तब तक नीरजा चाय बना लाई और मैं उस का सिर अपने कंधे पर टिका कर उसे सांत्वना देने लगी. अब तक हम उस की प्रेम कहानी को मजाक समझ कर हंस कर टाल देते थे पर आज अचानक लगा कि संगीता तो सचमुच गंभीर है. बात अब पृथ्वीराज के मातापिता तक पहुंच चुकी थी.
‘‘मैं तो कहती हूं कि इस प्रेमकथा को यहीं समाप्त कर दो. इसी में हम सब की भलाई है,’’ अंतत: मौन नीरजा ने तोड़ा.
‘‘क्या कह रही हो तुम? संगीता की तो जान बसती है पृथ्वीराज में,’’ सपना ने आश्चर्य प्रकट किया.
‘‘हां, पर इस के चक्कर में इस के प्रेमी की जान भी जा सकती थी… फिर क्या होता इस की जान का?’’ नीरजा की बात कड़वी जरूर थी पर थी सच.
‘‘मैं अपने फैसले स्वयं ले सकती हूं. कृपया मुझे अकेला छोड़ दो,’’ संगीता ने आंसू पोंछ लिए. अब संगीता पढ़ाई में कुछ इस तरह जुट गई कि उसे दीनदुनिया का होश ही नहीं रहा. न पहले की तरह हंसतीबोलती न हमें हंसाती.
गनीमत है कि पृथ्वीराज को अधिक चोट नहीं आई थी. फिर भी उसे कालेज आने में 6 सप्ताह लग गए.
‘‘अब तेरे पृथ्वीराज की भविष्य की क्या योजना है?’’ एक दिन सपना ने संगीता से पूछ ही लिया.
‘‘हम ने इस विषय पर बहुत बात की. पृथ्वी तो फिर से घुड़सवारी शुरू करना चाहता है पर मैं ने ही मना कर दिया,’’ संगीता गंभीरता से बोली.
‘‘पर तेरा संयोगिता वाला स्वप्न?’’ मैं ने उत्सुकतावश पूछा.
‘‘मैं अपने स्वप्न के लिए पृथ्वीराज को खोने का खतरा तो नहीं उठा सकती न. वैसे भी यह 21वीं सदी है. अब सपनों के राजकुमार घोड़े पर नहीं, बाइक पर आते हैं,’’ संगीता हंसी.
संगीता की हंसी में न जाने कैसी उदासी थी कि हम सब भी उदास हो गए पर कुछ कह कर हम उसे और उदास नहीं करना चाहते थे. संगीता अपनी पुस्तकों में डूब गई पर हम चाह कर भी अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे थे.
‘‘बेचारी संगीता, न जाने उस की खुशियों को कैसे ग्रहण लग गया,’’ सपना अचानक भावुक हो उठी.
‘‘क्या कह रही हो. संगीता की नादानी तो पृथ्वीराज को भी ले डूबी. बड़ी संयोगिता बनने चली थी. ऐतिहासिक चरित्र… मुझे तो पृथ्वीराज पर तरस आता है. संगीता प्रेम में कुएं में कूदने को कहती तो क्या कूद जाता वह?’’ नीरजा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.
वार्षिक परीक्षा सिर पर थी. प्रैक्टिकल, प्रोजैक्ट और थ्यौरी की तैयारी के बीच हम संगीता की प्रेम कहानी को लगभग भूल चुके थे. अंतिम पेपर के बाद हम बसस्टैंड पर खड़े अपनी सखियों से विदा ले रहे थे. भविष्य के सपनों में डूबे सब के मन में अजीब सी उदासी थी. हमारी कुछ सहपाठिनें तो इस अवसर पर अपने आंसू रोक नहीं पा रही थीं. फूटफूट कर रो रही थीं. तभी वहां अजीब सा शोर उभरा. घोड़े की टापें सुनाई दीं. इस से पहले कि हम कुछ समझ पाते घोड़ा हमारी आंखों से ओझल हो गया.
‘पृथ्वीराज… पृथ्वीराज…’’ नीरजा चीखी पर हमारी समझ में कुछ नहीं आया.
‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.
‘‘होना क्या है? पृथ्वीराज संगीता को उठा ले गया. देखा नहीं? घोड़े पर आया था. नीरजा अब भी कांप रही थी,’’ हमारा डर के मारे बुरा हाल था. हम घर पहुंचे तो हांफ रहे थे. मैं तो मम्मी को देखते ही रोते हुए उन से लिपट गई. सिसकियां थीं कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं.
मम्मी ने हमें समझाबुझा कर शांत किया. पर जब हम ने सिसकियों के बीच टूटेफूटे शब्दों में उन्हें सारी बात बताई तो उन्होंने सिर थाम लिया.
‘‘इतनी बड़ी बात छिपा ली तुम सब ने? मेरा सिर तो सदा के लिए झुका दिया तुम ने… और वह संगीता… कितना नाज था मुझे उस पर. उस ने एक बार भी अपने मातापिता के संबंध में नहीं सोचा कि उन पर क्या बीतेगी. क्या करूं अब?’’
‘‘करना क्या है? पुलिस में रिपोर्ट लिखवाओ वरना संगीता का पता कैसे चलेगा?’’ मैं बोली.
‘‘पता है. तुम सब की होशियारी देख ली मैं ने. लड़की का मामला है, बहुत सोचसमझ कर कदम उठाना पड़ता है. पहले तो संगीता के मातापिता को सूचित करना पड़ेगा. पता नहीं बेचारों पर क्या बीतेगी. फिर जैसा वे कहेंगे वैसा ही करेंगे.’’ पर पुलिसकचहरी तक पहुंचने की नौबत नहीं आई. संगीता के मातापिता के पहुंचने से पहले ही संगीता का फोन आ गया था. इस बार दोनों को घोड़े से गिर कर चोट आई थी और दोनों ही नर्सिंगहोम में भरती थे. अब तो प्रेम कहानी ने बेहद जटिल रूप धारण कर लिया था. दोनों पक्षों के दर्जनों संबंधी आ जुटे थे और अपनाअपना पक्ष ले कर दूसरे पक्ष को दोषी ठहराने में जुटे थे. बीचबीच में हम तीनों को भी जी भर कर कोसा जाता कि हम ने सारी बात को तब तक छिपाए रखा जब तक पानी सिर से नहीं गुजर गया. हम मूर्ति बन सारी लानतें सह रह थे. अचानक एक दिन चमत्कार हो गया. न जाने कैसे दोनों पक्ष इस निर्णय पर पहुंच गए कि पृथ्वीराज और संगीता को खुला छोड़ना खतरे से खाली नहीं. अत: दोनों का विवाह ही एकमात्र समाधान है. दोनों बहुत गिड़गिड़ाए. पृथ्वीराज ने तो यहां तक कहा कि अपने पैरों पर खड़े हुए बिना वह विवाह मंडप में पैर भी नहीं रखेगा पर किसी ने दोनों की एक न सुनी और चट मंगनी पट विवाह की घोषणा कर दी. विवाह के अवसर पर पृथ्वीराज और संगीता ने लंगड़ाते हुए विवाह की रस्में पूरी कीं. स्वागत भोज के अवसर पर सपना से नहीं रहा गया. बोली, ‘‘जीजाजी, आप तो बड़े छिपेरुस्तम निकले? पैर तुड़वा लिए पर संगीता का सपना पूरा कर के ही माने.’’
‘‘यह राज की बात है किसी से कहना मत.’’
‘‘राज की बात? मैं कुछ समझी नहीं,’’ सपना बोली.
‘‘हम अपने घर वालों से विवाह की अनुमति लेने जाते तो जाति के नाम पर न जाने कितनी हायतोबा मचाते. अब देखो उन्होंने स्वयं हमें घेर कर विवाह करवा दिया,’’ पृथ्वीराज अपने विशेष अंदाज में मुसकराया. संगीता की आंखों में भी शरारत भरी मुसकान थी.
‘‘संगीता, सचमुच तुम इस खुशी की हकदार हो,’’ पहली बार नीरजा ने संगीता की प्रशंसा की. उस की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे.
हम उस का दर्द भलीभांति समझते थे. उस का मित्र अंकुश कब का उसे छोड़ कर किसी और के साथ प्रेम की पींगें बढ़ा रहा था. पर आज का दिन तो केवल संगीता के नाम था और हम सब कुछ भूल कर उस के विवाह का जश्न मना रहे थे.