romantic story in hindi
romantic story in hindi
सवाल-
मेरी आयु 33 वर्ष है. 3 हफ्ते पहले मेरा सिर दरवाजे से टकरा गया था और मुझे गंभीर चोट लगी थी. अब गरदन में भी दर्द होने लगा है. क्या इस से मुझे चिंतित होने की जरूरत है?
जवाब-
चोट का असर कई बार कुछ हफ्तों तक बना रहता है. सिर जब किसी भारी वस्तु से झटके से टकराता है, तो गरदन पर भी उस चोट का असर पड़ता है, जिसे गरदन की मोच कहा जाता है. इस में गरदन के सौफ्ट टिशू में मामूली इंजरी हो जाती है. अपनी गरदन को थोड़ा आराम दें. उस पर दबाव डालना या झटका न देना ही बेहतर होगा. अगर दर्द बराबर बना हुआ है तो डाक्टर को दिखाएं.
ये भी पढ़ें- चेहरे की रंगत दिनबदिन खत्म होती जा रही है, मैं क्या करुं?
सवाल-
मेरी उम्र 22 वर्ष है. मुझे गरदन में बारबार दर्द होता है. इस से मुझे कम से कम 1 सप्ताह तक तकलीफ होती है. क्या ऐसा मेरे लगातार कंप्यूटर पर काम करने के कारण होता है? बताएं, क्या करूं?
जवाब-
गरदन के दर्द के कई कारण हो सकते हैं, मसलन सौफ्ट इंजरी, सर्वाइकल स्पौंडिलाइटिस या मोच आदि. लेकिन गलत मुद्रा और गरदन झुका कर लगातार कंप्यूटर या किसी अन्य इलैक्ट्रौनिक डिवाइस पर आंखें गड़ाए रखने के कारण भी युवाओं में आजकल गरदन के दर्द की समस्या आम हो गई है. आप को अपनी मुद्रा सही करनी होगी. ऐसी कुरसी और मेज का इस्तेमाल करना होगा जो आप की गरदन और कंप्यूटर स्क्रीन के बीच समानांतर ऊंचाई बनाती हों. साथ ही, काम के दौरान बे्रक लेते रहें. थोड़ी चहलकदमी करें, अपनी गरदन घुमाएं और थोड़ा स्ट्रैचआउट कर लें. अगर इस के बाद भी समस्या बनी रहे तो डाक्टर से संपर्क करें.
ये भी पढ़ें-
जो लोग कामगर हैं, जिन्हें पूरे दिन कंप्यूटर पर बैठ के काम करना पड़ता है उन्हें गर्दन और पीठ दर्द की शिकायत रहती है. पर क्या आपको पता है कि अपने बैठने की आदत में बदलाव कर के आप इस परेशानी से निजात पा सकती हैं. आपको बता दें कि कंप्यूटर के सामने अधिक देर तक बैठने से आपके गर्दन और रीढ़ की हड्डियों पर काफी नुकसान पहुंचता है. इससे आपको अधिक थकान, सिर में दर्द और एकाग्रता में कमी जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अगर आप अधिक देर तक इसी अवस्था में बैठी रहती हैं तो आपके स्पाइनल कौर्ड में भी घाव हो सकता है.
इस मुद्दे पर शोध कर रहे जानकारों का मानना है कि इन परेशानियों के लिए बैठने का गलत तरीका जिम्मेदार है. अगर आप सीधे बैठें तो इन परेशानियों से निजात पा सकती हैं. अगर आप सीधे बैठती हैं तो आपकी पीछे की मांसपेशियां आपके गर्दन और सिर के भार को सहारा देती हैं.
जानकारों की माने तो अगर आप सिर को 45 डिग्री के कोण पर आगे करती हैं तो आपकी गर्दन आधार की तौर पर कार्य करती हैं. इससे आपके गर्दन पर काफी भार आता है. ऐसी स्थिति में आपके सिर और गर्दन का वजन 45 पाउंड हो जाता है. इससे आपको दर्द और कई तरह की परेशानियां होती हैं.
पूरी खबर पढ़ने के लिए- गर्दन और पीठ में होता है दर्द तो आज ही बदलें अपनी ये आदत
अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे… गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem
‘‘यह क्या? इस उम्र में प्याज और अंडा खाने लगी हो, प्रभु के चरणों में ध्यान लगाओ, सारे पाप दूर हो जाएंगे,’’ संजय ने अपनी पत्नी को ताना मारा, ‘‘सारी उम्र तो तुम ने इन चीजों को हाथ नहीं लगाया और अब न जाने कैसे इन का स्वाद आने लगा है तुम्हें. पहले जब मैं खाता था तो तुम्हें ही इस पर आपत्ति होती थी. अब तुम कहां इन चक्करों में पड़ रही हो. ईश्वरभक्ति करो, बस. सारी बीमारियां दूर हो जाएंगी.’’ ‘‘मेरी मजबूरी है, इसलिए खा रही हूं. यह बात तुम्हें भी पता है कि डाक्टर ने कहा है कि शरीर में विटामिन सी और डी की कमी हो गई है. जिस से हड्डियों में इन्फैक्शन हो गया है.
घुटनों और कमर में दर्द की वजह से ठीक से चल तक नहीं पाती हूं. वैजिटेरियन डाइट से ये विटामिन कहां मिलते हैं. आप जानते हुए भी ताना देने से बाज नहीं आ रहे हैं. प्याज और अंडा खाना अगर पाप होता तो दुनियाभर के अधिकांश लोग पापी कहलाते. इस बात का प्रभुभक्ति से क्या ताल्लुक? ‘‘वैसे, आप मुझे बताओगे कि मैं ने कौन से पाप किए हैं? रही बात प्रभु के चरणों में ध्यान लगाने की और तुम यह कहो कि सारा दिन बैठ कर भजन करूं या तुम्हारी तरह टीवी पर आने वाले बाबाओं के प्रवचन या उन का कथावाचन सुनूं तो मैं इसे जरूरी नहीं समझती.
निठल्ले लोग धर्म की आड़ में अपने दोषों को छिपाने के लिए सारे दिन ऐसे प्रोग्राम देख खुद को जस्टिफाई करने की कोशिश करते हैं.’’ शगुन लगातार बोलती गई, मानो आज वह मन में बरसों से दबाए ज्वालामुखी को फटने देने के लिए तैयार हो. ‘‘शगुन, कुछ ज्यादा नहीं बोल रही हो तुम?’’ चिढ़ते हुए संजय ने कहा, ‘‘मुझ से ज्यादा बकवास करने की जरूरत नहीं है. मुझे पता है कि क्या सही है और क्या गलत. कितना ज्ञान और सुकून प्राप्त होता है प्रवचन सुन कर. प्रवचनों को सुनने से ही तो पापों से मुक्ति मिलती है.’’ ‘‘तो मानते हो न कि तुम ने पाप किए हैं?
झूठ बोलना, किसी का दिल दुखाना या बुरे काम करना जितना पाप है उतना ही अपनी जिम्मेदारियां न निभाना भी पाप है. सच बात तो यह है कि इस तरह से तुम्हारा टाइम पास हो जाता है और अपने को झूठा दिलासा भी दे लेते हो कि मैं तो सारा दिन ईश्वरभक्ति में लीन रहता हूं. अपने आलसी स्वभाव की वजह से तुम तो सारे काम छोड़ कर बैठ गए हो. बिजनैस पर ध्यान देना तक छोड़ दिया, तो वह चौपट होना ही था. ‘‘मेरी नौकरी से घर चल रहा है. लेकिन आजकल एक व्यक्ति की कमाई से क्या होता है. जब तक बच्चे सैटल नहीं हो जाते, तब तक तो उन्हें संभालना तुम्हारी ही जिम्मेदारी है.
मेरी जिम्मेदारी तो खैर तुम क्या उठाओगे. क्या तुम्हारा भगवान कहता है कि तुम उस की पूजा करना चाहते हो तो सब काम छोड़ कर बैठ जाओ. सबकुछ अपनेआप मिल जाएगा.’’ ‘‘ज्यादा भाषण न झाड़ो, अपनी औकात में रहो. और जो तुम कमाने का ताना दे रही हो, तो इस के लिए तुम्हें ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है, भगवान सब संभाल लेंगे.’’ संजय ने आज से पहले शगुन की बात कब सुनी थी जो अब सुनते. वे तो सदा ही उस की अवमानना करते आए थे. शगुन की बातबात पर बेइज्जती करना, बच्चों के सामने उस की खिल्ली उड़ाना और बाहर वालों के सामने उस का अपमान करना तो जैसे उन के लिए आम बात थी. शादी के बाद ही शगुन को पता चल गया था कि संजय रुढि़वादी सोच का व्यक्ति है जो कामचोर होने के साथसाथ बीवी की कमाई पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है पर उसे समान दर्जा देने में उस का अहम आड़े आता है. शादी के बाद तो संजय अकसर उस पर हाथ भी उठा देते थे.
गालियां देना, उस के हर काम में कमियां निकालना तो जैसे वे अपना हक समझते थे. ‘पुरुष हूं, जो चाहे कर सकता हूं’ की सोच ही उन्हें शायद घुट्टी में पिलाई गई थी. न खुद हंसना, न ही किसी की खुशी उन्हें बरदाश्त थी. यहां तक कि वे बच्चों के साथ मजाक तक करने से कतराते थे. शगुन के अंदर बीतते वक्त के साथ एक खीझ भरती गई थी कि आखिर संजय क्यों नहीं आम लोगों की तरह व्यवहार करते हैं. होटल में खाना खाना हो या कभी मूवी देखने जाना हो या घर पर किसी मेहमान को ही आना हो, हर बात उन्हें खलती थी. किसी के घर या फंक्शन में जाने की बात सुन कर ही चिढ़ जाते.
अपनी बात जारी रखते हुए संजय आगे बोले, ‘‘रोजरोज मुझ से इस बात पर बहस करने की जरूरत नहीं और न ही काम करने के लिए कहने की, मैं अपने और भगवान के बीच किसी को नहीं आने दूंगा. वही सब संभालेंगे.’’ ‘‘हां हां, सब भगवान ही संभालेंगे, पर उन को जिंदा रखने के लिए कर्म भी हम मनुष्यों को ही करना पड़ता है. मंदिरमसजिद क्या अपनेआप पेड़ों की तरह उग आते हैं. रोटी सामने रखी हो पर निवाला तभी मुंह में जाएगा जब उसे खुद तोड़ कर खाया जाए. संजय, अब भी संभल जाओ. अभी हमारी उम्र ही क्या हुई है. तुम 49 के हो और मैं 45 की. हमारी शादीशुदा जिंदगी को अपनी पलायन करने वाली सोच से बरबाद मत करो. पलायन करने से कोई मोक्षवोक्ष नहीं मिलता.
कर्म करने से ही मुक्ति मिलती है. ‘‘मैं तो अपनी नौकरी, बीमारी और घर के कामों की वजह से ज्यादा समय नहीं निकाल सकती, पर तुम तो सारा दिन घर में बैठे रहते हो. तुम बच्चों पर थोड़ा ध्यान दो वरना उन का कैरियर बरबाद हो जाएगा. उन के साथ बात किया करो, हंसा करो और उन्हें टीवी पर इन बाजारू प्रवचनों को देखने के लिए उकसाना बंद करो. नीरज को देखो, वह भी तुम्हारे साथ टीवी देखता रहता है या सोता रहता है. इस बार इसे 12वीं का एग्जाम देना है, पढ़ेगा नहीं तो पास कैसे होगा. कहीं ऐडमिशन कैसे होगा. आजकल कंपीटिशन कितना टफ हो गया है.’’ ‘‘उस की चिंता तुम मत करो. भगवान उसे पास कर देंगे. तुम्हारी बेटी नीरा तो दिनरात पढ़ती है, उसी से तुम तसल्ली रख लो.
नीरज के मामले में दखल मत दो. नहीं पढ़ेगा तो मेरा बिजनैस संभाल लेगा.’’ ‘‘बस करो संजय, यह राग अलापना. अरे, पढ़ेगा नहीं तो भगवान क्या आ कर उस के पेपर सौल्व कर देंगे. क्यों मूर्खों जैसी बातें करते हो. तुम्हें पढ़नेलिखने या तरक्की करने की इच्छा नहीं है तो नीरज को भी अपने जैसा क्यों बनाना चाहते हो, कैसे पिता हो तुम.’’ शगुन का मन कर रहा था कि वह संजय को झ्ंिझोड़ डाले, आखिर क्यों वे अपने ही बच्चों को अंधविश्वास के कुएं में ढकेलना चाहते हैं. ‘‘बेकार की बातों में उलझने के बजाय मेरे साथ वृंदावन चला करो. वहां घर इसीलिए तो बनाया है ताकि वहां जा कर मैं प्रभु के चरणों में पड़ा रहूं और अपना आगे का जीवन सुधार सकूं. यह जन्म तो कट गया, अगला जन्म सुधारना है, तो बस सारे दिन ईश्वर की पूजा किया करो, तुम्हें भी मैं यही सलाह दूंगा.’’ ‘‘मैं भी वृंदावन चली गई तो बिना नौकरी के घर कैसे चलेगा? बेटी की शादी कौन करेगा? बेटे को कौन संभालेगा?
तुम्हारे खर्चे कौन उठाएगा? तुम्हें रोज शराब पीने की लत है, उस के लिए भी पैसे क्या भगवान देगा? रोज शराब पीते हो तो क्या तुम्हारा ईश्वर इस की तुम्हें इजाजत देता है. वृंदावन जाते हो तो कौन सा शराब पीना छोड़ देते हो. बस, तुम्हें तो अपने दायित्वों से भागने का बहाना चाहिए. ‘‘सब से बड़ी बात तो यह है कि ईश्वर से लौ लगाने वाले शांत रहते हैं, उन्हें क्रोध नहीं आता, वे किसी पर चिल्लाते नहीं हैं या उन का अपमान नहीं करते हैं. इतने सालों से तुम बाबाओं के प्रवचन सुन रहे हो, पर तुम में तो रत्तीभर भी बदलाव नहीं आया. गुस्सा करना और हमेशा चिढ़े रहना कहां छोड़ा है तुम ने. क्या फायदा ऐसे धर्म का जो दूसरों को दुख पहुंचाए या कर्तव्यों से विमुख करे.
‘‘धर्म के नाम पर तुम दान करते हो कि पुण्य मिलेगा, पर सोचा है कि बच्चों की कितनी जरूरतों का तुम गला घोंटते हो. और देखा जाए तो धर्म के नाम पर जो लाखों रुपए का चढ़ावा चढ़ाया जाता है, भला उस की क्या जरूरत है. भगवान को सोने का मुकुट दे कर आखिर इंसान क्या साबित करना चाहता है? अपनी बेवकूफी और क्या. धर्म के नाम पर चढ़ाए गए चढ़ावे अगर हम अपनी जरूरतों पर खर्च करें तो ज्यादा सुख मिलेगा. धार्मिक स्थलों पर जा कर देखो तो, आजकल सब पंडेपुजारी कारोबारी हो गए हैं.’’ ‘‘मम्मी, रहने दो न. बेकार बहस करने से क्या फायदा. पापा इस समय होश में नहीं हैं,’’ नीरज ने बात बढ़ती देख बीचबचाव करने की कोशिश की.
‘‘बेटा, तुझे ले कर मैं कितनी परेशान रहती हूं, यह नहीं बता सकती. डर लगता है कि कहीं तू अपने पापा के कदमों पर न चले,’’ शगुन की आंखें भर आई थीं. ‘‘चुप हो जा, तेरी जबान कुछ ज्यादा ही चलने लगी है. मुझे नहीं रहना तेरे साथ. जब देखो तब भूंकती रहती है. चला जाऊंगा हमेशा के लिए वृंदावन, फिर संभाल लेना बच्चों को. अपनेआप को कुछ ज्यादा ही स्मार्ट व पढ़ीलिखी समझती है,’’ संजय का तेज थप्पड़ शगुन के गाल पर पड़ा. संजय के इस व्यवहार से थरथरा गई शगुन. शराब पीने से हुई उस की लाल आंखें और डगमगाते कदमों को देख उस के दोनों बच्चे कांप गए. आखिर वे धर्म का ही पालन कर रहे थे कि औरत पाप की गठरी है, पैरों की जूती है. संजय का वीभत्स रूप और निरंतर उस के मुंह से निकलती गालियां सुन नीरा चुप न रह सकी. ‘‘अच्छा यही होगा पापा कि आप यहां से चले जाओ. जहां मन है, चले जाओ. आप के इस रूप को देख धर्म और ईश्वर पर से हमारा विश्वास उठ गया है.
प्यार की जगह आप ने हम में जो घृणा भर दी है, उस से हम दूर ही रहना चाहते हैं,’’ नीरा बोल पड़ी. ‘‘तू भी अपनी मां की जबान बोलने लगी है,’’ संजय ने उसे मारने के लिए हाथ उठाया ही था कि नीरज ने उस का हाथ पकड़ लिया. ‘‘खबरदार पापा, जो आप ने दीदी या मम्मी पर हाथ उठाया,’’ नीरज क्रोधित होते हुए बोला. ‘‘अरे, तू तो मेरा राजा बेटा है न, चल हम बापबेटे दोनों यहां नहीं रहेंगे,’’ संजय की आवाज की लड़खड़ाहट की वजह से उन से ठीक से बोला नहीं जा रहा था. वे बिस्तर पर गिर गए. ‘‘मुझे कहीं नहीं जाना. पर बेहतर यही होगा कि आप यहां से चले जाएं.
हमें आप के झूठे पाखंडों और धर्म के नाम पर बनाए खोखले आदर्शों के साए तले नहीं जीना. आप जैसे जीना चाहते हैं, जिएं, पर अपनी बेकार की बातों को हम पर थोपने की कोशिश न करें. अब बहुत हो गया. और नहीं सहेंगे हम,’’ नीरज ने शगुन और नीरा को कस कर अपने से चिपका लिया था मानो वह उन्हें चिंतामुक्त रहने का आश्वासन दे रहा हो.
नाश्ते में अगर आप हल्का और टेस्टी ब्रेकफास्ट अपनी फैमिली को सर्व करना चाहते हैं तो बेसन से बने वैज औमलेट यानी चीला आपके लिए परफेक्ट औप्शन है.
सामग्री
– 100 ग्राम बेसन
– 1 बड़ा चम्मच ब्रैडक्रंब्स
– लालमिर्च द्य हरीमिर्च बारीक कटी स्वादानुसार
– थोड़ी सी हलदी
– चुटकी भर गरममसाला
– थोड़ा सा क्रश्ड लहसुन
– 50 ग्राम प्याज कटा हुआ
– 20 ग्राम शिमलामिर्च कटी हुई
– थोड़ी धनियापत्ती कटी हुई
– पकाने के लिए पर्याप्त तेल
– नमक स्वादानुसार
विधि
एक बरतन में बेसन, ब्रैडक्रंब्स और नमक को मिलाएं. इस मिश्रण में थोड़ा पानी डालें और घोल तैयार करें. अब इस घोल को 30 मिनट तक अलग रख दें. फिर इस में लहसुन, लालमिर्च पाउडर, हरीमिर्च और हल्दी डालें और अच्छी तरह फेंटें. अब एक पैन गरम करें और थोड़ा घोल पैन में डालें. ऊपर से प्याज, शिमलामिर्च और धनियापत्ती डालें. फिर थोड़ा तेल किनारों पर डालें. सामग्री को ढक कर धीमी आंच पर 2 मिनट तक पकाएं. फिर इसे पलट कर पकाएं. तैयार आमलेट को सौस के साथ सर्व करें.
ये भी पढ़ें- Summer Special: फैमिली के लिए बनाएं मटका कुल्फी
फैशनेबल दिखना किसें पसन्द नहीं होता, फैशन समय समय पर परिवर्तित होता रहता है. महंगाई के इस युग में हर बार फैशन के अनुकूल शॉपिंग भी नहीं की जा सकती. परन्तु वास्तव में फ़ैशनेबल दिखने के लिए शॉपिंग नहीं बल्कि कुछ नए प्रयोग और दिमागी घोड़े दौड़ाने की आवश्यकता होती है. आज हम आपको ऐसे ही कुछ टिप्स बता रहे हैं जिन्हें आजमाकर आप भी कम खर्चे में फैशनेबल बन सकतीं हैं –
1. मिक्स एंड मैच का करें प्रयोग
महिलाओं की ड्रेसेज विविधता पूर्ण होतीं है साथ ही फैशन भी समय समय पर परिवर्तित होता रहता है. हर समय फैशन के अनुकूल ड्रेसेज बनवाना सम्भव नहीं हो पाता और पुरानी फैशन की ड्रेसेज पहनना भी मन को नहीं भाता ऐसे में मिक्स एंड मैच का प्रयोग करके आप अनेकों विविधता पूर्ण ड्रेस बना सकतीं हैं. उदाहरण के लिए वर्तमान समय में सलवार आउट ऑफ फैशन हो चुकी है ऐसे में आप पूरी ड्रेस नई बनवाने के स्थान पर कुर्ते की मैचिंग का पलाजो या लेगिंग्स खरीद कर अपनी ड्रेस को आधुनिक रूप दे सकतीं हैं.
2. ओल्ड इज गोल्ड
मम्मी, दादी की पुरानी साड़ियां जिनका फेब्रिक और रंग दोनों ही अच्छे हैं उनसे कुर्ते, दुपट्टा, पलाजो आदि से आधुनिकतम ड्रेस बनवाएं. इससे आपको फेब्रिक नहीं खरीदना पड़ेगा और केवल सिलाई डेकर आपको फैशनेबल ड्रेस मिल जाएगी. वर्तमान समय में गोटा पत्ती और पोम पोम लेस बहुत फैशन में है आप इनका प्रयोग करके अपने परिधान को फैशनेबल बनाएं परन्तु इनसे ड्रेसेज बनवाते समय फेब्रिक और डिजाइन का ध्यान अवश्य रखें. बहुत अधिक पतले या घिसे फेब्रिक से ड्रेस बनवाने से बचें साथ ही ड्रेस बनवाते समय फेब्रिक के पैटर्न पर भी ध्यान दें और टेलर से डिजाइन का सही ढंग से उपयोग करने को कहें.
3. बेसिक कलर्स का करें प्रयोग
मेहरून, लाल, हरा, सफेद और काले रंग को सभी पर चलने वाला माना जाता है क्योंकि इनमें से कोई न कोई रंग हर ड्रेस में पाया ही जाता है इसलिए इन रंग की लैगिंग्स, दुपट्टा और पलाजो खरीद कर अपनी बार्डरोब में अवश्य रखें इससे कम बजट में ही आप अपनी ड्रेस को फैशनेबल बना सकेंगी.
4. होमवर्क करें
किसी भी ड्रेस को खरीदने या बनवाने से पूर्व थोड़ा सा होमवर्क करके जाएं. बाजार जाने से पूर्व अपनी वार्डरोब पर एक नजर डालकर जाएं जिस रंग का आपके पास पलाजो, लेगिंग्स और शरारा है और पूरी ड्रेस खरीदने के बजाय उसी से मैच करता कुर्ता खरीदकर अपनी ड्रेस तैयार कर लें. टेलर को सीधे फेब्रिक देने के स्थान पर यू ट्यूब आदि पर डिजाइन देखकर जाएं फिर सिलवाएं इससे आप लेटेस्ट डिजाइन की ड्रेस बनवा पाएंगीं.
5. मैचिंग को करें इग्नोर
हर ड्रेस की मैचिंग की ज्वैलरी खरीदने के स्थान पर सिल्वर, गोल्डन, पर्ल या ऑक्सीडाइज्ड ज्वेलरी खरीदें ये चूंकि हर रंग पर फबती हैं इसलिए आपकी साधारण सी ड्रेस को भी आधुनिक लुक प्रदान करेंगीं. इसी प्रकार फुटवेयर और पर्स खरीदते समय भी मैचिंग को इग्नोर करके ब्राउन, ब्लैक और व्हाइट को प्राथमिकता दें क्योंकि ये सभी पर चलते हैं.
6. हुनर को आजमाएं
यदि आपको सिलाई, कढ़ाई, या पेंटिंग आती है तो उसे अपने परिधानों, फुटवियर और पर्स पर जरूर आजमाएं. प्लेन फेब्रिक पर साधारण सी रनिंग स्टिच, पेंटिंग या फिर लेस लगाकर आप ड्रेस को आधुनिक बना सकतीं हैं. आजकल बाजार में भांति भांति की लेस, सितारे, बीड्स आदि उपलब्ध हैं इन्हें आप पर्स और फुटवेयर पर फेविकोल से चिपकाकर उन्हें आधुनिक बना सकतीं हैं.
ये भी पढ़ें- Karan Johar की बर्थडे पार्टी में दिखा हसीनाओं का जलवा, देखें फोटोज
भारत के हर कोने में प्रकृति ने अपना नूर बरसाया है और ऐसे ही कुछ शहरों में सालभर पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है. जानते हैं कुछ ऐसी ही जगहें जहां आप साल भर में कभी भी छुट्टियां बिताने की प्लानिंग कर सकते हैं…
1. केरल
चारों तरफ फैली हरियाली और सुंदर नजारे केरल की खासियत हैं. यह जगह हनीमून कपल के बीच काफी पसंद की जाती है. केरल का मौसम गर्मियों में पर्यटकों को अपने समुद्रतटों के बीच खींच ही लाता है. लड़की के सुंदर बोट हाउस में रहने का लुफ्त उठाना चाहते हैं तो करेल से बेहतर दूसरी कोई जगह नहीं हो सकती.
2. जयपुर
मेवाड़ की शान और रॉयल अंदाज के लिए जाना जाने वाला जयपुर भी साल भर पर्यटकों से घिरा रहता है. यहां का मुख्य आकर्षण यहां के महल और खानपान है. हवा महल, आमेर किला, पानी के बीचों बीच बना जल जैसे वास्तुकला के भव्य नजारे आपको और कहीं देखने को नहीं मिलेंगे.
3. गोवा
विदेशी पर्यटकों की ही तरह देशी सैलानियों के बीच भी गोवा काफी कूल डेस्टिनेशन के रूप में जाना जाता है. गर्मियों और न्यू ईयर ईव पर यहां पर्यटकों की संख्या देखने लायक होती है. गोवा का सीफूड, गोवा किला, चोपारा किला और यहां के समुद्री तट यहां के मुख्य आकर्षण हैं.
4. कश्मीर
धरती की जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर में भी सैलानियों का हुजूम साल भर देखने को मिल जाएगा. यह जगह भी हनीमून कपल की लिस्ट में जरूर शामिल रहती है. दूर-दूर तक फैले सुंदर पहाड़ और कश्मीरी खाने का स्वाद आपको जल्दी यहां से जाने नहीं देंगे.
5. कन्याकुमारी
समुद्र से घिरा हुआ भारत का सबसे निचला हिस्सा है कन्याकुमारी. यहां पर डूबता सूरज देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं. कन्याकुमारी को केप कोमोरिन के नाम से भी जाना जाता है.
अकसर लड़कों को बड़े होते देख मातापिता उन के विवाह के सपने देखने लगते हैं. फिर किसी की बेटी को अपने कुल की शोभा बना कर अपने परिवार में ले आते हैं. इसी तरह लड़की को बड़ी होती देख उस के विवाह की कल्पनामात्र मातापिता को भावुक बना देती है. यही नहीं, स्वयं लड़की भी अपने विवाह की कल्पना में उमंगों से सराबोर रहती है. वह केवल पत्नी नहीं, बहू, भाभी, चाची, ताई, देवरानी, जेठानी जैसे बहुत सारे रिश्ते निभाती है.
शादी के कुछ समय बाद न जाने कौन से बदलाव आते हैं कि ससुराल वालों को बहू में दोष ही दोष नजर आने लगते हैं. उधर लड़की भी ससुराल वालों के प्रति अपनी सोच और रवैया बदल लेती है. कुछ परिवारों में तो 36 का आंकड़ा हो जाता है. लड़की के ससुराल पक्ष के लोग परिवार की हर मुसीबत की जड़ बहू और उस के परिवार वालों को ही मान लेते हैं. एकदूसरे को समझें जरूरी है कि आप एकदूसरे की भावनाओं को समझें. जब हम किसी की बेटी को अपने परिवार में लाते हैं, तो उसे अपने पिता के घर (जहां वह पलीबढ़ी) की अपेक्षा बिलकुल जुदा माहौल मिलता है. बात रहनसहन और खानपान की हो या फिर स्वभाव की, सब अलग होता है.
इस के अलावा पतिपत्नी के संबंधों को समझने में भी उसे कुछ समय लगता है. ऐसे में यदि परिवार के लोग अपेक्षाएं कम रखें और बहू को अपना मानते हुए समझ से काम लें, तो शायद परेशानियां जन्म ही न लें.
बहू के घर आने से पहले ही सासें बहुत सारी अपेक्षाएं रखने लगती हैं जैसे बहू आएगी तो काम का बोझ कम हो जाएगा. वह सब की सेवा करेगी इत्यादि.
दूसरी तरफ शादी के बाद तो लड़के का प्यार घर के अन्य सदस्यों के साथसाथ अपनी पत्नी के लिए भी बंटने लगता है, तो घर वालों को लगता है कि बेटा जोरू का गुलाम हो गया.
बहू का घर के कामों में परफैक्ट न होना या काम कम करना बहुत बड़ा दोष बन जाता है. हर सास यह भूल जाती है कि पहली दफा ससुराल में आने पर जैसे उसे पति का साथ भाता था, वैसा ही बहू के साथ भी होता होगा.
सम्मान दे कर सम्मान पैदा करें
सासबहू के संबंध मधुर बने रहें, इस के लिए सास के व्यवहार में उदारता, धैर्य और त्याग के भाव होने आवश्यक हैं. अपने प्रियजनों को छोड़ कर आई बहू से प्यार भरा व्यवहार ही उसे नए परिवार के साथ जोड़ सकता है, उसे अपनेपन का एहसास करा सकता है और उस के मन में सम्मान और सहयोग की भावना उत्पन्न कर सकता है. बहू को सिर्फ काम करने वाली मशीन न समझ कर परिवार का सदस्य माना जाए.
बहू के विचारों व भावनाओं को महत्त्व दिया जाए. उस से परिवार के हर फैसले में सलाह ली जाए, तो परिवार में सुखशांति बनी रहे और समृद्धि भी हो.
यदि सास घर के सारे काम बहू को न सौंप कर खुद भी कुछ काम करती रहे, तो सास का स्वास्थ्य तो बेहतर रहेगा ही, परिवार का वातावरण भी मधुर बना रहेगा.
दूसरी तरफ शादी के बाद लड़की के भी कुछ फर्ज हैं, जो उसे निभाने चाहिए. लड़की यह नहीं समझ पाती कि किसी भी सदस्य द्वारा समझाया जाना टोकाटाकी नहीं है. घर का थोड़ाबहुत काम भी उसे बोझ लगने लगता है.
उसे लगता है कि पति सिर्फ उस का है. वह किसी और सदस्य को समय देता है, तो वह उसे अपनी अपेक्षा समझती है. दूसरे शब्दों में ससुराल में अधिकार क्या हैं, यह तो उसे मालूम है पर कर्तव्यपालन को बोझ समझने लगती है.
ससुराल में बेटी जैसे अधिकार मिलें, यह तो जरूरी है पर किसी के टोकने पर वह यह भूल जाती है कि मायके में भी तो ऐसी परिस्थितियां आती थीं. डांट तो मायके में भी पड़ जाती थी. माना कि उस का ससुराल में किसी से (अपने बच्चों को छोड़ कर) खून का रिश्ता नहीं है पर इनसानियत और प्यार का रिश्ता तो है.
उसे भी इस सच को दिल से स्वीकार करना चाहिए कि थोड़ी सी मेहनत से सब का मन जीत कर वह सब को अपना बना सकती है. जौब पर जाने वाली लड़कियों को परिवार के साथ रहने का अधिक समय भले ही न मिलता हो, लेकिन समय निकाला तो जा सकता है और फिर परिवार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनने के लिए कुछ कर्तव्य तो उस के भी हैं.
परिवार वालों को स्नेह और सम्मान दे कर वह अपने पति के दिल को जीत सकती है.
वर्चस्व की लड़ाई से बचें
दरअसल, वर्चस्व की लड़ाई ही सासबहू के बीच टकराव पैदा करती है. किसी भी संयुक्त परिवार में सास और बहू ज्यादातर समय एकदूसरे के साथ व्यतीत करती हैं. उन के ऊपर ही घर के कामकाज की जिम्मेदारी होती है. ऐसे में घर में अशांति का मुख्य कारण भी सास और बहू के कटु संबंध होते हैं.
आज टीवी पर अधिकतर धारावाहिक सासबहू के रिश्तों पर मिलते हैं. अधिकांश में दोनों में से कोई एक चालें चल रही होती है, कुछ में रिश्तों को व्यंग्यात्मक तरीके से पेश किया जाता है. विभिन्न सर्वेक्षणों व शोधों में यह बात सामने आई है कि संयुक्त परिवारों में तनाव का 60% कारण सासबहू के बीच का रिश्ता होता है.
जिन घरों में बहुत ही चाव से उन धारावाहिकों को देखा जाता है वहां विवाद ज्यादा होते हैं. वे घंटों उस पर डिस्कस भी करते हैं कि वह सास कितना गलत कर रही है या उस सीरियल की बहू कैसी शातिर है. तभी यह सास और बहू के मन में बैठ जाता है कि धारावाही के पात्रों की तरह ही दूसरी है और टीवी पर जाना जीवन में उतरने लगता है. जब बात खुद पर आती है तो हम भी वैसा ही करते हैं.
हम सभी किसी न किसी फिल्म या धारावाही के पात्रों से स्वयं को जुड़ा महसूस करते हैं और उस के जैसा ही बनना चाहते हैं. आप कैसी सास बनना पसंद करेंगी? ‘कुछ रंग प्यार के’ सीरियल की ईश्वरी देवी जैसी या फिर ‘बालिका वधू’ की दादीसा जैसी?
बहू का कौन सा किरदार आप को सूट करता है? आप सासबहू के किसी भी किरदार के रूप में ढलें, पर एक सवाल अपनेआप से जरूर करें कि क्या घर के किसी भी सदस्य को दुख पहुंचा कर आप खुश रह सकती हैं? क्या परिवार के सदस्यों के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने से आप का जमीर आप को धिक्कारता नहीं? परिवार एक माला की तरह है और सदस्य मोती हैं. फिर क्या आप इस माला के बिखरने से खुश रह सकेंगी?
बहुओं के लिए जरूरी है कि वे बुजुर्गों के साथ कभी बहस न करें. किसी भी टकराव की स्थिति से बचें. अपनी बात उन के सामने जरूर रखें पर शांतिपूर्ण तरीके से.
इन सब से ऊपर लड़के की समझदारी भी जरूरी है. समझदारी एक अच्छे पति, बेटे और दामाद के रूप में.
मुंबई में रहने वाली वाणी का कहना है, ‘‘मैं तमिल परिवार से हूं और मेरी शादी एक पंजाबी परिवार में हुई है. मुझे सास का बहुत डर था. मेरी सहेली और रिश्तेदारों ने मुझे सास नाम से डरा दिया था. हमारी शादी अलग धर्म में हुई थी. रहनसहन, खानपान सब अलग था, लेकिन जितना मैं डर रही थी, उस का उलटा ही हुआ.
‘‘मेरी सास ने मुझे प्यार से सब कुछ बनाना सिखाया, हिंदी बोलना सिखाया. वे मुझे सास कम और दोस्त ज्यादा लगीं.’’
दिल्ली की मधु कहती हैं, ‘‘मैं सिर्फ 16 साल की उम्र में खुशीखुशी अपनी ससुराल आ गई. मेरे मन में किसी तरह का डर और पूर्वाग्रह नहीं था. मैं ने सोच रखा था कि कोई उलटा जवाब नहीं दूंगी. फिर कोई मुझ से नाराज क्यों होगा?
‘‘सासूजी वैसे तो बात बड़े प्यार से करती थीं, लेकिन मन ही मन न जाने क्यों उन्हें अपने बेटे के बदल जाने का डर था, जिस की वजह से वे मेरे हर काम में कोई न कोई कमी निकालती रहतीं. मैं कोई वादविवाद नहीं करती, फिर भी बात धीरेधीरे बढ़ने लगी.
‘‘सासूजी अब बाहर के लोगों के सामने भी मेरी बेइज्जती करने लगीं. वे हर समय मेरी बुराई करतीं. मेरी भी सहनशक्ति जवाब देने लगी थी. मैं उन्हें पलट कर बातें सुनाने लगी. इन सब बातों से घर का वातावरण खराब होने लगा. पति हर समय तनाव में रहते. वे न तो मां को समझा पाते और न ही मुझ को.
‘‘इस बीच मेरी सास बीमार हुईं पर जब मैं ने उन की खूब सेवा की तो उन का मन मेरे प्रति बदल गया और वे मुझे प्यार करने लगीं. मुझे नहीं मालूम कि उन का मन परिवर्तन मेरी सेवा से हुआ या मेरी समझदारी से. महत्त्वपूर्ण यह है कि आज घर का माहौल शांत है.’’
इन 2 मामलों से बिलकुल अलग एक मामला है मोहिनी का. वे बताती हैं, ‘‘मेरी शादी के बाद से ही परेशानियों का दौर शुरू हो गया था. पूरे घर में सास और ननद का वर्चस्व था. कहने को तो ननद शादीशुदा थीं पर शुरू से ही मेरी काट करती रहतीं. मैं सासससुर और ननद के त्रिकोण में फंसी थी.
‘‘पति हमेशा चुप रहते. उन दोनों की कुटिल चालों से हमारे अलग होने तक की नौबत आ गई. फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि हालात ने करवट बदल ली. पति अब समझ गए हैं कि कमी कहां है.
‘‘ननद अपनी हरकतों के कारण मायके में ही है. सासूजी को भी अब मेरी उपयोगिता पता चल गई है. बेटी और बहू के बीच एक बहुत बारीक सी रेखा होती है. जरूरत सिर्फ उसे खत्म करने की होती है. पीछे मुड़ कर देखती हूं तो बहुत दुख होता है, क्योंकि जो गोल्डन पीरियड था वह खत्म हो गया था. फिर भी एक सुकून है कि चलो देर आए दुरुस्त आए.’’
पराई नहीं अपनी बेटी मानें
कुछ घरों में सासबहू का रिश्ता मांबेटी जैसा होता है जबकि कुछ घरों में हालात बहुत खराब होते हैं. कमी न मां में होती है न बहू में, कमी तो उन की समझ, उन के प्यार में होती है.
सवाल यह है कि आखिर सास बहू को पराया क्यों मानती है? कहने को अगर घर की बात है तो हम हमेशा यही सुनना पसंद करेंगे कि घर उस का है. लेकिन घर के साथ जिम्मेदारियां भी होती हैं.
वहीं दूसरी ओर कुछ बहुएं ऐसी भी होती हैं, जो सिर्फ अपने पति की या बच्चों की ही जिम्मेदारी उठाना चाहती हैं, सासससुर की नहीं. इसे घर संभालना नहीं कहते.
घर में तो सभी लोग होते हैं. सब के बारे में सोचना चाहिए जैसे वह अपने मायके में सब के लिए सोचती है.
वस्तुत: घर पूरे परिवार का होता है. हर सदस्य को अलगअलग अपनी जिम्मेदारियां उठानी चाहिए. घर को सिर्फ सास का कहना या बेटे और उस की पत्नी का कहना गलत होगा, क्योंकि घर में बाकी लोग भी तो रहते हैं. किसी एक इनसान से घर नहीं बनता. घर तो पूरे परिवार से बनता है.
छोटीछोटी बातों का ध्यान रखा जाए, तो परिवार का वातावरण सहज, सुखद एवं शांतिपूर्ण बन सकता है.
10 मिनटों में नितिन की कहानी खत्म हो गई. वह जमशेदपुर में एक कर्तव्यनिष्ठ और होनहार बैंक अधिकारी था. मध्यरात्रि के अंधेरे में टाटारांची हाइवे पर उस की मोटरसाइकिल की सामने से आती हुई स्कौर्पियो से टक्कर हो गई. वह गिर पड़ा, लुढ़कते हुए उस का सिर माइलपोस्ट से जा टकराया और ब्रेन हैमरेज हो गया. रक्त अधिक बहने के कारण 10 मिनटों में ही उस के प्राण पखेरू उड़ गए. स्कौर्पियो वाला वहां से सरपट भाग गया. 38 वर्षीय नितिन की 25 वर्षीया पत्नी रूमी विवाह के 2 वर्षों के भीतर पति खो बैठी.
ऐक्सिडैंट और मौत की खबर रात को जमशेदपुर पहुंचते ही घर के सभी सदस्य दहाड़ें मारमार कर रोने लगे. किसी को भी सुध नहीं थी. नितिन की मां और रूमी की तो रोरो कर हालत खराब हो गई.
सुबह हो चुकी थी. महल्ले वालों ने शोक समाचार सुना और वे मातमपुरसी के लिए आने लगे. नितिन के पिता विरेंद्र बाबू अपनी पत्नी को सांत्वना दे रहे थे, गले लगा रहे थे. लेकिन रूमी अकेली पड़ गई थी, किसी को उसे समझाने की सुध नहीं रही. आने वाले कईर् पड़ोसी फुसफुसाहट में बातें कर रहे थे, उन के हावभाव से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो रूमी ही नितिन की मृत्यु का कारण हो.
समय बीता, वर्ष बीते, विरेंद्र बाबू और उन की पत्नी रूमी का खयाल बेटी जैसा रख रहे थे.
एक दिन दोनों ने रूमी को जिंदगी की हकीकत से रूबरू कराया. विरेंद्र बाबू रूमी से बोले, ‘‘बेटे, तुम स्नातक की पढ़ाई पूरी कर लो, जो होना था हो गया, तुम अपने पैरों पर खड़ी होने का प्रयास करो.’’
‘‘पापाजी, मैं प्राइवेट से बीए करने को तैयार हूं. आप किताबें और कुछ जरूरी सामान मंगवा दें.’’
इंटैलिजैंट तो थी ही, रूमी ने 3 वर्षों में ग्रैजुएशन कर लिया, नंबर अच्छे आए. उस ने 18 महीनों का कंप्यूटर डिप्लोमा कोर्स भी कर लिया. उसे फिर अच्छा रैंक मिला. प्लेसमैंट सेल ने कई आईटी कंपनियों को रूमी के लिए अनुमोदन भी किया.
एक आईटी कंपनी से वौक इन इंटरव्यू का कौल आया. रूमी स्मार्ट थी, उस में दृढ़ आत्मविश्वास भी था. उस का चयन एनालिस्ट के लिए हो गया.
कंपनी के इंजीनियरों के बीच उस के काम की प्रशंसा होने लगी. सहकर्मीगण उसे आ कर बधाई भी देते. रूमी चुपचाप उन के अभिवादन को स्वीकार करती और मौनिटर में लग जाती. वह अपने काम से वास्ता रखती, किसी से ज्यादा बातें या हंसीमजाक से अपने को दूर ही रखती.
औफिस में अब तक उम्रदराज सीनियर मैनेजर हुआ करते थे, लेकिन एक नए इंजीनियर ग्रैजुएट ने सीनियर मैनेजर की पोस्ट पर जौइन किया. औफिस में एक नौजवान बौस के रूप में आए अंकित ने पदभार ग्रहण के बाद औफिस के सभाकक्ष में सभी कर्मचारियों को संबोधित किया और समय की पाबंदी व कार्यलक्ष्य का दृढ़ता से पालन करने का आग्रह किया.
सभी को खबर हो गई कि 27 वर्षीय अंकित श्रेष्ठ कुंआरा है. बारीबारी से अंकित ने सभी को अपने कक्ष में बुला कर परिचय किया, रूमी से भी.
राउंड के दौरान अंकित कभीकभी रूमी के पास आ कर कुछ सवालजवाब करता. ऐसा सिलसिला चलता रहा. अंकित राउंड में कर्मचारियों से मिल कर उन की कार्यप्रगति के बारे में जानकारी लेता रहता था.
इस बीच कंपनी को एक बड़ा प्रोजैक्ट मिला. अंकित को एक टीम बनानी पड़ी और टीम लीडर के लिए रूमी का चयन किया गया. अंकित ने रूमी को अपने कक्ष में बुलाया और कहा, ‘‘आप के काम को देख कर मैं ने आप को टीम लीडर बनाया है. मैसेज कर रहा हूं, टीम मैंबर की लिस्ट भी भेज रहा हूं. आप काम संभाल लीजिए. कभी कठिनाई हो तो मुझ से संपर्क करें.’’
‘‘जी, सर.’’
रूमी को इस बात का जरा भी एहसास नहीं था कि अंकित पहली नजर में उसे दिल दे बैठा था.
प्रोजैक्ट का काम जोरशोर से शुरू हो चुका था. इस सिलसिले में रूमी की अंकित के कक्ष में जाने की तीव्रता भी बढ़ चुकी थी. ऐसे ही एक दिन रूमी ने कक्ष में प्रवेश किया तो अंकित फोन पर बातें कर रहा था. रूमी वापस लौटने लगी तो अंकित ने हाथ से कक्ष में बैठने का इशारा किया. रूमी बैठ गई.
बातें खत्म होते ही अंकित भी सीट पर बैठ गया और बोला, ‘‘रूमी, काम की बातें तो रोज होती हैं, अब यह बताओ कि कहां रहती हो, पेरैंट्स कहां रहते हैं, इस कंपनी में कब, कैसे आईर्ं?’’ रूमी को थोड़ा अटपटा लगा पर इतने दिनों में रूमी भी अंकित को थोड़ाबहुत जान चुकी थी. इसलिए उस ने अपनी कहानी सुना दी. सुन कर अंकित थोड़ा गंभीर हो गया. बाद में मुसकराते हुए बोला, ‘‘प्रोजैक्ट जल्द तैयार हो जाना चाहिए, अभी तक प्रोग्रैस संतोषजनक है.’’ रूमी जितनी देर बैठी रही, अंकित की आंखें कुछ कहती नजर आईं.
ऐसा सिलसिला चलता रहा. रूमी महसूस कर चुकी थी कि अंकित उस में काफी दिलचस्पी ले रहा है और रूमी ने पाया कि वह भी अंकित की ओर आकर्षित हो रही है. एक अन्य मुलाकात में अंकित ने आखिर कह ही डाला, ‘‘रूमी, आज लंच हम लोग साथ करेंगे, यदि आप को कोई आपत्ति न हो तो.’’
रूमी मना नहीं कर पाई. रैस्तरां पास ही था.
लंच में बातें चलती रहीं. रैस्तरां में हलका संगीत भी चलता रहा. डिम लाइट में दोनों की एकदूसरे से आंखें मिल जातीं और लंच के बाद तो अंकित ने रूमी का हाथ पकड़ लिया. रूमी ने कोई प्रतिरोध नहीं किया, लेकिन बोली, ‘‘देखिए, मैं विडो हूं. आप की जौइनिंग रिपोर्ट देखी है, आप से उम्र में 3 साल बड़ी भी हूं.’’
‘‘मैं सब जानता हूं. मैं ने तुम्हारा बायोडाटा देखा है. मुझे मालूम है, मैं तुम से 3 वर्ष छोटा हूं. फिर भी मैं तुम्हें अपनाना चाहता हूं.’’
‘‘आप के घरवाले राजी होंगे?’’
इस प्रश्न का उत्तर अंकित के पास नहीं था, लेकिन वह खुश था कि रूमी की स्वीकृति मिल गई है.
प्रोजैक्ट रिपोर्ट बन गई थी. रूमी का अंकित के चैंबर में जाना नहीं के बराबर हो गया था. लेकिन राउंड के दौरान अंकित रूमी के कियोस्क में कुछ ज्यादा समय दे रहा था.
औफिस में कानाफूसी होने लगी थी. लोग समझ चुके थे कि अंकित और रूमी के बीच कुछ चल रहा है.
रूमी ने अपनी जेठानी को अंकित के बारे में बताया.
‘‘देखो, रूमी, मुझे इस में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन कुछ बातें ठीक से समझ लेना. कहीं अंकित तुम्हारे साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहा है, उस के पेरैंट्स की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है, यहां पापाजी, मम्मीजी के क्या विचार हैं, यह सब तुम्हें पहले ही जान लेना चाहिए. वैसे, मैं तुम्हारे साथ हूं, मैं जानती हूं कि तुम गलत फैसला नहीं ले सकती हो.’’
कंपनी कार्यालय की स्थापना के 5 वर्ष पूरे होने पर कौर्पोरेट औफिस से सभी कर्मचारियों को पार्टी देने का निर्देश आया, मुनाफा भी हुआ था. तय हुआ, शहर से दूर ‘डाउन टाउन रिजौर्ट’ में लंच होगा. रविवार का दिन चुना गया. लग्जरी बस किराए पर की गई और निर्धारित समय पर एक अच्छी पार्टी हुई. पार्टी के बाद सभी बस से वापस चल पड़े. अंकित अपनी गाड़ी से गया था.
‘‘रूमी, तुम रुक जाओ, मैं गाड़ी से तुम्हें छोड़ दूंगा. चलो, कौफी पी लेते हैं,’’ अंकित ने सुझाव दिया.
दोनों वापस रिजौर्ट से रैस्तरां में आ गए और कौफी पीने लगे. अंकित इस बार फैसला कर चुका था कि फाइनल बात करेगा. रूमी के हाथों को अपने हाथों में ले कर उस ने दोहराया, ‘‘मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं. मैं शादी करना चाहता हूं.’’
रूमी ने सिर झुका लिया और शरमा सी गई. उस में एक आत्मविश्वास भी था, वह जानती थी अपने बारे में उसे स्वयं फैसला लेना है लेकिन पारिवारिक बंधनों का खयाल भी था.
रूमी तुरंत कुछ बोल नहीं पाई. बस, मुसकरा भर दिया.
दोनों वापस चल पड़े.
रूमी जिस प्रोजैक्ट की टीम लीडर थी, उसे क्लाइंट के बोर्ड औफ डायरैक्टर्स के सामने प्रेजैंटेशन देने का कार्यक्रम बना. क्लाइंट का कार्यालय पटना में था.
‘‘तुम टीम लीडर हो, प्रोजैक्ट रिपोर्ट प्रेजैंटेशन देने के लिए तुम्हें पटना चलना होगा,’’ अंकित ने कहा.
‘‘पापाजी से पूछना होगा, मैं कल बताऊंगी.’’
‘‘एयर टिकट बुक हो चुका है, मैं भी साथ चल रहा हूं. तुम अपने पेपर्स और लैपटौप अपडेट कर लो. परसों जाना है, जाना तो होगा ही,’’ अंकित ने जोर देते हुए कहा.
विरेंद्र बाबू, रूमी के पटना टूर के बारे में सुन कर चिंतित हो गए.
‘‘बड़ी बहू को साथ ले जाना, वह भी थोड़ा बाहर घूम आएगी,’’ उन्होंने कहा.
‘‘ऐसा नहीं हो सकता, पापाजी, मेरी यात्रा प्लेन से फिक्स है. आप को चिंता नहीं करनी चाहिए. यह सब तो चलता रहेगा.’’
पटना की यात्रा सफल रही, रूमी ने बहुत सुंदर ढंग से प्रोजैक्ट रिपोर्ट का प्रेजैंटेशन दिया. बोर्ड औफ डायरैक्टर्स ने रिपोर्ट को पास कर दिया.
पटना के मौर्य होटल में रात्रिविश्राम था. रूमी और अंकित थोड़ी शौपिंग कर के होटल आ गए. दोनों के अलग कमरे थे.
‘‘रात का खाना कमरे में ही साथ खाएंगे, मैं ने और्डर कर दिया है. खाना तुम्हारे कमरे में आ रहा है,’’ अंकित ने कहा.
दोनों ने साथ खाना खाया. रात देर तक बातें होती रहीं. दोनों की समीपता बढ़ती गई और वह हो गया जो एकांत में रात के पहर बंद कमरे में हो सकता था.
तड़के सुबह अंकित अपने कमरे में चला गया. वापसी की तैयारी होने लगी. रास्तेभर दोनों एक तरह से खामोश रहे लेकिन विदा लेते समय अंकित ने कहा, ‘‘रूमी, अब हमें शादी की तैयारी करनी चाहिए.’’
रूमी यह सुनने को बेताब थी. उस ने भी शादी का मन बना लिया था. अपने बारे में तो वह आश्वस्त थी कि वह अपना फैसला खुद ले सकती थी लेकिन अंकित के पेरैंट्स का क्या रुख हो सकता है, सोच कर चिंतित थी.
अगले दिन लंच के लिए औफिस से बाहर जाना हुआ. ‘‘अंकित, यदि तुम्हारे पेरैंट्स तैयार नहीं हुए तो क्या होगा, तुम उन से बात करो,’’ रूमी ने कहा, ‘‘अगर नहीं माने तो भी क्या तुम मुझ से शादी करोगे?’’
यह अगरमगर दोनों के दिमाग में चलती रही और इस बीच दीवाली की छुट्टियां आईं.
4 दिनों की छुट्टियों में अंकित अपने घर दुर्गापुर चला गया.
बहुत हिम्मत कर के उस ने अपनी मां को सारी बातें बताईं और अपना फैसला भी बता दिया.
‘‘शादी मैं रूमी से ही करूंगा. आप लोगों की ‘हां’ चाहिए.’’
मां यह सुन कर सन्न रह गईं, पापा ने सुना तो स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘‘रूमी से विवाह की मंजूरी नहीं दी जा सकती, तुम नौकरी छोड़ दो और पारिवारिक बिजनैस में लग जाओ, यह मेरा आखिरी फैसला है.’’
यहां भी अगरमगर होती रही.
दीवाली के दूसरे दिन भी अंकित की छुट्टी थी लेकिन सुबह मौर्निंगवौक के लिए निकला और टैक्सी से जमशेदपुर ड्यूटी जौइन करने चल पड़ा. हां, उस ने मां के नाम एक पत्र लिख छोड़ा था. मां ने कई बार फोन किया. एक बार पापा ने भी फोन किया लेकिन अंकित ने कोईर् जवाब नहीं दिया.
अगले दिन औफिस जाते ही उस ने रूमी को बुलवाया और साफ शब्दों में कहा, ‘‘हमें कोर्टमैरिज करनी है.’’
‘‘मुझे एक बार पापाजी को बताना होगा. वे राजी हों या नहीं, मैं शादी के लिए तैयार हूं. लेकिन एक बार बताना जरूरी है.’’
शाम को घर लौट कर रूमी ने पापाजी और जेठानी को कोर्टमैरिज की बात बताई. दोनों ने प्रोत्साहित किया, लेकिन मम्मीजी और 3 देवरों ने इस का घोर विरोध किया.
फिर एक अड़चन. लेकिन पूरे आत्मविश्वास और दृढ़ता से रूमी डटी रही. उस के तेवर को देखते हुए पापाजी ने अपनी पत्नी और बेटों को समझाया, ‘‘विरोध करने का कुछ लाभ नहीं होगा, घर में ड्रामा होना अच्छा नहीं.’’
पापाजी के हस्तक्षेप से सभी मान गए. पापाजी ने अंकित से एक बार खुद बात करने की इच्छा जताई. रूमी ने हामी भर दी.
पापाजी ने अंकित से कहा, ‘‘तुम लोगों की शादी से हमें कोई आपत्ति नहीं है. तुम्हारी? कोर्टमैरिज से भी हम सहमत हैं. अपने परिवार वालों से बात करने की जिम्मेदारी तुम्हारी है. मुझे सिर्फ 2 बातें करनी हैं, एक, रूमी के सुख और सुरक्षा की गारंटी होनी चाहिए, दूसरे, इसे हम ने बेटी की तरह माना है और बेटी का पूरा प्यार दिया है, कोर्टमैरिज के बाद हम इसे अपने घर ले जाएंगे और एक दिन बाद इसे बेटी की तरह अपने घर से विदा करेंगे.’’
‘‘मुझे दोनों शर्तें मंजूर हैं,’’ अंकित ने विनम्रता से कहा.
पापाजी ने घर वापस आ कर बड़ी बहू को रूमी की शादी का जोड़ा, चूडि़यां, सिंदूर और आवश्यक कपड़े अंकित के लिए गिफ्ट और सूट के कपड़े बाजार से लाने को कहा.
वैधानिक औपचारिकता के बाद दोनों की शादी हो गई. पापाजी, बड़ी बहू और अंकित का एक दोस्त शादी के गवाह बने, मिठाइयां बांटी गईं.
विदाई का दिन आ गया. समयानुसार अंकित और उस के 4 दोस्त 3 गाडि़यों में आ गए. रूमी को लाल लहंगा, लाल चोली और लाल दुपट्टे के साथ पूरी दुलहन की तरह सजाया गया और विदाई गीत शुरू हो गए.
विदाई गीत शुरू होते ही पापाजी बहुत सैंटीमैंटल हो गए और फफकफफक कर रोने लगे. रूमी ने भीगी पलकों से पापाजी को प्रणाम किया और सीने से लग कर कहा, ‘‘पापाजी, आप क्यों रोते हैं? मैं आप लोगों से मिलती रहूंगी. आप ने मुझे बेटी माना है, मुझे आते रहने का हक देते रहिए. आप लोग अपना खयाल रखें. आप आंसू मत बहाइए, मैं तो फिर सुहागन हो गई.’’
अंकित और रूमी को मम्मीजी और बड़ी बहू ने नम आंखों से गाड़ी तक पहुंचाया. गाड़ी में बैठते ही अंकित ने ड्राइवर से कहा, ‘‘दुर्गापुर चलो.’’
और सड़क के रास्ते गाड़ी दुर्गापुर के लिए चल पड़ी.
सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) कई सालों से फैंस के दिलों पर राज कर रहा है. जहां सीरियल के कई सितारों ने शो को अलविदा कहा है तो वहीं नए एक्टर्स ने शो में एंट्री ले ली है. हालांकि सीरियल का हिस्सा रह चुके एक्टर्स आज भी सुर्खियों में हैं. वहीं उनके लाइफस्टाइल में काफी बदलाव आ चुका है. इन्हीं एक्टर्स में से एक हैं ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के छोटे नक्ष (Shivansh Kotia). आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…
नक्ष के रोल में जीता फैंस का दिल
View this post on Instagram
‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ सीरियल में नैतिक यानी करन मेहरा और अक्षरा यानी हिना खान के लाडले बेटे नक्ष सिंघानिया के रोल में शिवांश कोटिया काफी पौपुलर हुए थे. वहीं इस रोल में एक्टर की क्यूटनेस और एक्टिंग के चर्चे घर घर में होने लगे थे. वहीं फैंस भी उन्हें अक्षरा की तरह डुग्गू के नाम से पुकारने लगे थे. हालांकि शो से अलविदा कहने के बाद भी फैंस उन्हें याद करते हुए नजर आते हैं.
View this post on Instagram
17 साल के हुए शिवांश
View this post on Instagram
इन दिनों टीवी और बौलीवुड की दुनिया से दूर एक्टर शिवांश कोटिया सोशलमीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं. वहीं हाल ही में एक्टर ने अपना 17वां बर्थडे सेलिब्रेट किया था, जिसकी फोटोज उन्होंने फैंस के साथ शेयर की थी. हालांकि वह बर्थडे फोटोज के अलावा अपनी बहन के साथ मस्ती करते हुए भी नजर आते हैं और सोशलमीडिया पर अपनी #reels शेयर करते रहते हैं. फैंस को उनकी ये वीडियो काफी पसंद आती है.
View this post on Instagram
बता दें, एक्टर शिवांश कोटिया टीवी सीरियल्स के अलावा श्रीदेवी की फिल्म इंग्लिश विंग्लिश का भी हिस्सा रह चुके हैं. हालांकि वह काफी समय से फिल्मी दुनिया से दूर हैं औऱ फैंस उनके नए शोज या फिल्म का बेस्ब्री से इंतजार कर रहे हैं.
View this post on Instagram
ये भी पढ़ें- ‘बालिका वधू’ की क्यूट ‘आनंदी’ से ग्लैमरस एक्ट्रेस तक, कुछ ऐसा था Avika Gor का सफर
एक खुबसूरत ग्लैमरस एक्ट्रेस अविका गौर की हाल में शूट की गयी तस्वीरें देखने पर किसी को भी आश्चर्य होगा कि टीवी पर 11 साल की ये सीधी-सादी छोटी बच्ची शो ‘बालिका वधु’ की आनंदी है, जो बड़ी होकर इतनी खूबसूरत लग रही है और किसी भीबड़ी ऐक्ट्रेस को टक्कर दे रही है, क्या आप जानते है?
असल में टीवी धारावाहिक ‘बालिका वधू’में आनंदी की भूमिका निभाकर घर-घर परिचित हुई अभिनेत्री अविका गौर से कोई अनजान नहीं. उस वक्त जन्म लेने वाली बच्चियों के नाम भी माता-पिता आनंदी रखना पसंद करते थे. इस शो को दिखाने का उद्देश्य देश में बाल विवाह की प्रथा के बारें में लोगों को जागरूक करना था.इस भूमिका को 11 वर्ष की बाल अभिनेत्री अविका ने बहुत ही संजीदगी से निभाया था, जिसे आज भी लोग याद करते है. इसके बाद अविका ने ‘ससुराल सिमर का’ में रोली की भूमिका निभाई और वह धारावाहिक भी बहुत चर्चित हुई.
परिवार की अकेली लड़की अविका के पेरेंट्स व्यवसायी है. उन्होंने अविका को हमेशा अपने पसंद के अनुसार काम करने की आज़ादी दी है. यही वजह है कि अभिनय के बल पर उन्होंने एक अलग इमेज बनायीं. धारावाहिकों के साथ-साथ अविका बड़ी होती गयी और अपने युवा अवस्था में पहुंचकर एक ग्लैमरस अभिनेत्री का रूप ले चुकी है.अब तक अविका ने 15 साल इंडस्ट्री में गुजारे है. अभी वह हैदराबाद निवासी मिलिंद चांदवानी के साथ रिलेशनशिप पर है, जो एक एनजीओ चलाते है, दोनों की मुलाकात एक वर्कशॉप के दौरान हुई थी. आइये जाने अविका की बातें, उनकी जुबानी.
सवाल – इनदिनों आप क्या कर रही है, किस प्रोजेक्ट में व्यस्त है?
जवाब – मैं एक हिंदी फिल्म के लिए शूट कर रही हूं. इस वजह से मेरा मुंबई आना जाना रहता है,ये मुझे अच्छा लग रहा है, क्योंकि कोरोना के समय घर पर बैठना पड़ता था, जो मुझे पसंद नहीं था. इसके अलावा मैं एक तेलगू फिल्म कर रही हूं. तीन फिल्में रिलीज पर है. इसके अलावा मेरे प्रोडक्शन में भी दो तेलगू फिल्में बन रही है, इसलिए मैं अभी थोड़ी व्यस्त हूं. मैं अपने प्रोडक्शन हाउस का काम खुद करती हूं और जरुरत पड़ने पर पिता की सहायता लेती हूं. मैं मुंबई में रहती हूं, लेकिन मेरी प्रोडक्शन हाउस हैदराबाद में है.
सवाल – अभिनय की प्रेरणा कैसे मिली?
जवाब – मेरे जीवन में सबकुछ बहुत जल्दी हो गया था. छोटी उम्र में मुझे इतनी बड़ी शो बालिका वधु मिली थी. ये कोई प्लान नहीं था, क्योंकि हमारे परिवार के आसपास कोई भी फिल्म इंडस्ट्री से नहीं था. जब छोटी थी तो स्कूल के बाद शूट में जाने का एक बड़ा उत्साह था. कुछ सालों बाद लगने लगा कि इसे मैं अच्छी तरह से कर पाउंगी और मैंने अभिनय को अपना सबकुछ मान लिया.
सवाल – पहली ब्रेक कैसे मिली?
जवाब –मैंने पहली एक्टिंग 7 साल की उम्र से शुरू किया था. मुंबई में मैंने डांस 4 साल की उम्र से सीखा है और हमारे गुरु ने कई शो उस दौरानरखे थे. मुझे याद है कि मैं एक मॉल में परफॉर्म कर रही थी. वहां पर किसी ने मुझे देखकर एक्टिंग के लिए पेरेंट्स को पूछा था. तब मेरे पिता ने साधारण तरीके से हां कहा था. फिर मुझे कुछ दिनों बाद उनका फ़ोन फोटो शूट के लिए आया. साथ ही मैंने कुछ ऑडिशन भी देने शुरू किये. मुझे ये सारी चीजें अच्छी लगने लगी और अंत में बालिका वधु मिली.
सवाल – समय के साथ-साथ आपकी विचारधारा में किस प्रकार का बदलाव आया और परिवार का सहयोग कितना रहा?
जवाब – मेरे परिवार का सहयोग शुरू से बहुत अधिक था, जब मैं शो ‘ससुराल सिमर का कर रही थी, तब मैं अभिनय को छोड़कर कुछ अलग करना चाहती थी, क्योंकि अभिनय मेरे जीवन में बहुत जल्दी आ गया था. 12वीं पास कर अपनी स्ट्रीम चूज करने का समय मेरे पास नहीं था. मैंने अपने पेरेंट्स से कुछ दिनों के लिए ब्रेक लेने की बात कही तो वे तुरंत मान गये थे, पर मैं सीरियल से अधिक फिल्म मेकिंग की ओर गयी, जो मेरे लिए सही था. इसके बाद मैंने लाडो2, खतरों के खिलाडी, आदि में भाग लिया और मुझे बहुत ख़ुशी हुई कि मैं जो चाहती थी वह मुझे मिली.
सवाल – जब आपने अभिनय को ही अपना कैरियर बनाया, तो पेरेंट्स की प्रतिक्रिया क्या थी?
जवाब – पेरेंट्स ने मुझे बैठकर सारी बातें एक्सप्लेन किया और मुझे इंडस्ट्री की सफलता और असफलता को समझाया. उन्होंने मुझे अपने हिसाब से कैरियर चुनने की हमेशा आज़ादी दी है. हालाँकि पहले मैं छोटी थी, लेकिन धीरे-धीरे बड़ी होने पर मुझे सब समझ में आई. मैंने अभिनय को कैरियर बनाया, लेकिन इसमें मुझे कठिन परिश्रम भी करने पड़ रहे है. बाहर से लोग इस इंडस्ट्री को ग्लैमर और काम करना आसान समझते है, लेकिन इसमें बहुत अधिक ऑडिशन, मेहनत, खुद को मेंटेन रखने के लिए बहुत सारी सैक्रिफाइस भी करनी पड़ती है. हर क्षेत्र में मेहनत होता है, लेकिन मैंने इस फील्ड को चुना है, इसलिए मेहनत करने पर भी मुझे बहुत ख़ुशी मिलती है.
सवाल – आपने पहले एक छोटी बच्ची आनंदी की भूमिका निभाई और उस समय आपका चबी चेहरा सबको पसंद आया, बड़े होने पर एक ग्लैमरस एक्ट्रेस बनना कितना मुश्किल था?
जवाब – मैंने एक शेप में खुद को लाने में अधिक मेहनत नहीं हुई, क्योंकि दर्शक मुझे किसी भी रूप में स्वीकार कर रहे थे. सभी शो हिट जा रही थी, लेकिन मैंने देखा कि मेरा वजन जल्दी बढ़ता है, मैं उतनी सुंदर भी नहीं, ऐसे में मुझे क्या करना है इसे सोचना पड़ा और निष्कर्ष ये निकला कि ये मेरे हाथ में है और मैं इसे कन्ट्रोलकर सकती हूं. वर्कआउट, हेल्दी खाना और देखभाल से मेरी स्किन भी बॉलीवुड हिरोइन की तरह चमक सकती है. मुझे अपना ख्याल रखना जरुरी है. केवल अभिनय के लिए ही नहीं, खुद की ख़ुशी के लिए भी ये सब करते जाना चाहिए.
सवाल – ऐसा सुनने में आता है कि आपके बहुत नखरें है, ये कितना सही है?
जवाब – मुझे ख़ुशी हो रही है कि लोग मेरे बारें में ऐसा भी सोचते है. नया गॉसिप मुझे बहुत पसंद होता है. इसके लिए मैं इंतज़ार भी करती हूं. दर्शक हमेशा कलाकार को सरप्राइज करते है और रयूमर्स से मुझे मज़ा आता है.
सवाल – रियल लाइफ में अविका कैसी है?
जवाब – मैं एक साधारण लड़की हूं और जीवन में जो भी हुआ है, वह मुझे पता है. उसे पाने के लिए कुछ भी करने के लिए वह तैयार है. मैंने लोगों को बहुत बार ऑडिशन देते देखा है, पर वे कामयाब नहीं हो पाते. मेरे पास एक अनुभव है, जिस वजह से मुझे बहुत कुछ आसानहुआ. जब जर्नी पूरी पता हो, तो एक स्तर तक ही खुद प्राउड फील कर सकते है, इसके बाद वह उनकी जर्नी होती है, नखरे की अगर बात करें, तो मेरे परिवार में कजिन्स ने कभी ये अनुभव नहीं होने दिया कि मैंने बहुत बड़ा काम किया है. मैं एक नार्मल इंसान हूं और आगे की जर्नी को जानती हूं. एक्स्पोजर अधिक होने पर जानकारी भी अधिक रहती है. आज भी मुझे एक नया फ़ोन खरीदने के लिए एक टारगेट सेट करना पड़ता है. मेरा लालन-पालन एक रूम और किचन से शुरू हुआ है, इसलिए मुझे जो भी मिला, उसकी मैं हमेशा आभारी रहूंगी.
सवाल – आपकी ड्रीम कोई है क्या?
जवाब – मेरे लिए जो मुझे अबतक मिला है, वही मेरी ड्रीम है, क्योंकि मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं बालिका वधु जैसी शो करुँगीऔर अब दो फिल्में प्रोड्यूस कर रही हूं. मेरी जर्नी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है और मैं इससे बहुत खुश हूं. मैं इसलिए बहुत सावधानी से स्क्रिप्ट चुनती हूं, ताकि दर्शक मेरी फिल्मों को थिएटर तक पहुँचकर कीमती टिकट खरीदकर देखे और मायूस न हों. उनकी अपेक्षाओं पर मुझे खड़ा उतरना है. अभी एक्शन, कॉमेडी आदि फिल्में करने की इच्छा है.
सवाल – आप अपनेसपनों के राजकुमार मिलिंद चांदवानी से कैसे मिले?
जवाब – कॉमन फ्रेंड्स के द्वारा हैदराबाद में मिले थे. उनका एक एनजीओ है, जिसमें वे कम रोजगार करने वाले छोटे प्राइवेट स्कूल के बच्चों को करिकुलर और को करिकुलर एक्टिविटीज सिखाते है, जिसमें डांस, गिटार आदि जो अधिकतर अमीर बच्चे सीखते थे, उन्हें फ्री में सिखाया जाता है. मिलिंद से बात करने के बाद मुझे लगा कि उनसे मैं बहुत कुछ सीख सकती हूं और मेरे लिए ऐसा ही पार्टनर ठीक रहेगा. मैंने अपना 20 किलो वजन कम किया,वह भी उनकी ही कोशिश थी. इसके अलावा जर्नी को आगे बढाने के तरीके के बारें में चर्चा करती हूं, क्योंकि मुझे याद है कि कई बार मैं काम से उकता जाने पर उन्होंने मुझे साहस दिया. ऐसा पार्टनर सभी को मिलना चाहिए, जो खुद से प्यार करना सिखाएं. शादी के बारें में अभी सोचा नहीं है.
सवाल – मिलिंद की कौन सी बात आपको अच्छी लगी, जिससे आप आकर्षित हुए? आपकी किस बात को मिलिंद पसंद नहीं करते?
जवाब – उनका शांत स्वभाव, स्पष्टभाषी, दयालू होना आदि मुझे बहुत अच्छा लगा था. उसके साथ रहने पर मुझे पारिवारिक माहौल मिलता है.
उन्हें मेरी किसी भी बात को लेकर स्ट्रेस लेना पसंद नहीं. ऐसी बातों को मिलिंद अच्छी तरह से एक्सप्लेन कर समाधान बताने की कोशिश करते है.
सवाल –अभी श्रीलंका की हालत बहुत ख़राब है, आपने वहां की प्राकृतिक दृश्यों का लुत्फ़ कैसे उठाया?
जवाब – कई एक्ट्रेस और मैं फोटो शूट करने श्री लंका गयी थी, बहुत ही मनोरम और सुंदर जगह है, लोग बहुत अच्छे है. मैं चाहती थी कि लोग मेरी नजर से इस क्षेत्र को देखें और यहाँ घूमने जाएँ. जब मैं गई थी, तो हालात आज के जैसे इतने खराब नहीं थे, लेकिन उनकी अर्थव्यवस्था सही नहीं है, ये हमें पता चल रहा था. आजकल अधिकतर पर्यटक मालद्वीप की सैर करते है, लेकिन वे कभी श्रीलंका भी जा सकते है. वहां के समुद्री किनारे बहुत सुंदर है, जिसमें मुझे बेन्टोटा बीच बहुत पसंद आया था. शांत समुद्री किनारे और नारियल के पेड़ इसकी शोभा बढ़ा रहे थे, वैसे भी मुझे समुद्री बीच हमेशा बहुत पसंद है.