर हो गई थी लेकिन कमजोर नहीं. उस ने अपनी नौकरी वापस जौइन कर ली. हालांकि, मां अब भी चाहती थीं कि कनिका पंकज से शादी कर के उसी घर में वापस चली जाए. आखिर देखाभाला परिवार है. अनहोनी तो किसी के भी साथ हो सकती है.

इधर कनिका के गर्भ का आकार बढ़ता जा रहा था और उधर उस पर मां का दबाव भी. दबाव था पंकज से शादी करने और बच्चा गिराने का, लेकिन कनिका किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकी. तनाव अधिक बढ़ने लगा, तो उस ने घर छोड़ दिया और वर्किंग वीमेन होस्टल में रहने लगी. सैम का शोधकार्य लगभग पूरा होने को ही था. इस के बाद यदि वह चाहे तो उसे स्थायी तो फिलहाल नहीं पर गेस्ट फैकल्टी के रूप में वहीं यूनिवर्सिटी में ही जौब मिल जाएगी. किसी और को भरोसा हो न हो, कनिका को उस पर पूरा भरोसा था.

प्रसव का समय नजदीक आ रहा था. बच्चे की दादी ने तो उस से नाता तोड़ ही लिया था, नानी भी कनिका के पास नहीं थीं. सैम और महेश ने ही आ कर सारा काम संभाला. कनिका ने बेटी को जन्म दिया. उस नर्म सी बच्ची को गोद में ले कर सैम आश्चर्य से अपनी भूरी आंखें चौड़ी कर रहा था.

‘इज दिस रियली माइन?” सैम ने बच्ची को चूमते हुए कहा.“किस के साथ किस का रिश्ता कब और कैसे बंध जाता है, कोई नहीं जानता. बीज किस ने डाला और फल किस के हाथ लगा. सब संयोग की बातें हैं,” यह सोच कर कनिका मुसकरा दी.

“सैम, कनिका और यह बच्चा, मेरे दोस्त की निशानी हैं. इन्हें हिफाजत से रखना मेरे दोस्त,” महेश ने सैम को गले लगा कर नई जिंदगी की शुभकामनाएं दीं.सैम कुछ समझा, कुछ नहीं समझा लेकिन इतना तो समझ ही गया था कि अब कनिका उस की हो चुकी है. उस ने कनिका को बांहों के घेरे में ले लिया. कनिका ने मुसकरा कर अपना हाथ एक तरफ सैम और दूसरी तरफ बच्ची के इर्दगिर्द लिपटा लिया.

बंद आंखों से खुशी की बूंदें छलकने लगीं.

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जाल: अनस के साथ क्या हुआ था

लल्लन मियां ने बहुत मेहनत से यह गैराज बनाया था और आज उन का यह काम इतना बढ़ गया था कि लल्लन मियां के सभी बेटे भी इसी काम में लग गए थे.

पर आजकल गैराज के काम में भी कंपीटिशन बहुत बढ़ गया था. ग्राहक भी यहांवहां बंट गए थे, जिस के चलते धंधा थोड़ा मंदा हो गया था. इस से लल्लन मियां थोड़ा परेशान भी रहते थे. उन की परेशानी की वजह थी कि उन का मकान अभी पूरी तरह से बन नहीं पाया था.  2 कमरे और एक रसोईघर ही थी.

लल्लन मियां के 3 बेटे थे, जिन में से 2 बेटों की शादी हो चुकी थी और तीसरा बेटा अनस अभी तक कुंआरा था.

दोनों बहुओं का दोनों कमरों पर कब्जा हो गया. अम्मीअब्बू बरामदे में सो जाते और अनस आंगन में.

पता नहीं क्यों, पर जब भी अनस के अब्बू उस से रिश्ते की बात करते, तो वह उन की बात सिरे से ही खारिज कर देता.

‘‘अब अनस से क्या कहूं…? तुम्हीं बताओ अनस की अम्मी कि वह अब  25 बरस का हो चुका है… शादी करने की सही उम्र है और फिर फरजाना जैसी अच्छी लड़की भी तो न मिलेगी… पर यह मानता ही नहीं,’’ लल्लन मियां अनस की अम्मी से मशवरा कर रहे थे.

‘‘अजी, आप इतनी गरमी से बात मत करो… जवान लड़का है… क्या पता, कहीं उस के दिमाग में किसी और लड़की का खयाल बसा हो…? मैं अपने हिसाब से पता लगाती हूं,’’ अनस की अम्मी ने शक जाहिर करते हुए कहा.

जुम्मे वाली रात को अम्मी ने अनस को अपने पास बिठाया और पीठ पर हाथ फेरते हुए कहने लगीं, ‘‘देख अनस, तेरे अब्बू ने बड़ी मेहनत से इस परिवार की खुशियों को संजोया है. यह छोटा सा मकान बनवा कर उन्होंने अपने सपनों में सुनहरे रंग भरे हैं और अब हम दोनों ही यह चाहते हैं कि तेरी शादी अपनी इन आंखों से देख लें.’’

‘‘पर अम्मी, मैं तो अभी निकाह करना ही नहीं चाहता,’’ अनस बोला.

‘‘देख बेटा, हर चीज की एक उम्र होती है और तेरी शादी कर लेने की उम्र हो गई है. हां, अगर कोई लड़की खुद  के लिए पसंद कर रखी हो, तो मुझे बेफिक्र हो कर बता सकता है. मैं किसी से नहीं कहूंगी.’’

‘‘नहीं अम्मी, ऐसी तो कोई बात नहीं है,’’ इतना कह कर अनस चला गया.

अगले दिन ही अनस ने शमा से मुलाकात की.

‘‘सब लोग मेरे पीछे पड़े हैं…  शादी कर लो, शादी कर लो,’’ अनस परेशान हालत में कह रहा था.

‘‘तो कर लो शादी… इस में हर्ज ही क्या है?’’ शमा ने हंसते हुए कहा.

‘‘तुम अच्छी तरह से जानती हो शमा कि अब्बू ने बड़ी मुश्किल से 2 कमरे का मकान बनवाया है. उन दोनों कमरों में दोनों बड़े भाई रह रहे हैं. अब तुम ही बताओ कि मैं शादी कर के भला क्या तुम्हें आंगन में बिठा दूं…’’ अनस काफी गुस्से में था.

‘‘अब तो ऐसे में हमारे सामने सिर्फ 2 ही रास्ते हैं… पहला रास्ता यह है कि हम शादी कर लें और उसी घर में जैसेतैसे गुजारा करें. दूसरा रास्ता यह है कि हमतुम पैसे जमा करें और जो छोटीमोटी रकम जमा हो सके, उस  से एक छोटा सा कमरा बनवा लें,’’ शमा ने कहा.

दरअसल, अनस ने अपनी जिंदगी में एक वह समय भी देखा था, जब अब्बू ने प्लाट खरीदने के बाद दीवारें तो खड़ी कर ली थीं, पर पैसों की तंगी के चलते कमरे बनवा पाना उन के बस में नहीं रह गया था.

इस से अनस के दोनों बड़े भाइयों कमर और जफर को दिक्कत हुई, क्योंकि दोनों शादीशुदा थे और दिनभर के काम के बाद अपनी बीवियों के साथ रात गुजारें भी तो कैसे?

हालात कुछ ऐसे बने कि दोनों भाइयों की चारपाई अलग और उन की बीवियों की चारपाई अलग पड़ने लगी.

पर भला ऐसा कब तक चलता? उन सभी की जिस्मानी जरूरत उन लोगों को एकसाथ रात गुजारने को कहती थी, पर हालात के चलते ऐसा हो पाना मुमकिन नहीं लग रहा था.

अपनी जिस्मानी जरूरत और रात गुजारने की मुहिम की शुरुआत करने में पहला कदम बड़े भाई कमर ने उठाया. बड़े ही करीने से कमर ने अपनी चारपाई को दीवार से सटा कर डाल दिया और उस के ऊपर आड़ेतिरछे बांस अड़ा कर एक खाका बनाया और उस के ऊपर से एक बेहतरीन टाट का परदा डाल दिया. अब यह जगह ही कमर और बीवी का ड्राइंगरूम थी और यही जगह उन का बैडरूम भी.

छोटे भाई जफर को यह सब थोड़ा अजीब भले ही लगा हो, पर उस ने कभी हावभाव से कुछ जाहिर नहीं होने दिया. अलबत्ता, कुछ दिनों के बाद उस ने भी दूसरी दीवार के पास अपनी चारपाई डाल कर उसे भी टाट से कवर कर के अपना बैडरूम बना लिया.

कमर और जफर और उन की बीवियां तो अब टाट के परदे के अंदर सोते और बाकी सब लोग आंगन में,

अनस के दोनों बड़े भाई बेफिक्री से रात में अपनी शादीशुदा जिंदगी का मजा लूटते, पर उन लोगों की चारपाई की चूंचूं की आवाज अनस की नींद खराब करने को काफी होती. भाभियों की खनकती चूडि़यां अनस को बिना कुछ देखे ही टाट के अंदर का सीन दिखा जातीं.

कुंआरा अनस आंगन में लेटेलेटे ही बेचैन हो उठता. कुछ समय तक एक खास अंदाज में चारपाई की चूंचूं होती और उस के बाद एक खामोशी छा जाती. कहने को तो हर काम परदे में हो रहा था, पर हर चीज बेपरदा हो रही थी.

अगर किसी रात में कमर की चारपाई पर खामोशी रहती, तो जफर की चारपाई पर आवाजें शुरू हो जातीं. अनस अकसर सोचता कि भला ये आवाजें अम्मीअब्बू को सुनाई नहीं देती होंगी क्या? क्या वे लोग जानबूझ कर इन आवाजों को अनसुना कर देते हैं?

रात में होने वाली इन आवाजों से अनस परेशान हो जाता. उस के भी कुंआरे मन में कई उमंगें जोर मारने लगतीं और वह कभीकभार तो अपने बिस्तर पर ही उठ कर बैठ जाता और जब सुबह के समय गैराज में नींद न पूरी होने के चलते काम में उस का मन नहीं लगता, तब अब्बू और उस के बड़े भाई उसे डांटते.

ये सारी परेशानियां कम जगह और पैसे की तंगी के चलते ही तो थीं. अनस हमेशा ही एक अलादीन के चिराग की खोज में रहता, जिस से उस की सारी माली तंगी दूर हो जाती.

हालांकि वक्त हमेशा एकजैसा नहीं रहता. कमर और जफर ने खूब मेहनत कर के पैसा इकट्ठा किया और छोटेछोटे 2 कमरे बनवा लिए, जिन्हें दोनों शादीशुदा भाइयों ने आपस में बांट लिया.

पर, अनस और अम्मीअब्बू के लिए अब भी कमरा नहीं था. वे सब अब भी बाहर बरामदे में ही सोते थे.

पैसे और जगह की तंगी के चलते ही अनस ने अपने मन में यह फैसला ले लिया था कि जब तक घर में रहने के लिए एक कमरा नहीं बनवा लेगा, तब तक वह शादी के लिए हामी नहीं भरेगा और इसीलिए अनस ने अब तक शादी के लिए हामी नहीं भरी थी.

उस दिन पता नहीं क्यों शमा फोन पर बहुत घबराई हुई थी, ‘हां अनस… आज ही तुम से मिलना जरूरी है… बताओ, कहां और कितनी देर में मिल सकोगे?’

‘‘हां… मिल तो लूंगा… पर सब खैरियत तो है?’’

पर उस की इस बात का शमा ने कोई जवाब नहीं दिया. फोन काटा जा चुका था.

दोपहर को 2 बजे शमा और अनस उसी पार्क में एकसाथ थे, जहां वे अकसर मिला करते थे.

‘‘अब्बू मेरा निकाह कहीं और करने जा रहे हैं… अगर मुझ से निकाह  नहीं करना है तो कोई बात नहीं,’’ शमा ने कहा.

‘‘अरे, ऐसी कोई बात नहीं है. पर जब तक मैं अपने घर में एक कमरा न बनवा लूंगा, तब तक कैसे निकाह कर लूं, तुम्हीं बताओ?’’ अनस ने अपनी परेशानी जाहिर की.

‘‘हां… मैं तुम्हारे घर की परेशानी समझती हूं, पर एक कमरा न सही तो क्या हुआ, जहां दिलों में गुंजाइश होती है वहां सबकुछ हो जाता है… और फिर मेरे हाथों में भी हुनर है. शादी के बाद मैं भी कशीदाकारी का काम करूंगी और हम दोनों मिल कर पैसे कमाएंगे तो हम एक कमरा बहुत जल्दी ही बनवा लेंगे,’’ शमा ने राह सुझाई.

अनस बेचारा दोराहे पर फंस गया था. अगर वह शमा से निकाह करता है, तो उस के घर में कमरे की परेशानी है. और अगर यह बात सोच कर वह शादी नहीं करता है, तो शमा ही उस की जिंदगी से चली जाएगी… क्या करे और क्या न करे?

इसी ऊहापोह में अनस गैराज में आ कर काम करने लगा, पर उस का मन काम में न लगता था. बारबार उस की आंखों के सामने शमा का चेहरा घूम जाता था और वह खुद को एक हारा हुआ खिलाड़ी महसूस करने लगता था.

एक दिन जब अनस को और कोई रास्ता नहीं सूझा, तो उस ने अपनी और शमा की मुहब्बत के बारे में अम्मी को सबकुछ बता दिया.

अम्मी को अनस की यह साफगोई पसंद आई और उन्होंने भी अब्बू से बात कर के शमा के घर पैगाम भिजवा दिया.

शमा के घर वाले भी सुलझे हुए लोग थे. उन्होंने भी रिश्ता पक्का करने में कोई देरी नहीं की और अनस का निकाह शमा के साथ कर दिया गया.

घर के दोनों कमरों में बड़े भाईभाभियों का कब्जा था. लिहाजा, अपनी शादी की पहली रात में अनस को भी एक दीवार का ही सहारा लेना पड़ा. उस ने अपनी चारपाई एक दीवार के सहारे लगा कर उस पर एक सुनहरे रंग का परदा लगा दिया.

‘‘नई दुलहन के लिए कोई भाभी अपना कमरा 2-4 दिन के लिए खाली नहीं कर सकती थी क्या? पर नहीं… यहां तो बूढ़ों के भी रंगीन ख्वाब हैं,’’ भनभना रहा था अनस.

पूरी रात अनस ने शमा को हाथ भी नहीं लगाया, क्योंकि वह चारपाई से निकलने वाली आवाजों से अनजान न था. अपने मन को कड़ा किए वह चारपाई के एक कोने में बैठा रहा, जबकि शमा दूसरी तरफ. 2 दिल कितने पास थे, पर उन के जिस्म एकदूसरे से कितनी दूर.

अगले दिन से ही अनस को पैसे कमाने की धुन लग गई थी. वह जल्दी से जल्दी पैसे कमा कर अपने और शमा के लिए एक कमरा बनवा लेना चाहता था, इसीलिए गैराज में 12-12 घंटे काम करने लगा था.

एक दिन की बात है, अनस जब गैराज में काम कर रहा था, तभी एक बड़े आदमी की गाड़ी वहां आ कर रुकी. उस गाड़ी के एयरकंडीशनर की गैस निकल जाने के चलते एयरकंडीशनर नहीं चल रहा था और उस में बैठा हुआ आदमी बेहाल हुआ जा रहा था.

अनस ने उस की परेशानी समझी और फटाफट काम में लग गया. तकरीबन आधा घंटे में उस की गाड़ी का एयरकंडीशनर ठीक कर दिया.

‘‘बड़े मेहनती लगते हो… मुझे मेरे काम में भी तुम्हारे जैसे जवान और मेहनती लोगों की जरूरत रहती है… अगर तुम चाहो, तो मेरे साथ जुड़ सकते हो. मैं तुम्हें तुम्हारे काम की अच्छी कीमत दूंगा.’’

‘‘पर, मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘एक गाड़ी वाले से गाड़ी का ही काम तो लूंगा न… उस की चिंता मत करो… अगर मन करे, तो मेरे इस पते  पर आ जाना,’’ इतना कह कर वह सेठ चला गया.

यह एजाज खान का कार्ड था, जो दवाओं का होलसेलर था.

अनस पैसे के लिए परेशान तो था ही, इसलिए एक दिन एजाज खान के पते पर जा पहुंचा और काम मांगा.

‘‘ठीक है, तुम्हें काम मिलेगा… पर, मैं तुम से कुछ छिपाऊंगा नहीं. मुझे तुम्हारे जैसे तेज ड्राइवर की जरूरत है, जो रात में ही इस गाड़ी को शहर के बाहर ले जा सके और सुबह होने से पहले वापस भी आ सके.’’

शहर के बाहर वाले पैट्रोल पंप पर एक आदमी तुम्हारे पास आएगा, जिसे तुम्हें ये दोनों डब्बे देने होंगे और वापस यहीं आना होगा.’’

‘‘पर, इन डब्बों में क्या है?’’

‘‘इन डब्बों में ड्रग्स हैं… मैं ड्रग्स का काम करता हूं और इस के शौकीन लोगों को इस की डिलीवरी करवाना मेरी जिम्मेदारी है.’’

अनस अच्छी तरह समझ गया था कि एजाज खान उस से गैरकानूनी काम कराना चाहता?है, पर अपनी शादीशुदा जिंदगी में रंग घोलने के लिए अनस को भी पैसे की जरूरत थी.

अनस को यह काम करने में थोड़ी हिचक तो हुई, पर उस ने इसे करना मंजूर कर लिया. उस ने एजाज खान की गाड़ी शहर से बाहर ले जा कर पैट्रोल पंप पर खड़ी कर के वे डब्बे एक शख्स को दे दिए और वापस आ गया.

एजाज खान ने उसे इस जरा से काम के 25,000 रुपए दिए, तो अनस बहुत खुश हुआ.

‘‘बस शमा… अब देर नहीं है… ये देखो 25,000 रुपए… मुझे एक नया काम मिल गया?है, जिस के जरीए मैं खूब सारे पैसे कमा लूंगा और फिर अपना एक अलग कमरा होगा, जिस में हम दोनों खूब प्यार कर सकेंगे,’’ घर आ कर अनस ने शमा के हाथ को हलके से दबाते हुए कहा. यह सुन कर एक अच्छे भविष्य की कल्पना से शमा की आंखें भी छलछला आईं. 2 दिन बाद अनस के मोबाइल  पर एजाज खान का फोन आया, जिस  में उस ने एक बार और गाड़ी से दवा  की डिलीवरी करने के लिए अनस  को बुलाया.

हालांकि इस बार दवाओं के डब्बों की मात्रा ज्यादा थी, लेकिन पिछली बार की तरह अनस इस बार भी आराम से दवाएं डिलीवर कर आया था और इस के बदले में एजाज खान ने उसे 40,000 रुपए दिए.

अनस से ज्यादा खुश आज कोई नहीं था. वह पैसे ले कर सीधा बाजार पहुंचा और वहां से एक मिस्त्री की सलाह से ईंट, सीमेंट और मौरंग का और्डर कर दिया. वह जल्द से जल्द अपना कमरा बनवा लेना चाहता था.

अनस बिस्तर पर लेटा हुआ था. उस के नथुने में सीमेंट और मौरंग की महक रचबस जाती थी. वह सोच रहा था कि जिंदगी में सारी तकलीफें पैसे की कमी से आती?हैं, पर आज अनस के पास पैसा भी था और मन ही मन में ये सुकून भी था कि अब उसे और शमा को टाट के साए में नहीं सोना पड़ेगा.

रात के 11 बजे होंगे कि अचानक अनस का मोबाइल बजा, उधर से  एजाज खान बोल रहा था, ‘तुम अभी  मेरे पास चले आओ और एक गाड़ी दवा की ले कर तुम्हें शहर के बाहर जाना  है. वहां पर एक आदमी तुम से माल  ले लेगा.’

‘‘पर, अभी तो आधी रात हो रही है. और फिर मैं सोया भी नहीं हूं… मैं कैसे जा सकता हूं.’’

‘ज्यादा चूंचपड़ मत करो और चले आओ… पिछली बार से दोगुना दाम दूंगा… और वैसे भी हमारे धंधे में आने का रास्ता तो है, पर जाने का कोई रास्ता नहीं,’

कह कर एजाज खान ने फोन  काट दिया.

‘‘इतनी रात गए जाना पड़ेगा…?’’ शमा ने पूछना चाहा.

‘‘बस मैं यों गया और यों आया.’’

एजाज खान से गाड़ी ले कर अनस चल पड़ा. हाईवे पर उस की कार तेजी से भागी जा रही थी. अचानक अनस चौंक पड़ा था. सामने पुलिस की

2 जीपें रोड के बीचोंबीच खड़ी थीं. न चाह कर भी अनस को अपनी कार रोकनी पड़ी.

‘‘हमें तुम्हारी गाड़ी चैक करनी है… पीछे का दरवाजा खोलो,’’ एक पुलिस वाले ने कहा.

अनस के माथे पर पसीना आ गया, ‘‘पीछे कुछ नहीं है सर… दवाओं के डब्बे हैं. बस इन्हें ही पहुंचाने जा रहा हूं,’’ अनस ने कहा.

‘‘हां तो ठीक है… जरा हम भी तो देखें कि कौन सी दवाएं हैं, जिन्हें तू इतनी रात को ले जा रहा हैं,’’ पुलिस वाला बोला.

अनस को अब भी उम्मीद थी कि वह बच जाएगा, पर शायद ऐसा नहीं था. पुलिस ने दवा के डब्बे में छिपी हुई चरस बरामद कर ली थी. अनस को गिरफ्तार कर लिया गया.

अनस के हाथपैर फूल गए थे.

अगले दिन खुद पुलिस वालों ने अनस के मोबाइल से उस के घर वालों को सारी सूचना दी. शमा यह खबर सुन कर बेहोश हो गई.

अब अनस को किसी कमरे की जरूरत नहीं थी. उस की बाकी की जिंदगी के लिए तो जेल का ही कमरा काफी था, क्योंकि ड्रग्स के जाल में वह फंस चुका था.

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एक दिन के दोस्त: क्या बरकरार रह पाई पति पत्नी की दोस्ती

“बच्चे नहीं दिख रहे इला? कहां गए हैं?”

“दोस्तों के साथ डिनर पर गए हैं.”

“तुम उदास सी लग रही हो. क्या बात है?”

“कुछ नहीं, सुवीर. यहां तो मेरे कोई दोस्त ही नहीं बचे. या तो सब बाहर बस गए हैं या सब दूरदूर ही हैं. फोन पर भी कोई कितना बात करे,” मैं ने एक ठंडी सी सांस लेते हुए कहा.

सुवीर ने जैसे पति धर्म निभाते हुए मुझे तसल्ली दी, “अरे, ऐसा क्यों कहती हो? चलो, बताओ, कहां जाना है?”

“तुम तो पति हो, मेरे दोस्त थोड़े ही हो.”

“अरे डार्लिंग, ऐसा क्यों सोच रही हो? पतिपत्नी भी अच्छे दोस्त हो सकते हैं.”

“नहीं, मुझे नहीं लगता.”

“अच्छा, बताओ तो ज़रा. पतिपत्नी एकदूसरे के दोस्त क्यों नहीं हो सकते? इतनी अच्छी तरह से एकदूसरे को जानने वाले, रोज साथ में रहने वाले दो लोग दोस्त क्यों नहीं हो सकते?”

“दोस्तों से तो हम अपने मन की बातें आराम से कर सकते हैं.”

“अरे, तो क्या तुम अपने मन की बातें मुझ से नहीं करतीं?”

मैं चुप रही. यह शनिवार की शाम की बात है. सुवीर शायद आज कुछ ज़्यादा ही फ्री थे, पर इतनी बात क्यों कर रहे हैं मुझ से? मैं ने इधरउधर नजर डाली, उन के हाथ देखे, समझ आया, फोन चार्जिंग में लगा कर आए हैं, अब टाइम पास कर रहे हैं. कितने चालाक हैं. फोन हाथ में होता है तो किसी और  बात में ज़नाब का मन नहीं लगता. हर समय सोशल मीडिया पर रहने वाले इनसान हैं.

सुवीर अचानक मेरे पास आ कर बैठ गए और मेरी गोद में सिर रख कर लेट गए. बच्चों के घर में न होने का फायदा उठाने के मूड में आए ही थे कि मैं ने फिर पूछ लिया, शायद मेरी मति मारी गई थी, “सचमुच तुम्हें लगता है कि पतिपत्नी अच्छे दोस्त हो सकते हैं? कल संडे है, हम कल एकदूसरे के साथ पूरा दिन ऐसे रह कर देखें जैसे अपने दोस्तों के साथ रहते हैं? एक दिन के दोस्त बन कर देखें?”

“हां, मेरी जान. हम अच्छे दोस्त हैं ही, बन कर क्या देखना. फिर भी तुम कहती हो तो कल सिर्फ दोस्त बन कर रहेंगे, एक गेम खेल ही लेते हैं, मजा आएगा, फिलहाल तो पति बनने का मन कर रहा है,” शरारत से हंसते हुए वह मेरा हाथ पकड़ कर बेडरूम में ले गए. मैं तो यों ही छोटीछोटी बातों में एक्ससाइटेड हो ही जाती हूं, बस अब आने वाले कल की कल्पना में डूबी जोश से भर उठी.

बच्चे विवान और आर्या रात को आए तो मैं ने उन्हें बड़े उत्साह से अपना संडे का प्रोग्राम बताते हुए कहा, “कल बहुत मजा आएगा. हम दोनों कल दोस्तों की तरह रहने वाले हैं, जो मन होगा, वो बात करेंगे.”

विवान और आर्या ने एकदूसरे पर जैसे नजर डाली, मैं भड़क गई, “मजाक उड़ाने वाली क्या बात है?”

”पर मौम, हम ने तो कुछ भी नहीं कहा,” विवान ने अपनी हंसी रोकते हुए कहा.

“हां, जैसे मैं जानती नहीं दोनों को. हुंह,” कहते हुए मैं सोने की तैयारी करने लगी, तो आर्या की शरारत भरी आवाज आई, “आल द बेस्ट, मौम एंड डैड.”

विवान ने धीरे से आर्या से कहा, “बहन, क्या तुम कल के एंटरटेनमेंट के लिए तैयार हो? मौमडैड कल बहुत ड्रामा करने वाले हैं न? कोई बहाना कर के हम सुबह ही निकल लें दोस्तों के साथ?”

“नहीं भाई, ड्रामा होगा तो देखने वाले भी होने चाहिए न?”

मुझे उन की बातें साफसाफ सुनाई दे रही थीं, हद से ज्यादा उस्ताद बच्चे हैं, वे भी जान रहे थे कि मुझे सुनाई दे रहा होगा.

सुबह फ्रेश होने के बाद सुवीर ने कहा, “डार्लिंग, एक कप बढ़िया सी चाय तो पिला दो.”

मैं ने कहा, “हां, बना रही हूं, याद है न. आज हम दोस्त हैं. बीवी समझ कर ज्यादा फरमाइश न करना.”

सुवीर हंस पड़े, पूछा, “नाश्ते में क्या बनाओगी?”

“सैंडविच.”

“ठीक है.”

हम दोनों ने चाय हलकेफुलके मूड में ही पी, छुट्टी वाले दिन बच्चे थोड़ा लेट ही उठते हैं. वे दोनों सीधा लंच ही करते हैं, जब तक मेड आ कर काम निबटा कर गई, मैं रोज के कामों से थोड़ा फ्री हो कर सुस्ताने लगी, सुवीर आ कर पास ही बैठ गए, उन के हाथ में फोन था, वे मुसकरा रहे थे. मैं ने पूछ लिया, “क्यों हंस रहे हो?”

“अपने कलीग अजय की बात पर.”

“मुझे भी सुनाओ.”

“नहीं, रहने दो.”

सुवीर जिस तरह से फोन में आंखें गड़ाए मुसकरा रहे थे, मुझे उन की यह हंसी हजम नहीं हुई, इतनी आसानी से तो नहीं हंसते हैं. क्या बात है.

“बताओ न, सुवीर. आज तो हम दोस्त हैं न. दोस्तों से क्या परदा.”

“पक्का? आज दोस्त बन कर ही सुनोगी न? नाराज तो नहीं  होगी?”

“नहीं बाबा, बताओ न.”

“अरे, ये अजय है न, बहुत शैतान है, औफिस में जो नई प्रोडक्ट मैनेजर रोमा आई है न, कुछ ज्यादा ही स्टाइलिश है. उसी पर हंस रहा है.”

मेरे अंदर की पत्नी ऐसे जागी कि पूछिए मत… फिर याद आया कि आज दोस्त हैं, मैं ने नकली हंसी से पूछा, “वाह, बढ़िया है, खूब मन लग रहा होगा आजकल औफिस में.”

सुवीर फंस गए मेरी ऐक्टिंग में. बेचारे मर्द. चहक कर बोले, “हां यार, अच्छा टाइम पास होता है आजकल. और ये रोमा मुझे कुछ फ्लर्ट भी लग रही है. लड़कियों के पास कम, हमीं लोगों के आसपास ज्यादा मंडराती रहती है. ऐसेऐसे कपड़े पहन कर आती है कि हमारी ही आंखें झुक जाएं.”

मेरा मन हुआ, अभी रोमा को ढूंढ़ निकालूं और उस के बाल नोच लूं. औफिस में काम करने आती है या इन शादीशुदा मूर्ख मर्दों के साथ फ्लर्ट करने.

वैसे तो हर नारी में एक अभिनेत्री होती है, पर मुझे अभी ही पता चला कि मैं कितनी अच्छी ऐक्टिंग कर सकती हूं, बहुत ही प्यारी स्माइल के साथ कहा, “अच्छा? तुम्हें वो कैसी लगती है?”

सुवीर चहक उठे, “ये तो अच्छा है कि आज दोस्त बन कर पूछ रही हो, नहीं तो इस सवाल का जवाब बहुत मुश्किल था, पति बन कर तो मैं जवाब देता ही न. यार, बहुत हौट है वह.”

मेरा मन किया, सुवीर को बेड से नीचे गिरा दूं, पर चुप रह गई. वे बीचबीच में फोन देख रहे थे, मैं ने पूछा, “किस से चैट कर रहे हो? अब भी अजय से ?”

“हां यार, कह रहा है कि आज छुट्टी है, रोमा को नहीं देख पाए,” कह कर सुवीर जोर से हंसे. मैं ने अपनेआप को कोसा कि काश, मैं अभी ये दोस्तदोस्त न खेल रही होती तो अच्छे से बताती, इन्हें भी और अजय की वाइफ को भी.

मैं उठ कर जाने लगी, तो सुवीर बोले, “अरे, कहां चली?”

“नाश्ता बनाने.”

नहीं बनाए मैं ने सुवीर की पसंद के सैंडविच. नहीं की उन के लिए मेहनत. जाएं और बनवाएं उस हौट रोमा से. दूध में मयूसली डाली, सुवीर को मयूसली पसंद नहीं है न, इसलिए आज इस समय वही खिलाने का मन कर आया.

दूध का बाउल देख कर सुवीर का मुंह उतर गया, “अरे, तुम तो सैंडविच बनाने वाली थी न.”

“हां यार, मूड नहीं रहा. शार्टकट का मूड हो गया.”

उतरे मुंह से सुवीर ने नाश्ता खत्म किया. मैं भी रोजमर्रा के कामों में व्यस्त हो गई, पर दिल ही दिल में रोमा को गालियां  दे रही थी. रोमा की बच्ची. शर्म नहीं आती तुम्हें. देखो, इन पतियों को. छुट्टी वाले दिन भी तुम याद आ रही हो. और यह अजय… कितना सीधा लगता है. मिलने पर अपनी पत्नी के आगेपीछे घूमता रहता है. हाय, कैसे होते हैं ये लोग. जब इस समय उस की पत्नी घर के काम कर रही होगी, वह नालायक सुवीर से रोमा पर जोक मार रहा है.

“और सुवीर, हौट कहा है रोमा को इस ने. नहीं बनाऊंगी लंच में भी कुछ. अच्छा, आराम से नेटफ्लिक्स पर ‘फेमगेम’ देखूंगी.

इतने में सुवीर मेरा हाथ पकड़ कर वापस बैडरूम में ले गए और बोले, “काम बाद में करती रहना. आज छुट्टी है. बच्चे  भी सो रहे हैं. आओ न, बैठो मेरे पास.”

मैं ने पूछा, “तुम्हारा फोन कहां है? हो गई गप्पें?”

वे हंस दिए, कहा, “आज हलकाहलका लग रहा है न. थोड़ा चेंज लग रहा है न दोस्त बन कर? नहीं तो तुम सुबह ही चिढ़ना शुरू हो जाती थी.”

“मैं चिढ़ना शुरू करती थी?”

“छोड़ो न. तुम्हें बताना भूल गया कि अगले हफ्ते मीना यहां लखनऊ हमारे घर  आने वाली है.”

मुझे जैसे करंट लगा, “क्यों…?”

“अरे, उस का भाई हूं, मेरी बहन जब चाहे यहां आ सकती है.”

“फैमिली के साथ?”

“हां, जतिन को कुछ काम है, बच्चों को अपने सासससुर के पास छोड़ कर आ रही है.”

“अच्छा, जतिन भी आ रहा है?”

“हां.”

“बढ़िया, ”मैं ने खुश होते हुए कहा, “तुम्हें पता है कि मैं आजकल फेमगेम देख रही हूं न, जतिन बिलकुल मानव कौल लगता है. मानव कौल मुझे बहुत ही अच्छा  लग रहा है. जब भी स्क्रीन पर मानव कौल आता है, मुझे जतिन का ध्यान आता है, हाय, इस शो में  तो मानव कौल ने मेरा दिल जीत लिया. वैसे, क्या जतिन अब भी फिटनेस पर उतना ध्यान देता है? अब भी उस के सिक्स पैक एब्स हैं?”

एक चिढ़ी सी आवाज आई, “मुझे क्या पता? मैं ने कभी उस की फिटनेस पर इतना ध्यान नहीं  दिया.”

मैं ने कहा, “वैसे, एक बात सचसच बताऊं, मुझे तुम्हारी बहन इतनी नहीं पसंद जितना उस का हस्बैंड पसंद है.”

सुवीर को भी जैसे याद आया कि आज हम दोस्त बने हैं तो पति जैसा कोई ताना मारना ठीक नहीं होगा, ऐक्टिंग भी नहीं कर पा रहे थे. सो इतना ही बोले, “थोड़ी देर सोने का मन कर रहा है.”

मैं ने कहा, “तुम्हारी अम्मा तो नहीं आने वाली?”

“तुम्हारी कुछ नहीं लगती.”

“आज तो ऐसे बोल सकती हूं न? तुम ने कहा था न कि अपने मन की बात आज दोनों ही कर सकते हैं.”

“तो अपने मन में तुम उन्हें अपनी अम्मा नहीं समझतीं?”

“सास हैं, सास ही समझती हूं.”

इस बार सुवीर ने फ्लौप ऐक्टिंग करते हुए मुसकराने की कोशिश की. बच्चे उठ गए. फ्रेश हो कर पास बैठते हुए वे बोले, “अरे हां, तो फिर आज आप दोनों दोस्त बन कर बातें कर रहे हो ?”

हम ने हां में सिर हिलाया, तो शैतानों ने हमें ध्यान से देखते हुए कहा, “दोस्त बन कर ज्यादा मजा नहीं आ रहा क्या?”

उन के पूछने के ढंग पर हम दोनों हंस पड़े. मैं ने कहा, “तुम्हारी बूआफूफा आ रहे हैं अगले हफ्ते ?”

आर्या बोली, “मौम, आप तो बहुत खुश लग रही हैं उन के आने से.”

फिर एक जली हुई आवाज आई, “जतिन भी आ रहा है न. मुझे भी आज ही पता चला कि मीना से ज्यादा जतिन को देख कर तुम्हारी मां खुश होती है.”

मैं ने सुवीर को घूरा तो बोले, “ऐसे क्या देख रही हो? तुम ने ही तो बताया है न कि जतिन तुम्हें अच्छा लगता है.”

“कम से कम मैं किसी दोस्त से उस के कपड़े और उस की हौटनेस तो डिसकस नहीं कर रही न?”

तीर निशाने पर लगा, सुवीर चुप हो गए, पर बच्चे कुछ समझे नहीं. विवान ने पूछा, “क्या हुआ डैड?”

“कुछ नहीं, बच्चो. मैं लंच की तैयारी करती हूं,” कह कर मैं किचन में चली गई. लंच कर के बच्चे अपने रूम में थोड़ी देर टीवी चला कर बैठ गए, सुवीर और मैं भी थोड़ी देर आराम करने लगे. शायद हम दोनों ही मन ही मन कुछ उलझे से थे, पर फिर भी मैं ने ही बात छेड़ी, “रोमा मैरिड है?”

“उस ने शादी नहीं की।”

“क्यों?”

“पता नहीं, कभी पूछा नहीं.”

सुवीर ने मेरी तरफ करवट ली और बोले, “शाम को क्या बनाओगी?”

“कोफ्ते सोचा है.”

“डिनर पर बाहर चलना है?”

“कोफ्ते नहीं खाने?”

“ना.”

“क्यों?”

“पसंद नहीं.”

“अरे, हमेशा तो बच्चों के साथ मिल कर तारीफ करते हो.”

“बच्चे तुम्हारे बनाए कोफ्ते शौक से खाते हैं, इसीलिए झूठ बोल देता हूं. आज दोस्त बन कर बोल रहा हूं, पति बन कर ऐसे सच बोलना मुश्किल होता है. मुझ से कोफ्ते खाए नहीं जाते, कोफ्ते प्लेट में अलग घूम रहे होते हैं, ग्रेवी अलग. बेसन कच्चाकच्चा सा लगता है. आज बाहर चल कर कुछ चाटपकोड़ी खा कर आते हैं.”

मन हुआ कि फ्रिज में रखी लौकी ही इन के सिर पर दे मारूं. सारी दुनिया मेरे बनाए कोफ्तों की फैन है, ये जनाब आज दोस्त बन कर बहुत बोल रहे हैं, ये पति ही ठीक हैं, दोस्त बनाने लायक ही नहीं. मैं ने कहा, “ठीक है, बाहर चलते हैं, जतिन और मीना आएंगे तो कोफ्ते बना लूंगी, जतिन तो पिछली बार दूसरे टाइम भी वही कोफ्ते से खाना खा रहा था.”

“मैं जानता हूं इन मर्दों को. ये ऐसे ही दूसरी औरतों को इम्प्रेस करते हैं, आने दो इस बार. अच्छे से देखता हूं इसे.”

इस बार सुवीर का स्वर तेज हुआ, तो किचन में पानी पीने आई आर्या हमारे रूम में आती हुई बोली, “क्या हुआ, डैड?”

हम दोनों के चेहरे गुस्से से लाल से हो रहे थे, वह भागी गई और विवान  को बुला लाई. दोनों हमारे बीच में बैठ कर ध्यान से हमें देखने लगे, फिर विवान ने कहा, “मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आप दोस्त बन कर आज उतने खुश नहीं हो जितने हमेशा रहते हो. कुछ ज्यादा बातें शेयर कर लीं क्या?”

आर्या और विवान के चेहरों पर गजब की मस्ती दिखी, हम दोनों थोड़ी देर चुप रहे, फिर मैं ही बोल पड़ी, “अच्छा हुआ कि आज दोस्त बनने का नाटक किया. तुम्हारे पापा को तो मेरे बनाए कोफ्ते ही नहीं पसंद. आज बता रहे हैं. मैं ही पागल हूं, जो इन की हर बात पर विश्वास कर लेती हूं और वो रोमा की बच्ची… उस के बारे में भी आज बता रहे हैं.”

आर्या ने सुवीर को घूरा, वे अपना सिर पकड़ कर बैठते हुए बोले, “अरे यार, औफिस में नई आई है, बस इतना बताया. मुझे उस से क्या मतलब? और दोनों  मुझे क्या घूर रहे हो? अपनी मां से पूछो कि जतिन के सिक्स पैक एब्स में इन्हें कितना इंटरेस्ट है.”

मैं ने सुवीर को घूरा, उन्होंने मुझे. दोनों बच्चे अचानक हंसतेहंसते हमारे ऊपर ही गिरने लगे. हम दोनों झेंप गए. अपने पापा की लाड़ली आर्या ने कहा, “बस इस से ज्यादा ड्रामा हम नहीं झेल पाएंगे. पतिपत्नी हो, वही रहो.”

विवान ने सुवीर को हमदर्दी दिखाने की ऐक्टिंग करते हुए कहा, “आप दोस्त बन कर अपना जो नुकसान कर चुके हैं, उसे संभालने में मैं आप के साथ हूं.”

हम दोनों को ही बच्चों की बातों पर हंसी आ गई. मैं ने कहा, “सुवीर, रहने दो. हम पतिपत्नी ही ठीक हैं, खुश हैं. बस तुम मुझे जरा रोमा के अपडेट्स ईमानदारी से देते रहना.”

“तुम भी इस बार जतिन के लिए कोफ्ते मत बनाना.”

यह सुन कर मैं खुल कर हंसी, “हां, नहीं बनाऊंगी. कहते हुए मैं ने गुनगुनाया, ‘जो तुम को हो पसंद वही बात करेंगे, दोस्त नहीं बनना, पतिपत्नी ही रहेंगे’.”

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7 टिप्स: खूबसूरत स्किन और बालों के लिए वोदका

पार्टी आदि में वोदका खूब पी जाती है लेकिन क्‍या आप जानती हैं कि यह वोदका आपके बालों तथा त्‍वचा के लिये कितनी ज्‍यादा फायदेमंद है. हम इसे पीने के लिये नहीं कह रहे हैं बल्‍कि हम इसे चेहरे पर लगाने तथा शैंपू की तरह प्रयोग करने की सलाह दे रहे हैं.

वोदका एक रशियन ड्रिंक है. क्‍या आपने कभी नोटिस किया है कि रशियन लेडिज के चेहरे हर वक्‍त चमकते क्‍यूं रहते हैं? ऐसा इसलिये क्‍योंकि वे वोदका को एक सौंदर्य सामग्री के रूप में प्रयोग करती हैं.

चेहरे को चमकदार बनाना हो या फिर चाहे मुंहासे हटाने हों, वोदका की बस कुछ बूंदे अपना असर दिखा सकती हैं. यह बालों को मजबूत बनाता है तथा बालों से रूसी का भी सफाया करता है. तो चलिये जानते हैं वोदका किस प्रकार से चेहरे तथा बालों के लिये अच्‍छी मानी जाती है.

1. चेहरे पर चमक भरे: चेहरे पर चमक भरनी हो तो आप थोड़े से वोदका को कॉटन बॉल में लगा कर चेहरे पर लगा सकती हैं. इससे मुर्झाया हुआ चेहरा बिल्‍कुल खिल उठेगा और चेहरे पर चमक आ जाएगी.

2. स्‍किन को टोन करे: इसे चेहरे पर लगाने से स्‍किन के खुले पोर्स बंद हो कर टाइट हो जाते हैं, जिस्‍से स्‍किन स्‍मूथ दिखने लगती है.

3. झुर्रियां मिटाए: वोदका में स्‍टार्च होता है जो लटकती हुई त्‍वचा को टाइट बनाने में मदद करता है. इसके नियमित प्रयोग से बारीक धारियां गायब हो जाती हैं.

4.एक्‍ने और मुंहासों से छुट्टी: वोदका में एंटीबैक्‍टीरियल गुण होते हैं इसलिये मुंहासों पर वोदका लगाने से मुंहासे जल्‍द ही सूख जाते हैं.

5. बालों और त्‍वचा को साफ करे: इसमें त्‍वचा तथा बालों से गंदगी साफ करने की क्षमता होती है. इसे लगाने से त्‍वचा और बाल सुंदर और स्‍वस्‍थ बनते हैं.

6. बाल बनें मुलायम: अपने शैंपू में थोड़ा सा वोदका मिला कर लगाने से बाल मुलायम बनते हैं तथा उनमें नमी आती है. साथ ही रूखे-सूखे बाल ठीक हो जाते हैं.

7. रूसी से मुक्‍ति: वोदका में एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं, जो फंगस और बैक्‍टीरिया का खात्‍मा करता है. यही बैक्‍टीरिया सिर में रूसी का कारण बनते हैं. इसके लिये आपको अपने शैंपू में कुछ बूंद वोदका की मिलानी होंगी और फिर उससे सिर धोना होगा.

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