सास-बहू का रिश्ता बेहद खास होता है, जिसे संवारने के लिए थोड़ी सी कोशिश जरुरी है. भारतीय तीज त्यौहार वो मौका होते हैं जो इन रिश्तों को और करीब लाते हैं. ऐसा ही एक मौका होता है हरितालिका तीज का जहां बहू अपनी सास को बतौर गिफ्ट सुहाग की निशानियां जैसे जेवर और साड़ियां देती हैं.
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अगर गर्भाशय में किसी भी तरह का सिस्ट या फाइब्रॉएड है तो ऐसी स्थिति में माँ बनना सम्भव नहीं हो पाता . इसके अलावा ओवरी सिंड्रोम, खून की कमी आदि कई ऐसी बीमारियां है जो हमे देखने मे तो छोटी लगती है पर बच्चा पैदा करने के लिए यही सब समस्याएं बहुत बड़ी बन जाती है.
गर्भाशय में विकसित होने वाले गैर-कैंसरकारी (बिनाइन) गर्भाशय फाइब्रॉयड, महिलाओं के बांझपन के सबसे प्रमुख कारणों में से एक हैं. इस बारे में बता रही हैं डॉ रत्ना सक्सेना, फर्टिलिटी एक्सपर्ट, नोवा साउथेंड आईवीएफ एंड फर्टिलिटी, बिजवासन.
गर्भाशय फाइब्रॉयड, फैलोपियन ट्यूब को बाधित करके या निषेचित अंडे को गर्भाशय में प्रत्यारोपित करने से रोककर प्रजनन क्षमता को बिगाड़ सकता है. गर्भाशय में जगह कम होने के कारण, बड़े फाइब्रॉयड भ्रूण को पूरी तरह से विकसित होने से रोक सकते हैं. फाइब्रॉयड प्लेसेंटा के फटने के जोखिम को बढ़ा सकता है क्योंकि प्लेसेंटा फाइब्रॉयड द्वारा अवरुद्ध हो जाता है और गर्भाशय की दीवार से अलग हो जाता है, जिसकी वजह से भ्रूण को ऑक्सीजन और पोषक तत्व कम मात्रा में मिलते हैं. इससे, समय से पहले जन्म या गर्भपात की संभावना काफी बढ़ जाती है.
गर्भाशय फाइब्रॉयड, गर्भाशय की मांसपेशियों के ऊतकों के बिनाइन (गैर-कैंसरकारी) ट्यूमर हैं. उन्हें मायोमा या लेयोमायोमा के रूप में भी जाना जाता है. फाइब्रॉयड तब बनते हैं जब गर्भाशय की दीवार में एकल पेशी कोशिका कई गुना बढ़ जाती है और एक गैर-कैंसरयुक्त ट्यूमर में बदल जाती है.
फाइब्रॉयड छोटे दाने के आकार से लेकर बड़े आकार के हो सकते हैं, जो गर्भाशय को विकृत और बड़ा करते हैं. फाइब्रॉयड का स्थान, आकार और संख्या निर्धारित करती है कि क्या वे लक्षण पैदा करेंगे या इलाज कराने की जरूरत है.
गर्भाशय फाइब्रायॅड, उनके स्थान के आधार पर वर्गीकृत किये जाते हैं. फाइब्रॉयड को तीन बड़ी श्रेणियों में विभाजित गया है:
1-सबसेरोसल फाइब्रॉयड:
यह गर्भाशय की दीवार के बाहरी हिस्से में विकसित होता है. इस तरह के फाइब्रॉयड ट्यूमर बाहरी हिस्से में विकसित हो सकते हैं और आकार में बढ़ सकते हैं. सबसेरोसल फाइब्रॉयड, ट्यूमर आस-पास के अंगों पर दबाव बढ़ाने लगता है, जिसकी वजह से पेडू (पेल्विक) का दर्द शुरूआती लक्षण के रूप में सामने आता है.
2-इंट्राम्यूरल फाइब्रॉयड:
इंट्राम्यूरल फाइब्रॉयड गर्भाशय की दीवार के अंदर विकसित होता है और वहां बढ़ता है. जब इंट्राम्यूरल फाइब्रॉयड का आकार बढ़ता है तो उसकी वजह से गर्भाशय का आकार सामान्य से ज्यादा हो जाता है. जैसे-जैसे इन फाइब्रॉयड्स का आकार बढ़ता है, उसकी वजह से माहवारी में रक्तस्राव ज्यादा होता है, पेडू (पेल्विक) में दर्द और बार-बार पेशाब जाने की समस्या हो जाती है.
3-सबम्यूकोसल फाइब्रॉयड:
ये फाइब्रॉयड गर्भाशय गुहा की परत के ठीक नीचे बनते हैं. बड़े आकार के सबम्यूकोसल फाइब्रॉयड, गर्भाशय गुहा के आकार को बढ़ा सकता है और फेलोपियन ट्यूब को अवरुद्ध कर सकता है, जिसकी वजह से प्रजनन में समस्याएं होने लगती हैं. इससे जुड़े लक्षणों में शामिल है, माहवारी में अत्यधिक मात्रा में रक्तस्राव और लंबे समय तक माहवारी आना.
कैसे पहचान करें-
पेडू की जांच, लैब टेस्ट और इमेजिंग टेस्ट के जरिये गर्भाशय फाइब्रॉयड का पता लगाया जाता है. इमेजिंग टेस्ट का इस्तेमाल, गर्भाशय की असामान्यताओं का पता लगाने के लिये किया जाता है. इसमें पेट का अल्ट्रासाउंड, योनि का अल्ट्रासाउंड और हिस्टेरोस्कोपी शामिल होती है. हिस्टेरोस्कोपी के दौरान हिस्टेरोस्कोप नाम की एक छोटी, हल्की दूरबीन को सर्विक्स के जरिये गर्भाशय में डाला जाता है. स्लाइन इंजेक्शन के बाद, गर्भाशय गुहा फैल जाएगी, जिससे स्त्रीरोग विशेषज्ञ गर्भाशय की दीवारों और फेलोपियन ट्यूब के मुख की जांच कर पाती हैं. कुछ मामलों में एमआरआई जैसे इमेजिंग टूल्स की जरूरत पड़ सकती है.
उपचार
गर्भाशय फाइब्रॉयड की दवाएं,उन हॉर्मोन्स को लक्षित करती हैं जोकि मासिक चक्र को नियंत्रित करता है, ताकि माहवारी के अत्यधिक रक्तस्राव जैसे लक्षण का उपचार किया जा सके. वैसे तो दवाएं, फाइब्रॉयड को हटा नहीं पातीं, लेकिन उन्हें छोटा कर देती हैं. फाइब्रॉयड्स को हटाने की सर्जरी में पारंपरिक सर्जरी की प्रक्रिया और कम से कम चीर-फाड़ वाली सर्जरी शामिल होती है. “लेप्रोस्कोपिक गाइनकोलॉजिक सर्जरी” जैसी सर्जरी न्यूनतम चीर-फाड़ वाली प्रक्रियाएं होती हैं, जिन्हें बिना ओपन कट किए, गर्भाशय फाइब्रॉयड को सावधानीपूर्वक निकालने के लिये किया जाता है. कैमरे के साथ एक छोटी-सी ट्यूब वाले लेप्रोस्कोप जैसे सर्जरी के उपकरणों को डालने के लिये एक छोटा-सा चीरा लगाया जाता है. इससे स्त्रीरोग विशेषज्ञ को मॉनिटरिंग स्क्रीन पर गाइनेकोलॉजिक अंगों को हर तरफ से देखने में मदद मिलती है. छोटा-सा चीरा लगाकर लेप्रोस्कोपिक सर्जरी करने से दर्द कम होता है और सुरक्षा बढ़ती है, साथ ही साथ ऑपरेशन के बाद की समस्याएं जैसे संक्रमण का दर कम होता है, खून कम बहता है और कम से कम फाइब्रोसिस का निर्माण होता है. सर्जरी के बाद, रोगियों को गर्भधारण के बारे में सोचने से पहले कम से कम एक महीने तक गर्भनिरोधक गोलियां लेने की सलाह दी जाती है.
गर्भाशय फाइब्रॉयड, उच्च एस्ट्रोजन स्तर, गर्भाशय संकुचन, और ओव्यूलेशन डिसफंक्शन जैसी असामान्यताओं का कारण बनता है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि फाइब्रॉयड फैलोपियन ट्यूब को अवरुद्ध करके और निषेचित अंडे को गर्भाशय में प्रत्यारोपित करने से रोककर प्रजनन क्षमता को बिगाड़ सकता है. इसलिये, फाइब्रॉयड को खत्म करने के लिये उचित और समय पर उपचार महत्वपूर्ण है.
बारिश के मौसम में क्या हर मौसम में मक्के से कई तरह की पकवान बनाए जातें है. जैसे मक्के की रोटी और साग की बात तो ही अलग है उसी तरह अगर मक्के से कुछ हल्का मीठा बन जाए तो फिर बात ही क्या है तो फिर देर किस बात की घर में ही बनाइए मक्के के मफिन्स. यह खाने में बहुत ही टेस्टी और साथ ही हेल्दी भी होते हैं. आप चाहे तो इन्हें बच्चों के टिफिन में भी रख सकती हैं. वो भी बड़े चाव से इन्हें खाएगें.
सामग्री
1. एक कप मक्के का आटा
2. एक कप मैदा
3. एक कप चीनी पाउडर
4. चौथाई छोटी चम्मच बेकिंग पाउडर
5. एक चौथाई छोटी चम्मच बेकिंग सोडा
6. एक कप दही
7. आधा मक्खन
8. एक छोटी चम्मच वनीला एसेंस
9. एक कप टूटी-फ्रूटी
यूं बनाएं
– सबसे पहले एक बडे़ बाउल में मक्के का आटा, मैदा, पाउडर चीनी, बेकिंग पाउडर और बेकिंग सोडा मिलाकर मिक्स कर लें फिर एक दूसरे बाउल में दही, मक्खन, वनीला एसेंस डालकर अच्छे से मिलातें हुये फैंट लें अब इसें पहले बाउल के मिश्रण डालकर अच्छी तरह से मिलाते हुए इसमें टूटी-फ्रूटी डालकर भी मिला ले.
– अब मफिन्स मेकर ले और उनके अंदर से बटर लगाकर चिकना कर लीजिए और सांचों में तैयार मिश्रण डालकर ओवन को 180 डिग्री से.ग्रे. पर प्रिहीट पर करते हुए मफिन्स ट्रे को ओवन में रख दीजिए और 180 डि. से. पर 10 मिनट के लिए सैट कर दे.
– 10 मिनिट बाद चैक करिए की मफिन्स अच्छे से गोल्डन ब्राउन हो गए हैं कि नही यदि हो गए हैं तो मफिन्स बनकर के तैयार हो गए है. अब इन्हें बाहर निकालकर थोड़ा ठंडा होने के बाद एक प्लेट में निकाल लीजिए.
अवनी लगभग प्रत्येक खास अवसर पर साड़ी खरीदती है परन्तु इसके बाद भी जब भी कहीं जाना होता है उसके पास पहनने को साड़ी ही नहीं होती.
इसी प्रकार रक्षा जब भी बाजार जाती है साड़ी जरूर लेकर आती है परन्तु फिर भी हमेशा यही कहती रहती है मेरे पास तो पहनने को कोई ढंग की साड़ी ही नहीं है सब आउट ऑफ फैशन हो गईं हैं.
इस प्रकार की समस्या से हर वो महिला रूबरू होती है जो बिना सोचे समझे बस साड़ी खरीदना है यह सोचकर साड़ी खरीदती हैं. साड़ी भारतीय स्त्रियों का प्रमुख परिधान है. भले ही आज साड़ी का चलन कम हो गया हो परन्तु खास अवसरों पर आज भी महिलाएं साड़ी पहनना ही पसन्द करतीं हैं. साड़ी में महिलाओं का व्यक्तित्व निखर जाता है साथ ही साड़ी प्रत्येक शेप की महिला पर फबती है. आज बाजार में भांति भांति के फेब्रिक और डिजाइन्स में साड़ियां उपलब्ध हैं. बनारसी, चंदेरी, बांधनी महेश्वरी, पोचमपल्ली, कांजीवरम, शिफॉन, जैसी साड़ियां अपने प्रान्त की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करतीं है. साड़ियां कॉटन, सिल्क, सेमी सिल्क और सिंथेटिक जैसे अनेकों फेब्रिक में उपलब्ध हैं. फेस्टिव सीजन प्रारम्भ हो चुका है इस दौरान हम फेस्टिव सीजन पर पहनने के लिए साड़ी खरीदते हैं. आज हम आपको साड़ी खरीदने के कुछ ऐसे टिप्स बता रहे हैं जो साड़ी खरीदने में आपके लिए बहुत मददगार साबित होंगे और एक बार खरीदी गई आपकी साड़ी सालों साल तक पुरानी नहीं होगी-
1. -फैशन को करें नजरंदाज
फैशन तो आता जाता रहता है इसलिए साड़ी खरीदते समय फैशन पर ध्यान न दें. उदाहरण के लिए आज सिमर डिजाइन्स की सिमरी साड़ियां फैशन में हैं परन्तु कुछ समय पहले तक चमकीले बॉर्डर वाली साड़ियां फैशन में थीं. इसलिए फैशन को नजरंदाज करके आप चंदेरी, चिकन, बनारसी और शिफॉन जैसी एवरग्रीन फैब्रिक की साड़ियां खरीदें जो कभी आउट ऑफ फैशन नहीं होतीं.
2. कढाई है फॉरएवर एवरग्रीन
फेब्रिक कोई भी हो पर उस पर रंग बिरंगे धागों से उकेरी गयी फूल पत्तियां और विविध डिजाइन्स साड़ी की खूबसूरती में चार चांद लगा देतीं हैं. इन साड़ियों की विशेषता है कि इन्हें आप बर्थडे, एनिवर्सरी जैसे हल्के फुल्के अवसरों के साथ साथ शादी ब्याह जैसे बड़े अवसरों पर भी आसानी से कैरी कर सकते हैं.
3. सस्ते के फेर में न पड़ें
जैसा कि हम अपने बड़ों से सुनते आए हैं कि “महंगा रोये एक बार, सस्ता रोये बार बार” भले ही आप चार के स्थान पर दो या एक ही साड़ी खरीदें परन्तु अच्छे फेब्रिक, ब्रांड और अच्छी दुकान से ही खरीदें ताकि किसी भी प्रकार की दुर्घटना की आशंका न रहे.
4. नकल से बचें
अपनी सहेली या रिश्तेदार की देखादेखी साड़ी खरीदने की अपेक्षा अपनी आवश्यकता और पसन्द को ध्यान में रखकर ही साड़ी खरीदें क्योंकि अक्सर दूसरों की नकल करके खरीदी गई साड़ी बाद में हमे ही पसन्द नहीं आती इसलिए साड़ी खरीदने जाने से पहले आप खुद सुनिश्चित कर लें कि आपको कैसी, किस फेब्रिक की और कितने बजट की साड़ी खरीदनी है.
5. सिल्क है सदाबहार
सिल्क एक ऐसा फैब्रिक है जो कभी भी आउट ऑफ फैशन नहीं होता. यद्यपि प्योर सिल्क काफी मंहगा और हर किसी के बजट में नहीं आ पाता परन्तु आजकल बाजार में सेमी सिल्क, पेपर सिल्क, आर्टिफिशियल सिल्क जैसे अनेकों विकल्प मौजूद हैं जो देखने में सिल्क जैसे ही लगते हैं परन्तु इनके दाम सिल्क की अपेक्षा कम होते हैं.
6. रंग का रखें ध्यान
हर रंग की साड़ी हर किसी पर अच्छी नहीं लगती. सामान्यतया यह माना जाता है कि गोरे और सांवले रंग पर डार्क रंग तथा गहरे रंग की स्किन पर हल्के रंग अच्छे लगते हैं.परन्तु कई बार कुछ रंग हर स्किन टोन पर अच्छे लगते हैं इसलिए साड़ी खरीदते समय अपनी पसन्द के साथ साथ अपने ऊपर फबने वाले रंगों का भी ध्यान रखें.
7. कॉटन और प्लेन भी है खास
यदि आप कैरी कर सकतीं हैं तो कॉटन फेब्रिक से बेहतर कुछ नहीं है क्योकि ये काफी बजट फ्रेंडली होतीं हैं. साथ ही इन्हें पहनकर आप किसी भी अवसर पर अपने व्यक्तित्व में चार चांद लगा सकतीं हैं. किसी भी रंग की प्लेन साड़ी पर आप हैवी ब्लाउज पेयर करके अपनी कम बजट की साड़ी को भी खास बना सकतीं हैं.
रखें कुछ बातों का ध्यान
-साड़ी कोई भी हो उसकी उचित देखभाल अवश्य करें क्योंकि अक्सर देखभाल के अभाव में महंगी से महंगी साड़ियां भी पहनने लायक नहीं रहतीं.
-शिफॉन एक बहुत नाजुक फेब्रिक है, प्योर शिफॉन की साड़ियां बहुत महंगी भी होतीं हैं इन्हें प्रयोग करने के बाद ड्राइक्लीन कराकर पॉली बेग में डालकर या सूती कपड़े में लपेटकर ही रखें वरना इनमें कीड़ा लग जाता है और साड़ी को फाड़ देता है. ये शरीर के पसीने से भी काली पड़ जातीं हैं.
-साड़ी खरीदते समय दुकानदार से उसके रंग और फेब्रिक के बारे में अच्छी तरह पूछताछ कर लें साथ ही उसे ड्राइक्लीन कराना है अथवा हैंडवाश कर सकते हैं यह जानकारी भी लें लें.
-यदि आपका बच्चा छोटा है तो आप कॉटन जॉर्जटबऔर शिफॉन जैसे नाजुक फेब्रिक की साड़ी खरीदने से बचें क्योंकि छोटे बच्चों के साथ इनके फटने की संभावना बढ़ जाती है.
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य की जिंदगी आत्मकेंद्रित हो कर रह गई है, संयुक्त परिवार का स्थान एकल परिवार ने ले लिया है, कामकाजी दंपती अवकाश में नातेरिश्तेदारों के यहां जाने के बजाय घूमने जाना अधिक पसंद करते हैं. इस का दुष्परिणाम यह होता है कि उन के बच्चे नानानानी, दादादादी, चाचा, ताऊ, बूआ जैसे महत्त्वपूर्ण और निजी रिश्तों से अपरिचित ही रह जाते हैं. यह कटु सत्य है कि इंसान कितना ही पैसा कमा ले, कितना ही घूम ले परिवार और मित्रों के बिना हर खुशी अधूरी है. मातापिता, भाईबहन, दोस्तों की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता. इसीलिए रिश्तों को सहेज कर रखना बेहद आवश्यक है.
जिस प्रकार अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए हम धन का इन्वैस्टमैंट करते हैं उसी प्रकार रिश्तेनातों की जीवंतता बनाए रखने के लिए भी समय, प्यार, परस्पर आवागमन और मेलमिलाप का इन्वैस्टमैंट करना बहुत आवश्यक है. इन के अभाव में कितने ही करीबी रिश्ते क्यों न हों एक न एक दिन अपनी अंतिम सांसें गिनने ही लगते हैं, क्योंकि निर्जीव से चाकू का ही यदि लंबे समय तक प्रयोग न किया जाए तो वह अपनी धार का पैनापन खो देता है. फिर रिश्ते तो जीवित लोगों से होते हैं. यदि उन का पैनापन बनाए रखना है तो सहेजने का प्रयास तो करना ही होगा.
परस्पर आवागमन बेहद जरूरी
रेणु और उस की इकलौती बहन ने तय कर रखा है कि कैसी भी स्थिति हो वे साल में कम से कम 1 बार अवश्य मिलेंगी. इस का सब से अच्छा उपाय उन्होंने निकाला साल में एक बार साथसाथ घूमने जाना. इस से उन के आपसी संबंध बहुत अधिक गहरे हैं. इस के विपरीत रीता और उस की बहन पिछले 5 वर्षों से आपस में नहीं मिली हैं. नतीजा उनके बच्चे आपस में एकदूसरे को जानते तक नहीं.
वास्तव में रिश्तों में प्यार की गर्मजोशी बनाए रखने के लिए एकदूसरे से मिलनाजुलना बहुत आवश्यक है. जब भी किसी नातेरिश्तेदार से मिलने जाएं छोटामोटा उपहार अवश्य ले जाएं. उपहार ले जाने का यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि उन्हें आप के उपहार की आवश्यकता है, बल्कि यह तो परस्पर प्यार और अपनत्व से भरी भावनाओं का लेनदेन मात्र है.
संतुलित भाषा का करें प्रयोग
कहावत है आप जैसा बोएंगे वैसा ही काटेंगे. यदि आप दूसरों से कटु भाषा का प्रयोग करेंगे तो दूसरा भी वैसा ही करेगा. मिसेज गुप्ता जब भी मिलती हैं हमेशा यही कहती हैं कि अरे रीमा तुम्हें तो कभी फुरसत ही नहीं मिलती. जरा हमारे घर की तरफ भी नजर कर लिया करो. इसी प्रकार मेरी एक सहेली को जब भी फोन करो तुरंत ताना मारती है कि अरे, आज हमारी याद कैसे आ गई?’’
एक दिन मैं अपनी एक आंटी के यहां मिलने गई. जैसे ही आंटी ने गेट खोला तुरंत तेज स्वर में बोलीं कि अरे प्रतिभा आज आंटी के घर का रास्ता कैसे भूल गईं. उन का ताना सुन कर मेरे आने का सारा जोश हवा हो गया. जबकि मेरे घर के नजदीक ही रहने के बाद भी वे स्वयं न कभी फोन करतीं और न ही आने की जहमत उठाती है. आपसी संबंधों में इस प्रकार के कटाक्ष और व्यंग्ययुक्त भाषा की जगह सदैव प्यार, अपनत्व और विनम्रतायुक्त मीठी वाणी का प्रयोग करें. सदैव प्रयास करें कि आप की वाणी या व्यवहार से किसी की भावनाएं आहत न हों.
संबंध निभाएं
गुप्ता दंपती को यदि कोई बुलाता है तो वे भले ही 10 मिनट को जाएं पर जाते जरूर हैं. कई बार नातेरिश्तेदारों या परिचितों के यहां कोई प्रोग्राम होने पर हम अकसर बहाना बना देते हैं या मूड न होने पर नहीं जाते. यह सही है कि आप के जाने या न जाने से उस प्रोगाम पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, परंतु आप का न जाना संबंधों के प्रति आप की उदासीनता अवश्य प्रदर्शित करता है. यदि किसी परिस्थितिवश आप उस समय नहीं जा पा रहे हैं तो बाद में अवश्य जाएं. किसी भी शुभ अवसर पर जाने का सब से बड़ा लाभ यह होता है कि आप अपने सभी प्रमुख नातेरिश्तेदारों और परिचितों से मिल लेते हैं, जिस से रिश्तों में जीवंतता बनी रहती है.
करें नई तकनीक का प्रयोग
मेरे एक अंकल जो कभी हमारे मकानमालिक हुआ करते थे, उन की आदत है कि वे देश में हों या विदेश में हमारे पूरे परिवार के बर्थडे और हमारी मैरिज ऐनिवर्सरी विश करना कभी नहीं भूलते. उस का ही परिणाम है कि हमें उन से दूर हुए 6 साल हो गए हैं, परंतु हमारे संबंधों में आज भी मिठास है. आज का युग तकनीक का युग है. व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, वीडियो कौलिंग आदि के माध्यम से आप मीलों दूर विदेश में बसे अपने मित्रों और रिश्तेदारों से संपर्क में रह सकते हैं. सभी का प्रयोग कर के अपने रिश्ते को सुदृढ़ बनाएं. कई बार कार्य की व्यस्तता के कारण लंबे समय तक परिवार में जाना नहीं हो पाता. ऐसे में आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर के आप अपने रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने का प्रयास अवश्य करें.
करें गर्मजोशी से स्वागत
घर आने वाले मेहमानों का गर्मजोशी से स्वागत करें ताकि उन्हें एहसास हो कि आप को उन के आने से खुशी हुई है. शोभना के घर जब भी जाओ हमेशा पहुंच कर ऐसा लगता है कि हम यहां क्यों आ गए? न मुसकान से स्वागत, न खुश हो कर बातचीत, बस उदासीन भाव से चायनाश्ता ला कर टेबल पर रख देती हैं, आप करो या न करो उन की बला से. इस के विपरीत हम जब भी अनिमेशजी के यहां जाते हैं उन पतिपत्नी की खुशी देखते ही बनती है. घर में प्रवेश करते ही खुश हो कर मिलना, गर्मजोशी से स्वागत करना, उन के हावभाव को देख कर ही लगता है कि हां हमारे आने से इन्हें खुशी हुई है.
आप के द्वारा किए गए व्यवहार को देख कर ही आगंतुक दोबारा आने का साहस करेगा.
छोटीछोटी बातों का रखें ध्यान
नमिता के चचिया ससुर आए थे. उसे याद था कि चाचाजी शुगर के पेशैंट हैं. अत: जब वह उन के लिए बिना शकर की चाय ले कर आई तो उस की इस छोटी सी बात पर ही चाचाजी गद्गद हो उठे. रीता की जेठानी आर्थ्राइटिस की मरीज है. अत: उन्हें बाथरूम में ऊंचा पटड़ा चाहिए होता है. उन के आने से पूर्व उस ने उतना ही ऊंचा पटड़ा बाजार से ला कर बाथरूम में रख दिया. जेठानी ने जब देखा तो खुश हो गई.
अर्चना के यहां जब भी कोई आता है वह प्रत्येक सदस्य की पसंद का पूरापूरा ध्यान रखती है. उस के यहां जो भी आता है उस की कोशिश होती है कि उन्हीं की पसंद का भोजन, नाश्ता आदि बनाया जाए.
समय दें
किसी भी मेहमान के आने पर उसे भरपूर समय दें, क्योंकि सामने वाला भी तो अपना कीमती वक्त निकाल कर आप से मिलने पैसे खर्च कर के ही आया है. अनीता जब परिवार सहित अपने भाई के यहां 2-4 दिनों के लिए गई तो भाई अपने औफिस चला गया और भाभी किचन और इकलौते बेटे में ही व्यस्त रही. बस समय पर खाना, नाश्ता टेबल पर लगा दिया मानो किसी होटल में रुके हों. अगले दिन भाई ने औफिस से अवकाश तो लिया पर अपने घर के काम ही निबटाता रहा. अनीता और उस के परिवार के पास बैठ कर 2 बातें करने का किसी के पास वक्त ही नहीं था. 2 दिन एक ही कमरे में बंद रहने के बाद वे अपने घर वापस आ गए, इस कसम के साथ कि अब कभी भी भाई के घर नहीं जाना. इस प्रकार का व्यवहार आपसी संबंधों में कटुता घोलता है. संबंध सदा के लिए खराब हो जाते हैं.
कई बार अपने सब से करीबी का ही जानेअनजाने में किया गया कठोर व्यवहार हमें अंदर तक आहत कर जाता है. अपने साथ किए गए लोगों के अच्छे व्यवहार का सदैव ध्यान रखें और मन को दुखी करने वाले व्यवहार को एक क्षणिक आवेश मान कर भूलना सीखें, क्योंकि जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है.
मौसम बदलने लगा है और आने वाले फुहारों के मौसम यानि मौनसून के दौरान हवा में ज्यादा नमी से आपको परेशानी हो सकती है. विशेषरूप से उन्हें जिन की त्वचा तैलीय या मिश्रित होती है. पसीने और तेलस्राव के कारण तैलीय त्वचा और अधिक तैलीय व सुस्त लगने लगती है. जब मौसम गरम और नमीयुक्त होता है तब लाल चकत्ते, फुंसियां, खुले रोमकूप जैसी समस्याएं पैदा होती हैं और गंदगी त्वचा पर जमने लगती है.
तरोताजा त्वचा के लिए
– पसीने और तेल से मुक्त होने के लिए मौनसून में त्वचा को साफ और तरोताजा करना बहुत जरूरी होता है. स्क्रब की सहायता से रोमकूपों की गहरी सफाई करने से त्वचा अवरुद्ध नहीं होती और मुंहासों से भी बचाव होता है. टोनिंग के जरिए भी त्वचा को तरोताजा बनाने और रोमकूपों को बंद करने में मदद मिलती है.
फेशियल स्क्रब का प्रयोग सप्ताह में 2 बार करें. इसे चेहरे पर लगाएं और धीरेधीरे गोलाई में त्वचा पर रगड़ें. फिर साफ पानी से धो लें. आप चाहें तो दही में चावल का आटा या पिसे बादाम मिला कर घर में ही फेशियल स्क्रब तैयार कर सकती हैं. स्क्रब में सूखे नीबू का चूर्ण या फिर संतरे के छिलकों का चूर्ण भी मिला सकती हैं.
– ध्यान रखें कि मुंहासे और संवेदनशील त्वचा होने पर स्क्रब का प्रयोग न करें. मुंहासों से छुटकारा पाने के लिए ओट्स और अंडे की सफेदी के मिश्रण का सप्ताह में 2 बार प्रयोग करें.
– इस मौसम में फूलों से बने किसी त्वचा टौनिक या फ्रैशनर का इस्तेमाल उपयोगी साबित होता है. गुलाबजल एक नैसर्गिक टोनर है. रुई पैड को गुलाबजल में भिगो कर या त्वचा टौनिक को फ्रिज में रखें. त्वचा को स्वच्छ और तरोताजा बनाने के लिए इससे चेहरे को साफ करें. घर से बाहर निकलते समय नम टिशू साथ ले जाएं. नम टिशू से चेहरा साफ करने के बाद कौंपैक्ट पाउडर लगाएं. इस से त्वचा की ताजगी बढ़ेगी और वह तैलीय भी नजर नहीं आएगी.
– अगर लाल चकत्ते, मुंहासे या फुंसियां हों तो सुबह और रात रोज 2 बार औषधीय साबुन या क्लींजर से चेहरा धोएं. एक कसैला लोशन खरीदें और उस में बराबर मात्रा में गुलाबजल मिला लें. रुई की सहायता से इस से दिन में 4-5 बार चेहरा साफ करें. फुंसियों पर चंदन का पेस्ट लगाएं.
– बारिश के मौसम में चेहरे को सादे पानी से कई बार धोएं. दिन भर त्वचा पर जो मैल एकत्रित हो जाती है उस की सफाई रात में जरूर करें. मौनसून के दिनों में शरीर से पानी पसीने के रूप में बाहर निकलता है. इसलिए शरीर में पर्याप्त पानी मौजूद रहे, इस के लिए अधिक मात्रा में पानी पीएं.
– गरम चाय की जगह आइस टी में नीबू रस और शहद मिला कर पीएं.
– त्वचा सामान्य हो या तैलीय, ऐसे फेसवाश का प्रयोग करें, जिस में नीम और तुलसी जैसे तत्त्व हों.
सही निखार पाना है, तो अपनी त्वचा के प्रकार के अनुसार ही उस की साफसफाई का ध्यान भी रखना होगा.
तैलीय त्वचा
त्वचा के तैलीय होने से अकसर मुंहासों, फुंसियों और लाल चकत्तों की समस्या हो
जाती है.
त्वचा की सफाई : बेसन और दही का पेस्ट तैयार कर चेहरे पर लगाएं. 20 मिनट के बाद चेहरे को धो लें. सूखी पुदीनापत्ती का चूर्ण भी इस पेस्ट में मिला सकती हैं.
तैलीय त्वचा के लिए टोनर : गुलाबजल और खीरे का रस बराबर मात्रा में ले कर चेहरे पर लगाएं. 20 मिनट बाद चेहरा पानी से धो लें.
सामान्य त्वचा
– बादाम का चूर्ण दही में मिला कर चेहरे पर लगाएं. 15 मिनट बाद पानी से इसे गोलाकार मलें. फिर चेहरा पानी से धो लें.
– 2 चम्मच शहद, थोड़ाथोड़ा दूध, गुलाबजल और सूखे नीबू के चूर्ण का पेस्ट बनाएं. इसे हफ्ते में 2 या 3 बार चेहरे और गरदन पर लगाएं. 20 मिनट के बाद धो लें.
शुष्क त्वचा
2 चम्मच बादाम चूर्ण में 1 चम्मच शहद मिला कर चेहरे पर लगाएं और 5 मिनट बाद हलके हाथ से रगड़ने के बाद चेहरे को पानी से धो लें.
सामान्य एवं शुष्क त्वचा के लिए टोनर : 100 एमएल गुलाबजल में 1/2 चम्मच ग्लिसरीन मिला कर कांच की बोतल में भर कर अच्छी तरह हिला लें. फिर फ्रिज में रख दें. रोज इस्तेमाल करें.
शुष्क त्वचा के लिए मास्क : 3 चम्मच चोकर, 1 चम्मच बादाम चूर्ण और 1 अंडे की सफेदी को मिला कर उस में 1-1 चम्मच शहद और दही डाल कर पेस्ट तैयार करें. इसे सप्ताह में 1 या 2 बार चेहरे पर लगाएं. आधे घंटे के बाद चेहरा धो लें.
मुंहासों वाली त्वचा
अगर त्वचा तैलीय है और जल्दीजल्दी मुंहासे निकलते हैं, तो तैलीय क्रीम और मौइश्चराइजर का इस्तेमाल न करें. अगर त्वचा सूखी महसूस होती है तो अकसर यह ऊपरी परत की कृत्रिम शुष्कता होती है. इस से छुटकारा पाने के लिए निम्न तरीके अपनाएं :
– औषधीय क्लींजर या फेसवाश से सफाई करें. मुंहासे पर चंदन का पेस्ट लगाएं या चंदन के पेस्ट को गुलाबजल के साथ मिला कर पूरे चेहरे पर लगाएं. 20-30 मिनट के बाद चेहरे को पानी से धो लें.
– नीम के कुछ पत्तों को 4 कप पानी में हलकी आंच पर 1 घंटे तक उबालें. रात भर उसे छोड़ दें. सुबह छान कर पानी से चेहरा धोएं और पत्तियों का पेस्ट बना कर चेहरे पर लगाएं.
क्या करें
दिन में ठंडे पानी से चेहरे को कई बार धोएं.
– रोमकूपों को बंद करने के लिए शीतल त्वचा टौनिक या गुलाबजल से टोन करें.
– सप्ताह में एक फेशियल स्क्रब का 2 बार प्रयोग करें.
. मेकअप, पसीने और तेल को हटाने के लिए रात में त्वचा की सफाई करें.
. त्वचा को ताजगी प्रदान करने के लिए कई बार चेहरे को नम टिशू से पोंछें.
क्या न करें
– भुना या भारी स्टार्च युक्त आहार लेने से बचें.
– तैलीय और मुंहासों वाली त्वचा के लिए क्रीम या मौइश्चराइजर का प्रयोग न करें.
– साबुन और पानी से दिन में 3 बार से अधिक मुंह न धोएं.
– हाथों को धोए बिना चेहरा न छुएं और न ही मुंहासों या फुंसियों को कुरेदने की कोशिश करें.
मौनसून फेस पैक
– मुलतानी मिट्टी चेहरे को ठंडक पहुंचाती है और तेल को सोखती है. 1 चम्मच मुलतानी मिट्टी को गुलाबजल में मिला कर चेहरे पर लगाएं. 15-20 मिनट बाद चेहरा धो लें.
– खीरे के रस या गूदे में 2 चम्मच मिल्क पाउडर और 1 अंडे की सफेदी मिलाएं. फिर ब्लैंडर में पेस्ट बनाएं. चेहरे और गरदन पर लगाएं. आधे घंटे के बाद चेहरा धो लें.
– नीबू के रस को पानी में मिला कर आइस क्यूब ट्रे में रख कर फ्रीज करें. जब भी ताजगी की जरूरत महसूस हो, एक क्यूब को चेहरे पर हलके से फिराएं और फिर रुई से पोछ लें. इस से तैलीय पदार्थ कम होता है और त्वचा को ताजगी मिलती है.
– अंडे की सफेदी, नीबू रस और शहद को मिला कर चेहरे पर मास्क की तरह लगाएं. 20 मिनट बाद चेहरा धो लें.
– 1 चम्मच शहद, 15 बूंदें संतरे का रस, 1 चम्मच ओट्स और 1 चम्मच गुलाबजल को मिलाएं. इसे चेहरे पर लगाएं और 15 मिनट के बाद चेहरा धो लें. इससे तैलीय पदार्थ दूर होते हैं और चमक बढ़ती है.
– सेब, पपीता, संतरा जैसे फलों को मिला कर चेहरे पर लगाया जा सकता है. 20-30 मिनट के बाद चेहरा पानी से धो लें.
सोने के गहने आमतौर पर त्योहारों या खास अवसरों पर ही पहने जाते रहे हैं, लेकिन अब महिलाओं में उन्हें रोजाना पहनने का चलन भी बढ़ता जा रहा है. इसी को देखते हुए ज्वैलरी मेकर्स द्वारा ग्राहकों की पसंद को ध्यान में रख कर सोने के शानदार गहने बनाने का चलन बढ़ा है.
सोने के गहने आमतौर पर टूटते नहीं हैं और उन की चमक भी फीकी नहीं पड़ती. लेकिन रोजाना इस्तेमाल करने पर वे तेल, धूल और ग्रीस के संपर्क में तो आते ही हैं. इस बात को ध्यान में रख कर सोने के गहनों की उचित तरीके से देखभाल करनी चाहिए, जिस में समयसमय पर सफाई भी शामिल है. ऐसा करने से आप के गहने जीवन भर आप का साथ देंगे और अपना गौरव बनाए रखेंगे.
गहनों की देखभाल के लिए इन बातों पर ध्यान दें:
1. नहाने से पहले सोने के गहनों को उतार देना चाहिए, क्योंकि साबुन और कैमिकल्स के संपर्क में आने से सोने की चमक फीकी पड़ जाती है और इस से आभूषणों को जल्दीजल्दी साफ करने की जरूरत पड़ती है.
2. क्लोरीन से सोने का रंग स्थायी रूप से फीका पड़ जाता है, इसलिए हौट टब या स्विमिंग पूल में जाने से पहले गहने उतार दें.
3. यदि सोने के गहनों की चमक फीकी पड़ रही हो तो उन्हें सांभर के नरम कपड़े से रगड़ें. इस से गहने चमक उठेंगे और अधिक सफाई की जरूरत नहीं पड़ेगी.
4. एक छोटी कटोरी में गरम पानी लें और उस में सौम्य डिश वाशिंग डिटर्जैंट की कुछ बूंदें डालें. कुछ ज्वैलरी स्टोर्स सोने के गहनों को साफ करने के लिए पानी में अमोनिया की कुछ बूंदें भी मिलाने का सुझाव देते हैं, लेकिन कुछ स्टोर्स अमोनिया के इस्तेमाल को अनुचित बताते हैं. लेकिन सोने के गहनों की सफाई के लिए सौम्य डिश डिटर्जैंट का उपयोग दुनिया भर में किया जाता है और यह एक स्वीकार्य विकल्प है.
5. सोने के सभी गहनों को एकसाथ कटोरी में न डालें. इस से उन में खरोंच पड़ सकती है.
6. टूथब्रश से गहनों को साफ करने से भी उन पर खरोंच पड़ सकती है. यदि आप के पास कोई भारी आभूषण है, जिस में कई दरारें और छिद्र हैं, तो बच्चों के मुलायम ब्रिसल्स वाले टूथब्रश का इस्तेमाल गहने साफ करने के लिए किया जा सकता है.
7. सोने के गहनों को हलके हाथों से गरम पानी से तब तक धोएं जब तक कि झाग के सारे निशान चले नहीं जाते और पानी साफ नहीं आने लगता.
8. यदि आप को लगता है कि आप गहनों की अच्छी तरह सफाई नहीं कर सकती हैं, तो ज्वैलर के पास जाएं. वह उन्हें पेशेवर तरीके से साफ कर देगा.
सोने के गहनों की देखभाल भी उसी तरह से महत्त्वपूर्ण है, जैसे नियमित तौर पर उन की साफसफाई करना. खरोंच या रगड़ लगने से गहनों को सब से अधिक नुकसान पहुंचता है, इसलिए प्रत्येक आभूषण को मुलायम कपड़े के बक्से में एकदूसरे से अलग कर संभाल कर रखें. यदि आप सभी गहनों को एकसाथ रखना चाहती हैं, तो हरेक को टिशू पेपर या मुलायम कपड़े में लपेट कर सुरक्षित तरीके से रखें.
गहने खरीदते समय
आइए अब जानें कि गहने खरीदते वक्त आप किन बातों पर ध्यान दें, जिस से नकली गहनों से बचें:
गहने खरीदते समय 5 निशानों/स्टैंप्स की जांच करनी चाहिए जोकि गहनों पर अंकित होते हैं:
1. शुद्धता का निशान या नंबर, जैसे कि 24 कैरेट, 22 कैरेट आदि.
2. हौलमार्किंग सैंटर का लोगो.
3. ज्वैलर का लोगो.
4. निर्माण का वर्ष.
5. बीएसआई ट्राईएंगल, जोकि हौलमार्किंग सैंटर द्वारा उकेरा जाता है.
सोने का परीक्षण कैरैटमीटर में भी किया जा सकता है, जिस में सोने की शुद्धता और सोने का मैटल कैरेट शामिल है.
टच स्टोन टैस्ट: सोने का कोई भी आभूषण लें और उसे ब्लैक टच स्टोन पर रगड़ें. फिर ग्लास स्टिक से टच स्टोन पर नाइट्रिक ऐसिड डालें और ग्लास स्टिक से ही इस पर नमक का पानी डालें. यदि टच स्टोन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है, तो सोने की गुणवत्ता अच्छी है. यदि उस का रंग हरा हो जाता है, जो उस की शुद्धता कम है. यदि कुछ नजर नहीं आता, तो सोने का आभूषण संदिग्ध है.
निर्माताःजी स्टूडियो, कलर येलो प्रोडक्शन और अलका हीरानंदानी
निर्देशकः आनंद एल राय
लेखकः कनिका ढिल्लों और हिमांशु शर्मा
कलाकारः अक्षय कुमार, भूमि पेडणेकर, सहजमीन कौर, साहिल मेहता, दीपिका खन्ना, सदिया खतीब, स्मृति श्रीकांत, सीमा पाहवा, नीरज सूद व अन्य.
अवधिः एक घंटा पचास मिनट
बौलीवुड में आनंद एल राय की गिनती सुलझे हुए, बेहतरीन व समझदार निर्देशक के रूप में होती है. ‘तनु वेड्स मनु’, ‘रांझणा’, ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न’जैसी सफलतम फिल्मों के निर्देशन के बाद वह फिल्म निर्माण में व्यस्त हो गए. आनंद एल राय ने ‘निल बटे सन्नाटा’, ‘हैप्पी भाग जएगी’’, ‘शुभ मंगल सावधान’ व तुम्बाड़’जैसी बेहतारीन व सफल फिल्मों का निर्माण किया. इसके बाद उनके अंदर अजीबोगरीग परिवर्तन नजर आने लगा. और पूरे तीन वर्ष बाद जब बतौर निर्माता व निर्देशक ‘जीरो’ लेकर आए, तो यह फिल्म बाक्स आफिस पर भी ‘जीरो’ ही साबित हुई. इसके बाद फिल्मकार के तौर पर उनका पतन ही नजर आता रहा है. बतौर निर्देशक उनकी पिछली फिल्म ‘अतरंगी रे’’ भी नही चली थी. अब बतौर निर्माता व निर्देशक उनकी उनकी नई फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ 11 अगस्त को सिनेमाघरों में पहुंची है. इस फिल्म से भी अच्छी उम्मीद करना बेकार ही है. सच यही है कि ‘तनु वेड्स मनु’ या ‘रांझणा’ का फिल्मकार कहीं गायब हो चुका है. मजेदार बात यह है कि फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ के ट्ेलर को दिल्ली में आधिारिक रूप से रिलीज करने से एक दिन पहले मुंबई में ट्ेलर दिखाकर अनौपचारिक रूप से जब अनंद एल राय ने हमसे बातें की थी, तो उस दिन उन्होने काफी समझदारी वाली बातें की थी. हमें लगा था कि उनके अंदर सुधार आ गया है. मगर दिल्ली में ट्रेलर रिलीज कर वापस आते ही वह एकदम बदल चुके थे. फिर उन्होने अपनी फिल्म को लंदन व दुबई में जाकर प्रमोट किया. दिल्ली, इंदौर, लखनउ, चंडीगढ़, जयपुर, कलकत्ता, पुणे, अहमदाबाद, वडोदरा सहित भारत के कई शहरों में ‘रक्षाबंधन’’ के प्रमोशन के लिए सभी कलाकारांे के साथ घूमते रहे. कलाकारों के लिए बंधानी साड़ी से जेवर तक खरीदते रहे. हर इंवेंअ पर लाखों लोगों का जुड़ा देख खुश होेते रहे. पर अब उन्हे ख्ुाद सोचना होगा कि हर शहर में जितनी भीड़ उन्हे देखने आ रही थी, उसमें से कितने प्रतिशत लोगों ने उनकी फिल्म देखने की जहमत उठायी. लोग सिनेमाघर मे अपनी गाढ़ी व मेहनत की कमाई से टिकट खरीदने के बेहतरीन कहानी देखते हुए मनोरंजन के लिए जाता है. जिसे ‘रक्षाबध्ंान’ पूरा नहीं करती. फिल्म का नाम ‘रक्षाबंध्न’ है, मगर इसमें न तो भाई बहन का प्यार उभर कर आया और न ही दहेज जैसी कुप्रथा पर कुठाराघाट ही हुआ.
कहानीः
कहानी का केंद्र दिल्ली के चंादनी चैक में गोल गप्पे@ पानी पूरी यानी कि चाट बेचने वाले लाला केदारनाथ(अक्षय कुमार) और उनकी चार अति शरारती बहनों के इर्द गिर्द घूमती है. जिन्होने मृत्यू शैय्या पर पहुंची अपनी मां को वचन दिया था कि वह अपनी चारों छोटी बहनों की उचित शादी करवाने के बाद ही अपनी प्रेमिका सपना( भूमि पेडणेकर) संग विवाह रचाएंगे. यह चारों बहने भी अपने आप में विलक्षण हैं. एक बहन दुर्गा (दीपिका खन्ना), जरुरत से ज्यादा मोटी हैं. एक बहन सांवली ( स्मृति श्रीकांत ) , जबकि एक बचकाने लुक (सहजमीन कौर ) हैं. चैथी बहन गायत्री(सादिया खतीब) खूबसूरत व सुशील है. लाला केदारनाथ जिस चाट की दुकान पर बैठते हैं, वह उनके पिता ने शुरू किया था, जिस पर लिखा है ‘गर्भवती औरतें बेटे की मां बनने के लिए उनकी दुकान के गोल गप्पे खाएं. अब अपने पारिवारिक मूल्यों को कायम रखते हुए अपनी बहनों की शादी कराने के लाला केदारनाथ के सारे प्रयास विफल साबित हो रहे हैं. उधर सपना के पिता हरिशंकर(नीरज सूद) सरकारी नौकर हैं और उनके रिटायरमेंट में महज आठ माह बचे हैं. वह रिटायरमेंट से पहले ही अपनी बेटी सपना की शादी करवाने के लिए लाला केदारनाथ पर बीच बीच में दबाव डालते रहते हैं.
लाला केदारनाथ अपनी बहनों की शादी नही करवा पा रहे हैं. क्योंकि वह उस कर्ज की हर माह लंबी किश्त चुका रहे हैं, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के समय उनके पिता ने लिया था. इसके अलावा हर बहन की शादी में दहेज देने के लिए बीस बीस लाख रूपए नही हैं. किसी तरह जुगाड़कर 18 लाख रूपए दहेज में देकर वह मैरिज ब्यूरो चलाने वाली शानू (सीमा पाहवा ) की मदद से एक बहन गायत्री की शादी करवा देते हैं. उसके बाद अचानक हरीशंकर रहस्य खोलते हैं कि उन चारों बहनों के लाला केदारनाथ सगे भाई नही है. लाला केदारनाथ के पिता ने एक बंगले के सामने से उठाकर अपने रूार में नौक के रूप में काम करने के लिए लेकर आए थे, पर केदारनाथ मालिक ही बन बैठे. यहीं पर इंटरवल हो जाता है.
इंटरवल के बाद कहानी आगे बढ़ती है. अन्य बहनों की शादी के लिए लाला केदारनाथ अपनी एक किडनी बेचकर घर उसी दिन पहुंचते हैं, जिस दिन रक्षाबंधन है. तभी खबर आती है कि गायत्री ने आत्महत्या कर ली. और सब कुछ अचानक बदल जाता है. उसके बाद लाला केदारनाथ दूसरी बहनों की शादी करा पाते हैं या नही. . आखिर सपना व केदारनाथ की शादी होती है या नही. . इसके लिए तो फिल्म देखनी पड़ेगी. ?
लेखन व निर्देशनः
फिल्म ‘रक्षाबंधन’’ देखकर यह अहसास नही होता कि यह फिल्म ‘तनु वेड्स मनु ’ और ‘रांझणा’ जैसे फिल्मसर्जक की है. फिल्म की पटकथा अति कमजोर, भटकी हुई और गफलत पैदा करने वाली है. जब हरीशंकर को पता है कि लाला केदारनाथ तो भिखारी था, जिसे नौकर बनाकर लाया गया था, तो ऐसे इंसान के साथ हरीश्ंाकर अपनी बेटी सपना का विवाह क्यों करना चाहते हैं? फिल्म में इस सच को ‘जोक्स’ की तरह कह दिया जाता है. इसके बाद इस पर फिल्म में कुछ खास बात ही नही होती. इंटरवल तक फिल्म लाला केदारनाथ यानी कि अक्षय कुमार की झिझोरेपन वाली उझलकूद, मस्ती व स्तरहीन जोक्स के साथ स्टैंडअप कॉमेडी के अलावा कुछ नही है. इंटरवल से पहले एक दृश्य है. चांदनी चैक की व्यस्त गली में एक बेटे का पिता खुले आम कहता है, ‘‘हमने अपनी बेटी की शादी के दौरान दहेज दिया था, इसलिए हम अपने बेटे की शादी के लिए दहेज की मांग कर सकते हैं. ‘‘ कुछ दश्यों के बाद जब एक सामाजिक कार्यकर्ता जनता से दहेज को हतोत्साहित करने का आग्रह करती है, तो लाला केदारनाथ ( अक्षय कुमार ) गर्व से उस महिला से कहते हैं कि दहेज की निंदा करना आसान है. जब आपकी दो लड़कियां हैंं, लेकिन अगर दो बेटे होंते, तो आप निंदा न करती. चांदनी चैक के हर इंसान का समर्थन लाला केदारनाथ को मिलता है.
लेकिन जब गायत्री दहेज के चलते मारी जाती है, तब शराब के नशे में केदारनाथ दहेज का विरोध करते हुए अपनी बहनों की शादी में दहेज न देने का ऐलान करते हैं. अब इसे क्या कहा जाए?? कुल मिलाकर यह फिल्म ‘‘दहेज ’’की कुप्रथा पर भी कुठाराघाटनही कर पाती. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे देश मंे शराब के नशे में इंसान जो कुछ कहता है, उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता. आनंद एल राय ने शायद 21 वीं सदी में भी साठ के दशक की फिल्म बनायी है, जहां जमींदार व साहूकारों का अस्तित्व है, तभी तो द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त अपने पिता द्वारा लिए गए कर्ज को केदारनाथ चुका रहे हैं. कुल मिलाकर कमजोर व भटकी हुई पटकथा तथा औसत दर्जे के निर्देशन के चलते ‘दहेज विरोधी’ संदेश प्रभावी बनकर नहीं उभरता. इसके अलावा इस विषय पर अब तक सुनील दत्त की फिल्म ‘यह आग कब बुझेगी’ व ‘वी. शांताराम’ की ‘दहेज’ सहित सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं. पर दहेज प्रथा का उन्मूलन 21 वीं सदी में भी नही हुआ है.
गायत्री की मौत पर पुलिस बल की मौजूदगी में गायत्री की ससुराल के पड़ोसी चिल्ला चिल्लाकर आरोप लगाते हैं कि महज एक फ्रिज की वजह से गायत्री की हत्या की गयी है. मगर पुलिस मूक दर्शक ही बनी रहती है. बहनांे के लिए कुछ भी करने का दावा करने वाला भाई लाला केदारनाथ सिर्फ शराब पीकर आगे दहेज न देने का ऐलान करने के अलावा कुछ नही करता. फिल्म न तो न्याय की लड़ाई लड़ती है और न ही दहेज विरोधी कोई सशक्त संदेश ही देती है. यह लेखकद्वय और निर्देशक की ही कमजोरी है.
फिल्म के निर्देशक आनंद एल राय कभी टीवी से जुड़े रहे हैं. उनके बड़े भाई रवि राय ‘सैलाब’ सहित कई उम्दा व अति बेहतरीन सीरियल बना चुके हैं, उनके साथ आनंद एल राय बतौर सहायक काम कर चुके हैं. उन्ह दिनों जीटीवी पर एक सीरियल ‘अमानत’आया करता था. जिसमें लाला लाहौरी राम अपनी सात बेटियों की शादी के लिए चिंता में रहते हैं, मगर सभी की शादी हो जाती है. इसमें फिल्म ‘लगान’ फेम ग्रेसी सिंह, पूजा मदान, स्मिता बंसल, सुधीर पांडे, श्रेयश तलपड़े और रवि गोसांई जैसे कलाकार थे. काश आनंद एल राय और लेखकद्वय ने इस सीरियल की एक पिता औसात लड़कियों के किरदारों से कुछ सीखकर अपनी फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ के किरदारों को गढ़ा होता?इतना ही नही लेखक व निर्देशक ने बॉडी शेमिंग के अलावा हकलाने वाले पुरुष जैसे घिसे पिटे तत्व भी इस फिल्म में पिरो दिए हैं. कहानी में कुछ तो नया लेकर आते.
लेखकद्वय के दिमागी दिवालिएपन का नमूना यह भी है कि हरीशंकर, लाला केदारनाथ को बहुत कुछ सुनाकर उन्हे अपनी बेटी सपना से दूर रहने के लिए कहकर सपना की न सिर्फ शादी तय करते हैं, बल्कि बारात आ गयी है. शादी की रश्मंे शुरू हो चुकी हैं. अचानक हरीशंकर का हृदय परिवर्तन हो जाता है और पांचवे फेरे के बाद हरीशंकर अपनी बेटी से शादी को तोड़ने की बात कहते हैं और बारात की नाराजगी को अकेले ही झेले लेने की बात करते हैं. सपना फेरे लेने के की बजाय दूल्हे का साथ छोड़कर लाला केदारनाथ के पास पहुंच जाती है. इस तरह तो विवाह संस्था का मजाक उड़ाने के साथ ही उसे कमजोर करने का प्रयास लेखकद्वय ले किया है. लेकिन हिंदू धर्मावलंबियो को खुश करने का कोई अवसर नही छोडा गया. जितने मंदिर दिखा सकते थे, वह सब दिखा दिया.
जी हॉ! गर्भवती औरतों को गोल गप्पा खिलाकर उन्हें बेटे की मां बनाने का दावा करना भी तांत्रिको या बंगाली बाबाओं की तरह 21वीं सदी में अंधविश्वास फैलाना ही है.
फिल्म के संवाद भी अजीबो गरीब हैं. एक जगह जब गायत्री को देखने लड़के वाले आते हैं, तो दुकान वाला कुछ सामान देने के बाद लाला केदारनाथ से कहता है कि दूध भी लेते जाएं. इस पर अक्षय कुमार कहते हैं-‘‘आज नागपंचमी नही है. ’
लेखकद्वय ने कहानी को फैला दिया, चार बहन के किरदार भी गढ़ दिए, पर क्लायमेक्स में उन्हे समझ में नही आया कि किस तरह खत्म करे, तो आनन फानन में कुछ दिखा दिया, जो दर्शक के गले नही उतरता.
वहीं गायत्री की मौत के बाद तीनो बने कुछ बनने का फैसला लेते हुए कहती हैं-‘‘अब हम कुत्ते की तरह प़ढ़ाई करेंगे. ’’. . . अब लेखकद्वय से कौन पूछेगा कि कुत्ते की तरह पढ़ाई कैसी होती है?
पिछले कुछ दिनों से कनिका ढिल्लों पर ‘अति-राष्ट्रवादी’ होने का आराप लगाकर हमला करने वाले भी निराश होंगे, क्योंकि इस फिल्म में लेखिका कनिका ढिल्लों ने चांदनी चैक में कुछ मुस्लिम व सिख चेहरे भी खड़े कर दिए हैं.
फिल्म का गीत संगीत घटिया ही कहा जाएगा. एक गीत चर्चा में आया था-‘‘तेरे साथ हूं मैं. . ’’ यह गाना तो फिल्म का हिस्सा ही नही है.
अभिनयः
लाला केदारनाथ के किरदार में अक्षय कुमार का अभिनय भी इस फिल्म की कमजोर कड़ी है. बौलीवुड में इतने लंबे वर्षों से कार्य करते आ रहे अक्षय कुमार आज भी इमोशनल सीन्स ठीक से नही कर पाते हैं. वह हर किरदार में सीधा तानकर चलते नजर आते हैं. इसके अलावा उन्होने अपने अभिनय की एक शैली बना ली है, जिसमें छिछोरापन, उछलकूद, निचले स्तर के जोक्स व मस्ती करते हैं. कुछ लोग तो उन्हे स्टैंडअप कमेडियन ही मानते हैं. एक दो फिल्मों में उनके ेइस अंदाज को पसंद किया गया, तो अब वह हर जगह इसी तह नजर आते हैं. पर यह लंबी सफलता देने से रहा. कई दृश्यों मंे वह बहुत ज्यादा लाउड नजर आते हैं. चांदनी चैक के दुकानदार, खासकर चाट बेचने वाला डिजायनर कपड़े पहनने लगा है, यह एक सुखद अहसास है. अक्षय कुमार का बचपन चांदनी चैक की गलियों में ही बीता, इसका फायदा जरुर उन्हें मिला. अक्षय कुमार का बहनों का किरदार निभा रही अभिनेत्रियो संग केमिस्ट्री नही जमी. सपना के किरदार मे भूमि पेडणेकर के हिस्से करने को कुछ खास रहा नही. सच कहें तो भूमि पेडणेकर के कैरियर की जो शुरूआत थी, उससे उनका कैरियर नीचे की ओर जा रहा है. इसकी मूल वजह फिल्मों के चयन को लेकर उनका सतर्क न होना ही है. 2020 में प्रदर्शित विधू विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘‘शिकारा’’से अभिनय में कदम रखने वाली अभिनेत्री सादिया खिताब जरुर गायत्री के छोटे किरदार में अपने अभिनय की छाप छोड़ जाती हैं. हरीशंकर के किरदार में नीरज सूद का अभिनय ठीक ठाक ही है. दीपिका खन्ना, सहजमीन कौर और स्मृति श्रीकांत को अभी काफी मेहनत करने की जरुरत है. लाला केदारनाथ के सहायक के किरदार में साहिल मेहता जरुर अपने अभिनय की छाप छोड़ते हैं. उनके अंदर बेहतरीन कलाकार के रूप में खुद को स्थापित करने की संभावनाएं हैं, अब वह उनका किस तरह उपयोग करते हैं, यह तो उन पर निर्भर करता है.
यदि बौलीवुड इसी तरह से फिल्में बनाता रहा, तो बौलीवुड को डूबने से कोई नहीं बचा सकता. दक्षिण के सिनेमा के नाम आंसू बहाना भी काम नहीं आ सकता.
मेकर्स के नए ट्विस्ट के बाद सीरियल अनुपमा (Anupama) की कहानी दिलचस्प मोड़ लेती दिख रही है. जहां हाल ही में अनुज के एक्सीडेंट के बाद रातोंरात अनुपमा की जिंदगी बदल गई है तो वहीं अनुज की भाभी ने उसके खिलाफ बोलना शुरु कर दिया है. हालांकि अब अनुपमा उनकी साजिशों का करारा जवाब देते हुए नजर आने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा आगे (Anupama Written Update) …
अब तक आपने देखा कि अंकुश, बरखा से एक्सीडेंट को लेकर सवाल करता है. वहीं वनराज को सबक सिखाने के लिए बरखा पुलिस बुलाने की बात कहती है. वहीं शाह परिवार पर सवाल उठाती है. दरअसल, बरखा सवाल करती है कि एक बड़े बिजनेस टाइकून के साथ दुर्घटना होने के बावजूद पुलिस जांच क्यों नहीं हो रही है और इसे साजिश का नाम देती है. हालांकि काव्या उसके खिलाफ खड़ी होती है.
अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा, बरखा की बातें सुनेगी और अस्पताल में झगड़ा करने के लिए मना करेगी. लेकिन बरखा चुप नहीं रहेगी और कहेगी कि अनुज को मारने के प्रयास के लिए वनराज को सजा दिलाकर रहेगी. हालांकि अनुपमा उसे रुकने के लिए कहेगी पर बरखा उसे भी बेइज्जत करेगी और कहेगी कि तलाक के बाद भी वह अपने पूर्व पति को छोड़ना नहीं चाहती है और अभी भी शाह का बचाव कर रही है, भले ही कोई उसे कितना भी परेशान करे. बरखा की ये बात सुनकर अनुपमा गुस्से में नजर आएगी और कहेगी कि उसे भगवान का शुक्रगुजार होना चाहिए कि वह अस्पताल में खड़ी है न कि घर में वरना वह उसे करारा जवाब देती.
बरखा के हंगामे के बीच आप देखेंगे कि डौक्टर अनुपमा को खुशखबरी देंगे और बताएंगे कि अनुज को होश आ गया है और पूरा परिवार खुश हो जाएगा. हालांकि बरखा और अधिक परेशान नजर आएंगे. दूसरी तरफ होश में आते ही अनुज, वनराज के बारे में पूछेगा, जिसे सुनकर पूरा परिवार हैरान रह जाएगा. इसी के चलते वनराज, अनुपमा से माफी मांगने आएगा. लेकिन अनुपमा, वनराज से कहेगी कि कि जो कुछ भी हुआ उसके लिए वह जिम्मेदार है. वहीं बरखा इस बात से खुश नजर आएगी.